Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011598 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग) |
Translated Chapter : |
5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग) |
Section : | 8. अध्यात्मज्ञान के लिंग | Translated Section : | 8. अध्यात्मज्ञान के लिंग |
Sutra Number : | 97 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | अध्यात्मसार । १५.४२; तुलना: देखो पिछली गाथा ९६। | ||
Mool Sutra : | विषमेऽपि समेक्षी यः, स ज्ञानी स च पण्डितः। जीवन्मुक्तः स्थिरं ब्रह्म, तथा चोक्तं परैरपि ।। | ||
Sutra Meaning : | विषम में भी जो सम देखता है, वही ज्ञानी और वही पण्डित है। वही ब्रह्म में स्थित जीवन्मुक्त है। (गीताकार ने भी ऐसा ही कहा है।।) | ||
Mool Sutra Transliteration : | Vishamepi samekshi yah, sa jnyani sa cha panditah. Jivanmuktah sthiram brahma, tatha choktam parairapi\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vishama mem bhi jo sama dekhata hai, vahi jnyani aura vahi pandita hai. Vahi brahma mem sthita jivanmukta hai. (gitakara ne bhi aisa hi kaha hai..) |