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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Gujarati | 992 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा २. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य होज्जा ३. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ४. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होज्जा ५. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ६. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य नेरइएसु य देवेसु य होज्जा ७. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा ८. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा।
सलेस्सा णं भंते! जीवा पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? एवं चेव। एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। कण्हपक्खिया, Translated Sutra: ભગવન્ ! જીવોએ ક્યાં પાપકર્મનું સમર્જન કર્યુ? અને ક્યાં આચરણ કર્યું? ગૌતમ! બધા જીવો તિર્યંચયોનિકો માં હતા.અથવા તિર્યંચયોનિ અને નૈરયિકોમાં હતા.અથવા તિર્યંચયોનિક અને મનુષ્યોમાં હતા. અથવા તિર્યંચયોનિક અને દેવોમાં હતા.અથવા તિર્યંચયોનિક, મનુષ્ય અને દેવોમાં હતા.અથવા તિર્યંચ, મનુષ્ય અને નારકમાં હતા.અથવા તિર્યંચ, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Gujarati | 993 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा, एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा। एवं अनंतरोववन्नगाणं नेरइयाईणं जस्स जं अत्थि लेसादीयं अनागारोवओगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं, नवरं–अनंतरेसु जे परिहरियव्वा ते जहा बंधिसए तहा इहं पि। एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ। एवं जाव अंतराइएणं निरवसेसं। एसो वि नवदंडगसंगहिओ उद्देसओ भाणियव्वो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: ભગવન્ ! અનંતરોપપન્નક નૈરયિકે પાપકર્મ ક્યાં ગ્રહણ કર્યુ ? ક્યાં આચરણ કર્યુ ? ગૌતમ! તે બધા તિર્યંચયોનિક માં હતા, એ પ્રમાણે અહીં પણ આઠ ભંગો છે. એ પ્રમાણે અનંતરોપપન્નક નૈરયિકોને જેને જે લેશ્યાથી અનાકારોપયોગ પર્યન્ત હોય, તે બધું જ અહીં ભજનાથી વૈમાનિક પર્યન્ત કહેવું. વિશેષ એ કે – અનંતરમાં જે છોડવા યોગ્ય છે, તે – તે | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, ज्ञानमहत्ता |
Hindi | 2 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवगहणभमणरीणा लहंति निव्वुइसुहं जमल्लीणा ।
तं कप्पंद्दुमकाणणसुहयं जिणसासणं जयइ ॥ Translated Sutra: संसार रूपी गहन वन में घूमते हुए पीड़ित जीव जिस के सहारे मोक्ष सुख पाते हैं उस कल्पवृक्ष के उद्यान समान सुख को देनेवाला जैनशासन जयवंत विद्यमान है। | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
शाश्वत अशाश्वत सुखं |
Hindi | 6 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं सासयसुहसाहणमाणाआराहणं जिणिंदाणं ।
ता तीए जइयव्वं जिनवयणविसुद्धबुद्धीहिं ॥ Translated Sutra: जिनवचन में निर्मल बुद्धिवाले मानव ने शाश्वत सुख के साधन ऐसे जो जिनेन्द्र की आज्ञा का आराधन है, उन आज्ञा पालने के लिए उद्यम करना चाहिए। | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
व्रत सामायिक आरोपणं |
Hindi | 31 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नियदव्वमउव्वजिणिंदभवण-जिनबिंब-वरपइट्ठासु ।
वियरइ पसत्थपुत्थय-सुतित्थ-तित्थयरपूयासु ॥ Translated Sutra: प्रधान जिनेन्द्र प्रसाद, जिनबिम्ब और उत्तम प्रतिष्ठा के लिए तथा प्रशस्त ग्रन्थ लिखवाने में, सुतीर्थ में और तीर्थंकर की पूजा के लिए श्रावक अपने द्रव्य का उपयोग करे। | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 77 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अरिहंतनमुक्कारो एक्को वि हवेज्ज जो मरणकाले ।
सो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुच्छेयणसमत्थो ॥ Translated Sutra: यदि मौत के समय अरिहंत को एक भी नमस्कार हो तो वो संसार को नष्ट करने के लिए समर्थ हैं ऐसा जिनेश्वर भगवान ने कहा है। | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 78 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मिंठो किलिट्ठकम्मो ‘नमो जिणाणं’ ति सुकयपणिहाणो ।
कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरो त्ति सूलिहओ ॥ Translated Sutra: बूरे कर्म करनेवाला महावत, जिसे चोर कहकर शूली पर चड़ाया था वो भी ‘नमो जिणाणम्’ कहकर शुभ ध्यान में कमलपत्र जैसे आँखवाला यक्ष हुआ था। | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 173 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तरिसयं जिणाण व गाहाणं समयखित्तपन्नत्तं ।
आराहंतो विहिणा सासयसोक्खं लहइ मोक्खं ॥ Translated Sutra: मानव क्षेत्र के लिए उत्कृष्टरूप से विचरने और सिद्धांत के लिए कहे गए एक सौ सत्तर तीर्थंकर की तरह एक सौ सत्तर गाथा की विधिवत् आराधना करनेवाली आत्मा शाश्वत सुखवाला मोक्ष पाती है। | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
व्रत सामायिक आरोपणं |
Gujarati | 31 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नियदव्वमउव्वजिणिंदभवण-जिनबिंब-वरपइट्ठासु ।
वियरइ पसत्थपुत्थय-सुतित्थ-तित्थयरपूयासु ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦ | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, ज्ञानमहत्ता |
Gujarati | 2 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवगहणभमणरीणा लहंति निव्वुइसुहं जमल्लीणा ।
तं कप्पंद्दुमकाणणसुहयं जिणसासणं जयइ ॥ Translated Sutra: સંસારરૂપી ગહન વનમાં ભમતા, પીડાયેલા જીવે જેને આશરે મોક્ષ સુખને પામે છે, તે કલ્પવૃક્ષના ઉદ્યાન સમાન સુખને આપનારુ જૈન શાસન જયવંતુ વર્તે છે. | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
शाश्वत अशाश्वत सुखं |
Gujarati | 6 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं सासयसुहसाहणमाणाआराहणं जिणिंदाणं ।
ता तीए जइयव्वं जिनवयणविसुद्धबुद्धीहिं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૬. જિનવચનમાં વિશુદ્ધ બુદ્ધિવાળાએ શાશ્વત સુખનું સાધન જે જિનાજ્ઞાનું આરાધન છે, તે માટે ઉદ્યમ કરવો. સૂત્ર– ૭. જિનપ્રણિત જ્ઞાન, દર્શન ચારિત્ર, તપનું જે આરાધન, તે જ અહીં આજ્ઞાનું આરાધન કહ્યું છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૬, ૭ | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 77 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अरिहंतनमुक्कारो एक्को वि हवेज्ज जो मरणकाले ।
सो जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुच्छेयणसमत्थो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૬ | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 78 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मिंठो किलिट्ठकम्मो ‘नमो जिणाणं’ ति सुकयपणिहाणो ।
कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरो त्ति सूलिहओ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૬ | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 173 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्तरिसयं जिणाण व गाहाणं समयखित्तपन्नत्तं ।
आराहंतो विहिणा सासयसोक्खं लहइ मोक्खं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૨ | |||||||||
BruhatKalpa | बृहत्कल्पसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Hindi | 215 | Sutra | Chheda-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा कप्पट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा–सामाइयसंजयकप्पट्ठिती, छेदोवट्ठावणिय-संजयकप्पट्ठिती, निव्विसमाणकप्पट्ठिती, निव्विट्ठकाइयकप्पट्ठिती, जिणकप्पट्ठिती, थेरकप्पट्ठिती। Translated Sutra: कल्पदशा (साधु – साध्वी की आचार मर्यादा) छ तरह की होती है। वो इस प्रकार सामायिक चारित्रवाले की छेदोपस्थापना रूप, परिहार विशुद्धि तप स्वीकार करनेवाले की, पारिहारिक तप पूरे करनेवाले की, जिनकल्प की और स्थविर कल्प की ऐसे छ तरह की आचार मर्यादा है। (विस्तार से समझने के लिए भाष्य और वृत्ति देखें।) इस प्रकार मैं (तुम्हें) | |||||||||
BruhatKalpa | બૃહત્કલ્પસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-६ | Gujarati | 215 | Sutra | Chheda-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा कप्पट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा–सामाइयसंजयकप्पट्ठिती, छेदोवट्ठावणिय-संजयकप्पट्ठिती, निव्विसमाणकप्पट्ठिती, निव्विट्ठकाइयकप्पट्ठिती, जिणकप्पट्ठिती, थेरकप्पट्ठिती। Translated Sutra: કલ્પસ્થિતિ અર્થાત્ આચારની મર્યાદા છ પ્રકારની કહેવાયેલી છે – ૧. સામાયિક ચારિત્રની મર્યાદાઓ – સમભાવમાં રહેવું અને બધી સાવદ્ય પ્રવૃત્તિનો પરિત્યાગ કરવો. ૨. છેદોપસ્થાપનીય કલ્પસ્થિતિ – મોટી દીક્ષા દેવી કે ફરી મહાવ્રતનું આરોપણ કરવું. ૩. નિર્વિસમાણ કલ્પસ્થિતિ – પરિહાર વિશુદ્ધિચારિત્ર – તપ વહન કરનારની મર્યાદા. ૪. | |||||||||
Chandrapragnapati | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Hindi | 130 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अगमहिसीओ पन्नत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसाहस्सी परिवारो पन्नत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारं विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवीसहस्सा। सेत्तं तुडिए।
ता पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे।
ता कहं ते नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसिया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुधम्माए Translated Sutra: इस जंबूद्वीपमें तारा से तारा का अन्तर दो प्रकार का है – व्याघात युक्त अन्तर जघन्य से २६६ योजन और उत्कृष्ट १२२४२ योजन है; निर्व्याघात से यह अन्तर जघन्य से ५०० धनुष और उत्कृष्ट से अर्धयोजन है। | |||||||||
Chandrapragnapati | ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Gujarati | 130 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अगमहिसीओ पन्नत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसाहस्सी परिवारो पन्नत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नाइं चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारं विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवीसहस्सा। सेत्तं तुडिए।
ता पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे।
ता कहं ते नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसिया चंदवडिंसए विमाने सभाए सुधम्माए Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૯ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 29 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जे पुण जिणोवइट्ठे निग्गंथे पवयणम्मि आयरिया ।
संसार-मोक्खमग्गस्स देसगा तेऽत्थ आयरिया २५–२६ ॥ Translated Sutra: सर्वज्ञ कथित निर्ग्रन्थ प्रवचन में जो आचार्य हैं, वो संसार और मोक्ष – दोनों के यथार्थ रूप को बतानेवाले होने से – जिस तरह एक प्रदीप्त दीप से सेंकड़ों दीपक प्रकाशित होते हैं, फिर भी वो दीप प्रदीप्त – प्रकाशमान ही रहता है, वैसे दीपक जैसे आचार्य भगवंत स्व और पर, अपने और दूसरे आत्माओं के प्रकाशक – उद्धारक होते हैं। सूत्र | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 55 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो अविनीयं विनएण जिणइ, सीलेण जिणइ निस्सीलं ।
सो जिणइ तिन्नि लोए, पावमपावेण सो जिणइ ॥ Translated Sutra: जो पुरुष विनय द्वारा अविनय को, शील सदाचार द्वारा निःशीलत्व को और अपाप – धर्म द्वारा पाप को जीत लेता है, वो तीनों लोक को जीत लेता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 132 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जे मे जाणंति जिणा अवराहे नाण-दंसण-चरित्ते ।
ते सव्वे आलोए उवट्ठिओ सव्वभावेणं ॥ Translated Sutra: ज्ञान, दर्शन और चारित्र के विषय में मुझसे जो अपराध हुए हैं, श्री जिनेश्वर भगवंत साक्षात् जानते हैं, उन सर्व अपराध की सर्व भाव से आलोचना करने के लिए मैं उपस्थित हुआ हूँ। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 29 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जे पुण जिणोवइट्ठे निग्गंथे पवयणम्मि आयरिया ।
संसार-मोक्खमग्गस्स देसगा तेऽत्थ आयरिया २५–२६ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૨ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 55 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो अविनीयं विनएण जिणइ, सीलेण जिणइ निस्सीलं ।
सो जिणइ तिन्नि लोए, पावमपावेण सो जिणइ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૪ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 132 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जे मे जाणंति जिणा अवराहे नाण-दंसण-चरित्ते ।
ते सव्वे आलोए उवट्ठिओ सव्वभावेणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૭ | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Hindi | 33 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउदस-दस-नवपुव्वी दुवालसिक्कारसंगिणो जे य ।
जिणकप्पाऽहालंदिय परिहारविसुद्धि साहू य ॥ Translated Sutra: चौदहपूर्वी, दसपूर्वी और नौपूर्वी और फिर जो बारह अंग धारण करनेवाले, ग्यारह अंग धारण करनेवाले, जिनकल्पी, यथालंदी और परिहारविशुद्धि चारित्रवाले साधु। क्षीराश्रवलब्धिवाले, मध्याश्रवलब्धिवाले, संभिन्नश्रोतलब्धिवाले, कोष्ठबुद्धिवाले, चारणमुनि, वैक्रियलब्धि – वाले और पदानुसारीलब्धिवाले साधु मुझे शरणरूप | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
दुष्कतगर्हा |
Hindi | 50 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इहभवियमन्नभवियं मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं ।
जिणपवयणपडिकुट्ठं दुट्ठं गरिहामि तं पावं ॥ Translated Sutra: जिनशासनमें निषेध किए हुए इस भव में और अन्य भव में किए मिथ्यात्व के प्रवर्तन समान जो अधिकरण (पापक्रिया), वे दुष्ट पाप की मैं गर्हा करता हूँ यानि गुरु की साक्षी से उसकी निन्दा करता हूँ। | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
चतुशरणं |
Gujarati | 33 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउदस-दस-नवपुव्वी दुवालसिक्कारसंगिणो जे य ।
जिणकप्पाऽहालंदिय परिहारविसुद्धि साहू य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦ | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
दुष्कतगर्हा |
Gujarati | 50 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इहभवियमन्नभवियं मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं ।
जिणपवयणपडिकुट्ठं दुट्ठं गरिहामि तं पावं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૯ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 76 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवानंतनाणीणं जिणाणं वरदंसिणं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 112 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिनेहा-तिक्कंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं वीरिएणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए तुट्ठीए अनुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल० परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडि पुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा।
तते Translated Sutra: हे आयुष्मान् श्रमणों ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् तप संयम की साधना करते हुए, वह निर्ग्रन्थ सर्व काम, राग, संग, स्नेह से विरक्त हो जाए, सर्व चारित्र परिवृद्ध हो, तब अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन यावत् परिनिर्वाण मार्ग में आत्मा को भावित करके अनंत, अनुत्तर आवरण रहित, सम्पूर्ण | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Gujarati | 76 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवानंतनाणीणं जिणाणं वरदंसिणं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: મોહનીય સ્થાન – ૧૯ – જે અજ્ઞાની અનંત જ્ઞાનદર્શન સંપન્ન જિનેન્દ્ર દેવનો અવર્ણવાદ – નિંદા કરે છે – તે મહામોહનીય કર્મ બાંધે છે. | |||||||||
Dashashrutskandha | દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Gujarati | 112 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पन्नत्ते– सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिनेहा-तिक्कंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं वीरिएणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए तुट्ठीए अनुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचियफल० परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडि पुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा।
तते Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણો ! મેં ધર્મનું પ્રતિપાદન કરેલ છે. આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચન સત્ય છે – યાવત્ – તપ, સંયમની ઉગ્ર સાધના કરતી વેળાએ તે નિર્ગ્રન્થ સર્વે કામ, રાગ, સંગ, સ્નેહથી વિરક્ત થઈ જાય. સર્વ ચારિત્ર પરિવૃદ્ધ થાય ત્યારે – અનુત્તર જ્ઞાન, અનુત્તર દર્શન, યાવત પરિનિર્વાણ માર્ગમાં આત્માને ભાવિત કરીને તે શ્રમણ – અનંત, | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 68 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई ।
तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 69 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ।
तया जोगे निरुंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 73 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स ।
परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥ Translated Sutra: जो श्रमण तपोगुण में प्रधान है,ऋजुमति है, क्षान्ति एवं संयम में रत है, तथा परीषहों को जीतने वाला है; ऐसे श्रमण को सुगति सुलभ है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 167 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अहो! जिणेहिं असावज्जा वित्ती साहूण देसिया ।
मुक्खसाहणहेउस्स साहुदेहस्स धारणा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १६२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 240 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिट्ठियं ।
नायरंति मुनी लोए भेयाययणवज्जिणो ॥ Translated Sutra: अब्रह्यचर्य लोकमें घोर, प्रमादजनक, दुराचरित है। संयमभंग करनेवाले स्थानोंसे दूर रहनेवाले मुनि उसका आचरण नहीं करते। यह अधर्म का मूल है। महादोषों का पुंज है। इसीलिए निर्ग्रन्थ मैथुन संसर्ग का त्याग करते है। सूत्र – २४०, २४१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-३ | Hindi | 470 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गुरुमिह सययं पडियरिय मुनी जिणमयनिउणे अभिगमकुसले ।
धुणिय रयमलं पुरेकडं भासुरमउलं गइं गय ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: जिन – (प्ररूपित) सिद्धान्त में निपुण, अभिगम में कुशल मुनि इस लोक में सतत गुरु की परिचर्या करके पूर्वकृत कर्म को क्षय कर भास्वर अतुल सिद्धि गति को प्राप्त करता है। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Gujarati | 68 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई ।
तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૦ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Gujarati | 69 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ।
तया जोगे निरुंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जई ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૦ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Gujarati | 73 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स ।
परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 167 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अहो! जिणेहिं असावज्जा वित्ती साहूण देसिया ।
मुक्खसाहणहेउस्स साहुदेहस्स धारणा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Gujarati | 240 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिट्ठियं ।
नायरंति मुनी लोए भेयाययणवज्जिणो ॥ Translated Sutra: અબ્રહ્મચર્ય લોકમાં ઘોર, પ્રમાદજનક અને દુરધિષ્ઠિત છે. સંયમ ભંગ કરનારા સ્થાનોથી દૂર રહેનાર મુનિ તેનું આચરણ ન કરે. આ અબ્રહ્મ અધર્મનું મૂળ છે, મહાદોષોનો પૂંજ છે, તેથી નિર્ગ્રન્થ મૈથુન સંસર્ગનો ત્યાગ કરે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૪૦, ૨૪૧ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-३ | Gujarati | 470 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गुरुमिह सययं पडियरिय मुनी जिणमयनिउणे अभिगमकुसले ।
धुणिय रयमलं पुरेकडं भासुरमउलं गइं गय ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૬૩ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Hindi | 127 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एसो तारापिंडो सव्वसमासेण मनुयलोगम्मि ।
बहिया पुण ताराओ जिणेहिं भणिया असंखेज्जा ॥ Translated Sutra: संक्षेप में मानवलोक में यह नक्षत्र समूह कहा है। मानवलोक की बाहर जिनेन्द्र द्वारा असंख्य तारे बताएं हैं | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 127 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एसो तारापिंडो सव्वसमासेण मनुयलोगम्मि ।
बहिया पुण ताराओ जिणेहिं भणिया असंखेज्जा ॥ Translated Sutra: સંક્ષેપથી મનુષ્યલોકમાં આ નક્ષત્ર સમૂહ કહ્યો. મનુષ્યલોકની બહાર જિનેન્દ્રો દ્વારા અસંખ્યાત તારા કહેલા છે. આ રીતે મનુષ્યલોકમાં સૂર્ય આદિ ગ્રહો કહ્યા છે, તે કદંબ વૃક્ષના ફૂલના આકાર સમાન વિચરણ કરે છે. આ રીતે મનુષ્ય લોકમાં સૂર્ય, ચંદ્ર, ગ્રહ, નક્ષત્ર કહ્યા છે, જેના નામ – ગોત્ર સાધારણ બુદ્ધિવાળા મનુષ્યો કહી શકતા | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Hindi | 26 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] स एव भव्वसत्ताणं चक्खुब्भूए वियाहिए ।
दंसेइ जो जिणुद्दिट्ठं अणुट्ठाणं जहट्ठियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २५ | |||||||||
Gacchachar | ગચ્છાચાર | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Gujarati | 26 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] स एव भव्वसत्ताणं चक्खुब्भूए वियाहिए ।
दंसेइ जो जिणुद्दिट्ठं अणुट्ठाणं जहट्ठियं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫ | |||||||||
Ganividya | गणिविद्या | Ardha-Magadhi |
द्वितीयंद्वारं तिथि |
Hindi | 6 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आरोग्गमविग्घं खेमियं च एक्कारसिं वियाणाहि ।
जे वि य हुंति अमित्ता ते तेरसिपट्ठिओ जिणइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४ | |||||||||
Ganividya | ગણિવિદ્યા | Ardha-Magadhi |
द्वितीयंद्वारं तिथि |
Gujarati | 6 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आरोग्गमविग्घं खेमियं च एक्कारसिं वियाणाहि ।
जे वि य हुंति अमित्ता ते तेरसिपट्ठिओ जिणइ ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪ |