Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004146 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Translated Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Section : | ११. अपरिग्रहसूत्र | Translated Section : | ११. अपरिग्रहसूत्र |
Sutra Number : | 146 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | भगवतीआराधना 1162 | ||
Mool Sutra : | ग्रन्थत्यागः इन्द्रिय-निवारणे अंकुश इव हस्तिनः। नगरस्य खातिका इव च, इन्द्रियगुप्तिः असंगत्वम्।।७।। | ||
Sutra Meaning : | जैसे हाथी को वश में रखने के लिए अंकुश होता है और नगर की रक्षा के लिए खाई होती है, वैसे ही इन्द्रिय-निवारण के लिए परिग्रह का त्याग (कहा गया) है। असंगत्व (परिग्रह-त्याग) से इन्द्रियाँ वश में होती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Granthatyagah indriya-nivarane amkusha iva hastinah. Nagarasya khatika iva cha, indriyaguptih asamgatvam..7.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jaise hathi ko vasha mem rakhane ke lie amkusha hota hai aura nagara ki raksha ke lie khai hoti hai, vaise hi indriya-nivarana ke lie parigraha ka tyaga (kaha gaya) hai. Asamgatva (parigraha-tyaga) se indriyam vasha mem hoti hai. |