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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Hindi | 27 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाण चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा। बाहिं चंदोतरणे उज्जाने। सेयभद्दे जक्खे।
तत्थ णं कोसंबीए नयरीए सयाणिए नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे। मियावई देवी।
तस्स णं सयाणियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए उदयने नामं कुमारे होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया।
तस्स णं उदयनस्स कुमारस्स Translated Sutra: पाँचवे अध्ययन का उत्क्षेप – प्रस्तावना पूर्ववत् जानना। हे जम्बू ! उस काल और उस समय में कौशाम्बी नगरी थी, जो भवनादि के आधिक्य से युक्त, स्वचक्र – परचक्र के भय से मुक्त तथा समृद्धि से समृद्ध थी। उस नगरी के बाहर चन्द्रावतरण उद्यान था। उसमें श्वेतभद्र यक्ष का आयतन था। उस कौशाम्बी नगरी में शतानीक राजा था। जो हिमालय | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Hindi | 28 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्ठिइए नरगे उववन्ने।
से णं तओ अनंतरं उवट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं।
तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव Translated Sutra: इस प्रकार के क्रूर कर्मों का अनुष्ठान करने वाला, क्रूर कर्मों में प्रधान, नाना प्रकार के पापकर्मों को एकत्रित कर अन्तिम समय में वह महेश्वरदत्त पुरोहित तीन हजार वर्ष का परम आयुष्य भोगकर पाँचवे नरक में उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम की स्थिति वाले नारक के रूप में उत्पन्न हुआ। पाँचवे नरक से नीकलकर सीधा इसी कौशाम्बी | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-६ नंदिसेन्न |
Hindi | 29 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नामं नयरी। भंडीरे उज्जाने। सुदरिसणे जक्खे। सिरिदामे राया। बंधुसिरी भारिया। पुत्ते नंदिवद्धने कुमारे–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया।
तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नामं अमच्चे होत्था–साम दंड भेय उवप्पयाणनीति सुप्पउत्त नयविहण्णू।
तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण Translated Sutra: उत्क्षेप भगवन् ! यदि यावत् मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने पाँचवे अध्ययन का यह अर्थ कहा, तो षष्ठ अध्ययन का भगवान ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में मथुरा नगरी थी। वहाँ भण्डीर नाम का उद्यान था। सुदर्शनयक्ष का आयतन था। श्रीदाम राजा था, बन्धुश्री रानी थी। उनका सर्वाङ्ग – सम्पन्न युवराज | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-६ नंदिसेन्न |
Hindi | 30 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव महुराए नयरीए सिरिदामस्स रन्नो बंधुसिरीए देवीए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–होउ णं अम्हं दारगे नंदिवद्धने नामेणं।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव परिवड्ढइ।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे उम्मुक्कबालभावे विण्णय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते विहरइ जाव जुवराया जाए यावि होत्था।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे रज्जे य जाव अंतेउरे य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छइ सिरिदामं Translated Sutra: वह दुर्योधन चारकपाल का जीव छट्ठे नरक से नीकलकर इसी मथुरा नगरी में श्रीदाम राजा की बन्धुश्री देवी की कुक्षि में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ। लगभग नौ मास परिपूर्ण होने पर बन्धुश्री ने बालक को जन्म दिया। तत्पश्चात् बारहवे दिन माता – पिता ने नवजात बालक का नन्दिषेण नाम रखा। तदनन्तर पाँच धायमाताओं से सार – संभाल | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-७ उदुंबरदत्त |
Hindi | 31 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया।
तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं Translated Sutra: उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में पाटलिखंड नगर था। वहाँ वनखण्ड उद्यान था। उस उद्यान में उम्बरदत्त नामक यक्ष का यक्षायतन था। उस नगर में सिद्धार्थ राजा था। पाटलिखण्ड नगर में सागरदत्त नामक धनाढ्य सार्थवाह था। उसकी गङ्गदत्ता भार्या थी। उस सागरदत्त का पुत्र व गङ्गदत्ता भार्या का आत्मज उम्बरदत्त | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-८ शौर्यदत्त |
Hindi | 32 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं। सोरियवडेंसगं उज्जाणं। सोरिओ जक्खो। सोरियदत्ते राया।
तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए होत्था।
तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ–अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे।
तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नामं भारिया होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा।
तस्स Translated Sutra: अष्टम अध्ययन का उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में शौरिकपुर नाम का नगर था। वहाँ ‘शौरिकावतंसक’ नाम का उद्यान था। शौरिक यक्ष था। शौरिकदत्त राजा था। उस शौरिकपुर नगर के बाहर ईशान को में एक मच्छीमारों का पाटक था। वहाँ समुद्रदत्त नामक मच्छीमार था। वह महा – अधर्मी यावत् दुष्प्रत्या – नन्द था। | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-९ देवदत्त |
Hindi | 33 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी–
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे। पुढवीवडेंसए उज्जाने। धरणो जक्खो।
वेसमणदत्ते राया। सिरी देवी। पूसनंदी कुमारे जुवराया।
तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे। कण्हसिरी भारिया।
तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नामं दारिया होत्था–अहीनपडिपुण्ण–पंचिंदियसरीरा।
तेणं Translated Sutra: यदि भगवन् ! यावत् नवम अध्ययन का उत्क्षेप जान लेना चाहिए। जम्बू ! उस काल तथा उस समय में रोहीतक नाम का नगर था। वह ऋद्ध, स्तिमित तथा समृद्ध था। पृथिवी – अवतंसक नामक उद्यान था। उसमें धारण नामक यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ वैश्रमणदत्त नाम का राजा था। श्रीदेवी नामक रानी थी। युवराज पद से अलंकृत पुष्पनंदी कुमार था। | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१० अंजूश्री |
Hindi | 34 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया।
तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए Translated Sutra: अहो भगवन् ! इत्यादि, उत्क्षेप पूर्ववत्। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में वर्द्धमानपुर नगर था। वहाँ विजयवर्द्धमान नामक उद्यान था। उसमें मणिभद्र यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ विजयमित्र राजा था। धनदेव नामक एक सार्थवाह – रहता था जो धनाढ्य और प्रतिष्ठित था। उसकी प्रियङ्गु नाम की भार्या थी। उनकी उत्कृष्ट शरीर | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१ सुबाहुकुमार |
Hindi | 37 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नामं उज्जाने होत्था–सव्वोउय–पुप्फ–समिद्धे।
तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–दिव्वे ।
तत्थ णं हत्थिसोसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमंवत–महंत–मलय–मंदर–महिंदसारे।
तस्स Translated Sutra: हे भदन्त ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं तो हे भगवन् ! सुख – विपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? श्रीसुधर्मा स्वामी ने श्रीजम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में हस्तिशीर्ष नामका एक बड़ा ऋद्ध | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-२ भद्रनंदि |
Hindi | 38 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बितियस्स उक्खेवओ।
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे नयरे। थूभकरंडग उज्जाणं। धन्नो जक्खो। धनावहो राया। सरस्सई देवी।
सुमिणदंसणं कहणा, जम्मं बालत्तणं कलाओ य ।
जोव्वणं पाणिग्गहणं, दाओ पासाय भोगा य ॥
जहा सुबाहुस्स, नवरं–भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा णं पंचसया। सामीसमोसरणं। सावगधम्मं। पुव्वभवपुच्छा। महा-विदेहे वासे पुंडरीगिणी नयरी। विजए कुमारे। जुगबाहू तित्थयरे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इह उप्पण्णे। सेसं जहा सुबा-हुस्स जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंते काहिइ।
निक्खेवओ। Translated Sutra: द्वितीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्ववत् समझना। हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में ऋषभपुर नाम का नगर था। वहाँ स्तूपकरण्डक उद्यान था। धन्य यक्ष का यक्षायतन था। वहाँ धनावह राजा था। सरस्वती रानी थी। महारानी का स्वप्न – दर्शन, स्वप्न कथन, बालक का जन्म, बाल्यावस्था में कलाएं सीखकर यौवन को प्राप्त होना, विवाह होना, | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-३ सुजातकुमार |
Hindi | 39 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तच्चस्स उक्खेवओ।
वीरपुरं नयरं। मणोरमं उज्जाणं। वीरकण्हमित्ते राया। सिरी देवी। सुजाए कुमारे। बलसिरीपामोक्खा पंचसया। सामीसमोसरणं। पुव्वभवपुच्छा। उसुयारे नयरे। उसभदत्ते गाहावई। पुप्फदंते अनगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इहं उप्पण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
निक्खेवओ। Translated Sutra: हे जम्बू ! वीरपुर नगर था। मनोरम उद्यान था। महाराज वीरकृष्णमित्र थे। श्रीदेवी रानी थी। सुजात कुमार था। बलश्री प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राज – कन्याओं के साथ सुजातकुमार का पाणिग्रहण हुआ। भगवान महावीर पधारे। सुजातकुमार ने श्रावक – धर्म स्वीकार किया। पूर्वभव वृत्तान्त कहा – इषुकार नगर था। वहाँ ऋषभदत्त गाथापति | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-४ सुवासवकुमार |
Hindi | 40 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउत्थस्स उक्खेवओ।
विजयपुरं नयरं। नंदनवणं उज्जानं। असोगो जक्खो। वासवदत्ते राया। कण्हा देवी। सुवासवे कुमारे। भद्दापामोक्खाणं पंचसया जाव पुव्वभवे। कोसंबी नयरी। धनपाले राया। वेसमणभद्दे अनगारे पडिलाभिए। इह जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! विजयकुमार नगर था। नन्दनवन उद्यान था। अशोक यक्ष का यक्षायतन था। राजा वासवदत्त था। कृष्णादेवी रानीथी। सुवासकुमार राजकुमार था। भद्रा – प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं से विवाह हुआ। भगवान महावीर पधारे। सुवासवकुमार ने श्रावकधर्म स्वीकार किया। पूर्वभव – गौतम ! कौशाम्बी नगरी थी। धनपाल राजा था। उसने | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-५ जिनदासकुमार |
Hindi | 41 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचमस्स उक्खेवओ।
सोगंधिया नयरी। नीलासोगं उज्जाणं। सुकालो जक्खो। अप्पडिहओ राया। सुकण्णा देवी। महचंदे कुमारे। तस्स अरहदत्ता भारिया। जिनदासो पुत्तो। तित्थयरागमणं। जिनदासो पुव्वभवो। मज्झमिया नयरी। मेहरहे राया। सुधम्मे अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! सौगन्धिका नगरी थी। नीलाशोक उद्यान था। सुकाल यक्ष का यक्षायतन था। अप्रतिहत राजा थे। सुकृष्णा उनकी भार्या थी। पुत्र का नाम महाचन्द्रकुमार था। अर्हद्दता नाम की भार्या थी। जिनदास नाम का पुत्र था। भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। जिनदास ने द्वादशविध गृहस्थ धर्म स्वीकार किया। पूर्वभव – हे गौतम ! माध्यमिका | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-६ वैश्रमणकुमार |
Hindi | 42 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छट्ठस्स उक्खेवओ।
कनगपुरं नयरं। सेयासोयं उज्जाणं। वीरभद्दो जक्खो। पियचंदो राया। सुभद्दा देवी। वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं। धनवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवो। मणिवइया नयरी। मित्तो राया। संभूतिविजए अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! कनकपुर नगर था। श्वेताशोकनामक उद्यान था। वीरभद्र यक्ष का यक्षायतन था। राजा प्रियचन्द्र था, रानी सुभद्रादेवी थी। युवराज वैश्रमणकुमार था। उसका श्रीदेवी प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था। महावीर स्वामी पधारे। युवराज के पुत्र धनपति कुमार ने भगवान से श्रावकों के व्रत ग्रहण किए यावत् | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-७ महाबलकुमार |
Hindi | 43 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तमस्स उक्खेवओ।
महापुरं नयरं। रत्तासोगं उज्जाणं। रत्तपाओ जक्खो। बले राया। सुभद्दा देवी। महब्बले कुमारे। रत्तवईपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं जाव पुव्वभवो। मणिपुरं नयरं। नागदत्ते गाहावई। इंदपुत्ते अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! महापुर नगर था। रक्ताशोक उद्यान था। रक्तपाद यक्ष का आयतन था। महाराज बल राजा था। सुभद्रा देवी रानी थी। महाबल राजकुमार था। उसका रक्तवती प्रभृति ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह किया गया। महावीर स्वामी पधारे। महाबल राजकुमार का भगवान से श्रावकधर्म अङ्गीकार करना, पूर्वभव पृच्छा – गौतम ! मणिपुर | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-८ भद्रनंदि |
Hindi | 44 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठमस्स उक्खेवओ।
सुघोसं नयरं। देवरमणं उज्जाणं। वीरसेनो जक्खो। अज्जुनो राया। तत्तवई देवी। भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा पंच-सया जाव पुव्वभवे। महाघोसे नयरे। धम्मघोसे गाहावई। धम्मसीहे अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: सुघोष नगर था। देवरमण उद्यान था। वीरसेन यक्ष का यक्षायतन था। अर्जुन राजा था। तत्त्ववती रानी थी और भद्रानन्दी राजकुमार था। उसका श्रीदेवी आदि ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। भद्रनन्दी ने श्रावकधर्म अङ्गीकार किया। पूर्वभव के सम्बन्ध में पृच्छा – हे गौतम ! महाघोष | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-९ महाचंद्र |
Hindi | 45 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवमस्स उक्खेवओ।
चंपा नयरी। पुण्णभद्दे उज्जाने। पुण्णभद्दे जक्खे। दत्ते राया। रत्तवती देवी। महचंदे कुमारे जुवराया। सिरिकंतापामोक्खा णं पंचसया जाव पुव्वभवो। तिगिंछी नयरी। जियसत्तू राया। धम्मवीरिए अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: हे जम्बू ! चम्पा नगरी थी। पूर्णभद्र उद्यान था। पूर्णभद्र यक्ष का यक्षायतन था। राजा दत्त था और रानी रक्तवती थी। महाचन्द्र राजकुमार था। उसका श्रीकान्ता प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ। भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। महाचन्द्र ने श्रावकों के बारह व्रतों को ग्रहण किया। पूर्वभव पृच्छा – | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१० वरदत |
Hindi | 46 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसमस्स उक्खेवओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं साएणं नामं नयरं होत्था। उत्तरकुरुउज्जाने। पासामिओ जक्खो। मित्तनंदी राया। सिरिकंता देवी। वरदत्ते कुमारे। वरसेणा पामोक्खा पंच देवीसया। तित्थयरागमणं। सावगधम्मं। पुव्वभवपुच्छा। सयदुवारे नयरे। विमलवाहणे राया। धम्मरुई अनगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इहं उप्पण्णे। सेसं जहा सुबाहुस्स कुमारस्स। चिंता जाव पव्वज्जा। कप्पंतरिते जाव सव्वट्ठसिद्धे। तओ महाविदेहे जहा दढपइण्णे जाव सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स Translated Sutra: हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में साकेत नाम का नगर था। उत्तरकुरु उद्यान था। उसमें पाशमृग यक्ष का यक्षायतन था। राजा मित्रनन्दी थे। श्रीकान्ता रानी थी। वरदत्त राजकुमार था। कुमार वरदत्त का वरसेना आदि ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ था। भगवान महावीर का पदार्पण हुआ। वरदत्त ने श्रावकधर्म अङ्गीकार | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Gujarati | 5 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं मियग्गामे नयरे एगे जाइअंधे पुरिसे परिवसइ। से णं एगेणं सचक्खुएणं पुरिसेणं पुरओ दंडएणं पकड्ढिज्जमाणे-पकड्ढिज्जमाणे फुट्टहडाहडसीसे मच्छिया चडगर पहकरेणं अण्णिज्ज-माणमग्गे मियग्गामे नयरे गेहे गेहे कोलुणवडियाए वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे मियग्गामे नयरे चंदनपायवे उज्जाने समोसरिए। परिसा निग्गया।
तए णं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे जहा कूणिए तहा निग्गए जाव पज्जुवासइ।
तए णं से जाइअंधे पुरिसे तं महयाजणसद्दं च जणवूहं ए जणबोलं च जणकलकलं Translated Sutra: તે મૃગગ્રામ નગરમાં એક જાતિઅંધ પુરુષ રહેતો હતો. તે એક ચક્ષુવાળા પુરુષ વડે દંડ વડે આગળ ખેંચાતો – ખેંચાતો જતો હતો. તેના મસ્તકના કેશ ફૂટેલા અને અત્યંત વિખરાયેલા હતા. માખીના ઝુંડ તેની પાછળ બણબણતા હતા. આવો તે અંધ મિયગ્રામ નગરમાં ઘેર ઘેર દયા ઉપજાવતો આજીવિકાને કરતો રહેતો હતો. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર યાવત્ | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Gujarati | 6 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे तं जाइअंधं पुरिसं पासइ, पासित्ता जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोउहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्न कोऊहल्ले उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે ભગવંતના મુખ્ય શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ અણગાર યાવત્ વિચરતા હતા. પછી તે ગૌતમસ્વામીએ તે જાત્યંધ પુરુષને જોયો. જોઈને જાતશ્રદ્ધ આદિ થઈને કહ્યું – ભગવન્ ! કોઈ પુરુષ જાત્યંધ, જાત્યંધરૂપ હોય ? હા, હોય. ભગવન્ ! તે પુરુષ જાતિઅંધ, જાતિઅંધરૂપ કેવી રીતે છે ? હે ગૌતમ ! આ જ મૃગગ્રામ નગરમાં વિજયક્ષત્રિયનો પુત્ર, મૃગાદેવીનો | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१ मृगापुत्र |
Gujarati | 9 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से एक्काई रट्ठकूडे सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! विजयवद्धमाणे खेडे सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–इहं खलु देवानुप्पिया! एक्काइस्स रट्ठकूडस्स सरीरगंसि सोलस रोगायंका पाउब्भूया, तं जहा–सासे जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवानुप्पिया! वेज्जो वा वेज्जपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काइस्स रट्ठकूडस्स तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रट्ठकूडे Translated Sutra: ત્યારપછી તે ઇક્કાઈ રાષ્ટ્રકૂટે ૧૬ – રોગાંતકથી અભિભૂત થઈને કૌટુંબિક પુરુષોને બોલાવીને કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિયો! તમે જાઓ, વિજય વર્ધમાન ખેટકના શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક, ચત્વર, મહાપથ, પથમાં મોટા – મોટા શબ્દોથી ઉદ્ઘોષણા કરતા – કરતા આ પ્રમાણે કહો – દેવાનુપ્રિય ! અહીં ઇક્કાઈ રાષ્ટ્રકૂટના શરીરમાં ૧૬ – રોગાંતકો | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Gujarati | 13 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए कप्पिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था अहो णं इमे पुरिसे पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पच्चणुभवमाणे विहरइ।
न मे दिट्ठा नरगा वा नेरइया वा। पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे निरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्ति कट्टु वाणिय गामे नयरे उच्च नीय मज्झिम कुलाइं अडमाणे अहापज्जत्तं समुदानं गिण्हइ, गिण्हित्ता वाणियगामे नयरे मज्झंमज्झेणं पडिनिक्खमइ, अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव दूइपलासए उज्जाने Translated Sutra: ત્યારપછી ગૌતમસ્વામીએ તે પુરુષને જોઈને, આવો મનોગત સંકલ્પ થયો કે – આ પુરુષ યાવત્ નરકપ્રતિરૂપ વેદના વેદે છે, એમ વિચારી વાણિજ્યગ્રામ નગરમાં ઉચ્ચ – નીચ – મધ્યમ કુળમાં યાવત્ ભ્રમણ કરતા, યથાપર્યાપ્ત સામુદાનિક ભિક્ષા ગ્રહણ કરીને વાણિજ્યગ્રામ નગરની મધ્યેથી નીકળી યાવત્ ગૌચરી દેખાડી. ભગવંતને વાંદી – નમીને આ પ્રમાણે | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Gujarati | 14 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया।
तए णं तेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया [चिच्ची?] सद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए।
तए णं तस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा निसम्म हत्थिणाउरे नयरे बहवे नगरगोरूवा सणाहा य अणाहा य नगरगावीओ य नगरबलीवद्दा य नगरपड्डियाओ य नगरवसभा य भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता विपलाइत्था।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमेणं दारएणं जायमेत्तेणं चेव महया-महया चिच्चीसद्देणं विघुट्ठे विस्सरे आरसिए, तए णं एयस्स दारगस्स आरसियसद्दं सोच्चा Translated Sutra: તે બાળક જન્મતાની સાથે મોટા મોટા શબ્દોથી ઘોષ કરતો, વિરસ શબ્દ કરતો, બૂમો પાડવા લાગ્યો. તે બાળકની બૂમો આદિ શબ્દો સાંભળી, સમજી હસ્તિનાપુર નગરના ઘણા નગરપશુ યાવત્ વૃષભો ભયભીત થયા, ઉદ્વિગ્ન થયા, સર્વે દિશામાં ભાગી ગયા. ત્યારે તેના માતાપિતાએ આ પ્રમાણે નામ પાડ્યું – અમારો આ બાળક જન્મતા જ મોટા મોટા શબ્દોથી ચીસો પાડવા | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-२ उज्झितक |
Gujarati | 17 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! उज्झियए दारए पणुवीसं वासाइं परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएसु नेरइगत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वाणरकुलंसि वाणरत्ताए उववज्जिहिइ।
से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोगेसु मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे जाए-जाए वाणरपेल्लए वहेइ। तं एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे Translated Sutra: ભગવન્! ઉજ્ઝિતદારક અહીંથી કાળમાસે કાળ કરીને ક્યાં જશે ? ક્યાં ઉત્પન્ન થશે ? હે ગૌતમ! ઉજ્ઝિતક દારક ૨૫ – વર્ષનું પરમ આયુ પાળીને આજે જ ત્રણ ભાગ દિવસ બાકી હશે ત્યારે શૂળી વડે ભેદાઈને કાળમાસે કાળ કરી આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં નૈરયિકપણે ઉપજશે. તે ત્યાંથી અનંતર ઉદ્વર્તીને આ જ જંબૂદ્વીપ દ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં વૈતાઢ્ય | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 19 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए चोरसेनावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खंडपट्टाण य, अन्नेसिं च बहूणं छिण्ण भिण्ण बाहिराहियाणं कुडंगे यावि होत्था।
तए णं से विजए चोरसेनावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरपुरत्थिमिल्लं जणवयं बहूहिं गामघाएहिं य नगरघाएहिं य गोग्गहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकोट्टेहि य खत्तखणणेहि य ओवीलेमाणे-ओवीलेमाणे विहम्मेमाणे-विहम्मेमाणे तज्जेमाणे-तज्जेमाणे तालेमाणे-तालेमाणे नित्थाणे निद्धणे निक्कणे करेमाणे विहरइ, महब्बलस्स रन्नो अभिक्खणं-अभिक्खणं कप्पायं गेण्हइ।
तस्स णं विजयस्स चोरसेनावइस्स खंदसिरी नामं भारिया होत्था–अहीनपडिपुण्ण-पंचिंदिय-सरीरा।
तस्स Translated Sutra: ત્યારે તે ચોર સેનાપતિ, ઘણા ચોરો, પારદારિકો, ગ્રંથિભેદકો, સંધિ છેદકો, વસ્ત્રખંડ ધારકો તથા બીજા પણ ઘણા છેદી – ભેદીને બહીષ્કૃત્ કરાયેલા માટે કુડંગ સમાન હતો. પછી તે વિજય ચોરસેનાપતિ પુરિમતાલ નગરના ઉત્તર – પૂર્વીય જનપદના ઘણા ગામ – નગરનો ઘાતક, ગાય આદિના ગ્રહણ વડે, બંદીગ્રહણ વડે, પંથકોટ્ટ અને ખાતર પાડનાર વડે પીડા | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 22 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभग्गसेने कुमारे उम्मुक्कबालभावे यावि होत्था। अट्ठ दारियाओ जाव अट्ठओ दाओ। उप्पिं भुंजइ।
तए णं से विजए चोरसेनावई अन्नया कयाइ कालधम्मुणा संजुत्ते।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे विजयस्स चोरसेनावइस्स महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं नीहरणं करेइ, करेत्ता बहूइं लोइयाइं मयकिच्चाइं करेइ, करेत्ता केणइ कालेणं अप्पसोए जाए यावि होत्था।
तए णं ताइं पंच चोरसयाइं अन्नया कयाइ अभग्गसेनं कुमारं सालाडवीए चोरपल्लीए महया-महया चोरसेनावइत्ताए अभिसिंचति।
तए णं से अभग्गसेने कुमारे चोरसेनावई जाए अहम्मिए जाव महब्बलस्स Translated Sutra: ત્યારપછી તે અભગ્નસેન કુમાર બાલભાવથી મુક્ત થયો. આઠ કન્યા સાથે લગ્ન થયા, યાવત્ આઠનો દાયજો મળ્યો. ઉપરી પ્રાસાદમાં ભોગ ભોગવતો વિચરે છે. પછી તે વિજય ચોર સેનાપતિ કોઈ દિવસે મૃત્યુ પામ્યો. પછી તે અભગ્નસેનકુમાર ૫૦૦ ચોરો સાથે પરીવરી રુદન – ક્રંદન – વિલાપ કરતો વિજય ચોરસેનાપતિનું મહાઋદ્ધિ સત્કારના સમુદયથી નીહરણ કર્યું, | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-३ अभग्नसेन |
Gujarati | 23 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे एगं महं महइमहालियं कूडागारसालं कारेइ–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं पासाईयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं।
तए णं से महब्बले राया अन्नया कयाइ पुरिमताले नयरे उस्सुक्कं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिमकुदंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणुद्धयमुइंगं अमिलायमल्लदामं गणियावरनाडइज्ज-कलियं अनेगतालाचराणुचरियं पमुइयपक्कीलियाभिरामं जहारिहं दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ, उग्घोसावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सालाडवीए चोरपल्लीए। तत्थ णं तुब्भे अभग्गसेणं चोरसेनावइं करयल परिग्गहियं Translated Sutra: ત્યારપછી તે મહાબલરાજાએ અન્ય કોઈ દિવસે પુરિમતાલ નગરમાં એક મોટી મહતિ મહાલિકા કૂટાકારશાળા કરાવી. તે અનેક શત સ્તંભ ઉપર રહેલી, પ્રાસાદીય, દર્શનીય હતી. પછી મહાબલ રાજાએ અન્ય કોઈ દિને પુરિમતાલ નગરે શુલ્ક રહિત યાવત્ દશ દિવસનો પ્રમોદ – મહોત્સવની ઘોષણા કરાવી, પછી કૌટુંબિકપુરુષોને બોલાવીને કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિયો | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Gujarati | 27 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाण चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसंबी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा। बाहिं चंदोतरणे उज्जाने। सेयभद्दे जक्खे।
तत्थ णं कोसंबीए नयरीए सयाणिए नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे। मियावई देवी।
तस्स णं सयाणियस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए उदयने नामं कुमारे होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया।
तस्स णं उदयनस्स कुमारस्स Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના ચોથા અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો પાંચમાંનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! નિશ્ચે તે કાળે, તે સમયે કૌશાંબી નામે ઋદ્ધ, નિર્ભય૦ નગરી હતી. તેની બહાર ચંદ્રોત્તરણ ઉદ્યાન હતું. ત્યાં શ્વેતભદ્ર યક્ષનું યક્ષાયતન | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-५ बृहस्पति दत्त |
Gujarati | 28 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं समज्जिणित्ता तीसं वाससयाइं परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा पंचमाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तरससागरोवमट्ठिइए नरगे उववन्ने।
से णं तओ अनंतरं उवट्टित्ता इहेव कोसंबीए नयरीए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स वसुदत्ताए भारियाए पुत्तत्ताए उववन्ने
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–जम्हा णं अम्हं इमे दारए सोमदत्तस्स पुरोहियस्स पुत्ते वसुदत्ताए अत्तए, तम्हा णं होउ अम्हं दारए बहस्सइदत्ते नामेणं।
तए णं से बहस्सइदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव Translated Sutra: ત્યારપછી તે મહેશ્વરદત્ત પુરોહિત ઉક્ત અશુભકર્મ વડે ઘણા જ પાપકર્મોને ઉપાર્જીને ૩૦૦૦ વર્ષનું પરમ આયુ પાળીને, મૃત્યુ અવસરે મૃત્યુ પામી પાંચમી નરકમાં ઉત્કૃષ્ટ ૧૭ – સાગરોપમ સ્થિતિક નરકમાં ઉત્પન્ન થયો. તે ત્યાંથી અનંતર ઉદ્વર્તીને આ જ કૌશાંબી નગરીમાં સોમદત્ત પુરોહિતની વસુદત્તા પત્નીના પુત્રપણે ઉત્પન્ન થયો | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-६ नंदिसेन्न |
Gujarati | 29 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा नामं नयरी। भंडीरे उज्जाने। सुदरिसणे जक्खे। सिरिदामे राया। बंधुसिरी भारिया। पुत्ते नंदिवद्धने कुमारे–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे जुवराया।
तस्स सिरिदामस्स सुबंधू नामं अमच्चे होत्था–साम दंड भेय उवप्पयाणनीति सुप्पउत्त नयविहण्णू।
तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના પાચમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો છટ્ઠાનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે મથુરા નામે નગરી હતી. ભંડીર ઉદ્યાન હતું, ત્યાં સુદર્શન યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. ત્યાં શ્રીદામ રાજા, બંધુશ્રી રાણી, | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-६ नंदिसेन्न |
Gujarati | 30 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं तओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव महुराए नयरीए सिरिदामस्स रन्नो बंधुसिरीए देवीए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववन्ने।
तए णं बंधुसिरी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारगं पयाया।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो निव्वत्तबारसाहे इमं एयारूवं नामधेज्जं करेंति–होउ णं अम्हं दारगे नंदिवद्धने नामेणं।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे पंचधाईपरिवुडे जाव परिवड्ढइ।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे उम्मुक्कबालभावे विण्णय परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते विहरइ जाव जुवराया जाए यावि होत्था।
तए णं से नंदिवद्धने कुमारे रज्जे य जाव अंतेउरे य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे इच्छइ सिरिदामं Translated Sutra: તે દુર્યોધન નરકથી અનંતર ઉદ્વર્તીને આ જ મથુરા નગરીમાં શ્રીદામ રાજાની બંધુશ્રી રાણીની કુક્ષિમાં પુત્રપણે ઉત્પન્ન થયો. પછી બંધુશ્રીએ નવ માસ પરિપૂર્ણ થતા યાવત્ પુત્રને જન્મ આપ્યો. ત્યારપછી તે બાળકના માતાપિતાએ બાર દિવસ વીત્યા પછી આ આવા પ્રકારનું નામ કર્યુ. અમારા પુત્રનું નંદીવર્ધન નામ થાઓ. ત્યારપછી તે નંદીવર્ધનકુમાર | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-७ उदुंबरदत्त |
Gujarati | 31 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पाडलिसंडे नयरे। वणसंडे उज्जाने। उंबरदत्ते जक्खे।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सिद्धत्थे राया।
तत्थ णं पाडलिसंडे नयरे सागरदत्ते सत्थवाहे होत्था–अड्ढे। गंगदत्ता भारिया।
तस्स णं सागरदत्तस्स पुत्ते गंगदत्ताए भारियाए अत्तए उंबरदत्ते नामं दारए होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरे।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના છટ્ઠાઅધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો સાતમાંનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે પાડલખંડ નગર હતું, ત્યાં વનખંડ નામે ઉદ્યાન હતું, ઉંબરદત્ત યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. તે નગરમાં સિદ્ધાર્થ રાજા હતો. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-८ शौर्यदत्त |
Gujarati | 32 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं सोरियपुरं नयरं। सोरियवडेंसगं उज्जाणं। सोरिओ जक्खो। सोरियदत्ते राया।
तस्स णं सोरियपुरस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं एगे मच्छंधपाडए होत्था।
तत्थ णं समुद्ददत्ते नामं मच्छंधे परिवसइ–अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे।
तस्स णं समुद्ददत्तस्स समुद्ददत्ता नामं भारिया होत्था–अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा।
तस्स Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના સાતમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો આઠમાનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે શૌર્યપુર નગર હતું, શૌર્યાવતંસક ઉદ્યાન હતું, શૌર્ય યક્ષ હતો, શૌર્યદત્ત રાજા હતો તે શૌર્યપુર નગરની બહાર ઈશાનખૂણામાં | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-९ देवदत्त |
Gujarati | 33 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी–
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रोहीडए नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे। पुढवीवडेंसए उज्जाने। धरणो जक्खो।
वेसमणदत्ते राया। सिरी देवी। पूसनंदी कुमारे जुवराया।
तत्थ णं रोहीडए नयरे दत्ते नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे। कण्हसिरी भारिया।
तस्स णं दत्तस्स धूया कण्हसिरीए अत्तया देवदत्ता नामं दारिया होत्था–अहीनपडिपुण्ण–पंचिंदियसरीरा।
तेणं Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના સાતમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો આઠમાનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે રોહીતક નામે ઋદ્ધ – સમૃદ્ધ નગર હતું. પૃથ્વીવતંસક ઉદ્યાન હતું, ધરણ યક્ષનું યક્ષાયતન હતું. વૈશ્રમણ દત્ત રાજા, શ્રી | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ दुःख विपाक अध्ययन-१० अंजूश्री |
Gujarati | 34 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दसमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे अनगारे जंबू–अनगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वड्ढमाणपुरे नामं नयरे होत्था । विजयवड्ढमाणे उज्जाने। माणिभद्दे जक्खे। विजयमित्ते राया।
तत्थ णं घनदेवे नामं सत्थवाहे होत्था अड्ढे। पियंगू नामं भारिया। अंज दारिया जाव उक्किट्ठसरीरा। समोसरणं परिसा जाव गया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी जाव अडमाणे विजयमत्तिस्स रन्नो गिहस्स असोगवणियाए Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે યાવત્ દુઃખવિપાકના સાતમાં અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો આઠમાનો યાવત્ શો અર્થ કહ્યો છે ? ત્યારે સુધર્મા અણગારે જંબૂ અણગારને આ પ્રમાણે કહ્યું – જંબૂ ! નિશ્ચે, તે કાળે, તે સમયે વર્દ્ધમાનપુર નગર હતું. વિજયવર્દ્ધમાન ઉદ્યાન, માણિભદ્ર યક્ષ, વિજયમિત્ર રાજા. ત્યાં ધનદેવ નામે આઢ્ય સાર્થવાહ, | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१ सुबाहुकुमार |
Gujarati | 37 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नामं उज्जाने होत्था–सव्वोउय–पुप्फ–समिद्धे।
तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–दिव्वे ।
तत्थ णं हत्थिसोसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमंवत–महंत–मलय–मंदर–महिंदसारे।
तस्स Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે સુખવિપાકના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો ભંતે ! તેના પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ છે ? ત્યારે સુધર્માસ્વામીએ જંબૂ અણગારને કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે હસ્તશીર્ષ નામે ઋદ્ધ – સમૃદ્ધ નગર હતું. તે હસ્તશીર્ષ નગરની બહાર ઈશાનકોણમાં પુષ્પકરંડક નામે ઉદ્યાન હતું, તે સર્વઋતુક ફળ – ફૂલ આદિથી યુક્ત | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-२ भद्रनंदि |
Gujarati | 38 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बितियस्स उक्खेवओ।
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं उसभपुरे नयरे। थूभकरंडग उज्जाणं। धन्नो जक्खो। धनावहो राया। सरस्सई देवी।
सुमिणदंसणं कहणा, जम्मं बालत्तणं कलाओ य ।
जोव्वणं पाणिग्गहणं, दाओ पासाय भोगा य ॥
जहा सुबाहुस्स, नवरं–भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा णं पंचसया। सामीसमोसरणं। सावगधम्मं। पुव्वभवपुच्छा। महा-विदेहे वासे पुंडरीगिणी नयरी। विजए कुमारे। जुगबाहू तित्थयरे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इह उप्पण्णे। सेसं जहा सुबा-हुस्स जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंते काहिइ।
निक्खेवओ। Translated Sutra: હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે ઋષભપુર નગર, સ્તૂભ કરંડક ઉદ્યાન, ધન્ય યક્ષ, ધનાવહ રાજા, સરસ્વતી રાણી, સ્વપ્નદર્શન, રાજાને કથન, પુત્રજન્મ, બાલ્યત્વ, કલાગ્રહણ, યૌવન, પાણીગ્રહણ, દાન, પ્રાસાદ, સુબાહુકુમારની જેમ ભોગ વર્ણન. વિશેષ એ કે – ભદ્રનંદિ કુમાર નામ રાખ્યું, શ્રીદેવી આદિ ૫૦૦ સાથે લગ્ન. સ્વામી પધાર્યા, શ્રાવકધર્મ સ્વીકાર. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-३ सुजातकुमार |
Gujarati | 39 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तच्चस्स उक्खेवओ।
वीरपुरं नयरं। मणोरमं उज्जाणं। वीरकण्हमित्ते राया। सिरी देवी। सुजाए कुमारे। बलसिरीपामोक्खा पंचसया। सामीसमोसरणं। पुव्वभवपुच्छा। उसुयारे नयरे। उसभदत्ते गाहावई। पुप्फदंते अनगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इहं उप्पण्णे जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
निक्खेवओ। Translated Sutra: વીરપુર નગર, મનોરમ ઉદ્યાન, વીરકૃષ્ણમિત્ર રાજા, શ્રીદેવી, સુજાતકુમાર, બલશ્રી આદિ ૫૦૦ કન્યા, સ્વામી પધાર્યા, પૂર્વભવ પૃચ્છા, ઇષુકાર નગર, ઋષભદેવ ગાથાપતિ, પુષ્પદત્ત અણગારને પ્રતિલાભ્યા. મનુષ્યાયુ બાંધ્યુ. અહીં ઉત્પન્ન થયો યાવત્ મહાવિદેહે મોક્ષે જશે. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-४ सुवासवकुमार |
Gujarati | 40 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चउत्थस्स उक्खेवओ।
विजयपुरं नयरं। नंदनवणं उज्जानं। असोगो जक्खो। वासवदत्ते राया। कण्हा देवी। सुवासवे कुमारे। भद्दापामोक्खाणं पंचसया जाव पुव्वभवे। कोसंबी नयरी। धनपाले राया। वेसमणभद्दे अनगारे पडिलाभिए। इह जाव सिद्धे। Translated Sutra: વિજયપુર નગર, નંદનવન, મનોરમ ઉદ્યાન, અશોકયક્ષ, વાસવદત્ત રાજા, કૃષ્ણા રાણી, સુવાસવકુમાર, ભદ્રા આદિ ૫૦૦ કન્યા યાવત્ પૂર્વભવે કૌશાંબી નગરી, ધનપાલ રાજા, વૈશ્રમણ ભદ્ર અણગારને પ્રતિલાભ્યા યાવત્ મહાવિદેહે સિદ્ધ, બુદ્ધ થઇ મોક્ષે જશે. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-५ जिनदासकुमार |
Gujarati | 41 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचमस्स उक्खेवओ।
सोगंधिया नयरी। नीलासोगं उज्जाणं। सुकालो जक्खो। अप्पडिहओ राया। सुकण्णा देवी। महचंदे कुमारे। तस्स अरहदत्ता भारिया। जिनदासो पुत्तो। तित्थयरागमणं। जिनदासो पुव्वभवो। मज्झमिया नयरी। मेहरहे राया। सुधम्मे अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: સૌગંધિકા નગરી, નીલાશોક ઉદ્યાન, સુકાલ યક્ષ, અપ્રતિહત રાજા, સુકન્યા રાણી, મહાચંદ્રકુમાર, અર્હત્તાપત્ની, જિનદાસ પુત્ર, તીર્થંકર આગમન, જિનદાસનો પૂર્વભવ, મધ્યમિકા નગરી, મેઘરથ રાજા, સુધર્મ અણગારને પ્રતિલાભ્યા યાવત્ સિદ્ધ થશે. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-६ वैश्रमणकुमार |
Gujarati | 42 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छट्ठस्स उक्खेवओ।
कनगपुरं नयरं। सेयासोयं उज्जाणं। वीरभद्दो जक्खो। पियचंदो राया। सुभद्दा देवी। वेसमणे कुमारे जुवराया। सिरिदेवीपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं। धनवई जुवरायपुत्ते जाव पुव्वभवो। मणिवइया नयरी। मित्तो राया। संभूतिविजए अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: કનકપુર નગર, શ્વેતાશોક ઉદ્યાન, વીરભદ્ર યક્ષ, પ્રિયચંદ્ર રાજા, સુભદ્રા રાણી, વૈશ્રમણકુમાર યુવરાજ, શ્રીદેવી આદિ ૫૦૦ કન્યા સાથે પાણીગ્રહણ. તીર્થંકરનું આગમન, ધનપતિ નામે યુવરાજ પુત્ર યાવત્ પૂર્વભવ, મણિવયાનગરી, મિત્ર રાજા, સંભૂતિ વિજય અણગારને પડિલાભ્યા યાવત્ સિદ્ધ થશે. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-७ महाबलकुमार |
Gujarati | 43 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तमस्स उक्खेवओ।
महापुरं नयरं। रत्तासोगं उज्जाणं। रत्तपाओ जक्खो। बले राया। सुभद्दा देवी। महब्बले कुमारे। रत्तवईपामोक्खा पंचसया। तित्थयरागमणं जाव पुव्वभवो। मणिपुरं नयरं। नागदत्ते गाहावई। इंदपुत्ते अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: મહાપુર નગર, રક્તાશોક ઉદ્યાન, રક્તપાદ યક્ષ, બલ રાજા, સુભદ્રા રાણી, મહાબલકુમાર, રક્તવતિ આદિ ૫૦૦ કન્યા સાથે પાણીગ્રહણ, તીર્થંકર આગમન યાવત્ પૂર્વભવ – મણિપુર નગર, નાગદત્ત ગાથાપતિ, ઇન્દ્રપુર અણગારને દાન યાવત્ સિદ્ધ. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-८ भद्रनंदि |
Gujarati | 44 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठमस्स उक्खेवओ।
सुघोसं नयरं। देवरमणं उज्जाणं। वीरसेनो जक्खो। अज्जुनो राया। तत्तवई देवी। भद्दनंदी कुमारे। सिरिदेवीपामोक्खा पंच-सया जाव पुव्वभवे। महाघोसे नयरे। धम्मघोसे गाहावई। धम्मसीहे अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: સુઘોષનગર, દેવરમણ ઉદ્યાન, વીરસેન યક્ષ, અર્જુન રાજા, તપ્તવતી રાણી, ભદ્રનંદી કુમાર, શ્રીદેવી આદિ ૫૦૦ કન્યા યાવત્ પૂર્વભવ – મહાઘોષ નગર, ધર્મઘોષ ગાથાપતિ, ધર્મસિંહ અણગારને પ્રતિલાભ્યા યાવત્ સિદ્ધ થશે. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-९ महाचंद्र |
Gujarati | 45 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवमस्स उक्खेवओ।
चंपा नयरी। पुण्णभद्दे उज्जाने। पुण्णभद्दे जक्खे। दत्ते राया। रत्तवती देवी। महचंदे कुमारे जुवराया। सिरिकंतापामोक्खा णं पंचसया जाव पुव्वभवो। तिगिंछी नयरी। जियसत्तू राया। धम्मवीरिए अनगारे पडिलाभिए जाव सिद्धे। Translated Sutra: ચંપાનગરી, પૂર્ણભદ્ર ઉદ્યાન, પૂર્ણભદ્ર યક્ષ, દત્તરાજા, રક્તવતી રાણી, મહાચંદ્ર કુમાર યુવરાજ, શ્રીકાંતા આદિ ૫૦૦ કન્યા, યાવત્ પૂર્વભવ – તિગિંછી નગરી, જિતશત્રુ રાજા, ધર્મવીર્ય અણગારને પ્રતિલાભ્યા યાવત્ સિદ્ધ, બુદ્ધ થઇ સર્વ કર્મનો ક્ષય કરી મોક્ષે જશે. | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१० वरदत |
Gujarati | 46 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसमस्स उक्खेवओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं साएणं नामं नयरं होत्था। उत्तरकुरुउज्जाने। पासामिओ जक्खो। मित्तनंदी राया। सिरिकंता देवी। वरदत्ते कुमारे। वरसेणा पामोक्खा पंच देवीसया। तित्थयरागमणं। सावगधम्मं। पुव्वभवपुच्छा। सयदुवारे नयरे। विमलवाहणे राया। धम्मरुई अनगारे पडिलाभिए। मणुस्साउए निबद्धे। इहं उप्पण्णे। सेसं जहा सुबाहुस्स कुमारस्स। चिंता जाव पव्वज्जा। कप्पंतरिते जाव सव्वट्ठसिद्धे। तओ महाविदेहे जहा दढपइण्णे जाव सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दसमस्स Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે સુખવિપાકના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો ભંતે ! તેના દશમા અધ્યયનનો શો અર્થ કહેલ છે ? હે જંબૂ ! નિશ્ચે, તે કાળે, તે સમયે સાકેત નામે નગર હતું, ઉત્તરકુરુ ઉદ્યાન, પાસમૃગ નામના યક્ષ, મિત્રનંદી રાજા, શ્રીકાંતા રાણી, વરદત્તકુમાર, વરસેના આદિ ૫૦૦ રાણી, તીર્થંકર આગમન, શ્રાવક ધર્મ સ્વીકાર, પૂર્વભવ પૃચ્છા | |||||||||
Virastava | Ardha-Magadhi | Hindi | 36 | Gatha | Painna-10B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] एवं गुणगणसक्कस्स कुणइ सक्को वि किमिह अच्छरियं ।
अभिवंदणं जिनेसर!?, ता ‘सक्कऽभिवंदिय!’ नमो ते ॥ दारं २० । Translated Sutra: इस प्रकार गुण समूह से समर्थ ! तुम्हें शक्र भी अभिनन्दन करे तो इसमें क्या ताज्जुब ? इसलिए शक्र से अभिवंदित हे जिनेश्वर ! तुम्हें नमस्कार हो। | |||||||||
Virastava | Ardha-Magadhi | Gujarati | 36 | Gatha | Painna-10B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] एवं गुणगणसक्कस्स कुणइ सक्को वि किमिह अच्छरियं ।
अभिवंदणं जिनेसर!?, ता ‘सक्कऽभिवंदिय!’ नमो ते ॥ दारं २० । Translated Sutra: એ રીતે ગુણસમૂહથી હે સમર્થ ! તમને શક્ર પણ અભિનંદે તેમાં શું આશ્ચર્ય ? તેથી શક્રથી અભિવંદિત હે જિનેશ્વર! આપને નમસ્કાર થાઓ. | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 15 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पंचमासियं वा साइरेगपंचमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, अपलिउंचियं आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं। ठविए वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयव्वे सिया।
पुव्विं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं। पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, अपलिउंचिए अपलिउंचियं, अपलिउंचिए पलिउंचियं। पलिउंचिए अपलिउंचियं, पलिउंचिए पलिउंचियं।
अपलिउंचिए अपलिउंचियं आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए Translated Sutra: जो साधु – साध्वी एक बार या बार – बार चार मास का, साधिक चार मास का, पाँच मास का प्रायश्चित्त स्थानक में से अनोखा (दूसरा किसी भी) पाप स्थानक सेवन करके आलोचना करते हुए माया रहित या मायापूर्वक आलोचते हुए सकल संघ के सन्मुख परिहार तप की स्थापना करे, स्थापना करके उसकी वैयावच्च करवाए। यदि सम्पूर्ण प्रायश्चित्त लगाए तो | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१ | Hindi | 19 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे पारिहारिया बहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए। नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए,
कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए।
थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एव ण्हं कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए।
थेरा य ण्हं से नो वियरेज्जा एव ण्हं नो कप्पइ एगयओ अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएत्तए,
जो णं थेरेहिं अविइण्णे अभिनिसेज्जं वा अभिनिसीहियं वा चेएइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: बहुत प्रायश्चित्त वाले – बहुत प्रायश्चित्त न आए हो ऐसे साधु इकट्ठे रहना या बैठना चाहे, चिन्तवन करे लेकिन स्थविर साधु को पूछे बिना न कल्पे। स्थविर को पूछकर ही कल्पे। यदि स्थविर आज्ञा दे कि तुम इकट्ठे विचरो तो इकट्ठे रहना या बैठना कल्पे, यदि स्थविर इकट्ठे विचरने की अनुमति न दे तो वैसा करना न कल्पे, यदि स्थविर | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। थेरा य से सरेज्जा, कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पति से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए।
तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पति एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पति परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए।
जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वासइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। Translated Sutra: परिहार तप में रहे साधु बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए जाए तब स्थविर उस साधु को परिहार तप याद करवाए, याद न दिलाए या याद हो लेकिन जाते वक्त याद करवाना रह जाए तो साधु को एक रात का अभिग्रह करके रहना कल्पे और फिर जिस दिशा में दूसरे साधर्मिक साधु साध्वी विचरते हो उस दिशा में जाए लेकिन वहाँ विहार आदि निमित्त से रहना न |