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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 846 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्सदेवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो एवं जहा वक्कंतीए उववाओ जाव–
जइ बायरपुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं पज्जत्ताबादर जाव उवव-ज्जंति, अपज्जत्ताबादरपुढवि?
गोयमा! पज्जत्ताबादरपुढवि, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जंति।
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि वे तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 847 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति।
बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया। Translated Sutra: भगवन् ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 848 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति।
असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसं। सेसा छ न भण्णंति।
जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय।
जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय? Translated Sutra: (भगवन् !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 849 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? एवं जहेव पुढविक्काइयउद्देसए जाव–
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए आउक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्सट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। एवं पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो भाणियव्वो, नवरं–ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अप्कायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिक – उद्देशक अनुसार कहना। यावत् भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले अप्कायिक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की। इस प्रकार यह समग्र उद्देशक पृथ्वीकायिक के समान है। विशेष यह है कि इसकी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१७ थी १९ बेइन्द्रियादि | Hindi | 853 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बेंदिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति? जाव–
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए बेंदिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? सच्चेव पुढविकाइयस्स लद्धी जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जाइं भवग्गहणाइं–एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं तेसु चेव चउसु गमएसु संवेहो, सेसेसु पंचसु तहेव अट्ठ भवा। एवं जाव चउरिंदिएणं समं चउसु संखेज्जा भवा, पंचसु अट्ठ भवा। पंचिंदियतिरिक्खजोणियमनुस्सेसु समं तहेव अट्ठ भवा। देवेसु न उववज्जंति। ठितिं संवेहं च जाणेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं; इत्यादि, यावत् – हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ पूर्वोक्त पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता के समान, यावत् कालावेश से – जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट संख्यात भव। पृथ्वीकायिक के साथ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२० तिर्यंच पंचेन्द्रिय | Hindi | 856 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो, मनुस्सेहिंतो वि, देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति– किं रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठि-तीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२१ मनुष्य | Hindi | 857 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति जाव देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो वि उववज्जंति जाव देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ जहा पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहिंतो वि उववज्जंति, नो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! से भविए मनुस्सेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं मासपुहत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडिआउएसु। अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उव वज्जंतस्स तहेव, नवरं–परिमाणे जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों से आकर यावत् देवों से आकर होते हैं ? गौतम! नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार यहाँ ‘पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक – उद्देशक’ अनुसार, यावत् – तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 858 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाणमंतरा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख? एवं जहेव नागकुमारउद्देसए असण्णी तहेव निरवसेसं।
जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्ज-वासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति।
सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए वाणमंतरेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमट्ठितीएसु। सेसं तं चेव जहा नागकुमारउद्देसए जाव कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि Translated Sutra: भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यंच – योनिकों से ? (गौतम !) नागकुमार – उद्देशक अनुसार असंज्ञी तक कहना चाहिए। भगवन् ! अंख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले वाणव्यन्तरों में उत्पन्न होता है ? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 859 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जोइसिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? भेदो जाव सण्णिपंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिपंचिंदियतिरिक्ख।
जइ सण्णि किं संखेज्ज? असंखेज्ज?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, असंखेज्जवासाउय।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए जोतिसिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमवाससयसहस्स-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा, अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए, नवरं–ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि।
सेसं तहेव, नवरं –कालादेसेणं Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्क देव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! तिर्यंचों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् – वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी पंचेन्द्रिय से नहीं। भगवन् ! यदि वे संज्ञी – पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 860 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-१ लेश्या | Hindi | 862 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–कति णं भंते! लेस्साओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा जहा पढमसए बितिए उद्देसए तहेव लेस्साविभागो। अप्पाबहुगं च जाव चउव्विहाणं देवाणं चउव्विहाणं देवीणं मीसगं अप्पाबहुगंति। Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्री गौतम स्वामी ने राजगृह में यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ? गौतम ! छह हैं। यथा कृष्णलेश्या आदि। शेष वर्णन प्रथम शतक के द्वीतिय उद्देशक अनुसार यहाँ भी लेश्याओं का विभाग, उनका अल्पबहुत्व, यावत् चार प्रकार के देव और चार प्रकार की देवियों के मिश्रित अल्पबहुत्व | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-१ लेश्या | Hindi | 863 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता?
गोयमा! चोद्दसविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–१. सुहुमा अप्पज्जत्तगा २. सुहुमा पज्जत्तगा ३. बादरा अप्पज्जत्तगा ४. बादरा पज्जत्तगा ५. बेइंदिया अप्पज्जत्तगा ६. बेइंदिया पज्जत्तगा ७. तेइंदिया अप्पज्जत्तगा ८. तेइंदिया पज्जत्तगा ९. चउरिंदिया अप्पज्जत्तगा १०. चउरिंदिया पज्जत्तगा ११. असण्णिपंचिंदिया अप्पज्जत्तगा १२. असण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा १३. सण्णिपंचिंदिया अप्पज्जत्तगा १४. सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा।
एतेसि णं भंते! चोद्दसविहाणं संसारसमावन्नगाणं जीवाणं जहण्णुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा Translated Sutra: भगवन् ! संसारसमापन्नक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! चौदह हैं। यथा – सूक्ष्म अपर्याप्तक, सूक्ष्म पर्याप्तक, बादर अपर्याप्तक, बादर पर्याप्तक, द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक, द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक – पर्याप्तक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-१ लेश्या | Hindi | 864 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते! नेरइया पढमसमयोववन्नगा किं समजोगी? विसमजोगी?
गोयमा! सिय समजोगी, सिय विसमजोगी।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय समजोगी, सिय विसमजोगी?
गोयमा! आहारयाओ वा से अनाहारए, अनाहारयाओ वा से आहारए सिय हीने, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए। जइ हीने असंखेज्जइभागहीने वा, संखेज्जइभागहीने वा, संखेज्जगुणहीने वा, असंखेज्जगुणहीने वा। अह अब्भहिए असंखेज्जइभागमब्भहिए वा, संखेज्जइभागमब्भहिए वा, संखेज्जगुणमब्भहिए वा, असंखेज्जगुणमब्भहिए वा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–सिय सम-जोगी, सिय विसमजोगी। एवं जाव वेमाणियाणं। Translated Sutra: भगवन् ! प्रथम समय में उत्पन्न दो नैरयिक समयोगी होते हैं या विषमयोगी ? गौतम ! कदाचित् समयोगी होते हैं और कदाचित् विषमयोगी। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! आहारक नारक से अनाहारक नारक और अनाहारक नारक से आहारक नारक कदाचित् हीनयोगी, कदाचित् तुल्ययोगी और कदाचित् अधिक – योगी होता है। यदि वह हीन योग वाला | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-१ लेश्या | Hindi | 865 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! जोए पन्नत्ते?
गोयमा! पन्नरसविहे जोए पन्नत्ते, तं जहा–१. सच्चमणजोए २. मोसमणजोए ३. सच्चामोस-मणजोए ४. असच्चामोसमणजोए ५. सच्चवइजोए ६. मोसवइजोए ७. सच्चामोसवइजोए ८. असच्चामोसवइजोए ९. ओरालियसरीरकायजोए १. ओरालियमीसासरीरकायजोए ११. वेउव्विय-सरीरकायजोए १२. वेउव्वियमीसासरीरकायजोए १३. आहारगसरीरकायजोए १४. आहारगमीसा-सरीरकाय- जोए १५. कम्मासरीरकायजोए।
एयस्स णं भंते! पन्नरसविहस्स जहण्णुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! १. सव्वत्थोवे कम्मासरीरस्स जहन्नए जोए २. ओरालियमीसगस्स जहन्नए जोए असंखेज्जगुणे ३. वेउव्वियमीसगस्स Translated Sutra: भगवन् ! योग कितने प्रकार का है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार का। यथा – सत्य – मनोयोग, मृषा – मनोयोग, सत्यमृषा – मनोयोग, असत्यामृषा – मनोयोग, सत्य – वचनयोग, मृषा – वचनयोग, सत्यमृषा – वचनयोग, असत्यामृषा – वचनयोग, औदारिकशरीर – काययोग, औदारिक – मिश्रशरीर – काययोग, वैक्रियशरीर – काययोग, वैक्रियमिश्र – शरीर – काययोग, आहारकशरीर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-२ द्रव्य | Hindi | 866 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! दव्वा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा दव्वा पन्नत्ता, तं जहा–जीवदव्वा य, अजीवदव्वा य।
अजीवदव्वा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूविअजीवदव्वा य, अरूविअजीवदव्वा य।
अरूविअजीवदव्वा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, आगासत्थिकाए, आगासत्थि-कायस्स देसे, आगासत्थिकायस्स पदेसा, अद्धासमए।
रूविजीवदव्वा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! चउविहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा, खंधदेसा, खंधपदेसा, परमाणुपोग्गले।
ते Translated Sutra: भगवन् ! द्रव्य कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य। भगवन् ! अजीवद्रव्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – रूपी और अरूपी अजीवद्रव्य। इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा प्रज्ञापनासूत्र के पाँचवे पद में कथिन अजीवपर्यवों के अनुसार, यावत् – हे गौतम ! इस कारण से कहा जाता है कि, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-२ द्रव्य | Hindi | 867 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवदव्वा णं भंते! किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवदव्वा णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता?
गोयमा! असंखेज्जा नेरइया जाव असंखेज्जा वाउक्काइया, अनंता वणस्सइकाइया, असंखेज्जा बेंदिया, एवं जाव वेमाणिया, अनंता सिद्धा। से तेणट्ठेणं जाव अनंता।
जीवदव्वाणं भंते! अजीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? अजीवदव्वाणं जीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति?
गोयमा! जीवदव्वाणं अजीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, नो अजीवदव्वाणं जीवदव्वा परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– जीवदव्वाणं Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीवद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! जीवद्रव्य संख्यात नहीं, असंख्यात नहीं, किन्तु अनन्त हैं। गौतम ! नैरयिक असंख्यात हैं, यावत् वायुकायिक असंख्यात हैं और वनस्पति – कायिक अनन्त हैं, द्वीन्द्रिय यावत् वैमानिक असंख्यात हैं तथा सिद्ध अनन्त हैं। इस कारण जीवद्रव्य अनन्त हैं। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-२ द्रव्य | Hindi | 868 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! असंखेज्जे लोए अनंताइं दव्वाइं आगासे भइयव्वाइं?
हंता गोयमा! असंखेज्जे लोए अनंताइं दव्वाइं आगासे भइयव्वाइं।
लोगस्स णं भंते! एगम्मि आगासपदेसे कतिदिसिं पोग्गला चिज्जंति?
गोयमा! निव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउदिसिं, सिय पंचदिसिं।
लोगस्स णं भंते! एगम्मि आगासपदेसे कतिदिसिं पोग्गला छिज्जंति? एवं चेव। एवं उवचिज्जंति, एवं अवचिज्जंति। Translated Sutra: भगवन् ! असंख्य लोकाकाश में अनन्त द्रव्य रह सकते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। गौतम ! निर्व्याघात से छहों दिशाओं से तथा व्याघात की अपेक्षा – कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पाँच दिशाओं से। भगवन् ! लोक के एक आकाशप्रदेश में एकत्रित पुद्गल कितनी दिशाओं से पृथक् होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 876 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सेढीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उज्जुआयता, एगओवंका, दुहओवंका, एगओखहा, दुहओखहा, चक्कवाला, अद्ध चक्कवाला।
परमाणुपोग्गलाणं भंते! किं अणुसेढिं गती पवत्तति? विसेढिं गती पवत्तति?
गोयमा! अणुसेढिं गती पवत्तति, नो विसेढिं गती पवत्तति।
दुपएसियाणं भंते! खंधाणं अणुसेढिं गती पवत्तति? विसेढिं गती पवत्तति? एवं चेव। एवं जाव अनंतपदेसियाणं खंधाणं।
नेरइयाणं भंते! किं अणुसेढिं गती पवत्तति? विसेढिं गती पवत्तति? एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं। Translated Sutra: भगवन् ! श्रेणियाँ कितनी कही है ? गौतम ! सात यथा – ऋज्वायता, एकतोवक्रा, उभयतोवक्रा, एकतःखा, उतयतःखा, चक्रवाल और अर्द्धचक्रवाल। भगवन् ! परमाणु – पुद्गलों की गति अनुश्रेणि होती है या विश्रेणि ? गौतम ! परमाणु – पुद्गलों की गति अनुश्रेणि होती है, विश्रेणि गति नहीं होती। भन्ते ! द्विप्रदेशिक स्कन्धों की गति अनुश्रेणि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 877 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता, एवं जहा पढमसत्ते पंचमुद्देसए जाव अनुत्तरविमान त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे हैं ? गौतम ! तीस लाख इत्यादि प्रथम शतक के पाँचवे उद्देशक अनुसार यावत् अनुत्तर – विमान तक जानना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 878 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गणिपिडए पन्नत्ते?
गोयमा! दुवालसंगे गणिपिडए पन्नत्ते, तं जहा–आयारो जाव दिट्ठिवाओ।
से किं तं आयारो? आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विनय-वेणइय-सिक्खा-भासा- अभासा-चरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविज्जंति, एवं अंगपरूवणा भाणियव्वा जहा नंदीए जाव– Translated Sutra: भगवन् ! गणिपिटक कितने प्रकार का है ? गौतम ! बारह – अंगरूप है। यथा – आचारांग यावत् दृष्टिवाद। भगवन् ! आचारांग किसे कहते हैं ? आचारांग – सूत्र में श्रमण – निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर – विधि आदि चारित्र – धर्म की प्ररूपणा की गई है। नन्दीसूत्र के अनुसार सभी अंगसूत्रों का वर्णन जानना चाहिए, यावत् – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 880 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! नेरइयाणं जाव देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेनं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! अप्पाबहुयं जहा बहुवत्तव्वयाए, अट्ठगतिसमासप्पाबहुगं च।
एएसि णं भंते! सइंदियाणं, एगिंदियाणं जाव अनिंदियाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? एयं पि जहा बहुवत्तव्वयाए तहेव ओहियं पयं भाणियव्वं, सकाइयअप्पाबहुगं तहेव ओहियं भाणियव्वं।
एएसि णं भंते! जीवाणं पोग्गलाणं अद्धासमयाणं सव्वदव्वाणं सव्वपदेसाणं सव्वपज्जवाणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? जहा बहुवत्तव्वयाए।
एएसि णं भंते! जीवाणं, Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक यावत् देव और सिद्ध इन पाँचों गतियों के जीवों में कौन जीव किन से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के बहुवक्तव्यता – पद के अनुसार तथा आठ गतियों के समुदाय का भी अल्पबहुत्व जानना। भगवन् ! सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय यावत् अनिन्द्रिय जीवों में कौन जीव, किन जीवों से अल्प, बहुत, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 881 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता– कडजुम्मे जाव कलियोगे? एवं जहा अट्ठारसमसते चउत्थे उद्देसए तहेव जाव से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ।
नेरइयाणं भंते! कति जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे? अट्ठो तहेव। एवं जाव वाउकाइयाणं।
वणस्सइकाइयाणं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दावरजुम्मा, सिय कलियोगा।
से Translated Sutra: भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! युग्म चार प्रकार के कहे हैं, यथा – कृतयुग्म यावत् कल्योज। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! अठारहवें शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहे अनुसार यहाँ जानना, यावत् इसीलिए ऐसा कहा है। भगवन् ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गए हैं ? गौतम ! उनमें चार युग्म कहे हैं। यथा – कृतयुग्म यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 882 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, कलियोगे। एवं नेरइए वि। एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मा–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, नो कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा।
नेरइया णं भंते! दव्वट्ठयाए–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलि-योगा। एवं जाव सिद्धा।
जीवे णं भंते! पदेसट्ठयाए किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! जीवपदेसे पडुच्च कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, Translated Sutra: भगवन् ! (एक) जीव द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वह कल्योज रूप है। इसी प्रकार (एक) नैरयिक यावत् सिद्ध – पर्यन्त जानना। भगवन् ! (अनेक) जीव द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म है। विधानादेश से कल्योज रूप है। भगवन् ! (अनेक) नैरयिक द्रव्यार्थरूप से | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 883 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं कडजुम्मपदेसोगाढे–पुच्छा।
गोयमा! सिय कडजुम्मपदेसोगाढे जाव सिय कलियोगपदेसोगाढे। एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! किं कडजुम्मपदेसोगाढा–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, नो कलियोगपदेसोगाढा; विहा-णादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा वि जाव कलियोगपदेसोगाढा वि।
नेरइयाणं–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मपदेसोगाढा जाव सिय कलियोगपदेसोगाढा; विहाणादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा वि जाव कलियोगपदेसोगाढा वि। एवं एगिंदिय-सिद्धवज्जा सव्वे वि। सिद्धा एगिंदिया य जहा जीवा।
जीवे णं भंते! किं कडजुम्मसमयट्ठितीए–पुच्छा।
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! जीव कृतयुग्म – प्रदेशावगाढ़ है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म – यावत् कदाचित् कृतयुग्म – यावत् कदाचित् कल्योज – प्रदेशावगाढ़ होता है। इसी प्रकार (एक) सिद्धपर्यन्त जानना। भगवन् ! (बहुत) जीव कृतयुग्म – प्रदेशावगाढ़ हैं ? गौतम ! वे ओघादेश से कृतयुग्म – प्रदेशावगाढ़ हैं। विधानादेश से वे | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 884 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कालावण्णपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! जीवपदेसे पडुच्च ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि नो कडजुम्मा जाव नो कलियोगा। सरीरपदेसे पडुच्च ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगा वि। एवं जाव वेमाणिया। एवं नीलावण्णपज्जवेहिं दंडओ भाणियव्वो एगत्तपुहत्तेणं। एवं जाव लुक्खफासपज्जवेहिं।
जीवे णं भंते! आभिनिबोहियनाणपज्जवेहिं किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! सिय कडजुम्मे जाव सिय कलियोगे। एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिए।
जीवा णं भंते! आभिनिबोहियनाणपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा, विहाणादेसेणं कडजुम्मा Translated Sutra: भगवन् ! (अनेक) जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! जीव – प्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से भी और विधानादेश से भी न तो कृतयुग्म हैं यावत् न कल्योज हैं। शरीरप्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं, विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं, यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 885 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! सरीरगा पन्नत्ता?
गोयमा! पंच सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए जाव कम्मए। एत्थ सरीरगपदं निरवसेसं भाणियव्वं जहा पन्नवणाए। Translated Sutra: भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – औदारिक, वैक्रिय, यावत् कार्मणशरीर। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का शरीरपद समग्र कहना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 886 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सेया? निरेया?
गोयमा! जीवा सेया वि, निरेया वि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवा सेया वि, निरेया वि?
गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरसिद्धा य, परंपरसिद्धा य। तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं निरेया। तत्थ णं जे ते अनंतरसिद्धा ते णं सेया।
ते णं भंते! किं देसेया? सव्वेया?
गोयमा! नो देसेया, सव्वेया। तत्थ णं जे ते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवन्नगा य, असेलेसि-पडिवन्नगा य। तत्थ णं जे ते सेलोसिपडिवन्नगा ते णं निरेया, Translated Sutra: भगवन् ! जीव सैज (सकम्प) हैं अथवा निरेज (निष्कम्प) हैं ? गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे हैं यथा – संसार – समापन्नक और असंसार – समापन्नक। उनमें से जो असंसार – समापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध जीव दो प्रकार के कहे हैं। यथा – अनन्तर – सिद्ध और | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 887 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गला णं भंते! किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता?
गोयमा! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता। एवं जाव अनंतपदेसिया खंधा।
एगपदेसोगाढा णं भंते! पोग्गला किं संखेज्जा? असंखेज्जा? अनंता? एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जपदेसोगाढा
एगसमयट्ठितीया णं भंते! पोग्गला किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव असंखेज्जसमयट्ठितीया।
एगगुणकालगा णं भंते! पोग्गला किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं जाव अनंतगुणकालगा। एवं अवसेसा वि वण्णगंधरसफासा नेयव्वा जाव अनंतगुणलुक्ख त्ति।
एएसि णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं दुपदेसियाण य खंधाणं दव्वट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो बहुया?
गोयमा! दुपदेसिएहिंतो खंधेहिंतो परमाणुपोग्गला Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु – पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना। भगवन् ! आकाश के एक प्रदेश में रहे हुए पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत् असंख्येय प्रदेशों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 888 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! परमाणुपोग्गलाणं, संखेज्जपदेसियाणं, असंखेज्जपदेसियाणं, अनंतपदेसियाणं य खंधाणं दव्वट्ठयाए, पदेसट्ठयाए, दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा अनंतपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए, परमाणुपोग्गला दव्वट्ठयाए अनंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा दव्वट्ठयाए असंखेज्ज-गुणा। पदेसट्ठयाए–सव्वत्थोवा अनंतपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए, परमाणुपोग्गला अपदेसट्ठयाए अनंतगुणा, संखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए संखेज्जगुणा, असंखेज्जपदेसिया खंधा पदेसट्ठयाए असंखेज्जगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु – पुद्गल, संख्यात – प्रदेशी, असंख्यात – प्रदेशी और अनन्त – प्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थरूप से, प्रदेशार्थरूप से तथा द्रव्यार्थ – प्रदेशार्थरूप से कौन – से पुद्गल – स्कन्ध किन पुद्गल – स्कन्धों से यावत् विशेषाधिक हैं। गौतम ! द्रव्यार्थ रूप से – सबसे अल्प अनन्तप्रदेशी स्कन्ध हैं, उनसे | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 889 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मे? तेयोए? दावरजुम्मे? कलियोगे?
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, कलियोगे। एवं जाव अनंतपदेसिए खंधे।
परमाणुपोग्गला णं भंते! दव्वट्ठयाए किं कडजुम्मा–पुच्छा।
गोयमा! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा। एवं जाव अनंतपदेसिया खंधा।
परमाणुपोग्गले णं भंते! पदेसट्ठयाए किं कडजुम्मे–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावरजुम्मे, कलियोगे।
दुपदेसिय–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, दावरजुम्मे, नो कलियोगे।
तिपदेसिए–पुच्छा।
गोयमा! नो कडजुम्मे, Translated Sutra: भगवन् ! (बहुत) परमाणुपुद्गल द्रव्यार्थ से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म, यावत् कल्योज हैं; किन्तु विधानादेश से कृतयुग्म, त्र्योज या द्वापरयुग्म नहीं हैं, कल्योज हैं। इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त जानना। भगवन् ! परमाणुपुद्गल प्रदेशार्थ से कृतयुग्म | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 890 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सड्ढे? अणड्ढे? गोयमा! नो सड्ढे, अणड्ढे।
दुपदेसिए णं–पुच्छा।
गोयमा! सड्ढे, नो अणड्ढे। तिपदेसिए जहा परमाणुपोग्गले। चउपदेसिए जहा दुपदेसिए। पंचपदेसिए जहा तिपदेसिए। छप्पदेसिए जहा दुपदेसिए। सत्तपदेसिए जहा तिपदेसिए। अट्ठपदेसिए जहा दुपदेसिए। नवपदेसिए जहा तिपदेसिए। दसपदेसिए जहा दुपदेसिए।
संखेज्जपदेसिए णं भंते! खंधे–पुच्छा।
गोयमा! सिय सड्ढे, सिय अणड्ढे। एवं असंखेज्जपदेसिए वि। एवं अनंतपदेसिए वि।
परमाणुपोग्गला णं भंते! किं सड्ढा? अणड्ढा?
गोयमा! सड्ढा वा, अणड्ढा वा। एवं जाव अनंतपदेसिया। Translated Sutra: भगवन् ! परमाणु – पुद्गल सार्द्ध है या अनर्द्ध है ? गौतम ! वह सार्द्ध नहीं है, अनर्द्ध है। भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध ? गौतम ! वह सार्द्ध है, अनर्द्ध नहीं। त्रिप्रदेशीस्कन्ध परमाणु – पुद्गल समान है। चतुष्प्रदेशी – स्कन्ध द्विप्रदेशीस्कन्ध समान है। पंचप्रदेशीस्कन्ध त्रिप्रदेशीस्कन्धवत् है। षट्प्रदेशीस्कन्ध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 891 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! किं सेए? निरेए?
गोयमा! सिय सेए, सिय निरेए। एवं जाव अनंतपदेसिए।
परमाणुपोग्गला णं भंते! किं सेया? निरेया?
गोयमा! सेया वि, निरेया वि। एवं जाव अनंतपदेसिया।
परमाणुपोग्गले णं भंते! सेए कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं।
परमाणुपोग्गले णं भंते! निरेए कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। एवं जाव अनंतपदेसिए।
परमाणुपोग्गला णं भंते! सेया कालओ केवच्चिरं होंति?
गोयमा! सव्वद्धं।
परमाणुपोग्गला णं भंते! निरेया कालओ केवच्चिरं होंति?
गोयमा! सव्वद्ध। एवं जाव अनंतपदेसिया।
परमाणुपोग्गलस्स Translated Sutra: भगवन् ! (एक) परमाणु – पुद्गल सैज (सकम्प) है या निरेज (निष्कम्प) ? गौतम ! वह कदाचित् सकम्प होता है और कदाचित् निष्कम्प होता है। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्धपर्यन्त जानना चाहिए। भगवन् ! (बहुत) परमाणु – पुद्गल सकम्प होते हैं या निष्कम्प ? गौतम ! दोनों। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना। भगवन् ! परमाणु | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 892 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता?
गोयमा! अट्ठ धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता।
कति णं भंते! अधम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता? एवं चेव।
कति णं भंते! आगासत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता? एवं चेव।
कति णं भंते! जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता?
गोयमा! अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता।
एए णं भंते! अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा कतिसु आगासपदेसेसु ओगाहंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कंसि वा दोहिं वा तीहिं वा चउहिं वा पंचहिं वा छहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठसु, नो चेव णं सत्तसु।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! धर्मास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! आकाशास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! जीवास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! जीवास्तिकाय के ये आठ मध्य – प्रदेश कितने आकाशप्रदेशों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 893 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! पज्जवा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पज्जवा पन्नत्ता, तं जहा–जीवपज्जवा य, अजीवपज्जवा य। पज्जवपदं निरवसेसं भाणियव्वं जहा पन्नवणाए। Translated Sutra: भगवन् ! पर्यव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – जीवपर्यव और अजीवपर्यव। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का पयृवपद कहना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 894 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आवलिया णं भंते! किं संखेज्जा समया? असंखेज्जा समया? अनंता समया?
गोयमा! नो संखेज्जा समया, असंखेज्जा समया, नो अनंता समया।
आणापाणू णं भंते! किं संखेज्जा? एवं चेव।
थोवे णं भंते! किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं लवे वि, मुहुत्ते वि, एवं अहोरत्ते, एवं पक्खे, मासे, उऊ, अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससए, वाससहस्से, वाससयसहस्से, पुव्वंगे, पुव्वे, तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हूहूयंगे, हूहूए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अत्थनिपूरंगे, अत्थनिपूरे, अउयंगे, अउए, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिए, सीसपहेलियंगे, सीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी। एवं उस्सप्पिणी Translated Sutra: भगवन् ! क्या आवलिका संख्यात समय की, असंख्यात समय की या अनन्त समय की होती है ? गौतम ! वह केवल असंख्यात समय की होती है। भगवन् ! आनप्राण संख्यात समय का होता है ? इत्यादि। गौतम ! पूर्ववत्। भगवन् ! स्तोक संख्यात समय का होता है ? इत्यादि। गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 895 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनागयद्धा णं भंते! किं संखेज्जाओ तीतद्धाओ? असंखेज्जाओ? अनंताओ?
गोयमा! नो संखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो असंखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो अनंताओ तीतद्धाओ। अनागयद्धा णं तीतद्धाओ समयाहिया, तीतद्धा णं अनागयद्धाओ समयूणा।
सव्वद्धा णं भंते! किं संखेज्जाओ तीतद्धाओ–पुच्छा।
गोयमा! नो संखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो असंखेज्जाओ तीतद्धाओ, नो अनंताओ तीतद्धाओ। सव्वद्धा णं तीतद्धाओ सातिरेग-दुगुणा, तीतद्धा णं सव्वद्धाओ थोवूणए अद्धे।
सव्वद्धा णं भंते! किं संखेज्जाओ अनागयद्धाओ–पुच्छा।
गोयमा! नो संखेज्जाओ अनागयद्धाओ, नो असंखेज्जाओ अनागयद्धाओ, नो अनंताओ अणा-गयद्धाओ।
सव्वद्धा णं अनागयद्धाओ थोवूणगदुगुणा। Translated Sutra: भगवन् ! अनागतकाल क्या संख्यात अतीतकालरूप है अथवा असंख्यात या अनन्त अतीतकालरूप है ? गौतम ! वह न तो संख्यात अतीतकालरूप है, न असंख्यात और अनन्त अतीतकालरूप है, किन्तु अतीताद्धाकाल से अनागताद्धाकाल एक समय अधिक है और अनागताद्धाकाल से अतीताद्धाकाल एक समय न्यून। भगवन् ! सर्वाद्धा क्या संख्यात अतीताद्धाकालरूप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 896 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! निओदा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा निओदा पन्नत्ता, तं जहा–निओयगा य, निओयगजीवा य।
निओदा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमनिगोदा य, बायरनिओदा य। एवं निओदा भाणियव्वा जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं। Translated Sutra: भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – निगोद और निगोदजीव। भगवन् ! ये निगोद कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – सूक्ष्मनिगोद और बादरनिगोद। इस प्रकार निगोद को जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 897 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नामे पन्नत्ते?
गोयमा! छव्विहे नामे पन्नत्ते, तं जहा–ओदइए जाव सण्णिवाइए।
से किं तं ओदइए नामे?
ओदइए नामे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–उदए य, उदयनिप्फण्णे य–एवं जहा सत्तरसमसए पढमे उद्देसए भावो तहेव इह वि, नवरं–इमं नामनाणत्तं, सेसं तहेव जाव सण्णिवाइए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! नाम कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! छह प्रकार के – औदयिक यावत् सान्निपातिक। भगवन् ! वह औदयिक नाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – उदय और उदयनिष्पन्न। सत्रहवें शतक के प्रथम उद्देशक में जैसे भाव के सम्बन्ध में कहा है, वैसे ही यहाँ कहना। वहाँ ‘भाव’ के सम्बन्ध में कहा है, जब कि यहाँ ‘नाम’ के विषय में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 901 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कति णं भंते! नियंठा पन्नत्ता?
गोयमा! पंच नियंठा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाए, बउसे, कुसीले, नियंठे, सिणाए।
पुलाए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणपुलाए, दंसणपुलाए, चरित्तपुलाए, लिंगपुलाए, अहासुहुम-पुलाए नाम पंचमे।
बउसे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभोगबउसे, अनाभोगबउस, संवुडबउसे, असंवुडबउसे, अहा-सुहुमबउसे नामं पंचमे।
कुसीले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पडिसेवणाकुसीले य, कसायकुसीले य।
पडिसेवणाकुसीले णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा– नाणपडिसेवणाकुसीले, Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक। भगवन् ! पुलाक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – ज्ञानपुलाक, दर्शनपुलाक, चारित्र – पुलाक, लिंगपुलाक, यथासूक्ष्मपुलाक। भगवन् ! बकुश कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 902 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सरागे होज्जा? वीतरागे होज्जा?
गोयमा! सरागे होज्जा, नो वीतरागे होज्जा। एवं जाव कसायकुसीले।
नियंठे णं भंते! किं सरागे होज्जा–पुच्छा।
गोयमा! नो सरागे होज्जा, वीतरागे होज्जा।
जइ वीतरागे होज्जा किं उवसंतकसायवीतरागे होज्जा? खीणकसायवीतरागे होज्जा?
गोयमा! उवसंतकसायवीतरागे वा होज्जा, खीणकसायवीतरागे वा होज्जा। सिणाए एवं चेव, नवरं–नो उवसंतकसायवीतरागे होज्जा, खीणकसायवीतरागे होज्जा। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक सराग होता है या वीतराग ? गौतम ! वह सराग होता है, वीतराग नहीं होता है। इसी प्रकार कषायकुशील तक जानना। भगवन् ! निर्ग्रन्थ सराग होता है या वीतराग होता है ? गौतम ! वह वीतराग होता है। (भगवन !) यदि वह वीतराग होता है तो क्या उपशान्तकषाय वीतराग होता है या क्षीणकषाय वीतराग होता है ? गौतम दोनो। स्नातक के विषय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 903 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं ठियकप्पे होज्जा? अट्ठियकप्पे होज्जा?
गोयमा! ठियकप्पे वा होज्जा, अट्ठियकप्पे वा होज्जा। एवं जाव सिणाए।
पुलाए णं भंते! किं जिनकप्पे होज्जा? थेरकप्पे होज्जा? कप्पातीते होज्जा?
गोयमा! नो जिनकप्पे होज्जा, थेरकप्पे होज्जा, नो कप्पातीते होज्जा।
बउसे णं–पुच्छा।
गोयमा! जिनकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, नो कप्पातीते होज्जा। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! जिनकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, कप्पातीते वा होज्जा।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! नो जिनकप्पे होज्जा, नो थेरकप्पे होज्जा, कप्पातीते होज्जा। एवं सिणाए वि। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक स्थितकल्प में होता है, अथवा अस्थितकल्प में होता है ? गौतम ! वह स्थितकल्प में भी होता है और अस्थितकल्प में भी होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक तक जानना। भगवन् ! पुलाक जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में होता है अथवा कल्पातीत में होता है ? गौतम ! वह स्थविरकल्प में होता है। भगवन् ! बकुश जिनकल्प में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 904 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सामाइयसंजमे होज्जा? छेओवट्ठावणियसंजमे होज्जा? परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा? सुहुमसंपरागसंजमे होज्जा? अहक्खायसंजमे होज्जा?
गोयमा! सामाइयसंजमे वा होज्जा, छेओवट्ठावणियसंजमे वा होज्जा, नो परिहारविसुद्धियसंजमे होज्जा, नो सुहुमसंपरागसंजमे होज्जा, नो अहक्खायसंजमे होज्जा। एवं बउसे वि। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! सामाइयसंजमे वा होज्जा जाव सुहुमसंपरागसंजमे वा होज्जा, नो अहक्खायसंजमे होज्जा।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! नो सामाइयसंजमे होज्जा जाव नो सुहुमसंपरागसंजमे होज्जा, अहक्खायसंजमे होज्जा। एवं सिणाए वि। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक सामायिकसंयम से, छेदोपस्थापनिकसंयम, परिहारविशुद्धिसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम में अथवा यथाख्यातसंयम में होता है ? गौतम ! वह सामायिकसंयम में या छेदोपस्थापनिकसंयम में होता है, किन्तु परिहारविशुद्धि संयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम या यथाख्यातसंयम में नहीं होता। बकुश और प्रतिसेवना कुशील के सम्बन्ध | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 905 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं पडिसेवए होज्जा? अपडिसेवए होज्जा?
गोयमा! पडिसेवए होज्जा, नो अपडिसेवए होज्जा।
जइ पडिसेवए होज्जा किं मूलगुणपडिसेवए होज्जा? उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा?
गोयमा! मूलगुणपडिसेवए वा होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए वा होज्जा। मूलगुणे पडिसेवमाणे पंचण्हं आसवाणं अन्नयरं पडिसेवेज्जा, उत्तरगुणे पडिसेवमाणे दसविहस्स पच्चक्खाणस्स अन्नयरं पडिसेवेज्जा।
बउसे णं–पुच्छा।
गोयमा! पडिसेवए होज्जा, नो अपडिसेवए होज्जा।
जइ पडिसेवए होज्जा किं मूलगुणपडिसेवए होज्जा? उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा?
गोयमा! नो मूलगुणपडिसेवए होज्जा, उत्तरगुणपडिसेवए होज्जा। उत्तरगुणे पडिसेवमाणे दस-विहस्स Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक प्रतिसेवी होता है या अप्रतिसेवी होता है ? गौतम ! पुलाक प्रतिसेवी होता है, अप्रतिसेवी नहीं होता है। भगवन् ! यदि वह प्रतिसेवी होता है, तो क्या वह मूलगुण – प्रतिसेवी होता है, या उत्तरगुण – प्रतिसेवी होता है ? गौतम ! दोनो। यदि वह मूलगुणों का प्रतिसेवी होता है तो पाँच प्रकार के आश्रवों में से किसी एक आश्रव | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 906 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कतिसु नाणेसु होज्जा?
गोयमा! दोसु वा तिसु वा होज्जा। दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाणसुयनाणेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा। एवं बउसे वि। एवं पडिसेवणा-कुसीले वि।
कसायकुसले णं–पुच्छा।
गोयमा! दोसु वा तिसु वा चउसु वा होज्जा। दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाणेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा, अहवा तिसु होमाणे आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-मनपज्जवनाणेसु होज्जा, चउसु होमाणे चउसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाण-मनपज्जवनाणेसु होज्जा। एवं नियंठे वि।
सिणाए णं–पुच्छा।
गोयमा! एगम्मि केवलनाणे Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक में कितने ज्ञान होते हैं ? गौतम ! पुलाक में दो या तीन ज्ञान होते हैं। यदि दो ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं। यदि तीन ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होता है। इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए। भगवन् ! कषायकुशील में कितने ज्ञान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 907 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! केवतियं सुयं अहिज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं नवमस्स पुव्वस्स ततियं आयारवत्थुं, उक्कोसेणं नव पुव्वाइं अहिज्जेज्जा।
बउसे–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं अट्ठ पवयणमायाओ, उक्कोसेणं दस पुव्वाइं अहिज्जेज्जा। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं अट्ठ पवयणमायाओ, उक्कोसेणं चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जेज्जा। एवं नियंठे वि।
सिणाए–पुच्छा।
गोयमा! सुयवतिरित्ते होज्जा। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक कितने श्रुत का अध्ययन करता है ? गौतम ! जघन्यतः नौवें पूर्व की तृतीय आचारवस्तु तक का और उत्कृष्टतः पूर्ण नौ पूर्वों का। भगवन् ! बकुश कितने श्रुत पढ़ता है ? गौतम ! जघन्यतः अष्ट प्रवचन माता का और उत्कृष्ट दस पूर्व का अध्ययन करता है। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशीलमें समझना। भगवन् ! कषाय कुशील कितने श्रुत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 908 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं तित्थे होज्जा? अतित्थे होज्जा?
गोयमा! तित्थे होज्जा, नो अतित्थे होज्जा। एवं बउसे वि। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले–पुच्छा।
गोयमा! तित्थे वा होज्जा, अतित्थे वा होज्जा।
जइ अतित्थे होज्जा किं तित्थकरे होज्जा? पत्तेयबुद्धे होज्जा?
गोयमा! तित्थकरे वा होज्जा, पत्तेयबुद्धे वा होज्जा। एवं नियंठे वि। एवं सिणाए वि। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक तीर्थ में होता है या अतीर्थ में होता है ? गौतम ! वह तीर्थ में होता है, अतीर्थ में नहीं होता है। इसी प्रकार बकुश एवं प्रतिसेवनाकुशील का कथन समझ लेना। भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह तीर्थ में भी होता है और अतीर्थ में भी होता है। भगवन् ! वह अतीर्थ में होता है तो क्या तीर्थंकर होता है या प्रत्येकबुद्ध होता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 909 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सलिंगे होज्जा? अन्नलिंगे होज्जा? गिहिलिंगे होज्जा?
गोयमा! दव्वलिंगं पडुच्च सलिंगे वा होज्जा, अन्नलिंगे वा होज्जा, गिहिलिंगे वा होज्जा। भावलिंगं पडुच्च नियमं सलिंगे होज्जा। एवं जाव सिणाए। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक स्वलिंग में होता है, अन्यलिंग में या गृहीलिंगी होता है ? गौतम ! द्रव्यलिंग की अपेक्षा वह स्वलिंग में, अन्यलिंग में या गृहीलिंग में होता है, किन्तु भावलिंग की अपेक्षा नियम से स्वलिंग में होता है। इसी प्रकार स्नातक तक कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 910 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कतिसु सरीरेसु होज्जा?
गोयमा! तिसु ओरालिय-तेया-कम्मएसु होज्जा।
बउसे णं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! तिसु वा चउसु वा होज्जा। तिसु होमाणे तिसु ओरालिय-तेयाकम्मएसु होज्जा, चउसु होमाणे चउसु ओरालिय-वेउव्विय-तेया-कम्मएसु होज्जा। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले–पुच्छा।
गोयमा! तिसु वा चउसु वा पंचसु वा होज्जा। तिसु होमाणे तिसु ओरालिय-तेया-कम्मएसु होज्जा, चउसु होमाणे चउसु ओरालिय-वेउव्विय-तेया-कम्मएसु होज्जा, पंचसु होमाणे पंचसु ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेया-कम्मएसु होज्जा। नियंठो सिणाओ य जहा पुलाओ। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक कितने शरीरों में होता है ? गौतम ! वह औदारिक, तैजस और कार्मण, इन तीन शरीरों में होता है। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह तीन या चार शरीरों में होता है। यदि तीन शरीरों में हो तो औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर में होता है, और चार शरीरों में हो तो औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीरों में होता है। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 911 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं कम्मभूमीए होज्जा? अकम्मभूमीए होज्जा?
गोयमा! जम्मण-संतिभावं पडुच्च कम्मभूमीए होज्जा, नो अकम्मभूमीए होज्जा।
बउसे णं–पुच्छा।
गोयमा! जम्मण-संतिभावं पडुच्च कम्मभूमीए होज्जा, नो अकम्मभूमीए होज्जा। साहरणं पडुच्च कम्मभूमीए वा होज्जा, अकम्मभूमीए वा होज्जा। एवं जाव सिणाए। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक कर्मभूमि में होता है या अकर्मभूमि में होता है ? गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा कर्मभूमि में होता है, अकर्मभूमि में नहीं होता। बकुश ? गौतम ! जन्म और सद्भाव से कर्मभूमि में होता है। संहरण की अपेक्षा कर्मभूमि में भी और अकर्मभूमि में भी होता है। इसी प्रकार स्नातक तक कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 912 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं ओसप्पिणिकाले होज्जा? उस्सप्पिणिकाले होज्जा? नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणिकाले वा होज्जा?
गोयमा! ओसप्पिणिकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणिकाले वा होज्जा, नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणि-काले वा होज्जा।
जइ ओसप्पिणिकाले होज्जा किं सुसमसुसमाकाले होज्जा? सुसमाकाले होज्जा? सुसम-दुस्समा-काले होज्जा? दुस्समसुसमाकाले होज्जा? दुस्समाकाले होज्जा? दुस्समदुस्समाकाले होज्जा?
गोयमा! जम्मणं पडुच्च नो सुसमसुसमाकाले होज्जा, नो सुसमाकाले होज्जा, सुसमदुस्समाकाले वा होज्जा, दुस्समसुसमाकाले वा होज्जा, नो दुस्समाकाले होज्जा, नो दुस्समदुस्समाकाले होज्जा। संतिभावं पडुच्च Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में होता है, अथवा नोअवसर्पिणी – नोउत्सर्पि – णीकाल में होता है ? गौतम ! पुलाक अवसर्पिणीकाल में भी होता है, उत्सर्पिणीकाल में भी होता है तथा नोअवस – र्पिणी – नोउत्सर्पिणीकाल में भी होता है। यदि पुलाक अवसर्पिणीकाल में होता है, तो क्या वह सुषम – सुषमाकाल में |