Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2000250 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १९. सम्यग्ज्ञानसूत्र | Translated Section : | १९. सम्यग्ज्ञानसूत्र |
Sutra Number : | 250 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार 201202 | ||
Mool Sutra : | परमाणुमित्तयं पि हु, रायादीणं तु विज्जदे जस्स। ण वि सो जाणदि अप्पाणयं तु सव्वागमधरो वि।।६।। | ||
Sutra Meaning : | जिस व्यक्ति में परमाणुभर भी रागादि भाव विद्यमान है, वह समस्त आगम का ज्ञाता होते हुए भी आत्मा को नहीं जानता। आत्मा को न जानने से अनात्मा को भी नहीं जानता। इस तरह जब वह जीव-अजीव तत्त्व को नहीं जानता, तब वह सम्यग्दृष्टि कैसे हो सकता है ? संदर्भ २५०-२५१ | ||
Mool Sutra Transliteration : | Paramanumittayam pi hu, rayadinam tu vijjade jassa. Na vi so janadi appanayam tu savvagamadharo vi..6.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jisa vyakti mem paramanubhara bhi ragadi bhava vidyamana hai, vaha samasta agama ka jnyata hote hue bhi atma ko nahim janata. Atma ko na janane se anatma ko bhi nahim janata. Isa taraha jaba vaha jiva-ajiva tattva ko nahim janata, taba vaha samyagdrishti kaise ho sakata hai\? Samdarbha 250-251 |