Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2000511 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | ३०. अनुप्रेक्षासूत्र | Translated Section : | ३०. अनुप्रेक्षासूत्र |
Sutra Number : | 511 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | मरणसमाधि 600 | ||
Mool Sutra : | धी संसारो जहियं, जुवाणओ परमरूवगव्वियओ। मरिऊण जायइ, किमी तत्थेव कलेवरे नियए।।७।। | ||
Sutra Meaning : | इस संसार को धिक्कार है, जहाँ परम रूप-गर्वित युवक मृत्यु के बाद अपने उसी त्यक्त (मृत) शरीर में कृमि के रूप में उत्पन्न हो जाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Dhi samsaro jahiyam, juvanao paramaruvagavviyao. Mariuna jayai, kimi tattheva kalevare niyae..7.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa samsara ko dhikkara hai, jaham parama rupa-garvita yuvaka mrityu ke bada apane usi tyakta (mrita) sharira mem krimi ke rupa mem utpanna ho jata hai. |