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Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 133 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेंति, तं जहा– सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी– संजमेणं भंते! किंफले? तवे किंफले? तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी–संजमे णं अज्जो! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले। तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी–जइ णं भंते! संजमे अणण्हयफले, तवे वोदाणफले।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन स्थविर भगवंतों ने उन श्रमणोपासकों तथा उस महती परीषद्‌ (धर्मसभा) को केशीश्रमण की तरह चातुर्याम – धर्म का उपदेश दिया। यावत्‌ वे श्रमणोपासक अपनी श्रमणोपासकता द्वारा आज्ञा के आराधक हुए। यावत्‌ धर्म – कथा पूर्ण हुई। तदनन्तर वे श्रमणोपासक स्थविर भगवंतों से धर्मोपदेश सूनकर एवं हृदयंगम करके बड़े
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 135 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहारूवं णं भंते! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणा? गोयमा! सवणफला। से णं भंते! सवणे किंफले? नाणफले। से णं भंते! नाणे किंफले? विन्नाणफले। से णं भंते! विण्णाणे किंफले? पच्चक्खाणफले। से णं भंते! पच्चक्खाणे किंफले? संजमफले। से णं भंते! संजमे किंफले? अणण्हयफले। से णं भंते! अणण्हए किंफले? तवफले। से णं भंते! तवे किंफले? वोदाणफले। से णं भंते! वोदाणे किंफले? अकिरियाफले। सा णं भंते! अकिरिया किंफला? सिद्धिपज्जवसाणफला–पन्नत्ता गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण या माहन की पर्युपासना करने वाले मनुष्य को उसकी पर्युपासना का क्या फल मिलता है ? गौतम ! तथारूप श्रमण या माहन के पर्युपासक को उसकी पर्युपासना का फल होता है – श्रवण। भगवन्‌ ! उस श्रवण का क्या फल होता है ? गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है। भगवन्‌ ! उन ज्ञान का क्या फल है ? गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 136 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सवणे नाणे य विन्नाणे, पच्चक्खाणे य संजमे । अणण्हए तवे चेव, वोदाने अकिरिया सिद्धी ॥

Translated Sutra: (पर्युपासना का प्रथम फल) श्रवण, (श्रवण का फल) ज्ञान, (ज्ञान का फल) विज्ञान, (विज्ञान का फल) प्रत्याख्यान, (प्रत्याख्यान का फल) संयम, (संयम का फल) अनाश्रवत्व, (अनाश्रवत्व का फल) तप, (तप का फल) व्यवदान, (व्यवदान का फल) अक्रिया और (अक्रिया का फल) सिद्धि है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-३ Hindi 204 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सवने नाणे य विन्नाणे पच्चक्खाणे य संजमे । अणण्हणे तवे चेव वोदाणे अकिरिय निव्वाणे ॥

Translated Sutra: श्रवण का फल ज्ञान, ज्ञान का फल विज्ञान, विज्ञान का फल प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का फल संयम, संयम का फल अनाश्रव, अनाश्रव का फल ‘तप’ तप का फल व्यवदान, व्यवदान का फल अक्रिया। अक्रिया का फल निर्वाण है। हे भगवन्‌ ! निर्वाण का क्या फल है ? हे श्रमणायुष्मन्‌ ! सिद्धगति में जाना ही निर्वाण का सर्वान्तिम प्रयोजन है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1113 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं अयमट्ठे एवमाहिज्जइ, तं जहा– संवेगे १ निव्वेए २ धम्मसद्धा ३ गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ४ आलोयणया ५ निंदणया ६ गरहणया ७ सामाइए ८ चउव्वीसत्थए ९ वंदणए १० पडिक्कमणे ११ काउस्सग्गे १२ पच्चक्खाणे १३ थवथुइमंगले १४ कालपडिलेहणया १५ पायच्छित्तकरणे १६ खमावणया १७ सज्झाए १८ वायणया १९ पडिपुच्छणया २० परियट्टणया २१ अणुप्पेहा २२ धम्मकहा २३ सुयस्स आराहणया २४ एगग्गमण-सन्निवेसणया २५ संजमे २६ तवे २७ वोदाणे २८ सुहसाए २९ अप्पडिबद्धया ३० विवित्तसयणासणसेवणया ३१ विणियट्टणया ३२ संभोगपच्चक्खाणे ३३ उवहिपच्चक्खाणे ३४ आहारपच्चक्खाणे ३५ कसायपच्चक्खाणे ३६ जोगपच्चक्खाणे ३७ सरीरपच्चक्खाणे

Translated Sutra: उसका यह अर्थ है, जो इस प्रकार कहा जाता है। जैसे कि – संवेग, निर्वेद, धर्म श्रद्धा, गुरु और साधर्मिक की शुश्रृषा, आलोचना, निन्दा, गर्हा, सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान, स्तव – स्तुति – मंगल, कालप्रतिलेखना, प्रायश्चित्त, क्षमापना, स्वाध्याय, वाचना, प्रतिप्रच्छना, परावर्तना,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1140 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तवेणं भंते! जीवे किं जणयइ? तवेणं वोदाणं जणयइ।

Translated Sutra: भन्ते ! तप से जीव को क्या प्राप्त होता है ? तप से जीव पूर्व संचित कर्मों का क्षय करके व्यवदान को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1141 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वोदाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ? वोदाणेणं अकिरियं जणयइ। अकिरियाए भवित्ता तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! व्यवदान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? व्यवदान से जीव को अक्रिया प्राप्त होती है। अक्रिय होने से वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सब दुःखों का अन्त करता है।
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