Sutra Navigation: Pindniryukti ( पिंड – निर्युक्ति )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1020241 | ||
Scripture Name( English ): | Pindniryukti | Translated Scripture Name : | पिंड – निर्युक्ति |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
उद्गम् |
Translated Chapter : |
उद्गम् |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 241 | Category : | Mool-02B |
Gatha or Sutra : | Gatha | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [गाथा] ओहेन विभागेन य ओहे ठप्पं तु बारस विभागे । उद्दिट्ठ कडे कम्मे एक्केक्कि चउक्कओ भेओ ॥ | ||
Sutra Meaning : | औद्देशिक दोष दो प्रकार से हैं। १. ओघ से और २. विभाग से। ओघ से यानि सामान्य और विभाग से यानि अलग – अलग। ओघ औद्देशिक का बयान आगे आएगा, इसलिए यहाँ नहीं करते। विभाग औद्देशिक बारह प्रकार से है। वो १.उदिष्ट, २.कृत और ३.कर्म। हर एक के चार प्रकार यानि बारह प्रकार होते हैं। ओघ औद्देशिक – पूर्वभवमें कुछ भी दिए बिना इस भव में नहीं मिलता। इसलिए कुछ भिक्षा हम देंगे। इस बुद्धि से गृहस्थ कुछ चावल आदि ज्यादा डालकर जो आहारादि बनाए, उसे ओघऔद्देशिक कहते हैं। ओघ – यानि ‘इतना हमारा, इतना भिक्षुक का।’ ऐसा हिस्सा किए बिना आम तोर पर किसी भिक्षुक को देने की बुद्धि से तैयार किया गया अशन आदि ओघ औद्देशिक कहलाता है। हिस्सा – यानि विवाह ब्याह आदि अवसर पर बनाई हुई चीजें बची हो, उसमें से जो भिक्षुक को ध्यान में रखकर अलग बनाई हो वो विभाग औद्देशिक कहलाता है। उसके बारह भेद। इस प्रकार – उद्दिष्ट – अपने लिए ही बनाए गए आहार में से किसी भिक्षुक को देने के लिए कल्पना करे कि ‘इतना साधु को देंगे’ वह। कृत – अपने लिए बनाया हुआ, उसमें से उपभोग करके जो बचा हो वह। भिक्षुक को दान देने के लिए छकायादि का सारंग करे वहाँ उद्दिष्ट, कृत एवं कर्म प्रत्येक के चार चार भेद। उद्देश – किसी भी भिक्षुक को देने के लिए कल्पित। समुद्देश – धूर्त लोगों को देने के लिए कल्पित। आदेश – श्रमण को देने के लिए कल्पित। समादेश – निर्ग्रन्थ को देने के लिए कल्पित। उद्दिष्ट, उद्देशिक – छिन्न और अछिन्न। छिन्न – यानि हंमेशा किया गया यानि जो बचा हे उसमें से देने के लिए अलग नीकाला हो वो। अछिन्न – अलग न नीकाला हो लेकिन उसमें से भिक्षाचरों को देना ऐसा उद्देश रखा हो। छिन्न और अछिन्न दोनों में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ऐसे आठ भेद होते हैं। कृत उद्देशिक, छिन्न और अछिन्न दोनों में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ऐसे आठ भेद। कर्म उद्देशिक ऊपर के अनुसार आठ भेद। द्रव्य अछिन्न – बची हुई चीजें देना तय करे। क्षेत्रअछिन्न – घर के भीतर रहकर या बाहर रहकर देना। काल अछिन्न – जिस दिन बचा हो उसी दिन या कोई भी दिन देने का तय करे। भावअछिन्न – गृहनायक – घर के मालिक देनेवाले के घर की स्त्री आदि को बोले कि, तुम्हें पसंद हो तो दो वरना मत दो। द्रव्यछिन्न – कुछ चीज या इतनी चीजें देने का तय किया हो। क्षेत्रछिन्न – घर के भीतर से या बाहर से किसी भी एक स्थान पर ही देने का तय किया हो। काल छिन्न – कुछ समय से कुछ समय तक ही देने का तय किया हो वो। भावछिन्न – तुम चाहो उतना ही देना। ऐसा कहा हो वो। ओघ औद्देशिक का स्वरूप – अकाल पूरा हो जाने के बाद किसी गृहस्थ सोचे कि, ‘हम मुश्किल से जिन्दा रहे, तो रोज कितनी भिक्षा देंगे।’ पीछले भव में यदि न दिया होता तो इस भव में नहीं मिलता, यदि इस भव में नहीं देंगे तो अगले भव में भी नहीं मिलेगा। इसलिए अगले भव में मिले इसके लिए भिक्षुक आदि को भिक्षा आदि देकर शुभकर्म का उपार्जन करे। इस कारण से घर की मुखिया स्त्री आदि जितना पकाते हो उसमें धूतारे, गृहस्थ आदि आ जाए तो उन्हें देने के लिए चावल आदि ज्यादा पकाए। इस प्रकार रसोई पकाने से उनका ऐसा उद्देश नहीं होता कि, ‘इतना हमारा और इतना भिक्षुक का।’ विभाग रहित होने से इसे ओघ औद्देशिक कहते हैं। छद्मस्थ साधु को ‘यह आहारादि ओघ औद्देशिक के या शुद्ध आहारादि हैं’ उसका कैसे पता चले ? उपयोग रखा जाए तो छद्मस्थ को भी पता चल सके कि, ‘यह आहार ओघ औद्देशिक है या शुद्ध है।’ यदि भिक्षा देने के संकल्प पूर्वक ज्यादा पकाया हो तो प्रायः गृहस्थ देनेवाले की इस प्रकार की बोली, चेष्टा आदि हो। किसी साधु भिक्षा के लिए घर में प्रवेश करे तब घर का नायक अपनी पत्नी आदि के पास भिक्षा दिलाते हुए कहे या स्त्री बोले कि रोज की तय करने के अनुसार पाँच लोगों को भिक्षा दी गई है। या भिक्षा देते समय गिनती के लिए दीवार पर खड़ी या कोयले से लकीरे बनाई हो या बनाती है, या तो ‘यह एक को दिया।’ यह दूसरे को दिया रखा, उसमें से देना लेकिन इसमें से मत दे। या घर में प्रवेश करते ही साधु को सुनाई दे कि, ‘इस रसोई में से भिक्षाचर को देने के लिए इतनी चीजें अलग करो।’ इस प्रकार बोलते हुए सुनने से, दीवार पर की लकीरे आदि पर छद्मस्थ साधु – यह आहार ओघ औद्देशिक है।’ इत्यादि पता कर सके और ऐसी भिक्षा ग्रहण न करे। यहाँ वृद्ध सम्प्रदाय से इतना ध्यान में रखो कि – उद्देश अनुसार देने की भिक्षा देने के बाद या उद्देश अनुसार अलग नीकाल लिया हो उसके अलावा बाकी रही रसोई में से साधु को वहोराना कल्पे, क्योंकि वो शुद्ध है। साधु को गोचरी के समय कैसा उपयोग रखना चाहिए ? गोचरी के लिए गए साधु ने शब्द, रूप, रस आदि में मूर्च्छा आसक्ति नहीं करनी चाहिए। लेकिन उद्गम आदि दोष की शुद्धि के लिए तैयार रहना, गाय का बछड़ा जैसे अपने खाण पर लक्ष्य रखता है ऐसे साधु को आहार की शुद्धि पर लक्ष्य रखना चाहिए। उद्दिष्ट – द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव इन चारों में देने का तय किया हो वो न कल्पे, उसके अलावा कल्पे। कुछ लोगों को देना और कुछ को न देना इस प्रकार बँटवारा किया हो तो उसमें से कोई संकल्प में साधु आ जाए तो वो न कल्पे। साधु न आए तो कल्पे। ओघ औद्देशिक या विभाग औद्देशिक चीज में यदि गृहस्थ अपना संकल्प कर दे तो वो चीज साधु को कल्पे। लेकिन कर्म औद्देशिक में यावदर्थिक किसी भी भिक्षुओं को छोड़कर दूसरे प्रकार के कर्म औद्देशिक में अपना संकल्प कर देने के बाद भी साधु को सहज भी न खपे। आधाकर्म और औद्देशिक यह दो दोष एक जैसे दिखते हैं, तो फिर उसमें क्या फर्क ? जो पहले से साधु के लिए बनाया हो उसे आधाकर्मी कहते हैं और कर्म औद्देशिक में तो पहल पहले अपने लिए चीज बनाई है, लेकिन फिर साधु आदि को देने के लिए उसे पाक आदि का संस्कार करके फिर से बनाए उसे कर्म औद्देशिक कहते हैं। सूत्र – २४१–२७२ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [gatha] ohena vibhagena ya ohe thappam tu barasa vibhage. Uddittha kade kamme ekkekki chaukkao bheo. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Auddeshika dosha do prakara se haim. 1. Ogha se aura 2. Vibhaga se. Ogha se yani samanya aura vibhaga se yani alaga – alaga. Ogha auddeshika ka bayana age aega, isalie yaham nahim karate. Vibhaga auddeshika baraha prakara se hai. Vo 1.Udishta, 2.Krita aura 3.Karma. Hara eka ke chara prakara yani baraha prakara hote haim. Ogha auddeshika – purvabhavamem kuchha bhi die bina isa bhava mem nahim milata. Isalie kuchha bhiksha hama demge. Isa buddhi se grihastha kuchha chavala adi jyada dalakara jo aharadi banae, use oghaauddeshika kahate haim. Ogha – yani ‘itana hamara, itana bhikshuka ka.’ aisa hissa kie bina ama tora para kisi bhikshuka ko dene ki buddhi se taiyara kiya gaya ashana adi ogha auddeshika kahalata hai. Hissa – yani vivaha byaha adi avasara para banai hui chijem bachi ho, usamem se jo bhikshuka ko dhyana mem rakhakara alaga banai ho vo vibhaga auddeshika kahalata hai. Usake baraha bheda. Isa prakara – Uddishta – apane lie hi banae gae ahara mem se kisi bhikshuka ko dene ke lie kalpana kare ki ‘itana sadhu ko demge’ vaha. Krita – apane lie banaya hua, usamem se upabhoga karake jo bacha ho vaha. Bhikshuka ko dana dene ke lie chhakayadi ka saramga kare vaham uddishta, krita evam karma pratyeka ke chara chara bheda. Uddesha – kisi bhi bhikshuka ko dene ke lie kalpita. Samuddesha – dhurta logom ko dene ke lie kalpita. Adesha – shramana ko dene ke lie kalpita. Samadesha – nirgrantha ko dene ke lie kalpita. Uddishta, uddeshika – chhinna aura achhinna. Chhinna – yani hammesha kiya gaya yani jo bacha he usamem se dene ke lie alaga nikala ho vo. Achhinna – alaga na nikala ho lekina usamem se bhikshacharom ko dena aisa uddesha rakha ho. Chhinna aura achhinna donom mem dravya, kshetra, kala aura bhava aise atha bheda hote haim. Krita uddeshika, chhinna aura achhinna donom mem dravya, kshetra, kala aura bhava aise atha bheda. Karma uddeshika upara ke anusara atha bheda. Dravya achhinna – bachi hui chijem dena taya kare. Kshetraachhinna – ghara ke bhitara rahakara ya bahara rahakara dena. Kala achhinna – jisa dina bacha ho usi dina ya koi bhi dina dene ka taya kare. Bhavaachhinna – grihanayaka – ghara ke malika denevale ke ghara ki stri adi ko bole ki, tumhem pasamda ho to do varana mata do. Dravyachhinna – kuchha chija ya itani chijem dene ka taya kiya ho. Kshetrachhinna – ghara ke bhitara se ya bahara se kisi bhi eka sthana para hi dene ka taya kiya ho. Kala chhinna – kuchha samaya se kuchha samaya taka hi dene ka taya kiya ho vo. Bhavachhinna – tuma chaho utana hi dena. Aisa kaha ho vo. Ogha auddeshika ka svarupa – akala pura ho jane ke bada kisi grihastha soche ki, ‘hama mushkila se jinda rahe, to roja kitani bhiksha demge.’ pichhale bhava mem yadi na diya hota to isa bhava mem nahim milata, yadi isa bhava mem nahim demge to agale bhava mem bhi nahim milega. Isalie agale bhava mem mile isake lie bhikshuka adi ko bhiksha adi dekara shubhakarma ka uparjana kare. Isa karana se ghara ki mukhiya stri adi jitana pakate ho usamem dhutare, grihastha adi a jae to unhem dene ke lie chavala adi jyada pakae. Isa prakara rasoi pakane se unaka aisa uddesha nahim hota ki, ‘itana hamara aura itana bhikshuka ka.’ vibhaga rahita hone se ise ogha auddeshika kahate haim. Chhadmastha sadhu ko ‘yaha aharadi ogha auddeshika ke ya shuddha aharadi haim’ usaka kaise pata chale\? Upayoga rakha jae to chhadmastha ko bhi pata chala sake ki, ‘yaha ahara ogha auddeshika hai ya shuddha hai.’ yadi bhiksha dene ke samkalpa purvaka jyada pakaya ho to prayah grihastha denevale ki isa prakara ki boli, cheshta adi ho. Kisi sadhu bhiksha ke lie ghara mem pravesha kare taba ghara ka nayaka apani patni adi ke pasa bhiksha dilate hue kahe ya stri bole ki roja ki taya karane ke anusara pamcha logom ko bhiksha di gai hai. Ya bhiksha dete samaya ginati ke lie divara para khari ya koyale se lakire banai ho ya banati hai, ya to ‘yaha eka ko diya.’ yaha dusare ko diya rakha, usamem se dena lekina isamem se mata de. Ya ghara mem pravesha karate hi sadhu ko sunai de ki, ‘isa rasoi mem se bhikshachara ko dene ke lie itani chijem alaga karo.’ isa prakara bolate hue sunane se, divara para ki lakire adi para chhadmastha sadhu – yaha ahara ogha auddeshika hai.’ ityadi pata kara sake aura aisi bhiksha grahana na kare. Yaham vriddha sampradaya se itana dhyana mem rakho ki – uddesha anusara dene ki bhiksha dene ke bada ya uddesha anusara alaga nikala liya ho usake alava baki rahi rasoi mem se sadhu ko vahorana kalpe, kyomki vo shuddha hai. Sadhu ko gochari ke samaya kaisa upayoga rakhana chahie\? Gochari ke lie gae sadhu ne shabda, rupa, rasa adi mem murchchha asakti nahim karani chahie. Lekina udgama adi dosha ki shuddhi ke lie taiyara rahana, gaya ka bachhara jaise apane khana para lakshya rakhata hai aise sadhu ko ahara ki shuddhi para lakshya rakhana chahie. Uddishta – dravya, kshetra, kala, bhava ina charom mem dene ka taya kiya ho vo na kalpe, usake alava kalpe. Kuchha logom ko dena aura kuchha ko na dena isa prakara bamtavara kiya ho to usamem se koi samkalpa mem sadhu a jae to vo na kalpe. Sadhu na ae to kalpe. Ogha auddeshika ya vibhaga auddeshika chija mem yadi grihastha apana samkalpa kara de to vo chija sadhu ko kalpe. Lekina karma auddeshika mem yavadarthika kisi bhi bhikshuom ko chhorakara dusare prakara ke karma auddeshika mem apana samkalpa kara dene ke bada bhi sadhu ko sahaja bhi na khape. Adhakarma aura auddeshika yaha do dosha eka jaise dikhate haim, to phira usamem kya pharka\? Jo pahale se sadhu ke lie banaya ho use adhakarmi kahate haim aura karma auddeshika mem to pahala pahale apane lie chija banai hai, lekina phira sadhu adi ko dene ke lie use paka adi ka samskara karake phira se banae use karma auddeshika kahate haim. Sutra – 241–272 |