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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 193 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छद्दोसे अट्ठगुणे, तिन्नि य वित्ताइं दोन्नि भणितीओ ।
जो नाही सो गाहिइ, सुसिक्खिओ रंगमज्झंमि ॥ Translated Sutra: संगीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों और दो भणितियों को यथावत् जाननेवाला सुशिक्षित – व्यक्ति रंगमंच पर गायेगा। | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भगवन् ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वाणव्यन्तर अधिकार |
Hindi | 74 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एक्केक्कम्मि य जुयले नियमा भवना वरा असंखेज्जा ।
संखिज्जवित्थडा पुण, नवरं एतऽत्थ नाणत्तं ॥ Translated Sutra: एक – एक युगल में नियमा अनगिनत श्रेष्ठ भवन हैं। वो फाँसले में अनगिनत योजनवाले हैं, जिसके विविध विविध भेद इस प्रकार हैं। वो उत्कृष्ट से जम्बूद्वीप समान, जघन्य से भरतक्षेत्र समान और मध्यम से विदेह क्षेत्र समान होते हैं। जिसमें व्यंतर देव श्रेष्ठ तरुणी के गीत और संगीत की आवाझ के कारण से नित्य सुखयुक्त और आनन्दित | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Hindi | 170 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दुवए राया दोच्चं पि दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुमं देवानुप्पिया! हत्थिणाउरं नयरं। तत्थ णं तुमं पंडुरायं सपुत्तयं–जुहिट्ठिलं भीमसेणं अज्जुणं नउलं सहदेवं, दुज्जोहणं भाइसय-समग्गं, गंगेयं विदुरं दोणं जय-द्दहं सउणिं कीवं आसत्थामं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेहि, वद्धावेत्ता एवं वयाहि–
एवं खलु देवानुप्पिया! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रन्नो धूयाए, चुलणीए अत्तयाए धट्ठज्जुण-कुमारस्स भइणीए, दोवईए रायवरकन्नाए सयंवरे भविस्सइ। तं णं तुब्भे दुवयं रायं अनुगिण्हेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे Translated Sutra: तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने दूसरे दूत को बुलाकर उससे कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम हस्तिनापुर नगर जाओ। वहाँ तुम पुत्रों सहित पाण्डु राजा को – उनके पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव को, सो भाइयों समेत दुर्योधन को, गांगेय, विदुर, द्रोण, जयद्रथ, शकुनि, कर्ण और अश्वत्थामा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Hindi | 174 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धिं कल्लाकल्लिं वारंवारेणं उरालाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति।
तए णं से पंडू राया अन्नया कयाइं पंचहिं पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धिं अंतोअंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडे सीहासनवरगए यावि विहरइ।
इमं च णं कच्छुल्लनारए–दंसणेणं अइभद्दए विनीए अंतो-अंतो य कलुस हियए मज्झत्थ-उवत्थिए य अल्लीण -सोमपियदंसणे सुरूवे अमइल-सगल-परिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउड-दित्तसिरए जन्नोव-इय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-वागलधरे हत्थकय-कच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-ओवयणुप्पयणि-लेसणीसु य संकाणि-आभिओगि-पण्णत्ति-गमणि-थंभिणीसु Translated Sutra: तत्पश्चात् पाँच पाण्डव द्रौपदी देवी के साथ अन्तःपुर के परिवार सहित एक – एक दिन बारी – बारी के अनुसार उदार कामभोग भोगते हुए यावत् रहने लगे। पाण्डु राजा एक बार किसी समय पाँच पाण्डवों, कुन्ती देवी और द्रौपदी देवी के साथ तथा अन्तःपुर के अन्दर के परिवार के साथ परिवृत्त होकर श्रेष्ठ सिंहासन पर आसीन थे। इधर कच्छुल्ल | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 121 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया अज्जियरज्जो निज्जियसत्तू उप्पन्नसमत्तरयणे चक्करयणप्पहाणे नवनिहिवई समिद्धकोसे बत्तीसरायवरसहस्साणुयायमग्गे सट्ठीए वरिससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहं वासं ओयवेइ, ओयवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सण्णा हेह, एतमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति।
तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जनघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेह निग्गए Translated Sutra: राजा भरत ने इस प्रकार राज्य अर्जित किया – । शत्रुओं को जीता। उसके यहाँ समग्र रत्न उद्भूत हुए। नौ निधियाँ प्राप्त हुईं। खजाना समृद्ध था – । बत्तीस हजार राजाओं से अनुगत था। साठ हजार वर्षों में समस्त भरतक्षेत्र को साध लिया। तदनन्तर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियों ! शीघ्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Hindi | 267 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, चारट्ठिइया गइरइया गइसमावन्नगा? गोयमा! अंतो णं मानुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-सूरिय गहगण-नक्खत्त तारारूवा ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठिइया, गइरइया गइसमा-वण्णगा उड्ढीमुह-कलंबुया-पुप्फसंठाण-संठिएहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं, बाहिराहिं परिसाहिं महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं Translated Sutra: भगवन् ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं तारे – ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पातीत हैं ? कल्पोपपन्न हैं, चारोपपन्न हैं, चारस्थितिक हैं, गतिरतिक हैं – या गति समापन्न हैं ? गौतम ! मानुषोत्तर ज्योतिष्क देव विमानोत्पन्न हैं, चारोपपन्न हैं, गतिरतिक हैं, गतिसमापन्न हैं। ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प के आकारमें | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 387 | Sutra | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं नो इत्थीणं निज्झाएज्जा। नो नमालवेज्जा। नो णं तीए सद्धिं परिवसेज्जा। नो णं अद्धाणं पडिवज्जेज्जा
(२) गोयमा सव्व-प्पयारेहि णं सव्वित्थीयं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधुक्किज्जमाणी
कामग्गिए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जइ।
(३) तओ सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थियं अच्चत्थं मउक्कडत्ताए रागेणं संधु-क्किज्जमाणी कामग्गीए संपलित्ता सहावओ चेव विसएहिं बाहिज्जमाणी, अनुसमयं सव्व-दिसि-विदिसासुं णं सव्वत्थ विसए पत्थेज्जा
(४) जावं णं सव्वत्थ-विसए पत्थेज्जा, ताव णं सव्व-पयारेहिं णं सव्वत्थ सव्वहा पुरिसं संकप्पिज्जा,
(५) जाव णं Translated Sutra: हे भगवंत ! आप ऐसा क्यों कहते हैं कि – स्त्री के मर्म अंग – उपांग की ओर नजर न करना, उसके साथ बात न करना, उसके साथ वास न करना, उसके साथ मार्ग में अकेले न चलना ? हे गौतम ! सभी स्त्री सर्व तरह से अति उत्कट मद और विषयाभिलाप के राग से उत्तेजित होती है। स्वभाव से उस का कामाग्नि हंमेशा सुलगता रहता है। विषय की ओर उसका चंचल चित्त | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 24 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करेत्ता तं चेव भाणियव्वं जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था।
तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स आवड पच्चावड सेढि पसेढि सोत्थिय सोवत्थिय पूसमाणव वद्धमाणग मच्छंडा मगरंडा जारा मारा फुल्लावलि पउमपत्त सागरतरंग वसंतलता पउमलयभत्तिचित्तं नामं दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति।
एवं च एक्किक्कियाए नट्टविहीए समोसरणादिया एसा वत्तव्वया जाव दिव्वे देवरमणे पवत्ते यावि होत्था।
तए णं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स ईहामिअ उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु Translated Sutra: इसके बाद सभी देवकुमार और देवकुमारियाँ पंक्तिबद्ध होकर एक साथ मिले। सब एक साथ नीचे नमे और एक साथ ही अपना मस्तक ऊपर कर सीधे खड़े हुए। इसी क्रम से पुनः कर सीधे खड़े होकर नीचे नमे और फिर सीधे खड़े हुए। खड़े होकर एक साथ अलग – अलग फैल गए और फिर यथायोग्य नृत्य – गान आदि के उपकरणों – वाद्यों को लेकर एक साथ ही बजाने लगे, एक साथ | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 31 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पन्नत्ता–से जहानामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव नानाविह पंचवण्णेहिं मणीहिं य तणेहिं य उवसोभिया।
तेसि णं गंधो फासो णायव्वो जहक्कमं।
तेसि णं भंते! तणाण य मणीण य पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वातेहिं मंदायं-मंदायं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं फंदियाणं घट्टियाणं खोभियाण उदीरियाणं केरिसए सद्दे भवइ?
गोयमा! से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स सघंटस्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखिंखिणिहेमजालपरिखित्तस्स हेमवय चित्तविचित्त तिणिस कनगणिज्जुत्तदारुयायस्स सुसंपिणद्धारकमंडलधुरागस्स कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स Translated Sutra: उन वनखण्डों के मध्य में अति सम रमणीय भूमिभाग है। वे – मैदान आलिंग पुष्कर आदि के सदृश समतल यावत् नाना प्रकार के रंग – बिरंगे पंचरंगे मणियों और तृणों से उपशोभित हैं। इन मणियों के गंध और स्पर्श यथाक्रम से पूर्व में किये गये मणियों के गंध और स्पर्श के वर्णन समान जानना। हे भदन्त ! पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशा | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 42 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ Translated Sutra: तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव उन सामानिकपरिषदोपगत देवों से इस अर्थ को सूनकर और हृदय में अवधारित कर हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से नीकला, नीकलकर ह्रद पर आया, ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ। पुर्वदिशावर्ती | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 52 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नामं जणवए होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा।
तीसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए कोट्ठए नामं चेइए होत्था–पोराणे जाव पासादीए।
तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रन्नो अंतेवासी जियसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ।
तए णं से पएसी राया कयाइ महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छ Translated Sutra: उस काल और उस समय में कुणाला नामक जनपद – देश था। वह देश वैभवसंपन्न, स्तिमित – स्वपरचक्र के भय से मुक्त और धन – धान्य से समृद्ध था। उस कुणाला जनपद में श्रावस्ती नाम की नगरी थी, जो ऋद्ध, स्तिमित, समृद्ध यावत् प्रतिरूप थी। उस श्रावस्ती नगरी के बाहर उत्तर – पूर्व दिशा में कोष्ठक नाम का चैत्य था। यह चैत्य अत्यन्त प्राचीन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 78 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं केसी कुमारसमणे पएसिस्स रन्नो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेइ।
तए णं से पएसी राया धम्मं सोच्चा निसम्म उट्ठाए उट्ठेति, केसिं कुमार-समणं वंदइ नमंसइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–मा णं तुमं पएसी! पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा–से वनसंडेइ वा, नट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा, खलवाडेइ वा
कहं णं भंते! वनसंडे पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति? पएसी! जया णं वनसंडे पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे Translated Sutra: तत्पश्चात् केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा, सूर्यकान्ता आदि रानियों और उस अति विशाल परिषद् को यावत् धर्मकथा सूनाई। इसके बाद प्रदेशी राजा धर्मदेशना सून कर और उसे हृदय में धारण करके अपने आसन से उठा एवं केशी कुमारश्रमण को वन्दन – नमस्कार किया। सेयविया नगरी की ओर चलने के लिए उद्यत हुआ। केशी कुमारश्रमण ने | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 83 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिक्खित्ते–खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए, अन्नाहि बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणियाहिं वडभियाहिं बब्बरियाहिं बउसि-याहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारु-इणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं दमिलाहिं सिंहलीहिं पुलिंदीहिं आरबीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं नानादेसीहिं विदेस-परिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणयाहिं सदेश नेवत्थ गहिय देसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडिया-चक्कवाल वरतरुणिवंद परियाल संपरिवुडे वरिसधर कंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे-साहरिज्जमाणे Translated Sutra: उसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ शिशु, क्षीरधात्री, मंडनधात्री, मज्जनधात्री, अंकधात्री और क्रीडापनधात्री – इन पाँच धायमाताओं की देखरेख में तथा इनके अतिरिक्त इंगित, चिन्तित, प्रार्थित को जानने वाली, अपने – अपने देश के वेष को पहनने वाली, निपुण, कुशल – प्रवीण एवं प्रशिक्षित ऐसी कुब्जा, चिलातिका, वामनी, वडभी, बर्बरी, बकुशी, | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
संस्तारकस्वरूपं, लाभं |
Hindi | 49 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिप्पुरिसनाडयम्मि वि न सा रई जह महत्थवित्थारे ।
जिनवयणम्मि विसाले हेउसहस्सोवगूढम्मि ॥ Translated Sutra: वैक्रियलब्धि के योग से अपने पुरुषरूप को विकुर्वके, देवताएं जो बत्तीस प्रकार के हजार प्रकार से, संगीत की लयपूर्वक नाटक करते हैं, उसमें वो लोग वो आनन्द नहीं पा सकते कि जो आनन्द अपने हस्तप्रमाण संथारा पर आरूढ़ हुए क्षपक महर्षि पाते हैं। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Hindi | 405 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे वज्जे पन्नत्ते, तं जहा–तते, वितते, घने, ज्झुसिरे।
चउव्विहे णट्टे पन्नत्ते, तं जहा–अंचिए, रिभिए, आरभडे, भसोले।
चउव्विहे गेए पन्नत्ते, तं जहा–उक्खित्तए, पत्तए, मंदए, रोविंदए।
चउव्विहे मल्ले पन्नत्ते, तं जहा–गंथिमे, वेढिमे, पूरिमे, संघातिमे।
चउव्विहे अलंकारे पन्नत्ते, तं जहा–केसालंकारे, वत्थालंकारे, मल्लालंकारे, आभरणालंकारे।
चउव्विहे अभिणए पन्नत्ते, तं जहा– ‘दिट्ठंतिए, पाडिसुत, सामण्णओविणिवाइयं, लोगमज्झावसिते।’ Translated Sutra: वाद्य चार प्रकार के हैं। यथा – तत (वीणा आदि), वितत (ढोल आदि), धन (कांस्यताल आदि) और शुषिर (बांसुरी आदि)। नाट्य (नाटक) चार प्रकार के हैं। यथा – ठहर – ठहर कर नाचना। संगीत के साथ नाचना। संकेतों से भाव – अभिव्यक्ति करते हुए नाचना। झूककर या लेटकर नाचना। गायन चार प्रकार का है। यथा – नाचते हुए गायन करना। छंद (पद्य) गायन। |