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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Hindi 114 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘कम्ममूलं च’ जं छणं। पडिलेहिय सव्वं समायाय। दोहिं अंतेहिं अदिस्समाणे। तं परिण्णाय मेहावी। विदित्ता लोगं, वंता लोगसण्णं से मइमं परक्कमेज्जासि।

Translated Sutra: कर्म का मूल जो क्षण – हिंसा है, उसका भलीभाँति निरीक्षण करके (परित्याग करे)। इन सबका सम्यक्‌ निरीक्षण करके संयम ग्रहण करे तथा दो (राग और द्वेष) अन्तों से अद्रश्य होकर रहे। मेधावी साधक उसे (राग – द्वेषादि को) ज्ञात करके (ज्ञपरिज्ञा से जाने और प्रत्याख्यानपरिज्ञा से छोड़े।) वह मतिमान्‌ साधक (रागादि से मूढ़) लोक को जानकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ सम्यक्वाद Hindi 142 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहो य राओ य जयमाणे, वीरे सया आगयपण्णाणे। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते सया परक्कमेज्जासि।

Translated Sutra: (मोक्षमार्ग में) अहर्निश यत्न करने वाले, सतत प्रज्ञावान्‌, धीर साधक ! उन्हें देख जो प्रमत्त हैं, (धर्म से) बाहर हैं। इसलिए तू अप्रमत्त होकर सदा (धर्म में) पराक्रम कर। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 150 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं। तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं। विगिंच मंस-सोणियं। एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए । जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥

Translated Sutra: मुनि पूर्व – संयोग का त्याग कर उपशम करके (शरीर का) आपीड़न करे, फिर प्रपीड़न करे और तब निष्पीड़न करे। मुनि सदा अविमना, प्रसन्नमना, स्वारत, समित, सहित और वीर होकर (इन्द्रिय और मन का) संयमन करे। अप्रमत्त होकर जीवन – पर्यन्त संयम – साधन करने वाले, अनिवृत्तगामी मुनियों का मार्ग अत्यन्त दुरनुचर होता है। (संयम और मोक्षमार्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-३ अपरिग्रह Hindi 164 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवंती केआवंती लोयंसि अपरिग्गहावंती, एएसु चेव अपरिग्गहावंती। सोच्चा वई मेहावी, पंडियाणं णिसामिया। समियाए धम्मे, आरिएहिं पवेदिते ॥ जहेत्थ मए संधी झोसिए, एवमण्णत्थ संधी दुज्झोसिए भवति, तम्हा बेमि–नो निहेज्ज वीरियं।

Translated Sutra: इस लोक में जितने भी अपरिग्रही साधक हैं, वे इन धर्मोपकरण आदि में (मूर्च्छा – ममता न रखने के कारण) ही अपरिग्रही हैं। मेधावी साधक (आगमरूप) वाणी सूनकर तथा पण्डितों के वचन पर चिन्तन – मनन करके (अपरिग्रही) बने। आर्यों (तीर्थंकरों) ने ‘समता में धर्म कहा है।’ (भगवान महावीर ने कहा) जैसे मैंने ज्ञान – दर्शन – चारित्र – इन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-४ अव्यक्त Hindi 169 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स दुज्जातं दुप्परक्कंतं भवति अवियत्तस्स भिक्खुणो।

Translated Sutra: जो भिक्षु (अभी तक) अव्यक्त अवस्थामें है, उसका अकेले ग्रामानुग्राम विहार करना दुर्यात्‌ और दुष्पराक्रम है
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन Hindi 181 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: निद्देसं नातिवट्टेज्जा मेहावी। सुपडिलेहिय सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया। इहारामं परिण्णाय, अल्लीण-गुत्तो परिव्वए। निट्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि

Translated Sutra: मेधावी निर्देश (तीर्थंकरादि के आदेश) का अतिक्रमण न करे। वह सब प्रकार से भली – भाँति विचार करके सम्पूर्ण रूप से पूर्वोक्त जाति – स्मरण आदि तीन प्रकार से साम्य को जाने। इस सत्य (साम्य) के परिशीलन में आत्म – रमण की परिज्ञा करके आत्मलीन होकर विचरण करे। मोक्षार्थी अथवा संयम – साधना द्वारा निष्ठितार्थ वीर मुनि आगम
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-१ स्वजन विधूनन Hindi 186 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से नरे। जस्सिमाओ जाईओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, अक्खाइ से नाणमणेलिसं। से किट्टति तेसिं समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं। एवं पेगे महावीरा विप्परक्कमंति। पासह एगेवसीयमाणे अणत्तपण्णे। से बेमि–से जहा वि कुम्मे हरए विनिविट्ठचित्ते, पच्छन्न-पलासे, उम्मग्गं से णोलहइ। भंजगा इव सन्निवेसं णोचयंति, एवं पेगे – ‘अनेगरूवेहिं कुलेहिं’ जाया, ‘रूवेहिं सत्ता’ कलुणं थणंति, नियाणाओ ते न लभंति मोक्खं। अह पास ‘तेहिं-तेहिं’ कुलेहिं आयत्ताए जाया–

Translated Sutra: इस मर्त्यलोक में मनुष्यों के बीच में ज्ञाता वह पुरुष आख्यान करता है। जिसे ये जीव – जातियाँ सब प्रकार से भली – भाँति ज्ञात होती हैं, वही विशिष्ट ज्ञान का सम्यग्‌ आख्यान करता है। वह (सम्बुद्ध पुरुष) इस लोक में उनके लिए मुक्ति – मार्ग का निरूपण करता है, जो (धर्माचरण के लिए) सम्यक्‌ उद्यत है, मन, वाणी और काया से जिन्होंने
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-१ स्वजन विधूनन Hindi 193 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं परक्कमंतं परिदेवमाणा, ‘मा णे चयाहि’ इति ते वदंति। छंदोवणीया अज्झोववन्ना, अक्कंदकारी जणगा रुवंति। अतारिसे मुनी, नो ओहंतरए, जणगा जेण विप्पजढा। सरणं तत्थ णोसमेति। किह नाम से तत्थ रमति? एयं नाणं सया समणुवासिज्जासि।

Translated Sutra: मोक्षमार्ग – संयम में पराक्रम करते हुए उस मुनि के माता – पिता आदि करुण विलाप करते हुए यों कहते हैं – तुम हमें मत छोड़ो, हम तुम्हारे अभिप्राय के अनुसार व्यवहार करेंगे, तुम पर हमें ममत्व है। इस प्रकार आक्रन्द करते हुए वे रुदन करते हैं। (वे रुदन करते हुए स्वजन कहते हैं) जिसने माता – पिता को छोड़ दिया है, ऐसा व्यक्ति
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-३ उपकरण शरीर विधूनन Hindi 198 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘एयं खु मुनी आयाणं सया सुअक्खायधम्मे विधूतकप्पे णिज्झोसइत्ता’। जे अचेले परिवुसिए, तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ–परिजुण्णे मे वत्थे वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइ-स्सामि, सूइं जाइस्सामि, संधिस्सामि, सीवीस्सामि, उक्कसिस्सामि, वोक्कसिस्सामि, परिहिस्सामि, पाउणिस्सामि। अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसग-फासा फुसंति। एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। ‘लाघवं आगममाणे’। तवे से अभिसमण्णागए भवति। जहेयं भगवता पवेदितं तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया। एवं तेसिं महावीराणं चिरराइं

Translated Sutra: सतत सु – आख्यात धर्म वाला विधूतकल्पी (आचार का सम्यक्‌ पालन करने वाला) वह मुनि आदान (मर्यादा से अधिक वस्त्रादि) का त्याग कर देता है। जो भिक्षु अचेलक रहता है, उस भिक्षु को ऐसी चिन्ता उत्पन्न नहीं होती कि मेरा वस्त्र सब तरह से जीर्ण हो गया है, इसलिए मैं वस्त्र की याचना करूँगा, फटे वस्त्र को सीने के लिए धागे की याचना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन Hindi 202 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सीलमंता उवसंता, संखाए रीयमाणा। असीला अणुवयमाणा। [सूत्र] बितिया मंदस्स बालया।

Translated Sutra: शीलवान, उपशान्त एवं संयम – पालन में पराक्रम करने वाले मुनियों को वे अशीलवान कहकर बदनाम करते हैं। यह उन मन्दबुद्धि लोगों की मूढ़ता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ द्युत

उद्देशक-४ गौरवत्रिक विधूनन Hindi 206 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किमणेण भो! जणेण करिस्सामित्ति मण्णमाणा–‘एवं पेगे वइत्ता’, मातरं पितरं हिच्चा, णातओ य परिग्गहं । ‘वीरायमाणा समुट्ठाए, अविहिंसा सुव्वया दंता’ ॥ अहेगे पस्स दीणे उप्पइए पडिवयमाणे। वसट्टा कायराजना लूसगा भवंति। अहमेगेसिं सिलोए पावए भवइ, ‘से समणविब्भंते समणविब्भंते’। पासहेगे समण्णागएहिं असमण्णागए, णममाणेहिं अणममाणे, विरतेहिं अविरते, दविएहिं अदविए। अभिसमेच्चा पंडिए मेहावी णिट्ठियट्ठे वीरे आगमेणं सया परक्कमेज्जासि।

Translated Sutra: ओ (आत्मन्‌ !) इस स्वार्थी स्वजन का मैं क्या करूँगा ? यह मानते और कहते हुए (भी) कुछ लोग माता, पिता, ज्ञातिजन और परिग्रह को छोड़कर वीर वृत्ति से मुनि धर्म में सम्यक्‌ प्रकार से प्रव्रजित होते हैं; अहिंसक, सुव्रती और दान्त बन जाते हैं। दीन और पतित बनकर गिरते हुए साधकों को तू देख ! वे विषयों से पीड़ित कायर जन (व्रतों के) विध्वंसक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ विमोक्ष

उद्देशक-७ पादपोपगमन Hindi 237 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुज्जो अचेलं तणफासा फुसंति, सोयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंस-मसगफासा फुसंति, गयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले। लाघवियं आगममाणे। तवे से अभिसमन्नागए भवति। जमेयं भगवता पवेदितं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वतो सव्वत्ताए समत्तमेव समभिजाणिया।

Translated Sutra: अथवा उस (अचेलकल्प) में ही पराक्रम करते हुए लज्जाजयी अचेल भिक्षु को बार – बार घास का स्पर्श चूभता है, शीत का स्पर्श होता है, गर्मी का स्पर्श होता है, डाँस और मच्छर काटते हैं, फिर भी वह अचेल उन एक – जातीय या भिन्न – भिन्न जातीय नाना प्रकार के स्पर्शों को सहन करे। लाघव का सर्वांगीण चिन्तन करता हुआ (वह अचेल रहे)। अचेल
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-१ चर्या Hindi 273 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] फरुसाइं दुत्तितिक्खाइं, अतिअच्च मुनी परक्कममाणे । आघाय णट्ट गीताइं, दंडजुद्धाइं मुट्ठिजुद्धाइं ॥

Translated Sutra: अत्यन्त दुःसह्य, तीखे वचनों की परवाह न करते हुए उन्हें सहन करने का पराक्रम करते थे। वे आख्या – यिका, नृत्य, गीत, युद्ध आदि में रस नहीं लेते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 316 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सूरो संगामसीसे वा, संवुडे तत्थ से महावीरे । पडिसेवमाणे फरुसाइं, अचले भगवं रीइत्था ॥

Translated Sutra: जैसे कवच पहना हुआ योद्धा युद्ध के मोर्चे पर शस्त्रों से विद्ध होने पर भी विचलित नहीं होता, वैसे ही संवर का कवच पहने हुए भगवान महावीर लाढ़ादि देश में परीषहसेना से पीड़ित होने पर भी कठोरतम कष्टों का सामना करते हुए मेरुपर्वत की तरह ध्यान में निश्चल रहकर मोक्षपथ में पराक्रम करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 332 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अकसाई विगयगेही, सद्दरूवेसुऽमुच्छिए ज्झाति । छउमत्थे वि परक्कममाणे, नो पमायं सइं पि कुव्वित्था ॥

Translated Sutra: भगवान क्रोधादि कषायों को शान्त करके, आसक्ति को त्यागकर, शब्द और रूप के प्रति अमूर्च्छित रहकर ध्यान करते थे। छद्मस्थ अवस्था में सदनुष्ठान में पराक्रम करते हुए उन्होंने एक बार भी प्रमाद नहीं किया।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 50 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा काली अज्जा रयणावली-तवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहिं दोहि य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदनं अज्जं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएण उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठिचम्मावणद्धा किडिकिडियाभूया किसाधमनिसंतया जाया यावि होत्था जीवंजीवेण गच्छइ जाव सुहयहुयासणेइव भासरासिपलिच्छण्णा

Translated Sutra: इस भाँति काली आर्या ने रत्नावली तप की पाँच वर्ष दो मास और अट्ठाईस दिनों में सूत्रानुसार यावत्‌ आराधना पूर्ण करके जहाँ आर्या चन्दना थीं वहाँ आई और आर्या चन्दना को वंदना – नमस्कार किया। तदनन्तर बहुत से उपवास, बेला, तेला, चार, पाँच आदि अनशन तप से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात्‌ काली आर्या
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 215 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ परिच्चायम्मि य, तवचरणे सत्तुजणविणासे य । अननुसय-धिति-परक्कमलिंगो वीरो रसो होइ ॥

Translated Sutra: इन नव रसों में १. परित्याग करने में गर्व या पश्चात्ताप न होने, २. तपश्चरण में धैर्य और ३. शत्रुओं का विनाश करने में पराक्रम होने रूप लक्षण वाला वीररस है। राज्य – वैभव का परित्याग करके जो दीक्षित हुआ और दीक्षित होकर काम – क्रोध आदि रूप महाशत्रुपक्ष का जिसने विघात किया, वही निश्चय से महावीर है। सूत्र – २१५, २१६
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 6 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए

Translated Sutra: चम्पा नगरी में कूणिक नामक राजा था, जो वहाँ निवास करता था। वह महाहिमवान्‌ पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह अत्यन्त विशुद्ध चिरकालीन था। उसके अंग पूर्णतः राजोचित लक्षणों से सुशोभित थे। वह बहुत लोगों द्वारा अति सम्मानित और पूजित था, सर्वगुणसमृद्ध,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 10 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे– ... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 44 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-३ प्राणवध Hindi 783 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले, पाणातिवायवेरमणे जाव मिच्छादंसण-सल्लविवेगे, उप्पत्तिया वेणइया कम्मया पारिणामिया, ओग्गहे ईहा अवाए धारणा, उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे, नेरइयत्ते, असुरकुमारत्ते जाव वेमानियत्ते, नाणावरणिज्जे जाव अंत-राइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी मिच्छदिट्ठी सम्मामिच्छदिट्ठी, चक्खुदंसणे अचक्खु-दंसणे ओहिदंसणे केवलदंसणे, आभिनिबोहियनाणे जाव विभंगनाणे, आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा, ओरालियसरीरे वेउव्वियसरीरे आहारगसरीरे तेयगसरीरे कम्मगसरीरे, मणजोगे वइजोगे कायजोगे, सागारोवओगे, अनागारोवओगे,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य, औत्पत्तिकी यावत्‌ पारिणामिकी बुद्धि, अवग्रह यावत्‌ धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम; नैरयिकत्व, असुरकुमारत्व यावत्‌ वैमानिकत्व, ज्ञानावरणीय यावत्‌ अन्तरायकर्म, कृष्णलेश्या यावत्‌ शुक्ललेश्या, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि, सम्यग्‌मिथ्यादृष्टि,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

Hindi 6 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खु- दए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिने जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खय- मव्वाबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे… …जाव पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं

Translated Sutra: उस काल में, उस समय में (वहाँ) श्रमण भगवान महावीर स्वामी विचरण कर रहे थे, जो आदि – कर, तीर्थंकर, स्वयं तत्त्व के ज्ञाता, पुरुषोत्तम, पुरुषों में सिंह की तरह पराक्रमी, पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक – श्वेत कमल रूप, पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोक – प्रदीप, लोकप्रद्योतकर, अभयदाता,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 42 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंति? हंता बंधंति। कहन्नं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं बंधंति? गोयमा! पमादपच्चया, जोगनिमित्तं च। से णं भंते! पमादे किंपवहे? गोयमा! जोगप्पवहे। से णं भंते! जीए किंपवहे? गोयमा! वीरियप्पवहे। से णं भंते! वीरिए किंपवहे? गोयमा! सरीरप्पवहे। से णं भंते! सरीरे किंपवहे? गोयमा! जीवप्पवहे। एवं सति अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ वा, पुरिसक्कारपरक्कमेइ वा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म बाँधते हैं ? हाँ, गौतम ! बाँधते हैं। भगवन्‌ ! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस प्रकार बाँधते हैं ? गौतम ! प्रमाद के कारण और योग के निमित्त से (जीव कांक्षामोहनीय कर्म बाँधते हैं)। ‘भगवन्‌ ! प्रमाद किससे उत्पन्न होता है ?’ गौतम ! प्रमाद, योग से उत्पन्न होता है। ‘भगवन्‌ ! योग किससे उत्पन्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 43 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति? अप्पणा चेव गरहति? अप्पणा चेव संवरेति? हंता गोयमा! अप्पणा चेव उदीरेति। अप्पणा चेव गरहति। अप्पणा चेव संवरेति। जं णं भंते! अप्पणा चेव उदीरेति, अप्पणा चेव गरहति, अप्पणा चेव संवरेति, तं किं–१. उदिण्णं उदीरेति? २. अनुदिण्णं उदीरेति? ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति? ४. उदयानंतर-पच्छाकडं कम्मं उदीरेति? गोयमा! १. नो उदिण्णं उदीरेति। २. नो अनुदिण्णं उदीरेति। ३. अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति। ४. नो उदयानंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेति। जं णं भंते! अनुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेति, तं किं उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसक्कारपरक्कमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव अपने आपसे ही उस (कांक्षामोहनीय कर्म) की उदीरणा करता है, अपने आप से ही उसकी गर्हा करता है और अपने आप से ही उसका संवर करता है ? हाँ, गौतम ! जीव अपने आप से ही उसकी उदीरणा, गर्हा और संवर करता है। भगवन्‌ ! वह जो अपने आप से ही उसकी उदीरणा करता है, गर्हा करता है और संवर करता है, तो क्या उदीर्ण की उदीरणा करता है
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 45 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं, दंसणंतरेहिं, चरित्तंतरेहिं, लिंगंतरेहिं, पवयणंतरेहिं, पावयणंतरेहिं, कप्पंतरेहिं, मग्गंतरेहिं, मतंतरेहिं, भगंतरेहिं, नयतरेहिं, नियमंतरेहिं, पमाणंतरेहिं संकिता कंखिता वितिकिच्छता भेदसमावन्ना कलुससमावन्ना– एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा-मोहणिज्जं कम्मं वेदेंति। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं। एवं जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या श्रमणनिर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन्‌ ! श्रमणनिर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन किस प्रकार करते हैं ? गौतम ! उन – उन कारणों से ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगान्तर, प्रवचनान्तर, प्रावचनिकान्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 93 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! किं सवीरिया? अवीरिया? गोयमा! सवीरिया वि, अवीरिया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जीवा सवीरिया वि? अवीरिया वि? गोयमा! जीवा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संसारसमावन्नगा य, असंसारसमावन्नगा य। तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा। सिद्धा णं अवीरिया। तत्थ णं जे ते संसार-समावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सेलेसिपडिवन्नगा य, असेलेसिपडिवन्नगा य। तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवन्नगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया। तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवन्नगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं सवीरिया वि, अवीरिया वि। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव सवीर्य है अथवा अवीर्य है ? गौतम ! जीव सवीर्य भी है अवीर्य भी है। भगवन्‌ ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के हैं – संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक। जो जीव असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं, वे अवीर्य हैं। जो जीव संसार – समापन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं, शैलेशी – प्रतिपन्न और
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शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 115 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया। तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि,

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। समवसरण की रचना हुई। यावत्‌ जनता धर्मोपदेश सूनकर वापिस लौट गई। तदनन्तर किसी एक दिन रात्रि के पीछले प्रहर में धर्म – जागरणा करते हुए स्कन्दक अनगार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, चिन्तन यावत्‌ संकल्प उत्पन्न हुआ कि मैं इस प्रकार के उदार यावत्‌ महाप्रभावशाली
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शतक-२

उद्देशक-१० अस्तिकाय Hindi 144 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! सउट्ठाणे सकम्मे सबले सवीरिए सपुरिसक्कार-परक्कमे आयभावेणं जीवभावं उवदंसेतीति वत्तव्वं सिया? हंता गोयमा! जीवे णं सउट्ठाणे सकम्मे सबले सवीरिए सपुरिसक्कारपरक्कमे आयभावेणं जीवभावंउवदंसेतीति वत्तव्वं सिया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– जीवे णं सउट्ठाणे सकम्मे सबले सवीरिए सपुरिसक्कार-परक्कमे आयभावेणं जीवभावं उवदंसेतीति वत्तव्वं सिया? गोयमा! जीवे णं अनंताणं आभिनिबोहियनाणपज्जवाणं, अनंताणं सुयनाणपज्जवाणं, अनंताणं ओहिनाणपज्जवाणं, अनंताणं मनपज्जवनाणपज्जवाणं, अनंताणं केवलनाणपज्जवाणं, अणं-ताणं मइअन्नाणपज्जवाणं, अनंताणं सुयअन्नाणपज्जवाणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम वाला जीव आत्मभाव से जीवभाव को प्रदर्शित प्रकट करता है; क्या ऐसा कहा जा सकता है ? हाँ, गौतम ! भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहा है ? गौतम ! जीव आभिनिबोधिक ज्ञान के अनन्त पर्यायों, श्रुतज्ञान के अनन्त पर्यायों, अवधिज्ञान के अनन्त पर्यायों, मनःपर्यवज्ञान के अनन्त पर्यायों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 160 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने देविंदे देवराया ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए, तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी–अहो णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। ईसानस्स णं भंते! सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते? कहिं अनुपविट्ठे? गोयमा!

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। यावत्‌ परीषद्‌ भगवान की पर्युपासना करने लगी। उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज, शूलपाणि वृषभ – वाहन लोक के उत्तरार्द्ध का स्वामी, अट्ठाईस लाख विमानों का अधिपति, आकाश के समान रजरहित निर्मल वस्त्रधारक, सिर पर माला से सुशोभित मुकुटधारी, नवीनस्वर्ण निर्मित सुन्दर, विचित्र
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शतक-३

उद्देशक-६ नगर Hindi 191 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा मायी मिच्छदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरिं समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ– तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेसं दंसण-विवच्चासे भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नो तहाभावं जाणइ-पासइ, अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। अनगारे णं भंते! भावियप्पा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! राजगृह नगर में रहा हुआ मिथ्यादृष्टि और मायी भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञानलब्धि से वाराणसी नगरी की विकुर्वणा करके क्या तद्‌गत रूपों को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह जानता और देखता है। भगवन्‌ ! क्या वह (उन रूपों को) यथार्थरूप से जानता – देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-६ नगर Hindi 192 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा अमायी सम्मदिट्ठी वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए रायगिहं नगरं समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। से भंते! किं तहाभावं जाणइ-पासइ? अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूवाइं जाणामि-पासामि सेस दंसण-अविवच्चासे भवति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–तहाभावं जाणइ-पासइ, नो अन्नहाभावं जाणइ-पासइ। अनगारे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधिज्ञानलब्धि से, राजगृहनगर और वाराणसी नगरी के बीच में एक बड़े जनपदवर्ग को जानता – देखता है ? हाँ (गौतम ! उस जनपदवर्ग को) जानता – देखता है। भगवन्‌ ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा अन्यथाभाव से ? गौतम! वह उस जनपदवर्ग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-७ अणगार Hindi 363 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे जे भविए अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूनं भंते! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं, कम्मेणं, बलेणं, वीरिएणं, पुरिसकार-परक्कमेणं विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? से नूनं भंते! एयमट्ठं एवं वयह? गोयमा! नो तिणट्ठे समट्ठे। पभू णं से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि, बलेण वि, वीरिएण वि, पुरिसक्कार-परक्कमेण वि अन्नयराइं विपुलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ। आहोहिए णं भंते! मनूसे जे भविए अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववज्जित्तए, से नूनं भंते! से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेणं, कम्मेणं,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ऐसा छद्मस्थ मनुष्य, जो किसी देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होने वाला है, भगवन्‌ ! वास्तव में वह क्षीणभोगी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम के द्वारा विपुल और भोगने योग्य भोगों को भोगता हुआ विहरण करने में समर्थ नहीं है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-९ असंवृत्त Hindi 375 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजणे णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं से बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु बहवे मनुस्सा अन्नयरेसु सु उच्चावएसु संगामेसु अभिमुहा चेव पहया समाणा कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वेसाली नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बहुत – से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि – अनेक प्रकार के छोटे – बड़े संग्रामों में से किसी भी संग्राम में सामना करते हुए आहत हुए एवं घायल हुए बहुत – से मनुष्य मृत्यु के समय मरकर किसी भी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। भगवन्‌ ! ऐसा कैसे हो सकता है ? गौतम ! बहुत – से मनुष्य, जो इस
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शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 465 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति। तए

Translated Sutra: तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़ कर जमीन की सफाई करके उसे लिपाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-११ काल Hindi 518 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! एएसिं पलिओवम-सागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं एएसिं पलिओवमसागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? एवं खलु सुदंसणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। सहसंबवने उज्जाने–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे बले नामं राया होत्था–वण्णओ। तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया वण्णओ जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ। तए णं सा पभावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अब्भिंतरओ सचित्तकम्मे, बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे विचित्तउल्लोग-चिल्लियतले मणिरयणपणासियंधयारे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या इन पल्योपम और सागरोपम का क्षय या अपचय होता है ? हाँ, सुदर्शन ! होता है। भगवन्‌ ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे सुदर्शन ! उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था। वहाँ सहस्रा – म्रवन नामक उद्यान था। उस हस्तिनापुर में ‘बल’ नामक राजा था। उस बल राजा की प्रभावती नामकी देवी (पटरानी) थी। उसके हाथ – पैर सुकुमाल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१२

उद्देशक-५ अतिपात Hindi 543 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवायवेरमणे, जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे–एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते। अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। अह भंते! ओग्गहे, ईहा, अवाए, धारणा–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता? गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता। अह भंते! उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार-परक्कमे–एस णं कतिवण्णे जाव कति फासे पन्नत्ते? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते। सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे कतिवण्णे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्राणातिपात – विरमण यावत्‌ परिग्रह – विरमण तथा क्रोधविवेक यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्यविवेक, इन सबमें कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श कहे हैं ? गौतम ! (ये सभी) वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित कहे हैं। भगवन्‌ ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध, रस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-५ अग्नि Hindi 613 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया दस ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा–अनिट्ठा सद्दा, अनिट्ठा रूवा, अनिट्ठा गंधा, अनिट्ठा रसा, अनिट्ठा फासा, अनिट्ठा गती, अनिट्ठा ठिती, अनिट्ठे लावण्णे, अनिट्ठे जसे कित्ती, अनिट्ठे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे। असुरकुमारा दस ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा–इट्ठा सद्दा, इट्ठा रूवा जाव इट्ठे उट्ठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमे। एवं जाव थणियकुमारा। पुढविक्काइया छट्ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति, तं जहा–इट्ठानिट्ठा फासा, इट्ठानिट्ठा गती, एवं जाव पुरिसक्कार-परक्कमे। एवं जाव वणस्सइकाइया। बेइंदिया सत्तट्ठाणाइं पच्चणुब्भवमाणा

Translated Sutra: नैरयिक जीव दस स्थानों का अनुभव करते रहते हैं। यथा – अनिष्ट शब्द, अनिष्ट रूप, अनिष्ट गन्ध, अनिष्ट रस, अनिष्ट स्पर्श, अनिष्ट गति, अनिष्ट स्थिति, अनिष्ट लावण्य, अनिष्ट यशःकीर्ति और अनिष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार – पराक्रम। असुरकुमार दस स्थानों का अनुभव करते रहते हैं, यथा – इष्ट शब्द, इष्ट रूप यावत्‌ इष्ट
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१४

उद्देशक-१० केवली Hindi 636 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! छउमत्थं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। जहा णं भंते! केवली छउमत्थं जाणइ-पासइ, तहा णं सिद्धे वि छउमत्थं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। केवली णं भंते! आहोहियं जाणइ-पासइ? एवं चेव। एवं परमाहोहियं, एवं केवलिं, एवं सिद्धं जाव– जहा णं भंते! केवली सिद्धं जाणइ-पासइ, तहा णं सिद्धे वि सिद्धं जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। केवली णं भंते! भासेज्ज वा? वागरेज्जा वा? हंता भासेज्ज वा, वागरेज्ज वा। जहा णं भंते! केवली भासेज्ज वा वागरेज्ज वा, तहा णं सिद्धे वि भासेज्ज वा वागोज्ज वा? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहा णं केवली भासेज्ज वा वागरेज्ज वा नो तहा णं सिद्धे भासेज्ज

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवलज्ञानी छद्मस्थ को जानते – देखते हैं ? हाँ (गौतम !) जानते – देखते हैं। भगवन्‌ ! केवल – ज्ञानी, छद्मस्थ के समान सिद्ध भगवन्‌ भी छद्मस्थ को जानते – देखते हैं ? हाँ, (गौतम !) जानते – देखते हैं। भगवन्‌ ! क्या केवलज्ञानी, आधोवधिक को जानते – देखते हैं ? हाँ, गौतम ! जानते – देखते हैं। इसी प्रकार परमावधिज्ञानी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१५ गोशालक

Hindi 639 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा! तीसं वासाइं अगारवासमज्झावसित्ता अम्मापिईहिं देवत्तगएहिं समत्तपइण्णे एवं जहा भावणाए जाव एगं देवदूसमादाय मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। तए णं अहं गोयमा! पढमं वासं अद्धमासं अद्धमासेनं खममाणे अट्ठियगामं निस्साए पढमं अंतरवासं वासावासं उवागए। दोच्चं वासं मासं मासेनं खममाणे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नगरे, जेणेव नालंदा बाहिरिया, जेणेव तंतुवायसाला, तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हामि, ओगिण्हित्ता तंतुवायसालाए एगदेसंसि वासावासं उवागए। तए णं अहं गोयमा! पढमं

Translated Sutra: उस काल उस समय में, हे गौतम ! मैं तीस वर्ष तक गृहवास में रहकर, माता – पिता के दिवंगत हो जाने पर भावना नामक अध्ययन के अनुसार यावत्‌ एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके मुण्डित हुआ और गृहस्थावास को त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ। हे गौतम ! मैं प्रथम वर्ष में अर्द्धमास – अर्द्धमास क्षमण करते हुए अस्थिक ग्राम की निश्रा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१७

उद्देशक-२ संयत Hindi 701 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–एवं खलु पाणातिवाए, मुसावाए जाव मिच्छादंसणसल्ले वट्ट माणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मयाए पारिणामियाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। ओग्गहे, ईहा-अवाए धारणाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। नेरइयत्ते तिरिक्ख-मनुस्स-देवत्ते वट्टमाणस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया। नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि प्राणातिपात, मृषावाद यावत्‌ मिथ्यादर्शन – शल्य में प्रवृत्त हुए प्राणी का जीव अन्य है और उस जीव से जीवात्मा अन्य है। प्राणातिपात – विरमण यावत्‌ परिग्रह – विरमण में, क्रोधाविवेक यावत्‌ मिथ्यादर्शन – शल्य – त्याग में प्रवर्तमान प्राणी का
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

मरण भेदानि

Hindi 11 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अपरक्कमस्स काले अपहुप्पंतम्मि जं तमवियारं २ । तमहं भत्तपरिन्नं जहापरिन्नं भणिस्सामि ॥

Translated Sutra: भक्त परिज्ञा मरण और पराक्रम रहित साधु को संलेखना किए बिना जो मरण होता है वो अविचार भक्त परिज्ञा मरण को यथामति मैं कहूँगा।
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 199 Sutra Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता नत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु–ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, बुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयंति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता

Translated Sutra: हे भगवंत ! चंद्रादि का अनुभाव किस प्रकार से है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियाँ है। एक कहता है कि चंद्र – सूर्य जीवरूप नहीं है, अजीवरूप है; घनरूप नहीं है, सुषिररूप है, श्रेष्ठ शरीरधारी नहीं, किन्तु कलेवररूप है, उनको उत्थान – कर्म – बल – वीर्य या पुरिषकार पराक्रम नहीं है, उनमें विद्युत, अशनिपात ध्वनि नहीं है, लेकिन
Chandrapragnapati चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-१ Hindi 214 Gatha Upang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्धा-धिति-उट्ठाणुच्छाह-कम्म-बल वीरिय-पुरिसकारेहिं । जो सिक्खिओवि संतो, अभायणे पक्खिवेज्जाहि ॥

Translated Sutra: श्रद्धा – धृति – धैर्य – उत्साह – उत्थान – बल – वीर्य – पराक्रम से युक्त होकर इसकी शिक्षा प्राप्त करनेवाले भी अयोग्य हो तो उनको इस प्रज्ञप्ति की प्ररूपणा नहीं करनी चाहिए। यथा –
Chandravedyak Ardha-Magadhi

Hindi 45 Gatha Painna-07B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जाइ-कुल-जोव्वण-बल-विरिय-समत्तसत्तसंपन्नं । मिउ मद्दवाइमपिसुणमसढमथद्धं अलोभं च ॥

Translated Sutra: अब शिष्य की कसौटी के लिए उसके कुछ विशिष्ट लक्षण और गुण बताते हैं, जो पुरुष उत्तम जाति, कुल, रूप, यौवन, बल, वीर्य – पराक्रम, समता और सत्त्व गुण से युक्त हो मृदु – मधुरभाषी, किसी की चुगली न करनेवाला, अशठ, नग्न और अलोभी हो – और अखंड हाथ और चरणवाला, कम रोमवाला, स्निग्ध और पुष्ट देहवाला, गम्भीर और उन्नत नासिका वाला उदार दृष्टि,
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-५ चित्तसमाधि स्थान

Hindi 17 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जो! इति समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी– इह खलु अज्जो! निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इरियासमिताणं भासासमिताणं एसणा-समिताणं आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिताणं उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्लपारिट्ठावणिता-समिताणं मनसमिताणं वयसमिताणं कायसमिताणं मनगुत्ताणं वयगुत्ताणं कायगुत्ताणं गुत्ताणं गुत्तिंदियाणं गुत्तबंभयारीणं आयट्ठीणं आयहिताणं आयजोगीणं आयपरक्कमाणं पक्खियपोसहिएसु समाधिपत्ताणं ज्झियायमाणाणं इमाइं दस चित्तसमाहिट्ठाणाइं असमुप्पन्नपुव्वाइं समुप्पज्जिज्जा, तं जहा– १. धम्मचिंता वा से असमुप्पन्नपुव्वा समुप्पज्जेज्जा

Translated Sutra: हे आर्य ! इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान महावीर साधु और साध्वी को कहने लगे। हे आर्य ! इर्या – भाषा – एषणा – आदान भांड़ मात्र निक्षेपणा और उच्चार प्रस्नवण खेल सिंधाणक जल की परिष्ठापना, वो पाँच समितिवाले, गुप्तेन्द्रिय, गुप्तब्रह्मचारी, आत्मार्थी, आत्महितकर, आत्मयोगी, आत्मपराक्रमी, पाक्षिक पौषध (यानि पर्वतिथि
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा ९ मोहनीय स्थानो

Hindi 93 Gatha Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं अभिसमागम्म, सूरा दढपरक्कमा । सव्वमोहविनिम्मुक्का, जातीमरणमतिच्छिया ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: दृढ़, पराक्रमी, शूरवीर भिक्षु सर्व मोहस्थानो का ज्ञाता होकर उनसे मुक्त होता है, जन्म – मरण का अतिक्रमण करता है। ऐसा मैं कहता हूँ।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ श्रुल्लकाचार कथा

Hindi 29 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परीसहरिऊदंता धुयमोहा जिइंदिया । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमंति महेसिणो ॥

Translated Sutra: (वे) महर्षि परीषहरूपी रिपुओं का दमन करते है; मोह को प्रकम्पित कर देते हैं और जितेन्द्रिय (होकर) समस्त दुःखों को नष्ट करने के लिए पराक्रम करते हैं।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ आचारप्रणिधि

Hindi 391 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] राइनिएसु विनयं पउंजे धुवसीलयं सययं न हावएज्जा । कुम्मो व्व अल्लीणपलीनगुत्तो परक्कमेज्जा तवसंजमम्मि ॥

Translated Sutra: (साधु) रत्नाधिकों के प्रति विनयी बने, ध्रुवशीलता को न त्यागे। कछुए की तरह आलीनगुप्त और प्रलीनगुप्त होकर तप – संयम में पराक्रम करे।
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

चूलिका-१ रतिवाक्या

Hindi 506 Sutra Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु भो! पव्वइएणं, उप्पन्नदुक्खेणं, संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं, ओहानुप्पेहिणा अनो-हाइएणं चेव, हयरस्सि-गयंकुस-पोयपडागाभूयाइं इमाइं अट्ठारस ठाणाइं सम्मं संपडिलेहियव्वाइं भवंति, तं जहा– १. हं भो! दुस्समाए दुप्पजीवी। २. लहुस्सगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा। ३. भुज्जो य साइबहुला मणुस्सा। ४. इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ। ५. ओमजनपुरक्कारे। ६. वंतस्स य पडियाइयणं। ७. अहरगइवासोवसंपया। ८. दुल्लभे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहिवासमज्झे वसंताणं। ९. आयंके से वहाय होइ। १०. संकप्पे से वहाय होइ। ११. सोवक्केसे गिहवासे। निरुवक्केसे परियाए। १२. बंधे गिहवासे। मोक्खे परियाए। १३.

Translated Sutra: इस निर्ग्रन्थ – प्रवचन में जो प्रव्रजित हुआ है, किन्तु कदाचित्‌ दुःख उत्पन्न हो जाने से संयम में उसका चित्त अरतियुक्त हो गया। अतः वह संयम का परित्याग कर जाना चाहता है, किन्तु संयम त्यागा नहीं है, उससे पूर्व इन अठारह स्थानों का सम्यक्‌ प्रकार से आलोचन करना चाहिए। ये अठारह स्थान अश्व के लिए लगाम, हाथी के लिए अंकुश
Dashvaikalik दशवैकालिक सूत्र Ardha-Magadhi

चूलिका-२ विविक्तचर्या

Hindi 526 Gatha Mool-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनुसोयपट्ठिए बहुजनम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं । पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं ॥

Translated Sutra: (नदी के जलप्रवाह में गिर कर समुद्र की ओर बहते हुए काष्ठ के समान) बहुत – से लोग अनुस्रोत संसार – समुद्र की ओर प्रस्थान कर रहे हैं, किन्तु जो मुक्त होना चाहता है, जिसे प्रतिस्रोत होकर संयम के प्रवाह में गति करने का लक्ष्य प्राप्त है, उसे अपनी आत्मा को प्रतिस्रोत की ओर ले जाना चाहिए। अनुस्रोत संसार है और प्रतिस्रोत
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