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Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 25 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय –
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 27 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसाए आसायणाहिं।

Translated Sutra: तैंतीस प्रकार की आशातना जो यहाँ सूत्र में ही बताई गई है उसके द्वारा लगे अतिचार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी का अवर्णवाद से अबहुमान करने से, श्रावक – श्राविका की निंदा आदि से, देव – देवी के लिए कुछ भी बोलने से, आलोक – परलोक के लिए असत्‌ प्ररूपणा से, केवली प्रणित श्रुत या चारित्र धर्म की आशातना के द्वारा,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 60 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –अहमवि वंदावेमि चेइयाइं।

Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं (आपको चैत्यवंदना एवं साधुवंदना) करवाने की ईच्छा रखता हूँ। विहार करने से पहले आपके साथ था तब मैं यह चैत्यवंदना – साधु वंदना श्रीसंघ के बदले में करता हूँ ऐसे अध्यवसाय के साथ श्री जिन प्रतिमा को वंदन नमस्कार करके और अन्यत्र विचरण करते हुए, दूसरे क्षेत्र में जो कोई काफी दिन के पर्यायवाले
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 63 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुव्वि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पयाउं वा नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं से य सम्मत्ते पसत्थ-समत्त-मोहणिय-कम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं

Translated Sutra: वहाँ (श्रमणोपासकों) – श्रावक पूर्वे यानि श्रावक बनने से पहले मिथ्यात्व छोड़ दे और सम्यक्त्व अंगीकार करे। उनको न कल्पे। (क्या न कल्पे वो बताते हैं) आजपर्यन्त अन्यतीर्थिक के देव, अन्य तीर्थिक की ग्रहण की हुई अरिहंत प्रतिमा को वंदन नमस्कार करना न कल्पे। पहले भले ही ग्रहण न की हो लेकिन अब वो (प्रतिमा) अन्यतीर्थिक
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 64 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्तं तं जहा–संकप्पओ अ आरंभओ अ तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए पच्चक्खाइ नो आरंभओ थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए।

Translated Sutra: श्रावक स्थूल प्राणातिपात का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो प्राणातिपात दो तरह से बताया है। वो इस प्रकार – संकल्प से और आरम्भ से। श्रावक को संकल्प हत्या का जावज्जीव के लिए पच्चक्खाण (त्याग) करे लेकिन आरम्भ हत्या का त्याग न करे। स्थूल प्राणातिपात विरमण के इस पाँच अतिचार समझना वो इस प्रकार – वध, बंध, छविच्छेद, अतिभार
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 65 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।

Translated Sutra: श्रावक स्थूल मृषावाद का पच्चक्खाण (त्याग) करे। वो मृषावाद पाँच तरीके से बताया है। कन्या सम्बन्धी झूठ, गो (चार पाँववाले) सम्बन्धी झूठ, भूमि सम्बन्धी झूठ, न्यासापहार यानि थापण पाना, झूठी गँवाही देना, स्थूल मृषावाद से विरमित श्रमणोपासक यह पाँच अतिचार जानना। वो इस प्रकार – सहसा अभ्याख्यान, रहस्य उद्‌घाटन, स्वपत्नी
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 68 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिणामं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे।

Translated Sutra: श्रमणोपासक अपरिमित परिग्रह का त्याग करे यानि परिग्रह का परिमाण करे। वो परिग्रह दो तरीके से हैं। सचित्त और अचित्त। ईच्छा (परिग्रह) का परिमाण करनेवाले श्रावक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। १. घण और धन के प्रमाण में, २. क्षेत्रवस्तु के प्रमाण में, ३. सोने – चाँदी के प्रमाण में, ४. द्वीपद – चतुष्पद के प्रमाण में और
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 81 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा– तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे।

Translated Sutra: इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि चिरकाल या अल्पकाल के चार शिक्षाव्रत बताए हैं। इन सबसे पहले श्रमणोपासक धर्म में मूल वस्तु सम्यक्त्व है। वो निसर्ग से और अभिमान से दो प्रकार से है। पाँच अतिचार रहित विशुद्ध अणुव्रत और गुणव्रत की प्रतिज्ञा के सिवा दूसरी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 468 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा–अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो ति वा, सावगे ति वा, उपासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोव-घाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो एवं वएज्जा–होले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साणे ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चे-याइं तुमं एयाइं ते जणगा वा–एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं आमंतेमाणे आमंतिए

Translated Sutra: साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमंत्रित कर रहे हों और आमंत्रित करने पर भी वह न सूने तो उसे इस प्रकार न कहे – अरे होल रे गोले ! या हे गोल ! अय वृषल ! हे कुपक्ष ! अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर अरे झूठे ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता – पिता हैं। साधु इस प्रकार की सावद्य, सक्रिय यावत्‌ जीवोपघातिनी भाषा न बोले। संयमशील
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 512 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था। ते णं बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा। तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे, दोनों श्रावक – धर्म का पालन करने वाले थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रावक – धर्म का पालन करके षड्‌जीवनिकाय के संरक्षण के निमित्त आलोचना, आत्मनिन्दा, आत्मगर्हा एवं पाप दोषों का प्रतिक्रमण करके, मूल और उत्तर गुणों के यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 27 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी। तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुनए नामं मालागारे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया। तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था–किण्हे जाव महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुनयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर था। गुणशीलक उद्यान था। श्रेणिक राजा थे। चेलना रानी थी। ‘अर्जुन’ नाम का एक माली रहता था। उसकी पत्नी बन्धुमती थी, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी। अर्जुन माली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम था। वह पुष्पोद्यान कहीं कृष्ण वर्ण का था, यावत्‌ समुदाय की तरह प्रतीत हो रहा था।
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 21 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं? कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं–जे इमे चरग चोरिय चम्मखंडिय भिक्खोंड पंडुरंग गोयम गोव्वइय गिहिधम्म धम्मचिंतग अविरुद्ध विरुद्ध वुड्ढसावगप्पभिइओ पासंडत्था कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहपंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर नलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते इंदस्स वा खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुंदस्स वा अज्जाए वा कोट्टकिरियाए वा उवलेवण-सम्मज्जण-आवरिसण धूव पुप्फ

Translated Sutra: कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिक्षोण्डक, पांडुरंग, गौतम, गोव्रतिक, गृहीधर्मा, धर्मचिन्तक, अविरुद्ध, विरुद्ध, वृद्धश्रावक आदि पाषंडस्थ रात्रि के व्यतीत होने के अनन्तर प्रभात काल में यावत्‌ सूर्य के जाज्वल्यमान तेज से दीप्त होने पर इन्द्र, स्कन्ध, रुद्र, शिव, वैश्रामण अथवा देव,
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 28 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं? लोगुत्तरियं भावावस्सयं–जण्णं इमं समणे वा समणी वा सावए वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए अन्नत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओ कालं आवस्सयं करेति। से तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं। से तं नोआगमओ भावावस्सयं। से तं भावावस्सयं।

Translated Sutra: लोकोत्तरिक भावावश्यक क्या है ? दत्तचित्त और मन की एकाग्रता के साथ, शुभ लेश्या एवं अध्यवसाय से सम्पन्न, यथाविध क्रिया को करने के लिए तत्पर अध्यवसायों से सम्पन्न होकर, तीव्र आत्मोत्साहपूर्वक उसके अर्थ में उपयोगयुक्त होकर एवं उपयोगी करणों को नियोजित कर, उसकी भावना से भावित होकर जो ये श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविकायें
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 29 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं इमे एगट्ठिया नानाघोसा नानावंजणा नामधेज्जा भवंति तं जहा–

Translated Sutra: उस आवश्यक के नाना घोष और अनेक व्यंजन वाले एकार्थक अनेक नाम इस प्रकार हैं – आवश्यक, अवश्यकरणीय, ध्रवनिग्रह, विशोधि, अध्ययन – षट्‌कवर्ग, न्याय, आराधना और मार्ग। श्रमणों और श्रावकों द्वारा दिन एवं रात्रि के अन्त में अवश्य करने योग्य होने के कारण इसका नाम आवश्यक है। यह आवश्यक का स्वरूप है सूत्र – २९–३२
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रथमा प्ररुपणा

Hindi 2 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पंच य अणुव्वयाइं सत्त उ सिक्खा उ देस-जइधम्मो । सव्वेण व देसेण व तेण जुओ होइ देसजई ॥

Translated Sutra: जिनशासन में सर्व विरति और देशविरति में दो प्रकार का यतिधर्म है, उसमें देशविरति का पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत मिलाने से श्रावक के बारह व्रत बताए हैं। उन सभी व्रत से या फिर एक दो आदि व्रत समान उस के देश आराधन से जीव देशविरति होते हैं।
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 27 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं

Translated Sutra: उस समय चम्पा नगरी के सिंघाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, गलियों में मनुष्यों की बहुत आवाज आ रही थी, बहुत लोग शब्द कर रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट था। वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल सुनाई देती थी। लोगों की मानो एक लहर सी उमड़ी आ रही थी। छोटी – छोटी
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 37 Gatha Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नरगं तिरिक्खजोणिं, मानुसभावं च देवलोगं च । सिद्धे य सिद्धवसहिं, छज्जीवणियं परिकहेइ ॥

Translated Sutra: भगवान ने नरक तिर्यंचयोनि, मानुषभाव, देवलोक तथा सिद्ध, सिद्धावस्था एवं छह जीवनिकाय का विवेचन किया। जैसे – जीव बंधते हैं, मुक्त होते हैं, परिक्लेश पाते हैं। कईं अप्रतिबद्ध व्यक्ति दुःखों का अन्त करते हैं। पीड़ा वेदना या आकुलतापूर्ण चित्तयुक्त जीव दुःख – सागर को प्राप्त करते हैं, वैराग्य प्राप्त जीव कर्म – बल
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 44 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले

Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३१ अशोच्चा Hindi 445 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलिउवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवासगस्स वा, तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए? गोयमा! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–असोच्चा णं जाव नो लभेज्ज सवणयाए? गोयमा! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् (गौतमस्वामी ने) इस प्रकार पूछा – भगवन् ! केवली, केवली के श्रावक, केवली की श्राविका, केवली के उपासक, केवली की उपासिका, केवलिपाक्षिक, केवलि – पाक्षिक के श्रावक, केवलि – पाक्षिक की श्राविका, केवलि – पाक्षिक के उपासक, केवलि – पाक्षिक की उपासिका, (इनमें से किसी) से बिना सुने ही किसी जीव को केवलिप्ररूपित
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 112 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ। तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तत्थ

Translated Sutra: उस काल उस समय में कृतंगला नामकी नगरी थी। उस कृतंगला नगरी के बाहर ईशानकोण में छत्रपला – शक नामका चैत्य था। वहाँ किसी समय उत्पन्न हुए केवलज्ञान – केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। यावत्‌ – भगवान का समवसरण हुआ। परीषद्‌ धर्मोपदेश सूनने के लिए नीकली। उस कृतंगला नगरी के निकट श्रावस्ती नगरी थी।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 167 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सणंकुमारे णं भंते! देविंदे देवराया किं भवसिद्धिए? अभवसिद्धिए? सम्मद्दिट्ठी? मिच्छद्दिट्ठी? परित्त-संसारिए? अनंतसंसारिए? सुलभबोहिए? दुल्लभबोहिए? आराहए? विराहए? चरिमे? अचरिमे? गोयमा! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धिए, नो अभवसिद्धिए। सम्मद्दिट्ठी, नो मिच्छद्दिट्ठी। परित्तसंसारिए, नो अनंत-संसारिए। सुलभबोहिए, नो दुल्लभबोहिए। आराहए, नो विराहए। चरिमे, नो अचरिमे। से केणट्ठेणं भंते! गोयमा! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेससिए हिय-सुह-निस्सेसकामए। से तेणट्ठेणं गोयमा!

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार क्या भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ?; सम्यग्दृष्टि हैं, या मिथ्या – दृष्टि हैं ? परित्त संसारी हैं या अनन्त संसारी ? सुलभबोधि हैं, या दुर्लभबोधि ?; आराधक है, अथवा विराधक ? चरम है अथवा अचरम ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार, भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं; इसी तरह वह सम्यग्दृष्टि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-४ शब्द Hindi 232 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवली णं भंते! अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ? हंता जाणइ-पासइ। जहा णं भंते! केवली अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ, तहा णं छउमत्थे वि अंतकरं वा, अंतिमसरीरियं वा जाणइ-पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। सोच्चा जाणइ-पासइ, पमाणतो वा। से किं तं सोच्चा? सोच्चा णं केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलि-उवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा तप्पक्खियसावगस्स वा, तप्पक्खियसावियाए वा तप्पक्खिय-उवासगस्स वा तप्पक्खियउवासियाए वा। से तं सोच्चा।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या केवली मनुष्य संसार का अन्त करने वाले को अथवा चरमशरीरी को जानता – देखता है ? हाँ, गौतम ! वह उसे जानता – देखता है। भगवन्‌ ! जिस प्रकार केवली मनुष्य अन्तकर को, अथवा अन्तिमशरीरी को जानता – देखता है, क्या उसी प्रकार छद्मस्थ – मनुष्य जानता – देखता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, छद्मस्थ मनुष्य किसी से सूनकर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 401 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–आजीविया णं भंते! थेरे भगवंते एवं वयासी–समणोवासगस्स णं भंते! सामाइय-कडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंडं अवहरेज्जा, से णं भंते! तं भंडं अनुगवेसमाणे किं सभंडं अनुगवेसइ? परायगं भंडं अनुगवेसइ? गोयमा! सभंडं अनुगवेसइ, नो परायगं भंडं अनुगवेसइ। तस्स णं भंते! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं से भंडे अभंडे भवइ? हंता भवइ। से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सभंडं अनुगवेसइ, नो परायगं भंडं अनुगवेसइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–नो मे हिरण्णे, नो मे सुवण्णे, नो मे कंसे, नो मे दूसे, नो मे विपुलधन-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणमादीए

Translated Sutra: राजगृह नगर के यावत्‌ गौतमस्वामी ने पूछा – भगवन्‌ ! आजीविकों ने स्थविर भगवंतों से पूछा कि ‘सामायिक करके श्रमणोपाश्रय में बैठे हुए किसी श्रावक के भाण्ड – वस्त्र आदि सामान को कोई अपहरण कर ले जाए, वह उस भाण्ड – वस्त्रादि सामान का अन्वेषण करे तो क्या वह अपने सामान का अन्वेषण करता है या पराये सामान का ? गौतम ! वह अपने
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शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 402 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं भंते! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ? हंता भवइ। से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते एवं वुच्चइ–जायं चरइ? नो अजायं चरइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–नो मे माता, नो मे पिता, नो मे भाया, नो मे भगिनी, नो मे भज्जा, नो मे पुत्ता, नो मे धूया, नो मे सुण्हा; पेज्जबंधने पुण से अव्वोच्छिन्ने भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जायं चरइ, नो अजायं चरइ। समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव थूलए पाणाइवाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेइ? गोयमा! तीयं पडिक्कमति, पडुप्पन्नं संवरेति, अनागयं पच्चक्खाति। तीयं पडिक्कममाणे किं १. तिविहं तिविहेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उन शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास को स्वीकार किये हुए श्रावक का वह अपहृत भाण्ड उसके लिए तो अभाण्ड हो जाता है ? हाँ, गौतम ! वह भाण्ड उसके लिए अभाण्ड हो जाता है। भगवन्‌ ! तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का नहीं ? गौतम ! सामायिक आदि करने
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शतक-१२

उद्देशक-२ जयंति Hindi 534 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नगरी होत्था–वण्णओ। चंदोतरणे चेइए–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो पोत्ते, सयाणीस्स रन्नो पुत्ते, चेडगस्स रन्नो नत्तुए, मिगावतीए देवीए अत्तए, जयंतीए समणोवासि-याए भत्तिज्जए उदयने नामं राया होत्था–वण्णओ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स रन्नो सुण्हा, सयाणीस्स रन्नो भज्जा, चेडगस्स रन्नो धूया, उदयनस्स रन्नो माया, जयंतीए समणोवासियाए भाउज्जा मिगावती नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरइ। तत्थ णं कोसंबीए नगरीए सहस्साणीयस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में कौशाम्बी नगरी थी। चन्द्रवतरण उद्यान था। उस कौशाम्बी नगरी में सहस्त्रा – नीक राजा का पौत्र, शतानीक राजा का पुत्र, चेटक राजा का दौहित्र, मृगावती देवी का आत्मज और जयन्ती श्रमणोपासिका का भतीजा ‘उदयन’ नामक राजा था। उसी कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा की पुत्रवधू, शतानीक राजा की पत्नी, चेटक
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शतक-१५ गोशालक

Hindi 655 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कदायि सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं मेंढियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपु-रत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं साणकोट्ठए नामं चेइए होत्था–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं साणकोट्ठगस्स चेइयस्स अदूर-सामंते, एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था–किण्हे किण्होभासे जाव महामेहनिकुरंबभूए पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरि-ज्जमाणे सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठति। तत्थ णं मेंढियगामे नगरे रेवती नामं गाहावइणी परिवसति–अड्ढा

Translated Sutra: तदनन्तर किसी दिन भगवान महावीर श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से नीकले और उससे बाहर अन्य जनपदों में विचरण करने लगे। उस काल उस समय मेंढिकग्राम नगर था। उसके बाहर उत्तरपूर्व दिशा में शालकोष्ठक उद्यान था। यावत्‌ पृथ्वी – शिलापट्टक था, उस शालकोष्ठक उद्यान के निकट एक महान्‌ मालुकाकच्छ था वह श्याम, श्यामप्रभावाला,
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शतक-१६

उद्देशक-६ स्वप्न Hindi 679 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा– १. एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयणामयं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ५. एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकलियं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए। (१) एक महान घोर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया। (२) श्वेत पाँखों वाले एक महान्‌ पुंस्कोकिल का स्वप्न। (३) चित्र – विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न। (४) स्वप्न में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१८

उद्देशक-१० सोमिल Hindi 757 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भवं? दुवे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं? अवट्ठिए भवं? अनेगभूयभाव-भविए भवं? सोमिला! एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं? सोमिला! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से तेणट्ठेणं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा खंदओ जाव से जहेयं तुब्भे वदह। जहा णं देवानुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भसेट्ठि-सेनावइ-सत्थ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आप एक हैं, या दो हैं, अथवा अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं अथवा अनेक – भूत – भाव – भाविक हैं? सोमिल ! मैं एक भी हूँ, यावत्‌ अनेक – भूत – भाव – भाविक भी हूँ। भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? सोमिल ! मैं द्रव्यरूप से एक हूँ, ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से दो हूँ। आत्म – प्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय हूँ, अव्यय हूँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-८ भूमि Hindi 799 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तित्थं भंते! तित्थं? तित्थगरे तित्थं? गोयमा! अरहा ताव नियमं तित्थकरे, तित्थं पुण चाउवण्णे समणसंघे, तं जहा–समणा, समणीओ, सावया, सावियाओ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तीर्थ को तीर्थ कहते हैं अथवा तीर्थंकर को तीर्थ कहते हैं ? गौतम ! अर्हन्‌ तो अवश्य तीर्थंकर हैं, किन्तु तीर्थ चार प्रकार के वर्णों से युक्त श्रमणसंघ है। यथा – श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और श्राविकाएं।
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Hindi 105 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चोरो परलोगम्मि वि नारय-तिरिएसु लहइ दुक्खाइं । मनुयत्तणे वि दीनो दारिद्दोवद्दुओ होइ ॥

Translated Sutra: चोर परलोक में भी नरक एवं तिर्यंच गति में बहुत दुःख पाता है; मनुष्यभवमें भी दीन और दरिद्रता से पीड़ता है। चोरी से निवर्तनेवाले श्रावक के लड़के ने जिस तरह से सुख पाया, कीढ़ी नाम की बुढ़िया के घर में चोर आए। उन चोर के पाँव का अंगूठा बुढ़िया ने मोर के पीछे से बनाया तो उस निशानी राजा ने पहचानकर श्रावक के पुत्र को छोड़कर बाकी
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

व्रत सामायिक आरोपणं

Hindi 29 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह होज्ज देसविरओ सम्मत्तरओ रओ य जिनधम्मे । तस्स वि अणुव्वयाइं आरोविज्जंति सुद्धाइं ॥

Translated Sutra: अब देशविरति श्रावक समकित के लिए रक्त और जिनवचन के लिए तत्पर हो उसे भी शुद्ध अणुव्रत मरण के समय आरोपण किये जाते हैं।
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

व्रत सामायिक आरोपणं

Hindi 31 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नियदव्वमउव्वजिणिंदभवण-जिनबिंब-वरपइट्ठासु । वियरइ पसत्थपुत्थय-सुतित्थ-तित्थयरपूयासु ॥

Translated Sutra: प्रधान जिनेन्द्र प्रसाद, जिनबिम्ब और उत्तम प्रतिष्ठा के लिए तथा प्रशस्त ग्रन्थ लिखवाने में, सुतीर्थ में और तीर्थंकर की पूजा के लिए श्रावक अपने द्रव्य का उपयोग करे।
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

व्रत सामायिक आरोपणं

Hindi 32 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ सो वि सव्वविरईकयाणुराओ विसुद्धमइ-काओ । छिन्नसयणाणुराओ विसयविसाओ विरत्तो य ॥

Translated Sutra: यदि वो श्रावक सर्व विरति संयम के लिए प्रीतिवाला, विरुद्ध मन, (वचन) और कायावाला, स्वजन परिवार के अनुराग रहित, विषम पर खेदवाला और वैराग्यवाला हो –
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

व्रत सामायिक आरोपणं

Hindi 33 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संथारयपव्वज्जं पवज्जई सो वि नियमनिरवज्जं । सव्वविरईपहाणं सामइयचरित्तमारुहइ ॥

Translated Sutra: वो श्रावक संथारा समान दीक्षा को अंगीकार करे और नियम द्वारा दोष रहित सर्व विरति रूप पाँच महाव्रत से प्रधान सामायिक चारित्र अंगीकार करे।
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Hindi 34 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सो सामइयधरो १ पडिवन्नमहव्वओ य जो साहू २ । देसविरओ य ३ चरिमं ‘पच्चक्खामि’त्ति निच्छइओ ॥

Translated Sutra: जब वो सामायिक चारित्र धारण करनेवाला और महाव्रत को अंगीकार करनेवाला साधु और अंतिम पच्चक्खाण करूँ वैसे निश्चयवाला देशविरति श्रावक – विशिष्ट गुण द्वारा महान गुरु के चरणकमल में मस्तक द्वारा नमस्कार कर के कहता है कि हे भगवन्‌ ! तुम्हारी अनुमति से भक्त परिज्ञा अनशन मैं अंगीकार करता हूँ। सूत्र – ३४, ३५
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Hindi 133 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संगो महाभयं जं विहेडिओ सावएण संतेणं । पुत्तेण हिए अत्थम्मि मणिवई कुंचिएण जहा ॥

Translated Sutra: परिग्रह बड़े भय का कारण है, क्योंकि पुत्र ने द्रव्य चोरने के बावजूद भी श्रावक कुंचिक शेठ ने मुनिपति मुनि को शंका से पीड़ित किया।
Bhaktaparigna भक्तपरिज्ञा Ardha-Magadhi

आचरण, क्षमापना आदि

Hindi 170 Gatha Painna-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिणामविसुद्धीए सोहम्मे सुरवरो महिड्ढीओ । आराहिऊण जायइ भत्तपरिन्नं जहन्नं सो ॥

Translated Sutra: वो (श्रावक) भक्त परिज्ञा को जघन्य से आराधना कर के परिणाम की विशुद्धि द्वारा सौधर्म देवलोकमें महर्द्धिक देवता होते हैं।
Chatusharan चतुश्शरण Ardha-Magadhi

सुकृत अनुमोदना

Hindi 55 Gatha Painna-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सो दुक्कडगरिहादलिउक्कडदुक्कडोफुडंभणइ । सुकडाणुरायसमुइन्नपुन्नपुलयंकुरकरालो ॥

Translated Sutra: अब दुष्कृत की निन्दा से कड़े पाप कर्म का नाश करनेवाले और सुकृत के राग से विकस्वर होनेवाली पवित्र रोमराजीवाले वह जीव प्रकटरूप से ऐसा कहता है – अरिहंतों का जो अरिहंतपन, सिद्धों का जो सिद्धपन, आचार्य के जो आचार उपाध्याय का जो में उपाध्याय पन। तथा – साधु का जो उत्तम चरित्र, श्रावक लोग का देशविरतिपन और समकितदृष्टि
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Hindi 37 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं नो सम्मं पट्ठविताइं भवंति। एवं दंसनसावगोत्ति पढमा उवासगपडिमा।

Translated Sutra: (उपासक प्रतिमा – १) क्रियावादी मानव सर्व (श्रावक श्रमण) धर्म रूचिवाला होता है। लेकिन सम्यक्‌ प्रकार से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्‌खाण, पौषधोपवास का धारक नहीं होता (लेकिन) सम्यक्‌ श्रद्धावाला होता है, यह प्रथम दर्शन – उपासक प्रतिमा जानना। (जो उत्कृष्ट से एक मास की होती है।)
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दसा-६ उपाशक प्रतिमा

Hindi 47 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण -पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परि-ण्णाते भवति, उद्दिट्ठभत्ते से परिण्णाते भवति। से णं खुरमुंडए वा लुत्तसिरए वा गहितायारभंडगनेवत्थे जे इमे समणाणं

Translated Sutra: अब ग्यारहवी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व (साधु – श्रावक) धर्म की रूचिवाला होने के बावजूद उक्त सर्व प्रतिमा को पालन करते हुए उद्दिष्ट भोजन परित्यागी होता है। वो सिर पर मुंड़न करवाता है या लोच करता है। वो साधु आचार और पात्र – उपकरण ग्रहण करके श्रमण – निर्ग्रन्थ का वेश धारण करता है। उनके लिए प्ररूपित श्रमणधर्म
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 109 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते–मानुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंधाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरीसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्प-जहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोगंसि। ते णं तत्थ नो अन्नं देवं णो अन्नं देविं अभिजुंजिय-अभि-जुंजिय परियारेंति, नो अप्पनिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेंति, नो अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेंति। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि तं अहमवि आगमेस्साइं

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का निरूपण किया है यावत्‌ जो स्वयं विकुर्वित देवलोक में कामभोग का सेवन करते हैं। (यहाँ तक सब कथन पूर्व सूत्र – १०८ के अनुसार जानना) हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! कोई निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी ऐसा निदान करके बिना आलोचना – प्रतिक्रमण किए यदि काल करे यावत्‌ देवलोक में उत्पन्न होकर
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 110 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– से य परक्कममाणे दिव्वमानुस्सेहिं कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा– मानुस्सगा कामभोगा अधुवा अनितिया असासता सडण पडण विद्धंसणधम्मा उच्चार पासवण खेल सिंघाण वंत पित्त सुक्क सोणियसमुब्भवा दुरुय उस्सास निस्सासा दुरुय मुत्त पुरोसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अनितिया असासता चला चयणधम्मा पुनरागमणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्स विप्पजहणिज्जा। जइ इमस्स सुचरियस्स तव नियम बंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमेस्साणं से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है (शेष कथन प्रथम निदान समान जानना) मानुषिक विषयभोग अध्रुव यावत्‌ त्याज्य हैं। दिव्यकाम भोग भी अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत एवं अस्थिर हैं। जन्म – मरण बढ़ानेवाले हैं। पहले या पीछे अवश्य त्याज्य हैं। यदि मेरे तप – नियम – ब्रह्मचर्य का कोई फल हो तो मैं विशुद्ध जाति
Dashashrutskandha दशाश्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

दशा १0 आयति स्थान

Hindi 114 Sutra Chheda-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं सदेवमनुयासुराए परिसाए मज्झगते एवं आइक्खइ एवं भासति एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ आयातिट्ठाणे नामं अज्जो! अज्झयणे, सअट्ठं सहेउयं सकारणं सुत्तं च अत्थं च तदुभयं च भुज्जो-भुज्जो उवदंसेति।

Translated Sutra: उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर ने राजगृह नगर के बाहर गुणशील चैत्य में एकत्रित देव – मानव आदि पर्षदा के बीच कईं श्रमण – श्रमणी श्रावक – श्राविका को इस प्रकार आख्यान, प्रज्ञापन और प्ररूपण किया।हे आर्य ! ‘‘आयति स्थान’’ नाम के अध्ययन का अर्थ – हेतु – व्याकरण युक्त और सूत्रार्थ और स्पष्टीकरण युक्त सूत्रार्थ
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा

Hindi 1 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अमर-नरवंदिए वंदिऊण उसभाइए जिनवरिंदे । वीरवरपच्छिमंते तेलोक्कगुरू गुणाइन्ने ॥

Translated Sutra: त्रैलोक्य गुरु – गुण से परिपूर्ण, देव और मानव द्वारा पूजनीय, ऋषभ आदि जिनवर और अन्तिम तीर्थंकर महावीर को नमस्कार करके निश्चे आगमविद्‌ किसी श्रावक संध्याकाल के प्रारम्भ में जिसका अहंकार जीत लिया है वैसे वर्धमानस्वामी की मनोहर स्तुति करता है। और वो स्तुति करनेवाले श्रावक की पत्नी सुख शान्ति से सामने बैठकर
Devendrastava देवेन्द्रस्तव Ardha-Magadhi

मङ्गलं, देवेन्द्रपृच्छा

Hindi 7 Gatha Painna-09 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘बत्तीसं देविंद’त्ति भणियमित्तम्मि सा पियं भणइ । अंतरभासं ताहे काहामी कोउहल्लेणं ॥

Translated Sutra: श्रावक की पत्नी अपने प्रिय को कहती है कि इस तरह यहाँ जो बत्तीस देवेन्द्र कहलाए हैं उसके लिए मेरी जिज्ञासा का संतोष करने के लिए विशेष व्याख्या करो।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

आचार्यस्वरूपं

Hindi 32 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुद्धं सुसाहुमग्गं कहमाणो ठवइ तइयपक्खम्मि । अप्पाणं, इयरो पुण गिहत्थधम्माओ चुक्को त्ति ॥

Translated Sutra: खुद प्रमादी हो, तो भी शुद्ध साधुमार्ग की प्ररूपणा करे और खुद को साधु एवं श्रावकपक्ष के अलावा तीसरे संविज्ञपक्ष में स्थित करे। लेकिन इससे विपरीत अशुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करनेवाले खुद को गृहस्थधर्म से भी भ्रष्ट करते हैं।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 80 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बीयपएणं सारूविगाइ-सड्ढाइमाइएहिं च । कारिंती जयणाए, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥

Translated Sutra: लेकिन अपवादपद में सारूपिक आदि या श्रावक आदि के पास यतना से वैसा करवाएं।
Gacchachar गच्छाचार Ardha-Magadhi

गुरुस्वरूपं

Hindi 82 Gatha Painna-07A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हासं खेड्डा कंदप्पं नाहियवायं न कीरए जत्थ । धावण-डेवण-लंघण-ममकाराऽवण्णउच्चरणं ॥

Translated Sutra: और हाँसी, क्रीड़ा, कंदर्प, नास्तिकवाद, बेवक्त कपड़े धोना, वंडी, गड्ढा आदि ठेकना साधु श्रावक पर क्रोधादिक से लांघण करना, वस्त्र पात्रादि पर ममता और अवर्णवाद का उच्चारण आदि जिस गच्छ में न किया जाए उसे सम्यग्‌ गच्छ मानना चाहिए।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 54 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जहा णं जंबू! धनेणं सत्थवाहेणं नो धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा कयपडिकया इ वा लोगजत्ता इ वा नायए इ वा घाडियए इ वा सहाए इ वा सुहि त्ति वा विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ संविभागे कए, नण्णत्थ सरीरसारक्खणट्ठाए। एवामेव जंबू! जे णं अम्हं निग्गंथे वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे ववगय-ण्हाणुमद्दण-पुप्फ-गंध-मल्लालंकार-विभूसे इमस्स ओरालिय-सरीरस्स नो वण्णहेउं वा नो रूवहेउं वा नो बलहेउं वा नो विसयहेउं वा तं विपुलं असनं पानं खाइमं साइमं आहारमाहारेइ, नन्नत्थ नाणदंसणचरित्ताणं बहणट्ठयाए, से णं इहलोए चेव बहूणं समणाणं

Translated Sutra: जम्बू ! जैसे धन्य सार्थवाह ने ‘धर्म है’ ऐसा समझकर या तप, प्रत्युपकार, मित्र आदि मानकर विजय चोर को उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम में से संविभाग नहीं किया था, सिवाय शरीर की रक्षा करने के। इसी प्रकार हे जम्बू ! हमारा जो साधु या साध्वी यावत्‌ प्रव्रजित होकर स्नान, उपामर्दन, पुष्प, गंध, माला, अलंकार आदि शृंगार को
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ अंड

Hindi 60 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए से णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव से वनमयूरी-अंडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मयूरी-अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिंछस-मावण्णे भेयसमावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कीलावणए मयूरीपोयए भविस्सइ उदाहु नो भविस्सइ? त्ति कट्टु तं मयूरी-अंडयं अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेइ चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ अभिक्खणं-अभिक्खणं कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ। तए णं से मयूरी-अंडए अभिक्खणं-अभिक्खणं उव्वत्तिज्जमाणे परियत्तिज्जमाणे आसारि-ज्जमाणे संसारिज्जमाणे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उनमें जो सागरदत्त का पुत्र सार्थवाह दारक था, वह कल सूर्य के देदीप्यमान होने पर जहाँ वन – मयूरी का अंडा था, वहाँ आया। आकर उस मयूरी अंडे में शंकित हुआ, उसके फल की आकांक्षा करने लगा कि कब इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होगी ? विचिकित्सा को प्राप्त हुआ, भेद को प्राप्त हुआ, कलुषता को प्राप्त हुआ। अत एव वह विचार
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