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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 431 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तित्ताइं निच्चं
बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा– अरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी,
पंतजीवी, लूहजीवी।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा– ठाणातिए, उक्कुडुआसणिए, पडिमट्ठाई, वीरासनिए, नेसज्जिए।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं Translated Sutra: पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ की महानिर्जरा और महापर्यवसान – मुक्ति होती है। यथा – ग्लानि के बिना आचार्य की सेवा करने वाला, ग्लानि के बिना उपाध्याय की सेवा करने वाला, ग्लानि के बिना स्थविर की सेवा करने वाला, ग्लानि के बिना तपस्वी की सेवा करने वाला, ग्लानि के बिना ग्लान की सेवा करने वाला। पाँच कारणों से श्रमण | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 432 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–अगिलाए आयरिय-वेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए थेरवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गिलाणवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा– अगिलाए सेहवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए कुलवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गणवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए संघवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे साहम्मियं संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे नातिक्कमति, तं जहा–१. सकिरियट्ठाणं पडि Translated Sutra: पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ साम्भोगिक साधर्मिक को विसंभोगी करे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। यथा – अकृत्य करने वाले को। अकृत्य करके आलोचना न करने वाले को। आलोचना करके प्रायश्चित्त न करने वाले को। प्रायश्चित्त लेकर भी आचरण न करने वाले को। ‘‘अरे ! ये स्थविर ही बार – बार अकृत्य का सेवन करते हैं | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 443 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं छउमत्थे णं उदिण्णे परिस्सहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खीज्जा अहियासेज्जा, तं जहा–
१. उदिण्णकम्मे खलु अयं पुरिसे उम्मत्तगभूते। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा निच्छोडेति वा निब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा नेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदंति वा विच्छिंदति वा भिंदति वा अवहरति वा।
२. जक्खाइट्ठे खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा निच्छोडेति वा निब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा नेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा Translated Sutra: पाँच कारणों से छद्मस्थजीव (साधु) उदय में आये हुए परीषहों और उपसर्गों को – समभाव से सहन करता है। समभाव से क्षमा करता है। समभाव से तितिक्षा करता है। समभाव से निश्चल होता है। समभाव से विचलित होता है वह इस प्रकार है। कर्मोदय से यह पुरुष उन्मत्त है इसलिए – मुझे आक्रोशवचन बोलता है। दुर्वचनों से मेरी भर्त्सना करता | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 450 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाओ उद्दिट्ठाओ गणियाओ वियंजियाओ पंच महण्णवाओ महानदीओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा, तं जहा–गंगा, जउणा, सरऊ, एरावती, मही।
पंचहिं ठाणेहिं कप्पति, तं जहा–१. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खंसि वा, ३. पव्वहेज्ज वा णं कोई, ४. दओघंसि वा एज्जमाणंसि महता वा, ५. अनारिएसु। Translated Sutra: निर्ग्रन्थ और निग्रन्थियों को ये पाँच महानदियाँ एक मास में या दो या तीन बार – तैरकर पार करना या नौका द्वारा पार करना नहीं कल्पता है। यथा – गंगा, यमुना, सरयू, ऐरावती, मही। पाँच कारणों से पार करना कल्पता है, क्रुद्ध राजा आदि के भय से। दुष्काल होने पर। अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर। बाढ़ के प्रवाह में बहते | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 451 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पढमपाउसंसि गामाणुगामं दूइज्जित्तए। पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ, तं जहा– १. भयंसि वा, २. दुब्भिक्खंसि वा, ३. पव्वहेज्ज वा णं कोई, ४. दओघंसि वा एज्जमाणंसि महता वा, ५. अणारिएहिं।
वासावासं पज्जोसविताणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा गामाणुगामं दूइज्जित्तए।
पंचहिं ठाणेहिं कप्पइ, तं जहा– १. नाणट्ठयाए, २. दंसणट्ठयाए, ३. चरित्तट्ठयाए, ४. आयरिय-उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा, ५. आयरिय-उवज्झायाण वा बहिता वेआवच्चकरणयाए। Translated Sutra: निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को प्रावृट् ऋतु (प्रथम वर्षा) में ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है, किन्तु पाँच कारणों से कल्पता है। यथा – क्रुद्ध राजा आदि के भय से। दुष्काल होने पर यावत् किसी महान् अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर। वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को एक गाँव से | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 453 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे रायंतेउरमनुपविसमाने नाइक्कमति, तं जहा–
१. नगरे सिया सव्वतो समंता गुत्ते गुत्तदुवारे, बहवे समणमाहणा नो संचाएंति भत्ताए वा पाणाए वा
निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तेसिं विन्नवणट्ठयाए रायंतेउरमनुपविसेज्जा।
२. पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणमाने रायंतेउरमनुपविसेज्जा।
३. हयस्स वा गयस्स वा दुट्ठस्स आगच्छमाणस्स भीते रायंतेउरमनुपविसेज्जा।
४. परो व णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाय रायंतेउरमनुपवेसेज्जा।
५. बहिता व णं आरामगयं वा उज्जाणगयं वा रायंतेउरजणो सव्वतो समंता संपरिक्खिवित्ता णं
सन्निवेसिज्जा।
इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं Translated Sutra: पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में प्रवेश करे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। यथा – पर सैन्य से घिर गया हो या आक्रमण के भय से नगर के द्वार बन्द कर दिये गए हों और श्रमण ब्राह्मण आहार – पानी के लिए कहीं आ जा न सकते हों तो श्रमण – निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में सूचना देने के लिए जा सकता है। प्राति | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 455 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं निग्गंथा निग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति, तं जहा-
१. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य एगं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धमडविमनुपविट्ठा, तत्थेगयतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति।
२. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कव्वडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा निगमंसि वा आसमंसि वा सन्निवेसंसि वा रायहाणिंसि वा वासं उवागता एगतिया जत्थ उवस्सयं लभंति, एगतिया नो लभंति, तत्थेगतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति।
३. अत्थेगइया निग्गंथा Translated Sutra: पाँच कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ एक जगह ठहरे, सोये या बैठे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्र – मण नहीं होता है। यथा – निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ कदाचित् अनेक योजन लम्बी, निर्जन एवं अगम्य अटवी में पहुँच जावे तो – किसी ग्राम, नगर यावत् राजधानी में निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थियों में से किसी एक को ही उपाश्रय | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 459 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहे ववहारे पन्नत्ते, तं जहा–आगमे, सुते, आणा, धारणा, जीते।
जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुते सिया, सुतेणं ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ सुते सिया जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ आणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ धारणा सिया जहा से तत्थ जीते सिया, जीतेणं ववहारं पट्ठवेज्जा।
इच्चेतेहिं पंचहि ववहारं पट्ठवेज्जा–आगमेणं सुतेणं आणाए धारणाए जीतेणं।
जधा-जधा से तत्थ आगमे सुते आणा धारणा जीते तधा-तधा ववहारं पट्ठवेज्जा।
से किमाहु भंते! आगमवलिया समणा निग्गंथा?
इच्चेतं Translated Sutra: व्यवहार पाँच प्रकार का है, यथा – आगम व्यवहार, श्रुत व्यवहार, आज्ञा व्यवहार, धारणा व्यवहार, जीत व्यवहार। किसी विवादास्पद विषय में जहाँ तक आगम से कोई निर्णय नीकलता हो वहाँ तक आगम के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए। जहाँ किसी आगम से निर्णय न नीकलता हो वहाँ श्रुत से व्यवहार करना चाहिए। जहाँ श्रुत से निर्णय न नीकलता | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 475 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे निग्गंथिं गिण्हमाने वा अवलंबमाने वा नातिक्कमति, तं जहा–
१. निग्गंथिं च णं अन्नयरे पसुजातिए वा पक्खिजातिए वा ओहातेज्जा, तत्थ निग्गंथे निग्गंथिं गिण्हमाने वा अवलंबमाने वा नातिक्कमति।
२. निग्गंथे निग्गंथिं दुग्गंसि वा विसमंसि वा पक्खलमाणिं वा पवडमाणिं वा गिण्हमाने वा अवलंबमाने वा नातिक्कमति।
३. निग्गंथे निग्गंथिं सेयंसि वा पंकंसि वा पणगंसि वा उदगंसि वा उक्कसमाणिं वा उबुज्जमाणिं वा गिण्हमाने वा अवलंब-माने वा नातिक्कमति।
४. निग्गंथे निग्गंथिं णावं आरुभमाने वा ओरोहमाने वा नातिक्कमति।
५. खित्तचित्तं दित्तचित्तं जक्खाइट्ठं उम्मायपत्तं Translated Sutra: पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी को पकड़ कर रखे या सहारा दे तो भगवान की आज्ञा का अति – क्रमण नहीं करता है। साध्वी को यदि कोई उन्मत्त पशु या पक्षी मारता हो। दूर्ग या विषम मार्ग में साध्वी प्रस्खलित हो या गिर रही हो। निर्ग्रन्थी कीचड़ में फस गई हो या लिपट गई हो। निर्ग्रन्थी को नाव पर चढ़ाना या उतारना | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Hindi | 477 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं आयरिय-उवज्झायस्स गणावक्कमने पन्नत्ते, तं जहा–
१. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आणं वा धारणं वा नो सम्मं पउंजित्ता भवति।
२. आयरिय-उवज्झाए गणंसि आधारायणियाए कितिकम्मं वेणइयं नो सम्मं पउंजित्ता भवति।
३. आयरिय-उवज्झाए गणंसि जे सुयपज्जवजाते धारेति, ते काले-काले नो सम्ममनुपवादेत्ता भवति।
४. आयरिय-उवज्झाए गणंसि सगणियाए वा परगणियाए वा निग्गंथीए बहिल्लेसे भवति।
५. मित्ते नातिगणे वा से गणाओ अवक्कमेज्जा, तेसिं संगहोवग्गहट्ठयाए गणावक्कमने पन्नत्ते। Translated Sutra: पाँच कारणों से आचार्य और उपाध्याय गण छोड़कर चले जाते हैं। गण में आचार्य और उपाध्याय की आज्ञा या निषेध का सम्यक् प्रकार से पालन न होता हो। गण में वय और ज्ञान ज्येष्ठ का वन्दनादि व्यवहार सम्यक् प्रकार से पालन करवा न सके तो। गण में श्रुत की वाचना यथोचित रीति से न दे सके तो। स्वगण की या परगण की निर्ग्रन्थी में | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Hindi | 483 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंच नियंठा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाए, बउसे, कुसीले, नियंठे, सिणाते।
पुलाए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणपुलाए, दंसणपुलाए, चरित्तपुलाए, लिंगपुलाए, अहासुहुमपुलाए नामं पंचमे।
बउसे पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–आभोगबउसे, अनाभोगबउसे, संवुडबउसे, असंवुडबउसे, अहासुहुमबउसे नामं पंचमे।
कुसीले पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–नाणकुसीले, दंसणकुसीले, चरित्तकुसीले, लिंगकुसीले, अहासुहुमकुसीले नामं पंचमे।
नियंठे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–पढमसमयनियंठे, अपढमसमयनियंठे, चरिमसमयनियंठे, अचरिमसमयनियंठे अहासुहुमनियंठे नामं पंचमे।
सिणाते पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–अच्छवी, असबले, अकम्मंसे, संसुद्धनाणदंसणधरे Translated Sutra: निर्ग्रन्थ पाँच प्रकार के हैं, पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ, स्नातक। पुलाक पाँच प्रकार के हैं, यथा – ज्ञान पुलाक, दर्शन पुलाक, चारित्र पुलाक, लिंग पुलाक, यथासूक्ष्म पुलाक। बकुश पाँच प्रकार के हैं। – भोग बकुश, अनाभोग बकुश, संवृत्त बकुश, असंवृत बकुश, यथा सूक्ष्म बकुश। कुशील पाँच प्रकार के हैं, यथा – ज्ञान कुशील, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Hindi | 484 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पंच वत्थाइं धारित्तए वा परिहरेत्तए वा, तं जहा–जंगिए, भंगिए, साणए, पोत्तिए, तिरीडपट्टए नामं पंचमए।
कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पंच रयहरणाइं धारित्तए वा परिहरेत्तए वा, तं जहा–उण्णिए, उट्टिए, साणए, पच्चापिच्चिए, मुंजापिच्चिए नामं पंचमए। Translated Sutra: निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को पाँच प्रकार के वस्त्रों का उपभोग या परिभोग कल्पता है, जांगमिक कंबल आदि भांगमिक – अलसी का वस्त्र। सानक – शण का वस्त्र। पोतक – कपास का वस्त्र। तिरीडपट्ट – वृक्ष की छाल का वस्त्र। निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को पाँच प्रकार के रजोहरणों का उपभोग या परिभोग कल्पता है। यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 519 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छहिं ठाणेहिं निग्गंथे निग्गंथिं गिण्हमाने वा अवलंबमाने वा णाइक्कमइ, तं जहा–खित्तचित्तं, दित्तचित्तं, जक्खाइट्ठं, उम्मायपत्तं, उवसग्गपत्तं, साहिकरणं। Translated Sutra: छः कारणों से निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी को पकड़कर रखे या सहारा दे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता। यथा – विक्षिप्त को, क्रुद्ध को, यक्षाविष्ट को, उन्मत्त को, उपसर्ग युक्त को, कलह करती हुई को। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 520 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छहिं ठाणेहिं निग्गंथा निग्गंथीओ य साहम्मियं कालगतं समायरमाणा नाइक्कमंति, तं जहा–अंतोहिंतो वा बाहिं नीणेमाणा, बाहीहिंतो वा निब्बाहिं नीणेमाणा, उवेहेमाणा वा, उवासमाणा वा, अणुन्नवेमाणा वा, तुसिणीए वा संपव्वयमाणा। Translated Sutra: छः कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ कालगत साधर्मिक के प्रति आदरभाव करे तो आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता है। यथा – उपाश्रय से बाहर नीकलना हो, उपाश्रय से बाहर से जंगल में ले जाना हो, मृत को बाँधना हो, जागरण करना हो, अनुज्ञापन कना हो, चूपचाप साथ जावे तो। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 545 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे आहारमाहारेमाने नातिक्कमति, तं जहा– Translated Sutra: छः कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ के आहार करने पर भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता, यथा – क्षुधा शान्त करने के लिए, सेवा करने के लिए, इर्या समिति के शोधन के लिए, संयम की रक्षा के लिए, प्राणियों की रक्षा के लिए, धर्म चिन्तन के लिए। सूत्र – ५४५, ५४६ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 547 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे आहारं वोच्छिंदमाने नातिक्कमति, तं जहा– Translated Sutra: छः कारण से श्रमण निर्ग्रन्थ के आहार त्यागने पर भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता। यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 578 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाइं छ अवयणाइं वदित्तए, तं जहा–अलियवयणे, हीलियवयणे, खिंसितवयणे, फरुसवयणे, गारत्थियवयणे, विउसवितं वा पुणो उदीरित्तए। Translated Sutra: निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को ये छः अवचन कहने योग्य नहीं हैं। यथा – अलीक वचन – असत्य वचन। हीलित वचन – इर्ष्या भरे वचन। खिंसित वचन – गुप्त बातें प्रगट करना। पुरुष वचन – कठोर वचन। गृहस्थ वचन – बेटा, भाई आदि करना। उदीर्ण वचन – उपशान्त कलह को पुनः उद्दीप्त करने वाले वचन। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 800 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे संभोइयं विसंभोइयं करेमाणेनातिक्कमति, तं जहा– आयरियपडिनीयं, उवज्झायपडिनीयं, थेरपडिनीयं, कुलपडिनीयं, गणपडिनीयं, संघपडिनीयं, नाणपडिनीयं, दंसण-पडिनीयं, चरित्तपडिनीयं। Translated Sutra: नौ प्रकार के सांभोगिक श्रमण निर्ग्रन्थों को विसंभोगी करे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता है, यथा – आचार्य के प्रत्यनीक को, उपाध्याय के प्रत्यनीक को, स्थविरों के प्रत्यनीक को, कुल के प्रत्यनीक को, गण के प्रत्यनीक को, संघ के प्रत्यनीक को, ज्ञान के प्रत्यनीक को, दर्शन के प्रत्यनीक को, चारित्र के प्रत्यनीक | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 838 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवतो महावीरस्स नव गणा हुत्था, तं जहा– गोदासगणे, उत्तरबलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामड्ढियगणे, मानवगणे, कोडियगणे। Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों की नव कोटि शुद्ध भिक्षा कही है, यथा – स्वयं जीवों की हिंसा नहीं करता है, दूसरों से हिंसा नहीं करवाता है, हिंसा करने वालों का अनुमोदन नहीं करता है, स्वयं अन्नादि को पकाता नहीं है, दूसरों से पकवाता नहीं है, पकाने वालों का अनुमोदन नहीं करता है, स्वयं आहारादि खरीदता नहीं है, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 871 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! कण्हे वासुदेवे, रामे बलदेवे, उदए पेढालपुत्ते, पुट्टिले, सतए गाहावती, दारुए नियंठे, सच्चई नियंठीपुत्ते, सावियबुद्धे अंबडे परिव्वायए, अज्जावि णं सुपासा पासावच्चिज्जा। आगमे-स्साए उस्सप्पिणीए चाउज्जामं धम्मं पन्नवइत्ता सिज्झिहिंति बुज्झिहिंति मुच्चिहिंति परिनिव्वाइहिंति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिंति। Translated Sutra: | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 875 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भविस्सइ, से य पडिबंधे चउव्विहे पन्नत्ता तं जहा- अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ,
तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंत्तीए मुत्तीए गुत्तीए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय चिय फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति Translated Sutra: उन विमलवाहन भगावन का किसी में प्रतिबंध (ममत्व) नहीं होगा। प्रतिबंध चार प्रकार के हैं, यथा – अण्डज, पोतज, अवग्रहिक, प्रग्रहिक। ये अण्डज – हंस आदि मेरे हैं, ये पोतज – हाथी आदि मेरे हैं, ये अवग्रहिक – मकान, पाट, फलक आदि मेरे हैं। ये प्रग्रहिक – पात्र आदि मेरे हैं। ऐसा ममत्वभाव नहीं होगा। वे विमलवाहन भगवान जिस – जिस | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 76 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पव्वावित्तए–पाईणं चेव, उदीणं चेव।
दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा– मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवट्ठावित्तए, संभुंजित्तए, संवासित्तए, सज्झायमुद्दिसित्तए, सज्झायं समुद्दिसित्तए, सज्झायमनु-जाणित्तए, आलोइत्तए, पडिक्कमित्तए, निंदित्तए, गरहित्तए, विउट्टित्तए, विसोहित्तए, अकरणयाए अब्भुट्ठित्तए अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जित्तए– पाईणं चेव, उदीणं चेव।
दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अपच्छिममारणंतियसंलेहणाजूसणा-जूसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खिताणं पाओवगताणं कालं Translated Sutra: બે દિશા સન્મુખ રહીને નિર્ગ્રન્થો – નિર્ગ્રન્થીને દીક્ષા દેવી કલ્પે – પૂર્વ અને ઉત્તર...એ રીતે ૧. લોચ કરવા, ૨. શિક્ષા આપવા, ૩. ઉપસ્થાપનાર્થે, ૪. સહભોજનાર્થે, ૫. સંવાસાર્થે, ૬. સ્વાધ્યાયના ઉદ્દેશાર્થે, ૭. સમુદ્દેશ માટે, ૮. અનુજ્ઞા માટે, ૯. આલોચના માટે, ૧૦. પ્રતિક્રમણ માટે, ૧૧. નિંદાર્થે, ૧૨. ગર્હાર્થે, ૧૩. છેદનાર્થે, ૧૪. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 110 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो मरणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं नो निच्चं वण्णियाइं नो निच्चं कित्तियाइं नो निच्चं बुइयाइं नो निच्चं पसत्थाइं नो निच्चं अब्भणुण्णायाइं भवंति, तं जहा– वलयमरणे चेव, वसट्टमरणे चेव।
एवं–नियाणमरणे चेव तब्भवमरणे चेव, गिरिपडणे चेव तरुपडणे चेव, जलपवेसे चेव जलनपवेसे चेव, विसभक्खणे चेव सत्थोवाडणे चेव।
दो मरणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं नो निच्चं वण्णियाइं नो निच्चं कित्तियाइं नो निच्चं बुइयाइं नो निच्चं पसत्थाइं नो निच्चं अब्भणुण्णायाइं भवंति। कारणे पुण अप्पडिकुट्ठाइं, तं जहा–वेहानसे चेव गिद्धपट्ठे चेव।
दो मरणाइं समणेणं Translated Sutra: ૧. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોને માટે બે મરણ સદા વર્ણવ્યા નથી, સદા કીર્તિત કર્યા નથી, સદા વ્યક્તરૂપે કહ્યા નથી, સદા પ્રશંસ્યા નથી અને તેના આચરણની અનુમતિ આપી નથી તે – વલાદમરણ – (સંયમમાં ખેદ પામતા મરવું), વશાર્તમરણ – (ઇન્દ્રિય વિષયોને વશ થઇ પતંગની જેમ મરવું). એ જ રીતે બબ્બે ભેદે ૨. નિદાન મરણ, તદ્ભવમરણ. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 166 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ नियंठा नोसण्णोवउत्ता पन्नत्ता, तं जहा–पुलाए, नियंठे, सिणाए।
तओ नियंठा सण्ण-नोसण्णोवउत्ता पन्नत्ता, तं जहा–बउसे, पडिसेवनाकुसीले, कसायकुसीले। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૬. ત્રણ નિર્ગ્રન્થો નોસંજ્ઞોપયુક્ત છે – પુલાક, નિર્ગ્રન્થ, સ્નાતક. ત્રણ નિર્ગ્રન્થ સંજ્ઞોપયુક્ત અને નોસંજ્ઞોપયુક્ત કહ્યા છે – બકુશ, પ્રતિસેવના કુશીલ અને કષાયકુશીલ. સૂત્ર– ૧૬૭. ત્રણ શૈક્ષ્યભૂમિ કહી છે – ઉત્કૃષ્ટ, મધ્યમ, જઘન્ય. છ માસવાળી તે ઉત્કૃષ્ટ, ચાર માસવાળી તે મધ્યમ, સાત અહોરાત્રવાળી તે જઘન્ય. ત્રણ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 179 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी–किंभया पाणा? समणाउसो!
गोतमादी समणा निग्गंथा समणं भगवं महावीरं उवसंकमंति, उवसंकमित्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी– नो खलु वयं देवाणुप्पिया! एयमट्ठं जाणामो वा पासामो वा! तं जदि णं देवाणु-प्पिया! एयमट्ठं नो गिलायंति परिकहित्तए, तमिच्छामो णं देवाणुप्पियाणं अंतिए एयमट्ठं जाणित्तए।
अज्जोति! समणे भगवं महावीरे गोतमादी समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं वयासी– दुक्खभया पाणा समणाउसो!
से णं भंते! दुक्खे केण कडे?
जीवेणं कडे पमादेणं।
से णं भंते! दुक्खे कहं वेइज्जति?
अप्पमाएणं। Translated Sutra: ૧. હે આર્યો ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીર, ગૌતમાદિ શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોને આમંત્રિત કરીને એમ કહ્યું – હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! પ્રાણીઓને કોનાથી ભય છે ? ગૌતમાદિ શ્રમણ નિર્ગ્રન્થો, શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને સમીપ આવે છે, આવીને વંદન, નમસ્કાર કરે છે. વંદન – નમસ્કાર કરીને એમ કહ્યું. હે દેવાનુપ્રિયો ! અમે આ અર્થને જાણતા નથી કે દેખતા નથી, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 180 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवं आइक्खंति एवं भासंति एवं पन्नवेंति एवं परूवेंति कहण्णं समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जति?
तत्थ जा सा कडा कज्जइ, नो तं पुच्छंति। तत्थ जा सा कडा नो कज्जति, नो तं पुच्छंति। तत्थ जा सा अकडा नो कज्जति, नो तं पुच्छंति। तत्थ जा सा अकडा कज्जति, नो तं पुच्छंति। से एवं वत्तव्वं सिया?
अकिच्चं दुक्खं, अफुसं दुक्खं, अकज्जमाणकडं दुक्खं। अकट्टु-अकट्टु ‘पाणा भूया जीवा सत्ता’ वेयणं वेदेंतित्ति वत्तव्वं।
जे ते एवमाहंसु, मिच्छा ते एवमाहंसु। अहं पुण एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पण्णवेमि एवं परूवेमि–किच्चं दुक्खं, फुसं दुक्खं, कज्जमाणकडं दुक्खं। कट्टु-कट्टु Translated Sutra: હે ભગવન્ ! અન્યતીર્થિકો એવું કહે છે, એવું બોલે છે, એવું પ્રજ્ઞાપે છે, એવું પ્રરૂપે છે. કેવી રીતે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોના મતમાં કર્મ દુઃખને માટે થાય છે ? (અહીં ચાર ભાંગા છે) ૧. તેમાં જે કરેલ કર્મ દુઃખને માટે થાય છે, તે નથી પૂછતાં. ૨. તેમાં જે કરેલ કર્મ દુઃખને માટે ન થાય તે પૂછતા નથી. ૩. તેમાં જે કર્મ નથી કરેલ તે દુઃખને માટે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 182 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–सुत्तधरे, अत्थधरे, तदुभयधरे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮૨. પુરુષો ત્રણ પ્રકારે કહ્યા છે – સૂત્રધારક, અર્થધારક, ઉભયધારક. સૂત્ર– ૧૮૩. ૧. નિર્ગ્રન્થ કે નિર્ગ્રન્થીને ત્રણ પ્રકારના વસ્ત્રો ધારણ કરવા અથવા પહેરવા કલ્પે છે – જાંગિક (ઉનનું), ભંગિક (રેશમી), ક્ષૌમિક (સુતરાઉ). ૨. સાધુ – સાધ્વીને ત્રણ પાત્ર ધારવા કે વાપરવા કલ્પે તુંબનું – કાષ્ઠનું – માટીનું પાત્ર. સૂત્ર– | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 186 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे साहम्मियं संभोगियं विसंभोगियं करेमाणे नातिक्कमति, तं जहा–सयं वा दट्ठुं, सड्ढयस्स वा निसम्म, तच्चं मोसं आउट्टति, चउत्थं नो आउट्टति। Translated Sutra: ત્રણ કારણે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ, સમાન ધર્મવાળા સાંભોગિકને વિસંભોગિક કરતો આજ્ઞાનું ઉલ્લંઘન ન કરે. પોતે તેના અકાર્ય જોઈને, શ્રદ્ધેય મુનિના વચનનો નિર્ણય કરીને, મૃષાવાદાદિની ત્રણ વખત આલોચના આપે, ચોથી વખત ન આપે તેને વિસંભોગી કરે. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 195 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउत्थभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–उस्सेइमे, संसेइमे, चाउलधोवने।
छट्ठभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–तिलोदए, तुसोदए, जवोदए।
अट्ठमभत्तियस्स णं भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडिगाहित्तए, तं जहा–आयामए, सोवीरए, सुद्धवियडे।
तिविहे उवहडे पन्नत्ते, तं जहा–फलिओवहडे, सुद्धोवहडे, संसट्ठोवहडे।
तिविहे ओग्गहिते पन्नत्ते, तं जहा–जं च ओगिण्हति, जं च साहरति, जं च आसगंसि पक्खिवति।
तिविधा ओमोयरिया पन्नत्ता, तं जहा–उवगरणोमोयरिया, भत्तपाणोमोदरिया, भावोमोदरिया।
उवगरणमोदरिया तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगे वत्थे, Translated Sutra: ૧. ચતુર્થભક્ત કરેલ ભિક્ષુને ત્રણ પાનકનો સ્વીકાર કલ્પે – ઉત્સ્વેદિમ(લોટનું ધોવાણ), સંસેકિમ(બાફેલા કેર વગેરે ઉકાળ્યા પછી ધોવાણ), ચોખાનું ધોવાણ. ૨. છઠ્ઠભક્તિક ભિક્ષુને ત્રણ સ્થાનકનો સ્વીકાર કલ્પે – તિલોદક, તુસોદક, જવોદક. ૩. અઠ્ઠમભક્તિક ભિક્ષુને ત્રણ પાનકનો સ્વીકાર કલ્પે – આયામક(મગનું ઓસામાન), સૌવીરક(કાંજીનું | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 224 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिहिं ठाणेहिं समये निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–
१. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा सुयं अहिज्जिस्सामि?
२. कया णं अहं एकल्लविहारपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सामि?
३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अनवकंखमाने विहरिस्सामि?
एवं समनसा सवयसा सकायसा पागडेमाने समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति।
तिहिं ठाणेहिं समणोवासए महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–
१. कया णं अहं अप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि?
२. कया णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारितं पव्वइस्सामि?
३. कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झुसिते Translated Sutra: ત્રણ સ્થાન વડે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ મહાનિર્જરા અને મહાપર્યવસાનવાળો થાય છે. તે આ – ૧. ક્યારે હું થોડું કે ઘણુ શ્રુત ભણીશ, ૨. ક્યારે હું એકલવિહારીની પ્રતિમાને અંગીકાર કરીને વિચરીશ, ૩. ક્યારે હું અપશ્ચિમ મારણાંતિક સંલેખનાની સેવનાથી સેવિત થઈ ભાત – પાણીના પ્રત્યાખ્યાન કરી મૃત્યુની આકાંક્ષા વિના પાદપોપગમન સંથારો | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 237 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ ठाणा अव्ववसितस्स अहिताए असुभाए अखमाए अनिस्सेसाए अनानुगामियत्ताए भवंति, तं
१. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए निग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावन्ने कलुससमा-वण्णे निग्गंथं पावयणं नो सद्दहति नो पत्तियति नो रोएति, तं परिस्सहा अभिजुंजिय-अभिजुंजिय अभिभवंति, नो से परिस्सहे अभिजुंजिय-अभिजुंजिय अभिभवइ।
२. से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारितं पव्वइए पंचहिं महव्वएहिं संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावन्ने कलुसस-मावण्णे पंच महव्वताइं नो सद्दहति नो पत्तियति नो रोएति, तं परिस्सहा अभिजुंजिय-अभिजुंजिय अभिभवंति, नो से परिस्सहे अभिजुंजिय-अभिजुंजिय Translated Sutra: જેણે નિશ્ચય નથી કર્યો તેને આ ત્રણ સ્થાનક અહિતને માટે, અશુભને માટે, અયથાર્થને માટે, અનિશ્રેયસાર્થે, અનાનુગામિયત્તપણે થાય છે. તે – ૧. જે મુંડ થઈને ઘેરથી નીકળીને અનગાર પ્રવ્રજ્યા પામેલ સાધુ, નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનમાં શંકાવાળો, કાંક્ષાવાળો, વિતિગિચ્છાવાળો, ભેદસમાપન્ન, કલુષ સમાપન્ન થઈને નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનમાં શ્રદ્ધા | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 303 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अस्सिं समयंसि अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पज्जिउकामेवि न समुप्पज्जेज्जा, तं जहा–
१. अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थिकहं भत्तकहं देसकहं रायकहं कहेत्ता भवति।
२. विवेगेण विउस्सग्गेणं नो सम्ममप्पाणं भावित्ता भवति।
३. पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि नो धम्मजागरियं जागरइत्ता भवति।
४. फासुयस्स एसणिज्जस्स उंछस्स सामुदाणियस्स नो सम्मं गवेसित्ता भवति।
इच्चेतेहिं चउहिं ठाणेहिं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अस्सिं समयंसि अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पज्जि-उकामेवि नो समुप्पज्जेज्जा।
चउहिं ठाणेहिं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा [अस्सिं समयंसि?] अतिसेसे Translated Sutra: ચાર કારણે નિર્ગ્રન્થ અને નિર્ગ્રન્થીને આ સમયમાં કેવળ જ્ઞાનદર્શનની ઉત્પત્તિની ઇચ્છા છતાં ઉત્પન્ન ન થાય. તે આ – (૧) વારંવાર સ્ત્રી કથા, ભોજન કથા, દેશ કથા, રાજ કથાને કહેનાર હોય છે. (૨) જે પોતાના આત્માને વિવેક અને વ્યુત્સર્ગથી ભાવિત ન કરે, (૩) રાત્રિના પૂર્વ – પશ્ચિમ ભાગમાં ધર્મજાગરિકા કરતા નથી. (૪) પ્રાસુક, એષણીય, અલ્પ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 342 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि जाणा पन्नत्ता, तं जहा–जुत्ते नाममेगे जुत्ते, जुत्ते नाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते नाममेगे जुत्ते, अजुत्ते नाममेगे अजुत्ते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–जुत्ते नाममेगे जुत्ते, जुत्ते नाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते नाममेगे जुत्ते, अजुत्ते नाम-मेगे अजुत्ते।
चत्तारि जाणा पन्नत्ता, तं जहा–जुत्ते नाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते नाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते नाममेगे जुत्त-परिणते, अजुत्ते नाममेगे अजुत्तपरिणते।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–जुत्ते नाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते नाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते नाममेगे जुत्त-परिणते, अजुत्ते नाममेगे Translated Sutra: યાન ચાર ભેદે છે – કોઈ યાન બળદોથી યુક્ત હોય અને સામગ્રીથી પણ યુક્ત હોય, કોઈ યાન બળદથી યુક્ત પણ સામગ્રીથી અયુક્ત હોય, કોઈ યાન બળદથી અયુક્ત અને સામગ્રીથી યુક્ત હોય, કોઈ બન્ને રીતે અયુક્ત અને અયુક્ત હોય. આ પ્રમાણે પુરુષો ચાર ભેદે કહ્યા છે – કોઈ યુક્ત અને યુક્ત અર્થાત સમૃદ્ધિથી યુક્ત હોય અને આચાર તથા વેશભૂષાથી પણ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 347 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि दुहसेज्जाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. तत्थ खलु इमा पढमा दुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए निग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेयसमावन्ने कलुससमावन्ने निग्गंथं पावयणं नो सद्दहति नो पत्तियति नो रोएइ, निग्गंथं पावयणं असद्दहमाने अपत्तियमाने अरोएमाने मणं उच्चावयं नियच्छति, विनिघात-मावज्जति–पढमा दुहसेज्जा।
२. अहावरा दोच्चा दुहसेज्जा–से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए सएणं लाभेणं नो तुस्सति, परस्स लाभमासाएति पीहेति पत्थेति अभिलसति, परस्स लाभमासाएमाने पीहेमाने पत्थे-माने अभिलसमाने मणं उच्चावयं नियच्छइ, विनिघातमावज्जति–दोच्चा Translated Sutra: ચાર પ્રકારે દુઃખશય્યા કહી છે, તે આ પ્રમાણે – પહેલી દુઃખશય્યા – કોઈ મુંડિત થઈને ઘેરથી નીકળી અણગાર પ્રવ્રજ્યા લઈ શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા, દ્વિધાભાવને પામે, કલુષતા પામી નિર્ગ્રન્થ શ્રદ્ધા ન કરે, પ્રતીતિ ન કરે, રુચિ ન કરે, નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનની શ્રદ્ધા ન કરતો, પ્રીતિ ન કરતો, રુચિ ન કરતો મનને ઊંચું – નીચું કરે છે, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 430 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं पुरिम-पच्छिमगाणं जिणाणं दुग्गमं भवति, तं जहा– दुआइक्खं, दुव्विभज्जं, दुपस्सं, दुतितिक्खं, दुरणुचरं।
पंचहिं ठाणेहिं मज्झिमगाणं जिणाणं सुग्गमं भवति, तं जहा–सुआइक्खं, सुविभज्जं, सुपस्सं, सुतितिक्खं, सुरनुचरं।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चमब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा–खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणंनिच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं Translated Sutra: પહેલા – છેલ્લા તીર્થંકરોના શિષ્યોને પાંચ સ્થાન કઠીન છે. તે આ – દુરાખ્યેય – (ધર્મતત્ત્વનું આખ્યાન કરવું), દુર્વિભાજ્ય – (ભેદ પ્રભેદ સહવસ્તુતત્ત્વનો ઉપદેશ આપવો), દુર્દર્શ – (તત્ત્વોનું યુક્તિપૂર્વક નિદર્શન), દુરતિતિક્ષ – (પરિષહ ઉપસર્ગ આદિ સહન કરવા), દુરનુચર – (સંયમનું પાલન કરવું). પાંચ સ્થાને મધ્યના ૨૨ – તીર્થંકરોના | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 431 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तित्ताइं निच्चं
बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा– अरसजीवी, विरसजीवी, अंतजीवी,
पंतजीवी, लूहजीवी।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं भवंति, तं जहा– ठाणातिए, उक्कुडुआसणिए, पडिमट्ठाई, वीरासनिए, नेसज्जिए।
पंच ठाणाइं समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं निग्गंथाणं निच्चं वण्णिताइं निच्चं कित्तिताइं निच्चं बुइयाइं निच्चं पसत्थाइं निच्चं अब्भणुण्णाताइं Translated Sutra: પાંચ સ્થાનોમાં શ્રમણનિર્ગ્રન્થ મહાનિર્જરાવાળા અને મહાપર્યવસાનવાળા થાય, તે આ – આચાર્ય વૈયાવચ્ચ કરતા, એ રીતે ઉપાધ્યાયવૈયાવચ્ચ કરતા, સ્થવીરવૈયાવચ્ચ કરતા, તપસ્વીવૈયાવચ્ચ કરતા, ગ્લાનવૈયાવચ્ચ કરતા. પાંચ સ્થાને શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ મહાનિર્જરાવાળા, મહાપર્યવસાનવાળા થાય છે – અગ્લાનપણે (૧) શૈક્ષની, (૨) કુલની, (૩) ગણની, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 432 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–अगिलाए आयरिय-वेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए थेरवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गिलाणवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा– अगिलाए सेहवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए कुलवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गणवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए संघवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे साहम्मियं संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे नातिक्कमति, तं जहा–१. सकिरियट्ठाणं पडि Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૩૨. પાંચ સ્થાનોમાં શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ, સાધર્મિક સાંભોગિકને વિસંભોગિક કરતો જિનાજ્ઞા ઉલ્લંઘતો નથી. (૧) પાપકાર્યને સેવનાર હોય, (૨) સેવીને આલોચના ન કરે, (૩) આલોચીને પ્રાયશ્ચિત્ત ન કરે, (૪) પ્રાયશ્ચિત્ત લઈને તેને પરિપૂર્ણ ન કરે. (૫) જે આ સ્થવિરોનો સ્થિતિ કલ્પ છે તેને ઉલ્લંઘી – ઉલ્લંઘીને વિરુદ્ધ વર્તન કરે, ત્યારે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 443 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं छउमत्थे णं उदिण्णे परिस्सहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खीज्जा अहियासेज्जा, तं जहा–
१. उदिण्णकम्मे खलु अयं पुरिसे उम्मत्तगभूते। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा निच्छोडेति वा निब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा नेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदंति वा विच्छिंदति वा भिंदति वा अवहरति वा।
२. जक्खाइट्ठे खलु अयं पुरिसे। तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा निच्छोडेति वा निब्भंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा नेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा Translated Sutra: પાંચ કારણે છદ્મસ્થ સાધુ ઉદિર્ણ પરીષહ – ઉપસર્ગોને સમ્યક્ રીતે સહે, ખમે, તિતિક્ષે, અધ્યાસિત કરે, તે આ (૧) તે પુરુષ કર્મોદય થકી ઉન્મત્ત જેવો થઈ ગયો છે, તેથી મને તે આક્રોશ વચન બોલે છે, ઉપહાસ કરે છે, ફેંકી દે છે, મારી નિર્ભર્ત્સના કરે છે, બાંધે છે, રુંધે છે, શરીરને છેદે છે, મૂર્ચ્છા પમાડે છે, ઉપદ્રવ કરે છે, મારા વસ્ત્ર, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 453 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे रायंतेउरमनुपविसमाने नाइक्कमति, तं जहा–
१. नगरे सिया सव्वतो समंता गुत्ते गुत्तदुवारे, बहवे समणमाहणा नो संचाएंति भत्ताए वा पाणाए वा
निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तेसिं विन्नवणट्ठयाए रायंतेउरमनुपविसेज्जा।
२. पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणमाने रायंतेउरमनुपविसेज्जा।
३. हयस्स वा गयस्स वा दुट्ठस्स आगच्छमाणस्स भीते रायंतेउरमनुपविसेज्जा।
४. परो व णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाय रायंतेउरमनुपवेसेज्जा।
५. बहिता व णं आरामगयं वा उज्जाणगयं वा रायंतेउरजणो सव्वतो समंता संपरिक्खिवित्ता णं
सन्निवेसिज्जा।
इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं Translated Sutra: પાંચ કારણે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ, રાજાના અંતઃપુરમાં પ્રવેશે તો આજ્ઞાનું ઉલ્લંઘન કરતો નથી – (૧) નગર પરસૈન્યથી ઘેરાયેલ હોય તેથી નગરના દ્વાર બંધ કરાયા હોય, ઘણા શ્રમણ – બ્રાહ્મણ આહાર – પાણી માટે ક્યાંય પ્રવેશ – નિર્ગમન કરી ન શકતા હોય તો વિજ્ઞપ્તિ કરવાને અંતઃપુરમાં જઈ શકે છે. (૨) પ્રાતિહારિક પીઠ, ફલક, સંસ્તારક આદિ પાછા | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 455 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं निग्गंथा निग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति, तं जहा-
१. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य एगं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धमडविमनुपविट्ठा, तत्थेगयतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति।
२. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कव्वडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा निगमंसि वा आसमंसि वा सन्निवेसंसि वा रायहाणिंसि वा वासं उवागता एगतिया जत्थ उवस्सयं लभंति, एगतिया नो लभंति, तत्थेगतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति।
३. अत्थेगइया निग्गंथा Translated Sutra: પાંચ કારણે સાધુ – સાધ્વી એકત્ર સ્થાન, શય્યા, નિષદ્યા કરે તો જિનાજ્ઞાનું અતિક્રમણ કરતા નથી – (૧) જેમ સાધુ – સાધ્વી કદાચિત્ કોઈ મહા લાંબી, નિર્જન, અનિચ્છનીય અટવીમાં પ્રવેશે, ત્યાં એકત્રપણે સ્થાન, શય્યા, નિષદ્યાને કરતા જિનાજ્ઞા ઉલ્લંઘતા નથી. (૨) કેટલાક સાધુ – સાધ્વી ગામમાં, નગરમાં યાવત્ રાજધાનીમાં રહેવાને આવે, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 459 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहे ववहारे पन्नत्ते, तं जहा–आगमे, सुते, आणा, धारणा, जीते।
जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ आगमे सिया जहा से तत्थ सुते सिया, सुतेणं ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ सुते सिया जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ आणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेज्जा।
नो से तत्थ धारणा सिया जहा से तत्थ जीते सिया, जीतेणं ववहारं पट्ठवेज्जा।
इच्चेतेहिं पंचहि ववहारं पट्ठवेज्जा–आगमेणं सुतेणं आणाए धारणाए जीतेणं।
जधा-जधा से तत्थ आगमे सुते आणा धारणा जीते तधा-तधा ववहारं पट्ठवेज्जा।
से किमाहु भंते! आगमवलिया समणा निग्गंथा?
इच्चेतं Translated Sutra: વ્યવહાર પાંચ પ્રકારે કહ્યા – આગમ, શ્રુત, આજ્ઞા, ધારણા, જીત. જ્યાં સુધી આગમથી નિર્ણય થાય ત્યાં સુધી આગમ વડે જ વ્યવહાર કરવો. આગમથી નિર્ણય ન થતો હોય ત્યાં શ્રુતમાં પ્રાપ્ત હોય તો શ્રુત વડે વ્યવહાર કરવો. જો શ્રુત વડે નિર્ણય ન થતો હોય તો આજ્ઞા વડે વ્યવહાર કરવો. આજ્ઞા વડે નિર્ણય ન થતો હોય તો ધારણા અનુસાર વ્યવહાર કરવો. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 475 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे निग्गंथिं गिण्हमाने वा अवलंबमाने वा नातिक्कमति, तं जहा–
१. निग्गंथिं च णं अन्नयरे पसुजातिए वा पक्खिजातिए वा ओहातेज्जा, तत्थ निग्गंथे निग्गंथिं गिण्हमाने वा अवलंबमाने वा नातिक्कमति।
२. निग्गंथे निग्गंथिं दुग्गंसि वा विसमंसि वा पक्खलमाणिं वा पवडमाणिं वा गिण्हमाने वा अवलंबमाने वा नातिक्कमति।
३. निग्गंथे निग्गंथिं सेयंसि वा पंकंसि वा पणगंसि वा उदगंसि वा उक्कसमाणिं वा उबुज्जमाणिं वा गिण्हमाने वा अवलंब-माने वा नातिक्कमति।
४. निग्गंथे निग्गंथिं णावं आरुभमाने वा ओरोहमाने वा नातिक्कमति।
५. खित्तचित्तं दित्तचित्तं जक्खाइट्ठं उम्मायपत्तं Translated Sutra: પાંચ કારણે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ, નિર્ગ્રન્થીને ગ્રહણ કરતો, ટેકો આપતો, આજ્ઞાનું ઉલ્લંઘન કરતો નથી. તે આ પ્રમાણે – (૧) સાધ્વીને જો કોઈ પશુ કે પક્ષીજાતિય મારતા હોય ત્યારે સાધુ સાધ્વીને ગ્રહણ કરે કે અવલંબન આપે તો આજ્ઞાને અતિક્રમતો નથી. (૨) સાધુ સાધ્વીને દુર્ગમાં, વિષમ માર્ગમાં સ્ખલન પામતી કે પડતી હોય ત્યારે ગ્રહણ કરે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 483 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंच नियंठा पन्नत्ता, तं जहा–पुलाए, बउसे, कुसीले, नियंठे, सिणाते।
पुलाए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणपुलाए, दंसणपुलाए, चरित्तपुलाए, लिंगपुलाए, अहासुहुमपुलाए नामं पंचमे।
बउसे पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–आभोगबउसे, अनाभोगबउसे, संवुडबउसे, असंवुडबउसे, अहासुहुमबउसे नामं पंचमे।
कुसीले पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–नाणकुसीले, दंसणकुसीले, चरित्तकुसीले, लिंगकुसीले, अहासुहुमकुसीले नामं पंचमे।
नियंठे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–पढमसमयनियंठे, अपढमसमयनियंठे, चरिमसमयनियंठे, अचरिमसमयनियंठे अहासुहुमनियंठे नामं पंचमे।
सिणाते पंचविधे पन्नत्ते, तं जहा–अच्छवी, असबले, अकम्मंसे, संसुद्धनाणदंसणधरे Translated Sutra: નિર્ગ્રન્થો પાંચ ભેદે કહ્યા – પુલાક, બકુશ, કુશીલ, નિર્ગ્રન્થ, સ્નાતક. પુલાક પાંચ ભેદે છે – જ્ઞાનપુલાક, દર્શન – પુલાક, ચારિત્રપુલાક, લિંગપુલાક, યથાસૂક્ષ્મ પુલાક. બકુશ પાંચ ભેદે છે – આભોગબકુશ, અનાભોગ બકુશ, સંવૃત્ત બકુશ, અસંવૃત્ત બકુશ, યથાસૂક્ષ્મ બકુશ. કુશીલ પાંચ ભેદે છે – જ્ઞાનકુશીલ, દર્શનકુશીલ, ચારિત્રકુશીલ, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 544 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छद्दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– पाईणा, पडीणा, दाहिणा, उदीणा, उड्ढा, अधा।
छहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति, तं जहा– पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अधाए।
छहिं दिसाहिं जीवाणं– आगई वक्कंती आहारे वुड्ढी निवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे नाणाभिगमे जीवाभिगमे अजीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–
पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अघाए।
एवं पंचिंदियतिरिक्खजोनियाणवि।
मनुस्साणवि। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૪૪. છ દિશાઓ કહી છે – પૂર્વ, પશ્ચિમ, દક્ષિણ, ઉત્તર, ઊર્ધ્વ, અધો. (૧) આ છ દિશામાં જીવોની ગતિ પ્રવર્તે છે. એ રીતે (૨) આગતિ, (૩) વ્યુત્ક્રાંતિ, (૪) આહાર, (૫) વૃદ્ધિ, (૬) નિર્વૃદ્ધિ, (૭) વિકુર્વણા, (૮) ગતિપર્યાય, (૯) સમુદ્ – ઘાત, (૧૦) કાલસંયોગ, (૧૧) દર્શનાભિગમ, (૧૨) જ્ઞાનાભિગમ, (૧૩) જીવાભિગમ, (૧૪) અજીવાભિગમ એમ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 800 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे संभोइयं विसंभोइयं करेमाणेनातिक्कमति, तं जहा– आयरियपडिनीयं, उवज्झायपडिनीयं, थेरपडिनीयं, कुलपडिनीयं, गणपडिनीयं, संघपडिनीयं, नाणपडिनीयं, दंसण-पडिनीयं, चरित्तपडिनीयं। Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૦૦. નવ કારણે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ સાંભોગિકને વિસંભોગિક કરતા આજ્ઞાને અતિક્રમતો નથી,તે આ પ્રમાણે ૧. આચાર્યના પ્રત્યનીકને, ૨. ઉપાધ્યાયના પ્રત્યનીકને, ૩. સ્થવીરના પ્રત્યનીકને, ૪. કુલ – ૫. ગણ – ૬. સંઘ પ્રત્યનીકને – ૭. જ્ઞાન – ૮. દર્શન – ૯. ચારિત્રના પ્રત્યનીકને. સૂત્ર– ૮૦૧. બ્રહ્મચર્ય (અધ્યયન) નવ કહેલ છે – શસ્ત્રપરિજ્ઞા, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 836 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नव नेउणिया वत्थू पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૩૬. નવ નૈપૂણિક વસ્તુ કહી છે – સંખ્યાન, નિમિત્ત, કાયિક, પુરાણ, પારિહસ્તિક, પરપંડિત, વાદી, ભૂતિકર્મ, ચૈકિત્સિક. સૂત્ર– ૮૩૭. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને નવ ગણ થયા – ગોદાસ, ઉત્તર બલિસ્સહ, ઉદ્દેહ, ચારણ, ઉર્ધ્વવાતિક, વિશ્વવાદી, કામર્દ્ધિક, માનવ, કોટિક. સૂત્ર– ૮૩૮. શ્રમણ ભગવંત વીરે શ્રમણ નિર્ગ્રન્થોને નવ કોટિ વડે પરિશુદ્ધ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 871 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! कण्हे वासुदेवे, रामे बलदेवे, उदए पेढालपुत्ते, पुट्टिले, सतए गाहावती, दारुए नियंठे, सच्चई नियंठीपुत्ते, सावियबुद्धे अंबडे परिव्वायए, अज्जावि णं सुपासा पासावच्चिज्जा। आगमे-स्साए उस्सप्पिणीए चाउज्जामं धम्मं पन्नवइत्ता सिज्झिहिंति बुज्झिहिंति मुच्चिहिंति परिनिव्वाइहिंति सव्वदुक्खाणं अंतं काहिंति। Translated Sutra: હે આર્યો ! કૃષ્ણ વાસુદેવ, રામ બલદેવ, ઉદય પેઢાલપુત્ર, પોટ્ટિલ, શતક ગાથાપતિ, દારુક નિર્ગ્રન્થ, સત્યકી નિર્ગ્રન્થી પુત્ર, શ્રાવિકાથી બોધિત અંબડ પરિવ્રાજક, પાર્શ્વનાથના પ્રશિષ્યા સુપાર્શ્વા આર્યા, આ નવ આગામી ઉત્સર્પિણીમાં ચાર મહાવ્રતરૂપ ધર્મરૂપી સિદ્ધ થશે યાવત્ અંત કરશે. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 872 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! सेणिए राया भिंभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठितीयंसि णिरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तत्थ नेरइए भविस्सति– काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं। से णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं।
से णं ततो नरयाओ उव्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जनवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૭૨. હે આર્યો ! ભિંભિસાર શ્રેણિક રાજા કાળ માસે કાળ કરીને રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં સીમંતક નરકવાસમાં ૮૪,૦૦૦ વર્ષની સ્થિતિમાં નારકોને વિશે નૈરયિકપણે ઉત્પન્ન થશે. તે ત્યાં નૈરયિક થશે, સ્વરૂપથી કાળો, કાળો દેખાતો યાવત્ વર્ણથી પરમકૃષ્ણ થશે. તે ત્યાં એકાંત દુઃખમય યાવત્ વેદનાને ભોગવશે. તે નરકમાંથી નીકળીને આવતી | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा |
उद्देशक-१ | Hindi | 257 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा उ वज्जए इत्थो विसलित्तं व कंटगं नच्चा ।
ओए कुलाणि वसवत्ती आघाए न से वि निग्गंथे ॥ Translated Sutra: इसलिए स्त्री को विषलिप्त काँटा जानकर वर्जन करना चाहिए। जो ओजस्वी पुरुष कुलों में स्त्रियों को वश करने की बात भी कहता है तो वह निर्ग्रन्थ नहीं है। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-९ धर्म |
Hindi | 460 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं उदाहु निग्गंथे महावीरे महामुनी ।
अनंतनाणदंसी से धम्मं देसितवं सुतं ॥ Translated Sutra: अनन्तज्ञानदर्शी, निर्ग्रन्थ महामुनि महावीर ने ऐसा श्रुतधर्म का उपदेश दिया। |