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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 81 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नच्चा उप्पइयं दुक्खं वेयणाए दुहट्टिए । अदीनो थावए पन्नं पुट्ठो तत्थहियासए ॥

Translated Sutra: ‘कर्मों के उदय से रोग उत्पन्न होता है’ – ऐसा जानकर वेदना से पीड़ित होने पर दीन न बने। व्याधि से विचलित प्रज्ञा को स्थिर बनाए और प्राप्त पीड़ा को समभाव से सहे। आत्मगवेषक मुनि चिकित्सा का अभिनन्दन न करे, समाधिपूर्वक रहे। यही उसका श्रामण्य है कि वह रोग उत्पन्न होने पर चिकित्सा न करे, न कराए। सूत्र – ८१, ८२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 82 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तेगिच्छं नाभिनंदेज्जा संचिक्खत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामण्णं जं न कुज्जा न कारवे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 87 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अभिवायणमब्भुट्ठाणं सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताइं पडिसेवंति न तेसिं पीहए मुनी ॥

Translated Sutra: राजा आदि द्वारा किए गए अभिवादन, सत्कार एवं निमन्त्रण को जो अन्य भिक्षु स्वीकार करते हैं, मुनि उनकी स्पृहा न करे। अनुत्कर्ष, अल्प इच्छावाला, अज्ञात कुलों से भिक्षा लेनेवाला अलोलुप भिक्षु रसों में गृद्ध – आसक्त न हो। प्रज्ञावान्‌ दूसरों को सम्मान पाते देख अनुताप न करे। सूत्र – ८७, ८८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 89 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से नूनं मए पुव्वं कम्माणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥

Translated Sutra: ‘‘निश्चय ही मैंने पूर्व काल में अज्ञानरूप फल देनेवाले अपकर्म किए हैं, जिससे मैं किसी के द्वारा किसी विषय में पूछे जाने पर कुछ भी उत्तर देना नहीं जानता हूँ।’’ ‘अज्ञानरूप फल देने वाले पूर्वकृत कर्म परिपक्व होने पर उदय में आते हैं’ – इस प्रकार कर्म के विपाक को जानकर मुनि अपने को आश्वस्त करे। सूत्र – ८९, ९०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 91 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निरट्ठगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवुडो । जो सक्खं नाभिजाणामि धम्मं कल्लाण पावगं ॥

Translated Sutra: ‘‘मैं व्यर्थ में ही मैथुनादि सांसारिक सुखों से विरक्त हुआ, इन्द्रिय और मन का संवरण किया। क्योंकि धर्म कल्याण – कारी है या पापकारी है, यह मैं प्रत्यक्ष तो कुछ देख पाता नहीं हूँ – ’’ ऐसा मुनि न सोचे। ‘‘तप और उपधान को स्वीकार करता हूँ, प्रतिमाओं का भी पालन कर रहा हूँ, इस प्रकार विशिष्ट साधनापथ पर विहरण करने पर भी
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Hindi 95 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए परीसहा सव्वे कासवेण पवेइया । जे भिक्खू न विहन्नेज्जा पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: कश्यप – गोत्रीय भगवान्‌ महावीर ने इन सभी परीषहों का प्ररूपण किया है। इन्हें जानकर कहीं भी किसी भी परीषह से स्पृष्ट – आक्रान्त होने पर भिक्षु इनसे पराजित न हो। – ऐसा में कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 98 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगया देवलोएसु नरएसु वि एगया । एगया आसुरं कायं आहाकम्मेहिं गच्छई ॥

Translated Sutra: अपने कृत कर्मों के अनुसार जीव कभी देवलोक में, कभी नरक में और कभी असुर निकाय में जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 99 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगया खत्तिओ होइ तओ चंडाल बोक्कसो । तओ कीड-पयंगो य तओ कुंथु-पिवीलिया ॥

Translated Sutra: यह जीव कभी क्षत्रिय, कभी चाण्डाल, कभी बुक्कस, कभी कुंथु और कभी चींटी होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 105 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुइं च लद्धुं सद्धं च वीरियं पुन दुल्लहं । बहवे रोयमाणा वि नो एणं पडिवज्जए ॥

Translated Sutra: श्रुति और श्रद्धा प्राप्त करके भी संयम में पुरुषार्थ होना अत्यन्त दुर्लभ है। बहुत से लोग संयम में अभिरुचि रखते हुए भी उसे सम्यक्तया स्वीकार नहीं कर पाते।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चातुरंगीय

Hindi 113 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मित्तवं नायवं होइ उच्चागोए य वण्णवं । अप्पायंके महापन्ने अभिजाए जसोबले ॥

Translated Sutra: वे सन्मित्रों से युक्त, ज्ञातिमान्‌, उच्च गोत्रवाले, सुन्दर वर्णवाले, नीरोग, महाप्राज्ञ, अभिजात, यशस्वी और बलवान होते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 124 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] स पुव्वमेवं न लभेज्ज पच्छा एसोवमा सासयवाइयाणं । विसीयई सिढिले आउयंमि कालोवणीए सरीरस्स भेए ॥

Translated Sutra: ‘जो पूर्व जीवन में अप्रमत्त नहीं रहता, वह बाद में भी अप्रमत्त नहीं हो पाता है’ यह ज्ञानी जनों की धारणा है। ‘अभी क्या है, बाद में अन्तिम समय अप्रमत्त हो जाऐंगे’ यह शाश्वतवादियों की मिथ्या धारणा है। पूर्व जीवन में प्रमत्त रहनेवाला व्यक्ति, आयु के शिथिल होने पर मृत्यु के समय, शरीर छूटने की स्थिति आने पर विषाद पाता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ असंखयं

Hindi 125 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे । समिच्च लोयं समया महेसी अप्पाणरक्खी चरमप्पमत्तो ॥

Translated Sutra: कोई भी तत्काल विवेक को प्राप्त नहीं कर सकता। अतः अभी से कामनाओं का परित्याग कर, सन्मार्ग में उपस्थित होकर, समत्व दृष्टि से लोक को अच्छी तरह जानकर आत्मरक्षक महर्षि अप्रमत्त होकर विचरे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 135 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जनेन सद्धिं होक्खामि इइ बाले पगब्भई । काम-भोगानुराएणं केसं संपडिवज्जई ॥

Translated Sutra: ‘‘मैं तो आम लोगों के साथ रहूँगा। ऐसा मानकर अज्ञानी मनुष्य भ्रष्ट हो जाता है। किन्तु वह कामभोग के अनुराग से कष्ट ही पाता है। फिर वह त्रस एवं स्थावर जीवों के प्रति दण्ड का प्रयोग करता है। प्रयोजन से अथवा निष्प्रयोजन ही प्राणीसमूह की हिंसा करता है। जो हिंसक, बाल – अज्ञानी, मृषावादी, मायावी, चुगलखोर तथा शठ होता
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 139 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ पुट्ठो आयंकेणं गिलाणो परितप्पई । पभीओ परलोगस्स कम्मानुप्पेहि अप्पणो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १३५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 146 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मरणं पि सपुण्णाणं जहा मेयमनुस्सुयं । विप्पसण्णमणाघायं संजयाण वुसीमओ ॥

Translated Sutra: जैसा कि मैंने परम्परा से सुना है कि – संयत और जितेन्द्रिय पुण्यात्माओं का मरण अतिप्रसन्न और आघातरहित होता है। यह सकाम मरण न सभी भिक्षुओं को प्राप्त होता है और न सभी गृहस्थों को। गृहस्थ नाना प्रकार के शीलों से सम्पन्न होते हैं, जब कि बहुत से भिक्षु भी विषम – शीलवाले होते हैं। सूत्र – १४६, १४७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 148 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संति एगेहिं भिक्खूहिं गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थेहि य सव्वेहिं साहवो संजमुत्तरा ॥

Translated Sutra: कुछ भिक्षुओं की अपेक्षा गृहस्थ संयम में श्रेष्ठ होते हैं। किन्तु शुद्धाचारी साधुजन सभी गृहस्थों से संयम में श्रेष्ठ हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 151 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अगारि-सामाइयंगाइं सड्ढी काएण फासए । पोसहं दुहओ पक्खं एगरायं न हावए ॥

Translated Sutra: श्रद्धावान्‌ गृहस्थ सामायिक साधना के सभी अंगों का काया से स्पर्श करे, कृष्ण और शुक्ल पक्षों में पौषध व्रत को एक रात्रि के लिए भी न छोड़े। इस प्रकार धर्मशिक्षा से सम्पन्न सुव्रती गृहवास में रहता हुआ भी मानवीय औदारिक शरीर को छोड़कर देवलोक में जाता है। सूत्र – १५१, १५२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 154 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उत्तराइं विमोहाइं जुइमंतानुपुव्वसो । समाइण्णाइं जक्खेहिं आवासाइं जसंसिणो ॥

Translated Sutra: देवताओं के आवास अनुक्रम से ऊर्ध्व, मोहरहित, द्युतिमान्‌ तथा देवों से परिव्याप्त होते हैं। उनमें रहने वाले देव यशस्वी – दीर्घायु, ऋद्धिमान्‌, दीप्तिमान्‌, इच्छानुसार रूप धारण करनेवाले और अभी – अभी उत्पन्न हुए हों, ऐसी भव्य कांति वाले एवं सूर्य के समान अत्यन्त तेजस्वी होते हैं। सूत्र – १५४, १५५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ अकाममरणिज्जं

Hindi 159 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तओ काले अभिप्पेए सड्ढी तालिसमंतिए । विनएज्ज लोमहरिसं भेयं देहस्स कंखए ॥

Translated Sutra: जब मरण – काल आए, तो जिस श्रद्धा से प्रव्रज्या स्वीकार की थी, तदनुसार ही भिक्षु गुरु के समीप पीडाजन्य लोमहर्ष को दूर करे तथा शान्तिभाव से शरीर के भेद की प्रतीक्षा करे। मृत्यु का समय आने पर मुनि भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और प्रायोपगमन में से किसी एक को स्वीकार कर सकाम मरण से शरीर को छोड़ता है। – ऐसा मैं कहता हू सूत्र –
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 163 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माया पिया ण्हुसा भाया भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते मम ताणाय लुप्पंतस्स सकम्मुणा ॥

Translated Sutra: अपने ही कृत कर्मों से लुप्त मेरी रक्षा करने में माता – पिता, पुत्रवधू, भाई, पत्नी तथा औरस पुत्र समर्थ नहीं हैं। सम्यक्‌ द्रष्टा साधक अपनी स्वतंत्र बुद्धि से इस अर्थ की सत्यता को देखे। आसक्ति तथा स्नेह का छेदन करे। किसी के पूर्व परिचय की भी अभिलाषा न करे। सूत्र – १६३, १६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 167 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अज्झत्थं सव्वओ सव्वं दिस्स पाणे पियायए । न हणे पाणिणो पाणे भयवेराओ उवरए ॥

Translated Sutra: ‘सबको सब तरह से सुख प्रिय है, सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है’ – यह जानकर भय और वैर से उपरत साधक किसी भी प्राणी की हिंसा न करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 172 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे केइ सरीरे सत्ता वन्ने रूवे य सव्वसो । मनसा कायवक्केणं सव्वे ते दुक्खसंभवा ॥

Translated Sutra: जो मन, वचन और काया से शरीर में, शरीर के वर्ण और रूप में सर्वथा आसक्त हैं, वे सभी अपने लिए दुःख उत्पन्न करते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 174 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहिया उड्ढमादाय नावकंखे कयाइ वि । पुव्वकम्मखयट्ठाए इमं देहं समुद्धरे ॥

Translated Sutra: मुक्ति का लक्ष्य रखनेवाला साधक कभी भी बाह्य विषयों की आकांक्षा न करे। पूर्व कर्मों के क्षय के लिए ही इस शरीर को धारण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ क्षुल्लक निर्ग्रंथत्व

Hindi 177 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एसणासमिओ लज्जू गामे अनियओ चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहिं पिंडवायं गवेसए ॥

Translated Sutra: एषणा समिति से युक्त लज्जावान्‌ संयमी मुनि गांवों में अनियत विहार करे, अप्रमत्त रहकर गृहस्थों से पिण्डपातभिक्षा की गवेषणा करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 210 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विजहित्तु पुव्वसंजोगं न सिणेहं कहिंचि कुव्वेज्जा । असिनेह सिनेहकरेहिं दोसपओसेहिं मुच्चए भिक्खू ॥

Translated Sutra: पूर्व सम्बन्धों को एक बार छोड़कर फिर किसी पर भी स्नेह न करे। स्नेह करनेवालों के साथ भी स्नेह न करनेवाला भिक्षु सभी प्रकार के दोषों और प्रदोषों से मुक्त हो जाता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 211 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तो नाणदंसणसमग्गो हियनिस्सेसाए सव्वजीवाणं । तेसिं विमोक्खणट्ठाए भासई मुनिवरो विगयमोहो ॥

Translated Sutra: केवलज्ञान और केवलदर्शन से सम्पन्न तथा मोहमुक्त कपिल मुनिने सब जीवों के हित और कल्याण के लिए तथा मुक्ति के लिए कहा – मुनि कर्मबन्धन के हेतुस्वरूप सभी प्रकार के ग्रन्थ तथा कलह का त्याग करे। काम भोगों के सब प्रकारों दोष देखता हुआ आत्मरक्षक मुनि उनमें लिप्त न हो। आसक्तिजनक आमिषरूप भोगों में निमग्न, हित और निश्रेयस
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 216 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न हु पाणवहं अनुजाने मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवारिएहिं अक्खायं जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो ॥

Translated Sutra: जिन्होंने साधु धर्म की प्ररूपणा की है, उन आर्य पुरुषों ने कहा है – ‘‘जो प्राणवध का अनुमोदन करता है, वह कभी भी सब दुःखों से मुक्त नहीं होता।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८ कापिलिय

Hindi 224 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कसिणं पि जो इमं लोयं पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स । तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया ॥

Translated Sutra:
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 229 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चइऊण देवलोगाओ उववन्नो मानुसंमि लोगंमि । उवसंतमोहणिज्जो सरई पोराणियं जाइं ॥

Translated Sutra: देवलोक से आकर नमि के जीवने मनुष्य लोक में जन्म लिया। उसका मोह उपशान्त हुआ, तो उसे पूर्वजन्म का स्मरण हुआ। स्मरण करके अनुत्तर धर्म में स्वयं संबुद्ध बने। राज्य का भार पुत्र को सौंपकर उन्होंने अभिनिष्क्रमण किया। सूत्र – २२९, २३०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 230 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जाइं सरित्तु भयवं सहसंबुद्धो अनुत्तरे धम्मे । पुत्तं ठवेत्तु रज्जे अभिनिक्खमई नमी राया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २२९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 232 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मिहिलं सपुरजनवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं । चिच्चा अभिनिक्खंतो एगंतमहिट्ठिओ भयवं ॥

Translated Sutra: भगवान्‌ नमि ने पुर और जनपदसहित अपनी राजधानी मिथिला, सेना, अन्तःपुर और समग्र परिजनों को छोड़कर अभिनिष्क्रमण किया और एकान्तवासी बने।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 233 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोलाहलगभूयं आसी मिहिलाए पव्वयंतंमि । तइया रायरिसिंमि नमिंमि अभिनिक्खमंतंमि ॥

Translated Sutra: जिस समय राजर्षि नमि अभिनिष्क्रमण कर प्रव्रजित हो रहे थे, उस समय मिथिला में बहुत कोलाहल हुआ था।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 259 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमिं रायरिसिं देविंदो इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित देवेन्द्रने कहा – ‘‘हे क्षत्रिय ! जो राजा अभी तुम्हें नमते नहीं हैं, पहले उन्हें अपने वश में करके फिर जाना।’’ सूत्र – २५९, २६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 261 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयमट्ठं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ । तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: इस अर्थ को सुनकर, हेतु और कारण से प्रेरित नमि राजर्षिने कहा – ‘‘जो दुर्जय संग्राम में दस लाख योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा जो एक अपने को जीतता है, उसकी विजय ही परम विजय है – बाहर के युद्धों से क्या ? स्वयं अपने से ही युद्ध करो। अपने से अपने को जीतकर ही सच्चा सुख प्राप्त होता है – पाँच इन्द्रियाँ, क्रोध, मान, माया,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 283 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवउज्झिऊण माहणरूवं विउव्विऊण इंदत्तं । वंदइ अभित्थुणंतो इमाहि महुराहिं वग्गूहिं ॥

Translated Sutra: देवेन्द्र ब्राह्मण का रूप छोड़कर, अपने वास्तविक इन्द्रस्वरूप को प्रकट करके मधुर वाणी से स्तुति करता हुआ नमि राजर्षि को वन्दना करता है – ‘‘अहो, आश्चर्य है – तुमने क्रोध को जीता। मान को पराजित किया। माया को निराकृत किया। लोभ को वश में किया। अहो ! उत्तम है तुम्हारी सरलता। उत्तम है तुम्हारी मृदुता। उत्तम है तुम्हारी
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-९ नमिप्रवज्या

Hindi 287 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं अभित्थुणंतो रायरिसिं उत्तमाए सद्धाए । पयाहिणं करेंतो पुणो पुणो वंदई सक्को ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २८३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 318 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वोछिंद सिनेहमप्पणो कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिनेहवज्जिए समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: जैसे शरद – कालीन कुमुद पानी से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार तू भी अपना सभी प्रकार का स्नेह का त्याग कर, गौतम ! इसमें तू समय मात्र भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१० द्रुमपत्रक

Hindi 324 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नो हु सि अन्नवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ । अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम! मा पमायए ॥

Translated Sutra: हे गौतम ! तू महासागर को तो पार कर गया है, अब तीर के निकट पहुँच कर क्यों खड़ा है ? उसको पार करने में जल्दी कर। गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 380 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवाभिओगेण निओइएणं दिन्ना मु रन्ना मनसा न ज्झाया । नरिंददेविंदऽभिवंदिएणं जेणम्हि वंता इसिणा स एसो ॥

Translated Sutra: भद्रा – देवता की बलवती प्रेरणा से राजा ने मुझे इस मुनि को दिया था, किन्तु मुनि ने मुझे मन से भी नहीं चाहा। मेरा परित्याग करने वाले यह ऋषि नरेन्द्रों और देवेन्द्रों से भी पूजित हैं। ये वही उग्र तपस्वी, महात्मा, जितेन्द्रिय, संयम और ब्रह्मचारी हैं, जिन्होंने स्वयं मेरे पिता राजा कौशलिक के द्वारा मुझे दिये जाने
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१२ हरिकेशीय

Hindi 389 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ते पासिया खंडिय कट्ठभूए विमनो विसण्णो अह माहणो सो । इसिं पसाएइ सभारियाओ हीलं च निंदं च खमाह भंते! ॥

Translated Sutra: इस प्रकार छात्रों को काठ की तरह निश्चेष्ट देखकर वह उदास और भयभीत ब्राह्मण अपनी पत्नी को साथ लेकर मुनि को प्रसन्न करने लगा – भन्ते ! हमने तथा मूढ़ अज्ञानी बालकों ने आपकी जो अवहेलना की है, आप उन्हें क्षमा करें। ऋषिजन महान्‌ प्रसन्नचित्त होते हैं, अतः वे किसी पर क्रोध नहीं करते हैं। सूत्र – ३८९, ३९०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 423 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बालाभिरामेसु दुहावहेसु न तं सुहं कामगुणेसु रायं! । विरत्तकामाण तवोधनाणं जं भिक्खुणं सीलगुणे रयाणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४२२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 424 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नरिंद! जाई अहमा नराणं सोवागजाई दुहओ गयाणं । जहिं वयं सव्वजणस्स वेस्सा वसीय सोवागनिवेसनेसु ॥

Translated Sutra: ‘‘हे नरेन्द्र ! मनुष्यों में जो चाण्डाल जाति अधम जाती मानी जाती है, उसमें हम दोनों उत्पन्न हो चुके हैं, चाण्डालों की बस्ती में हम दोनों रहते थे, जहाँ सभी लोग हमसे द्वेष करते थे। उस जाति में हमने जन्म लिया था और वहीं हम दोनों रहे थे। तब सभी हमसे धृणा करते थे। अतः यहाँ जो श्रेष्ठता प्राप्त है, वह पूर्व जन्म के शुभ
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Hindi 426 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो दानि सिं राय! महानुभागो महिड्ढिओ पुण्णफलोववेओ । चइत्तु भोगाइं असासयाइं आयाणहेउं अभिनिक्खमाहि ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४२४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 445 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जाईजरामच्चुभयाभिभूया बहिंविहाराभिनिविट्ठचित्ता । संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा दट्ठूण ते कामगुणे विरत्ता ॥

Translated Sutra: जन्म, जरा और मरण के भय से अभिभूत कुमारों का चित्त मुनिदर्शन से मोक्ष की ओर आकृष्ट हुआ, फलतः संसारचक्र से मुक्ति पाने के लिए वे कामगुणों से विरक्त हुए।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 458 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धनेन किं धम्मधुराहिगारे सयनेण वा कामगुणेहि चेव । समणा भविस्सामु गुणोहधारी बहिंविहारा अभिगम्म भिक्खं ॥

Translated Sutra: पुत्र – जिसे धर्म की धरा को वहन करने का अधिकार प्राप्त है, उसे धन, स्वजन तथा ऐन्द्रियिक विषयों का क्या प्रयोजन ? हम तो गुणसमूह के धारक, अप्रतिबद्धविहारी, शुद्ध भिक्षा ग्रहण करनेवाले श्रमण बनेंगे।’’
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 460 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नो इंदियग्गेज्झ अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो । अज्झत्थहेउं निययस्स बंधो संसारहेउं च वयंति बंधं ॥

Translated Sutra: आत्मा अमूर्त है, अतः वह इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य नहीं है। जो अमूर्त भाव होता है, वह नित्य होता है। आत्मा के आन्तरिक रागादि हेतु ही निश्चित रूप से बन्ध के कारण हैं। बन्ध को ही संसार का हेतु कहा है। जब तक हम धर्म के अनभिज्ञ थे, तब तक मोहवश पाप कर्म करते रहे, आपके द्वारा हम रोके गए और हमारा संरक्षण होता रहा। किन्तु
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 468 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं जस्स वत्थि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि सो हु कंखे सुए सिया ॥

Translated Sutra: ‘‘जिसकी मृत्यु के साथ मैत्री है, जो मृत्यु के आने पर दूर भाग सकता है, अथवा जो यह जानता है कि मैं कभी मरूंगा ही नहीं, वही आने वाले कल की आकांक्षा कर सकता है। हम आज ही राग को दूर करके श्रद्धा से युक्त मुनिधर्म को स्वीकार करेंगे, जिसे पाकर पुनः इस संसार में जन्म नहीं लेना होता है। हमारे लिए कोई भी भोग अभुक्त नहीं है,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 477 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नहेव कुंचा समइक्कमंता तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा । पलेंति पुत्ता य पई य मज्झं ते हं कहं नानुगमिस्समेक्का? ॥

Translated Sutra: पुरोहित – पत्नी – जैसे क्रौंच पक्षी और हंस बहेलियों द्वारा प्रसारित जालों को काटकर आकाश में स्वतन्त्र उड जाते हैं, वैसे ही मेरे पुत्र और पति भी छोड़कर जा रहे हैं। मैं भी क्यों न उनका अनुगमन करूँ ? पुत्र और पत्नी के साथ पुरोहितने भोगों को त्याग कर अभिनिष्क्रमण किया है।यह सुनकर उस कुटुम्ब की प्रचुर और श्रेष्ठ
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 478 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरोहियं तं ससुयं सदारं सीच्चाभिनिक्खम्म पहाय भोए । कुडुंबसारं विउलुत्तमं तं रायं अभिक्खं समुवाय देवी ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४७७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१४ इषुकारीय

Hindi 486 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इमे य बद्धा फंदंति मम हत्थऽज्जमागया । वयं च सत्ता कामेसु भविस्सामो जहा इमे ॥

Translated Sutra: आर्य ! हमारे हस्तगत हुए ये कामभोग, जिन्हें हमने नियन्त्रित समझ रखा है, वस्तुतः क्षणिक है। अभी हम कामनाओं में आसक्त हैं, किन्तु जैसे कि पुरोहित – परिवार बन्धनमुक्त हुआ, वैसे ही हम भी होंगे।
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