Sutra Navigation: Anuyogdwar ( अनुयोगद्वारासूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1024267 | ||
Scripture Name( English ): | Anuyogdwar | Translated Scripture Name : | अनुयोगद्वारासूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Translated Chapter : |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 267 | Category : | Chulika-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अनंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उसण्ह-सण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा? । अट्ठ उसण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे अट्ठ देवकुरु-उत्तरकुरु-गाणं मणुस्साणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हरिवास-रम्मगवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ हेमवय-हेरन्नवयाणं मणुस्साणं वालग्गा पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ पुव्वविदेह-अवरविदेहाणं मणुस्साणं वालग्गा भरहेरवयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे, अट्ठ भरहेरवयाणं मणुस्साणं वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमज्झे, अट्ठ जवमज्झा से एगे उस्सेहंगुले। एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाइं पादो, बारस अंगुलाइं विहत्थी, चउवीसं अंगुलाइं रयणी, अडयालीसं अंगुलाइं कुच्छी, छन्नउई अंगुलाइं से एगे दंडे इ वा धणू इ वा जुगे इ वा नालिया इ वा अक्खे इ वा मुसले इ वा, एएणं धणुप्पमाणेणं दो धणुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं। एएणं उस्सेहंगुलेणं किं पओयणं? एएणं उस्सेहंगुलेणं नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवाणं सरीरोगाहणाओ मविज्जंति। नेरइयाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंच धणुसयाइं। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं धणुसहस्सं। रयणप्पभापुढवीए नेरइयाणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भव धारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त धणूइं तिन्नि रयणीओ छच्च अंगुलाइं। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पन्नरस धणूइं दोन्नि रयणीओ बारस अंगुलाइं। एवं सव्वाणं दुविहा–भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दुगुणा दुगुणा। उत्तरवेउव्विया जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दुगुणा दुगुणा। एवं असुरकुमाराईणं जाव अनुत्तरविमाणवासीणं सगसगसरीरोगाहणा भाणियव्वा। से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सूईअंगुले पयरंगुले घणंगुले। अंगुलायया एगपएसिया सेढी सूईअंगुले। सूई सूईए गुणिया पयरंगुले। पयरं सूईए गुणितं घणंगुले। एएसि णं सूईअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा? सव्व-त्थोवे सूईअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंखेज्जगुणे। से तं उस्सेहंगुले। से किं तं पमाणंगुले? पमाणंगुले–एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठसोवन्निए कागणिरयणे छत्तले दुवालसंसिए अट्ठकन्निए अहिगरणिसंठाणसंठिए पन्नत्ते। तस्स णं एगमेगा कोडी उस्सेहंगुलविक्खंभा, तं समणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धंगुलं, तं सहस्सगुणियं पमाणंगुलं भवइ। एवं सव्वाणं दुविहा–भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दुगुणा दुगुणा। उत्तरवेउव्विया जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं दुगुणा दुगुणा। एवं असुरकुमाराईणं जाव अनुत्तरविमाणवासीणं सगसगसरीरोगाहणा भाणियव्वा। से समासओ तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–सूईअंगुले पयरंगुले घणंगुले। अंगुलायया एगपएसिया सेढी सूईअंगुले। सूई सूईए गुणिया पयरंगुले। पयरं सूईए गुणितं घणंगुले। एएसि णं सूईअंगुल-पयरंगुल-घणंगुलाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा? सव्वत्थोवे सूईअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे, घनंगुले असंखेज्जगुणे। से तं उस्सेहंगुले। एएणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाइं पादो, दो पाया विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी दो कुच्छीओ धणू, दो धणुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं। गोयमा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं धणपुहत्तं एत्थ संगहणिगाहाओ भवंति तं जहा– | ||
Sutra Meaning : | अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन – भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान् परमाणु कहते हैं। वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है। उस अनन्तान्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम से एक उत्श्र्लक्ष्णलक्ष्णिका, श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका, ऊर्ध्व – रेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्पन्न होता है। आठ उत्श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका की एक श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका होती है। आठ श्र्लक्ष्णश्र्लक्ष्णिका का एक ऊर्ध्वरेणु। आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु, आठ रथरेणुओं का एक देवकुरु – उत्तरकुरु के मनुष्यों का बालाग्र, आठ देवकुरु – उत्तरकुरु के मनुष्यों के बालाग्रों का एक हरिवर्ष – रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का बालाग्र होता है। आठ हरिवर्ष – रम्यक्वर्ष के मनुष्यों के बालाग्रों के बराबर हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालाग्रों के बराबर पूर्व महाविदेह और अपर महाविदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। आठ पूर्वविदेह – अपरविदेह के मनुष्यों के बालाग्रों के बराबर भरत – एरावत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। भरत और एरावत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालाग्रों की एक लिक्षा होती है। आठ लिक्षाओं की एक जूँ, आठ जुओं का एक यवमध्य और आठ यवमध्यों का एक उत्सेधांगुल होता है। इस अंगुलप्रमाण से छह अंगुल का एक पाद होता है। बारह अंगुल की एक वितस्ति, चौबीस अंगुल की एक रत्नि, अड़तालीस अंगुल की एक कुक्षि और छियानवै अंगुल का एक दंड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मूसल होता है। इस धनुषप्रमाण से दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। इस उत्सेधांगुल से क्या प्रयोजन है ? इस से नारकों, तिर्यंचों, मनुष्यों और देवों के शरीर की अवगाहना मापी जाती है। नारकों के शरीर की कितनी अवगाहना है ? गौतम ! दो प्रकार से है – भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें से भवधारणीय की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुषप्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट १००० धनुषप्रमाण है। रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार की है – भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात धनुष, तीन रत्नि तथा छह अंगुलप्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भागप्रमाण और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष, अढ़ाई रत्नि है। शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! उनकी अवगाहना दो प्रकार से है। भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। भवधारणीय अवगाहना तो जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष दो रत्नि और बारह अंगुल प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष और एक रत्नि है। बालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार से हैं। भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष तथा एक रत्नि प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ठ बासठ धनुष और दो रत्नि प्रमाण है। पंकप्रभा पृथ्वी में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रत्नि प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है। धूमप्रभा – पृथ्वी में भवधारणीय जघन्य (शरीरावगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है। उत्तर – वैक्रिया शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है। तमःप्रभा पृथ्वी में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष है। तमस्तमःपृथ्वी के नैरयिकों की शरीरावगाहना दो प्रकार की है – भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय रूप। उनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की है तथा उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट १००० धनुष प्रमाण है। भगवन् ! असुरकुमार देवों की कितनी शरीरावगाहना है ? दो प्रकार की है, भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। भव – धारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात रत्नि प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है। उत्तरवैक्रिय जघन्य अवगाहना के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है। असुरकुमारों की अवगाहना के अनुरूप ही स्तनितकुमारों पर्यन्त दोनों प्रकार की अवगाहना का प्रमाण जानना। पृथ्वीकायिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी कही है ? गौतम् ! जघन्य और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। इसी प्रकार सामान्य रूप से सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की और (विशेष रूप से) सूक्ष्म अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वी – कायिक जीवों की तथा सामान्यतः बादर पृथ्वीकायिकों एवं विशेषतः अपर्याप्त और पर्याप्त पृथ्वीकायिकों की यावत् पर्याप्त बादर वायुकायिक जीवों की शरीरावगाहना जानना। वनस्पतिकायिक जीवों की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट कुछ अधिक १००० योजन है। सामान्य रूप में सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और (विशेष रूप में) अपर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अधिक रूप से बादर वनस्पति – कायिक जीवों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक १००० योजन प्रमाण है। विशेष – अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट साधिक १००० योजन प्रमाण होती है द्वीन्द्रिय जीवों की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण है। अपर्याप्त की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त (द्वीन्द्रिय जीवों) की जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण है। त्रीन्द्रिय जीवों की अवगाहना का मान कितना है ? गौतम ! सामान्यतः त्रीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोस की है। अपर्याप्तक त्रीन्द्रिय जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट अवगाहना तीन गव्यूत प्रमाण है। चतुरिन्द्रिय जीवों की अवगाहना औघिक रूप से चतुरिन्द्रिय जीवों की जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार गव्यूत प्रमाण है। अपर्याप्त की जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र है। पर्याप्तकों की जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग एवं उत्कृष्टतः चार गव्यूत प्रमाण है तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण है। जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना इसी प्रकार है। संमूर्च्छिम जलचरतिर्यंचयोनिकों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना १००० योजन की जानना। अपर्याप्त संमूर्च्छिम जलचर – तिर्यंचयोनिकों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है। पर्याप्त संमूर्च्छिम जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंच – योनिकों की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट १००० योजन प्रमाण है। गर्भव्युत्क्रांतजलचरपंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों की अवगाहना जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्टतः योजनसहस्र की है। अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रांत – जलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्तक गर्भजजलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट १००० योजनप्रमाण है। चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना ? गौतम ! सामान्य रूप में जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट छह गव्यूति की है। संमूर्च्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना ? जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतिपृथक्त्व प्रमाण है। अपर्याप्त संमूर्च्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रिय तिर्यंचों की अवगाहना जघन्य एवं उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। पर्याप्त संमूर्च्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना है। जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतिपृथक्त्व है। गभूव्यूत्क्रान्तिक चतुष्पदस्थलचरपंचे – न्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना। जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट छह गव्यूति प्रमाण है। अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्तक गर्भज चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट छह गव्यूति प्रमाण है। खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है तथा सामान्य संमूर्च्छिम खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना संमूर्च्छिम जन्मवाले भुजपरिसर्प पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के तीन अवगाहना स्थानों के बराबर समझ लेना। गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रियतिर्यच – योनिक की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है। अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त गर्भज खेचरपंचे – न्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है। उक्त समग्र कथन की संग्राहक गाथाऍं इस प्रकार हैं – | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] anamtanam vavahariyaparamanupoggalanam samudaya-samiti-samagamenam sa ega usanha-sanhiya i va, sanhasanhiya i va, uddharenu i va, tasarenu i va, raharenu i va, valagge i va, likkha i va, juya i va, javamajjhe i va, amgule i va?. Attha usanhasanhiyao sa ega sanhasanhiya, attha sanhasanhiyao sa ega uddharenu, attha uddharenuo sa ega tasarenu, ega tasarenu, attha tasarenuo sa ega raharenu, attha raharenuo devakuru-uttarakuruganam manussanam se ege valagge attha devakuru-uttarakuru-ganam manussanam valagga harivasa-rammagavasanam manussanam se ege valagge, attha harivasa-rammagavasanam manussanam valagga hemavaya-herannavayanam manussanam se ege valagge, attha hemavaya-herannavayanam manussanam valagga puvvavideha-avaravidehanam manussanam se ege valagge, attha puvvavideha-avaravidehanam manussanam valagga bharaheravayanam manussanam se ege valagge, attha bharaheravayanam manussanam valagga sa ega likkha, attha likkhao sa ega juya, attha juyao se ege javamajjhe, attha javamajjha se ege ussehamgule. Eenam amgulappamanenam chha amgulaim pado, barasa amgulaim vihatthi, chauvisam amgulaim rayani, adayalisam amgulaim kuchchhi, chhannaui amgulaim se ege damde i va dhanu i va juge i va naliya i va akkhe i va musale i va, eenam dhanuppamanenam do dhanusahassaim gauyam, chattari gauyaim joyanam. Eenam ussehamgulenam kim paoyanam? Eenam ussehamgulenam neraiya-tirikkhajoniya-manussa-devanam sarirogahanao mavijjamti. Neraiyanam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam jasa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam pamcha dhanusayaim. Tattha nam jasa uttaraveuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam ukkosenam dhanusahassam. Rayanappabhapudhavie neraiyanam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–bhava dharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam jasa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satta dhanuim tinni rayanio chhachcha amgulaim. Tattha nam jasa uttaraveuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam pannarasa dhanuim donni rayanio barasa amgulaim. Evam savvanam duviha–bhavadharanijja jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam duguna duguna. Uttaraveuvviya jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam duguna duguna. Evam asurakumarainam java anuttaravimanavasinam sagasagasarirogahana bhaniyavva. Se samasao tivihe pannatte, tam jaha–suiamgule payaramgule ghanamgule. Amgulayaya egapaesiya sedhi suiamgule. Sui suie guniya payaramgule. Payaram suie gunitam ghanamgule. Eesi nam suiamgula-payaramgula-ghanamgulanam kayare kayarehimto appe va bahue va tulle va visesahie va? Savva-tthove suiamgule, payaramgule asamkhejjagune, ghanamgule asamkhejjagune. Se tam ussehamgule. Se kim tam pamanamgule? Pamanamgule–egamegassa nam ranno chauramtachakkavattissa atthasovannie kaganirayane chhattale duvalasamsie atthakannie ahigaranisamthanasamthie pannatte. Tassa nam egamega kodi ussehamgulavikkhambha, tam samanassa bhagavao mahavirassa addhamgulam, tam sahassaguniyam pamanamgulam bhavai. Evam savvanam duviha–bhavadharanijja jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam duguna duguna. Uttaraveuvviya jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam, ukkosenam duguna duguna. Evam asurakumarainam java anuttaravimanavasinam sagasagasarirogahana bhaniyavva. Se samasao tivihe pannatte, tam jaha–suiamgule payaramgule ghanamgule. Amgulayaya egapaesiya sedhi suiamgule. Sui suie guniya payaramgule. Payaram suie gunitam ghanamgule. Eesi nam suiamgula-payaramgula-ghanamgulanam kayare kayarehimto appe va bahue va tulle va visesahie va? Savvatthove suiamgule, payaramgule asamkhejjagune, ghanamgule asamkhejjagune. Se tam ussehamgule. Eenam amgulapamanenam chha amgulaim pado, do paya vihatthi, do vihatthio rayani, do rayanio kuchchhi do kuchchhio dhanu, do dhanusahassaim gauyam, chattari gauyaim joyanam. Goyama jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam ukkosenam dhanapuhattam ettha samgahanigahao bhavamti tam jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Atyanta tikshna shastra se bhi koi jisaka chhedana – bhedana karane mem samartha nahim hai, usako jnyanasiddha kevali bhagavan paramanu kahate haim. Vaha sarva pramanom ka adi pramana hai. Usa anantanta vyavaharika paramanuom ke samudayasamitisamagama se eka utshrlakshnalakshnika, shrlakshnashrlakshnika, urdhva – renu, trasarenu aura ratharenu utpanna hota hai. Atha utshrlakshnashrlakshnika ki eka shrlakshnashrlakshnika hoti hai. Atha shrlakshnashrlakshnika ka eka urdhvarenu. Atha urdhvarenuom ka eka trasarenu, atha trasarenuom ka eka ratharenu, atha ratharenuom ka eka devakuru – uttarakuru ke manushyom ka balagra, atha devakuru – uttarakuru ke manushyom ke balagrom ka eka harivarsha – ramyakvarsha ke manushyom ka balagra hota hai. Atha harivarsha – ramyakvarsha ke manushyom ke balagrom ke barabara haimavata aura hairanyavata kshetra ke manushyom ka eka balagra hota hai. Haimavata aura hairanyavata kshetra ke manushyom ke atha balagrom ke barabara purva mahavideha aura apara mahavideha ke manushyom ka eka balagra hota hai. Atha purvavideha – aparavideha ke manushyom ke balagrom ke barabara bharata – eravata kshetra ke manushyom ka eka balagra hota hai. Bharata aura eravata kshetra ke manushyom ke atha balagrom ki eka liksha hoti hai. Atha likshaom ki eka jum, atha juom ka eka yavamadhya aura atha yavamadhyom ka eka utsedhamgula hota hai. Isa amgulapramana se chhaha amgula ka eka pada hota hai. Baraha amgula ki eka vitasti, chaubisa amgula ki eka ratni, aratalisa amgula ki eka kukshi aura chhiyanavai amgula ka eka damda, dhanusha, yuga, nalika, aksha athava musala hota hai. Isa dhanushapramana se do hajara dhanusha ka eka gavyuta aura chara gavyuta ka eka yojana hota hai. Isa utsedhamgula se kya prayojana hai\? Isa se narakom, tiryamchom, manushyom aura devom ke sharira ki avagahana mapi jati hai. Narakom ke sharira ki kitani avagahana hai\? Gautama ! Do prakara se hai – bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Unamem se bhavadharaniya ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhagapramana aura utkrishta pamcha sau dhanushapramana hai. Uttaravaikriya sharira ki avagahana jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga evam utkrishta 1000 dhanushapramana hai. Ratnaprabha prithvi ke narakom ki shariravagahana do prakara ki hai – bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Bhavadharaniya shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta sata dhanusha, tina ratni tatha chhaha amgulapramana hai. Uttaravaikriya shariravagahana jaghanya amgula ke samkhyatavem bhagapramana aura utkrishta pandraha dhanusha, arhai ratni hai. Sharkaraprabha prithvi ke narakom ki shariravagahana kitani hai\? Gautama ! Unaki avagahana do prakara se hai. Bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Bhavadharaniya avagahana to jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga ki aura utkrishta pandraha dhanusha do ratni aura baraha amgula pramana hai. Uttaravaikriya avagahana jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishta ikatisa dhanusha aura eka ratni hai. Balukaprabha prithvi ke narakom ki shariravagahana do prakara se haim. Bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Bhavadharaniya shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta ikatisa dhanusha tatha eka ratni pramana hai. Uttaravaikriya shariravagahana jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishtha basatha dhanusha aura do ratni pramana hai. Pamkaprabha prithvi mem bhavadharaniya jaghanya avagahana amgula ka asamkhyatavam bhaga aura utkrishta basatha dhanusha aura do ratni pramana hai. Uttaravaikriya shariravagahana jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga evam utkrishta eka sau pachchisa dhanusha pramana hai. Dhumaprabha – prithvi mem bhavadharaniya jaghanya (shariravagahana) amgula ke asamkhyatavem bhaga tatha utkrishta eka sau pachchisa dhanusha pramana hai. Uttara – vaikriya shariravagahana jaghanyatah amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishta dhai sau dhanusha pramana hai. Tamahprabha prithvi mem bhavadharaniya sharira ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta dhai sau dhanusha pramana hai. Uttaravaikriya shariravagahana jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishta pamcha sau dhanusha hai. Tamastamahprithvi ke nairayikom ki shariravagahana do prakara ki hai – bhavadharaniya aura uttaravaikriya rupa. Unamem se bhavadharaniya sharira ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta pamcha sau dhanusha ki hai tatha uttaravaikriya sharira ki jaghanya amgula ke samkhyatavem bhaga aura utkrishta 1000 dhanusha pramana hai. Bhagavan ! Asurakumara devom ki kitani shariravagahana hai\? Do prakara ki hai, bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Bhava – dharaniya shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta sata ratni pramana hai. Uttaravaikriya jaghanya avagahana amgula ke samkhyatavem bhaga evam utkrishta eka lakha yojana pramana hai. Uttaravaikriya jaghanya avagahana ke samkhyatavem bhaga evam utkrishta eka lakha yojana pramana hai. Asurakumarom ki avagahana ke anurupa hi stanitakumarom paryanta donom prakara ki avagahana ka pramana janana. Prithvikayika jivom ki shariravagahana kitani kahi hai\? Gautam ! Jaghanya aura utkrishta bhi amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Isi prakara samanya rupa se sukshma prithvikayika jivom ki aura (vishesha rupa se) sukshma aparyapta aura paryapta prithvi – kayika jivom ki tatha samanyatah badara prithvikayikom evam visheshatah aparyapta aura paryapta prithvikayikom ki yavat paryapta badara vayukayika jivom ki shariravagahana janana. Vanaspatikayika jivom ki shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta kuchha adhika 1000 yojana hai. Samanya rupa mem sukshma vanaspatikayika aura (vishesha rupa mem) aparyapta tatha paryapta sukshma vanaspatikayika jivom ki jaghanya aura utkrishta avahana amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Adhika rupa se badara vanaspati – kayika jivom ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana aura utkrishta sadhika 1000 yojana pramana hai. Vishesha – aparyapta badara vanaspatikayika jivom ki jaghanya aura utkrishta avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Paryapta ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana aura utkrishta sadhika 1000 yojana pramana hoti hai Dvindriya jivom ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Dvindriya jivom ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta baraha yojana pramana hai. Aparyapta ki jaghanya aura utkrishta avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Paryapta (dvindriya jivom) ki jaghanya shariravagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta baraha yojana pramana hai. Trindriya jivom ki avagahana ka mana kitana hai\? Gautama ! Samanyatah trindriya jivom ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatave bhaga pramana hai aura utkrishta avagahana tina kosa ki hai. Aparyaptaka trindriya jivom ki jaghanya aura utkrishta avagahana amgula ke asamkhyatave bhaga pramana hai. Trindriya paryaptakom ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga ki aura utkrishta avagahana tina gavyuta pramana hai. Chaturindriya jivom ki avagahana aughika rupa se chaturindriya jivom ki jaghanya shariravagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta chara gavyuta pramana hai. Aparyapta ki jaghanya evam utkrishta avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga matra hai. Paryaptakom ki jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga evam utkrishtatah chara gavyuta pramana hai Tiryamcha pamchendriya jivom ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta 1000 yojana pramana hai. Jalacharapamchendriyatiryamchayonikom ki avagahana isi prakara hai. Sammurchchhima jalacharatiryamchayonikom ki jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta avagahana 1000 yojana ki janana. Aparyapta sammurchchhima jalachara – tiryamchayonikom ki jaghanya aura utkrishta avagahana bhi amgula ke asamkhyatavem bhaga hai. Paryapta sammurchchhima jalacharapamchendriyatiryamcha – yonikom ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta 1000 yojana pramana hai. Garbhavyutkramtajalacharapamchendriya – tiryamchayonikom ki avagahana jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishtatah yojanasahasra ki hai. Aparyapta garbhavyutkramta – jalacharapamchendriyatiryamchayonikom ki avagahana jaghanya aura utkrishta bhi amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Paryaptaka garbhajajalacharapamchendriyatiryamchayonikom ki shariravagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta 1000 yojanapramana hai. Chatushpadasthalacharapamchendriyatiryamchayonikom ki avagahana\? Gautama ! Samanya rupa mem jaghanya avagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga evam utkrishta chhaha gavyuti ki hai. Sammurchchhima chatushpadasthalacharapamchendriyatiryamchayonikom ki avagahana\? Jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta gavyutiprithaktva pramana hai. Aparyapta sammurchchhima chatushpadasthalacharapamchendriya tiryamchom ki avagahana jaghanya evam utkrishta amgula ke asamkhyatavem bhaga ki hai. Paryapta sammurchchhima chatushpadasthalacharapamchendriyatiryamchayonikom ki shariravagahana hai. Jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta gavyutiprithaktva hai. Gabhuvyutkrantika chatushpadasthalacharapamche – ndriyatiryamchayonikom ki avagahana. Jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta chhaha gavyuti pramana hai. Aparyapta garbhavyutkranta chatushpada sthalachara pamchendriyatiryamchayonikom ki shariravagahana jaghanya aura utkrishta bhi amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Paryaptaka garbhaja chatushpadasthalacharapamchendriyatiryamchayonikom ki shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana aura utkrishta chhaha gavyuti pramana hai. Khecharapamchendriyatiryamchayonikom ki shariravagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta dhanushaprithaktva pramana hai tatha samanya sammurchchhima khecharapamchendriya tiryamcha jivom ki jaghanya aura utkrishta shariravagahana sammurchchhima janmavale bhujaparisarpa pamchendriya tiryamchom ke tina avagahana sthanom ke barabara samajha lena. Garbhavyutkranta khecharapamchendriyatiryacha – yonika ki shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana aura utkrishta dhanushaprithaktva pramana hai. Aparyapta garbhavyutkranta khecharapamchendriyatiryamchayonikom ki avagahana jaghanya aura utkrishta amgula ke asamkhyatavem bhaga pramana hai. Paryapta garbhaja khecharapamche – ndriyatiryamchayonikom ki shariravagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta dhanushaprithaktva hai. Ukta samagra kathana ki samgrahaka gathaam isa prakara haim – |