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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Vanhidasha | वह्निदशा | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण यावत् संप्राप्त भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती – नगरी थी। वह पूर्व – पश्चिम में बारह योजन लम्बी और उत्तर – दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी, उसका निर्माण स्वयं धनपति ने अपने मतिकौशल से किया था। स्वर्णनिर्मित श्रेष्ठ प्राकार और पंचरंगी मणियों के | |||||||||
Vanhidasha | वह्निदशा | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ थी १२ |
Hindi | 4 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सेसावि एक्कारस अज्झयणा नेयव्वा संगहणीअनुसारेण।
एवं अहीनमइरित्तं एक्कारससुवि। Translated Sutra: इसी प्रकार शेष ग्यारह अध्ययनों का आशय भी संग्रहणी – गाथा के अनुसार बिना किसी हीनाधिकता के जैसा का तैसा जान लेना। | |||||||||
Vanhidasha | વહ્નિદશા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Gujarati | 1 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलियाणं अयमट्ठे पन्नत्ते पंचमस्स णं भंते! वग्गस्स उवंगाणं वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૧. મોક્ષ પ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ઉપાંગ સૂત્રના ચોથા વર્ગ ‘પુષ્પચૂલિકા’નો આ અર્થ કહો છે તો હે ભગવન ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગ ‘વૃષ્ણિદશા’નો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! ભગવંત મહાવીરે વૃષ્ણિદશાના બાર અધ્યયનો કહ્યા છે. તે આ પ્રમાણે – સૂત્ર– ૨. નિષધ, અનિય, વહ, વેહલ, પ્રગતિ, જુત્તિ, દશરથ, દૃઢરથ, મહાધનુ, | |||||||||
Vanhidasha | વહ્નિદશા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Gujarati | 2 | Gatha | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निसढे मायणि-वह-वहे, पगया जुत्ती दसरहे दढरहे य ।
महाधनू सत्तधनू, दसधनू नामे सयधनू य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
Vanhidasha | વહ્નિદશા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Gujarati | 3 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: ભગવન્ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગ ‘વૃષ્ણિદશા’ના પહેલાં અધ્યયનનો શો અર્થ કહેલ છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. બાર યોજન લાંબી અને નવ યોજન પહોળી યાવત્ પ્રત્યક્ષ દેવલોકરૂપ, પ્રાસાદીય – દર્શનીય – અભિરૂપ – પ્રતિરૂપ હતી. તે દ્વારવતી બહાર ઇશાન દિશામાં રૈવત નામે પર્વત હતો. ઊંચો, ગગનતલને સ્પર્શતા | |||||||||
Vanhidasha | વહ્નિદશા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ थी १२ |
Gujarati | 4 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं सेसावि एक्कारस अज्झयणा नेयव्वा संगहणीअनुसारेण।
एवं अहीनमइरित्तं एक्कारससुवि। Translated Sutra: એ પ્રમાણે બાકીના ૧૧ અધ્યયનો સંગ્રહણી અનુસાર ન્યૂનાધિકતા રહિતજાણવા. | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 4 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–मियउत्ते जाव अंजू य। पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू-अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं मियग्गामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तस्स णं मियग्गामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए चंदनपायवे नामं उज्जाने होत्था– सव्वोउय पुप्फ फल समिद्धे–वण्णओ।
तत्थ णं सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–चिराइए जहा पुण्णभद्दे।
तत्थ णं मियग्गामे नयरे विजए नामं खत्तिए राया Translated Sutra: अहो भगवन् ! यदि धर्म की आदि करने वाले, तीर्थप्रवर्तक मोक्ष को समुपलब्ध श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के मृगापुत्र से लेकर अञ्जू पर्यन्त दस अध्ययन कहे हैं तो, प्रभो ! दुःखविपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में मृगाग्राम नाम का एक नगर था। उस नगर के बाहर ईशान कोण में सब ऋतुओं | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 5 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं मियग्गामे नयरे एगे जाइअंधे पुरिसे परिवसइ। से णं एगेणं सचक्खुएणं पुरिसेणं पुरओ दंडएणं पकड्ढिज्जमाणे-पकड्ढिज्जमाणे फुट्टहडाहडसीसे मच्छिया चडगर पहकरेणं अण्णिज्ज-माणमग्गे मियग्गामे नयरे गेहे गेहे कोलुणवडियाए वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे मियग्गामे नयरे चंदनपायवे उज्जाने समोसरिए। परिसा निग्गया।
तए णं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे जहा कूणिए तहा निग्गए जाव पज्जुवासइ।
तए णं से जाइअंधे पुरिसे तं महयाजणसद्दं च जणवूहं ए जणबोलं च जणकलकलं Translated Sutra: उस मृगाग्राम नामक नगर में विजय नामका एक क्षत्रिय राजा था। उसकी मृगा नामक रानी थी। उस विजय क्षत्रिय का पुत्र और मृगा देवी का आत्मज मृगापुत्र नामका एक बालक था। वह बालक जन्म के समय से ही अन्धा, गूँगा, बहरा, लूला, हुण्ड था। वह वातरोग से पीड़ित था। उसके हाथ, पैर, कान, आँख और नाक भी न थे। इन अंगोपांगों का केवल आकार ही | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 6 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअंधं पुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्न कोऊहल्ले उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे Translated Sutra: उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर के प्रधान शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार भी वहाँ बिराजमान थे। गौतमस्वामी ने उस जन्मान्ध पुरुष को देखा। जातश्रद्ध गौतम इस प्रकार बोले – ‘अहो भगवन् ! क्या कोई ऐसा पुरुष भी है कि जो जन्मान्ध व जन्मान्धरूप हो ?’ भगवान ने कहा – ‘हाँ, है !’ ‘हे प्रभो ! वह पुरुष कहाँ है ?’ भगवान | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 7 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के आसि? किं नामए वा किं गोत्ते वा? कयरंसि गामंसि वा नयरंसि वा? किं वा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा समायरित्ता, केसिं वा पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ?
गोयमाइ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे वण्णओ।
तत्थ णं सयदुवारे नयरे धनवई नामं राया होत्था–वण्णओ।
तस्स णं सयदुवारस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए विजयवद्धमाणे नामं Translated Sutra: भगवन् ! यह पुरुष मृगापुत्र पूर्वभव में कौन था ? किस नाम व गोत्र का था ? किस ग्राम अथवा नगर का रहने वाला था ? क्या देकर, क्या भोगकर, किन – किन कर्मों का आचरण कर और किन – किन पुराने कर्मों के फल को भोगता हुआ जीवन बिता रहा है ? श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम को कहा – ‘हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 8 | Gatha | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सासे कासे जरे दाहे, कुच्छिसूले भगंदले ।
अरिसा अजीरए दिट्ठी-मुद्धसूले अकारए ।
अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू उदरे कोढे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७ | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 9 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से एक्काई रट्ठकूडे सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–इहं खलु देवानुप्पिया! एक्काइस्स रट्ठकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं जहा–सासे जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवानुप्पिया! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काइस्स रट्ठकूडस्स तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रट्ठकूडे Translated Sutra: तदनन्तर उक्त सोलह प्रकार के भयंकर रोगों से खेद को प्राप्त वह एकादि नामक प्रान्ताधिपति सेवकों को बुलाकर कहता है – ‘‘देवानुप्रियो ! तुम जाओ और विजयवर्द्धमान खेट के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ और साधारण मार्ग पर जाकर अत्यन्त ऊंचे स्वरों से इस तरह घोषणा करो – ‘हे देवानुप्रियो ! एकादि प्रान्तपति के शरीर | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं अनगारे जाइसंपन्ने वण्णओ, चउद्दसपुव्वी चउनाणोवगए पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। धम्मं सोच्चा निसम्म जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी Translated Sutra: उस काल तथा उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी। उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य – जातिसम्पन्न यावत् चौदह पूर्वों के ज्ञाता, चार ज्ञान के धारक, पाँच सौ अनगारों से घिरे हुए सुधर्मा अनगार – मुनि क्रमशः विहार करते हुए चम्पानगरी के पूर्णभद्र नामक चैत्य – उद्यान में विचरने लगे। धर्म – कथा सूनने | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 2 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, एक्कारसमस्स णं भंते! अंगस्स विवागसुयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं अज्जसुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पन्नत्ता, तं जहा–दुहविवागा य सुहविवागा य।
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पन्नत्ता तं जहा–दुहविवागा य सुहविवागा य। पढमस्स णं भंते! सुयक्खंधस्स दुहविवागाणं समणेणं Translated Sutra: हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने प्रश्नव्याकरण नामक दसवें अङ्ग का यह अर्थ प्रतिपादित किया है तो विपाकश्रुत नामक ग्यारहवे अङ्ग का यावत् क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ? तदनन्तर आर्य सुधर्मास्वामी ने श्री जम्बू अनगार को इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! मोक्षसंलब्ध भगवान श्री महावीर | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 3 | Gatha | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. मियउत्ते य २. उज्झियए, ३. अभग्ग ४. सगडे ५. बहस्सई ६. नंदी ।
७. उंबर ८. सोरियदत्ते य, ९. देवदत्ता य १. अंजू य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २ | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Hindi | 10 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मियापुत्ते णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! मियापुत्ते दारए छव्वीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिइ।
से णं तत्थ सीहे भविस्सइ–अहम्मिए बहुनगरनिग्गयजसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सुबहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समज्जिणइ समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता सिरीसवेसु उववज्जिहिइ। तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं Translated Sutra: हे भगवन् ! यह मृगापुत्र नामक दारक यहाँ से मरणावसर पर मृत्यु को पाकर कहाँ जाएगा ? और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! मृगापुत्र दारक २६ वर्ष के परिपूर्ण आयुष्य को भोगकर मृत्यु का समय आने पर काल करके इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में वैताढ्य पर्वत की तलहटी में सिंहकुल में सिंह के रूप में उत्पन्न | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 11 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू-अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे।
तस्स णं वाणियगामस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए दूइपलासे नामं उज्जाने होत्था।
तत्थ णं दूइपलासे सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था।
तत्थ णं वाणियगामे नयरे मित्ते नामं राया होत्था–वण्णओ।
तस्स णं मित्तस्स रन्नो सिरी नामं देवी होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं वाणियगामे कामज्झया Translated Sutra: हे भगवन् ! यदि मोक्ष – संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने दुःखविपाक के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादित किया है तो – विपाकसूत्र के द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? इसके उत्तर में श्रीसुधर्मा अनगार ने श्रीजम्बू अनगार को इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वाणिजग्राम नामक नगर था जो ऋद्धिस्तिमित | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते नामं सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे।
तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नामं भारिया होत्था।
तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झियए नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदिय सरीरे लक्खण वंजण गुणोववेए माणुम्माणप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंग-सुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा निग्गया। राया निग्गओ, जहा कूणिओ निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया राया य गओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमगोत्तेणं जाव संखित्तविउलतेयलेसे Translated Sutra: उस वाणिजग्राम नगर में विजयमित्र नामक एक धनी सार्थवाह निवास करता था। उस विजयमित्र की अन्यून पञ्चेन्द्रिय शरीर से सम्पन्न सुभद्रा नाम की भार्या थी। उस विजयमित्र का पुत्र और सुभद्रा का आत्मज उज्झितक नामक सर्वाङ्गसम्पन्न और रूपवान् बालक था। उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान महावीर वाणिजग्राम नामक नगर में | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 13 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ।
न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु वाणिय गामे नयरे उच्च नीय मज्झिम कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदानं गिण्हइ, गिण्हित्ता वाणियगामे नयरे मज्झंमज्झेणं पडिनिक्खमइ, अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव दूइपलासए उज्जाने Translated Sutra: तत्पश्चात् उस पुरुष को देखकर भगवान् गौतम को यह चिन्तन, विचार, मनःसंकल्प उत्पन्न हुआ कि – ‘अहो! यह पुरुष कैसी नरकतुल्य वेदना का अनुभव कर रहा है !’ ऐसा विचार करके वाणिजग्राम नगर में उच्च, नीच, मध्यम घरों में भ्रमण करते हुए यथापर्याप्त भिक्षा लेकर वाणिजग्राम नगर के मध्य में से होते हुए श्रमण भगवान महावीर के पास | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 14 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया।
तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया [चिच्ची?] सद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए।
तए णं तस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा सणाहा य अणाहा य नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डियाओ य नगरवसभा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता विपलाइत्था।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया चिच्चीसद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए, तए णं एयस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा Translated Sutra: तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणी ने किसी समय नव – मास परिपूर्ण हो जाने पर पुत्र को जन्म दिया। जन्म के साथ ही उस बालक ने अत्यन्त कर्णकटु तथा चीत्कारपूर्ण भयंकर आवाज की। उस बालक के कठोर, चीत्कारपूर्ण शब्दों को सूनकर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के बहुत से नागरिक पशु यावत् वृषभ आदि भयभीत व उद्वेग को प्राप्त | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 15 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा नामं भारिया जायनिंदुया यावि होत्था–जाया माया दारगा विणिहायमावज्जंति।
तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे दोच्चाए पुढवीए अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वाणियगामे नयरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया।
तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगं जायमेत्तयं चेव एगंते उक्कुरुडियाए उज्झावेइ, उज्झावेत्ता दोच्चं पि गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता अणुपुव्वेणं सारक्खमाणी संगोवेमाणी संवड्ढेइ।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं Translated Sutra: विजयमित्र की सुभद्रा नाम की भार्या जातनिन्दुका थी। अत एव जन्म लेते ही उसके बालक विनाश को प्राप्त हो जाते थे। तत्पश्चात् वह गोत्रास कूटग्राह का जीव भी दूसरे नरक से नीकलकर सीधा इसी वाणिजग्राम नगर के विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा नाम की भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ – नव मास परिपूर्ण होने पर सुभद्रा | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 16 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते नगरगुत्तिया सुभद्दं सत्थवाहिं कालगयं जाणित्ता उज्झियगं दारगं साओ गिहाओ निच्छुभेंति, निच्छुभेत्ता तं गिहं अण्णस्स दलयंति।
तए णं से उज्झियए दारए साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे वाणियगामे नगरे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु जूयखलएसु वेसघरएसु पाणागारेसु य सुहंसुहेणं परिवड्ढइ।
तए णं से उज्झियए दारए अणोहट्टए अणिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारे मज्जप्पसंगी चोर-जूय वेस दारप्पसंगी जाए यावि होत्था।
तए णं से उज्झियए अन्नया कयाइ कामज्झयाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे जाए यावि होत्था, कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाइं माणुस्सगाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ।
तए Translated Sutra: तदनन्तर नगररक्षक पुरुषों ने सुभद्रा सार्थवाही की मृत्यु के समाचार जानकर उज्झितक कुमार को अपने घर से नीकाल दिया और उसके घर को किसी दूसरे को सौंप दिया। अपने घर से नीकाला जाने पर वह उज्झितक कुमार वाणिजग्राम नगर के त्रिपथ, चतुष्पथ, चत्वर, राजमार्ग एवं सामान्य मार्गों पर, द्यूतगृहों, वेश्यागृहों व मद्यपान गृहों | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Hindi | 17 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! उज्झियए दारए पणुवीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइगत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे जाए-जाए वाणरपेल्लए वहेइ। तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे Translated Sutra: हे प्रभो ! यह उज्झितक कुमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जाएगा ? और कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! उज्झितक कुमार २५ वर्ष की पूर्ण आयु को भोगकर आज ही त्रिभागविशेष दिन में शूली द्वारा भेद को प्राप्त होकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा में नारक रूप में उत्पन्न होगा। वहाँ से नीकलकर सीधा इसी जम्बू द्वीप में भारतवर्ष | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 18 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरिमताले नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे।
तस्स णं पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं अमोहदंसी उज्जाने।
तत्थ णं अमोहदंसिस्स जक्खस्स आययणे होत्था।
तत्थ णं पुरिमताले नयरे महब्बले नामं राया होत्था।
तस्स णं पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए देसप्पंते अडवि संसिया, एत्थ णं सालाडवी Translated Sutra: तृतीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्ववत्। उस काल उस समय में पुरिमताल नगर था। वह भवनादि की अधिकता से तथा धन – धान्यादि से परिपूर्ण था। उस पुरिमताल नगर के ईशान – कोणमें अमोघदर्शी नामक उद्यान था उसमें अमोघदर्शी नामक यक्ष का एक यक्षायतन था। पुरिमताल नगर में महाबल नामक राजा राज्य करता था। उस पुरिमताल नगर के ईशान | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए चोरसेनावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खंडपट्टाण य, अन्नेसिं च बहूणं छिण्ण भिण्ण बाहिराहियाणं कुडंगे यावि होत्था।
तए णं से विजए चोरसेनावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमिल्लं जणवयं बहूहिं गामघाएहिं य नगरघाएहिं य गोग्गहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकोट्टेहि य खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे-ओवीलेमाणे विहम्मेमाणे-विहम्मेमाणे तज्जेमाणे-तज्जेमाणे तालेमाणे-तालेमाणे नित्थाणे निद्धणे निक्कणे करेमाणे विहरइ, महब्बलस्स रन्नो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पायं गेण्हइ।
तस्स णं विजयस्स चोरसेनावइस्स खंदसिरी नामं भारिया होत्था–अहीनपडिपुण्ण-पंचिंदिय-सरीरा।
तस्स Translated Sutra: तदनन्तर वह विजय नामक चोर सेनापति अनेक चोर, पारदारिक, ग्रन्थिभेदक, सन्धिच्छेदक, धूर्त वगैरह लोग तथा अन्य बहुत से छिन्न, भिन्न तथा शिष्टमण्डली से बहिष्कृत व्यक्तियों के लिए बाँस के वन के समान गोपक या संरक्षक था। वह विजय चोर सेनापति पुरिमताल नगर के ईशान कोणगत जनपद को अनेक ग्रामों को नष्ट करने से, अनेक नगरों का | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 20 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पन्ने–अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ। न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु पुरिमताले नयरे उच्च नीय मज्झिम कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदाणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरिमताले नयरे मज्झंमज्झेणं पडि-निक्खमइ जाव समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु अहं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाए Translated Sutra: तदनन्तर भगवान गौतम के हृदय में उस पुरुष को देखकर यह सङ्कल्प उत्पन्न हुआ यावत् पूर्ववत् वे नगर से बाहर नीकले तथा भगवान के पास आकर निवेदन करने लगे। यावत् भगवन् ! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था ? जो इस तरह अपने कर्मों का फल पा रहा है ? इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम ! उस काल तथा उस समय इस जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 21 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालाडवीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरीए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं तीसे खंदसिरीए भारियाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं इमे एयारूवे दोहले पाउब्भूए–धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं बहूहिं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परियणमहिलाहिं, अन्नाहि य चोरमहिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय मंगल पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया विउलं असनं पानं खाइमं साइमं सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणी वीसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुंजेमाणी विहरंति।
जिमियभुत्तुत्तरागया पुरिसनेवत्था Translated Sutra: वह निर्णय नामक अण्डवणिक् नरक से नीकलकर विजय नामक चोर सेनापति की स्कन्दश्री भार्या के उदर में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। किसी अन्य समय लगभग तीन मास परिपूर्ण होने पर स्कन्दश्री को यह दोहद उत्पन्न हुआ – वे माताएं धन्य हैं, जो मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धियों और परिजनों की महिलाओं तथा अन्य महिलाओं से परिवृत्त | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 22 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभग्गसेने कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ। उप्पिं भुंजइ।
तए णं से विजए चोरसेनावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेनावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था।
तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेनं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेनावइत्ताए अभिसिंचति।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे चोरसेनावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स Translated Sutra: अनुक्रम से कुमार अभग्नसेन ने बाल्यावस्था को पार करके युवावस्था में प्रवेश किया। आठ कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ। विवाह में उसके माता – पिता ने आठ – आठ प्रकार की वस्तुएं प्रीतिदान में दीं और वह ऊंचे प्रासादों में रहकर मनुष्य सम्बन्धी भोगों का उपभोग करने लगा। तत्पश्चात् किसी समय वह विजय चोर सेनापति कालधर्म | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Hindi | 23 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे एगं महं महइमहालियं कूडागारसालं कारेइ–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं।
तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे उस्सुक्कं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिमकुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्ज-कलियं अनेगतालाचराणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ, उग्घोसावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सालाडवीए चोरपल्लीए। तत्थ णं तुब्भे अभग्गसेणं चोरसेनावइं करयल परिग्गहियं Translated Sutra: तदनन्तर किसी अन्य समय महाबल राजा ने पुरिमताल नगर में महती सुन्दर व अत्यन्त विशाल, मन में हर्ष उत्पन्न करने वाली, दर्शनीय, जिसे देखने पर भी आँखें न थकें ऐसी सैकड़ों स्तम्भों वाली कूटाकारशाला बनवायी। उसके बाद महाबल नरेश ने किसी समय उस षड्यन्त्र के लिए बनवाई कूटाकारशाला के निमित्त उच्छुल्क यावत् दश दिन के प्रमोद | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-४ शकट |
Hindi | 24 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू-अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं साहंजणी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा।
तीसे णं साहंजनीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए देवरमणे नामं उज्जाने होत्था।
तत्थ णं अमोहस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे।
तत्थ णं साहंजणीए नयरीए महचंदे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे।
तस्स णं महचंदस्स रन्नो सुसेने नामं अमच्चे Translated Sutra: जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया – भन्ते ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने, जो यावत् निर्वाणप्राप्त हैं, यदि तीसरे अध्ययन का यह अर्थ कहा तो भगवान ने चौथे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? तब सुधर्मा स्वामी ने जम्बू अनगार से इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! उस काल उस समय में साहंजनी नाम की एक ऋद्ध – भवनादि की सम्पत्ति से सम्पन्न, स्तिमित | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-४ शकट |
Hindi | 25 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दा भारिया जायनिंदुया यावि होत्था–जाया जाया दारगा विणिहायमावज्जंति।
तए णं से छन्निए छागलिए चोत्थीए पुढवीए अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव साहंजणीए नयरीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया।
तए णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेट्ठओ ठवेंति, दोच्चं पि गिण्हावेंति, अनुपुव्वेणं सारक्खंति संगोवेंति संवड्ढेंति, जहा उज्झियए जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव सगडस्स हेट्ठओ ठविए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए सगडे Translated Sutra: तदनन्तर उस सुभद्र सार्थवाह की भद्रा नामकी भार्या जातनिन्दुका थी। उसके उत्पन्न होते हुए बालक मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। इधर छण्णिक नामक छागलिक का जीव चतुर्थ नरक से नीकलकर सीधा इसी साहंजनी नगरी में सुभद्र सार्थवाह की भद्रा नामकी भार्या के गर्भ में पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। लगभग नौ मास परिपूर्ण हो जाने | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-४ शकट |
Hindi | 26 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सगडे णं भंते! दारए कालगए कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! सगडे णं दारए सत्तावण्णं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे एगं महं अयोमयं तत्तं समजोइभूयं इत्थिपडिमं अवतासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता रायगिहे नयरे मातंगकुलंसि जमलत्ताए पच्चायाहिइ।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करिस्संति–तं होउ णं दारए सगडे नामेणं, होउ णं दारिया सुदरिसणा नामेणं।
तए णं से सगडे दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते भविस्सइ।
तए Translated Sutra: शकट की दुर्दशा का कारण भगवान से सूनकर गौतम स्वामी ने प्रश्न किया – हे प्रभो ! शकटकुमार बालक यहाँ से काल करके कहाँ जाएगा और कहाँ पर उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! शकट दारक को ५७ वर्ष की परम आयु को भोगकर आज ही तीसरा भाग शेष रहे दिन में एक महालोहमय तपी हुई अग्नि के समान देदीप्यमान स्त्रीप्रतिमा से आलिङ्गन कराया जाएगा। तब | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Hindi | 27 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाण चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा। बाहिं चंदोतरणे उज्जाने। सेयभद्दे जक्खे।
तत्थ णं कोसंबीए नयरीए सयाणिए नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे। मियावई देवी।
तस्स णं सयाणियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए उदयने नामं कुमारे होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया।
तस्स णं उदयनस्स कुमारस्स Translated Sutra: पाँचवे अध्ययन का उत्क्षेप – प्रस्तावना पूर्ववत् जानना। हे जम्बू ! उस काल और उस समय में कौशाम्बी नगरी थी, जो भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्वचक्र – परचक्र के भय से मुक्त तथा समृद्धि से समृद्ध थी। उस नगरी के बाहर चन्द्रावतरण उद्यान था। उसमें श्वेतभद्र यक्ष का आयतन था। उस कौशाम्बी नगरी में शतानीक राजा था। जो हिमालय | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Hindi | 28 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्ठिइए नरगे उववन्ने।
से णं तओ अनंतरं उवट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं।
तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव Translated Sutra: इस प्रकार के क्रूर कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, क्रूर कर्मों में प्रधान, नाना प्रकार के पापकर्मों को एकत्रित कर अन्तिम समय में वह महेश्वरदत्त पुरोहित तीन हजार वर्ष का परम आयुष्य भोगकर पाँचवे नरक में उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम की स्थिति वाले नारक के रूप में उत्पन्न हुआ। पाँचवे नरक से नीकलकर सीधा इसी कौशाम्बी | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-६ नंदिसेन्न |
Hindi | 29 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नामं नयरी। भंडीरे उज्जाने। सुदरिसणे जक्खे। सिरिदामे राया। बंधुसिरी भारिया। पुत्ते नंदिवद्धने कुमारे–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया।
तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नामं अमच्चे होत्था–साम दंड भेय उवप्पयाणनीति सुप्पउत्त नयविहण्णू।
तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण Translated Sutra: उत्क्षेप भगवन् ! यदि यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने पाँचवे अध्ययन का यह अर्थ कहा, तो षष्ठ अध्ययन का भगवान ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में मथुरा नगरी थी। वहाँ भण्डीर नाम का उद्यान था। सुदर्शनयक्ष का आयतन था। श्रीदाम राजा था, बन्धुश्री रानी थी। उनका सर्वाङ्ग – सम्पन्न युवराज | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-६ नंदिसेन्न |
Hindi | 30 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव महुराए नयरीए सिरिदामस्स रन्नो बंधुसिरीए देवीए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–होउ णं अम्हं दारगे नंदिवद्धने नामेणं।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव परिवड्ढइ।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे उम्मुक्कबालभावे विण्णय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते विहरइ जाव जुवराया जाए यावि होत्था।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे रज्जे य जाव अंतेउरे य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छइ सिरिदामं Translated Sutra: वह दुर्योधन चारकपाल का जीव छट्ठे नरक से नीकलकर इसी मथुरा नगरी में श्रीदाम राजा की बन्धुश्री देवी की कुक्षि में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। लगभग नौ मास परिपूर्ण होने पर बन्धुश्री ने बालक को जन्म दिया। तत्पश्चात् बारहवे दिन माता – पिता ने नवजात बालक का नन्दिषेण नाम रखा। तदनन्तर पाँच धायमाताओं से सार – संभाल | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-७ उदुंबरदत्त |
Hindi | 31 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया।
तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं Translated Sutra: उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में पाटलिखंड नगर था। वहाँ वनखण्ड उद्यान था। उस उद्यान में उम्बरदत्त नामक यक्ष का यक्षायतन था। उस नगर में सिद्धार्थ राजा था। पाटलिखण्ड नगर में सागरदत्त नामक धनाढ्य सार्थवाह था। उसकी गङ्गदत्ता भार्या थी। उस सागरदत्त का पुत्र व गङ्गदत्ता भार्या का आत्मज उम्बरदत्त | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-८ शौर्यदत्त |
Hindi | 32 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं। सोरियवडेंसगं उज्जाणं। सोरिओ जक्खो। सोरियदत्ते राया।
तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए होत्था।
तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ–अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे।
तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नामं भारिया होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा।
तस्स Translated Sutra: अष्टम अध्ययन का उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में शौरिकपुर नाम का नगर था। वहाँ ‘शौरिकावतंसक’ नाम का उद्यान था। शौरिक यक्ष था। शौरिकदत्त राजा था। उस शौरिकपुर नगर के बाहर ईशान को में एक मच्छीमारों का पाटक था। वहाँ समुद्रदत्त नामक मच्छीमार था। वह महा – अधर्मी यावत् दुष्प्रत्या – नन्द था। | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-९ देवदत्त |
Hindi | 33 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी–
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे। पुढवीवडेंसए उज्जाने। धरणो जक्खो।
वेसमणदत्ते राया। सिरी देवी। पूसनंदी कुमारे जुवराया।
तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे। कण्हसिरी भारिया।
तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नामं दारिया होत्था–अहीनपडिपुण्ण–पंचिंदियसरीरा।
तेणं Translated Sutra: यदि भगवन् ! यावत् नवम अध्ययन का उत्क्षेप जान लेना चाहिए। जम्बू ! उस काल तथा उस समय में रोहीतक नाम का नगर था। वह ऋद्ध, स्तिमित तथा समृद्ध था। पृथिवी – अवतंसक नामक उद्यान था। उसमें धारण नामक यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ वैश्रमणदत्त नाम का राजा था। श्रीदेवी नामक रानी थी। युवराज पद से अलंकृत पुष्पनंदी कुमार था। | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१० अंजूश्री |
Hindi | 34 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया।
तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए Translated Sutra: अहो भगवन् ! इत्यादि, उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नगर था। वहाँ विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था। उसमें मणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ विजयमित्र राजा था। धनदेव नामक एक सार्थवाह – रहता था जो धनाढ्य और प्रतिष्ठित था। उसकी प्रियङ्गु नाम की भार्या थी। उनकी उत्कृष्ट शरीर | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१ सुबाहुकुमार |
Hindi | 35 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए । सुहम्मे समोसढे । जंबू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी– जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, सुहविवागाणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबु! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: उस काल तथा उस समय राजगृह नगर में गुणशील नामक चैत्य में श्रीसुधर्मा स्वामी पधारे। उनकी पर्युपासना में संलग्न रहे हुए श्री जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया – प्रभो ! यावत् मोक्षरूप परम स्थिति को संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने यदि दुःखविपाक का यह अर्थ प्रतिपादित किया, तो यावत् सुखविपाक का क्या अर्थ प्रति – पादित | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१ सुबाहुकुमार |
Hindi | 36 | Gatha | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुबाहू भद्दनंदी य, सुजाए य सुवासवे ।
तहेव जिनदासे य, धनवई य महब्बले ।
भद्दनंदी महच्चंदे, वरदत्ते तहेव य॥१॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३५ | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१ सुबाहुकुमार |
Hindi | 37 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नामं उज्जाने होत्था–सव्वोउय–पुप्फ–समिद्धे।
तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–दिव्वे ।
तत्थ णं हत्थिसोसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमंवत–महंत–मलय–मंदर–महिंदसारे।
तस्स Translated Sutra: हे भदन्त ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं तो हे भगवन् ! सुख – विपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? श्रीसुधर्मा स्वामी ने श्रीजम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में हस्तिशीर्ष नामका एक बड़ा ऋद्ध | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-२ भद्रनंदि |
Hindi | 38 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बितियस्स उक्खेवओ।
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे नयरे। थूभकरंडग उज्जाणं। धन्नो जक्खो। धनावहो राया। सरस्सई देवी।
सुमिणदंसणं कहणा, जम्मं बालत्तणं कलाओ य ।
जोव्वणं पाणिग्गहणं, दाओ पासाय भोगा य ॥
जहा सुबाहुस्स, नवरं–भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा णं पंचसया। सामीसमोसरणं। सावगधम्मं। पुव्वभवपुच्छा। महा-विदेहे वासे पुंडरीगिणी नयरी। विजए कुमारे। जुगबाहू तित्थयरे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इह उप्पण्णे। सेसं जहा सुबा-हुस्स जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंते काहिइ।
निक्खेवओ। Translated Sutra: द्वितीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्ववत् समझना। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में ऋषभपुर नाम का नगर था। वहाँ स्तूपकरण्डक उद्यान था। धन्य यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ धनावह राजा था। सरस्वती रानी थी। महारानी का स्वप्न – दर्शन, स्वप्न कथन, बालक का जन्म, बाल्यावस्था में कलाएं सीखकर यौवन को प्राप्त होना, विवाह होना, | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-३ सुजातकुमार |
Hindi | 39 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तच्चस्स उक्खेवओ।
वीरपुरं नयरं। मणोरमं उज्जाणं। वीरकण्हमित्ते राया। सिरी देवी। सुजाए कुमारे। बलसिरीपामोक्खा पंचसया। सामीसमोसरणं। पुव्वभवपुच्छा। उसुयारे नयरे। उसभदत्ते गाहावई। पुप्फदंते अनगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इहं उप्पण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
निक्खेवओ। Translated Sutra: हे जम्बू ! वीरपुर नगर था। मनोरम उद्यान था। महाराज वीरकृष्णमित्र थे। श्रीदेवी रानी थी। सुजात कुमार था। बलश्री प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राज – कन्याओं के साथ सुजातकुमार का पाणिग्रहण हुआ। भगवान महावीर पधारे। सुजातकुमार ने श्रावक – धर्म स्वीकार किया। पूर्वभव वृत्तान्त कहा – इषुकार नगर था। वहाँ ऋषभदत्त गाथापति | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-४ सुवासवकुमार |
Hindi | 40 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउत्थस्स उक्खेवओ।
विजयपुरं नयरं। नंदनवणं उज्जानं। असोगो जक्खो। वासवदत्ते राया। कण्हा देवी। सुवासवे कुमारे। भद्दापामोक्खाणं पंचसया जाव पुव्वभवे। कोसंबी नयरी। धनपाले राया। वेसमणभद्दे अनगारे पडिलाभिए। इह जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! विजयकुमार नगर था। नन्दनवन उद्यान था। अशोक यक्ष का यक्षायतन था। राजा वासवदत्त था। कृष्णादेवी रानीथी। सुवासकुमार राजकुमार था। भद्रा – प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं से विवाह हुआ। भगवान महावीर पधारे। सुवासवकुमार ने श्रावकधर्म स्वीकार किया। पूर्वभव – गौतम ! कौशाम्बी नगरी थी। धनपाल राजा था। उसने | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-५ जिनदासकुमार |
Hindi | 41 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचमस्स उक्खेवओ।
सोगंधिया नयरी। नीलासोगं उज्जाणं। सुकालो जक्खो। अप्पडिहओ राया। सुकण्णा देवी। महचंदे कुमारे। तस्स अरहदत्ता भारिया। जिनदासो पुत्तो। तित्थयरागमणं। जिनदासो पुव्वभवो। मज्झमिया नयरी। मेहरहे राया। सुधम्मे अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! सौगन्धिका नगरी थी। नीलाशोक उद्यान था। सुकाल यक्ष का यक्षायतन था। अप्रतिहत राजा थे। सुकृष्णा उनकी भार्या थी। पुत्र का नाम महाचन्द्रकुमार था। अर्हद्दता नाम की भार्या थी। जिनदास नाम का पुत्र था। भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। जिनदास ने द्वादशविध गृहस्थ धर्म स्वीकार किया। पूर्वभव – हे गौतम ! माध्यमिका | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-६ वैश्रमणकुमार |
Hindi | 42 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छट्ठस्स उक्खेवओ।
कनगपुरं नयरं। सेयासोयं उज्जाणं। वीरभद्दो जक्खो। पियचंदो राया। सुभद्दा देवी। वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं। धनवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवो। मणिवइया नयरी। मित्तो राया। संभूतिविजए अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! कनकपुर नगर था। श्वेताशोकनामक उद्यान था। वीरभद्र यक्ष का यक्षायतन था। राजा प्रियचन्द्र था, रानी सुभद्रादेवी थी। युवराज वैश्रमणकुमार था। उसका श्रीदेवी प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था। महावीर स्वामी पधारे। युवराज के पुत्र धनपति कुमार ने भगवान से श्रावकों के व्रत ग्रहण किए यावत् | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-७ महाबलकुमार |
Hindi | 43 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तमस्स उक्खेवओ।
महापुरं नयरं। रत्तासोगं उज्जाणं। रत्तपाओ जक्खो। बले राया। सुभद्दा देवी। महब्बले कुमारे। रत्तवईपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं जाव पुव्वभवो। मणिपुरं नयरं। नागदत्ते गाहावई। इंदपुत्ते अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! महापुर नगर था। रक्ताशोक उद्यान था। रक्तपाद यक्ष का आयतन था। महाराज बल राजा था। सुभद्रा देवी रानी थी। महाबल राजकुमार था। उसका रक्तवती प्रभृति ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह किया गया। महावीर स्वामी पधारे। महाबल राजकुमार का भगवान से श्रावकधर्म अङ्गीकार करना, पूर्वभव पृच्छा – गौतम ! मणिपुर | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-८ भद्रनंदि |
Hindi | 44 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठमस्स उक्खेवओ।
सुघोसं नयरं। देवरमणं उज्जाणं। वीरसेनो जक्खो। अज्जुनो राया। तत्तवई देवी। भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा पंच-सया जाव पुव्वभवे। महाघोसे नयरे। धम्मघोसे गाहावई। धम्मसीहे अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: सुघोष नगर था। देवरमण उद्यान था। वीरसेन यक्ष का यक्षायतन था। अर्जुन राजा था। तत्त्ववती रानी थी और भद्रानन्दी राजकुमार था। उसका श्रीदेवी आदि ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अङ्गीकार किया। पूर्वभव के सम्बन्ध में पृच्छा – हे गौतम ! महाघोष |