Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011770 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Translated Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Section : | 9. उत्तम क्षमा (अक्रोध) | Translated Section : | 9. उत्तम क्षमा (अक्रोध) |
Sutra Number : | 267 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | भगवती आराधना । १३६३; तुलना: योग शास्त्र। ४.१० | ||
Mool Sutra : | तथा रोषेण स्वयं, पूर्वमेव दह्यते हि कलकलेनैव। अन्यस्य पुनः दुक्खं, कुर्यात् रुष्टो च न कुर्यात् ।। | ||
Sutra Meaning : | तप्त लौहपिण्ड के समान क्रोधी मनुष्य पहले स्वयं सन्तप्त होता है। तदनन्तर वह दूसरे पुरुष को रुष्ट कर सकेगा या नहीं, यह कोई निश्चित नहीं। नियमपूर्वक किसीको दुखी करना उसके हाथ में नहीं है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Tatha roshena svayam, purvameva dahyate hi kalakalenaiva. Anyasya punah dukkham, kuryat rushto cha na kuryat\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tapta lauhapinda ke samana krodhi manushya pahale svayam santapta hota hai. Tadanantara vaha dusare purusha ko rushta kara sakega ya nahim, yaha koi nishchita nahim. Niyamapurvaka kisiko dukhi karana usake hatha mem nahim hai. |