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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 65 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया मुंडे भवित्ताणं पव्वइए अनगारियं ।
तया संवरमुक्किट्ठं धम्मं फासे अनुत्तरं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 66 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया संवरमुक्किट्ठं धम्मं फासे अनुत्तरं ।
तया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 67 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं ।
तया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 68 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई ।
तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 69 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ।
तया जोगे निरुंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जई ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 70 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया जोगे निरुंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जई ।
तया कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 71 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जया कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ ।
तया लोग मत्थयत्थो सिद्धो हवइ सासओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 72 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुहसायगस्स समणस्स सायाउलगस्स निगामसाइस्स ।
उच्छोलणापहोइस्स दुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥ Translated Sutra: जो श्रमण सुख का रसिक है, साता के लिए आकुल रहता है, अत्यन्त सोने वाला है, प्रचुर जल से बार – बार हाथ – पैर आदि को धोनेवाला है, ऐसे श्रमण को सुगति दुर्लभ है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 73 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तवोगुणपहाणस्स उज्जुमइ खंतिसंजमरयस्स ।
परीसहे जिणंतस्स सुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ॥ Translated Sutra: जो श्रमण तपोगुण में प्रधान है,ऋजुमति है, क्षान्ति एवं संयम में रत है, तथा परीषहों को जीतने वाला है; ऐसे श्रमण को सुगति सुलभ है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 74 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाइं ।
जेसिं पिओ तवो संजमो य खंती य बंभचेरं च ॥ Translated Sutra: भले ही वे पिछली वय में प्रव्रजित हुए हों किन्तु जिन्हें तप, संयम, क्षान्ति एवं ब्रह्मचर्य प्रिय हैं, वे शीघ्र ही देवभवनों में जाते हैं। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ छ जीवनिकाय |
Hindi | 75 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इच्चेयं छज्जीवणियं सम्मद्दिट्ठी सया जए ।
दुलहं लभित्तु सामण्णं कम्मुणा न विराहेज्जासि ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: इस प्रकार दुर्लभ श्रमणत्व को पाकर सम्यक् दृष्टि और सदा यतनाशील साधु या साध्वी इस षड्जीवनिका की मन, वचन और क्रिया से विराधना न करे – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 76 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] संपत्ते भिक्खकालम्मि असंभंतो अमुच्छिओ ।
इमेण कमजोगेण भत्तपानं गवेसए ॥ Translated Sutra: भिक्षाकाल प्राप्त होने पर असम्भ्रान्त और अमूर्च्छित होकर इस क्रम – योग से भक्त – पान की गवेषणा करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 77 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] से गामे वा नगरे वा गोयरग्गगओ मुनी ।
चरे मंदमणव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा ॥ Translated Sutra: ग्राम या नगर में गोचराग्र के लिए प्रस्थित मुनि अनुद्विग्न और अव्याक्षिप्त चित्त से धीमे – धीमे चले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 78 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] पुरओ जुगमायाए पेहमाणो महिं चरे ।
वज्जंतो बीयहरियाइं पाणे य दगमट्टियं ॥ Translated Sutra: आगे युगप्रमाण पृथ्वी को देखता हुआ तथा बीज, हरियाली, प्राणी, सचित्त जल और सचित्त मिट्टी को टालता हुआ चले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 79 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ओवायं विसमं खाणुं विज्जलं परिवज्जए ।
संकमेण न गच्छेज्जा विज्जमाणे परक्कमे ॥ Translated Sutra: अन्य मार्ग के होने पर गड्ढे आदि, ऊबडखाबड़ भूभाग, ठूंठ और पंकिल मार्ग को छोड़ दे; तथा संक्रम के ऊपर से न जाए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 80 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] पवडंते व से तत्थ पक्खलंते व संजए ।
हिंसेज्ज पाणभूयाइं तसे अदुव थावरे ॥ Translated Sutra: उन गड्ढे आदि से गिरता हुआ या फिसलता हुआ त्रस या स्थावर जीवों की हिंसा कर सकता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 81 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा तेण न गच्छेज्जा संजए सुसमाहिए ।
सइ अन्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥ Translated Sutra: इसलिए सुसमाहित संयमी साधु अन्य मार्ग के होते हुए उस मार्ग से न जाए। यदि दूसरा मार्ग न हो तो यतनापूर्वक उस मार्ग से जाए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 82 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] इंगालं छारियं रासिं तुसरासिं च गोमयं ।
ससरक्खेहिं पाएहिं संजओ तं न अक्कमे ॥ Translated Sutra: संयमी साधु अंगार, राख, भूसे और गोबर पर सचित रज से युक्त पैरों से उन्हें अतिक्रम कर न जाए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 83 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] न चरेज्ज वासे वासंते महियाए व पडंतीए ।
महावाए व वायंते तिरिच्छसंपाइमेसु वा ॥ Translated Sutra: वर्षा बरस रही हो, कुहरा पड़ रहा हो, महावात चल रहा हो, और मार्ग में तिर्यञ्च संपातिम जीव उड़ रहे हों तो भिक्षाचरी के लिए न जाए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 84 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] न चरेज्ज वेससामंते बंभचेरवसाणुए ।
बंभयारिस्स दंतस्स होज्जा तत्थ विसोत्तिया ॥ Translated Sutra: ब्रह्मचर्य का वशवर्ती श्रमण वेश्यावाड़े के निकट न जाए; क्योंकि दमितेन्द्रिय और ब्रह्मचारी साधक के चित्त में भी असमाधि उत्पन्न हो सकती है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 85 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अनायणे चरंतस्स संसग्गीए अभिक्खणं ।
होज्ज वयाणं पीला सामण्णम्मि य संसओ ॥ Translated Sutra: ऐसे कुस्थान में बार – बार जाने वाले मुनि को उन वातावरण के संसर्ग से व्रतों की क्षति और साधुता में सन्देह हो सकता है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 86 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं ।
वज्जए वेससामंतं मुनी एगंतमस्सिए ॥ Translated Sutra: इसलिए इसे दुर्गतिवर्द्धक दोष जान कर एकान्त के आश्रव में रहने वाला मुनि वेश्यावाड़ के पास न जाए। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 87 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] साणं सूइयं गाविं दित्तं गोणं हयं गयं ।
संडिब्भं कलहं जुद्धं दूरओ परिवज्जए ॥ Translated Sutra: मार्ग में कुत्ता, नवप्रसूता गाय, उन्मत्त बल, अश्व और गज तथा बालकों का क्रीड़ास्थान, कलह और युद्ध के स्थान को दूर से ही छोड़ कर गमन करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 88 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अणुन्नए नावणए अप्पहिट्ठे अणाउले ।
इंदियाणि जहाभागं दमइत्ता मुनी चरे ॥ Translated Sutra: मुनि उन्नत मुंह, अवनत हो कर, हर्षित या आकुल होकर न चले, इन्द्रियों के विषय को दमन करके चले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 89 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दवदवस्स न गच्छेज्जा भासमाणो य गोयरे ।
हसंतो नाभिगच्छेज्जा कुलं उच्चावयं सया ॥ Translated Sutra: उच्च – नीच कुल में गोचरी के लिए मुनि सदैव जल्दी – जल्दी तथा हँसी – मजाक करता हुआ और बोलता हुआ न चले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 90 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आलोयं थिग्गलं दारं संधिं दगभवणाणि य ।
चरंतो न विणिज्झाए संकट्ठाणं विवज्जए ॥ Translated Sutra: गोचरी के लिए जाता हुआ झरोखा, थिग्गल द्वार, संधि जलगृह, तथा शंका उत्पन्न करनेवाले अन्य स्थानों को भी छोड़ दे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 91 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] रन्नो गिहवईणं च रहस्सारक्खियाण य ।
संकिलेसकरं ठाणं दूरओ परिवज्जए ॥ Translated Sutra: राजा के, गृहपतियों के तथा आरक्षिकों के रहस्य के उस स्थान को दूर से ही छोड़ दे, जहां जाने से संक्लेश पैदा हो। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 92 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] पडिकुट्ठकुलं न पविसे मामगं परिवज्जए ।
अचियत्तकुलं न पविसे चियत्तं पविसे कुलं ॥ Translated Sutra: साधु – साध्वी निन्दित कुल, मामकगृह और अप्रीतिकर कुल में न प्रवेशे, किन्तु प्रीतिकर कुल में प्रवेश करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 93 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] साणीपावारपिहियं अप्पणा नावपंगुरे ।
कवाडं नो पणोल्लेज्जा ओग्गहंसि अजाइया ॥ Translated Sutra: साधु – साध्वी, आज्ञा लिये बिना पर्दा तथा वस्त्रादि से ढँके हुए द्वार को स्वयं न खोले तथा कपाट को भी न उघाड़े। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 94 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गोयरग्गपविट्ठो उ वच्चमुत्तं न धारए ।
ओगासं फासुयं नच्चा अणुन्नविय वोसिरे ॥ Translated Sutra: भिक्षा के लिए प्रविष्ट होने वाला साधु मल – मूत्र की बाधा न रखे। यदि बाधा हो जाए तो प्रासुक स्थान देख कर, गृहस्थ की अनुज्ञा लेकर मल – मूत्र का उत्सर्ग करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 95 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नीयदुवारं तमसं कोट्ठगं परिवज्जए ।
अचक्खुविसओ जत्थ पाणा दुप्पडिलेहगा ॥ Translated Sutra: निचे द्वार वाले घोर अन्धकारयुक्त कोठे, जिस कोठे में फूल, बीज आदि बिखरे हुए हों, तथा जो कोष्ठक तत्काल लीपा हुआ, एवं गीला देखे तो उस में प्रवेश न करे। सूत्र – ९५, ९६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 96 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ पुप्फाइ बीयाइं विप्पइण्णाइं कोट्ठए ।
अहुणोवलित्तं उल्लं दट्ठूणं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 97 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एलगं दारगं साणं वच्छगं वावि कोट्ठए ।
उल्लंधिया न पविसे विऊहित्ताण व संजए ॥ Translated Sutra: संयमी मुनि, भेड़, बालक, कुत्ते या बछड़े को लांघ कर अथवा हटा कर कोठे में प्रवेश न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 98 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असंसत्तं पलोएज्जा नाइदूरावलोयए ।
उप्फुल्लं न विणिज्झाए नियट्टेज्ज अयंपिरो ॥ Translated Sutra: गौचरी के लिए घर में प्रविष्ट भिक्षु आसक्तिपूर्वक न देखे; अतिदूर न देखे, उत्फुल्ल दृष्टि से न देखे; तथा भिक्षा प्राप्त न होने पर बिना कुछ बोले लौट जाए। अतिभूमि न जाए, कुल की मर्यादित भूमि को जान कर मित भूमि तक ही जाए। सूत्र – ९८, ९९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 99 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अइभूमिं न गच्छेज्जा गोयरग्गगओ मुनी ।
कुलस्स भूमिं जाणित्ता मियं भूमिं परक्कमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 100 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थेव पडिलेहेज्जा भूमिभागं वियक्खणो ।
सिणाणस्स य वच्चस्स संलोगं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: विचक्षण साधु वहाँ ही उचित भूभाग प्रतिलेखन करे, स्थान और शौच के स्थान की ओर दृष्टिपात न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 101 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दगमट्टियआयाणं बीयाणि हरियाणि य ।
परिवज्जंतो चिट्ठेज्जा सव्विंदियसमाहिए ॥ Translated Sutra: सर्वेन्द्रिय – समाहित भिक्षु (सचित्त) पानी और मिट्टी लाने के मार्ग तथा बीजों और हरित (हरी) वनस्पतियों को वर्जित करके खड़ा रहे। वहाँ खड़े हुए उस साधु को देने के लिए कोई गृहस्थ पान और भोजन लाए तो उसमें से अकल्पनीय को ग्रहण न करे, कल्पनीय ही ग्रहण करे। सूत्र – १०१, १०२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 102 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ से चिट्ठमाणस्स आहरे पानभोयणं ।
अकप्पियं न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 103 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आहरंती सिया तत्थ परिसाडेज्ज भोयणं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: यदि साधु या साध्वी के पास भोजन लाते हुए कोई – उसे नीचे गिराए तो साधु उस आहार का निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए कल्पनीय नहीं है। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 104 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दमाणी पाणाणि बीयाणि हरियाणि य ।
असंजमकरिं नच्चा तारिसं परिवज्जए ॥ Translated Sutra: प्राणी, बीज और हरियाली को कुचलता हुऐ आहार लाने वाले को असंयमकारि जान कर उससे न ले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 105 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] साहट्टु निक्खिवित्ताणं सच्चित्तं घट्टियाण य ।
तहेव समणट्ठाए उदगं संपणोल्लिया ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार एक बर्तन में से दूसरे बर्तन में डालकर, सचित्त वस्तु पर रखकर, सचित्त वस्तु का स्पर्श करके तथा सचित्त जल को हिला कर, अवगाहन कर, चलित कर, पान और भोजन लाए तो मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए ग्रहण करना कल्प्य नहीं है। सूत्र – १०५, १०६ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 106 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] आगाहइत्ता चलइत्ता आहरे पाणभोयणं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 107 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] पुरेकम्मेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: पुराकर्म – कृत (साधु को आहार देने से पूर्व ही सचित्त जल से धोये हुए) हाथ से, कड़छी से अथवा बर्तन से (मुनि को भिक्षा) देती हुई महिला को मुनि निषेध कर दे कि इस प्रकार का आहार मेरे लिए कल्पनीय (ग्रहण करने योग्य) नहीं है। (अर्थात् – मैं ऐसा दोषयुक्त आहार नहीं ले सकता।) | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 108 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एवं उदओल्ले ससिणिद्धे ससरक्खे मट्टिया ऊसे ।
हरियाले हिंगलए मणोसिला अंजणे लोणे ॥ Translated Sutra: यदि हाथ या कडछी भीगे हुए हो, सचित्त जल से स्निग्ध हो, सचित्त रज, मिट्टी, खार, हरताल, हिंगलोक, मनःशील, अंजन, नमक तथा – | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 109 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गेरुय वण्णिय सेडिय सोरट्ठिय पिट्ठ कुक्कुस कए य ।
उक्कट्ठमसंसट्ठे संसट्ठे चेव बोधव्वे ॥ Translated Sutra: गेरु, पीली मट्टी, सफेद मट्टी, फटकडी, अनाज का भुसा तुरंत का पीसा हुआ आटा, फल या टुकडा इत्यादि से लिप्त हो तो मुनि को नहीं कल्पता। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 110 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असंसट्ठेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा ।
दिज्जमाणं न इच्छेज्जा पच्छाकम्मं जहिं भवे ॥ Translated Sutra: जहाँ पश्चात्कर्म की संभावना हो, वहाँ असंसृष्ट हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 111 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] संसट्ठेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा ।
दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ Translated Sutra: (किन्तु) संसृष्ट हाथ से, कड़छी से या बर्तन से दिया जाने वाला आहार यदि एषणीय हो तो मुनि लेवे। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 112 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दोण्हं तु भुंजमाणाणं एगो तत्थ निमंतए ।
दिज्जमाणं न इच्छेज्जा छंदं से पडिलेहए ॥ Translated Sutra: (जहाँ) दो स्वामी या उपभोक्ता हों और उनमें से एक निमंत्रित करे, तो मुनि उस दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे। वह दूसरे के अभिप्राय को देखे ! यदि उसे देना प्रिय लगता हो तो यदि वह एषणीय हो तो ग्रहण कर ले। सूत्र – ११२, ११३ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 113 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दोण्हं तु भुंजमाणाणं दोवि तत्थ निमंतए ।
दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ११२ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Hindi | 114 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गुव्विणीए उवन्नत्थं विविहं पाणभोयणं ।
भुज्जमाणं विवज्जेज्जा भुत्तसेसं पडिच्छए ॥ Translated Sutra: गर्भवती स्त्री के लिए तैयार किये विविध पान और भोजन यदि उसके उपभोग में आ रहे हों, तो मुनि ग्रहण न करे, किन्तु यदि उसके खाने से बचे हुए हों तो उन्हें ग्रहण कर ले। |