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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ अनीयश अदि

अध्ययन-८ गजसुकुमाल

Hindi 13 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए, जहा पढमे जाव अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी छ अनगारा भायरो सहोदरा होत्था–सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुम -कुंडलभद्दलया नलकूबरसमाणा। तए णं ते छ अनगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तृतीय वर्ग के आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जंबू ! उस काल, उस समय में द्वारका नगरीमें प्रथम अध्ययनमें किये गये वर्णन के अनुसार यावत्‌ अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान पधारे। उस काल, उस समय भगवान नेमिनाथ के अंतेवासी – शिष्य छ मुनि सहोदर भाई थे। वे समान आकार, त्वचा और समान अवस्थावाले प्रतीत होते
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ अनीयश अदि

अध्ययन-९ थी १३

Hindi 14 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया जहा पढमए जाव विहरइ। तत्थ णं बारवईए बलदेवे नामं राया होत्था–वन्नओ। तस्स णं बलदेवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–वन्नओ। तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव नियगवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा। जहा गोयमे, नवरं–सुमुहे कुमारे। पण्णासं कण्णाओ। पण्णासओ दाओ। चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ।

Translated Sutra: ‘‘हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी, एक दिन भगवान अरिष्टनेमि तीर्थंकर विचरते हुए उस नगरी में पधारे। वहाँ बलदेव राजा था। वर्णन समझ लेना। उसकी धारिणी रानी थी। (वर्णन), उस धारिणी रानी ने सिंह का स्वप्न देखा, तदनन्तर पुत्रजन्म आदि का वर्णन गौतमकुमार की तरह जान लेना। विशेषता यह कि वह बीस वर्ष की दीक्षापर्याय
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-४ जालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 15 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं तच्चस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: ‘‘भगवन्‌ ! श्रमण यावत्‌ मुक्तिप्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अंतकृत्‌दशा के तीसरे वर्ग का जो वर्णन किया वह सूना। अंतगडदशा के चौथे वर्ग के हे पूज्य ! श्रमण भगवान ने क्या भाव दर्शाये हैं ?’’ ‘‘हे जंबू ! यावत्‌ मुक्तिप्राप्त प्रभु ने अंतगडदशा के चौथे वर्ग में दश अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं –
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-४ जालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 16 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. जालि २. मयालि ३. उवयाली, ४. पुरिससेने ५. वारिसेने य । ६. पज्जुन्न ७. संब ८. अनिरुद्ध ९. सच्चनेमि य १०. दढ ॥

Translated Sutra: जालि कुमार, मयालि कुमार, उवयालि कुमार, पुरुषसेन कुमार, वारिषेण कुमार, प्रद्युम्न कुमार, शाम्ब कुमार, अनिरुद्ध कुमार, सत्यनेमि कुमार और दृढ़नेमि कुमार।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-४ जालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 17 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी। तीसे णं बारवईए नयरीए जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तत्थ णं बारवईए नगरीए वसुदेवे राया। धारिणी देवी–वन्नओ जहा गोयमो, नवरं–जालिकुमारे। पन्नासओ दाओ बारसंगी। सोलस वासा परियाओ। सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे। एवं–मयाली उवयाली पुरिससेने य वारिसेने य। एवं–पज्जुन्ने वि, नवरं–कण्हे पिया, रुप्पिणी माया। एवं–संबे वि, नवरं–जंबवई माया। एवं–अनिरुद्धे

Translated Sutra: जंबू स्वामी ने कहा – भगवन्‌ ! श्रमण यावत्‌ मुक्तिप्राप्त प्रभु ने चौथे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत्‌ मुक्तिप्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ बताया है ?’’ हे जंबू ! उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी, श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे। उस द्वारका नगरी में महाराज ‘वासुदेव’ और रानी ‘धारिणी’
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-५ पद्मावती आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 18 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स वग्गस्स अंगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: ‘‘भगवन्‌ ! यावत्‌ मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अन्तकृत्‌दशा के पंचम वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?’’ ‘‘हे जंबू ! यावत्‌ मोक्ष – प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अन्तकृत्‌दशा के पंचम वर्ग के दस अध्ययन बताए हैं। पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा, रुक्मिणी, मूलश्री और मूलदत्ता। सूत्र
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-५ पद्मावती आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 19 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. पउमावई य २. गोरी, ३. गंधारी ४. लक्खणा ५. सुसीमा य । ६. जंबवइ ७. सच्चभामा, ८. रुप्पिणी ९. मूलसिरि १०. मूलदत्ता वि ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १८
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-५ पद्मावती आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 20 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था–वन्नओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ। तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जहा देवई देवी जाव पज्जुवासइ। तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हस्स वासुदेवस्स

Translated Sutra: जम्बूस्वामी ने पुनः पूछा – ‘‘भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने पंचम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी, यावत्‌ श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे। श्रीकृष्ण वासुदेव की पद्मावती नाम की महारानी थी। (राज्ञीवर्णन जान लेना)। उस काल उस
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-५ पद्मावती आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 21 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी। रेवयए पव्वए। उज्जाणे नंदनवने। तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे वासुदेवे। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी–वन्नओ। अरहा समोसढे। कण्हे णिग्गए। गोरी जहा पउमावई तहा निग्गया। धम्मकहा। परिसा पडिगया। कण्हे वि। तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा निक्खंता जाव सिद्धा। एवं–गंधारी, लक्खणा, सुसीमा, जंबवई, सच्चभामा, रुप्पिणी। अट्ठ वि पउमावईसरिसाओ अट्ठं अज्झयणा।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी। उसके समीप रैवतक नाम का पर्वत था। उस पर्वत पर नन्दनवन उद्यान था। द्वारका नगरी में श्रीकृष्ण वासुदेव राजा थे। उन की गौरी नाम की महारानी थी, एक समय उस नन्दनवन उद्यान में भगवान अरिष्टनेमि पधारे। कृष्ण वासुदेव भगवान के दर्शन करने के लिए गये। जन – परिषद्‌ भी गई। परिषद्‌ लौट
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-५ पद्मावती आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 22 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए रेवयए पव्वए नंदनवने उज्जाणे कण्हे वासुदेवे। तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवईए देवीए अत्तए संबे नामं कुमारे होत्था–अहीनपडिपुन्नपंचेंदियसरीरे। तस्स णं संबस्स कुमारस्स मूलसिरी नामं भारिया होत्था–वन्नओ। अरहा समोसढे। कण्हे निग्गए। मूलसिरी वि निग्गया, जहा पउमावई। जं नवरं–देवानुप्पिया! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि जाव सिद्धा। एवं मूलदत्ता वि।

Translated Sutra: उस काल उस समय में द्वारका नगरी के पास रैवतक नाम का पर्वत था, जहाँ एक नन्दनवन उद्यान था। वहाँ कृष्ण – वासुदेव राज्य करते थे। कृष्ण वासुदेव के पुत्र और रानी जाम्बवती देवी के आत्मज शाम्बकुमार थे जो सर्वांग सुन्दर थे। उन शाम्ब कुमार की मूलश्री नाम की भार्या थी। अत्यन्त सुन्दर एवं कोमलांगी थी। एक समय अरिष्टनेमि
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 23 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पंचमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। छट्ठस्स णं भंते! वग्गस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्ससोलस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने छठे वर्ग के क्या भाव कहे हैं ? ‘हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने अष्टम अंग अंतगडदशा के छठे वर्ग के सोलह अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं –
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 24 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. मकाइ २. किंकमे चेव, ३. मोग्गरपाणी य ४. कासवे । ५. खेमए ६. धिइहरे चेव, ७. केलासे ८. हरिचंदने ॥

Translated Sutra: मकाई, किंकम, मुदगरपाणि, काश्यप, क्षेमक, धृतिधर, कैलाश, हरिचन्दन, वारत्त, सुदर्शन, पुण्यभद्र, सुमनभद्र, सुप्रतिष्ठित, मेघकुमार, अतिमुक्त कुमार और अलक्क कुमार। सूत्र – २४, २५
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 25 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ९. वारत्त १०. सुदंसण ११. पुन्नभद्द तह १२. सुमनभद्द १३. सुपइट्ठे । १४. मेहे १५. ऽतिमुत्त १६. अलक्के, अज्झयणाणं तु सोलसयं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र २४
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 26 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्स सोलस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। तत्थ णं मकाई नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिकरे गुणसिलए जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। तए णं से मकाई गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्ठे जहा पन्नत्तीए गंगदत्ते तहेव इमो वि जेट्ठपुत्तं कुडुंबे ठवेत्ता पुरिस-सहस्सवाहिणीए सीयाए निक्खंते जाव अनगारे जाए–इरियासमिए। तए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण भगवान महावीर ने छट्ठे वर्ग के १६ अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में राजगृह नगर था। वहाँ गुणशील नामक चैत्य था। श्रेणिक राजा थे। वहाँ मकाई नामक गाथापति रहता था, जो अत्यन्त समृद्ध यावत्‌ अपरिभूत था। उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 27 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी। तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुनए नामं मालागारे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया। तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था–किण्हे जाव महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुनयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर था। गुणशीलक उद्यान था। श्रेणिक राजा थे। चेलना रानी थी। ‘अर्जुन’ नाम का एक माली रहता था। उसकी पत्नी बन्धुमती थी, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी। अर्जुन माली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम था। वह पुष्पोद्यान कहीं कृष्ण वर्ण का था, यावत्‌ समुदाय की तरह प्रतीत हो रहा था।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 28 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। कासवे नामं गाहावई परिवसइ। जहा मकाई। सोलस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नगर में गुणशील नामक चैत्य था। श्रेणिक राजा था। काश्यप नाम का एक गाथापति रहता था। उसने मकाई की तरह सोलह वर्ष तक दीक्षापर्याय का पालन किया और अन्त समय में विपुलगिरि पर्वत पर जाकर संथारा आदि करके सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गया।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 29 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–खेमए वि गाहावई, नवरं–कायंदी नयरी। सोलस वासा परियाओ। विपुले पव्वए सिद्धे।

Translated Sutra: इसी प्रकार क्षेमक गाथापति का वर्णन समझें। विशेष इतना है कि काकंदी नगरी के निवासी थे और सोलह वर्ष का उनका दीक्षाकाल रहा, यावत्‌ वे भी विपुलगिरि पर सिद्ध हुए।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 30 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–धिइहरे वि गाहावई, कायंदीए नयरीए। सोलस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: ऐसे ही धृतिधर गाथापति का भी वर्णन समझें। वे काकंदी के निवासी थे।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 31 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–केलासे वि गाहावई, नवरं–साएए नयरे। बारस वासाइं परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: इसी प्रकार कैलाश गाथापति भी थे। विशेष यह कि ये साकेत नगर के रहने वाले थे, इन्होंने बारह वर्ष की दीक्षापर्याय पाली और विपुलगिरी पर्वत पर सिद्ध हुए।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 32 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–हरिचंदणे वि गाहावई, साएए नयरे। बारस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: ऐसे ही आठवें हरिवन्दन गाथापति भी थे। वे भी साकेत नगरनिवासी थे।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 33 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–बारत्तए वि गाहावई, नवरं–रायगिहे नगरे। बारस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: इसी तरह नवमे वारत्त गाथापति राजगृह नगर के रहने वाले थे।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 34 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–सुदंसणे वि गाहावई, नवरं–वाणियग्गामे नयरे। दूइपलासए चेइए। पंच वासा परिसाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: दशवें सुदर्शन गाथापति का वर्णन भी इसी प्रकार समझें। विशेष यह कि वाणिज्यग्राम नगर के बाहर द्युतिपलाश नामका उद्यान था। वहाँ दीक्षित हुए। पाँच वर्ष का चारित्र पालकर विपुलगिरि में सिद्ध हुए।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 35 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–पुन्नभद्दे वि गाहावई, वाणियग्गामे नयरे। पंचवासा परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: पूर्णभद्र गाथापति का वर्णन सुदर्शन जैसा ही है।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 36 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–सुमणभद्दे वि गाहावई, सावत्थीए नयरीए। बहुवासाइं परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: सुमनभद्र गाथापति श्रावस्ती नगरी के वासी थे। बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलाचल पर सिद्ध हुए।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 37 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–सुपइट्ठे वि गाहावई, सावत्थीए नयरीए। सत्तावीसं वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: सुप्रतिष्ठित गाथापति श्रावस्ती नगरी के थे और सत्ताईस वर्ष संयम पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। मेघ गाथापति का वृत्तान्त भी ऐसे ही समझें। विशेष – राजगृह के निवासी थे और बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए। सूत्र – ३७, ३८
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 38 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–मेहे वि गाहावई, रायगिहे नयरे। बहूइं वासाइं परियाओ। विपुले सिद्धे।

Translated Sutra: देखो सूत्र ३७
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१५,१६

Hindi 39 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरे नगरे। सिरिवणे उज्जाणे। तत्थ णं पोलासपुरे नयरे विजये नामं राया होत्था। तस्स णं विजयस्स रन्नो सिरि नामं देवी होत्था–वन्नओ। तस्स णं विजयस्स रन्नो पुत्ते सिरीए देवीए अत्तए अतिमुत्ते नामं कुमारे होत्था–सूमालपाणिपाए। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव सिरिवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणेविहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती अनगारे जहा पन्नत्तीए जाव पोलासपुरे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदानस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय में पोलासपुर नामक नगर था। वहाँ श्रीवन नामक उद्यान था। उस नगर में विजय नामक राजा था। उसकी श्रीदेवी नामकी महारानी थी, यहाँ राजा – रानी का वर्णन समझ लेना। महाराजा विजय का पुत्र, श्रीदेवी का आत्मज अतिमुक्त नामका कुमार था जो अतीव सुकुमार था। उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर पोलासपुर नगर के श्रीवन
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१५,१६

Hindi 40 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नयरी, काममहावणे चेइए। तत्थ णं वाणारसीए अलक्के नामं राया होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ। परिसा निग्गया। तए णं अलक्के राया इमीसे कहाए लद्धट्ठे हट्ठतुट्ठे जहा कोणिए जाव पज्जुवासइ। धम्मकहा। तए णं से अलक्के राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए जहा उद्दायने तहा निक्खंते, नवरं–जेट्ठपुत्तं रज्जे अभिसिंचइ। एक्कारस अंगाइं। बहू वासा परियाओ जाव विपुले सिद्धे। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते।

Translated Sutra: उस काल और उस समय वाराणसी नगरी में काममहावन उद्यान था। अलक्ष नामक राजा था। उस काल और उस समय श्रमण भगवान महावीर यावत्‌ महावन उद्यान में पधारे। जनपरिषद्‌ प्रभु – वंदन को नीकली, राजा अलक्ष भी प्रभु महावीर के पधारने की बात सूनकर प्रसन्न हुआ और कोणिक राजा के समान वह भी यावत्‌ प्रभु की सेवा में उपासना करने लगा। प्रभु
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-७ नंद अदि

अध्ययन-१ थी १३

Hindi 41 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं छट्ठस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स वग्गस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्सतेरस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यावत्‌ मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने अंतगडदशा के छट्ठे वर्ग का जो अर्थ बताया है, उसका मैंने श्रवण कर लिया है, अब श्रमण यावत्‌ मोक्षप्राप्त भगवान महावीर ने सातवें वर्ग का जो अर्थ कहा है उसे सूनाने की कृपा करें। हे जंबू ! सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन कहे गए हैं।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-७ नंद अदि

अध्ययन-१ थी १३

Hindi 42 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. नंदा तह २. नंदवई, ३. नंदुत्तर ४. नंदिसेणिया चेव । ५. मरुता ६. सुमरुता ७. महमरुता ८. मरुदेवा य अट्ठमा ॥

Translated Sutra: नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा, नन्दश्रेणिका, मरुता, समरुता, महामरुता, मरुद्देवा।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-७ नंद अदि

अध्ययन-१ थी १३

Hindi 43 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ९. भद्दा य १०. सुभद्दा य, ११. सुजाया १२. सुमणाइया । १३. भूयदिण्णा य बोधव्वा, सेणियभज्जाण नामाइं ॥

Translated Sutra: भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमनायिका, भूतदत्ता। ये सब श्रेणिक राजा की रानियाँ थीं।’’
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-७ नंद अदि

अध्ययन-१ थी १३

Hindi 44 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्सतेरस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया–वन्नओ। तस्स णं सेणियस्स रन्नो नंदा नामं देवी होत्था–वन्नओ। सामी समोसढे। परिसा निग्गया। तए णं सा नंदा देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा हट्ठतुट्ठा कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता जाणं दुरुहइ, जहा पउमावई जाव एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता वीसं वासाइं परियाओ जाव सिद्धा।

Translated Sutra: ‘‘भगवन्‌ ! प्रभु ने सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का हे पूज्य ! श्रमण यावत्‌ मुक्ति – प्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामका नगर था। उसके बाहर गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था, नन्दा रानी थी। प्रभु महावीर पधारे। परिषद्‌ वंदन करने को नीकली। नन्दा
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-७ नंद अदि

अध्ययन-१ थी १३

Hindi 45 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं तेरस वि देवीओ नंदा-गमेण नेयव्वाओ।

Translated Sutra: नन्दवती आदि शेष बारह अध्ययन नन्दा के समान हैं।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 46 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स वग्गस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठमस्स वग्गस्सदस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: ‘‘भगवन्‌ ! श्रमण यावत्‌ मुक्तिप्राप्त भगवान महावीर ने अंतगडदशा के आठवें वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?’’ ‘‘हे जंबू ! श्रमण यावत्‌ मुक्तिप्राप्त प्रभु महावीर ने आठवें अंग अंतगडदशा के आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं।काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेनकृष्णा
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 47 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] १. काली २. सुकाली ३. महाकाली, ४. कण्हा ५. सुकण्हा ६. महाकण्हा । ७. वीरकण्हा य बोधव्वा, ८. रामकण्हा तहेव य । ९. पिउसेनकण्हा नवमो, दसमो १०. महासेनकण्हा य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४६
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 48 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुन्नभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया–वन्नओ। तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, काली नामं देवी होत्था–वन्नओ। जहा नंदा जाव सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ। बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा काली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा

Translated Sutra: ‘‘भगवन्‌ ! यदि आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत्‌ मुक्तिप्राप्त महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल और उस समय चम्पा नामकी नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र चैत्य था। वहाँ कोणिक राजा था। श्रेणिक राजा की रानी और महाराजा कोणिक की छोटी माता काली देवी थी। (वर्णन)। नन्दा देवी के समान
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 49 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पढमंमि सव्वकामं, पारणयं बिइयए विगइवज्जं । तइयंमि अलेवाडं, आयंबिलमो चउत्थम्मि ॥

Translated Sutra: प्रथम परिपाटी में सर्वकामगुण, दूसरी में विगय रहित पारणा किया। तीसरी में लेप रहित और चोथी परिपाटी में आयंबिल से पारणा किया।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 50 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा काली अज्जा रयणावली-तवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहिं दोहि य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जचंदनं अज्जं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएण उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा अट्ठिचम्मावणद्धा किडिकिडियाभूया किसाधमनिसंतया जाया यावि होत्था जीवंजीवेण गच्छइ जाव सुहयहुयासणेइव भासरासिपलिच्छण्णा

Translated Sutra: इस भाँति काली आर्या ने रत्नावली तप की पाँच वर्ष दो मास और अट्ठाईस दिनों में सूत्रानुसार यावत्‌ आराधना पूर्ण करके जहाँ आर्या चन्दना थीं वहाँ आई और आर्या चन्दना को वंदना – नमस्कार किया। तदनन्तर बहुत से उपवास, बेला, तेला, चार, पाँच आदि अनशन तप से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात्‌ काली आर्या
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 51 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुन्नभद्दे चेइए। कोणिए राया। तत्थ णं सेणियस्स रन्नो भज्जा, कोणियस्स रन्नो चुल्लमाउया, सुकाली नामं देवी होत्था। जहा काली तहा सुकाली वि निक्खंता जाव बहूहिं जाव तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा सुकाली अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव अज्जचंदना अज्जा तेणेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी कनगावली-तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। एवं जहा रयणावली तहा कनगावली वि, नवरं–तिसु ठाणेसु अट्ठमाइं करेइ, जहिं रयणावलीए छट्ठाइं। एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य अहोरत्ता।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में चम्पा नामकी नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था, कोणिक राजा था। श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता सुकाली नाम की रानी थी। काली की तरह सुकाली भी प्रव्रजित हुई और बहुत से उपवास आदि तपों से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। फिर वह सुकाली आर्या अन्यदा किसी दिन आर्या – चन्दना आर्या के
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 52 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महाकाली वि, नवरं–खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा– चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं

Translated Sutra: काली की तरह महाकाली ने भी दीक्षा अंगीकार की। विशेष यह कि उसने लघुसिंह निष्क्रीडित तप किया जो इस प्रकार है – उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 53 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–कण्हा वि, नवरं–महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्मं जहेव खुड्डागं, नवरं–चोत्तीसइमं जाव नेयव्वं। तहेव ओसारेयव्वं। एक्काए वरिसं छम्मासा अट्ठारस य दिवसा। चउण्हं छव्वरिसा दो मासा बारस य अहोरत्ता। सेसं जहा कालीए जाव सिद्धा।

Translated Sutra: इसी प्रकार कृष्णा रानी के विषय में भी समझना। विशेष यह कि कृष्णा ने महासिंह निष्क्रीडित तप किया। लघुसिंह निष्क्रीडित तप से इसमें इतनी विशेषता है कि इसमें एक से लेकर १६ तक अनशन तप किया जाता है और उसी प्रकार उतारा जाता है। एक परिपाटी में एक वर्ष, छह मास और अठारह दिन लगते हैं। चारों परिपाटियों में छह वर्ष, दो मास
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 54 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–सुकण्हा वि, नवरं–सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। पढमे सत्तए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स। दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणयस्स पडिगाहेइ। तच्चे सत्तए तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ भोयणस्स, तिन्नि-तिन्नि दत्तीओ पाणयस्स। चउत्थे सत्तए चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ भोयणस्स, चत्तारि-चत्तारि दत्तीओ पाणयस्स। पंचमे सत्तए पंच-पंच दत्तीओ भोयणस्स, पंच-पंच दत्तीओ पाणयस्स। छट्ठे सत्तए छ-छ दत्तीओ भोयणस्स, छ-छ दत्तीओ पाणयस्स। सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीओ भोयणस्स, सत्त-सत्त दत्तीओ पाणयस्स पडिगाहेइ। एवं खलु एयं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं

Translated Sutra: काली आर्या की तरह आर्या सुकृष्णा ने भी दीक्षा ग्रहण की। विशेष यह कि वह सप्त – सप्तमिका भिक्षु – प्रतिमा ग्रहण करके विचरने लगी, जो इस प्रकार है – प्रथम सप्तक में एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की। द्वितीय सप्तक में दो दत्ति भोजन की और दो दत्ति पानी। तृतीय सप्तक में तीन दत्ति भोजन की और तीन दत्ति पानी।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 55 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महाकण्हा वि, नवरं–खुड्डागं सव्वओभद्दं पडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ– चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ,

Translated Sutra: इसी प्रकार महाकृष्णा ने भी दीक्षा ग्रहण की, विशेष – वह लघुसर्वतोभद्र प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगी, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर बेला, तेला, चौला और पचौला किया और सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, चौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 56 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–वीरकण्हा वि, नवरं–महालयं सव्वओभद्दं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा– चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं

Translated Sutra: आर्या काली की तरह आर्या वीरकृष्णा ने भी दीक्षा अंगीकार की। विशेष यह कि उसने महत्‌ सर्वतोभद्र तप कर्म अंगीकार किया, जो इस प्रकार है – उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, यावत्‌ सात उपवास किए सब में सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया। यह प्रथम लता हुई। चोला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, इसी क्रम
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 57 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–रामकण्हा वि, नवरं–भद्दोत्तरपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा– दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं

Translated Sutra: आर्या काली की तरह आर्या रामकृष्णा का भी वृत्तान्त समझना चाहिए। विशेष यह कि रामकृष्णा आर्या भद्रोत्तर प्रतिमा अंगीकार करके विचरण करने लगी, जो इस प्रकार है – पाँच उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके छह यावत्‌ – नौ उपवास किये, सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया। यह प्रथम लता हुई। सात उपवास किये,
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 58 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–पिउसेनकण्हा वि, नवरं–मुत्तावलिं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा– चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छट्ठं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। दुवालसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं

Translated Sutra: पितृसेनकृष्णा का चरित्र भी आर्या काली की तरह समझना। विशेष यह कि पितृसेनकृष्णा ने मुक्तावली तप अंगीकार किया है – उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके बेला, फिर उपवास, फिर तेला, फिर उपवास, फिर चौला, फिर उपवास और पचौला, फिर उपवास और छह, फिर उपवास और सात, इसी तरह क्रमशः बढ़ते बढ़ते उपवास और पंद्रह उपवास
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वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 59 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं–महासेनकण्हा वि, नवरं–आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तं जहा– आयंबिलं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। बे आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। तिन्नि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। चत्तारि आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। पंच आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। छ आयंबिलाइं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। एवं एक्कुत्तरियाए वड्ढीए आयंबिलाइं वड्ढंति चउत्थंतरियाइं जाव आयंबिलसयं करेइ, करेत्ता चउत्थं करेइ। तए णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोद्दसहिं वासेहिं तिहि य मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता

Translated Sutra: इसी प्रकार महासेनकृष्णा का वृत्तान्त भी समझना। विशेष यह कि इन्होंने वर्द्धमान आयंबिल तप अंगीकार किया जो इस प्रकार है – एक आयंबिल किया, करके उपवास किया, करके दो आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके तीन आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके चार आयंबिल किये, करके उपवास किया, करके पाँच आयंबिल किये, करके उपवास किया। ऐसे
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 60 Gatha Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ य वासा आई, एक्कोत्तरयाए जाव सत्तरस । एसो खलु परियाओ, सेणियभज्जाण नायव्वो ॥

Translated Sutra: पहली काली देवी का दीक्षाकाल आठ वर्ष का, तत्पश्चात्‌ क्रमशः एक – एक वर्ष की वृद्धि करते – करते दसवीं महासेनकृष्णा का दीक्षाकाल सत्तरह वर्ष का जानना।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 61 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमट्ठे पन्नत्ते।

Translated Sutra: इस प्रकार हे जंबू ! यावत्‌ मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा का यह अर्थ कहा है, ऐसा मैं कहता हूँ।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-८ कालि आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 62 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अंतगडदसाणं अंगस्स एगो सुयखंधो। अट्ठ वग्गा। अट्ठसु चेव दिवसेसु उद्दिस्सति। तत्थ पढमबिइयवग्गे दस-दस उद्देसगा। तइयवग्गे तेरस उद्देसगा। चउत्थपंचमवग्गे दस-दस उद्देसगा। छट्ठवग्गे सोलस उद्देसगा। सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा। अट्ठमवग्गे दस उद्देसगा। सेसं जहा नायाधम्मकहाणं।

Translated Sutra: अंतगडदशा अंग में एक श्रुतस्कंध है। आठ वर्ग हैं। आठ ही दिनों में इनकी वाचना होती है। इसमें प्रथम और द्वितीय वर्ग में दस दस उद्देशक हैं, तीसरे वर्ग में तेरह उद्देशक हैं, चौथे और पाँचवें में दस – दस उद्देशक हैं, छट्ठे वर्ग में सोलह उद्देशक हैं। सातवें वर्ग में तेरह उद्देशक हैं और आठवें वर्ग में दस उद्देशक हैं।
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