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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-४ भोगासक्ति | Hindi | 86 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे।
तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु।
जेण सिया तेण णोसिया।
इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा।
थीभि लोए पव्वहिए।
ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं।
से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए।
उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे।
अलं कुसलस्स पमाएणं।
संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए।
नालं पास।
अलं ते एएहिं। Translated Sutra: हे धीर पुरुष ! तू आशा और स्वच्छन्दता त्याग दे। उस भोगेच्छा रूप शल्य का सृजन तूने स्वयं ही किया है। जिस भोगसामग्री से तुझे सुख होता है उससे सुख नहीं भी होता है। जो मनुष्य मोहकी सघनतासे आवृत हैं, ढ़ंके हैं, वे इस तथ्य को कि पौद्गलिक साधनों से कभी सुख मिलता है, कभी नहीं, वे क्षण – भंगुर हैं, तथा वे ही शल्य नहीं जानते यह | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ लोकविजय |
उद्देशक-४ भोगासक्ति | Gujarati | 86 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आसं च छंदं च विगिंच धीरे।
तुमं चेव तं सल्लमाहट्टु।
जेण सिया तेण णोसिया।
इणमेव नावबुज्झंति, जेजना मोहपाउडा।
थीभि लोए पव्वहिए।
ते भो वयंति–एयाइं आयतणाइं।
से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरग-तिरिक्खाए।
उदाहु वीरे– अप्पमादो महामोहे।
अलं कुसलस्स पमाएणं।
संति-मरणं संपेहाए, भेउरधम्मं संपेहाए।
नालं पास।
अलं ते एएहिं। Translated Sutra: હે ધીર પુરૂષ ! તું વિષયભોગની આશા અને સંકલ્પ છોડી દે – આ ભોગશલ્યનું સર્જન તેં જ કર્યું છે. જે ભોગથી સુખ છે, તેનાથી જ દુઃખ પણ છે. આ વાત મોહથી ઘેરાયેલો મનુષ્ય સમજી શકતો નથી. આ સંસારના પ્રાણીઓ સ્ત્રીઓના મોહથી પરાજિત છે. હે પુરૂષ ! તે લોકો કહે છે કે આ સ્ત્રીઓ ભોગની સામગ્રી છે. આ કથન દુઃખ, મોહ, મૃત્યુ, નરકનાં કારણરૂપ છે. તથા | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 69 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं निस्सितो उव्वहती, जससाहिगमेण वा ।
तस्स लुब्भसि वित्तंसि, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो जिसके आश्रय से आजीविका करता है, जिसकी सेवा से समृद्ध हुआ है, वह उसीके धन में आसक्त होकर, उसका ही सर्वस्व हरण करे, निर्धन ऐसा कोई जिस व्यक्ति या ग्रामवासी के आश्रय से सर्व साधनसम्पन्न हो जाए, फिर इर्ष्या या संक्लिष्टचित्त होकर आश्रयदाता के लाभ में यदि अन्तरायभूत हो, तो महामोहनीय कर्म बांधे सूत्र – ६९–७१ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 71 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इस्सादोसेण आइट्ठे, कलुसाविलचेतसे ।
जे अंतरायं चेतेति, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ६९ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 72 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सप्पी जहा अंडउडं, भत्तारं जो विहिंसइ ।
सेणावतिं पसत्थारं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार सापण अपने बच्चे को खा जाती है, उसी प्रकार कोई स्त्री अपने पति को, मंत्री, राजा को, सेना सेनापति को या शिष्य शिक्षक को मार ड़ाले तो वे महामोहनीय कर्म बांधते हैं। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 73 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे नायगं व रट्ठस्स, नेतारं निगमस्स वा ।
सेट्ठिं च बहुरवं हंता, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो राष्ट्र नायक को, नेता को, लोकप्रिय श्रेष्ठी को या समुद्र में द्वीप सदृश अनाथ जन के रक्षक को मार ड़ाले तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ७३, ७४ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 74 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहुजनस्स नेतारं, दीवं ताणं च पाणिणं ।
एतारिसं नरं हंता, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७३ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 75 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठियं पडिविरयं, संजयं सुतवस्सियं ।
वोकम्म धम्माओ भंसे, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो पापविरत मुमुक्षु, संयत तपस्वी को धर्म से भ्रष्ट करे, अज्ञानी ऐसा वह जिनेश्वर के अवर्णवाद करे, अनेक जीवों को न्यायमार्ग से भ्रष्ट करे, न्यायमार्ग की द्वेषपूर्वक निन्दा करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ७५–७७ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 76 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवानंतनाणीणं जिणाणं वरदंसिणं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 77 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेयाउयस्स मग्गस्स, दुट्ठे अवयरई बहुं ।
तं तिप्पयंतो भावेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 78 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झाएहिं, सुयं विनयं च गाहिए ।
ते चेव खिंसती बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जिस आचार्य या उपाध्याय के पास ज्ञान एवं आचार की शिक्षा ली हो – उसी की अवहेलना करे, अहंकारी ऐसा वह उन आचार्य – उपाध्याय की सम्यक् सेवा न करे, आदर – सत्कार न करे, तब महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ७८, ७९ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 79 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झायाणं, सम्मं न पडितप्पति ।
अप्पडिपूयए थद्धे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७८ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 80 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबहुस्सुते वि जे केइ, सुतेणं पविकत्थइ ।
सज्झायवायं वायंइ, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो बहुश्रुत न होते हुए भी अपने को बहुश्रुत, स्वाध्यायी, शास्त्रज्ञ कहे, तपस्वी न होते हुए भी अपने को तपस्वी बताए, वह सर्व जनों में सबसे बड़ा चोर है। ‘‘शक्तिमान होते हुए भी ग्लान मुनि की सेवा न करना’’ – ऐसा कहे, वह महामूर्ख, मायावी और मिथ्यात्वी – कलुषित चित्त होकर अपने आत्मा का अहित करता है। यह सब महामोहनीय कर्म | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 81 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अतवस्सिते य जे केइ, तवेणं पविकत्थति ।
सव्वलोगपरे तेणे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८० | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 54 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे नाम चेइए–वण्णओ, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया।
अज्जोति! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी–एवं खलु अज्जो! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाइं, जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा– Translated Sutra: उस काल उस समय में चम्पानगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। कोणिक राजा तथा धारिणी राणी थे। श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे। पर्षदा नीकली। भगवंतने देशना दी। धर्म श्रवण करके पर्षदा वापिस लौटी। बहुत साधु – साध्वी को भगवंत ने कहा – आर्यो ! मोहनीय स्थान ३० हैं। जो स्त्री या पुरुष इस स्थान का बारबार सेवन करते हैं, वे महामोहनीय | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 55 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे केइ तसे पाणे, वारिमज्झे विगाहिया ।
उदएणक्कम्म मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो कोई त्रस प्राणी को जल में डूबाकर मार डालते हैं, वे महामोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं। प्राणी के मुख – नाक आदि श्वास लेने के द्वारों को हाथ से अवरुद्ध करके। अग्नि की धूम्र से किसी गृह में घीरकर मारे तो महामोहनीय कर्मबन्ध करे। सूत्र – ५५–५७ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 56 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पाणिणा संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं ।
अंतोनदंतं मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 57 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जायतेयं समारब्भ, बहुं ओरुंभिया जणं ।
अंतोधूमेण मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 58 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीसम्मि जो पहणति, उत्तमंगम्मि चेतसा ।
विभज्ज मत्थगं फाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो कोई प्राणी को मस्तक पर शस्त्रप्रहार से भेदन करे, अशुभ परिणाम से गीला चर्म बांधकर मारे, छलकपट से किसी प्राणी को भाले या ड़ंडे से मार कर हँसता है, तो महामोहनीय कर्मबन्ध होता है। सूत्र – ५८–६० | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 59 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीसावेढेण जे केइ, आवेढेति अभिक्खणं ।
तिव्वासुहसमायारे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५८ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 60 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुणो-पुणो पणिहीए, हणित्ता उवहसे जनं ।
फलेणं अदुव डंडेणं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५८ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 61 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गूढाचारी निगूहेज्जा, मायं मायाए छायई ।
असच्चवाई निण्हाई, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो गूढ़ आचरण से अपने मायाचार को छूपाए, असत्य बोले, सूत्रों के यथार्थ को छूपाए, निर्दोष व्यक्ति पर मिथ्या आक्षेप करे या अपने दुष्कर्मों को दूसरे पर आरोपण करे, सभा मध्य में जान – बूझकर मिश्र भाषा बोले, कलहशील हो – वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ६१–६३ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 62 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धंसेति जो अभूतेणं, अकम्मं अत्तकम्मुणा ।
अदुवा तुमकासित्ति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६१ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 63 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाणमाणो परिसाए, सच्चामोसाणि भासति ।
अज्झीणज्झंज्झे पुरिसे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६१ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 64 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनायगस्स नयवं, दारे तस्सेव धंसिया ।
विउलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चाणं पडिबाहिरं ॥ Translated Sutra: जो अनायक मंत्री – राजा को राज्य से बाहर भेजकर राज्यलक्ष्मी का उपभोग करे, राणी का शीलखंड़न करे, विरोधकर्ता सामंतो की भोग्यवस्तु का विनाश करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ६४, ६५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 65 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवकसंतंपि ज्झंपेत्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं ।
भोगभोगे वियारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ६४ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 66 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकुमारभूते जे केइ, कुमारभुतेत्तिहं वदे ।
इत्थीहिं गिद्धे विसए, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो बालब्रह्मचारी न होते हुए अपने को बालब्रह्मचारी कहे, स्त्री आदि के भोगो में आसक्त रहे, वह गायों के बीच गद्धे की प्रकार बेसूरा बकवास करता है। आत्मा का अहित करनेवाला वह मूर्ख मायामृषावाद और स्त्री आसक्ति से महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ६६–६८ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 68 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पणो अहिए वाले, मायामोसं बहुं भसे ।
इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ६६ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 83 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सढे नियडिपण्णाणे, कलुसाउलचेतसे ।
अप्पणो य अबोहीए, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ८० | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 84 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे कहाधिकरणाइं, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सव्वतित्थाण भेयाए, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: चतुर्विध श्रीसंघ में भेद उत्पन्न करने के लिए जो कलह के अनेक प्रसंग उपस्थित करता है, वह महा – मोहनीय कर्म बांधता है। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 85 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य आधम्मिए जोए, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सहाहेउं सहीहेउं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो (वशीकरण आदि) अधार्मिक योग का सेवन, स्वसन्मान, प्रसिद्धि एवं प्रिय व्यक्ति को खुश करने के लिए बारबार विधिपूर्वक प्रयोग करे, जीवहिंसादि करके वशीकरण प्रयोग करे, प्राप्त भोगों से अतृप्त व्यक्ति, मानुषिक और दैवी भोगों की बारबार अभिलाषा करे वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ८५, ८६ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 86 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य मानुस्सए भोगे, अदुवा पारलोइए ।
तेऽतिप्पयंतो आसयति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 87 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इड्ढी जुती जसो वण्णो, देवाणं बलवीरियं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण एवं बल – वीर्य युक्त देवताओं का अवर्णवाद करता है, जो अज्ञानी पूजा की अभिलाषा से देव – यक्ष और असूरों को न देखते हुए भी मैं इन सबको देखता हूँ ऐसा कहे – वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ८७, ८८ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 88 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे ।
अन्नाणी जिनपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८७ | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 74 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहुजनस्स नेतारं, दीवं ताणं च पाणिणं ।
एतारिसं नरं हंता, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૭ – જે અનેક લોકોના નેતાને તથા સમુદ્રમાં દ્વીપ સમાન અનાથ જનોના રક્ષકોનો ઘાત કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 75 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठियं पडिविरयं, संजयं सुतवस्सियं ।
वोकम्म धम्माओ भंसे, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૮ – જે પાપોથી વિરત દીક્ષાર્થીને અને તપસ્વી સાધુને ધર્મથી ભ્રષ્ટ કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 76 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवानंतनाणीणं जिणाणं वरदंसिणं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૯ – જે અજ્ઞાની અનંત જ્ઞાનદર્શન સંપન્ન જિનેન્દ્ર દેવનો અવર્ણવાદ – નિંદા કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 77 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेयाउयस्स मग्गस्स, दुट्ठे अवयरई बहुं ।
तं तिप्पयंतो भावेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૦ – જે દુષ્ટાત્મા અનેક ભવ્યજીવોને ન્યાયમાર્ગથી ભ્રષ્ટ કરે છે અને ન્યાય માર્ગને દ્વેષથી નિંદે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 78 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झाएहिं, सुयं विनयं च गाहिए ।
ते चेव खिंसती बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૧ – જે આચાર્ય કે ઉપાધ્યાયોથી શ્રુત અને આચાર ગ્રહણ કરે છે, તેની જ અવહેલના કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 79 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झायाणं, सम्मं न पडितप्पति ।
अप्पडिपूयए थद्धे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૨ – જે આચાર્ય કે ઉપાધ્યાયની સમ્યક્ પ્રકારથી સેવા કરતા નથી, તેમનો આદર – સત્કાર કરતા નથી અને અભિમાન કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 80 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबहुस्सुते वि जे केइ, सुतेणं पविकत्थइ ।
सज्झायवायं वायंइ, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૩ – જે બહુશ્રુત ના હોવા છતાં પોતે પોતાને બહુશ્રુત માને, સ્વાધ્યાયી અને શાસ્ત્રોના રહસ્યનો જ્ઞાતા કહે છે – માને છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 81 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अतवस्सिते य जे केइ, तवेणं पविकत्थति ।
सव्वलोगपरे तेणे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૪ – જે તપસ્વી ના હોવા છતાં પણ પોતે પોતાની તપસ્વી કહે છે, તે સૌથી મોટો ચોર છે તેથી તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 83 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सढे नियडिपण्णाणे, कलुसाउलचेतसे ।
अप्पणो य अबोहीए, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૨ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 84 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे कहाधिकरणाइं, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सव्वतित्थाण भेयाए, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૬ – ચતુર્વિધ સંઘમાં મતભેદ ઉત્પન્ન કરવાને માટે જે કલહના અનેક પ્રસંગ ઉપસ્થિત કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 85 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य आधम्मिए जोए, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सहाहेउं सहीहेउं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૭ – જે પ્રશંસા અથવા મિત્રવર્ગને માટે અધાર્મિક યોગ કરીને વશીકરણાદિનો વારંવાર પ્રયોગ કરે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 86 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य मानुस्सए भोगे, अदुवा पारलोइए ।
तेऽतिप्पयंतो आसयति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૮ – જે માનુષિક અને દૈવી ભોગોની અતૃપ્તિથી તેની વારંવાર અભિલાષા કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 87 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इड्ढी जुती जसो वण्णो, देवाणं बलवीरियं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨૯ – જે દેવોની ઋદ્ધિ, દ્યુતિ, યશ, વર્ણ અને બલ – વીર્યનો અવર્ણવાદ બોલે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 88 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे ।
अन्नाणी जिनपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૩૦ – જે અજ્ઞાની જિનેશ્વર દેવની માફક પોતાની પૂજાનો ઇચ્છુક થઈને દેવ, અસુર અને યક્ષોને ના જોતો એવો પણ એવું કહે છે કે, ‘‘હું આ દેવ, યક્ષ, અસુર આદિને જોઈ શકું છું – જોઉં છું’’ – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 55 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे केइ तसे पाणे, वारिमज्झे विगाहिया ।
उदएणक्कम्म मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧ – જે કોઈ ત્રસ પ્રાણીને પાણીમાં ડૂબાડીને કે તીવ્ર જળધારામાં નાંખીને તેને મારે છે, તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 56 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पाणिणा संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं ।
अंतोनदंतं मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૨ – જે પ્રાણીઓના મુખ, નાક આદિ શ્વાસ લેવાના દ્વારોને હાથ આદિથી અવરુદ્ધ કરી અવ્યક્ત શબ્દ કરતા પ્રાણીને મારે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. |