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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-७ संसृष्ट Hindi 622 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! लवसत्तमा देवा, लवसत्तमा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–लवसत्तमा देवा, लवसत्तमा देवा? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगए सालीण वा, वीहीण वा, गोधूमाण वा, जवाण वा, जवजवाण वा पक्काणं, परियाताणं, हरियाणं, हरियकंडाणं तिक्खेणं नवपज्जणएणं असिअएणं पडिसाहरिया-पडिसाहरिया पडिसंखिविया-पडिसंखिविया जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु सत्त लवे लुएज्जा, जदि णं गोयमा! तेसिं देवाणं एवतियं कालं आउए पहुप्पते तो णं ते देवा तेणं चेव भवग्गहणेणं सिज्झंता बुज्झंता मुच्चंता परिनिव्वायंता सव्वदुक्खाणं अंतं करेंता। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–लवसत्तमा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या लवसप्तम देव ‘लवसप्तम’ होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन्‌ ! उन्हें ‘लवसप्तम’ देव क्यों कहते हैं ? गौतम ! जैसे कोई तरुण पुरुष यावत्‌ शिल्पकला में निपुण एवं सिद्धहस्त हो, वह परिपक्व, काटने योग्य अवस्था को प्राप्त, पीले पड़े हुए तथा पीले जाल वाले, शालि, व्रीहि, गेहूँ, जौ, और जवजव की बिखरी हुई नालों को हाथ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 625 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! सालरुक्खे उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पच्चायाहिती। से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहिय-पाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविस्सइ। से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। एस णं भंते! साललट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से झुलसा हुआ यह शालवृक्ष काल मास में काल करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! यह शालवृक्ष, इसी राजगृहनगर में पुनः शालवृक्ष के रूपमें उत्पन्न होगा। वहाँ पर अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्निहित – प्रातिहार्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 626 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! उंबरलट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलिपुत्ते नगरे पाडलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिति। से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइय-महिए यावि भविस्सइ। से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति। तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दृश्यमान सूर्य की उष्णता से संतप्त, तृषा से पीड़ित और दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह उदुम्बरयष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नामक नगर में पाटली वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी। वह वहाँ अर्चित, वन्दित यावत्‌ पूजनीय होगी।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-८ अंतर Hindi 630 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! जंभगा देवा, जंभगा देवा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा? गोयमा! जंभगा णं देवा निच्चं पमुदित-पक्कीलिया कंदप्परतिमोहणसीला। जे णं ते देवे कुद्धे पासेज्जा, से णं पुरिसे महंतं अयसं पाउणेज्जा। जे णं ते देवे तुट्ठे पासेज्जा, से णं महंतं जसं पाउणेज्जा। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जंभगा देवा, जंभगा देवा। कतिविहा णं भंते! जंभगा देवा पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा– अन्नजंभगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणजंभगा, सयणजंभगा, पुप्फजंभगा, फलजं-भगा, पुप्फ-फल-जंभगा, विज्जाजंभगा अवियत्तिजंभगा। जंभगा णं भंते! देवा कहिं वसहिं उवेंति? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जृम्भक देव होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन्‌ ! वे जृम्भक देव किस कारण कहलाते हैं? गौतम ! जृम्भक देव, सदा प्रमोदी, अतीव क्रीड़ाशील, कन्दर्प में रत और मोहन शील होते हैं। जो व्यक्ति उन देवों को क्रुद्ध हुए देखता है, वह महान्‌ अपयश प्राप्त करता है और जो उन देवों को तुष्ट हुए देखता है, वह महान्‌ यश को प्राप्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-९ अनगार Hindi 634 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं गोयमे अचिरुग्गयं बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुंजप्पकासं लोहितगं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जाव समुप्पन्नकोउहल्ले जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलियडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी–किमिदं भंते! सूरिए? किमिदं भंते! सूरियस्स अट्ठे? गोयमा! सुभे सूरिए, सुभे सूरियस्स अट्ठे। किमिदं भंते! सूरिए? किमिदं भंते! सूरियस्स पभा? गोयमा! सुभे सूरिए, सुभा सूरियस्स पभा। किमिदं भंते सूरिए?

Translated Sutra: उस काल, उस समय में भगवान गौतम स्वामी ने तत्काल उदित हुए जासुमन नामक वृक्ष के फूलों के समान लाल बालसूर्य को देखा। सूर्य को देखकर गौतमस्वामी को श्रद्धा उत्पन्न हुई, यावत्‌ उन्हें कौतूहल उत्पन्न हुआ, फलतः जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके निकट आए और यावत्‌ उन्हें वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भगवन्‌!
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 637 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमो सुयदेवयाए भगवईए तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं सावत्थीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, तत्थ णं कोट्ठए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तत्थ णं सावत्थीए नगरीए हालाहला नामं कुंभकारी आजीविओवासिया परिवसति–अड्ढा जाव बहुजणस्स अपरिभूया, आजीविय-समयंसि लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्ठिमिंजपेम्माणुरागरत्ता अयमाउसो! आजीवियसमये अट्ठे, अयं परमट्ठे, सेसे अणट्ठे त्ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं गोसाले मंखलिपुत्ते चउव्वीसवासपरियाए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि आजी-वियसंघसंपरिवुडे

Translated Sutra: भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो। उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। उस श्रावस्ती नगरी के बाहर उत्तरपूर्व – दिशाभाग में कोष्ठक नामक चैत्य था। उस श्रावस्ती नगरी में आजीविक (गोशालक) मत की उपासिका हालाहला नामकी कुम्भारिन रहती थी। वह आढ्य यावत्‌ अपरिभूत थी। उसने आजीविकसिद्धान्त का अर्थ प्राप्त कर लिया
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 638 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पन्नवेइ, एवं परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिने जिनप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिने जिनसद्दं पगासेमाणे विहरइ। से कहमेयं मन्ने एवं? तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कनगपुलगनिधस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे

Translated Sutra: इसके बाद श्रावस्ती नगरी में शृंगाटक पर, यावत्‌ राजमार्गों पर बहुत – से लोग एक दूसरे से इस प्रकार कहने लगे, यावत्‌ इस प्रकार प्ररूपणा करने लगे – हे देवानुप्रियो ! निश्चित है कि गोशालक मंखलिपुत्र ‘जिन’ होकर अपने आप को ‘जिन’ कहता हुआ, यावत्‌ ‘जिन’ शब्द में अपने आपको प्रकट करता हुआ विचरता है, तो इसे ऐसा कैसे माना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 639 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! तीसं वासाइं अगारवासमज्झावसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं समत्तपइण्णे एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। तए णं अहं गोयमा! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेनं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासं मासेनं खममाणे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, ओगिण्हित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए। तए णं अहं गोयमा! पढमं

Translated Sutra: उस काल उस समय में, हे गौतम ! मैं तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, माता – पिता के दिवंगत हो जाने पर भावना नामक अध्ययन के अनुसार यावत्‌ एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके मुण्डित हुआ और गृहस्थावास को त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ। हे गौतम ! मैं प्रथम वर्ष में अर्द्धमास – अर्द्धमास क्षमण करते हुए अस्थिक ग्राम की निश्रा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 640 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं अहं गोयमा! अन्नया कदायि पढमसरदकालसमयंसि अप्पवुट्ठिकायंसि गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं सिद्धत्थगामाओ नगराओ कुम्मगामं नगरं संपट्ठिए विहाराए। तस्स णं सिद्धत्थगामस्स नगरस्स कुम्मगामस्स नगरस्स य अंतरा, एत्थ णं महं एगे तिलथंभए पत्तिए पुप्फिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे-उवसोभेमाणे चिट्ठइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तं तिलथंभगं पासइ, पासित्ता ममं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एस णं भंते! तिलथंभए किं निप्फज्जिस्सइ नो निप्फज्जिस्सइ? एए य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता कहिं गच्छिहिंति? कहिं गच्छिहिंति? कहिं उववज्जिहिंति? तए

Translated Sutra: तदनन्तर, हे गौतम ! किसी दिन प्रथम शरत्‌ – काल के समय, जब वृष्टि का अभाव था; मंखलिपुत्र गोशालक के साथ सिद्धार्थग्राम नामक नगर से कूर्मग्राम नामक नगर की ओर विहार के लिए प्रस्थान कर चूका था। उस समय सिद्धार्थग्राम और कूर्मग्राम के बीच में तिल का एक बड़ा पौधा था। जो पत्र – पुष्प युक्त था, हराभरा होने की श्री से अतीव
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 641 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं अहं गोयमा! गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं जेणेव कुम्मग्गामे नगरे तेणेव उवागच्छामि। तए णं तस्स कुम्मग्गामस्स नगरस्स बहिया वेसियायणे नामं बालतवस्सी छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ। आइच्चतेयतवियाओ य से छप्पदीओ सव्वओ समंता अभिनिस्सवंति, पान-भूय-जीव-सत्त-दयट्ठयाए च णं पडियाओ-पडियाओ तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चोरुभेइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं बालतवस्सिं पासइ, पासित्ता ममं अंतियाओ सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव वेसियायणे बालतवस्सी तेणेव उवागच्छइ,

Translated Sutra: तदनन्तर, हे गौतम ! मैं गोशालक के साथ कूर्मग्राम नगर में आया। उस समय कूर्मग्राम नगर के बाहर वैश्यायन नामक बालतपस्वी निरन्तर छठ – छठ तपःकर्म करने के साथ – साथ दोनों भुजाएं ऊंची रखकर सूर्य के सम्मुख खड़ा होकर आतापनभूमि में आतापना ले रहा था। सूर्य की गरमी से तपी हुई जूएं चारों ओर उसके सिर से नीचे गिरती थीं और वह तपस्वी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 642 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं अहं गोयमा! अन्नदा कदायि गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं सद्धिं कुम्मगामाओ नगराओ सिद्धत्थग्गामं नगरं संपट्ठिए विहाराए। जाहे य मो तं देसं हव्वमागया जत्थ णं से तिलथंभए। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! तदा ममं एवमाइक्खह जाव परूवेह–गोसाला! एस णं तिलथंभए निप्फज्जिस्सइ, नो न निप्फज्जिस्सइ। एते य सत्त तिलपु-प्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता एयस्स चेव तिलथंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्त तिला पच्चायाइस्संति, तण्णं मिच्छा। इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ–एस णं से तिलथंभए नो निप्फन्ने, अन्निप्फन्नमेव। ते य सत्त तिलपुप्फजीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता नो एयस्स

Translated Sutra: हे गौतम ! इसके पश्चात्‌ किसी एक दिन मंखलिपुत्र गोशालक के साथ मैंने कूर्मग्रामनगर से सिद्धार्थग्राम – नगर की ओर विहार के लिए प्रस्थान किया। जब हम उस स्थान के निकट आए, जहाँ वह तिल का पौधा था, तब गोशालक मंखलिपुत्र ने मुझसे कहा – ‘भगवन्‌ ! आपने मुझे उस समय कहा था, यावत्‌ प्ररूपणा की थी की हे गोशालक ! यह तिल का पौधा निष्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 645 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आनंदे नामं थेरे पगइभद्दए जाव विनीए छट्ठं-छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से आनंदे थेरे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए एवं जहा गोयमसामी तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स अदूरसामंते वीइ-वयइ। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आनंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकरावणस्स अदूर-सामंतेणं वीइवयमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–एहि ताव आनंदा! इओ एगं महं उवमियं निसामेहि। तए णं से आनंदे थेरे

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर का अन्तेवासी आनन्द नामक स्थविर था। वह प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत था और निरन्तर छठ – छठ का तपश्चरण करता हुआ और संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। उस दिन आनन्द स्थविर ने अपने छठक्षमण के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय किया, यावत्‌ – गौतमस्वामी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 648 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावं च णं आनंदे थेरे गोयमाईणं समणाणं निग्गंथाणं एयमट्ठं परिकहेइ, तावं च णं से गोसाले मंखलिपुत्ते हाला हलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता आजीविय-संघसंपरिवुडे महया अमरिसं वहमाणे सिग्घं तुरियं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वदासी–सुट्ठु णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी, साहू णं आउसो कासवा! ममं एवं वयासी–गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी, गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी। जे णं

Translated Sutra: जब आनन्द स्थविर, गौतम आदि श्रमणनिर्ग्रन्थों को भगवान का आदेश कह रहे थे, तभी मंखलिपुत्र गोशालक आजीवकसंघ से परिवृत्त होकर हालाहला कुम्भकारी की दुकान से नीकलकर अत्यन्त रोष धारण किए शीघ्र एवं त्वरित गति से श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर कोष्ठक उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पास आया। फिर श्रमण भगवान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 651 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वानुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए धम्मायरियाणुरागेणं एयमट्ठं असद्दहमाणे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसाले मंखलिपुत्ते एवं वयासी– जे वि ताव गोसाला! तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं निसामेति, से वि ताव वंदति नमंसति सक्कारेति सम्माणेति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासति, किमंग पुण तुमं गोसाला! भगवया चेव पव्वाविए, भगवया चेव मुंडाविए, भगवया

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पूर्व देश में जन्मे हुए सर्वानुभूति नामक अनगार थे, जो प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत थे। वह अपने धर्माचार्य के प्रति अनुरागवश गोशालक के प्रलाप के प्रति अश्रद्धा करते हुए उठे और मंखलिपुत्र गोशालक के पास आकर कहने लगे – हे गोशालक ! जो मनुष्य तथारूप श्रमण या माहन से एक भी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 652 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोति! समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी–अज्जो! से जहानामए तणरासी इ वा कट्ठरासी इ वा पत्तरासी इ वा तयारासी इ वा तुसरासी इ वा भुसरासी इ वा गोमयरासी इ वा अवकररासी इ वा अगनिज्झामिए अगनिज्झूसिए अगनिपरिणामिए हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते ममं वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरित्ता हयतेए गयतेए नट्ठतेए भट्ठतेए लुत्ततेए विणट्ठतेए जाए, तं छंदेणं अज्जो! तुब्भे गोसालं मंखलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएह, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, अट्ठेहि य हेऊहि य पसिणेहि य वागरणेहि य

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कहा – ‘हे आर्यो ! जिस प्रकार तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा राशि, तुष – राशि, भूसे की राशि, गोमय की राशि और अवकर राशि को अग्नि से थोड़ा – सा जल जाने पर, आग में झोंक देने पर एवं अग्नि से परिणामान्तर होने पर उसका तेज हत हो जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज नष्ट और भ्रष्ट हो जाता है, उसका तेज
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 653 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि पडिलद्धसम्मत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु अहं जिने जिनप्पलावी, अरहा अरहप्पलावी, केवली केवलिप्पलावी, सव्वण्णू सव्वण्णुप्पलावी, जिने जिनसद्दं पगासेमाणे विहरिते अहण्णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए समणमारए समणपडिनीए आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेहिं य अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे विहरित्ता सएणं तेएणं अन्नाइट्ठे समाणे अंतो सत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ जब सातवीं रात्रि व्यतीत हो रही थी, तब मंखलिपुत्र गोशालक को सम्यक्त्व प्राप्त हुआ। उसके साथ ही उसे इस प्रकार का अध्यवसाय यावत्‌ मनोगत संकल्प समुत्पन्न हुआ – ‘मैं वास्तव में जिन नहीं हूँ, तथापि मैं जिन – प्रलापी यावत्‌ जिन शब्द से स्वयं को प्रकट करता हुआ विचरा हूँ। मैं मंखलिपुत्र गोशालक श्रमणों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 654 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराइं पिहेंति, पिहेत्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्झदेसभाए सावत्थिं नगरिं आलिहंति, आलिहित्ता गोसालस्स मंख-लिपुत्तस्स सरीरगं वामे पदे सुंबेणं बंधंति, बंधित्ता तिक्खुत्तो मुहे उट्ठुभंति, उट्ठुभित्ता सावत्थीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर -चउम्मुह-महापह-पहेसु आकट्ट-विकट्टिं करेमाणा णीयं-णीयं सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पिया! गोसाले मंखलिपुत्ते जिने जिनप्पलावी जाव विहरिए। एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे

Translated Sutra: तदनन्तर उन आजीविक स्थविरों ने मंखलिपुत्र गोशालक को कालधर्म – प्राप्त हुआ जानकर हालाहला कुम्भारिन की दुकान के द्वार बन्द कर दिए। फिर हालाहला कुम्भारिन की दुकान के ठीक बीचों बीच श्रावस्ती नगरी का चित्र बनाया। फिर मंखलिपुत्र गोशालक के बाएं पैर को मूंज की रस्सी से बाँधा। तीन बार उसके मुख में थूका। फिर उक्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 655 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कदायि सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं मेंढियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपु-रत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं साणकोट्ठए नामं चेइए होत्था–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं साणकोट्ठगस्स चेइयस्स अदूर-सामंते, एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था–किण्हे किण्होभासे जाव महामेहनिकुरंबभूए पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरि-ज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठति। तत्थ णं मेंढियगामे नगरे रेवती नामं गाहावइणी परिवसति–अड्ढा

Translated Sutra: तदनन्तर किसी दिन भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से नीकले और उससे बाहर अन्य जनपदों में विचरण करने लगे। उस काल उस समय मेंढिकग्राम नगर था। उसके बाहर उत्तरपूर्व दिशा में शालकोष्ठक उद्यान था। यावत्‌ पृथ्वी – शिलापट्टक था, उस शालकोष्ठक उद्यान के निकट एक महान्‌ मालुकाकच्छ था वह श्याम, श्यामप्रभावाला,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 656 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं भंते! तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे कहिं गए? कहिं उववन्ने? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी पाईणजाणवए सव्वाणुभूती नामं अनगारे पगइभद्दए जाव विनीए, से णं तदा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं भासरासीकए समाणे उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव बंभ-लंतक-महासुक्के कप्पे वीइवइत्ता सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ

Translated Sutra: गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – ‘भगवन्‌ ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी पूर्वदेश में उत्पन्न सर्वानुभूति नामक अनगार, जो कि प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत था, और जिसे मंखलिपुत्र गोशालक ने अपने तप – तेज से भस्म कर दिया था, वह मरकर कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम! वह ऊपर चन्द्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 657 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते से णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं भंते! गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य गोशालक मंखलिपुत्र काल के अवसर में काल करके कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम ! वह ऊंचे चन्द्र और सूर्य का यावत्‌ उल्लंघन करके अच्युतकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहाँ गोशालक की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है। भगवन्‌ ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 658 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विमलवाहने णं भंते! राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! विमलवाहने णं राया सुमंगलेणं अनगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तओनंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ णं वि सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा छट्ठाए तमाए पुढवीए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि – सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से यावत्‌ उद्वर्त्त कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर की पीड़ा से काल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 659 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति। तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विनएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति–इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिसहो-वसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल-मासे कालं

Translated Sutra: वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत्‌ काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य – पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता – पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 661 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–अत्थि णं भंते! अधिकरणिंसि वाउयाए वक्कमति? हंता अत्थि। से भंते! किं पुट्ठे उद्दाइ? अपुट्ठे उद्दाइ? गोयमा! पुट्ठे उद्दाइ, नो अपुट्ठे उद्दाइ। से भंते! किं ससरीरी निक्खमइ? असरीरी निक्खमइ? गोयमा! सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ? गोयमा! वाउयायस्स णं चत्तारि सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए, वेउव्विए, तेयए, कम्मए। ओरालिय-वेउव्वियाइं विप्प जहाय तेयय-कम्मएहिं निक्खमइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–सिय ससरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्ख

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत्‌ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा – भगवन्‌! क्या अधिकरणीय पर (हथौड़ा मारते समय) वायुकाय उत्पन्न होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन्‌ ! उस (वायुकाय) का स्पर्श होने पर वह मरता है या बिना स्पर्श हुए मर जाता है ? गौतम ! उसका दूसरे पदार्थ के साथ स्पर्श होने पर ही वह मरता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 662 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इंगालकारियाए णं भंते! अगनिकाए केवतियं कालं संचिट्ठइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि राइंदियाइं। अन्ने वि तत्थ वाउयाए वक्कमति, न विणा वाउयाएणं अगनिकाए उज्जलति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अंगारकारिकामें अग्निकाय कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट तीन रात – दिन तक, वहाँ अन्य वायुकायिक जीव भी उत्पन्न होते हैं; क्योंकि वायुकाय बिना अग्निकाय प्रज्वलित नहीं होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-१ अधिकरण Hindi 663 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! अयं अयकोट्ठंसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहमाणे वा पव्विहमाणे वा कतिकिरिए? गोयमा! जावं च णं से पुरिसे अयं अयकोट्ठंसि अयोमएणं संडासएणं उव्विहति वा पव्विहति वा, तावं च णं से पुरिसे काइ-याए जाव पाणाइवायकिरियाए–पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे, जेसिं पि णं जीवाणं सरीरेहिंतो अए निव्वत्तिए, अयकोट्ठे निव्वत्तिए, संडासए निव्वत्तिए, इंगाला निव्वत्तिया, इंगालकड्ढणी निव्वत्तिया, भत्था निव्वत्तिया, ते वि णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए –पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। पुरिसे णं भंते! अयं अयकोट्ठाओ अयोमएणं संडासएणं गहाय अहिकरणिंसि उक्खिव्वमाणे वा निक्खिव्वमाणे वा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोहा तपाने की भट्ठी में तपे हुए लोहे का लोहे की संडासी से ऊंचा – नीचा करने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! जब तक वह पुरुष लोहा तपाने की भट्ठी में लोहे की संडासी से लोहे को ऊंचा या नीचा करता है, तब तक वह पुरुष कायिकी से लेकर प्राणातिपातिकी क्रिया तक पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है तथा जिन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-२ जरा Hindi 667 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे जाव दिव्वाइ भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति, एत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे। एवं जहा ईसाने तइयसए तहेव सक्के वि, नवरं–आभिओगे ण सद्दावेति, हरी पायत्ताणियाहिवई, सुघोसा घंटा, पालओ विमानकारी, पालगं विमाणं, उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे, दाहिणपुरत्थिमिल्ले रतिकरपव्वए, सेसं तं चेव जाव नामगं सावेत्ता पज्जुवासति। धम्मकहा जाव परिसा पडिगया। तए णं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं

Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत्‌ उपभोग करता हुआ विचरता था। वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा – लगाकर जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान महावीर को देख रहा था। यहाँ तृतीय शतक में कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र कहना। विशेषता यह है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-३ कर्म Hindi 671 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं उल्लुयतीरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं एगजंबुए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि पुव्वानुपुव्विं चर-माणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे एगजंबुए समोसढे जाव परिसा पडिगया। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अनगारस्स णं भंते! भावियप्पणो छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं

Translated Sutra: किसी समय एक दिन श्रमण भगवान महावीर राजगृहनगर के गुणशीलक नामक उद्यान से नीकले और बाहर के (अन्य) जनपदों में विहार करने लगे। उस काल उस समय में उल्लूकतीर नामका नगर था। (वर्णन) उस उल्लूकतीर नगर के बाहर ईशानकोण में ‘एकजम्बुक’ उद्यान था। एक बार किसी दिन श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत्‌ ‘एकजम्बूक’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-५ गंगदत्त Hindi 673 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। एगजंबुए चेइए–वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी–एवं जहेव बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू आगमित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू आगमित्तए? हंता पभू। देवे णं भंते!

Translated Sutra: उस काल उस समय में उल्लूकतीर नामक नगर था। वहाँ एकजम्बूक नामका उद्यान था। उसका वर्णन पूर्ववत्‌। उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे, यावत्‌ परीषद्‌ ने पर्युपासना की। उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज वज्रपाणि शक्र इत्यादि सोलहवे शतक के द्वीतिय उद्देशक में कथित वर्णन के अनुसार दिव्य यान विमान से
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-५ गंगदत्त Hindi 674 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अन्नदा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं वंदति नमंसति सक्कारेति जाव पज्जुवासति, किण्णं भंते! अज्ज सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाइं पुच्छइ, पुच्छित्ता संभंतियवंदनएणं वंदइ नमंसइ जाव पडिगए? गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने दो देवा महिड्ढिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए य, अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए य। तए णं से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन्‌ ! अन्य दिनों में देवेन्द्र देवराज शक्र (आता है, तब) आप देवानुप्रिय को वन्दन – नमस्कार करता है, आपका सत्कार – सन्मान करता है, यावत्‌ आपकी पर्युपासना करता है; किन्तु भगवन्‌ ! आज तो देवेन्द्र देवराज शक्र आप देवानुप्रिय से संक्षेप में आठ प्रश्नों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-५ गंगदत्त Hindi 675 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जावं च णं समणे भगवं महावीरे भगवओ गोयमस्स एयमट्ठं परिकहेति तावं च णं से देवे तं देसं हव्वमागए। तए णं से देवे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु भंते! महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने एगे मायिमिच्छदिट्ठि-उववन्नए देवे ममं एवं वयासी–परिणममाणा पोग्गला नो परिणया, अपरिणया; परिणमंतीति पोग्गला नो परिणया, अपरिणया। तए णं अहं तं मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नगं देवं एवं वयासी–परिणममाणा पोग्गला परिणया, नो अपरिणया; परिणमंतीति पोग्गला परिणया, नो अपरिणया, से कहमेयं भंते! एवं? गंगदत्तादि! समणे भगवं महावीरे गंगदत्तं

Translated Sutra: जब श्रमण भगवान महावीर स्वामी भगवान गौतम स्वामी से यह बात कह रहे थे, इतने में ही वह देव शीघ्र ही वहाँ आ पहुँचा। उस देव ने आते ही श्रमण भगवान महावीर की तीन बार प्रदक्षिणा की, फिर वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भगवन्‌ ! महाशुक्र कल्प में महासामान्य विमान में उत्पन्न हुए एक मायीमिथ्यादृष्टि देव ने मुझे इस प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-५ गंगदत्त Hindi 676 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवानुभावे कहिं गते? कहिं अनुप्पविट्ठे? गोयमा! सरीरं गए, सरीरं अनुप्पविट्ठे, कूडागारसालादिट्ठंतो जाव सरीरं अनुप्पविट्ठे। अहो णं भंते! गंगदत्ते देवे महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे। गंगदत्तेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? पुव्वभवे के आसी? किं नामए वा? किं वा गोत्तेणं? कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा

Translated Sutra: भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से यावत्‌ पूछा – ‘भगवन्‌ ! गंगदत्त देव की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति यावत्‌ कहाँ गई, कहाँ प्रविष्ट हो गई ?’ गौतम ! यावत्‌ उस गंगदत्त देव के शरीर में गई और शरीर में ही अनुप्रविष्ट हो गई। यहाँ कूटाकारशाला का दृष्टान्त, यावत्‌ वह शरीर में अनुप्रविष्ट हुई, (तक समझना चाहिए।)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 679 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा– १. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ५. एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए। (१) एक महान घोर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया। (२) श्वेत पाँखों वाले एक महान्‌ पुंस्कोकिल का स्वप्न। (३) चित्र – विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न। (४) स्वप्न में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 680 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं हयपंतिं वा गयपंतिं वा नरपंतिं वा किन्नरपंतिं वा किंपुरिसपंतिं वा महोरग-पंतिं वा गंधव्वपंतिं वा वसभपंतिं वा पासमाणे पासति, द्रुहमाणे द्रुहति, द्रूढमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं दामिणिं पाईणपडिणायतं दुहओ समुद्दे पुट्ठं पासमाणे पासति, संवेल्लेमाणे संवेल्लेइ, संवेल्लियमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं रज्जुं पाईणपडिणायतं

Translated Sutra: कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में एक महान्‌ अश्वपंक्ति, गजपंक्ति अथवा यावत्‌ वृषभ – पंक्ति का अवलोकन करता हुआ देखे, और उस पर चढ़ने का प्रयत्न करता हुआ चढ़े तथा अपने आपको उस पर चढ़ा हुआ माने ऐसा स्वप्न देखकर तुरन्त जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत्‌ सभी दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष
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शतक-१६

उद्देशक-८ लोक Hindi 683 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेज्जाओ जोयण-कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं। लोयस्स णं भंते! पुरत्थिमिल्ले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा? गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा य, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे–एवं जहा दसमसए अग्गेयी दिसा तहेव, नवरं–देसेसु अनिंदियाण आ-इल्लविरहिओ। जे अरूवी अजीवा ते छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि। सेसं तं चेव निरवसेसं। लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले चरिमंते किं जीवा? एवं चेव। एवं पच्चत्थिमिल्ले

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक कितना विशाल कहा गया है ? गौतम ! लोक अत्यन्त विशाल कहा गया है। इसकी समस्त वक्तव्यता बारहवें शतक अनुसार कहना। भगवन्‌ ! क्या लोक के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव
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शतक-१७

उद्देशक-१ कुंजर Hindi 695 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी– उदायी णं भंते! हत्थिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता उदायि-हत्थिरायत्ताए उववन्ने? गोयमा! असुरकुमारेहिंतो देवेहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने। उदायी णं भंते! हत्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठितियंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिंति। भूयानंदे णं भंते! हत्थिराया कओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! उदायी नामक प्रधान हस्तिराज, किस गति से मरकर बिना अन्तर के यहाँ हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मरकर सीधा यहाँ उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है। भगवन्‌ ! उदायी हस्तिराज यहाँ से काल के अवसर पर काल करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ?
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शतक-१७

उद्देशक-२ संयत Hindi 702 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुव्वामेव रूवी भवित्ता पभू अरूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–देवे णं महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुव्वामेव रूवी भवित्ता नो पभू अरूविं विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए? गोयमा! अहमेयं जाणामि, अहमेयं पासामि, अहमेयं बुज्झामि, अहमेयं अभिसमण्णागच्छामि, मए एयं नायं, मए एयं दिट्ठं, मम एयं बुद्धं, मए एयं अभिसमण्णागयं–जण्णं तहागयस्स जीवस्स सरूविस्स, सकम्मस्स, सरागस्स, सवेदस्स, समोहस्स, सलेसस्स, ससरीरस्स, ताओ सरीराओ अविप्पमुक्कस्स एवं पण्णायति, तं जहा–कालत्ते वा जाव सुक्किलत्ते वा, सुब्भिगंधत्ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या महर्द्धिक यावत्‌ महासुख – सम्पन्न देव, पहले रूपी होकर बाद में अरूपी की विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन्‌ ! ऐसा क्यों कहते हैं ? गौतम ! मैं यह जानता हूँ, मैं यह देखता हूँ, मैं यह निश्चित जानता हूँ, मैं यह सर्वथा जानता हूँ; मैंने यह जाना है, मैंने यह देखा है, मैंने यह निश्चित
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शतक-१७

उद्देशक-३ शैलेषी Hindi 703 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेलेसिं पडिवन्नए णं भंते! अनगारे सया समियं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमति? नो इणट्ठे समट्ठे, नन्नत्थेगेणं परप्पयोगेणं। कतिविहा णं भंते! एयणा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–दव्वेयणा, खेत्तेयणा, कालेयणा, भवेयणा, भावेयणा। दव्वेयणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइयदव्वेयणा, तिरिक्खजोणियदव्वेयणा, मनुस्सदव्वेयणा, देवदव्वेयणा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयदव्वेयणा-नेरइयदव्वेयणा? गोयमा! जण्णं नेरइया नेरइयदव्वे वट्टिंसु वा, वट्टंति वा, वट्टिस्संति वा ते णं तत्थ नेरइया नेरइयदव्वे वट्टमाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! शैलेशी – अवस्था – प्राप्त अनगार क्या सदा निरन्तर काँपता है, विशेषरूप से काँपता है, यावत्‌ उन – उन भावों (परिणमनों) में परिणमता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। सिवाय एक परप्रयोग के। भगवन्‌ ! एजना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा – द्रव्य एजना, क्षेत्र एजना, काल एजना, भव एजना और भाव एजना। भगवन्‌
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शतक-१७

उद्देशक-३ शैलेषी Hindi 704 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चलणा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा चलणा पन्नत्ता, तं जहा–सरीरचलणा, इंदियचलणा, जोगचलणा। सरीरचलणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालियसरीरचलणा जाव कम्मगसरीरचलणा। इंदियचलणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–सोइंदियचलणा जाव फासिंदियचलणा। जोगचलणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–मनजोगचलणा, वइजोगचलणा, कायजोगचलणा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–ओरालियसरीरचलणा-ओरालियसरीरचलणा? गोयमा! जण्णं जीवा ओरालियसरीरे वट्टमाणा ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालियसरीरत्ताए परिणामेमाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! चलना कितने प्रकार की है ? गौतम ! चलना तीन प्रकार की है, यथा – शरीरचलना, इन्द्रियचलना और योगचलना। भगवन्‌ ! शरीरचलना कितने प्रकार की है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा – औदारिकशरीर – चलना, यावत्‌ कार्मणशरीरचलना। भगवन्‌ ! इन्द्रियचलना कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की यथा – श्रोत्रेन्द्रियचलना यावत्‌
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शतक-१७

उद्देशक-४ क्रिया Hindi 706 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ? हंता अत्थि। सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ? अपुट्ठा कज्जइ? गोयमा! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउदिसिं, सिय पंचदिसिं। सा भंते! किं कडा कज्जइ? अकडा कज्जइ? गोयमा! कड कज्जइ, नो अकडा कज्जइ। सा भंते! किं अत्तकडा कज्जइ? परकडा कज्जइ? तदुभयकडा कज्जइ? गोयमा! अत्तकडा कज्जइ, नो परकडा कज्जइ, नो तदुभयकडा कज्जइ। सा भंते! किं आनुपुव्विं कडा कज्जइ? अनानुपुव्विं कडा कज्जइ? गोयमा! आनुपुव्विं कडा कज्जइ, नो अनानुपुव्विं कडा कज्जइ। जा य कडा

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या जीव प्राणातिपातिक्रिया करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन्‌ ! वह स्पृष्ट की जाती है या अस्पृष्ट की जाती है ? गौतम ! वह स्पृष्ट की जाती है, अस्पृष्ट नहीं की जाती; इत्यादि प्रथम शतक के छठे उद्देशक के अनुसार, ‘वह क्रिया अनुक्रम से की जाती है, बिना अनुक्रम के
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शतक-१८

उद्देशक-१ प्रथम Hindi 722 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवे णं भंते! जीवभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! नो पढमे, अपढमे। एवं नेरइए जाव वेमाणिए। सिद्धे णं भंते! सिद्धभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! पढमे, नो अपढमे। जीवा णं भंते! जीवभावेणं किं पढमा? अपढमा? गोयमा! नो पढमा, अपढमा। एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा णं–पुच्छा। गोयमा! पढमा, नो अपढमा। आहारए णं भंते! जीवे आहारभावेणं किं पढमे? अपढमे? गोयमा! नो पढमे, अपढमे। एवं जाव वेमाणिए। पोहत्तिए एवं चेव। अनाहारए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणं–पुच्छा। गोयमा! सिय पढमे, सिय अपढमे। नेरइए णं भंते! जीवे अनाहारभावेणं–पुच्छा। एवं नेरइए जाव वेमाणिए नो पढमे, अपढमे।

Translated Sutra: उस काल उस समयमें राजगृह नगरमें यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! जीव, जीवभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है। इस प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना। भगवन्‌ ! सिद्ध – जीव, सिद्धभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है। भगवन्‌ ! अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं
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शतक-१८

उद्देशक-२ विशाखा Hindi 727 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए? गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे

Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत्‌ परीषद्‌ पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है,
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शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 728 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे होत्था–वण्णओ। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी मागंदियपुत्ते नामं अनगारे पगइभद्दए–जहा मंडियपुत्ते जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी– से नूनं भंते! काउलेस्से पुढविकाइए काउलेस्सेहिंतो, पुढविकाइएहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभति, लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झति, बुज्झित्ता तओ पच्छा सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? हंता मागंदियपुत्ता! काउलेस्से पुढविकाइए जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेति। से नूनं भंते! काउलेस्से आउकाइए काउलेस्सेहिंतो आउकाइएहिंतो अनंतरं

Translated Sutra: उस काल उस समयमें राजगृह नगर था। वहाँ गुणशील नामक चैत्य था। यावत्‌ परीषद्‌ वन्दना करके वापिस लौट गई। उस काल एवं उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी यावत्‌ प्रकृतिभद्र माकन्दिपुत्र नामक अनगार ने, मण्डितपुत्र अनगार के समान यावत्‌ पर्युपासना करते हुए पूछा – भगवन्‌ ! क्या कापोतलेश्यी पृथ्वीकायिक जीव,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-३ माकंदी पुत्र Hindi 732 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति, तेसि णं भंते! पोग्गलाणं सेयकालंसि कतिभागं आहारेंति? कतिभागं निज्जरेंति? मागंदियपुत्ता! असंखेज्जइभागं आहारेंति, अनंतभागं निज्जरेंति। चक्किया णं भंते! केइ तेसु निज्जरापोग्गलेसु आसइत्तए वा जाव तुयट्टित्तए वा? नो इणट्ठे समट्ठे। अनाहारणमेयं बुइयं समणाउसो! एवं जाव वेमाणियाणं। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक, जिन पुद्‌गलों को आहार रूप से ग्रहण करते हैं, भगवन्‌ ! उन पुद्‌गलों का कितना भाग भविष्यकालमें आहाररूप से गृहीत होता है और कितना भाग निर्जरता है ? माकन्दिपुत्र ! असंख्यातवे भाग का आहाररूपसे ग्रहण होता है और अनन्तवे भाग निर्जरण होता है। भगवन्‌! क्या कोई जीव उन निर्जरा पुद्‌गलों पर बैठने, यावत्‌
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शतक-१८

उद्देशक-४ प्राणातिपात Hindi 733 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव भगवं गोयमे एवं वयासी–अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छा-दंसणसल्ले, पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणे, पुढविक्काइए जाव वणस्सइकाइए, धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवे असरीरपडिबद्धे, परमाणु-पोग्गले, सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे, सव्वे य बादरबोंदिधरा कलेवरा– एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! पाणाइवाए जाव एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अत्थे गइया जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पाणाइवाए

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत्‌ गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य और प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, यावत्‌ मिथ्या – दर्शनशल्यविवेक तथा पृथ्वीकायिक यावत्‌ वनस्पतिकायिक, एवं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-४ प्राणातिपात Hindi 734 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कसायपदं निरवसेसं भाणियव्वं जाव निज्जरिस्संति लोभेणं। कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे, तेयोगे, दावरजुम्मे, कलिओगे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जाव कलिओगे? गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं कडजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अव-हीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं तेयोगे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं दावरजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं कलिओगे। से तेणट्ठेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कषाय कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! चार प्रकार का, इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र का कषाय पद, लोभ के वेदन द्वारा अष्टविध कर्मप्रकृतियों की निर्जरा करेंगे, तक कहना चाहिए। भगवन्‌ ! युग्म (राशियाँ) कितने कहे गए हैं ? गौतम ! चार हैं, यथा – कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज। भगवन्‌ ! आप किस कारण से कहते हैं?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-६ गुडवर्णादि Hindi 740 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] फाणियगुले णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा– नेच्छइयनए य, वावाहारियनए य। वावहारियनयस्स गोड्डे फाणियगुले, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे दुगंधे पंचरसे अट्ठफासे पन्नत्ते। भमरे णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं जहा– नेच्छइयनए य, वावाहारियनए य। वावाहारिय-नयस्स कालए भमरे, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पन्नत्ते। सुयपिच्छे णं भंते! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते? एवं चेव, नवरं वावहारियनयस्स नीलए सुयपिच्छे, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे जाव अट्ठफासे पन्नत्ते। एवं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! फाणित गुड़ कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम! इस विषय में दो नयों हैं, यथा – नैश्चयिक नय और व्यावहारिक नय। व्यावहारिक नय की अपेक्षा से फाणित – गुड़ मधुर रस वाला कहा गया है और नैश्चयिक नय की दृष्टि से गुड़ पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाला कहा गया है। भगवन्‌ ! भ्रमर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 744 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत्‌ वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत्‌ – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-८ अनगार क्रिया Hindi 750 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे जाव उड्ढं जाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं ते अन्नउत्थिया जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी–तुब्भे णं अज्जो! तिविहं तिविहेणं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मा, सकिरिया, असंवुडा, एगंतदंडा, एगंतबाला

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर में यावत्‌ पृथ्वीशिलापट्ट था। उस गुणशीलक उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक निवास करते थे। उन दिनों में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे, यावत्‌ परीषद्‌ वापिस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी श्री इन्द्रभूति नामक अनगार यावत्‌,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-९ भव्यद्रव्य Hindi 752 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–अत्थि णं भंते! भवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–भवियदव्वनेरइया-भवियदव्वनेरइया? गोयमा! जे भविए पंचिंदिए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा नेरइएसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं। एवं जाव थणियकुमाराणं। अत्थि णं भंते! भवियदव्वपुढविकाइया-भवियदव्वपुढविकाइया? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं? गोयमा! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उववज्जित्तए। से तेणट्ठेणं। आउक्काइय-वणस्सइ-काइयाणं एवं चेव। तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण य जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मनुस्से वा तेउ-वाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिएसु

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! क्या भव्य – द्रव्य – नैरयिक – ‘भव्य – द्रव्य – नैरयिक’ हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि भव्य – द्रव्य – नैरयिक – ‘भव्य – द्रव्य – नैरयिक’ हैं ? गौतम ! जो कोई पंचेन्द्रिय – तिर्यञ्चयोनिक या मनुष्य नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य – द्रव्य –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 755 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे वर्ण से – काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध से – सुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से – तिक्त, कटुक कसैला, अम्ल और मधुर; तथा स्पर्श से – कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष – इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत्‌ अन्योन्य सम्बद्ध हैं
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