Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004437 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | २७. आवश्यकसूत्र | Translated Section : | २७. आवश्यकसूत्र |
Sutra Number : | 437 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | नियमसार 97 | ||
Mool Sutra : | निजभावं नापि मुञ्चति, परभावं नैव गृह्णाति कमपि। जानाति पश्यति सर्वं, सोऽहंं इति चिन्तयेद् ज्ञानी।।२१।। | ||
Sutra Meaning : | जो निज-भाव को नहीं छोड़ता और किसी भी पर-भाव को ग्रहण नहीं करता तथा जो सबका ज्ञाता-द्रष्टा है, वह (परमतत्त्व) `मैं' ही हूँ। आत्मध्यान में लीन ज्ञानी ऐसा चिन्तन करता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Nijabhavam napi munchati, parabhavam naiva grihnati kamapi. Janati pashyati sarvam, sohamm iti chintayed jnyani..21.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo nija-bhava ko nahim chhorata aura kisi bhi para-bhava ko grahana nahim karata tatha jo sabaka jnyata-drashta hai, vaha (paramatattva) `maim hi hum. Atmadhyana mem lina jnyani aisa chintana karata hai. |