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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 478 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा–असंजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धोयं वा, रत्तं वा, घट्ठं वा, मट्ठं वा, संमट्ठं वा, संपधूमियं वा, तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, अबहिया नीहडं, अणत्तट्ठियं, अपरिभुत्तं, अनासेवितं –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडं, बहिया नीहडं, अत्तट्ठियं, परिभुत्तं, आसेवियं–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि किसी वस्त्र के विषय में यह जान जाए कि असंयमी गृहस्थ ने साधु के निमित्त से उसे खरीदा है, धोया है, रंगा है, घिस कर साफ किया है, चिकना या मुलायम बनाया है, संस्कारित किया है, सुवासित किया है और ऐसा वह वस्त्र अभी पुरुषान्तरकृत यावत्‌ दाता द्वारा आसेवित नहीं हुआ है, तो ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-६ पात्रैषणा

उद्देशक-१ Hindi 486 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पाय जाणेज्जा, तं जहा–अलाउपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा– तहप्पगारं पायं– जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, नो बीयं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए पाय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा– अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी यदि पात्र ग्रहण करना चाहे तो जिन पात्रों को जाने वे इस प्रकार हैं – तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र और मिट्टी का पात्र। इन तीनों प्रकार के पात्रों को साधु ग्रहण कर सकता है। जो निर्ग्रन्थ तरुण बलिष्ठ स्वस्थ और स्थिर – सहन वाला है, वह इस प्रकार का एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं। वह साधु, साध्वी
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-६ पात्रैषणा

उद्देशक-१ Gujarati 486 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पाय जाणेज्जा, तं जहा–अलाउपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा– तहप्पगारं पायं– जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, नो बीयं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए पाय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा– अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं

Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી પાત્ર ગ્રહણ કરવા ઇચ્છે તો આ ત્રણ પ્રકારના પાત્ર સ્વીકારે. તુંબ પાત્ર, કાષ્ઠ પાત્ર, માટી પાત્ર. આ પ્રકારનું કોઈ એક પાત્ર તરુણ યાવત્‌ દૃઢ સંઘયણવાળો સાધક રાખે – બીજું નહીં. તે સાધુ અર્ધયોજનથી આગળ પાત્ર લેવા જવાનો મનથી પણ વિચાર ન કરે. સાધુ – સાધ્વી એમ જાણે કે એક સાધર્મિક સાધુને ઉદ્દેશીને પ્રાણી આદિની
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ अनीयश अदि

अध्ययन-८ गजसुकुमाल

Hindi 13 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी छ अनगारा भायरो सहोदरा होत्था–सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम -कुंडलभद्दलया नलकूबरसमाणा। तए णं ते छ अनगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तृतीय वर्ग के आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जंबू ! उस काल, उस समय में द्वारका नगरीमें प्रथम अध्ययनमें किये गये वर्णन के अनुसार यावत्‌ अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान पधारे। उस काल, उस समय भगवान नेमिनाथ के अंतेवासी – शिष्य छ मुनि सहोदर भाई थे। वे समान आकार, त्वचा और समान अवस्थावाले प्रतीत होते
Antkruddashang અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર Ardha-Magadhi

वर्ग-३ अनीयश अदि

अध्ययन-८ गजसुकुमाल

Gujarati 13 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी छ अनगारा भायरो सहोदरा होत्था–सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम -कुंडलभद्दलया नलकूबरसमाणा। तए णं ते छ अनगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं

Translated Sutra: હે ભગવન ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના ત્રીજા વર્ગના અધ્યયન – ૭ નો આ અર્થ કહ્યો છે તો ભગવંત મહાવીરે અધ્યયન – ૮ નો શો અર્થ કહ્યો છે ? નિશ્ચે હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. પ્રથમ અધ્યયનમાં કહ્યા મુજબ યાવત્‌ અરહંત અરિષ્ટનેમિ પધાર્યા. તે કાળે તે સમયે અરિષ્ટનેમિના શિષ્યો છ સાધુઓ સહોદર ભાઈઓ
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 22 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं? लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं–जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिरनुकंपा हया इव उद्दामा गया इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा तुप्पोट्ठा पंडुरपाउरणा जिनाणं अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं उभओकालं आवस्सयस्स उवट्ठंति। से तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं। से तं जाणगसरीर-भवियसरीरवतिरत्तं दव्वावस्सयं। से त्तं नोआगमओ दव्वावस्सयं। से तं दव्वावस्सयं।

Translated Sutra: लोकोत्तरिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो श्रमण के गुणों से रहित हों, छह काय के जीवों के प्रति अनुकम्पा न होने के कारण अश्व की तरह उद्दाम हों, हस्तिवत्‌ निरंकुश हों, स्निग्ध पदार्थों के लेप से अंग – प्रत्यंगों को कोमल, सलौना बनाते हों, शरीर को धोते हों, अथवा केशों का संस्कार करते हों, ओठों को मुलायम रखने के लिए मक्खन
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 22 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउब्भवित्थाकालमहानीलसरिस नीलगुलिय गवल अयसिकुसुमप्पगासा वियसिय सयवत्तमिव पत्तल निम्मल ईसीसियरत्ततंबनयणा गरुलायत उज्जुतुंगणासा ओयविय सिल प्पवाल बिंबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडुर ससिसयल विमल निम्मल संख गोखीर फेण दगरय मुणालिया धव-लदंतसेढी हुयवह निद्धंत धोय तत्त तवणिज्ज रत्ततलतालुजीहा अंजण घण कसिण रुयग रमणिज्ज निद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अद्द चंदनानुलित्तगत्ता ईसीसिलिंध पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाइं सुहुमाइं वत्थाइं पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कंता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के पास अनेक असुरकुमार देव प्रादुर्भुत हुए। काले महा – नीलमणि, नीलमणि, नील की गुटका, भैंसे के सींग तथा अलसी के पुष्प जैसा उसका काला वर्ण तथा दीप्ति थी। उनके नेत्र खिले हुए कमल सदृश थे। नेत्रों की भौहें निर्मल थीं। उनके नेत्रों का वर्ण कुछ – कुछ सफेद, लाल तथा ताम्र जैसा था। उनकी
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 55 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत्‌ सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 377 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य था यावत्‌ (एक) पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के पास थोड़ी दूर पर बहुत से अन्यतीर्थि रहते थे, यथा – कालोदयी, शैलोदाई शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्नपालक, शैलपालक, शंखपालक और सुहस्ती गृहपति। किसी समय सब अन्यतीर्थिक एक स्थान पर आए, एकत्रित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-११ काल Hindi 518 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! एएसिं पलिओवम-सागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? हंता अत्थि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थि णं एएसिं पलिओवमसागरोवमाणं खएति वा अवचएति वा? एवं खलु सुदंसणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। सहसंबवने उज्जाने–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे बले नामं राया होत्था–वण्णओ। तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया वण्णओ जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ। तए णं सा पभावई देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अब्भिंतरओ सचित्तकम्मे, बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे विचित्तउल्लोग-चिल्लियतले मणिरयणपणासियंधयारे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या इन पल्योपम और सागरोपम का क्षय या अपचय होता है ? हाँ, सुदर्शन ! होता है। भगवन्‌ ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे सुदर्शन ! उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था। वहाँ सहस्रा – म्रवन नामक उद्यान था। उस हस्तिनापुर में ‘बल’ नामक राजा था। उस बल राजा की प्रभावती नामकी देवी (पटरानी) थी। उसके हाथ – पैर सुकुमाल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१२ आलभिका Hindi 525 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नामं नगरी होत्था–वण्णओ। संखवने चेइए–वण्णओ। तत्थ णं आलभियाए नगरीए बहवे इसिभद्दपुत्तपामोक्खा समणोवासया परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया अभिगयजीवा-जीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं तेसिं समणोवासयाणं अन्नया कयाइ एगयओ समुवागयाणं सहियाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–देवलोगेसु णं अज्जो! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? तए णं से इसिभद्दपुत्ते समणोवासए देवट्ठिती-गहियट्ठे ते समणोवासए एवं वयासी–देवलोएसु णं अज्जो! देवाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में आलभिका नामकी नगरी थी। वहाँ शंखवन नामक उद्यान था। इस आलभिका नगरी में ऋषिभद्रपुत्र वगैरह बहुत – से श्रमणोपासक रहते थे। वे आढ्य यावत्‌ अपरिभूत थे, जीव और अजीव (आदि तत्त्वों) के ज्ञाता थे, यावत्‌ विचरण करते थे। उस समय एक दिन एक स्थान पर आकर एक साथ एकत्रित होकर बैठे हुए उन श्रमणोपासकों में परस्पर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Hindi 744 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत्‌ वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत्‌ – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-७

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Gujarati 377 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्गलत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નગર હતું. (વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર કરવું). ત્યાં ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. (વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર) યાવત્‌ ત્યાં પૃથ્વીશીલા પટ્ટક હતો. (વર્ણન) તે ગુણશીલ ચૈત્યની થોડે દૂર ઘણા અન્ય – તીર્થિકો રહેતા હતા. તે આ – કાલોદાયી, શૈલોદાયી, શૈવાલોદાયી, ઉદક, નામોદક, નર્મોદક, અન્નપાલક, શૈલપાલક, શંખપાલક, સુહસ્તી
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१२ आलभिका Gujarati 525 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नामं नगरी होत्था–वण्णओ। संखवने चेइए–वण्णओ। तत्थ णं आलभियाए नगरीए बहवे इसिभद्दपुत्तपामोक्खा समणोवासया परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया अभिगयजीवा-जीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं तेसिं समणोवासयाणं अन्नया कयाइ एगयओ समुवागयाणं सहियाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–देवलोगेसु णं अज्जो! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? तए णं से इसिभद्दपुत्ते समणोवासए देवट्ठिती-गहियट्ठे ते समणोवासए एवं वयासी–देवलोएसु णं अज्जो! देवाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨૫. તે કાળે, તે સમયે આલભિકા નામે નગરી હતી. શંખવન ચૈત્ય હતું.(નગરી અને ચૈત્યનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર જાણવું) તે આલભિકા નગરીમાં ઋષિભદ્રપુત્ર પ્રમુખ ઘણા શ્રમણોપાસકો રહેતા હતા. તેઓ આઢ્ય યાવત્‌ અપરિભૂત હતા. જીવાજીવના જ્ઞાતા હતા, યાવત્‌ વિચરતા હતા. ત્યારે તે શ્રાવકો અન્ય કોઈ દિવસે એક સાથે એકત્રિત થઈ બેઠેલા,
Bhagavati ભગવતી સૂત્ર Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-७ केवली Gujarati 744 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई। तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं। तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૪૪. તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહનગર, ગુણશીલ ચૈત્ય, યાવત્‌ પૃથ્વીશિલાપટ્ટક હતો. તે ગુણશીલ ચૈત્યથી કંઈક સમીપ ઘણા અન્યતીર્થિકો રહેતા હતા. તે આ પ્રમાણે છે – કાલોદાયી, શૈલોદાયી૦ આદિ શતક – ૭ – માં અન્યતીર્થિકોદ્દેશકમાં કહ્યા મુજબ છે યાવત્‌ અન્યતીર્થિકોની તે વાત કેમ માનવી? ત્યાં રાજગૃહ નગરમાં મદ્રુક નામે શ્રાવક
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 46 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे भद्दाए भारियाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहं धनेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूणि वासाणि सद्द-फरिस-रस-गंध-रूवाणि मानुस्सगाइं कामभोगाइं पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं मानुस्सए जम्मजीवियफले तासिं अम्मयाणं, जासिं मन्ने नियगकुच्छिसंभूयाइं थणदुद्ध-लुद्धयाइं

Translated Sutra: धन्य सार्थवाह की भार्या भद्रा एक बार कदाचित्‌ मध्यरात्रि के समय कुटुम्ब सम्बन्धी चिन्ता कर रही थी कि उसे इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ। बहुत वर्षों से मैं धन्य सार्थवाह के साथ, शब्द, स्पर्श, रस, गन्ध और रूप यह पाँचों प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भोगती हुई विचर रही हूँ, परन्तु मैंने एक भी पुत्र या पुत्री
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 56 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं सत्थवाहदारगाणं अन्नया कयाइं एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सन्निविट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–जण्णं देवानुप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्हेहिं एगयओ समेच्चा नित्थरियव्वं ति कट्टु अन्नमन्नमेयारूवं संगारं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ वे सार्थवाहपुत्र किसी समय इकट्ठे हुए एक घर में आए और एक साथ बैठे थे, उस समय उनमें आपस में इस प्रकार वार्तालाप हुआ – ‘हे देवानुप्रिय ! जो भी हमें सुख, दुःख, प्रव्रज्या अथवा विदेश – गमन प्राप्त हो, उस सबका हमें एक दूसरे के साथ ही निर्वाह करना चाहिए।’ इस प्रकार कहकर दोनों ने आपस में इस प्रकार की प्रतिज्ञा
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 57 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन-जाण-वाहणा बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छिड्डिय-पउर-भत्तपाणा चउसट्ठिकलापंडिया चउसट्ठिगणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय- हसिय-भणिय- चेट्ठिय-विलाससंलावुल्लाव- निउण-जुत्तोवयार-कुसला ऊसियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया वि होत्था। बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं

Translated Sutra: उस चम्पा नगरी में देवदत्ता नामक गणिका निवास करती थी। वह समृद्ध थी, वह बहुत भोजन – पान वाली थी। चौंसठ कलाओं में पंडिता थीं। गणिका के चौंसठ गुणों से युक्त थीं। उनतीस प्रकार की विशेष क्रिडाएं करने वाली थी। कामक्रीड़ा के इक्कीस गुणों में कुशल थी। बत्तीस प्रकार के पुरुष के उपचार करने में कुशल थी। उसके सोते हुए
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 76 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे

Translated Sutra: ’भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ ‘हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 87 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनामं जनवए होत्था। तत्थ णं चंपा नामं नयरी होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहन्नगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया। तए णं से अरहन्नगे समणोवासए यावि होत्था–अहिगयजीवाजीवे वण्णओ। तए णं तेसिं अरहन्नगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो-कहा समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणियं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहित्तए ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता

Translated Sutra: उस काल और उस समय में अंग नामक जनपद था। चम्पा नगरी थी। चन्द्रच्छाय अंगराज – अंग देश का राजा था। उस चम्पा नगरी में अर्हन्नक प्रभृति बहुत – से सांयात्रिक नौवणिक रहते थे। वे ऋद्धिसम्पन्न थे और किसी से पराभूत होने वाले नहीं थे। उनके अर्हन्नक श्रमणोपासक भी था, वह जीव – अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता था। वे अर्हन्नक
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Hindi 110 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं मायंदी नाम सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे। तस्स णं भद्दा नामं भारिया। तीसे णं भद्दाए अत्तया दुवे सत्थवाह-दारया होत्था, तं जहा–जिनपालिए य जिनरक्खिए य। तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अम्हे लवणसमुद्दं पोयवहणेणं एक्कारसवाराओ ओगाढा। सव्वत्थ वि य णं लद्धट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुनरवि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण यावत्‌ निर्वाण को प्राप्त भगवान महावीर ने नौवें ज्ञातअध्ययन का क्या अर्थ प्ररूपण किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में चम्पा नगरी थी। कोणिक राजा था। चम्पानगरी के बाहर ईशान – दिक्कोण में पूर्णभद्र चैत्य था। चम्पानगरी में माकन्दी सार्थवाह निवास करता था। वह समृद्धिशाली था। भद्रा उसकी भार्या
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 158 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पन्नरसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सोलसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नामं उज्जाणे होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए तओ माहणा भायरो परिवसंति, तं जहा–सोमे सोमदत्ते सोमभूई–अड्ढा जाव अपरिभूया रिउव्वेय-जउव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय जाव बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिनिट्ठिया। तेसि णं माहणाणं तओ भारियाओ होत्था, तं जहा–नागसिरी भूयसिरी जक्खसिरी–सुकुमालपाणिपायाओ जाव तेसि णं माहणाणं इट्ठाओ,

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने पन्द्रहवें ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो सोलहवे ज्ञात – अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?’ जम्बू ! उस काल, उस समयमें चम्पा नगरी थी। उस चम्पा नगरी से बाहर ईशान दिशा भागमें सुभूमिभाग नामक उद्यान था। उस चम्पानगरीमें तीन ब्राह्मण – बन्धु निवास करते थे। सोम,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 184 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कनगकेऊ नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया यावि होत्था। तए णं तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहेत्तए त्ति

Translated Sutra: ‘भगवन्‌ ! यदि यावत्‌ निर्वाण को प्राप्त जिनेन्द्रदेव श्रमण भगवान महावीर ने सोलहवें ज्ञात अध्ययन का यह पूर्वोक्त० अर्थ कहा है तो सत्रहवें ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ उस काल और उस समय में हस्तिशीर्ष नामक नगर था। (वर्णन) उस नगर में कनककेतु नामक राजा था। (वर्णन) (समझ लेना) उस हस्तिशीर्ष नगर में बहुत – से
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 210 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए चोरसेनावई अन्नया कयाइ विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे सड्ढे। तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अनुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया–अहीना जाव सुरूवा।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ चिलात चोरसेनापति ने एक बार किसी समय विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा कर पाँच सौ चोरों को आमंत्रित किया। फिर स्नान तथा बलिकर्म करके भोजन – मंडप में उन पाँच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का तथा सूरा प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग करने लगा।
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 76 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૬. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ યાવત્‌ સિદ્ધિ ગતિ સંપ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે સાતમા જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો, તો આઠમા જ્ઞાત અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપના મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં મેરુ પર્વતની પશ્ચિમે નિષધ વર્ષધર પર્વતની ઉત્તરે, શીતોદા મહાનદીની દક્ષિણે સુખાવહ વક્ષસ્કાર પર્વતની
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

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Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सोलसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कनगकेऊ नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं हत्थिसीसे नयरे बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया यावि होत्था। तए णं तेसिं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च परिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहेत्तए त्ति

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮૪. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સ્વામીએ જ્ઞાતાધર્મકથાના સોળમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવંતે સતરમાં જ્ઞાતઅધ્યયનનો અર્થ શું કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે હસ્તિશીર્ષ નગર હતું. ત્યાં કનકકેતુ રાજા હતો. તે હસ્તિશીર્ષ નગરમાં ઘણા સાંયાત્રિક નૌવણિક રહેતા હતા. તેઓ ધનાઢ્ય યાવત્‌ ઘણા લોકોથી અપરિભૂત
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

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Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे भद्दाए भारियाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहं धनेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूणि वासाणि सद्द-फरिस-रस-गंध-रूवाणि मानुस्सगाइं कामभोगाइं पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि। तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं मानुस्सए जम्मजीवियफले तासिं अम्मयाणं, जासिं मन्ने नियगकुच्छिसंभूयाइं थणदुद्ध-लुद्धयाइं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૬. ત્યારે તે ભદ્રા ભાર્યાએ અન્ય કોઈ દિવસે મધ્યરાત્રિ કાળ સમયમાં કુટુંબ જાગરિકાથી જાગતા આવા પ્રકારે આધ્યાત્મિક યાવત્‌ સંકલ્પ થયો – હું ધન્ય સાર્થવાહ સાથે ઘણા વર્ષોથી શબ્દ – સ્પર્શ – રસ – ગંધ – રૂપ માનુષ્ય કામભોગોને અનુભવતી વિચરું છું, મેં પુત્ર કે પુત્રીને જન્મ આપ્યો નથી, તે માતાઓ ધન્ય છે યાવત્‌ તે
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

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Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं सत्थवाहदारगाणं अन्नया कयाइं एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सन्निविट्ठाणं इमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–जण्णं देवानुप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पव्वज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्हेहिं एगयओ समेच्चा नित्थरियव्वं ति कट्टु अन्नमन्नमेयारूवं संगारं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૬. ત્યારે તે સાર્થવાહ પુત્રો કોઈ સમયે મળ્યા. એક ઘરમાં આવી સાથે બેઠા અને આવો પરસ્પર વાર્તાલાપ થયો કે – હે દેવાનુપ્રિય ! આપણને જે સુખ, દુઃખ, પ્રવ્રજ્યા, વિદેશગમન પ્રાપ્ત થાય, તેનો આપણે એકબીજા સાથે નિર્વાહ કરવો. એમ વિચારી બંનેએ આવો સંકેત પરસ્પર સ્વીકાર્યો. પછી પોત – પોતાના કાર્યમાં લાગી ગયા. સૂત્ર– ૫૭. તે
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

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Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नामं गणिया परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन-जाण-वाहणा बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छिड्डिय-पउर-भत्तपाणा चउसट्ठिकलापंडिया चउसट्ठिगणियागुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयारकुसला नवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसीभासाविसारया सिंगारागारचारुवेसा संगय-गय- हसिय-भणिय- चेट्ठिय-विलाससंलावुल्लाव- निउण-जुत्तोवयार-कुसला ऊसियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्त-चामर-बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया वि होत्था। बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૬
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

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Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अंगनामं जनवए होत्था। तत्थ णं चंपा नामं नयरी होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए अरहन्नगपामोक्खा बहवे संजत्ता-नावावाणियगा परिवसंति–अड्ढा जाव बहुजनस्स अपरिभूया। तए णं से अरहन्नगे समणोवासए यावि होत्था–अहिगयजीवाजीवे वण्णओ। तए णं तेसिं अरहन्नगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो-कहा समुल्लावे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु अम्हं गणियं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुद्दं पोयवहणेणं ओगाहित्तए ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૭. તે કાળે, તે સમયે અંગ જનપદ હતું, તેમાં ચંપાનગરી હતી. ત્યાં ચંદ્રચ્છાય અંગરાજ હતો. તે ચંપા નગરીમાં અર્હન્નક આદિ ઘણા સાંયાત્રિક નૌવણિક રહેતા હતા. તેઓ સમૃદ્ધ યાવત્‌ અપરિભૂત હતા. તેમાં તે અર્હન્નક નામે શ્રાવક હતો, તે જીવા – જીવ આદિ તત્ત્વનો જ્ઞાતા હતો ઇત્યાદિ શ્રાવકનું વર્ણન કરવું. ત્યાર પછી તે અર્હન્નક
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Gujarati 110 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं मायंदी नाम सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे। तस्स णं भद्दा नामं भारिया। तीसे णं भद्दाए अत्तया दुवे सत्थवाह-दारया होत्था, तं जहा–जिनपालिए य जिनरक्खिए य। तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अम्हे लवणसमुद्दं पोयवहणेणं एक्कारसवाराओ ओगाढा। सव्वत्थ वि य णं लद्धट्ठा कयकज्जा अणहसमग्गा पुनरवि

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૧૦. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ યાવત્‌ નિર્વાણ પ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે આઠમા જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવન્‌ ! શ્રમણ ભગવંતે નવમા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે ચંપાનગરી હતી. પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતું, ત્યાં માકંદી નામે સાર્થવાહ રહેતો હતો. તે ઋદ્ધિમાન હતો. તેને ભદ્રા નામે પત્ની હતી. તે ભદ્રાને
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Gujarati 158 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पन्नरसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सोलसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सुभूमिभागे नामं उज्जाणे होत्था। तत्थ णं चंपाए नयरीए तओ माहणा भायरो परिवसंति, तं जहा–सोमे सोमदत्ते सोमभूई–अड्ढा जाव अपरिभूया रिउव्वेय-जउव्वेय-सामवेय-अथव्वणवेय जाव बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिनिट्ठिया। तेसि णं माहणाणं तओ भारियाओ होत्था, तं जहा–नागसिरी भूयसिरी जक्खसिरी–सुकुमालपाणिपायाओ जाव तेसि णं माहणाणं इट्ठाओ,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૮. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ યાવત્‌ નિર્વાણ પ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે પંદરમાં જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો ભગવન્‌ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે સોળમા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે ચંપા નામે નગરી હતી. તે ચંપાનગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં સુભૂમિભાગ ઉદ્યાન હતો. તે ચંપાનગરીમાં ત્રણ બ્રાહ્મણ ભાઈઓ રહેતા
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Gujarati 210 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए चोरसेनावई अन्नया कयाइ विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे सड्ढे। तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अनुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया–अहीना जाव सुरूवा।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૮
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 121 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो निज्जियसत्तू उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे नवनिहिवई समिद्धकोसे बत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सण्णा हेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह निग्गए

Translated Sutra: राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया – । शत्रुओं को जीता। उसके यहाँ समग्र रत्न उद्‌भूत हुए। नौ निधियाँ प्राप्त हुईं। खजाना समृद्ध था – । बत्तीस हजार राजाओं से अनुगत था। साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र को साध लिया। तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियों ! शीघ्र
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ३ भरतचक्री

Hindi 122 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो अन्नया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अभिजिए णं मए नियगबल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमेणं चुल्ल-हिमवंतगिरिसागरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेयं खलु मे अप्पाणं महयारायाभिसेएणं अभिसिंचावित्तए त्तिकट्टु एवं संपेहेति, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभाए रयणीए फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलुम्मिलियंमि अहपंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर संडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिंमि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव मज्जनघराओ पडिनिक्खमइ,

Translated Sutra: राजा भरत अपने राज्य का दायित्व सम्हाले था। एक दिन उसके मन में ऐसा भाव, उत्पन्न हुआ – मैंने अपना बल, वीर्य, पौरुष एवं पराक्रम द्वारा समस्त भरतक्षेत्र को जीत लिया है। इसलिए अब उचित है, मैं विराट्‌ राज्याभिषेक – समारोह आयोजित करवाऊं, जिसमें मेरा राजतिलक हो। दूसरे दिन राजा भरत, स्नान कर बाहर निकला, पूर्व की ओर मुँह
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 215 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं उड्ढलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सएहिं-सएहिं कूडेहिं सएहिं-सएहिं भवनेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडेंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामानियसाहस्सीहिं एवं तं चेव पुव्ववण्णियं जाव विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: उस काल, उस समय, ऊर्ध्वलोकवास्तव्या – आठ दिक्कुमारिकाओं के, जो अपने कूटों पर, अपने भवनों में, अपने उत्तम प्रासादों में अपने चार हजार सामानिक देवों, यावत्‌ अनेक भवनपति एवं वानव्यन्तर देव – देवियों से संपरिवृत्त, नृत्य, गीत एवं तुमुल वाद्य – ध्वनि के बीच विपुल सुखोपभोग में अभिरत होती हैं।
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 227 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने। से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं,

Translated Sutra: उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित
Jambudwippragnapati जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक

Hindi 240 Sutra Upang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया दसहिं सामानियसाहस्सीहिं, तायत्तीसाए तावत्तीसएहिं चउहिं लोगपालेहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, चत्तालीसाए आयरक्खदेव-साहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे तेहिं साभाविएहिं वेउव्विएहि य वरकमलपइट्ठाणेहिं सुरभिवरवारि-पडिपुण्णेहिं चंदनकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहिं पउमुप्पलपिहाणेहिं करयलसूमालपरिग्गहिएहिं अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं जाव सव्वोदएहिं सव्वमट्टि-याहिं सव्वतुवरेहिं जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं सव्विड्ढीए जाव दुंदुहिनिग्घोसनाइयरवेणं महया-महया तित्थयराभिसेएणं

Translated Sutra: देवेन्द्र अच्युत अपने १०००० सामानिक देवों, ३३ त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापति – देवों तथा ४०००० अंगरक्षक देवों से परिवृत्त होता हुआ स्वाभाविक एवं विकुर्वित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चर्चित गलवे में मोली बाँधे हुए, कमलों एवं उत्पलों
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 83 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आउट्टियाइ पंचिंदिय-धाए मेहुणे य दप्पेणं । सेसेसुक्कोसाभिक्ख-सेवणाईसु तीसुं पि ॥

Translated Sutra: प्राणातिपात, पंचेन्द्रिय का घात, अरुचि या गर्व से मैथुनसेवन, उत्कृष्ट से मृषावाद – अदत्तादान या परिग्रह का सेवन करे इस तरह बार – बार करनेवाले को मूल प्रायश्चित्त।
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 84 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तव-गव्वियाइएसु य मूलुत्तर-दोस-वइयर-गएसु । दंसण-चरित्तवंते चियत्त-किच्चे य सेहे य ॥

Translated Sutra: तप गर्विष्ठ, तप सेवन में असमर्थ, तप की अश्रद्धा करते, मूल – उत्तर गुण में दोष लगानेवाले या भंजक, दर्शन और चारित्र से पतीत दर्शन आदि कर्तव्य को छोड़नेवाला, ऐसा शैक्ष को भी (शैक्ष आदि सर्व को) मूल प्रायश्चित्त आता है।
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 85 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अच्चन्तोसन्नेसु य परलिंग-दुगे य मूलकम्मे य । भिक्खुम्मि य विहिय-तवे ऽनवट्ठ-पारंचियं पत्ते ॥

Translated Sutra: अति अवसन्न, गृहस्थ या अन्यतीर्थिक के भेद को हिंसा आदि कारण से सेवन करनेवाला, स्त्री गर्भ का आदान या विनाश करनेवाला ऐसा साधु – उसे तप बताया गया है ऐसा तप – छेद या मूल, अनवस्थाप्य या पारंचित प्रायश्चित्त उसे अतिक्रमे तो पर्याय छेद, अनवस्थाप्य, पारंचित तप पूरा होने पर उसे मूल प्रायश्चित्त में स्थापना करना। मूल
Jitakalpa जीतकल्प सूत्र Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Hindi 86 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छेएण उ परियाए ऽनवट्ठ-पारंचियावसाणे य । मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८५
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 83 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आउट्टियाइ पंचिंदिय-धाए मेहुणे य दप्पेणं । सेसेसुक्कोसाभिक्ख-सेवणाईसु तीसुं पि ॥

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: મૂલ પ્રાયશ્ચિત્ત અનુવાદ: પ્રાણાતિપાત પંચેન્દ્રિયનો ઘાત, અરૂચિ અથવા ગર્વથી મૈથુન સેવન, ઉત્કૃષ્ટથી મૃષાવાદ, અદત્તાદાન કે પરિગ્રહ સેવન, એકવાર કે વારંવાર કરનારને મૂલ પ્રાયશ્ચિત્ત.
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 84 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तव-गव्वियाइएसु य मूलुत्तर-दोस-वइयर-गएसु । दंसण-चरित्तवंते चियत्त-किच्चे य सेहे य ॥

Translated Sutra: તપગર્વિષ્ઠ હોય, તપ સેવનમાં અસમર્થ હોય અથવા તપની અશ્રદ્ધા કરનારા એવા હોય મુળગુણ અને ઉત્તરગુણમાં દોષ લગાડનારા કે મૂળગુણ અને ઉત્તરગુણના ભંજક હોય, દર્શન અને ચારિત્રથી પતીત હોય કે, દર્શન આદિ કર્તવ્યને છોડનારો એવો હોય, એવા શૈક્ષ આદિ સર્વેને મૂળ પ્રાયશ્ચિત્ત આવે.
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 85 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अच्चन्तोसन्नेसु य परलिंग-दुगे य मूलकम्मे य । भिक्खुम्मि य विहिय-तवे ऽनवट्ठ-पारंचियं पत्ते ॥

Translated Sutra: બે ગાથાનો સંયુક્ત અર્થ બતાવેલ છે અત્યંત અવસન્ન, ગૃહસ્થ કે અન્યતીર્થિકના વેશને, હિંસા આદિ કારણથી સેવતો સ્ત્રી ગર્ભનું આદાન કે વિનાશ કરતો એવો સાધુ તેને જે તપ કહેવાયેલું હોય તેવું કોઈ પણ પ્રાયશ્ચિત્ત જે તપ પ્રાયશ્ચિત્ત હોય, છેદ અથવા મૂલ પ્રાયશ્ચિત્ત હોય, અનવસ્થાપ્ય કે પારાંચિત પ્રાયશ્ચિત્ત હોય. એમાંના કોઈપણ
Jitakalpa જીતકલ્પ સૂત્ર Ardha-Magadhi

मुल प्रायश्चित्तं

Gujarati 86 Gatha Chheda-05A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छेएण उ परियाए ऽनवट्ठ-पारंचियावसाणे य । मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जओ भणियं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૫
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

मनुष्य उद्देशक Hindi 145 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते? गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति... ...एगोरुयदीवे णं दीवे

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत्‌ पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 173 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! विजयस्स देवस्स विजया णाम रायहाणी पन्नत्ता? गोयमा! विजयस्स णं दारस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बीतिवतित्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं विजयस्स देवस्स विजया नाम रायहाणी पन्नत्ता–बारस जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, सत्ततीसं जोयणसहस्साइं नव य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिया परिक्खेवेणं पन्नत्ता। सा णं एगेणं पागारेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता। से णं पागारे सत्तसीसं जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, मुले अद्धतेरस जोयणाइं विक्खंभेणं, मज्झे सक्कोसाइं छ जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पिं तिन्नि सद्धकोसाइं

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! विजयदेव की विजया नामक राजधानी कहाँ है ? गौतम ! विजयद्वार के पूर्व में तीरछे असंख्य द्वीप – समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जंबूद्वीप में बारह हजार योजन जाने पर है जो बारह हजार योजन की लम्बी – चौड़ी है तथा सैंतीस हजार नौ सौ अड़तालीस योजन से कुछ अधिक परिधि है। वह विजया राजधानी चारों ओर से एक प्राकार से
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 165 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ

Translated Sutra: उस वनखण्ड के मध्य में उस – उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल – गोल अथवा कमलवाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह – जगह नहरों वाली दीर्घिकाएं हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएं हैं, जगह – जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, अनेक सरसर पंक्तियाँ और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं। वे स्वच्छ हैं,
Jivajivabhigam जीवाभिगम उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति

द्वीप समुद्र Hindi 168 Sutra Upang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दोदो पगंठगा पन्नत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता। ते णं पासायवडेंसगा चत्तारि जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसितपहसिताविव विविहमनिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिछत्त कलिया तुंगा गगनतलमनुलिहंतसिहरा जालंतररयण पंजरुम्मिलितव्व मणिकनगथूभियागा वियसिय सयवत्तपोंडरीयतिलकरयणद्धचंदचित्ता अंतो बाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा

Translated Sutra: उस विजयद्वार के दोनों तरफ दोनों नैषेधिकाओं में दो प्रकण्ठक हैं। ये चार योजन के लम्बे – चौड़े और दो योजन की मोटाईवाले हैं। ये सर्व वज्ररत्न के हैं, स्वच्छ हैं यावत्‌ प्रतिरूप हैं। इन के ऊपर अलग – अलग प्रासादा – वतंसक हैं। ये प्रासादावतंसक चार योजन के ऊंचे और दो योजन के लम्बे – चौड़े हैं। चारों तरफ से नीकलती हुई
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