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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 419 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा, संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे नो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं एगं समणजायं समुद्दिस्स तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा जाव भवनगिहाणि वा। महया पुढविकाय-समारंभेणं, महया आउकाय-समारंभेणं, महया तेउकाय-समारंभेणं, महया वाउकाय-समारंभेणं, महया वणस्सइकाय-समारंभेणं, महया तसकाय-समारंभेणं, महया संरंभेणं, महया समारंभेणं महया आरंभेणं, महया विरूवरूवेहिं पावकम्म-किच्चेहिं, तं जहा–छायणओ लेवनओ संथार-दुवार-पिहणओ। सीतोदए

Translated Sutra: इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में गृहपति, उनकी पत्नी, पुत्री, पुत्रवधू आदि कईं श्रद्धा – भक्ति से ओतप्रोत व्यक्ति हैं उन्होंने साधुओं के आचार – व्यवहार के सम्बन्ध में तो जाना – सूना नहीं है, किन्तु उनके प्रति श्रद्धा, प्रतीति और रुचि से प्रेरित होकर उन्होंने किसी एक ही प्रकार के निर्ग्रन्थ श्रमण वर्ग के उद्देश्य
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-२ Hindi 420 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहीणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति, तं जहा–गाहावई वा जाव कम्म-करीओ वा। तेसिं च णं आयार-गोयरे नो सुणिसंते भवइ। तं सद्दहमाणेहिं, तं पत्तियमाणेहिं, तं रोयमाणेहिं अप्पनो सअट्ठाए तत्थ-तत्थ अगारीहिं अगाराइं चेतिताइं भवंति, तं जहा–आएसणाणि वा जाव भवनगिहाणि वा। महया पुढविकाय-समारंभेणं महया आउकाय-समारंभेणं, महया तेउकाय-समारंभेणं, महया वाउकाय-समारंभेणं, महया वणस्सइकाय-समारंभेणं, महया तसकाय-समारंभेणं, महया संरंभेणं, महया समारंभेणं, महया आरंभेणं, महया विरूवरूवेहिं पावकम्म-किच्चेहिं, तं जहा–छायणओ लेवनओ संथार-दुवार-पिहणओ। सीतोदए वा परिट्ठवियपुव्वे

Translated Sutra: इस संसार में पूर्वादि दिशाओं में कतिपय गृहपति यावत्‌ नौकरानियाँ श्रद्धालु व्यक्ति हैं। वे साधुओं के आचार – व्यवहार के विषय में सून चूके हैं, वे साधुओं के प्रति श्रद्धा, प्रतीति और रुचि से प्रेरित भी हैं, किन्तु उन्होंने अपने निजी प्रयोजन के लिए यत्र – तत्र मकान बनवाए हैं, जैसे कि लोहकारशाला यावत्‌ भूमिगृह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 421 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सिय नो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिज्जे, णोय खलु सुद्धे इमेहिं पाहुडेहिं, तं जहा–छायणओ, लेवनओ, संथार-दुवार-पिहणओ, पिंडवाएसणाओ। से भिक्खू चरिया-रए, ठाण-रए, निसीहिया-रए, सेज्जा-संथार-पिंडवाएसणा-रए। संति भिक्खुणी एवमक्खाइनो उज्जुया णियाग-पडिवन्ना अमायं कुव्वमाणा वियाहिया। संतेगइया पाहुडिया उक्खित्तपुव्वा भवइ, एवं णिक्खित्तपुव्वा भवइ, परिभाइय-पुव्वा भवइ, परिभुत्त-पुव्वा भवइ, परिट्ठविय-पुव्वा भवइ, एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरेति? हंता भवइ।

Translated Sutra: वह प्रासुक, उंछ और एषणीय उपाश्रय सुलभ नहीं है। और न ही इन सावद्यकर्मों के कारण उपाश्रय शुद्ध मिलता है, जैसे कि कहीं साधु के निमित्त उपाश्रय का छप्पर छाने से या छत डालने से, कहीं उसे लीपने – पोतने से, कहीं संस्तारकभूमि सम करने से, कहीं उसे बन्द करने के लिए द्वार लगाने से, कहीं शय्यातर गृहस्थ द्वारा साधु के लिए आहार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 422 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–खुड्डियाओ, खुड्ड-दुवारियाओ, निइयाओ संनिरुद्धाओ भवंति। तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा, पुरा हत्थेण पच्छा पाएण तओ संजयामेव निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं–जे तत्थ समनाण वा, माहनाण वा, छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, ‘नालिया वा, चेलं वा’, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा–दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले–भिक्खू य राओ वा वियाले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा,

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो छोटा है, या छोटे द्वारों वाला है, तथा नीचा है, या नित्य जिसके द्वार बंध रहते हैं, तथा चरक आदि परिव्राजकों से भरा हुआ है। इस प्रकार के उपाश्रय में वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर नीकलता हुआ या भीतर प्रवेश करता हुआ पहले हाथ से टटोल ले, फिर पैर से संयम पूर्वक नीकले
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 423 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइ-कुलेसु वा, परियावसहेसु वा अणुवीइ उवस्सयं जाएज्जा, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्ठाए, ते उवस्सयं अणुण्णवेज्जा– कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णातं वसिस्सामो जाव आउसंतो, जाव आउसंतस्स उवस्सए, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव उवस्सयं गिण्हिस्सामो, तेण परं विहरिस्सामो।

Translated Sutra: वह साधु पथिकशालाओं, आरामगृहों, गृहपति के घरों, परिव्राजकों के मठों आदि को देख – जान कर और विचार करके कि यह उपाश्रय कैसा है ? इसका स्वामी कौन है ? फिर उपाश्रय की याचना करे। जैसे कि वहाँ पर या उस उपाश्रय का स्वामी है, समधिष्ठाता है, उससे आज्ञा माँगे और कहे – ‘आयुष्मन्‌ ! आपकी ईच्छानुसार जितने काल तक और जितना भाग आप
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 424 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा, तस्स पुव्वामेव नाम-गोयं जाणेज्जा। तओ पच्छा तस्स गिहे निमंतेमाणास्स अनिमंतेमाणास्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी जिस गृहस्थ के उपाश्रय में निवास करें, उसका नाम और गोत्र पहले से जान ले। उसके पश्चात्‌ उसके घर में निमंत्रित करने या न करने पर भी उसके घर या अशनादि चतुर्विध आहार अप्रासुक – अनैषणीय जानकर ग्रहण न करें।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 425 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–ससागारियं सागणियं सउदयं, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो गृहस्थों से संसक्त हो, अग्नि से युक्त हो, सचित्त जल से युक्त हो, तो उसमें प्राज्ञ साधु – साध्वी को निर्गमन – प्रवेश करना उचित नहीं है और न ही ऐसा उपाश्रय वाचना, यावत्‌ चिन्तन के लिए उपयुक्त है। ऐसे उपाश्रय में कायोत्सर्ग आदि कार्य न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 426 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–गाहावइ-कुलस्स मज्झंमज्झेणं गंतुं पंथं पडिबद्धं वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्मा-णुओगचिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जिसमें निवास के लिए गृहस्थ के घर में से होकर जाना पड़ता हो, अथवा जो उपाश्रय गृहस्थ के घर से प्रतिबद्ध है, वहाँ प्राज्ञ साधु का आना – जाना उचित नहीं है और न ही ऐसा उपाश्रय वाचनादि स्वाध्याय के लिए उपयुक्त है। ऐसे उपाश्रय में साधु स्थानादि कार्य न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 427 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा अन्नमन्नमक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुंभंति वा, उद्दवेंति वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए। सेवं नच्चा तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: यदि साधु या साध्वी ऐसे उपाश्रय को जाने कि इस उपाश्रय – बस्ती में गृह – स्वामी, उसकी पत्नी, पुत्र – पुत्रियाँ पुत्रवधूएं, दास – दासियाँ आदि परस्पर एक दूसरे को कोसती हैं – झिड़कती हैं, मारती – पीटती, यावत्‌ उपद्रव करती हैं, प्रज्ञावान साधु को इस प्रकार के उपाश्रय में न तो निर्गमन – प्रवेश ही करना योग्य है, और न ही वाचनादि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 428 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अन्नमन्न-स्स गायं तेल्लेण वा, घएण वा, नवनीएण वा, वसाए वा, अब्भंगे ति वा, मक्खे ति वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग चिंताए। तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसी-हियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी अगर जाने कि इस उपाश्रय में गृहस्थ, उसकी पत्नी, पुत्री यावत्‌ नौकरानियाँ एक – दूसरे के शरीर पर तेल, घी, नवनीत या वसा से मर्दन करती हैं या चुपड़ती हैं, तो प्राज्ञ साधु का वहाँ जाना – आना ठीक नहीं है और न ही वहाँ वाचनादि स्वाध्याय करना। साधु इस प्रकार के उपाश्रय में स्थानादि कार्य न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 429 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा, अन्नमन्नस्स गायं सिनाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा, आघंसंति वा, पघंसंति वा, उव्वलेंति वा, उव्वट्टेंति वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा, चेतेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, कि इस उपाश्रय में गृहस्वामी यावत्‌ नौकरानियाँ परस्पर एक दूसरे के शरीर को स्नान करने योग्य पानी से, कर्क से, लोघ्र से, वर्णद्रव्य से, चूर्ण से, पक्ष से मलती हैं, रगड़ती हैं, मैल उतारती हैं, उबटन करती हैं; वहाँ प्राज्ञ साधु का नीकलना या प्रवेश करना उचित नहीं है और न ही वह स्थान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 430 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अन्नमन्नस्स गायं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेंति वा, पधोवेंति वा, सिंचंति वा, सिणावेंति वा, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेहधम्मा- णुओग चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि जाने कि इस उपाश्रय में गृहस्वामी, यावत्‌ नौकरानियाँ परस्पर एक दूसरे के शरीर पर प्रासुक शीतल जल से या उष्ण जल से छींटे मारती हैं, धोती हैं, सींचती हैं, या स्नान कराती हैं, ऐसा स्थान प्राज्ञ के जाने – आने या स्वाध्याय के लिए उपयुक्त नहीं है। इस प्रकार के उपाश्रय में साधु स्थानादि क्रिया
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 431 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा निगिणा ठिआ, निगिणा उवल्लीणा मेहुणधम्मं विन्नवेति, रहस्सियं वा मंतं मंतेंति, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी ऐसे उपाश्रय को जाने, जिसकी बस्ती में गृहपति, उसकी पत्नी, पुत्र – पुत्रियाँ यावत्‌ नौकरा – नियाँ आदि नग्न खड़ी रहती हैं या नग्न बैठी रहती हैं, और नग्न होकर गुप्त रूप से मैथुन – धर्म विषयक परस्पर वार्तालाप करती हैं, अथवा किसी रहस्यमय अकार्य के सम्बन्ध में गुप्त – मंत्रणा करती हैं; तो वहाँ प्राज्ञ –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 432 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–आइण्णसंलेक्खं, नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग चिंताए, तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा।

Translated Sutra: वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने जो गृहस्थ स्त्री – पुरुषों आदि के चित्रों से सुसज्जित है, तो ऐसे उपाश्रय में प्राज्ञ साधु को निर्गमन – प्रवेश करना या वाचना आदि करना उचित नहीं है। इस प्रकार के उपाश्रय में साधु स्थानादि कार्य न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 433 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं एसित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–सअंडं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं-अफासुयं अनेसणिज्जं त्ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, गरुयं, तहप्पगारं संथारगं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं

Translated Sutra: कोई साधु या साध्वी संस्तारक की गवेषणा करना चाहे और वह जिस संस्तारक को जाने कि वह अण्डों से यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त है तो ऐसे संस्तारक को मिलने पर भी ग्रहण न करे। जिस संस्तारक को जाने कि वह अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से तो रहित है, किन्तु भारी है, वैसे संस्तारक को भी मिलने पर ग्रहण न करे। वह साधु या साध्वी,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 434 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणेज्जा, इमाहिं चउहिं पडिमाहिं संथारगं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय संथारगं जाएज्जा, तं जहा–इक्कडं वा, कढिणं वा, जंतुयं वा, परगं वा, मोरगं वा, तणं वा, कुसं वा, कुच्चगं वा, पिप्पलगं वा, पलालगं वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भगिनि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अन्नयरं संथारगं? तहप्पगारं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा।

Translated Sutra: इन दोषों के आयतनों को छोड़कर साधु इन चार प्रतिमाओं से संस्तारक की एषणा करना जान ले – पहली प्रतिमा यह है – साधु – साध्वी अपने संस्तरण के लिए आवश्यक और योग्य वस्तुओं का नामोल्लेख कर – कर के संस्तारक की याचना करे, जैसे इक्कड, कढिणक, जंतुक, परक, सभी प्रकार का तृण, कुश, कूर्चक, वर्वक नामक तृण विशेष, या पराल आदि। साधु पहले
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 435 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा दोच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए संथारगं जाएज्जा, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव आलोएज्जा–आउसो! त्ति वा भगिनि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अन्नयरं संथारगं? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाएज्जा परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा– दोच्चा पडिमा। अहावरा तच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा, ते तत्थ अहासमण्णागए, तं जहा–इक्कडे वा कढिणे वा, जंतुए वा, परगे वा, मोरगे वा, तणे

Translated Sutra: दूसरी प्रतिमा यह है साधु या साध्वी गृहस्थ के मकान में रखे हुए संस्तारक को देखकर उनकी याचना करे कि क्या तुम मुझे इन संस्तारकों में से किसी एक संस्तारक को दोगे ? इस प्रकार के निर्दोष एवं प्रासुक संस्तारक की स्वयं याचना करे, यदि दाता बिना याचना किए ही दे तो प्रासुक एवं एषणीय जानकर उसे ग्रहण करे। इसके अनन्तर तीसरी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 436 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा चउत्था पडिमा– से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहासंथडमेव संथारगं जाएज्जा, तं जहा–पुढविसिलं वा, कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव। तस्स लाभे संवसेज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा, णेसज्जिए वा विहरेज्जा–चउत्था पडिमा।

Translated Sutra: चौथी प्रतिमा यह है – वह साधु या साध्वी उपाश्रय में पहले से ही संस्तारक बिछा हुआ हो, जैसे कि वहाँ तृणशय्या, पथ्थर की शिला या लकड़ी का तख्त, तो उस संस्तारक की गृहस्वामी से याचना करे, उसके प्राप्त होने पर वह उस पर शयन आदि क्रिया कर सकता है। यदि वहाँ कोई भी संस्तारक बिछा हुआ न मिले तो वह उत्कटुक आसन तथा पद्मासन आदि आसनों
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 437 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं अन्नयरं पडिमं पडिवज्जमाणे नो एवं वएज्जा मिच्छा पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्मं पडिवन्ने। जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सव्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया, अन्नोन्नसमाहीए एवं च णं विहरंति।

Translated Sutra: इन चारों प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा को धारण करके विचरण करने वाला साधु, अन्य प्रतिमाधारी साधुओं की निन्दा या अवहेलना करता हुआ यों न कहे – ये सब साधु मिथ्या रूप से प्रतिमा धारण किये हुए हैं, मैं ही अकेला सम्यक्‌ रूप से प्रतिमा स्वीकार किए हुए हूँ। ये जो साधु भगवान इन चार प्रतिमाओं में से किसी एक को स्वीकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 438 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तिए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–सअंडं सपाणं सबीअं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं नो पच्चप्पिणेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि संस्तारक वापस लौटाना चाहे, उस समय यदि उस संस्तारक को अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से युक्त जाने तो इस प्रकार का संस्तारक (उस समय) वापस न लौटाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 439 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा संथारगं पच्चप्पिणित्तए। सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा–अप्पंडं अप्पपाणं अप्पबीअं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगं, तहप्पगारं संथारगं पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय, आयाविय-आयाविय, विणिद्धणिय-विणिद्धणिय तओ संजयामेव पच्चप्पिणेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि संस्तारक वापस सौंपना चाहे, उस समय उस संस्तारक को अण्डों यावत्‌ मकड़ी के जालों से रहित जाने तो, उस प्रकार के संस्तारक को बार – बार प्रतिलेखन तथा प्रमार्जन करके, सूर्य की धूप देकर एवं यतनापूर्वक झाड़कर गृहस्थ को संयत्नपूर्वक वापस सौंपे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 440 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा समाणे वा, वसमाणे वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे वा पुव्वामेव णं पण्णस्स उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेज्जा। केवली बूया आयाणमेवं–अपडिलेहियाए उच्चारपासवणभूमीए, भिक्खू वा भिक्खुणी वा राओ वा विआले वा उच्चारपासवणं परिट्ठवेमाणे पयलेज्ज वा पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा अन्नयरं वा कायंसि इंदिय-जायं लूसेज्ज वा पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीविआओ वव-रोवेज्ज वा। अह

Translated Sutra: जो साधु या साध्वी स्थिरवास कर रहा हो, या उपाश्रय में रहा हुआ हो, अथवा ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ आकर ठहरा हो, उस प्रज्ञावान, साधु को चाहिए कि वह पहले ही उसके परिपार्श्व में उच्चार – प्रस्रवण – विसर्जन भूमि को अच्छी तरह देख ले। केवली भगवान ने कहा है – यह अप्रतिलेखित उच्चार – प्रस्रवण – भूमि कर्मबन्ध का कारण है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 441 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा सेज्जा-संथारग-भूमिं पडिलेहित्तए, नन्नत्थ आयरिएण वा, उवज्झाएण वा, पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण वा, गनावच्छेइएण वा, बालेण वा, बुड्ढेण वा, सेहेण वा, गिलाणेण वा, आएसेण वा, अंतेण वा, मज्झेण वा, समेण वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा ‘तओ संजयामेव’ पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय-पमज्जिय बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी शय्या – संस्तारकभूमि की प्रतिलेखना करना चाहे, वह आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर, गणावच्छेदक, बालक, वृद्ध, शैक्ष, ग्लान एवं अतिथि साधु के द्वारा स्वीकृत भूमि को छोड़कर उपाश्रय के अन्दर, मध्य स्थान में या सम और विषम स्थान में, अथवा वातयुक्त और निर्वातस्थान में भूमि का बार – बार प्रतिलेखन
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श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 442 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुयं सेज्जा-संथारगं संथरेत्ता अभिकंखेज्जा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहित्तए से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए दुरुहमाणे, से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारगे दुरुहेज्जा, दुरुहेत्ता तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सएज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी अत्यन्त प्रासुक शय्या – संस्तारक बिछाकर उस शय्या – संस्तारक पर चढ़ना चाहे तो उस पर चढ़ने से पूर्व मस्तक सहित शरीर के ऊपरी भाग से लेकर पैरों तक भली – भाँति प्रमार्जन करके फिर यतनापूर्वक उस शय्यासंस्तारक पर आरूढ़ हो। उस अतिप्रासुक शय्यासंस्तारक पर आरूढ़ होकर यतनापूर्वक उस पर शयन करे।
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श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 443 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सयमाणे, नो अन्नमन्नस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा। से अणासायमाणे तओ संजयामेव बहु-फासुए सेज्जा-संथारए सएज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उस्सासमाणे वा, णीसासमाणे वा, कासमाणे वा, छीयमाणे वा, जंभायमाणे वा, उड्डुए वा, वायणिसग्गे वा करेमाणे, पुव्वामेव आसयं वा, पोसयं वा पाणिणा परिपिहित्ता तओ संजयामेव ऊससेज्ज वा, नीससेज्ज वा, कासेज्ज वा, छीएज्ज वा, जंभाएज्ज वा, उड्डुयं वा, वायनिसग्गं वा करेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी उस अतिप्रासुक शय्यासंस्तारक पर शयन करते हुए परस्पर एक दूसरे को, अपने हाथ से दूसरे के हाथ की, अपने पैरों से दूसरे के पैर की और अपने शरीर से दूसरे के शरीर को आशातना नहीं करना चाहिए। अपितु एक दूसरे की आशातना न करते हुए यतनापूर्वक सोना चाहिए। वह साधु या साध्वी उच्छ्‌वास या निश्वास लेत हुए, खाँसते
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श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-२ शय्यैषणा

उद्देशक-३ Hindi 444 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा– समा वेगया सेज्जा भवेज्जा, विसमा वेगया सेज्जा भवेज्जा, पवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिवाता वेगया सेज्जा भवेज्जा, ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-ससरक्खा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सदंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अप्प-दंस-मसगा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा, सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, निरुवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा–तहप्पगाराहिं सेज्जाहिं संविज्जमाणाहिं पग्गहिततरागं विहारं विह-रेज्जा, नो किंचिवि गिलाएज्जा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी को किसी समय सम शय्या मिले या विषम मिले, कभी हवादार निवास – स्थान प्राप्त हो या निर्वात हो, किसी दिन धूल से भरा उपाश्रय मिले या स्वच्छ मिले, कदाचित्‌ उपसर्गयुक्त शय्या मिले या उपसर्ग रहित मिले। इन सब प्रकार की शय्याओं के प्राप्त होने पर जैसी भी सम – विषम आदि शय्या मिली, उसमें समचित्त होकर
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श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 445 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अब्भुवगए खलु वासावासे अभिपवुट्ठे, बहवे पाणा अभिसंभूया, बहवे बीया अहुणुब्भिन्ना, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहु-ओसा बहु-उदया बहु-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, अणभिक्कंता पंथा, नो विण्णाया मग्गा, सेवं नच्चा नो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिएज्जा।

Translated Sutra: वर्षाकाल आ जाने पर वर्षा हो जाने से बहुत – से प्राणी उत्पन्न हो जाते हैं, बहुत – से बीज अंकुरित हो जाते हैं, मार्गों में बहुत – से प्राणी, बहुत – से बीज उत्पन्न हो जाते हैं, बहुत हरियाली हो जाती है, ओस और पानी बहुत स्थानों में भर जाते हैं, पाँच वर्ण की काई, लीलण – फूलण आदि हो जाती है, बहुत – से स्थानों में कीचड़ या पानी
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श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 446 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–गामं वा, नगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, दोणमुहं वा, आगरं वा, निगमं वा, आसमं वा, सन्निवेसं वा, रायहाणिं वा। इमंसि खलु गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा, सन्निवेसंसि वा, रायहाणिसि वा– नो महती विहारभूमी, नो महती वियारभूमी, नो सुलभे पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए, नो सुलभे फासुए उंछे अहेस-णिज्जे, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, अच्चाइण्णा वित्ती– नो पण्णस्स निक्खमण-पवेसाए, नो पण्णस्स वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेहधम्माणुओग-

Translated Sutra: वर्षावास करने वाले साधु या साध्वी को उस ग्राम, नगर, खेड़, कर्बट, मडम्ब, पट्टण, द्रोणमुख, आकर, निगम, आश्रम, सन्निवेश या राजधानी की स्थिति भलीभाँति जान लेनी चाहिए। जिस ग्राम, नगर यावत्‌ राजधानी में एकान्त में स्वाध्याय करने के लिए विशाल भूमि न हो, मलमूत्र त्याग के लिए योग्य विशाल भूमि न हो, पीठ, फलक, शय्या एवं संस्तारक
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 447 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह पुणेवं जाणेज्जा–चत्तारि मासा वासाणं वीइक्कंता, हेमंताण य पंच-दस-रायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहुबीया बहुहरिया बहु-ओसा बहु-उदया बहु-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, नो जत्थ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य। सेवं नच्चा नो गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–चत्तारि मासा वासाणं वीइक्कंता, हेमंताण य पंच-दस-रायकप्पे परिवुसिए, अंतरा से मग्गा अप्पंडा अप्पपाणा अप्पबीआ अप्पहरिया अप्पोसा अप्पुदया अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा संताणगा, बहवे जत्थ समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य। सेवं नच्चा तओ

Translated Sutra: साधु या साध्वी यह जाने कि वर्षाकाल व्यतीत हो चूका है, अतः वृष्टि न हो तो चातुर्मासिक काल समाप्त होते ही अन्यत्र विहार कर देना चाहिए। यदि कार्तिक मास में वृष्टि हो जाने से मार्ग आवागमन के योग्य न रहे तो हेमन्त ऋतु के पाँच या दस दिन व्यतीत हो जाने पर वहाँ से विहार करना चाहिए। यदि मार्ग बीच – बीच मे अंडे, बीज, हरियाली,
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श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 448 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरओ जुगमायं पेहमाणे, दट्ठूण तसे पाणे उद्भट्टु पायं रीएज्जा, साहट्टु पायं रीएज्जा, उक्खिप्प पायं रीएज्जा, तिरिच्छं वा कट्टु पायं रीएज्जा। सति परक्कमे संजतामेव परक्कमेज्जा, णोउज्जुयं गच्छेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाणाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा, उदए वा, मट्टिया वा अविद्धत्था। सति परक्कमे संजतामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी एक ग्राम से दूसरे ग्राम विहार करते हुए अपने सामने की युगमात्र भूमि को देखते हुए चले और मार्ग में त्रसजीवों को देखे तो पैर के अग्रभाग को उठाकर चले। यदि दोनों ओर जीव हों तो पैरों को सिकोड़ कर चले अथवा दोनों पैरों को तिरछे – टेढ़े रखकर चले। यदि कोई दूसरा साफ मार्ग हो, तो उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाए,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 449 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दस्सुगाय-तणाणि मिलक्खूणि अनारियाणि दुस्सन्नप्पाणि दुप्पण्णवणिज्जाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरि-भोईणि, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेवं–ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं ‘अच्छिंदेज्ज वा’, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं णोतहप्पगाराणि विरूवरूवाणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिले तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों का आचार समझाया जा सकता है, जिन्हें दुःख से, धर्मबोध देकर अनार्यकर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल में जागने वाले, कुसमय में खाने –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 450 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं– ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा– एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि

Translated Sutra: साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यह जाने कि ये अराजक प्रदेश है, या यहाँ केवल युवराज का शासन है, जो कि अभी राजा नहीं बना है, अथवा दो राजाओं का शासन है, या परस्पर शत्रु दो राजाओं का राज्याधिकार है, या धर्मादि – विरोधी राजा का शासन है, ऐसी स्थिति में विहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते, इस प्रकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 451 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से विहं सिया। सेज्जं पुण विहं जाणेज्जा–एगाहेण वा, दुयाहेण वा, तियाहेण वा, चउयाहेण वा, पंचाहेण वा पाउणेज्ज वा, नो पाउणेज्ज वा। तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं–अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा, पणएसु वा, बीएसु वा, हरिएसु वा, उदएसु वा, मट्टि-यासु वा अविद्धत्थाए। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारं विहं अणेगाह-गमणिज्जं, सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्जा

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि आगे लम्बा अटवी – मार्ग है। यदि उस अटवी के विषय में वह यह जाने कि यह एक, दो, तीन, चार, या पाँच दिनों में पार किया जा सकता है अथवा पार किया जा सकता है, तो विहार के योग्य अन्य मार्ग होते, उस अनेक दिनों में पार किये जा सकने वाले भयंकर अटवी – मार्ग से जाने का विचार न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 452 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से नावासंतारिमे उदए सिया। सेज्जं पुण नावं जाणेज्जा– अस्संजए भिक्खु-पडियाए किणेज्ज वा, पामिच्चेज्ज वा, नावाए वा नाव-परिणामं कट्टु थलाओ वा नावं जलंसि ओगाहेज्जा, जलाओ वा नावं थलंसि उक्कसेज्जा, पुण्णं वा नावं उस्सिंचेज्जा, सण्णं वा नाव उप्पीलावेज्जा। तहप्पगारं नावं उड्ढगामिणिं वा, अहेगामिणिं वा, तिरिय-गामिणिं वा, परं जोयणमेराए अद्धजोयणमेराए वा अप्पतरो वा भुज्जतरो वा नो दुरुहेज्ज गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुव्वामेव तिरिच्छ-संपातिमं नावं जाणेज्जा, जानेत्ता से त्तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि मार्ग में नौका द्वारा पार कर सकने योग्य जलमार्ग है; परन्तु यदि वह यह जाने कि नौका असंयत के निमित्त मूल्य देकर खरीद कर रहा है, या उधार ले रहा है, या नौका की अदला – बदली कर रहा है, या नाविक नौका को स्थल से जल में लाता है, अथवा जल से उसे स्थल में खींच ले जाता है, नौका
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-१ Hindi 453 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नावं दुरूहमाणे नो नावाए पुरओ दुरुहेज्जा, नो नावाए मग्गओ दुरुहेज्जा, नो नावाए मज्झतो दुरुहेज्जा, नो बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय, अंगुलिए उवदंसिय-उवदंसिय, ओणमिय-ओणमिय, उण्णमिय-उण्णमिय णिज्झाएज्जा। से णं परो नावा-गतो नावा-गयं वएज्जा–आउसंतो! समणा! एयं ता तुमं नावं उक्कसाहि वा, वोक्कसाहि वा, खिवाहि वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसाहि। नो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा। से णं परो नावागओ नावागयं वएज्जा– आउसंतो! समणा! नो संचाएसि तुमं नावं उक्कसित्तए वा, वोक्कसित्तए वा, खिवित्तए वा, रज्जुयाए वा गहाय आकसित्तए। आहर एतं नावाए रज्जूयं, सयं चेव णं

Translated Sutra: साधु या साध्वी नौका पर चढ़ते हुए न नौका के अगले भाग में बैठे, न पिछले भाग में बैठे और न मध्य भागमें। तथा नौका के बाजुओं को पकड़ – पकड़ कर या अंगुली से बता – बताकर या उसे ऊंची या नीची करके एकटक जल को न देखे। यदि नाविक नौका में चढ़े हुए साधु से कहे कि ‘‘आयुष्मन्‌ श्रमण ! तुम इस नौका को ऊपर की ओर खींचो, अथवा अमुक वस्तु को नौका
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 454 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं परो नावा-गओ नावा-गयं वदेज्जा–आउसंतो! समणा! एयं ता तुमं छत्तगं वा, मत्तगं वा, दंडगं वा, लट्ठियं वा, भिसियं वा, नालियं वा, चेलं वा, चिलिमिलिं वा, चम्मगं वा, चम्म-कोसगं वा, चम्म-छेयणगं वा गेण्हाहि, एयाणि तुमं विरूवरूवाणि सत्थ-जायाणि धारेहि, एयं ता तुमं दारगं वा ‘दारिगं वा’ पज्जेहि। नो से तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा।

Translated Sutra: नौका में बैठे हुए गृहस्थ आदि यदि नौकारूढ़ मुनि से यह कहे कि आयुष्मन्‌ श्रमण ! तुम जरा हमारे छत्र, भाजन, बर्तन, दण्ड, लाठी, योगासन, नलिका, वस्त्र, यवनिका, मृगचर्म, चमड़े की थैली, अथवा चर्म – छेदनक शस्त्र को तो पकड़ रखो; इन विविध शस्त्रों को तो धारण करो, अथवा इस बालक या बालिका को पानी पीला दो; तो वह साधु उसके उक्त वचन को सूनकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 455 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं परो नावा-गए नावा-गयं वदेज्जा–आउसंतो! एस णं समणे नावाए भंडभारिए भवइ। से णं बाहाए गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवह। एतप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म से य चीवरधारी सिया, खिप्पामेव चीवराणि उव्वेड्ढिज्ज वा, णिव्वेड्ढिज्ज वा, उप्फेसं वा करेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–अभिक्कंत-कूरकम्मा खलु बाला बाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा। से पुव्वामेव वएज्जा–आउसंतो! गाहावइ! मा मेत्तो बाहाए गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवह, सयं चेव णं अहं नावातो उदगंसि ओगाहिस्सामि। से णेवं वयंतं परो सहसा बलसा बाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा, तं नो सुमणे सिया, नो दुम्मणे सिया, नो उच्चावयं

Translated Sutra: यदि कोई नौकारूढ़ व्यक्ति नौका पर बैठे हुए किसी अन्य गृहस्थ से इस प्रकार कहे – ‘आयुष्मन्‌ गृहस्थ ! यह श्रमण जड़ वस्तुओं की तरह नौका पर केवल भारभूत है, अतः इसकी बाँहें पकड़कर नौका से बाहर जलमें फेंक दो।’ इस प्रकार की बात सूनकर और हृदय में धारण करके यदि वह मुनि वस्त्रधारी है तो शीघ्र ही फटे – पुराने वस्त्रों को खोलकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 456 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे नो हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं, आसाएज्जा। ‘से अणासायमाणे’ तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे नो उम्मग्ग-निमग्गियं करेज्जा। मामेयं उदगं कण्णेसु वा, अच्छीसु वा, नक्कंसि वा, मुहंसि वा परियावज्जेज्जा, तओ संजयामेव उदगंसि पवेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदगंसि पवमाणे दोब्बलियं पाउणेज्जा। खिप्पामेव उवहिं विगिंचेज्ज वा, विसोहेज्ज वा, नो चेव णं सातिज्जेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जा–पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए तओ संजयामेव उदउल्लेण वा, ससिणिद्धेण वा काएण उदगतीरे चिट्ठेज्जा। से भिक्खू वा

Translated Sutra: जलमें डूबते समय साधु – साध्वी अपने एक हाथ से दूसरे हाथ का, एक पैर से दूसरे पैर का, तथा शरीर के अन्य अंगोंपांगों का भी परस्पर स्पर्श न करे। वह परस्पर स्पर्श न करता हुआ इसी तरह यतनापूर्वक जलमें बहता चला जाए। साधु या साध्वी जल में बहते समय उन्मज्जन – निमज्जन भी न करे और न इस बात का विचार करे कि यह पानी मेरे कानों में,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 457 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो परेहिं सद्धिं परिजविय-परिजविय गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।

Translated Sutra: साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए गृहस्थों के साथ अधिक वार्तालाप करते न चलें, किन्तु ईर्या – समिति का यथाविधि पालन करते हुए विहार करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 458 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से जंघासंतारिमे उदए सिया। से पुव्वामेव ससीसोव-रियं कायं पादे य पमज्जेज्जा, पमज्जेत्ता सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, पच्चक्खाएत्ता एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा, तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघासंतारिमे उदगे अहारियं रीयमाणे, णो‘हत्थेण हत्थं’ पाएण पायं, काएण कायं, आसाएज्जा। ‘से अणासायमाणे’ तओ संजयामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा। से भिक्खु वा भिक्खुणी वा जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीयमाणे नो साय-वडियाए, नो परदाह-वडियाए, महइ-महालयंसि उदगंसि कायं

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में जंघा – प्रमाण जल पड़ता हो तो उसे पार करने के लिए वह पहले सिर सहित शरीर के ऊपरी भाग से लेकर पैर तक प्रमार्जन करे। इस प्रकार सिर से पैर तक का प्रमार्जन करके वह एक पैर को जल में और एक पैर को स्थल में रखकर यतनापूर्वक जल को, भगवान के द्वारा कथित ईर्यासमिति की विधि
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 459 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो मट्टियामएहिं पाएहिं हरियाणि छिंदिय-छिंदिय, विकुज्जिय-विकुज्जिय, विफालिय-विफालिय, उम्मग्गेणं हरिय-वहाए गच्छेज्जा। ‘जहेयं’ पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु’। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा। सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी गीली मिट्टी एवं कीचड़ से भरे हुए अपने पैरों से हरितकाय का बार – बार छेदन करके तथा हरे पत्तों को मोड़ – मोड़ कर या दबा कर एवं उन्हें चीर – चीर कर मसलता हुआ मिट्टी न उतारे और न हरितकाय की हिंसा करने के लिए उन्मार्ग में इस अभिप्राय से जाए कि ‘पैरों पर लगी हुई इस कीचड़ और गीली
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-२ Hindi 460 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा। तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जा–आउसंतो! समणा! केवइए एस गामे वा, नगरे वा, खेडे वा, कव्वडे वा, मडंबे वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा, आगरे वा, निगमे वा, आसमे वा, सन्निवेसे वा, रायहाणी वा? केवइया एत्थ आसा हत्थी गाम-पिंडोलगा मणुस्सा परिवसंति? से बहुभत्ते बहुउदए बहुजणे बहुजवसे? से अप्पभत्ते अप्पुदए अप्पजणे अप्पजवसे? ‘एयप्पगाराणि पसिणाणि पुट्ठो नो आइक्खेज्जा, एयप्पगाराणि पसिणाणि णोपुच्छेज्जा’। एवं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि।

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए पथिक मिले और वे साधु से पूछे ‘‘यह गाँव कितना बड़ा या कैसा है ? यावत्‌ यह राजधानी कैसी है ? यहाँ पर कितने घोड़े, हाथी तथा भिखारी हैं, कितने मनुष्य निवास करते हैं ? क्या इस गाँव यावत्‌ राजधानी में प्रचुर आहार, पानी, मनुष्य एवं धान्य हैं, अथवा थोड़े
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 461 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोर-णाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गल-पासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, नूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइय-कडं, थूभं वा चेइय-कडं, आएसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दब्भ-कम्मंताणि वा, वद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वन-कम्मंताणि वा, इंगाल-कम्मंताणि वा, कट्ठ-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणि वा, गिरि-कम्मंताणि वा, कंदर-कम्मंताणि

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी मार्ग में आने वाले उन्नत भू – भाग या टेकरे, खाइयाँ, नगर को चारों ओर से वेष्टित करने वाली नहरें, किले, नगर के मुख्य द्वार, अर्गला, अर्गलापाशक, गड्ढे, गुफाएं या भूगर्भ मार्ग तथा कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 462 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आयरिय-अवज्झाएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जमाणे नो आयरिय-उवज्झायस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कायं आसाएज्जा। से अणासायमाणे तओ संजयामेव आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा आयरिय-उवज्झाएहिं सद्धिं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा, ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा–आउसंतो! समणा! के तुब्भे? कओ वा एह? कहिं वा गच्छिहिह? जे तत्थ आयरिए वा उवज्झाए वा से भासेज्ज वा, वियागरेज्जा वा। आयरिय-उवज्झायस्स भासमाणस्स वा, वियागरेमाणस्स वा नो अंतराभासं करेज्जा, तओ संजयामेव आहारातिणिए दूइज्जेज्जा। से भिक्खू

Translated Sutra: आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु अपने हाथ से उनके हाथ का, पैर से उनके पैर का तथा अपने शरीर से उनके शरीर का स्पर्श न करे। उनकी आशातना न करता हुआ साधु ईर्यासमिति पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे। आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु को मार्ग में यदि सामने से
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 463 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा। ते णं पाडिपहिया एवं वदेज्जा– आउसंतो! समणा! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह, तं जहा– मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, पसुं वा, पक्खिं वा, सरी-सिवं वा, जलयरं वा? से आइक्खह, दंसेह। तं नो आइक्खेज्जा, नो दंसेज्जा, नो तेसिं तं परिण्णं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा नो जाणंति वएज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा। ते णं पाडिपहिया एवं वएज्जा–आउसंतो! समणा! अवियाइं एत्तो पडिपहे पासह–उदगपसूयाणि कंदाणि वा,

Translated Sutra: रत्नाधिक साधुओं के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु को मार्ग में यदि सामने से आते हुए कुछ प्रातिपथिक मिले और वे यों पूछे कि – ‘‘आप कौन हैं ? कहाँ से आए हैं ? और कहाँ जाएंगे ?’’ (ऐसा पूछने पर) जो उन साधुओं में सबसे रत्नाधिक वे उनको सामान्य या विशेष रूप से उत्तर देंगे। तब वह साधु बीच में न बोले। किन्तु मौन रहकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 464 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से गोणं वियालं पडिपहे पेहाए, महिसं वियालं पडिपहे पेहाए, एवं– मणुस्सं, आसं, हत्थिं, सीहं, वग्घं, विगं, दीवियं, अच्छं, तरच्छं, परिसरं, सियालं, विरालं, सुणयं, कोल-सुणयं, कोकंतियं, चित्ताचिल्लडं–वियालं पडिपहे पेहाए, नो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, नो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा, नो गहणं वा, वनं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, नो रुक्खंसि दुरुहेज्जा, नो महइमहालयंसि उदयंसि कायं विउसेज्जा, नो वाडं वा, सरणं वा, सेणं वा, सत्थं वा कंखेज्जा, अप्पुस्सुए अबहिलेस्से एगंतएणं अप्पाणं वियोसेज्ज समाहीए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में मदोन्मत्त साँड़, विषैला साँप, यावत्‌ चित्ते, आदि हिंसक पशुओं को सम्मुख – पथ से आते देखकर उनसे भयभीत होकर उन्मार्ग से नहीं जाना चाहिए, और न ही एक मार्ग से दूसरे मार्ग पर संक्रमण करना चाहिए, न तो गहन वन एवं दुर्गम स्थान में प्रवेश करना चाहिए, न ही वृक्ष पर चढ़ना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-३ इर्या

उद्देशक-३ Hindi 465 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा संपिंडिया गच्छेज्जा। ते णं आमोसगा एवं वदेज्जा–आउसंतो! समणा! ‘आहर एयं’ वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा–देहि, णिक्खिवाहि। तं नो देज्जा, नो णिक्खिवेज्जा, नो वंदिय-वंदिय जाएज्जा, नो अंजलिं कट्टु जाएज्जा, नो कलुण-पडियाए जाएज्जा, धम्मियाए जायणाए जाएज्जा, तुसिणीय-भावेण वा उवेहेज्जा। ते णं आमोसगा ‘सयं करणिज्जं’ ति कट्टु अक्कोसंति वा, बंधंति वा, रुंभंति वा, उद्दवंति वा। वत्थं वा, पायं वा, कंबलं वा, पायपुंछणं वा अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। तं नो गामसंसारियं कुज्जा, नो रायसंसारियं कुज्जा,

Translated Sutra: ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु के पास यदि मार्ग में चोर संगठित होकर आ जाएं और वे कहें कि ‘‘ये वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोंछन आदि लाओ, हमें दे दो, या यहाँ पर रख दो।’ इस प्रकार कहने पर साधु उन्हें वे न दे, और न नीकाल कर भूमि पर रखे। अगर वे बलपूर्वक लेने लगे तो उन्हें पुनः लेने के लिए उनकी स्तुति करके हाथ जोड़कर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 466 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाइं वइ-आयाराइं सोच्चा निसम्म इमाइं अणायाराइं अनायरियपुव्वाइं जाणेज्जा–जे कोहा वा वायं विउंजंति, जे माणा वा वायं विउंजंति, जे मायाए वा वायं विउंजंति, जे लोभा वा वायं विउंजंति, जाणओ वा फरुसं वयंति, अजाणओ वा फरुसं वयंति, सव्वमेयं सावज्जं वज्जेज्जा विवेगमायाए। धुवं चेयं जाणेज्जा, अधुवं चेयं जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा लभिय णोलभिय, भुंजिय णोभुंजिय, अदुवा आगए अदुवा णोआगए, अदुवा एइ अदुवा नो एइ, अदुवा एहिति अदुवा नो एहिति, एत्थवि आगए एत्थवि नो आगए, एत्थवि एइ एत्थवि नो एइ, एत्थवि एहिति एत्थवि नो एहिति। अणुवीइ निट्ठाभासी, समियाए

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी इन वचन (भाषा) के आचारों को सूनकर, हृदयंगम करके, पूर्व – मुनियों द्वारा अनाचरित भाषा – सम्बन्धी अनाचारों को जाने। जो क्रोध से वाणी का प्रयोग करते हैं, जो अभिमानपूर्वक, जो छल – कपट सहित, अथवा जो लोभ से प्रेरित होकर वाणी का प्रयोग करते हैं, जानबूझकर कठोर बोलते हैं, या अनजाने में कठोर वचन कह देते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 467 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा– पुव्वं भासा अभासा, भासिज्जमाणी भासा भासा, भासासमयविइक्कंता भासिया भासा अभासा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–जा य भासा सच्चा, जा य भासा मोसा, जा य भासा सच्चामोसा, जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं सावज्जं सकिरियं कक्कसं कडुयं निट्ठुरं फरुसं अण्हयकरिं छेयणकरिं भेयणकरिं परितावनकरिं उद्दवनकरिं भूतोवघाइयं अभिकंख ‘नो भासेज्जा’। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा–जा य भासा सच्चा सुहुमा, जा य भासा असच्चामोसा, तहप्पगारं भासं असावज्जं अकिरियं अकक्कसं अकडुयं अनिट्ठुरं अफरुसं अणण्हयकरिं अछेय-णकरिं

Translated Sutra: संयमशील साधु – साध्वी को भाषा के सम्बन्ध में यह भी जान लेना चाहिए कि बोलने से पूर्व भाषा अभाषा होती है, बोलते समय भाषा भाषा कहलाती है और बोलने के पश्चात्‌ बोली हुई भाषा अभाषा हो जाती है। जो भाषा सत्या है, जो भाषा मृषा है, जो भाषा सत्यामृषा है अथवा जो भाषा असत्यामृषा है, इन चारों भाषाओं में से (केवल सत्या और असत्यामृषा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-४ भाषाजात

उद्देशक-१ वचन विभक्ति Hindi 468 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वएज्जा–अमुगे ति वा, आउसो ति वा, आउसंतो ति वा, सावगे ति वा, उपासगे ति वा, धम्मिए ति वा, धम्मपिये ति वा–एयप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभूतोव-घाइयं अभिकंख भासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अपडिसुणेमाणी नो एवं वएज्जा–होले ति वा, गोले ति वा, वसुले ति वा, कुपक्खे ति वा, घडदासी ति वा, साणे ति वा, तेणे ति वा, चारिए ति वा, माई ति वा, मुसावाई ति वा, इच्चे-याइं तुमं एयाइं ते जणगा वा–एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव भूतोवघाइयं अभिकंख णोभासेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थियं आमंतेमाणे आमंतिए

Translated Sutra: साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमंत्रित कर रहे हों और आमंत्रित करने पर भी वह न सूने तो उसे इस प्रकार न कहे – अरे होल रे गोले ! या हे गोल ! अय वृषल ! हे कुपक्ष ! अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर अरे झूठे ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता – पिता हैं। साधु इस प्रकार की सावद्य, सक्रिय यावत्‌ जीवोपघातिनी भाषा न बोले। संयमशील
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