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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pushpachulika | પુષ્પચૂલા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ थी १० |
Gujarati | 3 | Sutra | Upang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फचूलियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिवडिंसयंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं जहा बहुपुत्तिया जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया,
नवरं–दारियाओ नत्थि। पुव्वभवपुच्छा।
एवं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ चंद्र |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव विहरइ।
इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासइ, पच्छा समणं भगवं महावीरं जहा सूरियाभे आभियोगं Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा राज्य करता था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। दर्शनार्थ परिषद नीकली। उस काल और उस समय में ज्योतिष्कराज ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ सूर्य |
Hindi | 4 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। समोसरणं। जहा चंदो तहा सूरोवि आगओ जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ। पुव्वभवपुच्छा। सावत्थी नयरी। सुपइट्ठे नामं गाहावई होत्था–अड्ढे जहेव अंगई जाव विहरइ। पासो समोसढो, जहा अंगई तहेव पव्वइए, तहेव विराहियसामण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं करेहिइ।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं Translated Sutra: भदन्त ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा था। श्रमण भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। जैसे भगवान की उपासना के लिए चन्द्र आया था उसी प्रकार सूर्य इन्द्र का | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ शुक्र |
Hindi | 5 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सुक्के महग्गहे सुक्कवडिंसए विमाने सुक्कंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जहेव चंदो तहेव आगओ, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ।
भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं पुच्छा। कूडागारसाला दिट्ठंतो।
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी Translated Sutra: भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का यह आशय प्ररूपित किया है तो तृतीय अध्ययन का क्या भाव बताया है ? आयुष्मन् जम्बू ! राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। राजा श्रेणिक था। स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद् नीकली। उस काल और उस समय में शुक्र महाग्रह शुक्रावतंसक विमान में शुक्र सिंहासन पर | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ शुक्र |
Hindi | 7 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गिं हुणइ, चरुं साहेइ, साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता अतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ।
तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चछट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयं गेण्हइ, गेण्हित्ता दाहिणं दिसिं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सानिलमाहणरिसिंअभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि Translated Sutra: तत्पश्चात् उन सोमिल ब्रह्मर्षी ने दूसरा षष्ठक्षपण अंगीकार किया। पारणे के दिन भी आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे, वल्कल वस्त्र पहने यावत् आहार किया, इतना विशेष है कि इस बार वे दक्षिण दिशा में गए और कहा – ‘हे दक्षिण दिशा के यम महाराज ! प्रस्थान के लिए प्रवृत्त सोमिल ब्रह्मर्षी की रक्षा करें और यहाँ जो कन्द, मूल आदि | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ बहुपुत्रिका |
Hindi | 8 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाने सभाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं जहा सूरियाभे जाव भुंजमाणी विहरइ।
इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी Translated Sutra: भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है तो भदन्त ! चतुर्थ अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। राजा श्रेणिक था। स्वामी का पदार्पण हुआ। परिषद् नीकली। उस काल और उस समय में सौधर्मकल्प | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पूर्णभद्र |
Hindi | 9 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पुप्फियाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसरिए। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं पुण्णभद्दे देवे सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाने सभाए सुहम्माए पुण्णभद्दंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जहा सूरियाभे जाव बत्तीसइविहं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। कूडागारसाला। पुव्वभवपुच्छा।
एवं खलु Translated Sutra: भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने पुष्पिका नामक उपांग के चतुर्थ अध्ययन का यह भाव प्रतिपादन किया है तो भगवन् ! पंचम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य था। श्रेणिक राजा था। स्वामी पधारे। परिषद् दर्शन करने नीकली। उस काल और उस समय | |||||||||
Pushpika | पूष्पिका | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ माणिभद्र |
Hindi | 10 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिय राया। सामी समोसरिए।
तेणं कालेणं तेणं समएणं माणिभद्दे देवे सभाए सुहम्माए माणिभद्दंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जहा पुण्णभद्दो तहेव आगमनं नट्टविही पुव्वभवपुच्छा। मणिवई नयरी, माणि-भद्दे गाहावई, थेराणं अंतिए पव्वज्जा, एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूइं वासाइं परियाओ, मासिया संलेहणा, सट्ठिं भत्ताइं, Translated Sutra: भगवन् ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान् ने पुष्पिका के पंचम अध्ययन का यह आशय कहा है तो इसके षष्ठ अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय राजगृह नगर था। गुण – शिलक चैत्य था। राजा श्रेणिक था। महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ। मणिभद्र देव सुधर्मासभा के मणिभद्र सिंहासन पर बैठकर यावत् | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ चंद्र |
Gujarati | 3 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुहम्माए चंदंसि सीहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव विहरइ।
इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासइ, पच्छा समणं भगवं महावीरं जहा सूरियाभे आभियोगं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ सूर्य |
Gujarati | 4 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। समोसरणं। जहा चंदो तहा सूरोवि आगओ जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ। पुव्वभवपुच्छा। सावत्थी नयरी। सुपइट्ठे नामं गाहावई होत्था–अड्ढे जहेव अंगई जाव विहरइ। पासो समोसढो, जहा अंगई तहेव पव्वइए, तहेव विराहियसामण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं करेहिइ।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે જો પુષ્પિકાના અધ્યયન – ૧ – નો યાવત્ આ અર્થ કહ્યો. તો ભગવંત મહાવીરે બીજા અધ્યયનનો શો અર્થ કહેલ છે ? હે જંબૂ ! તે કાળેતે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું, ગુણશીલ નામે ચૈત્ય હતું, ત્યાં શ્રેણિક રાજા હતો. સમોસરણ થયું અર્થાત શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પધાર્યા, ચંદ્રની જેમ સૂર્ય પણ દર્શનાર્થે આવ્યો યાવત્ | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ शुक्र |
Gujarati | 5 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सुक्के महग्गहे सुक्कवडिंसए विमाने सुक्कंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जहेव चंदो तहेव आगओ, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ।
भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं पुच्छा। कूडागारसाला दिट्ठंतो।
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी Translated Sutra: સૂત્ર– ૫. ભગવન્ ! જો નિર્વાણ પ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પુષ્પિકા ઉપાંગના બીજા અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે તો, ભગવંત મહાવીરે ત્રીજા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જમ્બૂ ! તે કાળે રાજગૃહ નામે નગર હતું, ગુણશીલ નામે ચૈત્ય હતું, ત્યાં શ્રેણિક નામે રાજા હતો. કોઈ દિવસે ભગવંત મહાવીર સ્વામી સમોસર્યા, દર્શનાર્થે પર્ષદા | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ शुक्र |
Gujarati | 7 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गिं हुणइ, चरुं साहेइ, साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ, करेत्ता अतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारं आहारेइ।
तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
तए णं से सोमिले माहणरिसी दोच्चछट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयं गेण्हइ, गेण्हित्ता दाहिणं दिसिं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सानिलमाहणरिसिंअभिरक्खउ सोमिलमाहणरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫ | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ बहुपुत्रिका |
Gujarati | 8 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं बहुपुत्तिया देवी सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तिए विमाने सभाए सुहम्माए बहुपुत्तियंसि सोहासणंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं जहा सूरियाभे जाव भुंजमाणी विहरइ।
इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी Translated Sutra: ભગવન્ ! જો નિર્વાણ પ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પુષ્પિકા ઉપાંગના ત્રીજા અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે તો, ભગવંત મહાવીરે ચોથા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? નિશ્ચે હે જંબૂ! તે કાળે તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતુ, ગુણશીલ નામે ચૈત્ય હતુ, શ્રેણિક નામે રાજા હતો. ભગવંત મહાવીર સ્વામી સમોસર્યા, પર્ષદા દર્શનાર્થે નીકળી. તે કાળે | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पूर्णभद्र |
Gujarati | 9 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पुप्फियाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसरिए। परिसा निग्गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं पुण्णभद्दे देवे सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाने सभाए सुहम्माए पुण्णभद्दंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जहा सूरियाभे जाव बत्तीसइविहं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। कूडागारसाला। पुव्वभवपुच्छा।
एवं खलु Translated Sutra: ભગવન્ ! જો નિર્વાણ પ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પુષ્પિકા ઉપાંગના ચોથા અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે તો, ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે, રાજગૃહ નામે નગર હતું, ગુણશીલ નામે ચૈત્ય હતું, શ્રેણિક નામેરાજા હતો. ભગવંત મહાવીરસ્વામી પધાર્યા, પર્ષદા દર્શનાર્થે નીકળી, તે કાળે તે સમયે | |||||||||
Pushpika | પૂષ્પિકા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ माणिभद्र |
Gujarati | 10 | Sutra | Upang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पुप्फियाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स पुप्फियाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिय राया। सामी समोसरिए।
तेणं कालेणं तेणं समएणं माणिभद्दे देवे सभाए सुहम्माए माणिभद्दंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जहा पुण्णभद्दो तहेव आगमनं नट्टविही पुव्वभवपुच्छा। मणिवई नयरी, माणि-भद्दे गाहावई, थेराणं अंतिए पव्वज्जा, एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूइं वासाइं परियाओ, मासिया संलेहणा, सट्ठिं भत्ताइं, Translated Sutra: ભગવન્ ! જો નિર્વાણ પ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પુષ્પિકા ઉપાંગના ચોથા અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે તો, ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે૦ રાજગૃહ નામે નગર હતું, ગુણશીલ નામે ચૈત્ય હતું, શ્રેણિક નામે રાજા હતો. ભગવંત મહાવીરસ્વામી પધાર્યા. તે કાળે તે સમયે માણિભદ્ર દેવ સુધર્માસભામાં | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 1 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमिय समिद्धा जाव पासादीया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। Translated Sutra: उस काल और उस समय में आमलकल्पा नाम की नगरी थी। वह भवनादि वैभव – विलास से सम्पन्न थी यावत् – मनोहर रूप वाली थी और असाधारण सौन्दर्य वाली थी। उस आमलकल्पा नगरीके बाहर ईशान दिशा में आम्रशालवन नामक चैत्य था। वह चैत्य बहुत प्राचीन था उस चैत्यवर्ती श्रेष्ठ अशोकवृक्ष और पृथ्वीशिलापट्टक का वर्णन उववाईसूत्र अनुसार | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 5 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सूरियाभे देवे सोहम्मे कप्पे सूरियाभे विमाने सभाए सुहम्माए सूरियाभंसि सीहासनंसि चउहिं सामानियसाहस्सीहिं, चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं, सत्तहिं अनिएहिं, सत्तहिं अनियाहिवईहिं, सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं, अन्नेहिं बहूहिं सूरियाभ-विमानवासीहिं वेमानिएहिं देवेहिं देवीहिं य सद्धिं संपरिवुडे महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति।
तत्थ समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे (दीवे?) भारहे Translated Sutra: उस काल उस समय में सूर्याभ नामक देव सौधर्म स्वर्ग में सूर्याभ नामक विमान की सुधर्मा सभा में सूर्याभ सिंहासन पर बैठकर चार हजार सामानिक देवों, सपरिवार चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा और बहुत से सूर्याभ विमानवासी वैमानिक देवदेवियों सहित अव्याहत निरन्तर | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 7 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवने चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ तं गच्छह णं तुमे देवानुप्पिया! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं आमलकप्पं नयरिं अंबसालवनं चेइयं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदह नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता साइं-साइं नामगोयाइं साहेइ, ...
... साहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सव्वओ समंता जोयणपरिमंडलं जं किंचि तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा सक्करं वा असुइं अचोक्खं पूइयं दुब्भिगंधं तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय एगंते एडेह, एडेत्ता Translated Sutra: हे देवानुप्रियो ! यथाप्रतिरूप अवग्रह को ग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए श्रमण भगवान महावीर जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरतक्षेत्रवर्ती आमलकल्पा नगरी के बाहर आम्रशालवन चैत्य में बिराजमान हैं। हे देवानुप्रियो ! तुम जाओ और जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित आमलकल्पा नगरी के बाहर आम्र – शालवन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 10 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते आभिओगिया देवा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिम दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, तं जहा–रयनाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजनाणं अंजनं-पुलगाणं रयनाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेंति, परिसाडेत्ता अहासुहुमे पोग्गले परियायंति, परियाइत्ता Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के इस कथन को सूनकर उन आभियोगिक देवों ने हर्षित यावत् विकसितहृदय होकर भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। वे उत्तर – पूर्व दिग्भाग में गए। वहाँ जाकर उन्होंने वैक्रिय समुद्घात किया और संख्यात योजन का दण्ड बनाया जो कर्केतन यावत् रिष्टरत्नमय था और उन रत्नों के यथाबादर पुद्गलों | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 11 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं आभिओगियाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए पायत्ताणियाहिवइं देवं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! सूरियाभे विमाने सभाए सुहम्माए मेघोघरसियगभीरमहुरसद्दं जोयणपरिमंडल सूसरं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे-उल्लालेमाणे महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणे-उग्घोसेमाणे एवं वयाहि–
आणवेइ णं भो! सूरियाभे देवे, गच्छति णं भो! सूरियाभे देवे जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आमलकप्पाए नयरीए अंबसालवने चेइए समणं भगवं महावीरं अभिवंदए, तुब्भेवि णं भो! देवानुप्पिया! Translated Sutra: आभियोगिक देवों से इस अर्थ को सूनने के पश्चात् सूर्याभदेव ने हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हर्षातिरेक से प्रफुल्ल हृदय हो पदाति – अनीकाधिपति को बुलाया और बुलाकर कहा – हे देवानुप्रिय ! तुम शीघ्र ही सूर्याभ विमान की सुधर्मा सभा में स्थित मेघसमूह जैसी गम्भीर मधुर शब्द करने वाली एक योजन प्रमाण गोलाकार सुस्वर घंटा | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पायत्ताणियाहिवती देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जेणेव सूरियाभे विमाने जेणेव सभा सुहम्मा जेणेव मेघोघरसिय-गंभीरमहुरसद्दा जोयणपरिमंडला सुस्सरा घंटा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं मेघोघरसियगंभीरमहुरसद्दं सूसरं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेति।
तए णं तीसे मेघोघरसियगंभीरमहुरसद्दाए जोयणपरिमंडलाए सूसराए घंटाए तिक्खुत्तो उल्लालियाए समाणीए से सूरियाभे विमाने पासायविमान-निक्खुडावडियसद्दघंटापडिसुया-सयसहस्ससंकुले Translated Sutra: तदनन्तर सूर्याभदेव द्वारा इस प्रकार से आज्ञापित हुआ वह पदात्यनीकाधिपति देव सूर्याभदेव की इस आज्ञा को सूनकर हृष्ट – तुष्ट यावत् प्रफुल्ल – हृदय हुआ और विनयपूर्वक आज्ञावचनों को स्वीकार करके सूर्याभ विमान में जहाँ सुधर्मा सभा थी और उसमें भी जहाँ मेघमालवत् गम्भीर मधुर ध्वनि करने वाली योजन प्रमाण गोल सुस्वर | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 13 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते सूरियाभविमानवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य पायत्ताणियाहिवइस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइना परमसोमनस्सिया हरिसवस विसप्प-माणहियया अप्पेगइया वंदनवत्तियाए अप्पेगइया पूयणवत्तियाए अप्पेगइया सक्कारवत्तियाए अप्पेगइया सम्मानवत्तियाए अप्पेगइया कोऊहलवत्तियाए अप्पेगइया असुयाइं सुणिस्सामो, अप्पेग-इया सुयाइं अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामो, अप्पेगइया सूरियाभस्स देवस्स वयणमनुयत्तेमाणा अप्पेगइया अन्नमन्नमनुवत्तेमाणा अप्पेगइया जिनभतिरागेणं अप्पेगइया धम्मो त्ति अप्पेगइया जीयमेयं Translated Sutra: तदनन्तर पदात्यनीकाधिपति देव से इस बात को सूनकर सूर्याभविमानवासी सभी वैमानिक देव और देवियाँ हर्षित, सन्तुष्ट यावत् विकसितहृदय हो, कितने वन्दना करने के विचार से, कितने पर्युपासना की आकांक्षा से, कितने सत्कार की भावना से, कितने सम्मान की ईच्छा से, कितने जिनेन्द्र भगवान प्रति कुतूहलजनित भक्ति – अनुराग से, कितने | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे ते सूरियाभविमानवासिणो बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य सव्विड्ढीए जाव अकालपरिहीनं चेव अंतियं पाउब्भवमाणे पासति, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परम-सोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए आभिओगियं देवं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! अनेगखंभसयसन्निविट्ठं लीलट्ठियसालभंजियागं ईहामिय उसभ तुरग नर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्तं खंभुग्गय वइरवेइया परिगयाभिरामं विज्जाहर जमलजुयल जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्समालणीयं रूवग-सहस्सकलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेसं सुहफासं Translated Sutra: इसके पश्चात् विलम्बि किये बिना उन सभी सूर्याभविमानवासी देवों और देवियों को अपने सामने उपस्थित देखकर हृष्ट – तुष्ट यावत् प्रफुल्लहृदय हो सूर्याभदेव ने अपने आभियोगिक देव को बुलाया और बुलाकर उससे इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रिय ! तुम शीघ्र ही अनेक सैकड़ों स्तम्भों पर संनिविष्ट एक यान की विकुर्वणा करो। जिसमें | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आभिओगिए देवे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरति, तं जहा–रयनाणं वइराणं वेरुलियाणं लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगब्भाणं पुलगाणं सोगंधियाणं जोईरसाणं अंजनाणं अंजनंपुलगाणं रययाणं जायरूवाणं अंकाणं फलिहाणं रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडित्ता Translated Sutra: तदनन्तर वह आभियोगिक देव सूर्याभदेव द्वारा इस प्रकार का आदेश दिये जाने पर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ यावत् प्रफुल्ल हृदय हो दोनों हाथ जोड़ यावत् आज्ञा को सूना यावत् उसे स्वीकार करके वह ईशानकोण में आया। वहाँ आकर वैक्रिय समुद्घात किया और संख्यात योजन ऊपर – नीचे लंबे दण्ड बनाया यावत् यथाबादर पुद्गलों को | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 16 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे आभियोगस्स देवस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए दिव्वं जिणिंदाभिगमनजोग्गं उत्तरवेउव्वियरूवं विउव्वति, विउव्वित्ता चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहि, दोहिं अनिएहिं, तं जहा–गंधव्वाणिएण य नट्ठाणिएण य सद्धिं संपरिवुडे तं दिव्वं जाणविमानं अनुपयाहिणी-करेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणपडिरूवएणं दुरुहति, दुरुहित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासन-वरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसण्णे।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ तं दिव्वं जाणविमानं Translated Sutra: तदनन्तर आभियोगिक देव ने उस सिंहासन के पश्चिमोत्तर, उत्तर और उत्तर पूर्व दिग्भाग में सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देवों के बैठने के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। पूर्व दिशा में सूर्याभदेव की परिवार सहित चार अग्र महिषियों के लिए चार हजार भद्रासनों की रचना की। दक्षिणपूर्व दिशा में सूर्याभदेव की आभ्यन्तर | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 22 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– तुब्भे णं भंते! सव्वं जाणह सव्वं पासह, सव्वओ जाणह सव्वओ पासह, सव्वं कालं जाणह सव्वं कालं पासह, सव्वे भावे जाणह सव्वे भावे पासह। जाणंति णं देवानुप्पिया! मम पुव्विं वा पच्छा वा ममेयरूवं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवानुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं ति, तं इच्छामि णं देवानुप्पियाणं भत्तिपुव्वगं गोयमातियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुइं Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के इस कथन को सूनकर उस सूर्याभदेव ने हर्षित सन्तुष्ट चित्त से आनन्दित और परम प्रसन्न होते हुए श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और निवेदन किया – हे भदन्त ! आप सब जानते हैं और सब देखते हैं। सर्व काल को आप जानते और देखते हैं; सर्व भावों को आप जानते और देखते हैं। अत एव हे देवानुप्रिय | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 23 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे सूरियाभेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे सूरियाभस्स देवस्स एयमट्ठं नो आढाइ नो परियाणइ तुसिणीए संचिट्ठति।
तए णं से सूरियाभे देवे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी– तुब्भे णं भंते! सव्वं जाणह सव्वं पासह, सव्वओ जाणह सव्वओ पासह, सव्वं कालं जाणह सव्वं कालं पासह, सव्वे भावे जाणह सव्वे भावे पासह। जाणंति णं देवानुप्पिया! मम पुव्विं वा पच्छा वा ममेयरूवं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवानुभावं लद्धं पत्तं अभिसमण्णागयं ति, तं इच्छामि णं देवानुप्पियाणं भत्तिपुव्वगं गोयमातियाणं समणाणं निग्गंथाणं दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुइं Translated Sutra: तब सूर्याभदेव के इस प्रकार निवेदन करने पर श्रमण भगवान महावीर ने सूर्याभदेव के इस कथन का आदर नहीं किया, उसकी अनुमोदना नहीं की, किन्तु मौन रहे। तत्पश्चात् सूर्याभदेव ने दूसरी और तीसरी बार भी पुनः इसी प्रकार से श्रमण भगवान महावीर से निवेदन किया – हे भगवन् ! आप सब जानते हैं आदि, यावत् नाट्य – विधि प्रदर्शित करना | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 28 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस वंदनकलसपरिवाडीओ पन्नत्ताओ। ते णं वंदनकलसा वरकमलपइट्ठाणा सुरभिवरवारिपडिपुण्णा चंदनकयचच्चागा आविद्धकंठेगुणा पउमुप्पलपिधाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा महया-महया महिंदकुंभसमाणा पन्नत्ता समणाउसो!
तेसि णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस नागदंतपरिवाडीओ पन्नत्ताओ। ते णं नागदंता मुत्ताजालंतरुसियहेमजाल गवक्खजाल खिंखिणीघंटाजालपरिक्खित्ता अब्भुग्गया अभिनिसिट्ठा तिरियं सुसंपग्गहिया अहेपन्नगद्धरूवगा पन्नगद्धसंठाणसंठिया सव्व-वइरामया अच्छा जाव पडिरूवा महया-महया गयदंतसमाणा पन्नत्ता समणाउसो!
तेसु Translated Sutra: उन द्वारों की दोनों बाजुओं की दोनों निशीधिकाओं में सोलह – सोलह चन्दन – कलशों की पंक्तियाँ हैं, ये चन्दनकलश श्रेष्ठ उत्तम कमलों पर प्रतिष्ठित हैं, उत्तम सुगन्धित जल से भरे हुए हैं, चन्दन के लेप से चर्चित हैं, उनके कंठों में कलावा बंधा हुआ है और मुख पद्मोत्पल के ढक्कनों से ढंके हुए हैं। ये सभी कलश सर्वात्मना रत्नमय | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस सालभंजिया-परिवाडीओ पन्नत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ नानाविहरागवसणाओ नानामल्लपिणद्धाओ मुट्ठिगेज्झसुमज्झाओ आमेलग-जमल जुयल वट्टिय अब्भुन्नय पीण रइय संठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसय पसत्थ लक्खण संवेल्लियग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थग्गहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकडक्खचिट्ठितेहिं लूसमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहिं अन्नमन्नं खिज्जमाणीओ विव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाननाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ Translated Sutra: उन द्वारों की दोनों बाजुओं की निशीधिकाओं में सोलह – सोलह पुतलियों की पंक्तियाँ हैं। ये पुतलियाँ विविध प्रकार की लीलाएं करती हुई, सुप्रतिष्ठित सब प्रकार के आभूषणों से शृंगारित, अनेक प्रकार के रंग – बिरंगे परिधानों एवं मालाओं से शोभायमान, मुट्ठी प्रमाण काटि प्रदेश वाली, शिर पर ऊंचा अंबाडा बांधे हुए और समश्रेणि | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 30 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभे णं विमाने एगमेगे दारे अट्ठसयं चक्कज्झयाणं, एवं मिगज्झयाणं गरुडज्झयाणं रुच्छज्झयाणं छत्तज्झयाणं पिच्छज्झयाणं सउणिज्झयाणं सीहज्झयाणं, उसभज्झयाणं, अट्ठसयं सेयाणं चउ विसानाणं नागवरकेऊणं।
एवामेव सपुव्वावरेणं सूरियाभे विमाने एगमेगे दारे असीयं असीयं केउसहस्सं भवति इति मक्खायं।
तेसि णं दाराणं एगमेगे दारे पण्णट्ठिं-पण्णट्ठिं भोमा पन्नत्ता। तेसि णं भोमाणं भूमिभागा उल्लोया य भाणियव्वा तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभाए जाणि तेत्तीसमाणि भोमाणि । तेसि णं भोमाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं पत्तेयं सीहासने पन्नत्ते? सीहासनवण्णओ सपरिवारो। अवसेसेसु भोमेसु Translated Sutra: सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार के ऊपर चक्र, मृग, गरुड़, छत्र, मयूरपिच्छ, पक्षी, सिंह, वृषभ, चार दाँत वाले श्वेत हाथी और उत्तम नाग के चित्र से अंकित एक सौ आठ ध्वजाएं फहरा रही हैं। इस तरह सब मिलाकर एक हजार अस्सी ध्वजाएं उस सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार पर फहरा रही हैं – ऐसा तीर्थंकर भगवंतों ने कहा है। उन द्वारों | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 31 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पन्नत्ता–से जहानामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव नानाविह पंचवण्णेहिं मणीहिं य तणेहिं य उवसोभिया।
तेसि णं गंधो फासो णायव्वो जहक्कमं।
तेसि णं भंते! तणाण य मणीण य पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वातेहिं मंदायं-मंदायं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं फंदियाणं घट्टियाणं खोभियाण उदीरियाणं केरिसए सद्दे भवइ?
गोयमा! से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स सघंटस्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखिंखिणिहेमजालपरिखित्तस्स हेमवय चित्तविचित्त तिणिस कनगणिज्जुत्तदारुयायस्स सुसंपिणद्धारकमंडलधुरागस्स कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स Translated Sutra: उन वनखण्डों के मध्य में अति सम रमणीय भूमिभाग है। वे – मैदान आलिंग पुष्कर आदि के सदृश समतल यावत् नाना प्रकार के रंग – बिरंगे पंचरंगे मणियों और तृणों से उपशोभित हैं। इन मणियों के गंध और स्पर्श यथाक्रम से पूर्व में किये गये मणियों के गंध और स्पर्श के वर्णन समान जानना। हे भदन्त ! पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशा | |||||||||
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सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 33 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयं-पत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता। ते णं पासायवडेंसगा पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय-पहसिया इव तहेव बहुसमरमणिज्जभूमिभागो उल्लोओ सीहासनं सपरिवारं। तत्थं णं चत्तारि देवा महिड्ढिया महज्जुइया महाबला महायसा महासोक्खा महानुभागा पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा–असोए सत्तपण्णे चंपए चूए।
सूरियाभस्स णं देवविमानस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते जाव तत्थ णं बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठंति निसीयंति तुयट्टंति, हसंति रमंति ललंति कीलंति कित्तंति Translated Sutra: उन वनखण्डों के मध्यातिमध्य भाग में एक – एक प्रासादावतंसक हैं। ये प्रासादावतंसक पाँच सौ योजन ऊंचे और अढ़ाई सौ योजन चौड़े हैं और अपनी उज्ज्वल प्रभा से हँसते हुए से प्रतीत होते हैं। इनका भूमिभाग अतिसम एवं रमणीय है। इनके चंदेवा, सामानिक आदि देवों के भद्रासनों सहित सिंहासन आदि का वर्णन पूर्ववत् इन प्रासादावतंसकों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 34 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेण सव्वओ समंता संपरिखित्ते। सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाइं विक्खंभेणं, उवकारियलेणसमा परिक्खेवेणं।
तीसे णं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईयो सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडगा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूव-संघाडगा अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ, जोईरसमया वंसा वंसकवेल्लुयाओ रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ उवरिपुंछणीओ सव्वसेयरययामए छायणे।
सा णं पउमवरवेइया Translated Sutra: वह उपकारिकालयन सभी दिशा – विदिशाओं में एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से घिरा हुआ है। वह पद्मवरवेदिका ऊंचाई में आधे योजन ऊंची, पाँच सौ धनुष चौड़ी और उपकारिकालयन जितनी इसकी परिधि है। जैसे कि वज्ररत्नमय इसकी नेम है। रिष्टरत्नमय प्रतिष्ठान है। वैडूर्यरत्नमय स्तम्भ है। स्वर्ण और रजतमय फलक है। लोहिताक्ष रत्नों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 36 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पन्नत्ता–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा।
सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं। ते णं दारा सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकनग-थूभियागा जाव वणमालाओ।
तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पन्नत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं Translated Sutra: उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और बहत्तर योजन ऊंची सुधर्मा नामक सभा है। यह सभा अनेक सैकड़ों खम्भों पर सन्निविष्ट यावत् अप्सराओं से व्याप्त अतीव मनोहर हैं। इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में। ये द्वार ऊंचाई में सोलह | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 41 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आनपानपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे पुव्विं पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसयाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ? ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामानियपरिसोववण्णगा देवा सूरियाभस्स Translated Sutra: उस काल और उस समय में तत्काल उत्पन्न होकर वह सूर्याभ देव आहार पर्याप्ति, शरीर – पर्याप्ति, इन्द्रिय – पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास – पर्याप्ति और भाषामनःपर्याप्ति – इन पाँच पर्याप्तियों से पर्याप्त अवस्था को प्राप्त हुआ। पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्तभाव को प्राप्त होने के अनन्तर उस सूर्याभदेव को | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 42 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ Translated Sutra: तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव उन सामानिकपरिषदोपगत देवों से इस अर्थ को सूनकर और हृदय में अवधारित कर हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से नीकला, नीकलकर ह्रद पर आया, ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ। पुर्वदिशावर्ती | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमानवासिणो वेमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदनकलस-हत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं से सूरियाभे देवे चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि य सूरियाभविमानवासीहिं Translated Sutra: तब उस सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देव तथा कितने ही अन्य बहुत से सूर्याभविमान वासी देव और देवी भी हाथों में उत्पल यावत् शतपथ – सहस्रपत्र कमलों कोल कर सूर्याभदेव के पीछे – पीछे चले। तत्पश्चात् उस सूर्याभदेव के बहुत – से अभियोगिक देव और देवियाँ हाथों में कलश यावत् धूप – दानों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 46 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। एमहिड्ढीए एमहज्जुईए एमहब्बले एमहायसे एमहासोक्खे एमहानुभागे सूरियाभे देवे! अहो णं भंते सूरियाभे देवे महिड्ढीए महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महानुभागे। Translated Sutra: सूर्याभदेव के समस्त चरित को सूनने के पश्चात् भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से निवेदन किया – भदन्त ! सूर्याभदेव की भवस्थिति कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। भगवन् ! सूर्याभदेव की सामानिक परिषद् के देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। यह सूर्याभदेव महाऋद्धि, महाद्युति, महान् | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 48 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे केयइ–अद्धे नामं जणवए होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं केइयअद्धे जणवए सेयविया नामं नगरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा।
तीसे णं सेयवियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे एत्थ णं मिगवणे नामं उज्जानेहोत्था–रम्मे नंदनवनप्पगासे सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे सुभसुरभिसीयलाए छायाए सव्वओ चेव समनुबद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं सेयवियाए नगरीए पएसी नामं राया होत्था– Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने गौतमस्वामी से इस प्रकार कहा – हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र में केकयअर्ध नामक जनपद था। भवनादिक वैभव से युक्त, स्तिमित – स्वचक्र – परचक्र के भय से रहित और समृद्ध था। सर्व ऋतुओं के फल – फूलों से समृद्ध, रमणीय, नन्दनवन के समान मनोरम, प्रासादिक यावत् | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 52 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नामं जणवए होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा।
तीसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए कोट्ठए नामं चेइए होत्था–पोराणे जाव पासादीए।
तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रन्नो अंतेवासी जियसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ।
तए णं से पएसी राया कयाइ महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छ Translated Sutra: उस काल और उस समय में कुणाला नामक जनपद – देश था। वह देश वैभवसंपन्न, स्तिमित – स्वपरचक्र के भय से मुक्त और धन – धान्य से समृद्ध था। उस कुणाला जनपद में श्रावस्ती नाम की नगरी थी, जो ऋद्ध, स्तिमित, समृद्ध यावत् प्रतिरूप थी। उस श्रावस्ती नगरी के बाहर उत्तर – पूर्व दिशा में कोष्ठक नाम का चैत्य था। यह चैत्य अत्यन्त प्राचीन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 53 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जातिसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाने जियमाए जियलोहे जियनिद्दे जितिंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे Translated Sutra: उस काल और उस समय में जातिसंपन्न, कुलसंपन्न, आत्मबल से युक्त, अधिक रूपवान्, विनयवान्, सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र के धारक, लज्जावान्, लाघववान्, लज्जालाघवसंपन्न, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, क्रोध, मान, माया, और लोभ को जीतने वाले, जीवित रहने की आकांक्षा एवं मृत्यु के भय से विमुक्त, तपः प्रधान, गुणप्रधान, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 65 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अह णं भंते! इहं उवविसामि? पएसी! साए उज्जानभूमीए तुमंसि चेव जाणए।
तए णं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धिं केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते उवविसइ, केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–तुब्भं णं भंते! समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं?
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पएसी! अम्हं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया – भदन्त ! क्या मैं यहाँ बैठ जाऊं ? हे प्रदेशी ! यह उद्यानभूमि तुम्हारी अपनी है, अत एव बैठने के विषय में तुम स्वयं समझ लो। तत्पश्चात् चित्त सारथी के साथ प्रदेशी राजा केशी कुमारश्रमण के समीप बैठ गया और पूछा – भदन्त ! क्या आप श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा है, प्रतिज्ञा | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 66 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! मम अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्माणुया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमुयाचारा धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणी समणोवासिया अभिगयजीवा जीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव संवर निज्जर किरिया-हिगरण बंधप्पमोक्खकुसला असहिज्जा देवासुर णाग सुवण्ण जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस गरुल गंधव्व महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा, निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया निव्वितिगिच्छा लद्धट्ठा गहियट्ठा अभिगयट्ठा Translated Sutra: पश्चात् प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! मेरी दादी थीं। वह इसी सेयविया नगरी में धर्मपरायण यावत् धार्मिक आचार – विचार पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने वाली, जीव – अजीव आदि तत्त्वों की ज्ञाता श्रमणोपासिक यावत् तप से आत्मा को भावित करती हुई अपना समय व्यतीत करती थी इत्यादि और आपके कथनानुसार वे पुण्य का उपार्जन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 68 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेगगनणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणग दोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि। तए णं ममं णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेंति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि, ववरोवेत्ता अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि।
तए Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने केशीकुमारश्रमण से कहा – बुद्धि – विशेषजन्य होने से आपकी उपमा वास्तविक नहीं है। किन्तु जो कारण मैं बता रहा हूँ, उससे जीव और शरीर की भिन्नता सिद्ध नहीं होती है। हे भदन्त ! जैसे कोई एक तरुण यावत् और अपना कार्य सिद्ध करने में निपुण पुरुष क्या एक साथ पाँच बाणों को नीकालने में समर्थ है ? केशी कुमारश्रमण | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 70 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–भंते! से जहानामए–केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगते पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसग-भारगं वा परिवहित्तए? हंता पभू! सो चेव णं भंते! पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुब्बले परिकिलंते नो पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए।
जति णं भंते! सच्चेव पुरिसे जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंत-सेढी आउरे किसिए Translated Sutra: हे भदन्त ! आपकी यह उपमा वास्तविक नहीं है, इससे जीव और शरीर की भिन्नता नहीं मानी जा सकती है। लेकिन जो प्रत्यक्ष कारण मैं बताता हूँ, उससे यही सिद्ध होता है कि जीव और शरीर एक ही हैं। हे भदन्त ! किसी एक दिन मैं गणनायक आदि के साथ बाहरी उपस्थानशाला में बैठा था। उसी समय मेरे नगररक्षक चोर पकड़ कर लाये। तब मैंने उस पुरुष | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 73 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमार-समणं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! इय छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला महामई विणीया विन्नाणपत्ता उवएसलद्धा, समत्था णं भंते! ममं करयलंसि वा आमलयं जीवं सरीराओ अभिणिवट्टित्ताणं उवदंसित्तए?
तेणं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रन्नो अदूरसामंते वाउयाए संवुत्ते। तणवणस्सइकाए एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ।
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पाससि णं तुमं पएसी राया! एयं तणवणस्सइकायं एयंतं वेयंतं चलंतं फंदंतं घट्टंतं उदीरंतं तं तं भावं परिणमंतं? हंता पासामि। जाणासि णं तुमं पएसी! एयं तणवणस्सइकायं किं देवो चालेइ? असुरो वा चालेइ? णागो Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! आप अवसर को जानने में निपुण हैं, कार्यकुशल हैं यावत् आपने गुरु से शिक्षा प्राप्त की है तो भदन्त ! क्या आप मुझे हथेली में स्थित आँबले की तरह शरीर से बाहर जीव को नीकालकर दिखाने में समर्थ हैं ? प्रदेशी राजा ने यह कहा, उसी काल और उसी समय प्रदेशी राजा से अति दूर नहीं अर्थात् निकट ही हवा | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 81 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था –जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च रट्ठं च बलं च बाहणं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च ममं जनवयं च अनाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु मे पएसिं रायं केणवि सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमारं रज्जे ठवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणीए पालेमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च Translated Sutra: तब सूर्यकान्ता रानी को इस प्रकार का आन्तरिक यावत् विचार उत्पन्न हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि सूर्यकान्त कुमार प्रदेशी राजा के सामने मेरे इस रहस्य को प्रकाशित कर दे। ऐसा सोचकर सूर्यकान्ता रानी प्रदेशी राजा को मारने के लिए उसके दोष रूप छिद्रों को, कुकृत्य रूप आन्तरिक मर्मों को, एकान्त में सेवित निषिद्ध आचरण रूप | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 82 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता।
से णं सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति?
गोयमा! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति–अड्ढाइं दित्ताइं विउलाइं वित्थिण्ण विपुल भवन सयनासन जाण वाहनाइं बहुधन बहुजातरूव रययाइं आओग पओग संपउत्ताइं विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइं बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभू-याइं बहुजणस्स अपरिभूयाइं तत्थ अन्नयरेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चाइस्सइ।
तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिऊणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ।
तए णं तस्स Translated Sutra: गौतम – भदन्त ! उस सूर्याभदेव की आयुष्यमर्यादा कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। भगवन् ! आयुष्य पूर्ण होने, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर सूर्याभदेव उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल आढ्य, दीप्त, विपुल बड़े कुटुम्ब परिवार वाले, बहुत से भवनों, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 84 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणयमित्ते जोव्वणगमनुपत्ते बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्त-पडिबोहिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले सिंगारागार-चारुरूवे संगय गय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास निउण जुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ।
तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विन्नय-परिणयमित्तं जोव्वण-गमनुपत्तं बावत्तरिकलापंडियं नवंगसुतपडिबोहियं अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारयं गीयरइं गंधव्वनट्टकुसलं सिंगारागारचारुरूवं संगय गय हसिय Translated Sutra: इसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक बालभाव से मुक्त हो परिपक्व विज्ञानयुक्त, युवावस्थासंपन्न हो जाएगा। बहत्तर कलाओं में पंडित होगा, बाल्यावस्था के कारण मनुष्य के जो नौ अंग – जागृत हो जाएंगे। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो जाएगा, वह गीत का अनुरागी, गीत और नृत्य में कुशल हो जाएगा। अपने सुन्दर वेष से शृंगार | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 1 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमिय समिद्धा जाव पासादीया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧. તે કાળે, તે સમયે આમલકલ્પા નામે નગરી હતી. તે ઋદ્ધ – સ્તિમિત – સમૃદ્ધ યાવત્ પ્રાસાદીય, દર્શનીય, અભિરૂપ, પ્રતિરૂપ હતી. સૂત્ર– ૨. આમલકલ્પા નગરી બહાર ઈશાનખૂણામાં આમ્રશાલવન નામે ચૈત્ય હતું. તે પ્રાચીન યાવત્ પ્રતિરૂપ હતું સૂત્ર સંદર્ભ– ૧, ૨ |