Sutra Navigation: Pindniryukti ( पिंड – निर्युक्ति )

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Sr No : 1020644
Scripture Name( English ): Pindniryukti Translated Scripture Name : पिंड – निर्युक्ति
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

एषणा

Translated Chapter :

एषणा

Section : Translated Section :
Sutra Number : 644 Category : Mool-02B
Gatha or Sutra : Gatha Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [गाथा] पीसंती निप्पिट्ठे फासुं वा धुसुलणे असंसत्तं । कत्तणि असंखचुन्नं चुन्नं वा जा अचोक्खलिणी ॥
Sutra Meaning : सचित्त, अचित्त और मिश्र एक दूजे में मिलावट करके दिया जाए तो तीन चतुर्भंगी होती है। उन हरएक के पहले तीन भाँगा में न कल्पे। चौथे भाँगा में कोई कल्पे, कोई न कल्पे। इसमें भी निक्षिप्त की प्रकार कुल ४३२ भाँगा समझ लेना। चीज मिलावट करने में जो मिलावट करनी है और देने की चीज दोनों के मिलकर चार भाँगा होते हैं और सचित्त मिश्र, सचित्त अचित्त और मिश्र अचित्त पद से तीन चतुर्भंगी होती है। पहली चतुर्भंगी – सचित्त चीज में सचित्त चीज मिलाई मिश्र चीज में सचित्त चीज मिलाकर, सचित्त में मिश्र मिलाकर, मिश्र में मिश्र मिलाकर। दूसरी चतुर्भंगी – सचित्त चीज में सचित्त चीज मिलाकर, अचित्त चीज में सचित्त चीज मिलाकर, सचित्त चीज में अचित्त चीज मिलाकर अचित्त चीज में अचित्त चीज मिलाकर। तीसरी चतुर्भंगी – मिश्र चीज में मिश्र चीज मिलाकर अचित्त में मिश्र मिलाकर, मिश्र में अचित्त मिलाकर अचित्त चीज में अचित्त चीज मिलाकर। निक्षिप्त की प्रकार सचित्त पृथ्वीकायादि के ३६ भाँगा। सचित्त पृथ्वीकायादि में मिश्र पृथ्वीकायादि के ३६। मिश्र पृथ्वीकायादि में मिश्र पृथ्वीकायादि के ३६ भाँगा। कुल १४४ तीन चतुर्भंगी के कुल ४३२ भाँगा होते हैं। मिलाने में सूखा और आर्द्र हो। वो दोनों मिलाकर चतुर्भंगी बने और फिर उसमें थोड़ी और ज्यादा उसके सोलह भाँगा होती है। सूखी चीज में सूखी चीज मिलाना, सूखी चीज में आर्द्र चीज मिलाना, आर्द्र चीज में सूखी चीज मिलाना, सूखी चीज में सूखी चीज मिलाना यहाँ भी हलके भाजन में अचित्त – थोड़ा सूखे में सूखा या थोड़ा सूखे में थोड़ा आर्द्र या थोड़े आर्द्र में थोड़ा सूखा या थोड़ा आर्द्र में थोड़ा आर्द्र मिलाया जाए तो वो चीज साधु को लेना कल्पे। उसके अलावा लेना न कल्पे। सचित्त और मिश्र भाँगा की तो एक भी न कल्पे। और फिर भारी भाजन में मिलाया जाए तो भी न कल्पे। सूत्र – ६४४–६५०
Mool Sutra Transliteration : [gatha] pisamti nippitthe phasum va dhusulane asamsattam. Kattani asamkhachunnam chunnam va ja achokkhalini.
Sutra Meaning Transliteration : Sachitta, achitta aura mishra eka duje mem milavata karake diya jae to tina chaturbhamgi hoti hai. Una haraeka ke pahale tina bhamga mem na kalpe. Chauthe bhamga mem koi kalpe, koi na kalpe. Isamem bhi nikshipta ki prakara kula 432 bhamga samajha lena. Chija milavata karane mem jo milavata karani hai aura dene ki chija donom ke milakara chara bhamga hote haim aura sachitta mishra, sachitta achitta aura mishra achitta pada se tina chaturbhamgi hoti hai. Pahali chaturbhamgi – sachitta chija mem sachitta chija milai mishra chija mem sachitta chija milakara, sachitta mem mishra milakara, mishra mem mishra milakara. Dusari chaturbhamgi – sachitta chija mem sachitta chija milakara, achitta chija mem sachitta chija milakara, sachitta chija mem achitta chija milakara achitta chija mem achitta chija milakara. Tisari chaturbhamgi – mishra chija mem mishra chija milakara achitta mem mishra milakara, mishra mem achitta milakara achitta chija mem achitta chija milakara. Nikshipta ki prakara sachitta prithvikayadi ke 36 bhamga. Sachitta prithvikayadi mem mishra prithvikayadi ke 36. Mishra prithvikayadi mem mishra prithvikayadi ke 36 bhamga. Kula 144 tina chaturbhamgi ke kula 432 bhamga hote haim. Milane mem sukha aura ardra ho. Vo donom milakara chaturbhamgi bane aura phira usamem thori aura jyada usake solaha bhamga hoti hai. Sukhi chija mem sukhi chija milana, sukhi chija mem ardra chija milana, ardra chija mem sukhi chija milana, sukhi chija mem sukhi chija milana yaham bhi halake bhajana mem achitta – thora sukhe mem sukha ya thora sukhe mem thora ardra ya thore ardra mem thora sukha ya thora ardra mem thora ardra milaya jae to vo chija sadhu ko lena kalpe. Usake alava lena na kalpe. Sachitta aura mishra bhamga ki to eka bhi na kalpe. Aura phira bhari bhajana mem milaya jae to bhi na kalpe. Sutra – 644–650