Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2004208 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र | Translated Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र |
Sutra Number : | 208 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | पंचास्तिकाय 169 | ||
Mool Sutra : | धर्मादिश्रद्धानं, सम्यक्त्वं ज्ञानमङ्गपूर्वगतम्। चेष्टा तपसि चर्या, व्यवहारो मोक्षमार्ग इति।।१।। | ||
Sutra Meaning : | धर्म आदि (छह द्रव्य) तथा तत्त्वार्थ आदि का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। अंगों और पूर्वों का ज्ञान सम्यग्ज्ञान है। तप में प्रयत्नशीलता सम्यक्चारित्र है। यह व्यवहार मोक्षमार्ग है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Dharmadishraddhanam, samyaktvam jnyanamangapurvagatam. Cheshta tapasi charya, vyavaharo mokshamarga iti..1.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Dharma adi (chhaha dravya) tatha tattvartha adi ka shraddhana karana samyagdarshana hai. Amgom aura purvom ka jnyana samyagjnyana hai. Tapa mem prayatnashilata samyakcharitra hai. Yaha vyavahara mokshamarga hai. |