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Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१०

प्राभृत-प्राभृत-२२ Hindi 89 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता एतेसि णं छप्पन्नाए नक्खत्ताणं–किं सया पातो चंदेण सद्धिं जोयं जोएति? किं सया सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएति? किं सया दुहओ पविट्ठित्ता-पविट्ठित्ता चंदेण सद्धिं जोयं जोएति? ता एतेसि णं छप्पन्नाए नक्खत्ताणं किमपि तं जं सया पातो चंदेण सद्धिं जोयं जोएति। नो सया सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएति। नो सया दुहओ पविट्ठित्ता-पविट्ठित्ता चंदेण सद्धिं जोयं जोएति। नन्नत्थ दोहिं अभीईहिं। ता एतेणं दो अभीई पायंचिय-पायंचिय चोत्तालीसं-चोत्तालीसं अमावासं जोएंति, नो चेव णं पुण्णिमासिणिं।

Translated Sutra: इन छप्पन नक्षत्रों में ऐसे कोई नक्षत्र नहीं है जो सदा प्रातःकाल में चन्द्र से योग करके रहते हैं। सदा सायंकाल और सदा उभयकाल चन्द्र से योग करके रहनेवाला भी कोई नक्षत्र नहीं है। केवल दो अभिजीत नक्षत्र ऐसे हैं जो चुंवालीसवी – चुंवालीसवी अमावास्या में निश्चितरूप से प्रातःकाल में चन्द्र से योग करते हैं, पूर्णिमा
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-११

Hindi 98 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते संवच्छराणादी आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमे पंच संवच्छरा पन्नत्ता, तं जहा–चंदे चंदे अभिवड्ढिते चंदे अभिवड्ढिते। ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स के आदी आहितेति वदेज्जा? ता जे णं पंचमस्स अभिवड्ढितसंवच्छरस्स पज्जवसाणे से णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स आदी अनंतर-पुरक्खडे समए। ता से णं किं पज्जवसिते आहितेति वदेज्जा? ता जे णं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स आदी से णं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे अनंतरपच्छाकडे समए। तं समयं च णं चंदे केणं नक्खत्तेणं जोएति? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं छदुवीसं मुहुत्ता छदुवीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! संवत्सर का प्रारंभ किस प्रकार से कहा है ? निश्चय से पाँच संवत्सर कहे हैं – चांद्र, चांद्र, अभिवर्धित, चांद्र और अभिवर्धित। इसमें जो पाँचवे संवत्सर का पर्यवसान है वह अनन्तर पुरस्कृत समय यह प्रथम संवत्सर की आदि है, द्वितीय संवत्सर की जो आदि है वहीं अनन्तर पश्चात्कृत्‌ प्रथम संवत्सर का समाप्ति काल
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१२

Hindi 104 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमाओ पंच वासिकीओ पंच हेमंतीओ आउट्टीओ पन्नत्ताओ। ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं वासिकिं आउट्टिं चंदे केणं नक्खत्तेणं जोएति? ता अभीइणा, अभीइस्स पढमसमए। तं समयं च णं सूरे केणं नक्खत्तेणं जोएति? ता पूसेणं, पूसस्स एगूणवीसं मुहुत्ता तेत्तालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेत्तीसं चुण्णिया भागा सेसा। ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं वासिकिं आउट्टिं चंदे केणं नक्खत्तेणं जोएति? ता संठाणाहिं, संठाणाणं एक्कारस मुहुत्ता ऊतालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता तेपण्णं चुण्णिया भागा सेसा।

Translated Sutra: एक युग में पाँच वर्षाकालिक और पाँच हैमन्तिक ऐसी दश आवृत्ति होती है। इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम वर्षाकालिक आवृत्ति में चंद्र अभिजीत नक्षत्र से योग करता है, उस समय में सूर्य पुष्य नक्षत्र से योग करता है, पुष्य नक्षत्र से उनतीस मुहूर्त्त एवं एक मुहूर्त्त के तेयालीस बासठांश भाग तथा बासठवें भाग को सडसठ
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१२

Hindi 105 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं पढमं हेमंतिं आउट्टिं चंदे केणं नक्खत्तेणं जोएति? ता हत्थेणं, हत्थस्स णं पंच मुहुत्ता पन्नासं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं सत्तट्ठिधा छेत्ता सट्ठिं चुण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं नक्खत्तेणं जोएति? ता उत्तराहिं आसाढाहिं, उत्तराणं आसाढाणं चरिमसमए। ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चं हेमंतिं आउट्टिं चंदे केणं नक्खत्तेणं जोएति? ता सतभिसयाहिं, सतभिसयाणं दुन्नि मुहुत्ता अट्ठावीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स बावट्ठिभागं च सत्तट्ठिधा छेत्ता छत्तालीसं चुण्णिया भागा सेसा। तं समयं च णं सूरे केणं नक्खत्तेणं जोएति?

Translated Sutra: इस पंच संवत्सरात्मक युग में प्रथम हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चंद्र हस्तनक्षत्र से और सूर्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र से योग करता है, दूसरी हैमन्तकालिकी आवृत्ति में चंद्र शतभिषा नक्षत्र से योग करता है, इसी तरह तीसरी में चन्द्र का योग पुष्य के साथ, चौथी में चन्द्र का योग मूल के साथ और पाँचवी हैमन्तकालिकी आवृत्ति में
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१३

Hindi 108 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमाओ बावट्ठिं पुण्णिमासिणीओ बावट्ठिं अमावासाओ पन्नत्ताओ। बावट्ठिं एते कसिणा रागा, बावट्ठिं एते कसिणा विरागा। एते चउव्वीसे पव्वसते एते चउव्वीसे कसिणरागविरागसते, जावतिया णं पंचण्हं संवच्छराणं समया एगेणं चउव्वीसेणं समयसतेनूनका एवतिया परित्ता असंखेज्जा देसरागविरागसता भवंतीति मक्खाता। ता अमावासाओ णं पुण्णिमासिणी चत्तारि बाताले मुहुत्तसते छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता पुण्णिमासिणीओ णं अमावासा चत्तारि बाताले मुहुत्तसते छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेज्जा। ता अमावासाओ णं अमावासा अट्ठपंचासीते मुहुत्तसते

Translated Sutra: निश्चय से एक युग में बासठ पूर्णिमा और बासठ अमावास्या होती है, बासठवीं पूर्णिमा सम्पूर्ण विरक्त और बासठवीं अमावास्या सम्पूर्ण रक्त होती है। यह १२४ पक्ष हुए। पाँच संवत्सर काल से यावत्‌ किंचित्‌ न्यून १२४ प्रमाण समय असंख्यात समय देशरक्त और विरक्त होता है। अमावास्या और पूर्णिमा का अन्तर ४४२ मुहूर्त्त एवं
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१७

Hindi 116 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चयणोववाता आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति २ एवं जहेव हेट्ठा तहेव जाव ता एगे पुण एवमाहंसु–ता अणुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति–एगे एवमाहंसु २५। वयं पुण एवं वदामो–ता चंदिमसूरिया णं देवा महिड्ढिया महाजुतीया महाबला महाजसा महाणुभावा महासोक्खा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वरगंधधरा वराभरणधरा अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए काले अण्णे चयंति

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! इनका च्यवन और उपपात कैसे कहा है ? इस विषय में पच्चीस प्रतिपत्तियाँ हैं – एक कहता है कि अनुसमय में चंद्र और सूर्य अन्यत्र च्यवते हैं, अन्यत्र उत्पन्न होते हैं…यावत्‌… अनुउत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में अन्यत्र च्यवते हैं – अन्यत्र उत्पन्न होते हैं। समस्त पाठ प्राभृत – छह के अनुसार समझ लेना। भगवंत फरमाते
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१८

Hindi 127 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जोतिसिया णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं। ता जोतिसिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं। ता चंदविमाने णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं। ता चंदविमाने णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं। ता सूरविमाने णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?

Translated Sutra: ज्योतिष्क देवों की स्थिति जघन्य से पल्योपम का आठवा भाग, उत्कृष्ट से एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम है। ज्योतिष्क देवी की जघन्य स्थिति वहीं है, उत्कृष्ट ५०००० वर्षासाधिक अर्ध पल्योपम है। चंद्रविमान देव की जघन्य स्थिति एक पल्योपम का चौथा भाग और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की है। चंद्रविमान देवी
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 141 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता धायईसंडं णं दीवे कालोए नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जाव नो विसमचक्कवाल-संठाणसंठिते। ता कालोए णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता कालोए णं समुद्दे अट्ठ जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते, एक्कानउतिं जोयणसत-सहस्साइं सत्तरिं च सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता कालोए णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा। ता कालोए समुद्दे बातालीसं चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बातालीसं सूरिया तवेंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा, एक्कारस बावत्तरा

Translated Sutra: कालोद नामक समुद्र जो वृत्त, वलयाकार एवं समचक्रविष्कम्भ वाला है वह चारों ओर से धातकीखण्ड को घीरे हुए रहा है। उसका चक्रवाल विष्कम्भ आठ लाख योजन और परिधि ९१७०६०५ योजन से किंचित्‌ अधिक है। कालोद समुद्र में ४२ चंद्र प्रभासित होते थे – होते हैं और होंगे, ४२ – सूर्य तापित करते थे – करते हैं और करेंगे, ११७६ नक्षत्रों
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 142 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कानउतिं सतराइं, सहस्साइं परिरओ तस्स । अहियाइं छच्च पंचुत्तराइं कालोदधिवरस्स

Translated Sutra: देखो सूत्र १४१
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 143 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बातालीसं चंदा, बातालीसं च दिनकरा दित्ता । कालोदहिंमि एते, चरंति संबद्धलेसागा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४१
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 145 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठावीसं कालोदहिंमि बारस य सहस्साइं । नव य सता पन्नासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १४१
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 146 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कालोयं णं समुद्दं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुक्खरवरे णं दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता समचक्कवाल-संठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते। ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं? ता सोलस जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बानउतिं च सतसहस्साइं अउणानउतिं च सहस्साइं अट्ठचउनउते जोयणसते परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता चोतालं चंदसतं पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चोतालं सूरियाणं

Translated Sutra: पुष्करवर नामका वृत्त – वलयाकार यावत्‌ समचक्रवाल संस्थित द्वीप है कालोद समुद्र को चारों ओर से घीरे हुए है। पुष्करवर द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ सोलह लाख योजन है और उसकी परिधि १,९२,४९,८४९ योजन है। पुष्करवरद्वीप में १४४ चंद्र प्रभासित हुए हैं – होते हैं और होंगे, १४४ सूर्य तापीत करते थे – करते हैं और करेंगे, ४०३२
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 175 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] केणं वड्ढति चंदो, परिहानी केण होति चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, केणणुभावेण चंदस्स ॥

Translated Sutra: चंद्र की वृद्धि और हानि कैसे होती है ? चंद्र किस अनुभाव से कृष्ण या प्रकाशवाला होता है ? कृष्णराहु का विमान अविरहित – नित्य चंद्र के साथ होता है, वह चंद्र विमान से चार अंगुल नीचे विचरण करता है। शुक्लपक्ष में जब चंद्र की वृद्धि होती है, तब एक एक दिवस में बासठ – बासठ भाग प्रमाण से चंद्र उसका क्षय करता है। पन्द्रह
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 177 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बावट्ठिं-बावट्ठिं, दिवसे-दिवसे तु सुक्कपक्खस्स । जं परिवड्ढति चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं

Translated Sutra: देखो सूत्र १७५
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 179 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं वड्ढति चंदो, परिहानी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, एयनुभावेण चंदस्स ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १७५
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 182 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं जंबुद्दीवे, दुगुणा लवणे चउग्गुणा हुंति । लावणगा य तिगुणिता, ससिसूरा धायईसंडे ॥

Translated Sutra: इस प्रकार जंबूद्वीप में दो चंद्र, दो सूर्य उनसे दुगुने चार – चार चंद्र – सूर्य लवणसमुद्र में, उनसे तीगुने चंद्र – सूर्य घातकीघण्ड में हैं। जंबूद्वीप में दो, लवणसमुद्र में चार और घातकीखण्ड में बारह चंद्र होते हैं। घातकीखण्ड से आगे – आगे चंद्र का प्रमाण तीनगुना एवं पूर्व के चंद्र को मिलाकर होता है। (जैसे कि –
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Hindi 192 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति। ता

Translated Sutra: मनुष्य क्षेत्र के अन्तर्गत्‌ जो चंद्र – सूर्य – ग्रह – नक्षत्र और तारागण हैं, वह क्या ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पोपपन्न ? विमानोपपन्न है ? अथवा चारोपपन्न है ? वे देव विमानोपपन्न एवं चारोपपन्न है, वे चारस्थितिक नहीं होते किन्तु गतिरतिक – गतिसमापन्नक – ऊर्ध्वमुखीकलंबपुष्प संस्थानवाले हजारो योजन तापक्षेत्रवाले,
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Hindi 195 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता नत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु–ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, बुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयंति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! राहु की क्रिया कैसे प्रतिपादित की है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियाँ हैं – एक कहता है कि – राहु नामक देव चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है, दूसरा कहता है कि राहु नामक कोई देव विशेष है ही नहीं जो चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है। पहले मतवाला का कथन यह है कि – चंद्र या सूर्य को ग्रहण करता हुआ कभी अधोभाग को ग्रहण
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Hindi 196 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा? ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो मियंके विमाने कंता देवा कंताओ देवीओ कंताइं आसन-सयन-खंभ-भंडमत्तोवगरणाइं, अप्पणावि य णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभगे पियदंसणे सुरूवे ता एवं खलु चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा। ता कहं ते सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा? ता सूरादिया णं समयाति वा आवलियाति वा आनापानुति वा थोवेति वा जाव ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीति वा, एवं खलु सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा।

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! चंद्र को शशी क्युं कहते हैं ? ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चंद्र के मृग चिन्हवाले विमान में कान्त – देव, कान्तदेवीयाँ, कान्त आसन, शयन, स्तम्भ, उपकरण आदि होते हैं, चंद्र स्वयं सुरूप आकृतिवाला, कांतिवान्‌, लावण्ययुक्त और सौभाग्य पूर्ण होता है इसलिए ‘चंद्र – शशी’ ऐसा कहा जाता है। हे भगवन्‌ ! सूर्य को आदित्य
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Hindi 197 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा, जहा हेट्ठा तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं। एवं सूरस्सवि भाणितव्वं। ता चंदिमसूरिया णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? ता से जहानामए–केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहे अत्थत्थी अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवसिते, से णं ततो लद्धट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुनरवि नियगघरं हव्वमागए ण्हाते कतबलिकम्मे कतकोतुक मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं

Translated Sutra: ज्योतिषेन्द्र ज्योतिष राज चंद्र की कितनी अग्रमहिषीयाँ है ? चार – चंद्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा इत्यादि कथन पूर्ववत्‌ जान लेना। सूर्य का कथन भी पूर्ववत्‌। वह चंद्र – सूर्य कैसे कामभोग को अनुभवते हुए विचरण करते हैं ? कोई पुरुष यौवन के आरम्भकाल वाले बल से युक्त, सदृश पत्नी के साथ तुर्त में विवाहीत
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Hindi 198 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे अट्ठासीतिं महग्गहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगालए वियालए लोहितक्खे सनिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे नीले नीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी मानवगे कासे फासे धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे नियल्ले पयल्ले जडियायलए अरुणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे निच्चालोए निच्चुज्जोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमंकरे

Translated Sutra: निश्चय से यह अठ्ठासी महाग्रह कहे हैं – अंगारक, विकालक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, आधुनिक, प्राधूणिक, कण, कणक, कणकणक, कणवितानक, कणसंताणक, सोम, सहित, आश्वासन, कायोपग, कर्बटक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, कंस, कंसनाभ, कंसवर्णाभ, नील, नीलावभास, रूप्य, रूप्यभास, भस्म, भस्मराशी, तिल, तिलपुष्प – वर्ण, दक, दकवर्ण, काक, काकन्ध, इन्द्राग्नि,
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Hindi 203 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धुरए पमुहे वियडे, विसंधिकप्पे पयल्ले । जडियाइल्लए अरुणे, अग्गिल काले महाकाले

Translated Sutra: देखो सूत्र १९९
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

सूर्य प्रज्ञप्तिन पात्रता

Hindi 211 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो पवयण-कुल-गण-संघबाहिरो नाणविनयपरिहीणो । अरहंतथेरगणहरमेरं किर होति वोलीणो ॥

Translated Sutra: जो प्रवचन, कुल, गण या संघ से बाहर निकाले गए हो, ज्ञान – विनय से हीन हो, अरिहंत – गणधर और स्थवीर की मर्यादा से रहित हो – (ऐसे को यह प्रज्ञप्ति नहीं देना।)
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

Gujarati 1 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा पमुइयजनजानवया जाव पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं मिहिलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं माणिभद्दे नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तीसे णं मिहिलाए नयरीए जियसत्तू नामं राया, धारिणी नामं देवी, वण्णओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं तम्मि माणिभद्दे चेइए सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ जाव राया जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए।

Translated Sutra: શ્રી વીતરાગ પરમાત્માને નમસ્કાર થાઓ. અરિહંતોને નમસ્કાર થાઓ. તે કાળે, તે સમયે(ચોથા આરામાં ભગવંત મહાવીર વિચારતા હતા ત્યારે) મિથિલા નામે ઋદ્ધિ સંપન્ન અને સમૃદ્ધ નગરી હતી, ત્યાં પ્રમુદિત લોકો રહેતા હતા યાવત્‌ તે પ્રાસાદીય, દર્શનીય, અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ હતી. તે મિથિલા નગરીની બહાર ઈશાન દિશામાં અહીં માણિભદ્ર નામક
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

Gujarati 2 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे जाव एवं वयासी–

Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવન્‌ મહાવીરના મુખ્ય શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ નામે અણગાર, ગૌતમ ગોત્રીય હતા. સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વજ્રઋષભ નારાચ સંઘયણી હતા. યાવત્‌ તે આ પ્રમાણે બોલ્યા –
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-२

प्राभृत-प्राभृत-२ Gujarati 32 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए चारं चरति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता मंडलओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति, तेसि णं अयं दोसे, ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए भेयघाएणं संकमति एवतियं च णं अद्धं पुरतो न गच्छति, पुरतो अगच्छमाणे मंडलकालं परिहवेति, तेसि णं अयं दोसे। तत्थ जेते एवमाहंसु–ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे सूरिए कण्णकलं निव्वेढेति, तेसि

Translated Sutra: તે એક મંડલથી બીજા મંડલમાં સંક્રમણ કરતો – કરતો સૂર્ય કઈ રીતે ચાર ચરે છે ? સૂર્યના એક મંડલ પરથી બીજા મંડલ ઉપર જવાના વિષયમાં અન્યતીર્થિકોની બે પ્રતિપત્તિ(માન્યતા)ઓ કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – તે વિષયમાં નિશ્ચે આ બે પ્રતિપત્તિઓ કહી છે – તેમાં એક એ પ્રમાણે કહે છે કે – તે એક મંડલથી બીજા મંડલમાં સંક્રમણ કરતો – કરતો સૂર્ય
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-८

Gujarati 39 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ... ... एवं परिहावेतव्वं–सोलसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ते दिवसे

Translated Sutra: સૂર્યની આપે ઉદય સંસ્થિતિ(વ્યવસ્થા) આપે કઈ રીતે કહી છે ? તેમાં આ ત્રણ પ્રતિપત્તિ (અન્ય તીર્થિકોની માન્યતા) કહેલી છે – ૧. કોઈક અન્યતીર્થિકો એમ કહે છે કે – જ્યારે જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં દક્ષિણાર્ધમાં અઢાર મુહૂર્ત્તનો દિવસ થાય છે, ત્યારે ઉત્તરાર્દ્ધમાં પણ અઢાર મુહૂર્ત્તનો દિવસ થાય છે. જ્યારે ઉત્તરાર્દ્ધમાં અઢાર
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प्राभृत-१७

Gujarati 116 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चयणोववाता आहिताति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति २ एवं जहेव हेट्ठा तहेव जाव ता एगे पुण एवमाहंसु–ता अणुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव चंदिमसूरिया अण्णे चयंति अण्णे उववज्जंति–एगे एवमाहंसु २५। वयं पुण एवं वदामो–ता चंदिमसूरिया णं देवा महिड्ढिया महाजुतीया महाबला महाजसा महाणुभावा महासोक्खा वरवत्थधरा वरमल्लधरा वरगंधधरा वराभरणधरा अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए काले अण्णे चयंति

Translated Sutra: ચંદ્ર અને સૂર્યનું ચ્યવન (મરણ) અને ઉપપાત કઈ રીતે કહેલા છે ? ચંદ્ર અને સૂર્યનું ચ્યવન અને ઉપપાતના વિષયમાં આ પચીશ પ્રતિપત્તિઓ(અન્યતીર્થિકની માન્યતા) કહેલી છે – ૧. તેમાં એક એમ કહે છે કે – અનુસમય જ ચંદ્ર – સૂર્ય અન્ય સ્થાને ચ્યવી, અન્યત્ર ઉપજે છે. ૨. એક વળી એમ કહે છે કે – અનુમુહૂર્ત્ત જ ચંદ્ર – સૂર્ય અન્ય સ્થાને ચ્યવી,
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प्राभृत-१८

Gujarati 127 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता जोतिसिया णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं। ता जोतिसिणीणं देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं। ता चंदविमाने णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं। ता चंदविमाने णं देवीणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? ता जहन्नेणं चउब्भागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पन्नासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं। ता सूरविमाने णं देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૫
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 141 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता धायईसंडं णं दीवे कालोए नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते जाव नो विसमचक्कवाल-संठाणसंठिते। ता कालोए णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता कालोए णं समुद्दे अट्ठ जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते, एक्कानउतिं जोयणसत-सहस्साइं सत्तरिं च सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता कालोए णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा। ता कालोए समुद्दे बातालीसं चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, बातालीसं सूरिया तवेंसु वा तवेंति वा तविस्संति वा, एक्कारस बावत्तरा

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૯
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 142 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कानउतिं सतराइं, सहस्साइं परिरओ तस्स । अहियाइं छच्च पंचुत्तराइं कालोदधिवरस्स

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૯
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 143 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बातालीसं चंदा, बातालीसं च दिनकरा दित्ता । कालोदहिंमि एते, चरंति संबद्धलेसागा ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૯
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 145 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठावीसं कालोदहिंमि बारस य सहस्साइं । नव य सता पन्नासा, तारागणकोडिकोडीणं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૯
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 146 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कालोयं णं समुद्दं पुक्खरवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुक्खरवरे णं दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता समचक्कवाल-संठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते। ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं? ता सोलस जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बानउतिं च सतसहस्साइं अउणानउतिं च सहस्साइं अट्ठचउनउते जोयणसते परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा। ता पुक्खरवरे णं दीवे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता चोतालं चंदसतं पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा, चोतालं सूरियाणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૯
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 175 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] केणं वड्ढति चंदो, परिहानी केण होति चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, केणणुभावेण चंदस्स ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૭૫. ચંદ્ર કઈ રીતે વધે છે ? ચંદ્રની હાનિ કઈ રીતે થાય છે? ચંદ્ર કયા અનુભાવથી કાળો કે શુક્લ થાય છે? સૂત્ર– ૧૭૬. કૃષ્ણ રાહુ વિમાન નિત્ય ચંદ્રથી અવિરહિત હોય છે. ચાર અંગુલ ચંદ્રની નીચેથી ચરે છે. સૂત્ર– ૧૭૭. શુક્લ પક્ષમાં જ્યારે ચંદ્રની વૃદ્ધિ થાય છે, ત્યારે એક – એક દિવસમાં ૬૨ – ૬૨ ભાગ પ્રમાણથી ચંદ્ર તેનો ક્ષય
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 177 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बावट्ठिं-बावट्ठिं, दिवसे-दिवसे तु सुक्कपक्खस्स । जं परिवड्ढति चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૫
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 179 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं वड्ढति चंदो, परिहानी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोण्हो वा, एयनुभावेण चंदस्स ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૫
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-१९

Gujarati 192 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति। ता

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૫
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Gujarati 195 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता नत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु–ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, बुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयंति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता

Translated Sutra: તે રાહુકર્મ કઈ રીતે કહેલ છે ? તે વિષયમાં નિશ્ચે આ બે પ્રતિપત્તિઓ કહેલી છે – તેમાં એક એમ કહે છે કે – રાહુ નામે દેવ છે, જે ચંદ્ર કે સૂર્યને ગ્રસિત કરે છે. એક એમ કહે છે. એક વળી એમ કહે છે – જે ચંદ્ર – સૂર્યને ગ્રસે છે, તેવો રાહુ નામે કોઈ દેવ નથી. પહેલા મતવાળો કહે છે કે ચંદ્ર કે સૂર્યને ગ્રહણ કરતો રાહુ ક્યારેક અધોભાગને ગ્રહણ
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Gujarati 197 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा, जहा हेट्ठा तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं। एवं सूरस्सवि भाणितव्वं। ता चंदिमसूरिया णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति? ता से जहानामए–केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहे अत्थत्थी अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवसिते, से णं ततो लद्धट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुनरवि नियगघरं हव्वमागए ण्हाते कतबलिकम्मे कतकोतुक मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૬
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Gujarati 198 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे अट्ठासीतिं महग्गहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगालए वियालए लोहितक्खे सनिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे नीले नीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी मानवगे कासे फासे धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे नियल्ले पयल्ले जडियायलए अरुणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे निच्चालोए निच्चुज्जोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमंकरे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૮. તેમાં નિશ્ચે આ૮૮ – મહાગ્રહો કહેલા છે. તે આ રીતે – ૧. અંગારક, ૨. વિકાલક, ૩. લોહિતાક્ષ, ૪. શનૈશ્ચર, ૫. આધુનિક, ૬. પ્રાધુનિક, ૭. કણ,૮. કનક,૯. કણકનક. ૧૦. કણવિતાનક, ૧૧. કણ સંતાનક, ૧૨. સોમ, ૧૩. સહિત, ૧૪. આશ્વાસન, ૧૫. કાયોપગ, ૧૬. કર્બટક, ૧૭. અજકરક, ૧૮. દુંદુભક, ૧૯. શંખ, ૨૦. શંખનાભ. ૨૧. શંખવર્ણાભ, ૨૨. કંસ, ૨૩. કંસનાભ, ૨૪. કંસવર્ણાભ, ૨૫.
Suryapragnapti સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર Ardha-Magadhi

प्राभृत-२०

Gujarati 203 Gatha Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] धुरए पमुहे वियडे, विसंधिकप्पे पयल्ले । जडियाइल्लए अरुणे, अग्गिल काले महाकाले

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૮
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा

उद्देशक-१ Hindi 266 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उसिया वि इत्थिपोसेसु पुरिसा इत्थिवेयखेत्तण्णा । पण्णासमण्णिया वेगे नारीणं वसं उवकसंति ॥

Translated Sutra: जो पुरुष स्त्रियों के साथ सहवास कर चूके हैं, स्त्रीवेद के परिसर के ज्ञाता हैं उनमें कुछ प्रज्ञा से समन्वित होते हुए भी स्त्रियों के वशीभूत हो जाते हैं। व्यभिचारी मनुष्यों के हाथ – पैर छेद कर, आग में सेककर, चमड़ी माँस नीकालकर उसके शरीर को क्षार से सिंचित किया जाता है। सूत्र – २६६, २६७
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-२ अनुकूळ उपसर्ग Hindi 190 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इच्चेव णं सुसेहंति कालुणीयउवट्ठिया । विबद्धो नाइसंगेहि तओऽगारं पहावइ ॥

Translated Sutra: इस प्रकार करुणार्द्र हो कर बन्धु साधु को शिक्षा वचन कहते हैं। उस ज्ञातिजनों के संग से बंधा हुआ भारे कर्मी आत्मा प्रव्रज्या छोड़कर घर वापस आ जाता है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख Hindi 204 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा संगामकालम्मि ‘पिट्ठओ भीरु वेहइ’ । वलयं गहणं णूमं को जाणइ पराजयं? ॥

Translated Sutra: जैसे युद्ध के समय भीरु पृष्ठ भाग में गढ़े, खाई और गुफा का प्रेक्षण करता है, क्योंकि कौन जाने कब पराजय हो जाए।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख Hindi 209 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे उ संगामकालम्मि णाया सूरपुरंगमा । ‘न ते पिट्ठमुवेहिंति किं परं मरणं सिया? ॥

Translated Sutra: जो शूर – पुरंगम विख्यात हैं, वे संग्रामकाल में पीछे नहीं देखते। भला, मरण से ज्यादा और क्या होगा ?
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-५ नरक विभक्ति

उद्देशक-२ Hindi 348 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाइं फासाइं फुसंति बालं णिरंतरं तत्थ चिरट्ठिईयं । न हम्ममाणस्स उ होइ ताणं एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं ॥

Translated Sutra: ये दुःख चिरकाल तक अज्ञानी को निरन्तर स्पर्शित करते हैं। हन्यमान का कोई त्राता नहीं है। एक मात्र वह स्वयं ही उन दुःखों का अनुभव करता है।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१ समय

उद्देशक-३ Hindi 75 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंवुडा अणादीयं भमिहिंति पुणो-पुणो । कप्पकालमुवज्जंति ठाणा आसुरकिब्बिसिय ॥

Translated Sutra: वे असंवृत मनुष्य इस अनादि संसार में बार – बार भ्रमण करेंगे। वे कल्प परिमित काल तक आसुर एवं किल्बिषिक स्थानों में उत्पन्न होते हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-१ Hindi 94 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘कामेहि य संथवेहि य’ कम्मसहा कालेन जंतवो । ताले जह बंधणच्चुए एवं आउखयम्मि तुट्टई ॥

Translated Sutra: मृत्यु आने पर प्राणी काम – भोग और सम्बन्धों को तोड़कर कर्म सहित चले जाते हैं। आयुष्य क्षय होने पर वे ताड़ फल की तरह टूटकर गिर जाते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-१ Hindi 105 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ कालुणियाणि कासिया जइ रोयंति य पुत्तकारणा । दवियं भिक्खुं समुट्ठियं नो ‘लब्भंति णं सण्णवेत्तए’ ॥

Translated Sutra: यदि वे उस श्रमण के समक्ष करुण विलाप कर आकर्षित करना चाहे, तो भी वे साधना में उद्यत उस भिक्षु को समझाकर गृहस्थ में नहीं ले जा सकते।
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