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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 100 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाणं अनानुपुव्विदव्वाणं अवत्तव्वगदव्वाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसट्ठयाए कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
सव्वत्थोवाइं नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं दव्वट्ठयाए, अनानुपुव्विदव्वाइं दव्वट्ठयाए विसेसाहियाइं, आनुपुव्विदव्वाइं दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणाइं।
पएसट्ठयाए–सव्वत्थोवाइं नेगम-ववहाराणं अनानुपुव्विदव्वाइं अपएसट्ठयाए, अवत्तव्वग-दव्वाइं पएसट्ठयाए विसेसाहियाइं, आनुपुव्विदव्वाइं पएसट्ठयाए अनंतगुणाइं।
दव्वट्ठ-पएसट्ठयाए–सव्वत्थोवाइं नेगम-ववहाराणं अवत्तव्वगदव्वाइं दव्वट्ठयाए, Translated Sutra: नैगम – व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वीद्रव्यों, अनानुपूर्वीद्रव्यों और अवक्तव्यद्रव्यों में से द्रव्य, प्रदेश और द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा कौन द्रव्य किन द्रव्यों की अपेक्षा अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा नैगम – व्यवहार नयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य सबसे स्तोक हैं, अवक्तव्यद्रव्यों की | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 116 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं अत्थि? नत्थि? नियमा अत्थि। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं किं संखेज्जाइं? असंखेज्जाइं? अनंताइं? नो संखेज्जाइं, असंखेज्जाइं, नो अनंताइं। एवं दोन्नि वि।
नेगम-ववहाराणं आनुपुव्विदव्वाइं लोगस्स कति भागे होज्जा–किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा? एगदव्वं पडुच्च लोगस्स संखेज्जइभागे वा होज्जा, असंखेज्जइभागे वा होज्जा, संखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु वा होज्जा, देसूणे लोए वा होज्जा। नानादव्वाइं पडुच्च नियमा सव्वलोए Translated Sutra: सत्पदप्ररूपणता क्या है ? नैगम – व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वीद्रव्य है या नहीं ? नियमतः हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी समझना। नैगम – व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? वह नियमतः असंख्यात हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिए भी | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 138 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ओवनिहिया कालानुपुव्वी? ओवनिहिया कालानुपुव्वी तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–पुव्वानुपुव्वी पच्छानुपुव्वी अनानुपुव्वी।
से किं तं पुव्वानुपुव्वी? पुव्वानुपुव्वी–समए आवलिया आनापानू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते पक्खे मासे उऊ अयने संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे, तुडियंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववे, हुहुयंगे हुहुए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे, अत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउयंगे अउए, नउयंगे नउए, पउयंगे पउए, चूलियंगे चूलिया, सीसपहेलियंगे सीसपहेलिया, पलिओवमे सागरोवमे ओसप्पिणी उस्सप्पिणी पोग्गलपरियट्टे तीतद्धा Translated Sutra: औपनिधिकी कालानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार हैं – पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी। पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है – एक समय की स्थिति वाले, दो समय की स्थिति वाले, तीन समय की स्थिति वाले यावत् दस समय की स्थिति वाले यावत् संख्यात समय की स्थिति वाले, असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 270 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मणुस्साणं भंते केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं एणं पमाणंगुलेणं किं पओयणं? एएणं पमाणंगुलेणं पुढवीणं कंडाणं पातालाणं भवणाणं भवणपत्थडाणं निरयाणं निरयावलियाणं निरयपत्थडाणं कप्पाणं विमाणाणं विमाणावलियाणं विमाणपत्थडाणं टंकाणं कूडाणं सेलाणं सिहरीणं पब्भ-राणं विजयाणं वक्खाराणं वासाणं वासहराणं पव्वयाणं वेलाणं वेइयाणं दाराणं तोरणाणं दीवाणं समुद्दाणं आयाम-विक्खंभ-उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मविज्जंति।
से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सेढीअंगुले पयरंगुले घणंगुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी, सेढी सेढीए गुणिया पयरं, पयरं सेढीए गुणियं लोगो, Translated Sutra: मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है। संमूर्च्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है। अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 276 | Gatha | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हट्ठस्स अणवगल्लस, निरुवक्किट्ठस्स जंतुणो ।
एगे ऊसास-नीसासे, एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥ Translated Sutra: हृष्ट, वृद्धावस्था से रहित, व्याधि से रहित मनुष्य आदि के एक उच्छ्वास और निःश्वास के ‘काल’ को प्राण कहते हैं। ऐसे सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव और लवों का एक मुहूर्त्त जानना। अथवा – सर्वज्ञ ३७७३ उच्छ्वास – निश्वासों का एक मुहूर्त्त कहा है। इस मुहूर्त्त प्रमाण से तीस मुहूर्त्तों का एक अहोरात्र | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 322 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समोयारे? समोयारे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसमोयारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४. खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमोयारे।
नामट्ठवणाओ गयाओ जाव। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे।
से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे परसमोयारे तदुभयसमोयारे। सव्वदव्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोयारेणं जहा कुंडे वदराणि, तदुभयसमोयरेणं जहा घरे थंभो आयभावे य, जहा घडे गीवा आयभावे य।
अहवा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दव्वसमोयारे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–आयसमोयारे य Translated Sutra: समवतार क्या है ? समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे – नामसमवतार, स्थापनासमवतार, द्रव्यसमवतार, क्षेत्रसमवतार, कालसमवतार और भावसमवतार। नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् जानना। द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा है – आगमद्रव्यसमवतार, नोआगमद्रव्यसमवतार। यावत् आगमद्रव्यसमवतार का तथा नोआगमद्रव्यसमवतार के | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-१ चलन | Hindi | 21 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं ठिई आहारो य भाणियव्वो। ठिती जहा–
ठितिपदे तहा भाणियव्वा सव्वजीवाणं। आहारो वि जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए तहा भाणियव्वो, एत्तो आढत्तो–नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? जाव दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति।
असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा ४? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं साइरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा ४ |
असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता, आहारट्ठी । [असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! असुरकुमाराणं दुविहे
आहारे पन्नत्ते। तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य, अनाभोगनिव्वत्तिए य।
तत्थ णं जे से अनाभोग निव्वत्तिए Translated Sutra: इसी तरह स्थिति और आहार के विषय में भी समझ लेना। जिस तरह स्थिति पद में कहा गया है उसी तरह स्थिति विषय में कहना चाहिए। सर्व जीव संबंधी आहार भी पन्नवणा सूत्र के प्रथम उद्देशक में कहा गया है उसी तरह कहना चाहिए। भगवन् ! असुरकुमारों की स्थिति कितने काल की है ? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम से | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Hindi | 218 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ?
हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स Translated Sutra: भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी वर्षा (ऋतु) का प्रथम समय होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में वर्षाऋतु का प्रथम समय होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर – पर्वत से पूर्व में वर्षाऋतु का प्रथम समय अनन्तर – पुरस्कृत समय में होता है ? हाँ, गौतम ! यह इसी तरह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-७ शाली | Hindi | 305 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त पाणूइं से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे ।
लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्ते वियाहिए ॥ Translated Sutra: सात प्राणों का एक ‘स्तोक’ होता है। सात स्तोकों का एक ‘लव’ होता है। ७७ लवों का एक मुहूर्त्त कहा गया है। अथवा ३७७३ उच्छ्वासों का एक मुहूर्त्त होता है, ऐसा समस्त अनन्तज्ञानियों ने देखा है। सूत्र – ३०५, ३०६ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-५ पर्यव | Hindi | 894 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आवलिया णं भंते! किं संखेज्जा समया? असंखेज्जा समया? अनंता समया?
गोयमा! नो संखेज्जा समया, असंखेज्जा समया, नो अनंता समया।
आणापाणू णं भंते! किं संखेज्जा? एवं चेव।
थोवे णं भंते! किं संखेज्जा? एवं चेव। एवं लवे वि, मुहुत्ते वि, एवं अहोरत्ते, एवं पक्खे, मासे, उऊ, अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससए, वाससहस्से, वाससयसहस्से, पुव्वंगे, पुव्वे, तुडियंगे, तुडिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे, अववे, हूहूयंगे, हूहूए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अत्थनिपूरंगे, अत्थनिपूरे, अउयंगे, अउए, नउयंगे, नउए, पउयंगे, पउए, चूलियंगे, चूलिए, सीसपहेलियंगे, सीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी। एवं उस्सप्पिणी Translated Sutra: भगवन् ! क्या आवलिका संख्यात समय की, असंख्यात समय की या अनन्त समय की होती है ? गौतम ! वह केवल असंख्यात समय की होती है। भगवन् ! आनप्राण संख्यात समय का होता है ? इत्यादि। गौतम ! पूर्ववत्। भगवन् ! स्तोक संख्यात समय का होता है ? इत्यादि। गौतम ! पूर्ववत्। इसी प्रकार लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, | |||||||||
Chandrapragnapati | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Hindi | 43 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ।
तत्थेगे एवमाहंसु–ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ...
... एवं परिहावेतव्वं–सोलसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ते दिवसे Translated Sutra: सूर्य की उदय संस्थिति कैसी है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। एक परमतवादी कहता है कि जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाण दिन होता है। जब उत्तरार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त | |||||||||
Chandrapragnapati | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Hindi | 201 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चिमाली पभंकरा, जहा हेट्ठा तं चेव जाव नो चेव णं मेहुणवत्तियं। एवं सूरस्सवि भाणितव्वं।
ता चंदिमसूरिया णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो केरिसे कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति?
ता से जहानामए–केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थे पढमजोव्वणुट्ठाणबलसमत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहे अत्थत्थी अत्थगवेसणयाए सोलसवासविप्पवसिते, से णं ततो लद्धट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे पुनरवि नियगघरं हव्वमागए ण्हाते कतबलिकम्मे कतकोतुक मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं Translated Sutra: हे भगवन् ! चंद्र को शशी क्युं कहते हैं ? ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चंद्र के मृग चिन्हवाले विमान में कान्त – देव, कान्तदेवीयाँ, कान्त आसन, शयन, स्तम्भ, उपकरण आदि होते हैं, चंद्र स्वयं सुरूप आकृतिवाला, कांतिवान्, लावण्ययुक्त और सौभाग्य पूर्ण होता है इसलिए ‘चंद्र – शशी’ ऐसा कहा जाता है। हे भगवन् ! सूर्य को आदित्य | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 228 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरस्स सुंदरि! मासाणं अद्धपंचमाणं च ।
उस्सासो देवाणं अनुत्तरविमानवासीणं ॥ Translated Sutra: हे सुंदरी ! एक साल साड़े चार महिने अनुत्तरवासी देव के श्वासोच्छ्वास होते हैं। मध्यम आयु देव को आठ मास और साड़े सात दिन के बाद श्वासोच्छ्वास होते हैं। जघन्य आयु को धारण करनेवाले देव का श्वासोच्छ्वास सात स्तोक में पूर्ण होता है। सूत्र – २२८–२३० | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
7. व्यवहार-चारित्र अधिकार - (साधना अधिकार) [कर्म-योग] |
2. मोक्षमार्ग में चारित्र (कर्म) का स्थान | Hindi | 140 | View Detail | ||
Mool Sutra: स्तोके शिक्षिते जयति, बहुश्रुतं यश्चारित्रसम्पूर्णः।
यः पुनश्चारित्रहीनः, किं तस्य श्रुतेन बहुकेन ।। Translated Sutra: चारित्र से परिपूर्ण साधु थोड़ा पढ़ा हुआ भी क्यों न हो, बहुश्रुत को भी जीत लेता है। परन्तु जो चारित्रहीन है, वह बहुत शास्त्रों का जाननेवाला भी क्यों न हो, उसके शास्त्रज्ञान से क्या लाभ? | |||||||||
Jain Dharma Sar | जैन धर्म सार | Sanskrit |
8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग) |
8. सागार (श्रावक) व्रत-सूत्र | Hindi | 184 | View Detail | ||
Mool Sutra: अर्थेन तन्न बध्नाति यदनर्थेन स्तोकबहुभावात्।
अर्थे कालादयो नियामकाः न त्वनर्थे ।। Translated Sutra: जीव को सप्रयोजन कर्म करने से उतना बन्ध नहीं होता जितना कि निष्प्रयोजन से होता है। क्योंकि सप्रयोजन कार्य में जिस प्रकार देश काल भाव आदि नियामक होते हैं, उस प्रकार निष्प्रयोजन में नहीं होते। श्रावक ऐसे अनर्थदण्ड का त्याग करता है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 24 | Gatha | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त पाणूइं से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे ।
लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्तेति आहिए ॥ Translated Sutra: सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव, ७७ लवों का एक मुहूर्त्त होता है। | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।
जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए Translated Sutra: कौशलिक अर्हत् ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात् निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत् यावत् जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक् भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान् ऐसे उत्तम | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 287 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मानुसुत्तरे णं भंते! पव्वते केवतियं उड्ढं उच्चत्तेणं? केवतियं उव्वेहेणं? केवतियं मूले विक्खंभेणं? केवतियं मज्झे विक्खंभेणं? केवतियं उवरिं विक्खंभेणं? केवतियं अंतो गिरिपरिरएणं? केवतियं बाहिं गिरिपरिरएणं? केवतियं मज्झे गिरि परिरएणं? केवतियं उवरिं गिरिपरिरएणं?
गोयमा! मानुसुत्तरे णं पव्वते सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते विक्खंभेणं, मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, उवरि चत्तारिचउवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे Translated Sutra: हे भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत की ऊंचाई कितनी है ? उसकी जमीन में गहराई कितनी है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! मानुषोत्तरपर्वत १७२१ योजन पृथ्वी से ऊंचा है। ४३० योजन और एक कोस पृथ्वी में गहरा है। यह मूल में १०२२ योजन चौड़ा है, मध्य में ७२३ योजन चौड़ा और ऊपर ४२४ योजन चौड़ा है। पृथ्वी के भीतर की इसकी परिधि १,४२,३०,२४९ योजन है। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-७ उच्छवास |
Hindi | 353 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! सततं संतयामेव आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा।
असुरकुमारा णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं सातिरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा जाव नीससंति वा।
नागकुमारा णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं मुहुत्तपुहत्तस्स। एवं जाव थणियकुमाराणं।
पुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स आणमंति वा पाणमंति वा जाव नीससंति वा? गोयमा! वेमायाए आणमंति वा जाव नीससंति Translated Sutra: भगवन् ! नैरयिक कितने काल से उच्छ्वास लेते और निःश्वास छोड़ते हैं ? गौतम ! सतत सदैव उच्छ्वास – निःश्वास लेते रहते हैं। भगवन् ! असुरकुमार ? गौतम ! वे जघन्यतः सात स्तोक में और उत्कृष्टतः एक पक्ष में श्वास लेते और छोड़ते हैं। भगवन् ! नागकुमार ? गौतम ! वे जघन्य सात स्तोक और उत्कृष्टतः मुहूर्त्तपृथक्त्व में श्वास | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Hindi | 639 | View Detail | ||
Mool Sutra: समयावलिउस्सासा, पाणा थोवा य आदिआ भेदा।
ववहारकालणामा, णिद्दिट्ठा वीयराएहिं।।१६।। Translated Sutra: वीतरागदेव ने बताया है कि व्यवहार-काल समय, आवलि, उच्छ्वास, प्राण, स्तोक आदि रूपात्मक है। | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१०. संयमसूत्र | English | 133 | View Detail | ||
Mool Sutra: इह उपशान्तकषायो, लभतेऽनन्तं पुनरपि प्रतिपातम्।
न हि युष्माभिर्विश्वसितव्यं स्तोकेऽपि कषायशेषे।।१२।। Translated Sutra: Even one who has subsided or repressed all his passions, once more experiences a terrible spiritual degeneration, hence one ought not to become complacent when some remnants of passions still continue. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१०. संयमसूत्र | English | 134 | View Detail | ||
Mool Sutra: ऋणस्तोकं व्रणस्तोकम्, अग्निस्तोकं कषायस्तोकं च।
न हि भवद्भिर्विश्वसितव्यं, स्तोकमपि खलु तद् बहु भवति।।१३।। Translated Sutra: One should not be complacent with a small debt, slight wound, spark of fire and slight passion, because what is small (today) may become bigger (later). | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२०. सम्यक्चारित्रसूत्र | English | 267 | View Detail | ||
Mool Sutra: स्तोके शिक्षिते जयति, बहुश्रुतं यश्चारित्रसम्पूर्णः।
यः पुनश्चारित्रहीनः, किं तस्य श्रुतेन बहुकेन।।६।। Translated Sutra: A person of right conduct triumphs over a learned person, even if his scriptural knowledge is little; what is the use of wide study of scriptures for a person without right conduct? | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२३. श्रावकधर्मसूत्र | English | 317 | View Detail | ||
Mool Sutra: भावयेच्च सन्तोषं, गृहीतमिदानीमजानानेन।
स्तोकं पुनः न एवं, ग्रहीष्याम इति चिन्तयेत्।।१७।। Translated Sutra: A person who has accepted the vow to limit the possessions should remain contented (with what he has). He should not think for himself, “This time I have resolved to possess a little (amount of property) unknowingly but in future I will not do that i. e. if it will be necessary I will accumulate more. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२३. श्रावकधर्मसूत्र | English | 322 | View Detail | ||
Mool Sutra: अर्थेन तत् न बध्नाति, यदनर्थेन स्तोकबहुभावात्।
अर्थे कालादिकाः, नियामकाः न त्वनर्थके।।२२।। Translated Sutra: Meaningful activities (of himsa etc.) do not cause so much bondage as useless activities, The meaningful activities (of himsa etc.) are only performed under some circumstances (i.e. the needs of time etc.) but it is not the case of useless activities. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Sanskrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | English | 639 | View Detail | ||
Mool Sutra: समयआवलिउच्छ्वासाः प्राणाः स्तोकाश्च आदिका भेदाः।
व्यवहारकालनामानः निर्दिष्टा वीतरागैः।।१६।। Translated Sutra: From practical view-point the time is meansured by diverse units like avali (closing and opening of eye-lids) Ucchvasa (time taken in an exhalation), Prana (taken in one respiration) and stoka (second). It is asserted by the Jinas. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१०. संयमसूत्र | Gujarati | 133 | View Detail | ||
Mool Sutra: इह उपशान्तकषायो, लभतेऽनन्तं पुनरपि प्रतिपातम्।
न हि युष्माभिर्विश्वसितव्यं स्तोकेऽपि कषायशेषे।।१२।। Translated Sutra: કષાયોને ઉપશાંત કરનાર પણ જો ફરીથી અનંતગણી પતિત અવસ્થાને પામતો હોય તો, કષાય ભલે થોડો રહ્યો હોય તો પણ, તેનો વિશ્વાસ કરવો જોઈએ નહિ. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१०. संयमसूत्र | Gujarati | 134 | View Detail | ||
Mool Sutra: ऋणस्तोकं व्रणस्तोकम्, अग्निस्तोकं कषायस्तोकं च।
न हि भवद्भिर्विश्वसितव्यं, स्तोकमपि खलु तद् बहु भवति।।१३।। Translated Sutra: થોડુંક કરજ, નાનો ઘા, નાનકડી આગ કે જરાક જેટલો કષાય - આ બધાંનો તમારે કદી વિશ્વાસ ન કરવો. એમને નાનામાંથી મોટું રૂપ લેતાં વાર લાગતી નથી. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२०. सम्यक्चारित्रसूत्र | Gujarati | 267 | View Detail | ||
Mool Sutra: स्तोके शिक्षिते जयति, बहुश्रुतं यश्चारित्रसम्पूर्णः।
यः पुनश्चारित्रहीनः, किं तस्य श्रुतेन बहुकेन।।६।। Translated Sutra: જે ચારિત્રયુક્ત છે તે થોડું શીખ્યો હશે તો પણ વિદ્વાનને હરાવી દેશે. જે ચારિત્રવિહીન છે તે ગમે તેટલું ભણે તોય તેથી શું? | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२३. श्रावकधर्मसूत्र | Gujarati | 317 | View Detail | ||
Mool Sutra: भावयेच्च सन्तोषं, गृहीतमिदानीमजानानेन।
स्तोकं पुनः न एवं, ग्रहीष्याम इति चिन्तयेत्।।१७।। Translated Sutra: શ્રાવકે સંતોષ કેળવવો, "અજ્ઞાનપણે મેં સંગ્રહ કરી લીધો છે, હવે વધુ સંગ્રહ નહિ કરું" એવો વિચાર તેણે રાખવો. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२३. श्रावकधर्मसूत्र | Gujarati | 322 | View Detail | ||
Mool Sutra: अर्थेन तत् न बध्नाति, यदनर्थेन स्तोकबहुभावात्।
अर्थे कालादिकाः, नियामकाः न त्वनर्थके।।२२।। Translated Sutra: પ્રયોજન હોય અને કાર્ય કરવામાં આવે તો કર્મબંધન ઓછું થાય છે, પ્રયોજન વિના કરવાથી વધુ થાય છે; કારણ કે આવશ્યક કાર્યમાં તો સ્થળ-કાળનો ખ્યાલ રહે છે, અનાવશ્યક કાર્યોમાં એની અપેક્ષા ન હોવાથી પ્રવૃત્તિ અમર્યાદ બની જાય છે. | |||||||||
Saman Suttam | સમણસુત્તં | Sanskrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Gujarati | 639 | View Detail | ||
Mool Sutra: समयआवलिउच्छ्वासाः प्राणाः स्तोकाश्च आदिका भेदाः।
व्यवहारकालनामानः निर्दिष्टा वीतरागैः।।१६।। Translated Sutra: સમય, આવલિ, ઉચ્છ્વાસ, પ્રાણ, સ્તોક વગેરે વ્યવહાર કાળના ભેદો છે એમ વીતરાગે કહ્યું છે. | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१०. संयमसूत्र | Hindi | 133 | View Detail | ||
Mool Sutra: इह उपशान्तकषायो, लभतेऽनन्तं पुनरपि प्रतिपातम्।
न हि युष्माभिर्विश्वसितव्यं स्तोकेऽपि कषायशेषे।।१२।। Translated Sutra: जब कि कषायों को उपशान्त करनेवाला पुरुष भी अनन्तप्रतिपात (विशुद्ध अध्यवसाय की अनन्तहीनता) को प्राप्त हो जाता है, तब अवशिष्ट थोड़ी-सी कषाय पर कैसे विश्वास किया जा सकता है ? उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१०. संयमसूत्र | Hindi | 134 | View Detail | ||
Mool Sutra: ऋणस्तोकं व्रणस्तोकम्, अग्निस्तोकं कषायस्तोकं च।
न हि भवद्भिर्विश्वसितव्यं, स्तोकमपि खलु तद् बहु भवति।।१३।। Translated Sutra: ऋण को थोड़ा, घाव को छोटा, आग को तनिक और कषाय को अल्प मान, विश्वस्त होकर नहीं बैठ जाना चाहिए। क्योंकि ये थोड़े भी बढ़कर बहुत हो जाते हैं। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२०. सम्यक्चारित्रसूत्र | Hindi | 267 | View Detail | ||
Mool Sutra: स्तोके शिक्षिते जयति, बहुश्रुतं यश्चारित्रसम्पूर्णः।
यः पुनश्चारित्रहीनः, किं तस्य श्रुतेन बहुकेन।।६।। Translated Sutra: चारित्रसम्पन्न का अल्पतम ज्ञान भी बहुत है और चारित्रविहीन का बहुत श्रुतज्ञान भी निष्फल है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२३. श्रावकधर्मसूत्र | Hindi | 317 | View Detail | ||
Mool Sutra: भावयेच्च सन्तोषं, गृहीतमिदानीमजानानेन।
स्तोकं पुनः न एवं, ग्रहीष्याम इति चिन्तयेत्।।१७।। Translated Sutra: उसे सन्तोष रखना चाहिए। उसे ऐसा विचार करना चाहिए कि `इस समय मैंने बिना जाने ज्यादा संग्रह किया है, अब पुनः अधिक ग्रहण नहि करुंगा।' | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२३. श्रावकधर्मसूत्र | Hindi | 322 | View Detail | ||
Mool Sutra: अर्थेन तत् न बध्नाति, यदनर्थेन स्तोकबहुभावात्।
अर्थे कालादिकाः, नियामकाः न त्वनर्थके।।२२।। Translated Sutra: प्रयोजनवश कार्य करने से अल्प कर्मबन्ध होता है और बिना प्रयोजन कार्य करने से अधिक कर्मबन्ध होता है। क्योंकि सप्रयोजन कार्य में तो देश-काल आदि परिस्थितियों की सापेक्षता रहती है, लेकिन निष्प्रयोजन प्रवृत्ति तो सदा ही (अमर्यादितरूप से) की जा सकती है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन |
३५. द्रव्यसूत्र | Hindi | 639 | View Detail | ||
Mool Sutra: समयआवलिउच्छ्वासाः प्राणाः स्तोकाश्च आदिका भेदाः।
व्यवहारकालनामानः निर्दिष्टा वीतरागैः।।१६।। Translated Sutra: वीतरागदेव ने बताया है कि व्यवहार-काल समय, आवलि, उच्छ्वास, प्राण, स्तोक आदि रूपात्मक है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-४ | Hindi | 99 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] समयाति वा आवलियाति वा जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति।
आणापाणूति वा थोवेति वा जीवाति या अजीवाति या पवुच्चति।
खणाति वा लवाति वा जीवाति या आजीवाति या पवुच्चति। एवं–मुहुत्ताति वा अहोरत्ताति वा पक्खाति वा मासाति वा उडूति वा अयणाति वा संवच्छराति वा जुगाति वा वाससयाति वा वाससहस्साइ वा वाससतसहस्साइ वा वासकोडीइ वा पुव्वंगाति वा पुव्वाति वा तुडियंगाति वा तुडियाति वा अडडंगाति वा अडडाति वा ‘अववंगाति वा अववाति’ वा हूहूअंगाति वा हूहूयाति वा उप्पलंगाति वा उप्पलाति वा पउमंगाति वा पउमाति वा नलिनंगाति वानलिनाति वा अत्थनिकुरंगाति वा अत्थनिकुराति वा अउअंगाति वा अउआति वा Translated Sutra: समय अथवा आवलिका जीव और अजीव कहे जाते हैं। श्वासोच्छ्वास अथवा स्तोक जीव और अजीव कहे जाते हैं। इसी तरह – लव, मुहूर्त्त और अहोरात्र पक्ष और मास ऋतु और अयन संवत्सर और युग सौ वर्ष और हजार वर्ष लाख वर्ष और क्रोड़ वर्ष त्रुटितांग और त्रुटित, पूर्वांग अथवा पूर्व, अडडांग और अडड, अववांग और अवव, हूहूतांग और हूहूत, उत्पलांग | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-४ | Hindi | 206 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहे काले पन्नत्ते, तं जहा–तीए, पडुप्पन्न, अनागए।
तिविहे समए पन्नत्ते, तं जहा–तीए, पडुप्पन्ने, अनागए।
एवं–आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते अहोरत्ते जाव वाससतसहस्से पुव्वंगे पुव्वे जाव ओसप्पिणी।
तिविधे पोग्गलपरियट्टे पन्नत्ते, तं जहा–तीते, पडुप्पण्णे, अनागए। Translated Sutra: काल तीन प्रकार के कहे गए हैं, भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल। समय तीन प्रकार का कहा गया है, यथा – अतीत काल, वर्तमानकाल और अनागत काल। इसी तरह आवलिका, श्वसोच्छ्वास, स्तोक, क्षण, लव, मुहूर्त्त, अहोरात्र – यावत् क्रोड़वर्ष, पूर्वांग, पूर्व, यावत् – अवसर्पिणी। पुद्गल परिवर्तन तीन प्रकार का है, यथा – अतीत, प्रत्युत्पन्न | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-८ |
Hindi | 39 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते उदयसंठिती आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ तिन्नि पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ।
तत्थेगे एवमाहंसु–ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ता जया णं उत्तरड्ढे सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं दाहिणड्ढेवि सत्तरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, ...
... एवं परिहावेतव्वं–सोलसमुहुत्ते दिवसे पन्नरसमुहुत्ते दिवसे Translated Sutra: सूर्य की उदय संस्थिति कैसी है ? इस विषय में तीन प्रतिपत्तियाँ हैं। एक परमतवादी कहता है कि जब जंबूद्वीप के दक्षिणार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब उत्तरार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाण दिन होता है। जब उत्तरार्द्ध में अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब दक्षिणार्द्ध में भी अट्ठारह मुहूर्त्त | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-२० |
Hindi | 196 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा? ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो मियंके विमाने कंता देवा कंताओ देवीओ कंताइं आसन-सयन-खंभ-भंडमत्तोवगरणाइं, अप्पणावि य णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभगे पियदंसणे सुरूवे ता एवं खलु चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा।
ता कहं ते सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा? ता सूरादिया णं समयाति वा आवलियाति वा आनापानुति वा थोवेति वा जाव ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीति वा, एवं खलु सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा। Translated Sutra: हे भगवन् ! चंद्र को शशी क्युं कहते हैं ? ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चंद्र के मृग चिन्हवाले विमान में कान्त – देव, कान्तदेवीयाँ, कान्त आसन, शयन, स्तम्भ, उपकरण आदि होते हैं, चंद्र स्वयं सुरूप आकृतिवाला, कांतिवान्, लावण्ययुक्त और सौभाग्य पूर्ण होता है इसलिए ‘चंद्र – शशी’ ऐसा कहा जाता है। हे भगवन् ! सूर्य को आदित्य | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
धर्मोपदेश एवं फलं |
Hindi | 63 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुण्णाइं खलु आउसो! किच्चाइं करणिज्जाइं पीइकराइं वन्नकराइं धनकराइं कित्तिकराइं।
नो य खलु आउसो! एवं चिंतेयव्वं–एसिंति खलु बहवे समया आवलिया खणा आनापानू थोवा लवा मुहुत्ता दिवसा अहोरत्ता पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छरा जुगा वाससया वाससहस्सा वाससयसहस्सा, वासकोडीओ वासकोडाकोडीओ, जत्थ णं अम्हे बहूइं सीलाइं वयाइं गुणाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं पडिवज्जिस्सामो पट्ठविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं आउसो! नो एवं चिंतेयव्वं भवइ?
–अंतराइयबहुले खलु अयं जीविए, इमे य बहवे वाइय-पित्तिय-सिंभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीवियं। Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! पुण्य कृत्य करने से प्रीति में वृद्धि होती है। प्रशंसा, धन और यश में वृद्धि होती है। इसलिए हे आयुष्मान् ! ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि यहाँ काफी समय, आवलिका, क्षण, श्वासोच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहूर्त्त, दिन, आहोरात्र, पक्ष, मास, अयन, संवत्सर, युग, शतवर्ष, सहस्र वर्ष, लाख करोड़ या क्रोड़ा क्रोड़ साल जीना | |||||||||
Tandulvaicharika | तंदुल वैचारिक | Ardha-Magadhi |
काल प्रमाणं |
Hindi | 77 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे ।
लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए ॥ Translated Sutra: सात प्राण का एक स्तोक, सात स्तोक का एक लव, ७७ लव का एक मुहूर्त्त कहा है। |