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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Chandrapragnapati | ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Gujarati | 198 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते अनुभावे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ।
तत्थेगे एवमाहंसु–ता चंदिमसूरिया णं नो जीवा अजीवा, नो घणा झुसिरा, नो वरबोंदिधरा कलेवरा, नत्थि णं तेसिं उट्ठानेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति वा, ते नो विज्जुं लवंति नो असणिं लवंति नो थणितं लवंति। अहे णं बादरे वाउकाए संमुच्छति, संमुच्छित्ता विज्जुंपि लवंति असिणंपि लवंति थणितंपि लवंति–एगे एवमाहंसु १
एगे पुण एवमाहंसु–ता चंदिमसूरिया णं जीवा नो अजीवा, घणा नो झुसिरा, वरबोंदिधरा नो कलेवरा, अत्थि णं तेसिं उट्ठाणेति वा कम्मेति वा बलेति वा वीरिएति वा पुरिसक्कारपरक्कमेति Translated Sutra: ચંદ્ર અને સૂર્યનો અનુભાવ કઈ રીતે કહેલો છે ? તે વિષયમાં આ બે પ્રતિપત્તિઓ (અન્યતીર્થિકોની માન્યતા)કહી છે. તેમાં એક એમ કહે છે કે – તે ચંદ્ર – સૂર્ય જીવ નથી – અજીવ છે, ઘન નથી – સુષિર છે, શ્રેષ્ઠ શરીરધારી નથી પણ કલેવર રૂપ છે. તેને ઉત્થાન કર્મ, બલ, વીર્ય, પુરુષાકાર પરાક્રમ નથી, તેમાં વિદ્યુત કે અશનિપાત કે સ્તનિત ધ્વનિ નથી. | |||||||||
Chandrapragnapati | ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Gujarati | 200 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा? ता चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिसरण्णो मियंके विमाने कंता देवा कंताओ देवीओ कंताइं आसन-सयन-खंभ-भंडमत्तोवगरणाइं, अप्पणावि य णं चंदे देवे जोतिसिंदे जोतिसराया सोमे कंते सुभगे पियदंसणे सुरूवे ता एवं खलु चंदे ससी-चंदे ससी आहितेति वदेज्जा।
ता कहं ते सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा? ता सूरादिया णं समयाति वा आवलियाति वा आनापानुति वा थोवेति वा जाव ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीति वा, एवं खलु सूरे आदिच्चे-सूरे आदिच्चे आहितेति वदेज्जा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૦૦. કઈ રીતે ચંદ્ર ‘શશી’ કહેવાય છે ? જ્યોતિષેન્દ્ર જ્યોતિષરાજ ચંદ્ર મૃગાંક વિમાનમાં કાંત દેવ, કાંત દેવી, કાંત આસન, શયન, સ્તંભ, ભાંડ – માત્ર – ઉપકરણો હોય છે. જ્યોતિષેન્દ્ર જ્યોતિષરાજ ચંદ્ર પોતે પણ સૌમ્ય, કાંત, શુભ, પ્રિયદર્શન અને સુરૂપ છે. એ પ્રમાણે નિશ્ચે ચંદ્ર ‘શશી’, ચંદ્ર – ‘શશી’ કહેવાય છે. કઈ રીતે તે સૂર્ય | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 141 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] धन्नाणं तु कसाया जगडिज्जंता वि परकसाएहिं ।
निच्छंति समुट्ठेउं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव ॥ Translated Sutra: धन्य पुरुष के कषाय दूसरों के क्रोधादिक कषाय से टकराने के बावजूद भी अच्छी तरह से बैठे हुए पंगु मानव की तरह खड़े होने की ईच्छा नहीं रखते। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 142 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] सामण्णमनुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होंति ।
मन्नामि उच्छुपुप्फं व निप्फलं तस्स सामण्णं ॥ Translated Sutra: श्रमणधर्म का आचरण करनेवाले साधु को यदि कषाय उच्च कोटि के हो तो उनका श्रमणत्व शेलड़ी के फूल की तरह निष्फल है, ऐसा मेरा मानना है। कुछ न्यून पूर्व कोटि साल तक पालन किया गया निर्मल चारित्र भी कषाय से कलूषित चित्तवाला पुरुष एक मुहूर्त्त में हार जाता है। सूत्र – १४२, १४३ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 1 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जगमत्थयत्थयाणं विगसियवरनाण-दंसणधराणं ।
नाणुज्जोयगराणं लोगम्मि नमो जिनवराणं ॥ Translated Sutra: लोक पुरुष के मस्तक (सिद्धशीला) पर सदा विराजमान विकसित पूर्ण, श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन गुण के धारक ऐसे श्री सिद्ध भगवन्त और लोक में ज्ञान को उद्योत करनेवाले श्री अरिहंत परमात्मा को नमस्कार हो। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 10 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विज्जा वि होइ विलिया गहिया पुरिसेणऽभागधेज्जेण ।
सुकुलकुलबालिया विव असरिसपुरिसं पइं पत्ता ॥ Translated Sutra: विनय आदि गुण से युक्त पुन्यशाली पुरुष द्वारा ग्रहण की गई विद्या भी बलवती बनती है। जैसे उत्तम कुल में पैदा होनेवाली लड़की मामूली पुरुष को पति के रूप में पाकर महान बनती है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 15 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] पव्वइयस्स गिहिस्स व विणयं चेव कुसला पसंसंति ।
न हु पावइ अविनीओ कित्तिं च जसं च लोगम्मि ॥ Translated Sutra: साधु या गृहस्थ कोई भी हो, उसके विनय गुण की प्रशंसा ज्ञानी पुरुष यकीनन करते हैं। अविनीत कभी भी लोक में कीर्ति या यश प्राप्त नहीं कर सकता। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 17 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] अभणंतस्स वि कस्स वि पइरइ कित्ती जसो य लोगम्मि ।
पुरिसस्स महिलियाए विनीयविनयस्स दंतस्स ॥ Translated Sutra: न बोलनेवाले या अधिक न पढ़नेवाले फिर भी विनय से सदा विनीत – नम्र और इन्द्रिय पर काबू पानेवाले कुछ पुरुष या स्त्री की यशकीर्ति लोक में सर्वत्र फैलती है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 18 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] देंति फलं विज्जाओ पुरिसाणं भागधेज्जपरियाणं ।
न हु भागधेज्जपरिवज्जियस्स विज्जा फलं देति ॥ Translated Sutra: भागशाली पुरुष को ही विद्याएं फल देनेवाली होती है, लेकिन भाग्यहीन को विद्या नहीं फलती। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 37 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] नीयावित्ति विनीयं ममत्तमं गुणवियाणयं सुयणं ।
आयरियमइवियाणिं सीसं कुसला पसंसंति ॥ Translated Sutra: जो हंमेशा नम्र वृत्तिवाला, विनीत, मदरहित, गुण को जाननेवाला, सुजन – सज्जन और आचार्य भगवंत के अभिप्राय – आशय को समझनेवाला होता है, उस शिष्य की प्रशंसा पंड़ित पुरुष भी करते हैं। (अर्थात् वैसा साधु सुशिष्य कहलाता है।) | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 38 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] सीयसहं उण्हसहं वायसहं खुह-पिवास-अरइसहं ।
पुढवी विव सव्वसहं सीसं कुसला पसंसंति ॥ Translated Sutra: शीत, ताप, वायु, भूख, प्यास और अरति परीषह सहन करनेवाले, पृथ्वी की तरह सर्व तरह की प्रतिकूलता – अनुकूलता आदि को सह लेनेवाली – धीर शिष्य की कुशल पुरुष तारीफ करते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 39 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] लाभेसु अलाभेसु य अविवन्नो जस्स होइ मुहकण्णो ।
अप्पिच्छं संतुट्ठं सीसं कुसला पसंसंति ॥ Translated Sutra: लाभ या गेरलाभ के अवसर में भी जिसके मुख का भाव नहीं बदलता अर्थात् हर्ष या खेद युक्त नहीं बनता और फिर जो अल्प ईच्छावाला और सदा संतुष्ट होता है, ऐसे शिष्य की पंड़ित पुरुष तारीफ करते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 41 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] दसविहवेयावच्चम्मि उज्जुयं उज्जयं च सज्झाए ।
सव्वावासगजुत्तं सीसं कुसला पसंसंति ॥ Translated Sutra: आचार्य आदि दश प्रकार की वैयावच्च करने में सदा उद्यत, वाचना आदि स्वाध्याय में नित्य प्रयत्नशील तथा सामायिक आदि सर्व आवश्यक में उद्यत शिष्य की ज्ञानीपुरुष प्रशंसा करते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 45 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जाइ-कुल-जोव्वण-बल-विरिय-समत्तसत्तसंपन्नं ।
मिउ मद्दवाइमपिसुणमसढमथद्धं अलोभं च ॥ Translated Sutra: अब शिष्य की कसौटी के लिए उसके कुछ विशिष्ट लक्षण और गुण बताते हैं, जो पुरुष उत्तम जाति, कुल, रूप, यौवन, बल, वीर्य – पराक्रम, समता और सत्त्व गुण से युक्त हो मृदु – मधुरभाषी, किसी की चुगली न करनेवाला, अशठ, नग्न और अलोभी हो – और अखंड हाथ और चरणवाला, कम रोमवाला, स्निग्ध और पुष्ट देहवाला, गम्भीर और उन्नत नासिका वाला उदार दृष्टि, | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 48 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] कालन्नू देसन्नू समयन्नू सील-रूव-विनयन्नू ।
लोह-भय-मोहरहियं जियनिद्द-परीसहं चेव ॥ Translated Sutra: काल, देश और समय – अवसर को पहचाननेवाला, शीलरूप और विनय को जाननेवाला, लोभ, भय, मोहरहित, निद्रा और परीषह को जीतनेवाला हो, उसे कुशल पुरुष उचित शिष्य कहते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 49 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जइ वि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउ-कारणविहन्नू ।
अविनीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति ॥ Translated Sutra: किसी पुरुष शायद श्रुतज्ञान में निपुण हो, हेतु, कारण और विधि को जाननेवाला हो फिर भी यदि वो अविनीत और गौरवयुक्त हो तो श्रुतधर महर्षि उसकी प्रशंसा नहीं करते। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 54 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विनओ मोक्खद्दारं विनयं मा हू कयाइ छड्डेज्जा ।
अप्पसुओ वि हु पुरिसो विनएण खवेइ कम्माइं ॥ Translated Sutra: विनय मोक्ष का दरवाजा है। विनय को कभी ठुकराना नहीं चाहिए क्योंकि अल्प श्रुत का अभ्यासी पुरुष भी विनय द्वारा सर्व कर्म को खपाते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 55 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो अविनीयं विनएण जिणइ, सीलेण जिणइ निस्सीलं ।
सो जिणइ तिन्नि लोए, पावमपावेण सो जिणइ ॥ Translated Sutra: जो पुरुष विनय द्वारा अविनय को, शील सदाचार द्वारा निःशीलत्व को और अपाप – धर्म द्वारा पाप को जीत लेता है, वो तीनों लोक को जीत लेता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 56 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जइ वि सुयनाणकुसलो होइ नरो हेउ-कारणविहन्नू ।
अविनीयं गारवियं न तं सुयहरा पसंसंति ॥ Translated Sutra: पुरुष मुनि श्रुतज्ञान में निपुण हो – हेतु, कारण और विधि को जाननेवाला हो, फिर भी अविनीत और गौरव युक्त हो तो श्रुतधर – गीतार्थ पुरुष उनकी प्रशंसा नहीं करते। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 57 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] सुबहुस्सुयं पि पुरिसं पुरिसा अप्पस्सुयं ति ठावेंति ।
गुणहीन विनयहीणं चरित्तजोगेण पासत्थं ॥ Translated Sutra: बहुश्रुत पुरुष भी गुणहीन, विनयहीन और चारित्र योग में शिथिल बना हो तो गीतार्थ पुरुष उसे अल्पश्रुत वाला मानता है। जो तप, नियम और शील से युक्त हो – ज्ञान, दर्शन और चारित्रयोग में सदा उद्यत हो वो अल्प श्रुतवाला हो तो भी ज्ञानी पुरुष उसे बहुश्रुत का स्थान देते हैं। सूत्र – ५७, ५८ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 67 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विनयस्स गुणविसेसा एए मए वण्णिया समासेणं । दारं ४ ।
नाणस्स गुणविसेसा ओहियकण्णा निसामेह ॥ Translated Sutra: इस तरह मैंने विनय के विशिष्ट लाभों का संक्षेप में वर्णन किया। अब विनय से शीखे श्रुतज्ञान के विशेष गुण – लाभ का वर्णन करता हूँ, वो सुनो। श्री जिनेश्वर परमात्मा ने उपदेश दिए हुए, महान विषयवाले श्रुतज्ञान को पूरी तरह जान लेना मुमकीन नहीं है। इसलिए वो पुरुष प्रशंसनीय है, जो ज्ञानी और चारित्र सम्पन्न है। सूत्र | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 70 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जाणंति बंध-मोक्खं जीवाऽजीवे य पुण्ण-पावे य ।
आसव संवर निज्जर तो किर नाणं चरणहेउं ॥ Translated Sutra: जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, बँध, निर्जरा और मोक्ष – यह नौ तत्त्व को भी बुद्धिमान पुरुष श्रुतज्ञान द्वारा जान सकते हैं। इसलिए ज्ञान चारित्र का हेतु है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 78 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थगहियसारा बंधं मोक्खं च ते वियाणंता ।
नाऊण बंध-मोक्खं खवेंति पोराणयं कम्मं ॥ Translated Sutra: प्रवचन के परमार्थ को अच्छी तरह से ग्रहण करनेवाला पुरुष ही बँध और मोक्ष को अच्छी तरह जानकर वो ही पुरातन – कर्म का क्षय करते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 81 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] किं एत्तो लट्ठयरं अच्छेरतरं च सुंदरतरं च? ।
चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोएंति ॥ Translated Sutra: जगत के लोग चन्द्र की तरह बहुश्रुत – महात्मा पुरुष के मुख को बार – बार देखता है। उससे श्रेष्ठतर, आश्चर्यकारक और अति सुन्दर चीज कौन – सी है ? | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 82 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] चंदाओ नीइ जोण्हा बहुस्सुयमुहाओ नीइ जिनवयणं ।
जं सोऊण मनूसा तरंति संसारकंतारं ॥ Translated Sutra: चन्द्र से जिस तरह शीतल – ज्योत्सना नीकलती है, वो सब लोगों को खुश – आह्लादित करती है। उस तरह गीतार्थ ज्ञानीपुरुष के मुख से चन्दन जैसे शीतल जिनवचन नीकलते हैं, जो सुनकर मानव भवाटवी पार पा लेते हैं | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 101 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] भावेण अनन्नमणा जे जिनवयणं सया अनुचरंति ।
ते मरणम्मि उवग्गे न विसीयंती गुणसमिद्धा ॥ Translated Sutra: विशुद्ध भाव द्वारा एकाग्र चित्तवाले बनकर जो पुरुष जिनवचन का पालन करता है, वो गुण – समृद्ध मुनि मरण समय प्राप्त होने के बावजूद सहज भी विषाद – ग्लानि महसूस नहीं करते। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 104 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] मग्गंती परमसुहं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता ।
कोहं मानं मायं लोभं अरइं दुगुंछं च ॥ Translated Sutra: संयम में अप्रमत्त होकर जो पुरुष क्रोध, मान, माया, लोभ, अरति और दुगंछा का क्षय कर देता है। वो यकीनन परम सुख पाता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 106 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] लद्धूण वि सामण्णं पुरिसा जोगेहिं जे न हायंति ।
ते लद्धपोयसंजत्तिगा व पच्छा न सोयंति ॥ Translated Sutra: दुर्लभतर श्रमणधर्म पाकर जो पुरुष मन, वचन, काया के योग से उसकी विराधना नहीं करते, वो सागर में जहाज पानेवाले नाविक की तरह पीछे शोक नहीं पाते। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 107 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न हु सुलहं मानुस्सं, लद्धूण वि होइ दुल्लहा बोही ।
बोहीए वि य लंभे सामण्णं दुल्लहं होइ ॥ Translated Sutra: सबसे पहले तो मानव जन्म पाना दुर्लभ, मानव जन्म में बोधि प्राप्ति दुर्लभ है। बोधि मिले तो भी श्रमणत्व अति दुर्लभ है। साधुपन मिलने के बावजूद भी शास्त्र का रहस्यज्ञान पाना अति दुर्लभ है। ज्ञान का रहस्य समझने के बाद चारित्र की शुद्धि होना अति दुर्लभ है। इसलिए ही ज्ञानी पुरुष आलोचनादि के द्वारा चारित्र विशुद्धि | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 110 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] सम्मत्त-चरित्ताणं दोण्हं पि समागयाण संताणं ।
किं तत्थ गेण्हियव्वं पुरिसेणं बुद्धिमंतेणं? ॥ Translated Sutra: सम्यक्त्व और चारित्र दोनों गुण एक साथ प्राप्त होते हो तो बुद्धिशाली पुरुष को उसमें से कौन – सा गुण पहले करना चाहिए ? चारित्र बिना भी सम्यक्त्व होता है। जिस तरह कृष्ण और श्रेणिक महाराजा को अविरतिपन में भी सम्यक्त्व था। लेकिन जो चारित्रवान हैं, उन्हें सम्यक्त्व नियमा होते हैं। सूत्र – ११०, १११ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 117 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जह व अनियमियतुरगे अयाणमाणो नरो समारूढो ।
इच्छेज्ज पराणीयं अइगंतुं जो अकयजोगो ॥ Translated Sutra: जिस तरह बेकाबू घोड़े पर बैठा हुआ अनजान पुरुष शत्रु सैन्य को परास्त करना शायद ईच्छा रखे, लेकिन वो पुरुष और घोड़े पहले से शिक्षा और अभ्यास नहीं करने से संग्राम में शत्रु सैन्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं। सूत्र – ११७, ११८ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 125 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसहपरव्वसविउत्तो ।
अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ॥ Translated Sutra: इन्द्रिय सुख – शाता में व्याकुल घोर परीषह की पराधीनता से घिरा, तप आदि के अभ्यास रहित कायर पुरुष अंतिम आराधना के वक्त घबरा जाता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 128 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] उप्पीलिया सरासण गहियाउहचावनिच्छियमईओ ।
विंधइ चंदगवेज्झं झायंतो अप्पणो सिक्खं ॥ Translated Sutra: धनुष ग्रहण करके, उसके ऊपर खींचकर तीर चड़ाकर लक्ष्य के प्रति – स्थिर मतिवाला पुरुष अपनी शिक्षा के बारे में सोचता हुआ – राधा वेध को बाँध लेता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 133 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो दोन्नि जीवसहिया रुंभइ संसारबंधणा पावा ।
रागं दोसं च तहा सो मरणे होइ कयजोगो ॥ Translated Sutra: संसार का बंध करनेवाले, जीव सम्बन्धी राग और द्वेष दो पाप को जो पुरुष रोक ले – दूर करे वो मरण के वक्त यकीनन अप्रमत्त – समाधियुक्त बनता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 134 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो तिन्नि जीवसहिया दंडा मन-वयण-कायगुत्तीओ ।
नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥ Translated Sutra: जो पुरुष जीव के साथ तीन दंड़ का ज्ञानांकुश द्वारा गुप्ति रखने के द्वारा निग्रह करते हैं, वो मरण के वक्त कृतयोगी – यानि अप्रमत्त रहकर समाधि रख सकता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 135 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो चत्तारि कसाए घोरे ससरीरसंभवे निच्चं ।
जिनगरहिए निरुंभइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥ Translated Sutra: जिनेश्वर भगवंत से गर्हित, स्वशरीर में पैदा होनेवाले, भयानक क्रोध आदि कषाय को जो पुरुष हंमेशा निग्रह करता है, वो मरण में समतायोग को सिद्ध करता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 136 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो पंच इंदियाइं सन्नाणी विसयसंपलित्ताइं ।
नाणंकुसेण गिण्हइ सो मरणे होइ कयजोगो ॥ Translated Sutra: जो ज्ञानी पुरुष विषय में अति लिप्त इन्द्रिय के ज्ञान रूप अंकुश द्वारा निग्रह करता है, वो मरण के वक्त समाधि साधनेवाला बनता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 149 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] मिच्छत्तं वमिऊणं सम्मत्तम्मि धणियं अहीगारो ।
कायव्वो बुद्धिमया मरणसमुग्घायकालम्मि ॥ Translated Sutra: बुद्धिमान पुरुष को मरणसमुद्घात के अवसर पर मिथ्यात्व का वमन करके सम्यक्त्व को प्राप्त करने के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना चाहिए। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 150 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] हंदि! धणियं पि धीरा पच्छा मरणे उवट्ठिए संते ।
मरणसमुग्घाएणं अवसा निज्जंति मिच्छत्तं ॥ Translated Sutra: खेद की बात है कि महान् धीर पुरुष भी बलवान् मृत्यु के समय मरण समुद्घात की तीव्र वेदना से व्याकुल होकर मिथ्यात्व दशा पाते हैं। इसीलिए बुद्धिमान मुनि को गुरु के समीप दीक्षा के दिन से हुए सर्व पापों को याद करके उसकी आलोचना, निंदा, गर्हा करके पाप की शुद्धि अवश्य कर लेनी चाहिए। सूत्र – १५०, १५१ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 157 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] पंचसमिओ तिगुत्तो सुचिरं कालं मुनी विहरिऊणं ।
मरणे विराहयंतो धम्ममणाराहओ भणिओ ॥ Translated Sutra: जो मुनि पाँच समिति से सावध होकर, तीन गुप्ति से गुप्त होकर, चिरकाल तक विचरकर भी यदि मरण के समय धर्म की विराधना करे तो उसे ज्ञानी पुरुष ने अनाराधक – आराधना रहित कहा है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 165 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] दुक्खाण ते मनूसा पारं गच्छंति जे दढधिईया ।
पुव्वपुरिसाणुचिण्णं जिनवयणपहं न मुंचंति ॥ Translated Sutra: दृढ़ – बुद्धियुक्त जो मानव पूर्व – पुरुष ने आचरण किए जिनवचन के मार्ग को नहीं छोड़ते, वो सर्व दुःख का पार पा लेते हैं। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 166 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] मग्गंति परमसोक्खं ते पुरिसा जे खवंति उज्जुत्ता ।
कोहं मानं मायं लोभं तह राग-दोसं च ॥ Translated Sutra: जो उद्यमी पुरुष क्रोध, मान, माया, लोभ, राग और द्वेष का क्षय करता है, वो परम – शाश्वत सुख समान मोक्ष की यकीनन साधना करता है। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 167 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न वि माया, न वि य पिया, न बंधवा, न वि पियाइं मित्ताइं ।
पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: पुरुष के मरण वक्त माता, पिता, बन्धु या प्रिय मित्र कोई भी सहज मात्र भी आलम्बन समान नहीं बनता मतलब मरण से नहीं बचा सकते। | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Hindi | 168 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] न हिरण्ण-सुवण्णं वा दासी-दासं च जाण-जुग्गं च ।
पुरिसस्स मरणकाले न होंति आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: चाँदी, सोना, दास, दासी, रथ, बैलगाड़ी या पालखी आदि किसी भी बाह्य चीजें पुरुष को मरण के वक्त काम नहीं लगते, आलम्बन नहीं दे सकते। अश्वबल, हस्तीबल, सैनिकबल, धनुबल, रथबल आदि किसी बाह्य संरक्षक चीजें मानव को मरण से नहीं बचा सकते। सूत्र – १६८, १६९ | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 1 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जगमत्थयत्थयाणं विगसियवरनाण-दंसणधराणं ।
नाणुज्जोयगराणं लोगम्मि नमो जिनवराणं ॥ Translated Sutra: (મંગલ અને દ્વાર નિરૂપણ) ૧. લોક પુરુષના મસ્તક (સિદ્ધશિલા). ઉપર સદા બિરાજમાન વિકસિત – પૂર્ણ, શ્રેષ્ઠ જ્ઞાન અને દર્શન ગુણના ધારક એવા શ્રી સિદ્ધ ભગવંતો અને લોકમાં જ્ઞાનનો ઉદ્યોત કરનારા શ્રી અરિહંત પરમાત્માને નમસ્કાર થાઓ. ૨. આ પ્રકરણ મોક્ષમાર્ગના દર્શક શાસ્ત્રો – જિનાગમોના સારભૂત અને મહાન ગંભીર અર્થવાળું છે. તેને | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 4 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] जो परिभवइ मनूसो आयरियं, जत्थ सिक्खए विज्जं ।
तस्स गहिया वि विज्जा दुःक्खेण वि, अप्फला होइ ॥ Translated Sutra: (વિનયગુણ દ્વાર) ૪. જેમની પાસે વિદ્યા – શિક્ષા મેળવે છે, તે આચાર્ય – ગુરુનો જે મનુષ્ય પરાભવ – તિરસ્કાર કરે છે, તેની વિદ્યા ગમે તેટલા કષ્ટે પ્રાપ્ત કરી હોય તો પણ નિષ્ફળ થાય છે. ૫. કર્મોની પ્રબળતાને લઈને જે જીવ ગુરુનો પરાભવ કરે છે, તે અક્કડ – અભિમાની અને વિનયહીન જીવ જગતમાં ક્યાંય યશ કે કીર્તિ પામી શકતો નથી. પરંતુ સર્વત્ર | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 100 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] ते धन्ना जे धम्मं चरिउं जिनदेसियं पयत्तेणं ।
गिहपासबंधणाओ उम्मुक्का सव्वभावेणं ॥ Translated Sutra: (ચારિત્રગુણ દ્વાર) ૧૦૦. જિનેશ્વર પરમાત્માએ કહેલા ધર્મનું પ્રયત્નપૂર્વક પાલન કરવા માટે જેઓ સર્વ પ્રકારે ગૃહપાશના બંધનથી સર્વથા મુક્ત થાય છે, તેઓ ધન્ય છે. ૧૦૧. વિશુદ્ધ ભાવ વડે એકાગ્ર ચિત્તવાળા બનીને જે પુરુષો જિનવચનનું પાલન કરે છે, તે ગુણ સમૃદ્ધ મુનિ મરણ સમય પ્રાપ્ત થવા છતાં સહેજ પણ વિષાદને અથવા ગ્લાનિને અનુભવતા | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 37 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] नीयावित्ति विनीयं ममत्तमं गुणवियाणयं सुयणं ।
आयरियमइवियाणिं सीसं कुसला पसंसंति ॥ Translated Sutra: (શિષ્ય દ્વાર) ૩૭. જે હંમેશા નમ્ર વૃત્તિવાળો, વિનીત, મદ રહિત, ગુણને જાણનારો, સજ્જન અને આચાર્ય ભગવંતના આશયને સમજનારો હોય છે, તે શિષ્યની પ્રશંસા પંડિત પુરુષો કરે છે. અર્થાત્ તેવો સાધુ સુશિષ્ય કહેવાય છે.. ૩૮. શીત, તાપ, વાયુ, ભૂખ, તરસ અને અરતિ પરીષહને સહન કરનાર, પૃથ્વીની જેમ સર્વ પ્રકારની પ્રતિકૂળતા – અનુકૂળતા વગેરેને | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 54 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] विनओ मोक्खद्दारं विनयं मा हू कयाइ छड्डेज्जा ।
अप्पसुओ वि हु पुरिसो विनएण खवेइ कम्माइं ॥ Translated Sutra: (વિનયનિગ્રહ દ્વાર) ૫૪. વિનય મોક્ષનું દ્વાર છે, વિનયને કદી મૂકવો નહીં, કારણ કે અલ્પશ્રુતનો અભ્યાસી પુરુષ પણ વિનય વડે સર્વે કર્મોને ખપાવી દે છે. ૫૫. જે પુરુષ વિનય વડે અવિનયને જીતી લે છે, શીલ – સદાચાર વડે નિઃશીલત્વ – દુરાચારને જીતી લે છે. અપાપ – ધર્મ વડે પાપને જીતી લે છે. તે ત્રણે લોકને જીતી લે છે. ૫૬. મુનિ શ્રુતજ્ઞાનમાં | |||||||||
Chandravedyak | Ardha-Magadhi | Gujarati | 72 | Gatha | Painna-07B | View Detail | |||
Mool Sutra: [गाथा] नाणी वि अवट्टंतो गुणेसु, दोसे य ते अवज्जिंतो ।
दोसाणं च न मुच्चइ तेसिं न वि ते गुणे लहइ ॥ Translated Sutra: (જ્ઞાનગુણ દ્વાર) ૭૨. જ્ઞાન વિનાનું એકલું ચારિત્ર ક્રિયા. અને ક્રિયા વિનાનું એકલું જ્ઞાન ભવતારક બનતા નથી. ક્રિયા સંપન્ન જ્ઞાની જ સંસાર સમુદ્રને તરી જાય છે. ૭૩. જ્ઞાની હોવા છતાં જે ક્ષમાદિ ગુણોમાં વર્તતો ન હોય, ક્રોધાદિ દોષોને છોડતો ન હોય, તો તે કદાપિ દોષોથી મુક્ત અને ગુણવાન બની શકે નહીં. ૭૪. અસંયમ અને અજ્ઞાન દોષથી |