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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 90 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स भरहस्स रन्नो सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–केस णं भो! अपत्थियपत्थए दुरंतपंतलक्खणे हीनपुण्णचाउद्दसे हिरिसिरि परिवज्जिए जे णं ममं इमाए एयारूवाए दिव्वाए देवड्ढीए दिव्वाए देवजुईए दिव्वेणं देवानुभावेणं लद्धाए पत्ताए अभिसमन्नागयाए उप्पिं विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासइ।
तए णं तस्स भरहस्स रन्नो इमेयारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मनोगयं संकप्पं समुप्पन्नं जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सन्नज्झिउं पवत्ता यावि होत्था।
तए णं ते देवा सन्नद्धबद्धवम्मियकवया Translated Sutra: राजा भरत को इस रूप में रहते हुए सात दिन रात व्यतीत हो गये तो उस के मन में ऐसा विचार, भाव, संकल्प उत्पन्न हुआ – कौन ऐसा है, जो मेरी दिव्य ऋद्धि तथा दिव्य द्युति की विद्यामानता में भी मेरी सेना पर युग, मूसल एवं मुष्टिका प्रमाण जलधारा द्वारा सात दिन – रात हुए, भारी वर्षा करता जा रहा है। राजा भरत ने मन में ऐसा विचार, भाव | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 124 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया चउदसण्हं रयणाणं नवण्हं महानिहीणं सोलसण्हं देवसाहस्सीणं बत्तीसाए रायसहस्साणं बत्तीसाए उडुकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए जनवयकल्लाणियासहस्साणं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धाणं नाडगसहस्साणं तिण्हं सट्ठीणं सूयसयाणं अट्ठारसण्हं सेणिप्पसेणीणं चउरासीए आससयसहस्साणं चउरासीए दंतिसयसहस्साणं चउरासीए रहसयसहस्साणं छन्नउइए मनुस्स-कोडीणं बावत्तरीए पुरवरसहस्साणं बत्तीसाए जनवयसहस्साणं छन्नउइए गामकोडीणं नवनउइए दोणमुहसहस्साणं अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं चउव्वीसाए कब्बडसहस्साणं चउव्वीसाए मडंब-सहस्साणं वीसाए आगरसहस्साणं सोलसण्हं खेडसहस्साणं चउदसण्हं Translated Sutra: राजा भरत चौदह रत्नों, नौ महानिधियों, १६००० देवताओं, ३२००० राजाओं, ३२००० ऋतुकल्याणि – काओं, ३२००० जनपदकल्याणिकाओं, बत्तीस – बत्तीस पात्रों, अभिनेतव्य क्रमोपक्रमों से अनुबद्ध, ३२००० नाटकों, ३६० सूपकारों, अठारह श्रेणी – प्रश्रेणीजनों, चौरासी लाख घोड़ों, चौरासी लाख हाथियों, चौरासी लाख रथों, छियानवै करोड़ मनुष्यों, | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 129 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महानई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिन्नि य एगून-वीसइभाए जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ।
गंगा महानई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पन्नत्ता। सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा।
गंगा महानई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते–सट्ठिं Translated Sutra: उस पद्मद्रह के पूर्वी तोरण – द्वार से गंगा महानदी निकलती है। वह पर्वत पर पाँच ५०० बहती है, गंगावर्त कूट के पास से वापस मुड़ती है, ५२३ – ३/१९ योजन दक्षिण की ओर बहती है। घड़े के मुँह से निकलते हुए पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक, मोतियों के बने हार के सदृश आकार में वह प्रपात – कुण्ड में गिरती है। उस समय | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 169 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्ढकच्छे नामं विजए पन्नत्ते? गोयमा! वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे दाहिणड्ढकच्छे नामं विजए पन्नत्ते जाव सिज्झंति, तहेव नेयव्वं सव्वं।
कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे उत्तरड्ढकच्छे विजए सिंधुकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते? गोयमा! माल-वंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, उसभकूडस्स पच्चत्थिमेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले नितंबे, एत्थ णं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्ध कच्छ कहाँ है ? गौतम ! वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में है। अवशेष वर्णन पूर्ववत्। जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 228 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पालए देवे सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए जाव वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणित्ता तहेव करेइ।
तस्स णं दिव्वस्स जाणविमानस्स तिदिसिं तओ तिसोवानपडिरूवगा वण्णओ।
तेसि णं पडिरूवगाणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं तोरणे, वण्णओ जाव पडिरूवा।
तस्स णं जाणविमानस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे, से जहानामए–आलिंगपुक्खरेइ वा जाव दीवियचम्मेइ वा अनेगसंकुकीलगसहस्सवितते आवड पच्चावड सेढि प्पसेढि सोत्थिय सोवत्थिय पूसमानव वद्धमाणग मच्छंडग मगरंडग जारमार फुल्लावलि पउमपत्त सागरतरंग वसंतलय पउमलयभत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहिं समरीइएहिं Translated Sutra: देवेन्द्र, देवराज शक्र द्वारा यों कहे जाने पर – पालक नामक देव हर्षित एवं परितुष्ट होता है। वह वैक्रिय समुद्घात द्वारा यान – विमान की विकुर्वणा करता है। उस यान – विमान के भीतर बहुत समतल एवं रमणीय भूमि – भाग है। वह आलिंग – पुष्कर तथा शंकुसदृश बड़े – बड़े कीले ठोक कर, खींचकर समान किये गये चीते आदि के चर्म जैसा समतल | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-१ | Hindi | 325 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति परिसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–समिता चंडा जाता, अब्भिंतरिया समिया, मज्झिमिया चंडा, बाहिरिया जाता।
सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ? मज्झिमियाए परिसाए तहेव बाहिरियाए पुच्छा। गोयमा! सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ मज्झिमियाए परिसाए चोद्दस देव-साहस्सीओ पन्नत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पन्नत्ताओ, तहा अब्भिंतरियाए परिसाए सत्त देवीसयाणि, मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि, बाहिरियाए पंच देवीसयाणि Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की कितनी पर्षदाएं हैं ? गौतम ! तीन – समिता, चण्डा और जाया। आभ्यंतर पर्षदा को समिता, मध्य पर्षदा को चण्डा और बाह्य पर्षदा को जाया कहते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्र की आभ्यन्तर परिषद में १२००० देव, मध्यम परिषद में १४००० देव और बाह्य परिषद में १६००० देव हैं। आभ्यन्तर परिषद में ७०० देवियाँ | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 137 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं गमियं? (से किं तं अगमियं?)
गमियं दिट्ठिवाओ। अगमियं कालियं सुयं। से त्तं गमियं। से त्तं अगमियं
तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–अंगपविट्ठं, अंगबाहिरं च।
से किं तं अंगबाहिरं?
अंगबाहिरं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च।
से किं तं आवस्सयं?
आवस्सयं छव्विहं पन्नत्तं, तं जहा–
सामाइयं, चउवीसत्थओ, वंदनयं, पडिक्कमणं, काउस्सग्गो, पच्चक्खाणं।
से त्तं आवस्सयं।
से किं तं आवस्सयवइरित्तं?
आवस्सयवइरित्तं दुविहं पन्नत्तं, तं जहा–कालियं च, उक्कालियं च।
से किं तं उक्कालियं?
उक्कालियं अनेगविहं पन्नत्तं, तं जहा–
१ दसवेयालियं २ कप्पियाकप्पियं ३ चुल्लकप्पसुयं Translated Sutra: – गमिक – श्रुत क्या है ? आदि, मध्य या अवसान में कुछ शब्द – भेद के साथ उसी सूत्र को बार – बार कहना गमिक – श्रुत है। दृष्टिवाद गमिक – श्रुत है। गमिक से भिन्न आचाराङ्ग आदि कालिकश्रुत अगमिक – श्रुत हैं। अथवा श्रुत संक्षेप में दो प्रकार का है – अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्य। अङ्गबाह्य दो प्रकार का है – आवश्यक, आवश्यक से |