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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 141 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ठाणे?
ठाणे णं जीवा ठाविज्जंति, अजीवा ठाविज्जंति, जीवाजीवा ठाविज्जंति। ससमए ठावि-ज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ। लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ।
ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुंडाइं, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ आघविज्जंति।
ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणग-विवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ
ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगह-णीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, एगवीसं उद्देसनकाला, एगवीसं Translated Sutra: – भगवन् ! स्थानाङ्गश्रुत क्या है ? स्थान में अथवा स्थान के द्वारा जीव, अजीव और जीवाजीव की स्थापना की जाती है। स्वसमय, परसमय एवं उभय पक्षों की स्थापना की जाती है। लोक, अलोक और लोकालोक की स्थापना की जाती है। स्थान में या स्थान के द्वारा टङ्क पर्वत कूट, पर्वत, शिखर वाले पर्वत, पर्वत के ऊपर हस्तिकुम्भ की आकृति सदृश्य | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 142 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समवाए?
समवाए णं जीवा समासिज्जंति, अजीवा समासिज्जंति, जीवाजीवा समासिज्जंति। ससमए समासिज्जइ, परसमए समासिज्जइ, ससमय-परसमए समासिज्जइ। लोए समासिज्जइ, अलोए समासिज्जइ, लोयालोए समासिज्जइ
समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणसय-विवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ। दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समासिज्जइ।
समवायस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए चउत्थे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे अज्झयणे, एगे उद्देसनकाले, एगे समुद्देसन काले, एगे चोयाले Translated Sutra: – समवायश्रुत का विषय क्या है ? समवाय सूत्र में यथावस्थित रूप से जीवों, अजीवों और जीवाजीवों का आश्रयण किया गया है। स्वदर्शन, परदर्शन और स्वपरदर्शन का आश्रयण किया गया है। लोक अलोक और लोकालोक आश्रयण किये जाते हैं। समवाय में एक से लेकर सौ स्थान तक भावों की प्ररूपणा है और द्वादशाङ्ग गणिपिटक का संक्षेप में परिचय | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 143 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वियाहे?
वियाहे णं जीवा विआहिज्जंति, अजीवा विआहिज्जंति, जीवाजीवा विआहिज्जंति। ससमए विआहिज्जति, परसमए विआहिज्जति, ससमय-परसमए विआहिज्जति। लोए विआहिज्जति, अलोए विआहिज्जति, लोयालोए विआहिज्जति।
वियाहस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साइं, दस समुद्देसगसहस्साइं, छत्तीसं वागरणसहस्साइं, दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता Translated Sutra: व्याख्याप्रज्ञप्ति में क्या वर्णन है? व्याख्याप्रज्ञप्ति में जीवों की, अजीवों की तथा जीवाजीवों की व्याख्या है। स्वसमय, परसमय और स्व – पर – उभय सिद्धान्तों की तथा लोक, अलोक और लोकालोक के स्वरूप का व्याख्यान है। परिमित वाचनाऍं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ – श्लोक विशेष, संख्यात निर्युक्तियाँ, संख्यात | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 144 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं नायाधम्मकहाओ?
नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराइं, उज्जानाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, पव्वज्जाओ, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमनाइं, देवलोग-गमनाइं, सुकुलपच्चायाईओ, पुनबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
दस धम्मकहाणं वग्गा। तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाइं। एगमेगाए अक्खाइयाए पंच पंच उवक्खाइयासयाइं। एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइओवक्खाइया-सयाइं– एवमेव सपुव्वावरेणं अद्धट्ठाओ कहाणगकोडीओ हवंति त्ति मक्खायं।
नायाधम्मकहाणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में क्या वर्णन है ? ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों के नगरों, उद्यानों, चैत्यों, वनखण्डों व भगवान् के समवसरणों का तथा राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक संबंधी ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, दीक्षा, पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधान – तप, संलेखना, भक्त – प्रत्याख्यान, पादपोप | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 145 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवासगदसाओ?
उवासगदसासु णं समणोवासगाणं नगराइं, उज्जाणाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिव-ज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, देवलोगगमणाइं, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, Translated Sutra: उपासकदशा नामक अंग किस प्रकार है ? उपासकदशा में श्रमणोपासकों के नगर, उद्यान, व्यन्तरायतन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलोक और परलोक की ऋद्धिविशेष, भोग – परित्याग, दीक्षा, संयम की पर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, शीलव्रत – गुणव्रत, विरमणव्रत – प्रत्याख्यान, पौषधोपवास का धारण करना, प्रतिमाओं | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 146 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं, उज्जानाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्व-ज्जाओ परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अंतगडदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा, अट्ठ उद्देसनकाला, अट्ठ समुद्देसन-काला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा Translated Sutra: – अन्तकृद्दशा – श्रुत किस प्रकार का है ? अन्तकृद्दशा में अन्तकृत् महापुरुषों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इस लोक और परलोक की ऋद्धि विशेष, भोगों का परित्याग, प्रव्रज्या और दीक्षापर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, संलेखना, भक्त – प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, अन्तक्रिया | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 147 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववायाणं नगराइं, उज्जाणाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोस-रणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोग-परिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, अनुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुनबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववाइयदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए नवमे Translated Sutra: भगवन् ! अनुत्तरौपपातिक – दशा सूत्र में क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिक दशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होनेवाले आत्माओं के नगर, उद्यान, व्यन्तरायन, वनखण्ड, समवसरण, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऋद्धिविशेष, भोगों का परित्याग, दीक्षा, संयमपर्याय, श्रुत का अध्ययन, उपधानतप, प्रतिमाग्रहण, उपसर्ग, अंतिम | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 148 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाइं?
पण्हावागरणेसु णं अट्ठुत्तरं परिणसयं, अट्ठुत्तरं अपसिणसयं, अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं, अण्णे य विचित्ता दिव्वा विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखे-ज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसनकाला पणयालीसं समुद्देसनकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया Translated Sutra: प्रश्नव्याकरण किस प्रकार है ? प्रश्नव्याकरण सूत्र में १०८ प्रश्न हैं, १०८ अप्रश्न हैं, १०८ प्रश्नाप्रश्न हैं। अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न तथा आदर्शप्रश्न। इनके अतिरिक्त अन्य भी विचित्र विद्यातिशय कथन हैं। नागकुमारों और सुपर्णकुमारों के साथ हुए मुनियों के दिव्य संवाद भी हैं। परिमित वाचनाऍं हैं। संख्यात | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 149 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुयं?
विवागसुए णं सुकड-दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुहविवागा, दस सुहविवागा।
से किं तं दुहविवागा? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, निरयगमणाइं, संसारभवपवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाईओ, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ। से त्तं दुहविवागा।
से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, Translated Sutra: भगवन् ! विपाकश्रुत किस प्रकार का है ? विपाकश्रुत में शुभाशुभ कर्मों के फल – विपाक हैं। उस विपाकश्रुत में दस दुःखविपाक और दस सुखविपाक अध्ययन हैं। दुःखविपाक में दुःखरूप फल भोगनेवालों के नगर, उद्यान, वनखंड चैत्य, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इह – परलौकिक ऋद्धि, नरकगमन, भवभ्रमण, दुःखपरम्परा, दुष्कुल | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 154 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पुव्वगए।
से किं तं अनुओगे?
अनुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमानुओगे गंडियानुओगे य।
से किं तं मूलपढमानुओगे?
मूलपढमानुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमनाइं, आउं, चवणाइं, जम्म-णाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्त-णाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिन-मन-पज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अनुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुनिवरु-त्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमनुत्तरं Translated Sutra: भगवन् ! अनुयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का है, मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में अरिहन्त भगवंतों के पूर्व भवों, देवलोक में जाना, आयुष्य, च्यवनकर तीर्थंकर रूप में जन्म, जन्माभिषेक तथा राज्याभिषेक, राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या, घोर तपश्चर्या, केवलज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ की प्रवृत्ति, शिष्य | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 158 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अक्खर सण्णी सम्मं, साइयं खलु सपज्जवसियं च ।
गमियं अंगपविट्ठं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ॥ Translated Sutra: अक्षर, संज्ञी, सम्यक्, सादि, सपर्यवसित, गमिक और अङ्गप्रविष्ट, ये सात और इनके सप्रतिपक्ष सात मिलकर श्रुतज्ञान के चौदह भेद हो जाते हैं। बुद्धि के जिन आठ गुणों से आगम शास्त्रों का अध्ययन एवं श्रुतज्ञान का लाभ देखा गया है, वे इस प्रकार हैं – विनययुक्त शिष्य गुरु के मुखारविन्द से निकले हुए वचनों को सुनना चाहता है। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं १-अणुन्नानंदी |
Hindi | 164 | Sutra | Chulika-01a | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अणुन्ना?
अणुन्ना छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–नामाणुण्णा ठवणाणुण्णा दव्वाणुण्णा खेत्ताणुण्णा कालाणुण्णा भावाणुण्णा।
से किं तं नामाणुण्णा?
नामाणुण्णा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा अणुण्ण त्ति णामं कीरइ।
से त्तं नामाणुण्णा।
से किं तं ठवणाणुण्णा?
ठवणाणुण्णा–जं णं कट्ठकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा चित्तकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघातिमे वा अक्खे वा वराडए वा एगे वा अणेगे वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा अणुण्ण त्ति ठवणा ठविज्जति। से त्तं ठवणाणुण्णा।
नाम-ठवणाणं को पतिविसेसो?
नामं आवकहियं, Translated Sutra: वह अनुज्ञा क्या है ? अनुज्ञा छह प्रकार से है – नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। वह नाम अनुज्ञा क्या है ? जिसका जीव या अजीव, जीवो या अजीवो, तदुभय या तदुभयो अनुज्ञा ऐसा नाम हो वह नाम अनुज्ञा। वह स्थापना अनुज्ञा क्या है ? जो भी कोई काष्ठ, पत्थर, लेप, चित्र, ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम ऐसे एक या अनेक अक्ष आदि | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
परिसिट्ठं १-अणुन्नानंदी |
Gujarati | 164 | Sutra | Chulika-01a | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अणुन्ना?
अणुन्ना छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–नामाणुण्णा ठवणाणुण्णा दव्वाणुण्णा खेत्ताणुण्णा कालाणुण्णा भावाणुण्णा।
से किं तं नामाणुण्णा?
नामाणुण्णा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा अणुण्ण त्ति णामं कीरइ।
से त्तं नामाणुण्णा।
से किं तं ठवणाणुण्णा?
ठवणाणुण्णा–जं णं कट्ठकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा चित्तकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघातिमे वा अक्खे वा वराडए वा एगे वा अणेगे वा सब्भावठवणाए वा असब्भाव-ठवणाए वा अणुण्ण त्ति ठवणा ठविज्जति। से त्तं ठवणाणुण्णा।
नाम-ठवणाणं को पतिविसेसो?
नामं आवकहियं, Translated Sutra: *** નોંધ – આનું સ્વરૂપ અનુયોગદ્વારમાં આરંભસુંદર રીતે આવે છે. અહી તો માત્ર તેનો સંક્ષેપ જ રાજુકરેલ છે. તે અનુજ્ઞા શું છે ? અનુજ્ઞા છ પ્રકારે છે – નામ, સ્થાપના, દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર, કાલ, ભાવ. નામ અનુજ્ઞા શું છે ? જેનું જીવ અનુજ્ઞા, અજીવ અનુજ્ઞા, જીવો અનુજ્ઞા, અજીવો અનુજ્ઞા, તદુભય અનુજ્ઞા કે તદુભયો અનુજ્ઞા એવું નામ કરાયું | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 3 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भद्दं सव्वजगुज्जोयगस्स भद्दं जिनस्स वीरस्स ।
भद्दं सुरासुरणमंसियस्स भद्दं धुयरयस्स ॥ Translated Sutra: વિશ્વમાં જ્ઞાનનો ઉદ્યોત કરનારા, પ્રભુનું કલ્યાણ થાઓ, રાગદ્વેષ રૂપ શત્રુઓના વિજેતા જિનેશ્વરનું કલ્યાણ થાઓ. દેવો અને દાનવો દ્વારા વંદિત પ્રભુનું કલ્યાણ થાઓ અને કર્મરૂપ રજથી વિમુક્ત એવા ભગવાન મહાવીર સ્વામીનું સદા કલ્યાણ થાઓ. | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 8 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सावगजणमहुअरिपरिवुडस्स जिनसूर-तेयबुद्धस्स ।
संघपउमस्स भद्दं, समणगण-सहस्सपत्तस्स ॥ (जुम्मं) Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 136 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं साइयं सपज्जवसियं, अनाइयं अपज्जवसियं च?
इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं– वुच्छित्तिनयट्ठयाए साइयं सपज्जवसियं, अवुच्छित्तिनयट्ठयाए अणाइयं अपज्जवसियं।
तं समासओ चउव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ।
तत्थ दव्वओ णं सम्मसुयं एगं पुरिसं पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, बहवे पुरिसे य पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
खेत्तओ णं–पंचभरहाइं पंचएरवयाइं पडुच्च साइयं सप-ज्जवसियं, पंच महाविदेहाइं पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
कालओ णं–ओसप्पिणिं उस्सप्पिणिं च पडुच्च साइयं सपज्जवसियं, नोओसप्पिणिं नोउस्स-प्पिणिं च पडुच्च अणाइयं अपज्जवसियं।
भावओ णं–जे जया जिनपन्नत्ता Translated Sutra: સાદિ સપર્યવસિત અને અનાદિ અપર્યવસિત શ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? આ દ્વાદશાંગ રૂપ ગણિપિટક, વિચ્છેદ થવાની અપેક્ષાએ સાદિ – સાંત છે અને વિચ્છેદ નહીં થવાની અપેક્ષાએ સાદિ અંત રહિત છે. આ શ્રુતજ્ઞાનનું સંક્ષેપથી ચાર પ્રકારે વર્ણન કરેલ છે, જેમ કે – દ્રવ્યથી, ક્ષેત્રથી, કાળથી અને ભાવથી. તેમાં ૧. દ્રવ્યથી સમ્યક્શ્રુત | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: [૧] ગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દૃષ્ટિવાદ બારમું અંગ સૂત્ર એ ગમિકશ્રુત છે. અગમિકશ્રુતનું સ્વરૂપ કેવું છે ? ગમિકથી ભિન્ન આચારાંગ આદિ કાલિકશ્રુતને અગમિકશ્રુત કહેવાય છે. આ પ્રમાણે ગમિક અને અગમિક શ્રુતનું વર્ણન છે. [૨] અથવા શ્રુત સંક્ષેપમાં બે પ્રકારનું કહ્યું છે – ૧. અંગ પ્રવિષ્ટ ૨. અંગ બાહ્ય. અંગબાહ્ય શ્રુત | |||||||||
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नन्दीसूत्र |
Gujarati | 139 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आयारे?
आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विनय-वेणइय-सिक्खा-भासा-अभासा-चरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविज्जंति।
से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे
आयारे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए पढमे अंगे, दो सुयक्खंधा, पणवीसं अज्झयणा, पंचासीइं उद्देसनकाला, पंचासीइं समुद्देसनकाला, अट्ठारस-पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया जिनपन्नत्ता Translated Sutra: આચારાંગ સૂત્ર કેવા પ્રકારનું છે? આચારાંગ સૂત્રમાં બાહ્ય – અભ્યંતર પરિગ્રહથી રહિત શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોના આચાર, ગોચર, ભિક્ષા ગ્રહણ કરવાની વિધિ, વિનય (જ્ઞાનાદિનો વિનય), વિનયનું ફળ, ક્રમક્ષય આદિ, ગ્રહણ અને આસેવન રૂપ શિક્ષા, બોલવા યોગ્ય સત્ય અને વ્યવહાર ભાષા અને ત્યાજ્ય મિશ્ર તથા અસત્ય ભાષા, ચરણ – વ્રતાદિ, કરણ – પિંડવિશુદ્ધિ | |||||||||
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Gujarati | 140 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सूयगडे?
सूयगडे णं लोए सूइज्जइ, अलोए सूइज्जइ, लोयालोए सूइज्जइ। जीवा सूइज्जंति, अजीवा सूइज्जंति, जीवाजीवा सूइज्जंति। ससमए सूइज्जइ, परसमए सूइज्जइ, ससमय-परसमए सूइज्जइ
सूयगडे णं आसीयस्स किरियावाइ-सयस्स, चउरासीइए अकिरियावाईणं, सत्तट्ठीए अन्नाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं– तिण्हं तेसट्ठाणं पावादुय-सयाणं वूहं किच्चा ससमए ठाविज्जइ।
सूयगडे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए बिइए अंगे, दो सुयक्खंधा, तेवीसं अज्झयणा, तेत्तीसं उद्देसनकाला, तेत्तीसं समुद्देसनकाला, Translated Sutra: સૂત્રકૃતાંગમાં કયા વિષયનું વર્ણન છે ? સૂત્રકૃતાંગમાં ષડ્દ્રવ્યાત્મક લોક સૂચિત કરવામાં આવેલ છે, કેવળ આકાશ દ્રવ્યમય અલોક સૂચિત કરવામાં આવેલ છે અને લોકાલોક પણ સૂચિત કરેલ છે. આ પ્રમાણે જીવ, અજીવ અને જીવાજીવની સૂચના આપેલી છે, સ્વમત, પરમત અને સ્વ – પરમતની સૂચના આપેલી છે. સૂત્રકૃતાંગમાં એકસો એંસી ક્રિયાવાદીઓના, | |||||||||
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Gujarati | 141 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ठाणे?
ठाणे णं जीवा ठाविज्जंति, अजीवा ठाविज्जंति, जीवाजीवा ठाविज्जंति। ससमए ठावि-ज्जइ, परसमए ठाविज्जइ, ससमय-परसमए ठाविज्जइ। लोए ठाविज्जइ, अलोए ठाविज्जइ, लोयालोए ठाविज्जइ।
ठाणे णं टंका, कूडा, सेला, सिहरिणो, पब्भारा, कुंडाइं, गुहाओ, आगरा, दहा, नईओ आघविज्जंति।
ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए वुड्ढीए दसट्ठाणग-विवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघविज्जइ
ठाणे णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगह-णीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए तइए अंगे, एगे सुयक्खंधे, दस अज्झयणा, एगवीसं उद्देसनकाला, एगवीसं Translated Sutra: સ્થાનાંગ સૂત્રમાં શું બતાવ્યું છે ? સ્થાનાંગ સૂત્રમાં જીવ સ્થાપિત કરેલ છે, અજીવ સ્થાપિત કરેલ છે અને જીવાજીવની સ્થાપના કરેલ છે. સ્વસમય – જૈન સિદ્ધાંતની સ્થાપના કરેલ છે, પરસમય – જૈનેતર સિદ્ધાંતની સ્થાપના કરેલ છે. તેમજ જૈન અને જૈનેતર,.ભય પક્ષોની સ્થાપના કરેલ છે. લોક, અલોક અને લોકાલોકની સ્થાપના કરેલ છે. સ્થાનાંગ | |||||||||
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Gujarati | 143 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वियाहे?
वियाहे णं जीवा विआहिज्जंति, अजीवा विआहिज्जंति, जीवाजीवा विआहिज्जंति। ससमए विआहिज्जति, परसमए विआहिज्जति, ससमय-परसमए विआहिज्जति। लोए विआहिज्जति, अलोए विआहिज्जति, लोयालोए विआहिज्जति।
वियाहस्स णं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साइं, दस समुद्देसगसहस्साइं, छत्तीसं वागरणसहस्साइं, दो लक्खा अट्ठासीइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता Translated Sutra: વ્યાખ્યા પ્રજ્ઞપ્તિમાં કોનું વર્ણન છે ? વ્યાખ્યા પ્રજ્ઞપ્તિમાં જીવોની, અજીવોની અને જીવાજીવોની વ્યાખ્યા કરી છે. સ્વસમય, પરસમય અને સ્વ – પર, ઉભય સિદ્ધાંતોની વ્યાખ્યા તથા લોક, અલોક અને લોકાલોકના સ્વરૂપનું વ્યાખ્યાન કરેલ છે. વ્યાખ્યા પ્રજ્ઞપ્તિમાં પરિમિત વાચનાઓ, સંખ્યાત અનુયોગદ્વાર, સંખ્યાત વેષ્ટિક – આલાપક, | |||||||||
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Gujarati | 145 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं उवासगदसाओ?
उवासगदसासु णं समणोवासगाणं नगराइं, उज्जाणाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चाया, परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिव-ज्जणया, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, देवलोगगमणाइं, सुकुलपच्चायाईओ, पुण बोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
उवासगदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए सत्तमे अंगे, Translated Sutra: ઉપાસકદશાંગ નામના અંગમાં કોનો અધિકાર છે ? ઉપાસકદશાંગમાં શ્રમણોપાસકોના નગર, ઉદ્યાન, વ્યંતરાયતન, વનખંડ, સમવસરણ, રાજા, માતાપિતા, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આ લોક અને પરલોકની ઋદ્ધિવિશેષ, ભોગ – પરિત્યાગ, દીક્ષા, સંયમની પર્યાય, શ્રુતનું અધ્યયન, ઉપધાન તપ, શીલવ્રત – ગુણવ્રત, વિરમણવ્રત – પ્રત્યાખ્યાન, પૌષધોપવાસને ધારણ કરનાર, | |||||||||
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Gujarati | 146 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं, उज्जानाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्व-ज्जाओ परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अंतगडदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा, अट्ठ उद्देसनकाला, अट्ठ समुद्देसन-काला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा Translated Sutra: અંતકૃત્દશાંગ શ્રુતમાં કોનું વર્ણન છે ? અંતકૃત્દશાંગ સૂત્રમાં કર્મનો અથવા જન્મ – મરણરૂપ સંસારનો અંત કરનારા મહાપુરુષોના નગર, ઉદ્યાન, વ્યંતરાયતન, વનખંડ, સમવસરણ, રાજા, માતાપિતા, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આ લોક અને પરલોકની ઋદ્ધિ વિશેષ, ભોગ – પરિત્યાગ, દીક્ષા, સંયમની પર્યાય, શ્રુતનું અધ્યયન, શ્રુતનું ઉપધાન તપ, સંલેખના, | |||||||||
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Gujarati | 147 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववायाणं नगराइं, उज्जाणाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोस-रणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोग-परिच्चागा, पव्वज्जाओ, परिआगा, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, पडिमाओ, उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, अनुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती, सुकुलपच्चायाईओ, पुनबोहिलाभा, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववाइयदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए नवमे Translated Sutra: અનુત્તરોપપાતિકદશાંગ સૂત્રમાં કોનું વર્ણન છે ? અનુત્તરોપપાતિકદશાંગ સૂત્રમાં અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પન્ન થનારા પુણ્યશાળી આત્માઓના નગર, ઉદ્યાન, વ્યંતરાયતન, વનખંડ, સમવસરણ, રાજા, માતાપિતા, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આ લોક અને પરલોકની ઋદ્ધિવિશેષ, ભોગપરિત્યાગ, દીક્ષા, સંયમની પર્યાય, શ્રુતનું અધ્યયન, ઉપધાન તપ, પ્રતિમાગ્રહણ, | |||||||||
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नन्दीसूत्र |
Gujarati | 148 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाइं?
पण्हावागरणेसु णं अट्ठुत्तरं परिणसयं, अट्ठुत्तरं अपसिणसयं, अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं, अण्णे य विचित्ता दिव्वा विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखे-ज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसनकाला पणयालीसं समुद्देसनकाला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा, सासय-कड-निबद्ध-निकाइया Translated Sutra: પ્રશ્નવ્યાકરણ સૂત્રમાં કોનું વર્ણન છે ? પ્રશ્નવ્યાકરણ સૂત્રમાં એકસો આઠ પ્રશ્ન એવા છે કે જે વિદ્યા, મંત્રવિધિથી જાપ વડે સિદ્ધ કરેલ છે અને પ્રશ્ન પૂછવા પર તે શુભાશુભ બતાવે. એકસો આઠ અ – પ્રશ્ન છે અર્થાત્ પૂછ્યા વિના જ શુભાશુભ બતાવે. એકસો આઠ પ્રશ્ન છે જે પૂછવાથી અથવા વગર પૂછ્યે સ્વયં શુભાશુભનું કથન કરે. જેમ કે | |||||||||
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नन्दीसूत्र |
Gujarati | 149 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुयं?
विवागसुए णं सुकड-दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुहविवागा, दस सुहविवागा।
से किं तं दुहविवागा? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, निरयगमणाइं, संसारभवपवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाईओ, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ। से त्तं दुहविवागा।
से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, Translated Sutra: વિપાકશ્રુતમાં કોનો અધિકાર છે ? વિપાકશ્રુતમાં સુકૃત – દુષ્કૃત અર્થાત્ શુભાશુભ કર્મોના ફળનું કથન છે. વિપાકસૂત્રમાં દસ અધ્યયન દુઃખ વિપાકના અને દસ અધ્યયન સુખવિપાકના છે. દુઃખવિપાકમાં શું બતાવ્યું છે ? દુઃખવિપાકમાં દુઃખરૂપ ફળ ભોગવનારના નગર, ઉદ્યાન, વનખંડ, ચૈત્ય, રાજા, માતાપિતા, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આ લોક તથા | |||||||||
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नन्दीसूत्र |
Gujarati | 154 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पुव्वगए।
से किं तं अनुओगे?
अनुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमानुओगे गंडियानुओगे य।
से किं तं मूलपढमानुओगे?
मूलपढमानुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमनाइं, आउं, चवणाइं, जम्म-णाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्त-णाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिन-मन-पज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अनुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुनिवरु-त्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमनुत्तरं Translated Sutra: [૧]. અનુયોગ કેટલા પ્રકારનો છે ? અનુયોગ બે પ્રકારનો છે, જેમ કે – ૧) મૂલપ્રથમાનુયોગ અને ગંડિકાનુયોગ. મૂલપ્રથમાનુયોગમાં કોનું વર્ણન છે? મૂલપ્રથમાનુયોગમાં અરિહંત ભગવંતના પૂર્વભવોનું વર્ણન છે. તેમનું દેવલોકમાં જવું, દેવલોકનું આયુષ્ય, દેવલોકથી ચ્યવીને તીર્થંકર રૂપે જન્મ, દેવાદિકૃત જન્માભિષેક, રાજ્યાભિષેક, પ્રધાન | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 79 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू लहुसएण सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा हत्थाणि वा पादाणि वा दंताणि वा मुहाणि वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी थोड़ा – अल्प बूँद जिनता अचित्त ऐसा ठंड़ा या गर्म पानी लेकर हाथ – पाँव – कान – आँख – दाँत – नाखून या मुँह एक बार या बार – बार धोए, धुलाए या धोनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 103 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू मणुण्णं भोयण-जायं बहुपरियावण्णं, अदूरे तत्थ साहम्मिया संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया संता परिवसंति, ते अनापुच्छित्ता अनिमंतिया परिट्ठवेति, परिट्ठवेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी मनोज्ञ – शुभ वर्ण, गंध आदि युक्त उत्तम तरह के अनेकविध आहार आदि लाकर इस्तमाल करे, (खाए – पीए) फिर बचा हुआ आहार पास ही में रहे जिनके साथ मांडलि व्यवहार हो ऐसे, निरतिचार चारित्र वाले समनोज्ञ साधर्मिक (साधु – साध्वी) को बिना पूछे, न्यौता दिए बिना परठवे, परठवावे या परठवनावाले की अनुमोदना करे तो प्रा | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-११ | Hindi | 724 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू मुहवण्णं करेति, करेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी जिनप्रणित चीज से विपरीत चीज की प्रशंसा करे, करवाए, अनुमोदना करे। जैसे कि सामने किसी अन्यधर्मी हो तो उसके धर्म की प्रशंसा करे आदि तो प्रायश्चित्त। | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-११ | Hindi | 741 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू सचेले सचेलयाणं मज्झे संवसति, संवसंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – अचेलक या सचेलक हो और अचेलक या सचेलक साथ निवास करे यानि स्थविर कल्पी अन्य सामाचारीवाले स्थविरकल्पी या जिनकल्पी साथ रहे और जो जिनकल्पी हो और स्थविरकल्पी या जिनकल्पी साथ रहे (अथवा अचेलक या अचेलक साधु या अचेलक साध्वी साथ निवास करे) करवाए – करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ७४१–७४४ | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 133 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तह जिनवराण आणं अइक्कमंता पमायदोसेणं ।
पावंति दुग्गइपहे विनिवायसहस्सकोडीओ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 191 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] गीयत्थो य विहारो बिइओ गीयत्थमीसिओ भणिओ ।
एत्तो तइअविहारो नाणुन्नाओ जिनवरेहिं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 197 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पत्तेयबुद्ध जिनकप्पिया य पडिमासु चेव विहरंता ।
आयरिअच्चेरवसभा भिक्खू खुड्डा य गच्छंमि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 370 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] मत्तट्ठिआ व खवगा अमंगलं चोयए जिनाहरणं ।
जइ खमगा वंदंता दायंतियरे विहिं वोच्छं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 431 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] संसज्जइ धुवमेअं अपेहियं तेण पुव्व पडिलेहे ।
पडिलेहिअंपि संसज्जइत्ति संसत्तमेव जिना ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 432 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] नाऊण वेयणिज्जं अइबहुअं आउअं च वोयागं ।
कम्मं पडिलेहेउं वच्चंति जिना समुग्घायं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 466 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जोगो जोगो जिनसासणंमि दुक्खक्खया पउंजंते ।
अन्नोन्नमवाहाए असवत्तो होइ कायव्वो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
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ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 467 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जोगे जोगे जिनसासणंमि दुक्खक्खया पउंजंते ।
एक्केक्कंमि अनंता वट्टंता केवली जाया ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 478 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पोरिसि पमाणकालो निच्छयववहारिओ जिनक्खाओ ।
निच्छयओ करणजुओ ववहारमतो परं वोच्छं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
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ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 590 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] आयापवयणसंजमउवघाओ दीसई जओ तिविहो ।
तम्हा वदंति केई न लेवगहणं जिना बिंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
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ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 701 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जे जहिं दुगुंछिया खलु पव्वावणवसहिभत्तपाणेसु ।
जिनवयणे पडिकुट्ठा वज्जेयव्वा पयत्तेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 702 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठारस पुरिसेसुं वीसं इत्थीसु दस नपुंसेसुं ।
पव्ववणाए एए दुगुंछिया जिनवरमयंमि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
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ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 706 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एसणमनेसणं वा कह ते नाहिंति जिनवरमयं वा ।
कुरिणंमिव पोयाला जे मुक्का पव्वइयमेत्ता ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 755 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] नियमा उ दिट्ठगाही जिनमाई गच्छनिग्गया होंति ।
थेरावि दिट्ठगाही अदिट्ठिकरेंति उवओगं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 974 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] आवासगं तु काउं जिनवरदिट्ठं गुरूवएसेणं ।
तिन्नि वुई पडिलेहा कालस्स विही इमो तत्थ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 1009 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपत्ती ।
एसो दुवालसविहो उवही जिनकप्पियाणं तु ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 1011 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जिना बारसरूवाइं थेरा चउद्दसरूविणो ।
अज्जाणं पन्नवीसं तु अओ उड्ढं उवग्गहो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 1031 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एगं पायं जिनकप्पियाण थेराण मत्तओ बिइओ ।
एयं गणणपमाणं पमाणमाणं अओ वुच्छं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 1044 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] छक्कायरक्खणट्ठा पयग्गहणं जिनेहिं पन्नत्तं ।
जे य गुणा संभोए हवंति ते पायगहणेवि ॥ Translated Sutra: Not Available |