Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006142 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | वैमानिक उद्देशक-२ | Translated Section : | वैमानिक उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 342 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नेरइयाणं भंते! केवतिकालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं मनुस्सा। देवा जहा नेरइया। नेरइए णं भंते! नेरइयत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? जहा कायट्ठिती देवाणवि एवं चेव। तिरिक्खजोणिए णं भंते! तिरिक्खजोणियत्ताए कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालं। मनुस्से णं भंते! मनुस्सेति कालतो केवच्चिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडिपुहत्तमब्भहियाइं। नेरइयस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालं। तिरिक्खजोणियस्स णं भंते! केवतिकालं अंतरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं। मनुयदेवाणं वणस्सतिकालं। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितनी है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। तिर्यंचयोनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। मनुष्यों की भी यहीं है। देवों की स्थिति नैरयिकों के समान जानना। देव और नारक की जो स्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है। तिर्यंक की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। मनुष्य, मनुष्य के रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक हैं। नैरयिक, मनुष्य और देवों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। तिर्यंचयोनियों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सौ से नौ सौ सागरोपम का होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] neraiyanam bhamte! Kevatikalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim. Tirikkhajoniyanam puchchha. Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tinni paliovamaim. Evam manussa. Deva jaha neraiya. Neraie nam bhamte! Neraiyattae kalato kevachchiram hoti? Jaha kayatthiti devanavi evam cheva. Tirikkhajonie nam bhamte! Tirikkhajoniyattae kalato kevachchiram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalam. Manusse nam bhamte! Manusseti kalato kevachchiram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tinni paliovamaim puvvakodipuhattamabbhahiyaim. Neraiyassa nam bhamte! Kevatikalam amtaram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalam. Tirikkhajoniyassa nam bhamte! Kevatikalam amtaram hoti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam sagarovamasatapuhattam satiregam. Manuyadevanam vanassatikalam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Nairayikom ki sthiti kitani hai\? Gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha aura utkrishta temtisa sagaropama. Tiryamchayonika ki jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta tina palyopama ki hai. Manushyom ki bhi yahim hai. Devom ki sthiti nairayikom ke samana janana. Deva aura naraka ki jo sthiti hai, vahi unaki samchitthana hai. Tiryamka ki kayasthiti jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta vanaspatikala hai. Manushya, manushya ke rupa mem jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta purvakoti prithaktva adhika tina palyopama taka haim. Nairayika, manushya aura devom ka antara jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta vanaspatikala hai. Tiryamchayoniyom ka antara jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta kuchha adhika do sau se nau sau sagaropama ka hota hai. |