Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011746 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Translated Chapter : |
11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग) |
Section : | 1. धर्मसूत्र | Translated Section : | 1. धर्मसूत्र |
Sutra Number : | 243 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | पदमनन्दि पंचविंशतिका । ६.६० | ||
Mool Sutra : | अन्तस्तत्त्व विशुद्धात्मा, बहिस्तत्त्वं दयांगिषु। द्वयोः सन्मीलने मोक्षस्तस्माद्द्वितीयमाश्रयेत् ।। | ||
Sutra Meaning : | अन्तस्तत्त्व रूप समतास्वभावी विशुद्धात्मा तो साध्य है और प्राणियों की दया आदि बहिस्तत्त्व उसके साधन हैं। दोनों के मिलने पर ही मोक्ष होता है। इसलिए अपरम भावी को धर्म के इन विविध अंगों का आश्रय अवश्य लेना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Antastattva vishuddhatma, bahistattvam dayamgishu. Dvayoh sanmilane mokshastasmaddvitiyamashrayet\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Antastattva rupa samatasvabhavi vishuddhatma to sadhya hai aura praniyom ki daya adi bahistattva usake sadhana haim. Donom ke milane para hi moksha hota hai. Isalie aparama bhavi ko dharma ke ina vividha amgom ka ashraya avashya lena chahie. |