Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (5897)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१५ सभिक्षुक

Hindi 496 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] राओवरयं चरेज्ज लाढे विरए वेयवियायरक्खिए । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी जे कम्हिचि न मुच्छिए स भिक्खू ॥

Translated Sutra: जो राग से उपरत है, संयम में तत्पर है, आश्रव से विरत है, शास्त्रों का ज्ञाता है, आत्मरक्षक एवं प्राज्ञ है, रागद्वेष को पराजित कर सभी को अपने समान देखता है, किसी भी वस्तु में आसक्त नहीं होता है, वह भिक्षु है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१५ सभिक्षुक

Hindi 503 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खत्तियगणउग्गरायपुत्ता माहणभोइय विविहा य सिप्पिणो । नो तेसिं वयइ सिलोगपूयं तं परिण्णाय परिव्वए स भिक्खू ॥

Translated Sutra: क्षत्रिय, गण, उग्र, राजपुत्र, ब्राह्मण, भोगिक और सभी प्रकार के शिल्पियों की पूजा तथा प्रशंसा में जो कभी कुछ भी नहीं कहता है, किन्तु इसे हेय जानकर विचरता है, वह भिक्षु है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१५ सभिक्षुक

Hindi 509 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वादं विविहं समिच्च लोए सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी उवसंते अविहेडए स भिक्खू ॥

Translated Sutra: लोकप्रचलित विविध धर्मविषयक वादों को जानकर भी जो ज्ञान दर्शनादि स्वधर्म में स्थित रहता है, कर्मों को क्षीण करने में लगा है, शास्त्रों का परमार्थ प्राप्त है, प्राज्ञ है, परीषहों को जीतता है, सब जीवों के प्रति समदर्शी और उपशान्त है, किसी को अपमानित नहीं करता है, वह भिक्षु है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान

Hindi 520 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो विभूसाणुवाई हवइ, से निग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह–विभूसावत्तिए, विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ। तओ णं तस्स इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गंथे विभूसाणुवाई सिया।

Translated Sutra:
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान

Hindi 524 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समं च संथवं थीहिं संकहं च अभिक्खणं । बंभचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ५२३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान

Hindi 527 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हासं किड्डं रइं दप्पं सहसावत्तासियाणि य । बंभचेररओ थीणं नानुचिंते कयाइ वि ॥

Translated Sutra: ब्रह्मचर्य में रत भिक्षु, दीक्षा से पूर्व जीवन में स्त्रियों के साथ अनुभूत हास्य, क्रीड़ा, रति, अभिमान और आकस्मिक त्रास का कभी भी अनुचिन्तन न करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१७ पापश्रमण

Hindi 546 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दवदवस्स चरई पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणे य चंडे य पावसमणि त्ति वुच्चई ॥

Translated Sutra: जो जल्दी – जल्दी चलता है, पुनः पुनः प्रमादाचरण करता रहता है, मर्यादाओं का उल्लंघन करता है, क्रोधी है वह पापश्रमण है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१७ पापश्रमण

Hindi 553 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुद्धदहीविगईओ आहारेइ अभिक्खणं । अरए य तवोकम्मे पावसमणि त्ति वुच्चई ॥

Translated Sutra: जो दूध, दही आदि विकृतियाँ बार – बार खाता है, जो तप – क्रिया में रुचि नहीं रखता है, वह पापश्रमण – कहलाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१७ पापश्रमण

Hindi 554 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अत्थंतम्मि य सूरम्मि आहारेइ अभिक्खणं । चोइओ पडिचोएइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥

Translated Sutra: जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक बार – बार खाता रहता है, समझाने पर उलटा पड़ता है – वह पापश्रमण कहलाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१७ पापश्रमण

Hindi 557 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सण्णाइपिंडं जेमेइ नेच्छई सामुदानियं । गिहिनिसेज्जं च वाहेइ पावसमणि त्ति वुच्चई ॥

Translated Sutra: जो अपने ज्ञातिजनों से आहार ग्रहण करता है, सभी घरों से सामुदायिक भिक्षा नहीं चाहता है, गृहस्थ की शय्या पर बैठता है, वह पाप – श्रमण है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 560 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कंपिल्ले नयरे राया उदिण्णबलवाहने । नामेणं संजए नाम मिगव्वं उवनिग्गए ॥

Translated Sutra: काम्पिल्य नगर में सेना और वाहन से सुसंपन्न ‘संजय’ नाम का राजा था। एक दिन मृगया के लिए निकला। वह राजा सब ओर से विशाल अश्वसेना, गजसेना, रथसेना तथा पदाति सेना से परिवृत्त था। राजा अश्व पर आरूढ़ था। वह रस – मूर्च्छित होकर काम्पिल्य नगर के केशर उद्यान की ओर ढकेले गए भयभीत एवं श्रान्त हिरणों को मार रहा था। सूत्र –
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 566 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह राया तत्थ संभंतो अनगारो मनाहओ । मए उ मंदपुन्नेणं रसगिद्धेण घंतुणा ॥

Translated Sutra: राजा मुनि को देखकर सहसा भयभीत हो गया। उसने सोचा – ‘‘मैं कितना मन्दपुण्य, रसासक्त एवं हिंसक वृत्ति का हूँ कि मैंने व्यर्थ ही मुनि को आहत किया है।’’ घोड़े को छोड़कर उस राजा ने विनयपूर्वक अनगार के चरणों को वन्दन किया और कहा कि – भगवन्‌ ! इस अपराध के लिए मुझे क्षमा करें। वे अनगार भगवान्‌ मौनपूर्वक ध्यान में लीन थे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 577 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोऊण तस्स सो धम्मं अनगारस्स अंतिए । महया संवेगनिव्वेयं समावन्नो नराहिवो ॥

Translated Sutra: अनगार के पास से महान्‌ धर्म को सुनकर, राजा मोक्ष का अभिलाषी और संसार से विमुख हो गया। राज्य को छोड़कर वह संजय राजा भगवान्‌ गर्दभालि अनगार के समीप जिनशासन में दीक्षित हो गया। सूत्र – ५७७, ५७८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१८ संजयीय

Hindi 613 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कहं धीरे अहेऊहिं अत्ताणं परियावसे? । सव्वसंगविनिम्मुक्के सिद्धे हवइ नीरए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: धीर साधक एकान्तवादी अहेतुवादों में अपने – आप को कैसे लगाए ? जो सभी संगों से मुक्त है, वही नीरज होकर सिद्ध होता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 639 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समया सव्वभूएसु सत्तुमित्तेसु वा जगे । पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुक्करा ॥

Translated Sutra: भिक्षु को जगत्‌ में शत्रु और मित्र के प्रति, सभी जीवों के प्रति समभाव रखना होता है। जीवनपर्यन्त प्राणातिपात से निवत्त होना भी बहुत दुष्कर है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 674 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उण्हाभितत्तो संपत्तो असिपत्तं महावणं । असिपत्तेहिं पडंतेहिं छिन्नपुव्वो अनेगसो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ६७३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 685 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निच्चं भीएण तत्थेण दुहिएण वहिएण य । परमा दुहसंबद्धा वेयणा वेइया मए ॥

Translated Sutra: मैंने नित्य ही भयभीत, संत्रस्त, दुःखित और व्यथित रहते हुए अत्यन्त दुःखपूर्ण वेदना का अनुभव किया। तीव्र, प्रचण्ड, प्रगाढ, घोर, अत्यन्त दुःसह, महाभयंकर और भीष्म वेदनाओं का मैंने नरक में अनुभव किया है। सूत्र – ६८५, ६८६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 688 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वभवेसु अस्साया वेयणा वेइया मए । निमेसंतरमित्तं पि जं साया नत्थि वेयणा ॥

Translated Sutra: मैंने सभी जन्मों में दुःखरूप वेदना का अनुभव किया है। एक क्षण के अन्तर जितनी भी सुखरूप वेदना (अनुभूति) वहाँ नहीं है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 699 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मियचारियं चरिस्सामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं । तुब्भेहिं अम्मणुन्नाओ गच्छ पुत्त! जहासुहं ॥

Translated Sutra: हे माता ! मैं तुम्हारी अनुमति प्राप्त कर सभी दुःखों का क्षय करनेवाली मृगचर्या का आचरण करूँगा। पुत्र ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसे चलो।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१९ मृगापुत्रीय

Hindi 702 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंचमहव्वयजुत्तो पंचसमिओ तिगुत्तिगुत्तो य । सब्भिंतरबाहिरओ तवोकम्मंसि उज्जुओ ॥

Translated Sutra: पंच महाव्रतों से युक्त, पाँच समितियों से समित तीन गुप्तियों से गुप्त, आभ्यन्तर और बाह्य तप में उद्यत – ममत्त्वरहित, अहंकाररहित, संगरहित, गौरव का त्यागी, त्रस तथा स्थावर सभी जीवों में समदृष्टि – लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवन, मरण, निन्दा, प्रशंसा और मान – अपमान में समत्त्व का साधक – गौरव, कषाय, दण्ड, शल्य, भय, हास्य और
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 719 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तस्स पाए उ वंदित्ता काऊण य पयाहिणं । नाइदूरमणासन्ने पंजली पडिपुच्छई ॥

Translated Sutra: मुनि के चरणों में वन्दना और प्रदक्षिणा करने के पश्चात्‌ राजा न अतिदूर, न अति निकट खड़ा रहा और हाथ जोड़कर पूछने लगा – हे आर्य ! तुम अभी युवा हो। फिर भी तुम भोगकाल में दीक्षित हुए हो, श्रामण्य में उपस्थित हुए हो। इसका क्या कारण है, मैं सुनना चाहता हूँ। सूत्र – ७१९, ७२०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 721 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनाहो मि महाराय! नाहो मज्झ न विज्जई । अनुकंपगं सुहिं वावि कंचि नाभिसमेमहं ॥

Translated Sutra: महाराज ! मैं अनाथ हूँ। मेरा कोई नाथ नहीं है। मुझ पर अनुकम्पा रखनेवाला कोई सुहृद्‌ नहीं पा रहा हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 725 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं वुत्तो नरिंदो सो सुसंभंतो सुविम्हिओ । वयणं अस्सुयपुव्वं साहुणा विम्हयन्निओ ॥

Translated Sutra: राजा पहले ही विस्मित हो रहा था, अब तो मुनि से अश्रुतपूर्व वचन सुन कर तो और भी अधिक संभ्रान्त एवं विस्मित हुआ। उसने कहा – मेरे पास अश्व, हाथी, नगर और अन्तःपुर है। मैं मनुष्यजीवन के सभी सुख – भोगों को भोग रहा हूँ। मेरे पास शासन और ऐश्वर्य भी हैं। इस प्रकार प्रधान – श्रेष्ठ सम्पदा, जिसके द्वारा सभी कामभोग मुझे समर्पित
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1115 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निव्वेएणं भंते! जीवे किं जणयइ? निव्वेएणं दिव्वमानुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निव्वेयं हव्वमागच्छइ, सव्वविसएसु विरज्जइ। सव्वविसएसु विरज्जमाणे आरंभपरिच्चायं करेइ। आरंभपरिच्चायं करेमाणे संसारमग्गं वोच्छिंदइ, सिद्धिमग्गे पडिवन्ने य भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! निर्वेद से जीव को क्या प्राप्त होता है ? निर्वेद से जीव देव, मनुष्य और तिर्यंच – सम्बन्धी काम – भोगों में शीघ्र निर्वेद को प्राप्त होता है। सभी विषयों में विरक्त होता है। आरम्भ का परित्याग करता है। आरम्भ का परित्याग कर संसार – मार्ग का विच्छेद करता है और सिद्धि मार्ग को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1117 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? गुरुसाहम्मियसुस्सूसणयाए णं विनयपडिवत्तिं जणयइ। विनयपडिवन्ने य णं जीवे अनच्चा-सायणसीले नेरइयतिरिक्खजोणियमनुस्सदेवदोग्गईओ निरुंभइ, वण्णसंजलणभत्तिबहुमानयाए मनुस्सदेवसोग्गईओ निबंधइ, सिद्धिं सोग्गइं च विसोहेइ। पसत्थाइं च णं विनयमूलाइं सव्वकज्जाइं साहेइ। अन्ने य बहवे जीवे विणइत्ता भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! गुरु और साधर्मिक की शुश्रूषा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? गुरु और साधर्मिक की शुश्रूषा से जीव विनय – प्रतिपत्ति को प्राप्त होता है। विनयप्रतिपन्न व्यक्ति गुरु की परिवादादिरूप आशातना नहीं करता। उससे वह नैरयिक, तिर्यग्‌, मनुष्य और देव सम्बन्धी दुर्गति का निरोध करता है। वर्ण, संज्वलन, भक्ति और बहुमान
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 738 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भायरो मे महाराय! सगा जेट्ठकनिट्ठगा । न य दुक्खा विमोयंति एसा मज्झ अनाहया ॥

Translated Sutra: महाराज ! मेरे बड़े और छोटे सभी सगे भाई तथा मेरी बड़ी और छोटी सगी बहनें भी मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी, यह मेरी अनाथता है। सूत्र – ७३८, ७३९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 740 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भारिया मे महाराय! अनुरत्ता अणुव्वया । अंसुपुन्नेहिं नयनेहिं उरं मे परिसिंचई ॥

Translated Sutra: महाराज ! मुझ में अनुरक्त और अनुव्रत मेरी पत्नी अश्रुपूर्ण नयनों से मेर उरःस्थल को भिगोती रहती थी। वह बाला मेरे प्रत्यक्ष में या परोक्ष में कभी भी अन्न, पान, स्नान, गन्ध, माल्य और विलेपन का उपभोग नहीं करती थी। वह एक क्षण के लिए भी मुझसे दूर नहीं होती थी। फिर भी वह मुझे दुःख से मुक्त नहीं कर सकी। महाराज! यही मेरी
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 747 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ततो हं नाहो जाओ अप्पणो य परस्स य । सव्वेसिं चेव भूयाणं तसाण थावराण य ॥

Translated Sutra: तब मैं अपना और दूसरों का, त्रस और स्थावर सभी जीवों का नाथ हो गया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 761 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नरट्ठिया नग्गरुई उ तस्स जे उत्तमट्ठं विवज्जासमेई । इमे वि से नत्थि परे वि लोए दुहओ वि से ज्झिज्जइ तत्थ लोए ॥

Translated Sutra: जो उत्तमार्थमें विपरीत दृष्टि रखता है, उसकी श्रामण्य में अभिरुचि व्यर्थ है। उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है। दोनों लोक के प्रयोजन से शून्य होने के कारण वह उभय – भ्रष्ट भिक्षु निरन्तर चिन्ता में धुलता जाता है
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय

Hindi 771 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ऊससियरोमकूवो काऊण य पयाहिणं । अभिवंदऊण सिरसा अइयाओ नराहिवो ॥

Translated Sutra: राजा के रोमकूप आनन्द से उच्छ्‌वसित – उल्लसित हो रहे थे। वह मुनि की प्रदक्षिणा और सिर से वन्दना करके लौट गया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 777 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खेमेण आगए चंपं सावए वाणिए घरं । संवड्ढई घरे तस्स दारए से सुहोइए ॥

Translated Sutra: वह वणिक्‌ श्रावक सकुशल चम्पा नगरी में अपने घर आया। वह सुकुमार बालक उसके घर में आनन्द के साथ बढ़ने लगा। उसने बहत्तर कलाऍं सीखीं, वह नीति – निपुण हो गया। वह युवावस्था से सम्पन्न हुआ तो सभी को सुन्दर और प्रिय लगने लगा। पिता ने उसके लिए ‘रूपिणी’ नाम की सुन्दर भार्या ला दी। वह अपनी पत्नी के साथ दोगुन्दक देव की भाँति
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 783 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहित्तु संगं च महाकिलेसं महंतमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चभिरोयएज्जा वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥

Translated Sutra: दीक्षित होने पर मुनि महा क्लेशकारी, महामोह और पूर्ण भयकारी संग का परित्याग करके पर्यायधर्म में, व्रत में, शील में और परीषहों में अभिरुचि रखे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 787 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थभिरोयएज्जा न यावि पूयं गरहं च संजए ॥

Translated Sutra: संयमी प्रतिकूलताओं की उपेक्षा करता हुआ विचरण करे। प्रिय – अप्रिय परीषहों को सहन करे। सर्वत्र सबकी अभिलाषा न करे, पूजा और गर्हा भी न चाहे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 788 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनेगछंदा इह मानवेहिं जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा दिव्वा मनुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥

Translated Sutra: यहाँ संसार में मनुष्यों के अनेक प्रकार के अभिप्राय होते हैं। भिक्षु उन्हें अपने में भी भाव से जानता है। अतः वह देवकृत, मनुष्यकृत तथा तिर्यंचकृत भयोत्पादक भीषण उपसर्गों को सहन करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 817 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मनपरिणामे य कए देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्वड्ढीए सपरिसा निक्खमणं तस्स काउं जे ॥

Translated Sutra: मन में ये परिणाम होते ही उनके यथोचित अभिनिष्क्रमण के लिए देवता अपनी ऋद्धि और परिषद्‌ के साथ आए। देव और मनुष्यों से परिवृत्त भगवान्‌ अरिष्टनेमि शिबिकारत्न में आरूढ़ हुए। द्वारका से चलकर रैवतक पर्वत पर स्थित हुए। उद्यान में पहुँचकर, उत्तम शिबिका से उतरकर, एक हजार व्यक्तियों के साथ, भगवान ने चित्रा नक्षत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 821 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइंदियं । इच्छियमनोरहे तुरियं पावेसू तं दमीसरा! ॥

Translated Sutra: वासुदेव कृष्ण ने लुप्तकेश एवं जितेन्द्रिय भगवान्‌ को कहा – हे दमीश्वर ! आप अपने अभीष्ट मनोरथ को शीघ्र प्राप्त करो। आप ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षान्ति और मुक्ति के द्वारा आगे बढ़ो।इस प्रकार बलराम, केशव, दशार्ह यादव और अन्य बहुत से लोग अरिष्टनेमि को वन्दना कर द्वारकापुरी को लौट आए। सूत्र – ८२१–८२३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 832 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सो वि रायपुत्तो समुद्दविजयंगओ । भीयं पवेवियं दट्ठुं इमं वक्कं उदाहरे ॥

Translated Sutra: तब समुद्रविजय के अंगजात उस राजपुत्र ने राजीमती को भयभीत और काँपती हुई देखकर वचन कहा – भद्रे ! मैं रथनेमि हूँ। हे सुन्दरी ! हे चारुभाषिणी ! तू मुझे स्वीकार कर। हे सुतनु ! तुझे कोई पीड़ा नहीं होगी। निश्चित ही मनुष्य – जन्म अत्यन्त दुर्लभ है। आओ, हम भोगों को भोगे। बाद में भुक्तभोगी हम जिन – मार्ग में दीक्षत होंगे। सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 899 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कसाया अग्गिणो वुत्ता सुयसीलतवो जलं । सुयधाराभिहया संता भिन्ना हु न डहंति मे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८९८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 908 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मग्गे य इइ के वुत्ते? केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: मार्ग किसे कहते हैं ? केशी ने गौतम को कहा। गौतम ने कहा – मिथ्या प्रवचन को मानने वाले सभी पाखण्डी लोग उन्मार्ग पर चलते हैं। सन्मार्ग तो जिनोपदिष्ट है, और वही उत्तम मार्ग है। सूत्र – ९०८, ९०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२३ केशी गौतम

Hindi 932 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु संसए छिन्ने केसी घोरपरक्कमे । अभिवंदित्ता सिरसा गोयमं तु महायसं ॥

Translated Sutra: इस प्रकार संशय के दूर होने पर घोर पराक्रमी केशीकुमार, महान्‌ यशस्वी गौतम को वन्दना कर – प्रथम और अन्तिम जिनों के द्वारा उपदिष्ट एवं सुखावह पंचमहाव्रतरूप धर्म के मार्ग में भाव से प्रविष्ट हुए। सूत्र – ९३२, ९३३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 961 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाओ पंच समिईओ चरणस्स य पवत्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता असुभत्थेसु सव्वसो ॥

Translated Sutra: ये पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं। और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ विषयों से निवृत्ति के लिए हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 980 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अजाणगा जण्णवाई विज्जामाहणसंपया । गूढा सज्झायतवसा भासच्छन्ना इवग्गिणो ॥

Translated Sutra: विद्या ब्राह्मण की सम्पदा है, यज्ञवादी इस से अनभिज्ञ हैं, वे बाहरमें स्वाध्याय और तप से वैसे ही आच्छादित हैं, जैसे कि अग्नि राख से ढँकी हुई होती है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1091 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निसग्गुवएसरुई आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई किरियासंखेवधम्मरुई ॥

Translated Sutra: सम्यक्त्व के दस प्रकार हैं – निसर्ग – रुचि, उपदेश – रुचि, आज्ञा – रुचि, सूत्र – रुचि, बीज – रुचि, अभिगम – रुचि, विस्तार – रुचि, क्रिया – रुचि, संक्षेप – रुचि और धर्म – रुचि।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1351 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ से जायंति पओयणाइं निमज्जिउं मोहमहण्णवंमि । सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ॥

Translated Sutra: विकारों के होने के बाद मोहरूपी महासागर में डुबाने के लिए विषयासेवन एवं हिंसादि अनेक प्रयोजन उपस्थित होते हैं। तब वह सुखाभिलाषी रागी व्यक्ति दुःख से मुक्त होने के लिए प्रयत्न करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1352 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विरज्जमाणस्स य इंदियत्था सद्दाइया तावइयप्पगारा । न तस्स सव्वे वि मणुन्नयं वा निव्वत्तयंती अमणुन्नयं वा ॥

Translated Sutra: इन्द्रियों के जितने भी शब्दादि विषय हैं, वे सभी विरक्त व्यक्ति के मन में मनोज्ञता अथवा अमनोज्ञता उत्पन्न नहीं करते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 1001 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न कज्जं मज्झ भिक्खेण खिप्पं निक्खमसू दिया! । मा भमिहिसि भयावट्टे घोरे संसारसागरे ॥

Translated Sutra: मुझे भिक्षा से कोई प्रयोजन नहीं है। हे द्विज ! शीघ्र ही अभिनिष्क्रमण कर। ताकि भय के आवर्तों वाले संसार सागर में तुझे भ्रमण न करना पड़े।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1014 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विल्लंमि चउब्भाए आइच्चंमि समुट्ठिए । भंडयं पडिलेहित्ता वंदित्ता य तओ गुरु ॥

Translated Sutra: सूर्योदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में उपकरणों का प्रतिलेखन कर गुरु को वन्दना कर हाथ जोड़कर पूछें कि – अब मुझे क्या करना चाहिए ? भन्ते ! मैं चाहता हूँ, मुझे आप आज स्वाध्याय में नियुक्त करते हैं, अथवा वैयावृत्य मैं। वैयावृत्य में नियुक्त किए जाने पर ग्लानि से रहित होकर सेवा करे। अथवा सभी दुःखों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२६ सामाचारी

Hindi 1042 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चउत्थीए पोरिसीए निक्खिवित्ताण भायणं । सज्झायं तओ कुज्जा सव्वभावविभावणं ॥

Translated Sutra: चतुर्थ प्रहर में प्रतिलेखना कर सभी पात्रों को बाँध कर रख दे। उसके बाद जीवादि सब भावों का प्रकाशक स्वाध्याय करे। पौरुषी के चौथे भाग में गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण कर शय्या का प्रतिलेखन करे। सूत्र – १०४२, १०४३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1066 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खलुंका जारिसा जोज्जा दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणंमि भज्जंति धिइदुब्बला ॥

Translated Sutra: अयोग्य बैल जैसे वाहन को तोड़ देता है, वैसे ही धैर्य में कमजोर शिष्यों को धर्म – यान में जोतने पर वे भी उसे तोड़ देते हैं। कोई ऋद्धि – का गौरव करता है, कोई रस का गौरव करता है, कोई सुख का गौरव करता है, तो कोई चिरकाल तक क्रोध करता है। कोई भिक्षाचरी में आलस्य करता है, कोई अपमान से डरता है, तो कोई स्तब्ध है। हेतु और कारणों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२७ खलुंकीय

Hindi 1068 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भिक्खालसिए एगे एगे ओमाणभीरुए थद्धे । एगं च अनुसासंमि हेऊहिं कारणेहि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०६६
Showing 5601 to 5650 of 5897 Results