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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 838 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिए-हिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो बेंदिय, नो तेइंदिय, नो चउरिंदिय, पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति।
जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों में आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१ नैरयिक | Hindi | 839 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, नो असंखेज्जवासाउय सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणि-एहिंतो उववज्जंति।
जइ संखेज्जवासाउय-सण्णिपंचिंदिय-तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति–पुच्छा।
गोयमा! जलचरेहिंतो उववज्जंति, जहा असण्णी जाव पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्त-एहिंतो उववज्जंति।
पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! यदि नैरयिक संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 846 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिय-मनुस्सदेवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति।
जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं एगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो एवं जहा वक्कंतीए उववाओ जाव–
जइ बायरपुढविक्काइयएगिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं पज्जत्ताबादर जाव उवव-ज्जंति, अपज्जत्ताबादरपुढवि?
गोयमा! पज्जत्ताबादरपुढवि, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जंति।
पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यंचों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं। यदि वे तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 847 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति।
बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया। Translated Sutra: भगवन् ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 540 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं।
नाणावरणिज्जे णं भंते पन्नत्ते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणावरणिज्जे सुयनाणावरणिज्जे ओहिनाणावरणिज्जे मनपज्जवनाणावरणिज्जे केवलनाणावरणिज्जे।
दरिसणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दापंचए य दंसणचउक्कए य।
निद्दापंचए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दा जाव थीणद्धी।
दंसणचउक्कए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–चक्खु-दंसणावरणिज्जे Translated Sutra: भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिक यावत् केवलज्ञानावरणीय। दर्शनावरणीयकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – निद्रा – पंचक और दर्शनचतुष्क। निद्रा – पंचक कितने प्रकार का है ? गौतम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 541 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
निद्दापंचयस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेक का काल है। निद्रापंचक की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्या – तवाँ भाग कम, सागरोपम | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२५ |
Hindi | 59 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मिच्छादिट्ठिविगलिंदिए णं अपज्जत्तए संकिलिट्ठपरिणामे नामस्स कम्मस्स पणवीसं उत्तर पयडीओ
निबंधति, तं जहा– तिरियगतिनामं विगलिंदियजातिनामं ओरालियसरीरनामं तेअगसरीरनामं कम्मगसरीरनामं हुंडसंठाणनामं ओरालियसरीरंगोवंगनामं सेवट्टसंघयणनामं वण्णनामं गंधनामं रसनामं फासनामं तिरियानुपुव्विनामं अगरुयलहुयनामं उवघायनामं तसनामं बादरनामं अपज्जत्तय- नामं पत्तेयसरीरनामं अथिरनामं असुभनामं दुभगनामं अनादेज्जनामं अजसोकित्तिनामं निम्माणनामं
गंगासिंधुओ णं महानईओ पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहओ घडमुहपवित्तिएणं मुत्तावलि-हारसंठिएणं पवातेणं पवडंति।
रत्तारत्तवतीओ Translated Sutra: संक्लिष्ट परिणाम वाले अपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय जीव नामकर्म की पच्चीस उत्तर प्रकृतियों को बाँधते हैं। जैसे – तिर्यग्गतिनाम, विकलेन्द्रिय जातिनाम, औदारिकशरीरनाम, तैजसशरीरनाम, कार्मणशरीरनाम, हुंडकसंस्थान नाम, औदारिकसाङ्गोपाङ्ग नाम, सेवार्त्तसंहनन नाम, वर्णनाम, गन्धनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
देहसंहननं आहारादि |
Hindi | 65 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आसी य समणाउसो! पुव्विं मणुयाणं छव्विहे संघयणे। तं जहा–
वज्जरिसहनारायसंघयणे १ रिसहनारायसंघयणे २ नारायसंघयणे ३ अद्धनारायसंघयणे ४ कीलियासंघयणे ५ छेवट्ठसंघयणे ६। संपइ खलु आउसो! मणुयाणं छेवट्ठे संघयणे वट्टइ
आसी य आउसो! पुव्विं मनुयाणं छव्विहे संठाणे। तं जहा–
समचउरंसे १ नग्गोहपरिमंडले २ सादि ३ खुज्जे ४ वामणे ५ हुंडे ६। संपइ खलु आउसो! मणुयाणं हुंडे संठाणे वट्टइ। Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमण ! पूर्वकाल में मानव के छह प्रकार के संहनन थे वो इस प्रकार – वज्रऋषभनाराच, ऋषभनाराच, अर्द्धनाराच, कीलिका और सेवार्त्त, वर्तमान काल में मानव को सेवार्त्त संहनन ही होता है। हे आयुष्मान् ! पूर्वकाल में मानव को छह प्रकार के संस्थान थे वो इस प्रकार – समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, सादिक, कुब्ज, वामन |