Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005867 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
त्रिविध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 67 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। नेरइयनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं सव्वेसिं ठिती भाणियव्वा जाव अधेसत्तमापुढविनेरइया। तिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। पुढविकाइयएगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। सव्वेसिं एगिंदियनपुंसगाणं ठिती भाणियव्वा। बेइंदियतेइंदियचउरिंदियनपुंसगाणं ठिती भाणियव्वा। पंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं जलयरतिरिक्खजोणियनपुंसगचउप्पदथलयरउरगपरिसप्प- भुयगपरिसप्पखहयरतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स सव्वेसिं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। मनुस्सनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। कम्मभूमगभरहेरवयपुव्वविदेहअवरविदेहमनुस्सनपुंसगस्सवि तहेव। अकम्मभूमगमनुस्सनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। साहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। एवं जाव अंतरदीवगाणं। नपुंसए णं भंते! नपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। नेरइयनपुंसए णं भंते! नेरइयनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। एवं पुढवीए ठिती भाणियव्वा। तिरिक्खजोणियनपुंसए णं भंते! तिरिक्खजोणियनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं एगिंदियनपुंसगस्स वणस्सतिकाइयस्सवि एवमेव। सेसाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्को-सेणं असंखेज्जं कालं– असंखेज्जाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोया। बेइंदियतेइंदियचउरिंदियनपुंसगाण य जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। पंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसए णं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहत्तं। एवं जलयरतिरिक्ख-चउप्पदथलचरउरपरिसप्पभुयपरिसप्पमहोरगाणवि। मनुस्सनपुंसगस्स णं भंते! मनुस्सनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिपुहत्तं। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। एवं कम्मभूमगभरहेरवयपुव्वविदेहअवरविदेहेसुवि भाणियव्वं। अकम्मभूमगमनुस्सनपुंसए णं भंते! अकम्मभूमगमनुस्सनपुंसएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ? गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं मुहुत्तपुहत्तं। साहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। एवं सव्वेसिं जाव अंतरदीवगाणं। नपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं। नेरइयनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। रयणप्पभापुढवीनेरइयनपुंसगस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो, एवं सव्वेसिं जाव अधेसत्तमा। तिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसयपुहत्तं सातिरेगं। एगिंदियतिरिक्खजोणियनपुंसगस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं पुढविआउतेउवाऊणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो। वणस्सतिकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं जाव असंखेज्जा लोया। बेइंदियादीणं जाव खहयराणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। मनुस्सनपुंसगस्स खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। धम्मचरणं पडुच्च जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढपोग्गलपरियट्टदेसूणं। एवं कम्म-भूमकस्सवि भरतेरवतस्स पुव्वविदेहअवरविदेहकस्सवि। अकम्मभूमकमनुस्सनपुंसगस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ? गोयमा! जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। संहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं जाव अंतरदीवगत्ति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! नपुंसक की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। भगवन् ! नैरयिक नपुंसक की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम। भगवन् ! तिर्यक्योनिक नपुंसक की ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी। भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। भन्ते! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष। सब एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति कहना। भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की कितनी स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी। इसी प्रकार जलचरतिर्यंच, चतुष्पदस्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचर तिर्यक्योनिक नपुंसक इन सबकी जघन्य से अन्तमुहूर्त्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटी स्थिति है। भगवन् ! मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितनी है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटी स्थिति। कर्मभूमिक भरत – एरवत, पूर्वविदेह – पश्चिमविदेह के मनुष्य नपुंसक की स्थिति भी इसी प्रकार कहना। भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त्त। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटी। इसी प्रकार अन्तर्द्वीपिक मनुष्य नपुंसकों तक की स्थिति कहना। भगवन् ! नपुंसक, नपुंसक के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल। नैरयिक नपुंसक जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट से तेंतीस सागरोपम तक। इस प्रकार सब नारकपृथ्वीयों की स्थिति कहना। तिर्यक्योनिक नपुंसक जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से वनस्पति काल, इस प्रकार एकेन्द्रिय नपुंसक और वनस्पतिकायिक नपुंसक में जानना। शेष पृथ्वीकाय आदि जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक रह सकते हैं। इस असंख्यातकाल में असंख्येय उत्सर्पिणियाँ और अवसर्पिणियाँ बीत जाती है और क्षेत्र की अपेक्षा असंख्यात लोक के आकाश प्रदेशों का उपहार हो सकता है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय नपुंसक जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से संख्यातकाल तक रह सकते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से पूर्वकोटी पृथक्त्व पर्यन्त रह सकते हैं। इसी प्रकार जलचर तिर्यक्योनिक, चतुष्पद स्थलचर उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प और महोरग नपुंसकों के विषय में भी समझना। मनुष्य नपुंसक क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटी पृथक्त्व। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटी। इसी प्रकार कर्मभूमि के भरत – ऐरवत, पूर्वविदेह – पश्चिमविदेह नपुंसकों में भी कहना। अकर्मभूमिक मनुष्य – नपुंसक के विषय में पृच्छा ? गौतम ! जन्म की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट मुहूर्त्तपृथक्त्व संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटी तक उसी रूप में रह सकते हैं। भगवन् ! नपुंसक का कितने काल का अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से सागरोपम शतपृथक्त्व से कुछ अधिक। नैरयिक नपुंसक का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से वनस्पति काल। रत्नप्रभापृथ्वी यावत् अधःसप्तमी नैरयिक नपुंसक का जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल। तिर्यक्योनि नपुंसक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपम शतपृथक्त्व। एकेन्द्रिय तिर्यक्योनि नपुंसक का जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम। पृथ्वी – अप् – तेजस्काय और वायुकाय का जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का अन्तर है। वनस्पतिकायिकों का जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से असंख्येयकाल – यावत् असंख्येयलोक। शेष रहे द्वीन्द्रियादि यावत् खेचर नपुंसकों का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। मनुष्य नपुंसक का अन्तर क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अर्धपुद्गलपरावर्त। इसी प्रकार कर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक का, भरत – एरवत – पूर्वविदेह – पश्चिमविदेह मनुष्य नपुंसक का भी कहना। अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक का अन्तर ? जन्म को लेकर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल। संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल, इस प्रकार अन्तर्द्वीपिक नपुंसक तक कहना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] napumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tettisam sagarovamaim. Neraiyanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim savvesim thiti bhaniyavva java adhesattamapudhavineraiya. Tirikkhajoniyanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Egimdiyatirikkhajoniyanapumsagassa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam bavisam vasasahassaim. Pudhavikaiyaegimdiyatirikkhajoniyanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam thiti pannatta? Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam bavisam vasasahassaim. Savvesim egimdiyanapumsaganam thiti bhaniyavva. Beimdiyateimdiyachaurimdiyanapumsaganam thiti bhaniyavva. Pamchimdiyatirikkhajoniyanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Evam jalayaratirikkhajoniyanapumsagachauppadathalayarauragaparisappa- bhuyagaparisappakhahayaratirikkhajoniyanapumsagassa savvesim jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Manussanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Khettam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Dhammacharanam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam desuna puvvakodi. Kammabhumagabharaheravayapuvvavidehaavaravidehamanussanapumsagassavi taheva. Akammabhumagamanussanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Jammanam paduchcha jahannenam amto muhuttam, ukkosenam amtomuhuttam. Saharanam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam desuna puvvakodi. Evam java amtaradivaganam. Napumsae nam bhamte! Napumsaetti kalato kevachchiram hoi? Goyama! Jahannenam ekkam samayam ukkosenam vanassaikalo. Neraiyanapumsae nam bhamte! Neraiyanapumsaetti kalato kevachchiram hoi? Goyama! Jahannenam dasa vasasahassaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim. Evam pudhavie thiti bhaniyavva. Tirikkhajoniyanapumsae nam bhamte! Tirikkhajoniyanapumsaetti kalato kevachchiram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Evam egimdiyanapumsagassa vanassatikaiyassavi evameva. Sesanam jahannenam amtomuhuttam, ukko-senam asamkhejjam kalam– asamkhejjao ussappiniosappinio kalato, khettao asamkhejja loya. Beimdiyateimdiyachaurimdiyanapumsagana ya jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam samkhejjam kalam. Pamchimdiyatirikkhajoniyanapumsae nam bhamte! Pamchimdiyatirikkhajoniyanapumsaetti kalato kevachchiram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodipuhattam. Evam jalayaratirikkha-chauppadathalacharauraparisappabhuyaparisappamahoraganavi. Manussanapumsagassa nam bhamte! Manussanapumsaetti kalato kevachchiram hoi? Khettam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodipuhattam. Dhammacharanam paduchcha jahannenam ekkam samayam, ukkosenam desuna puvvakodi. Evam kammabhumagabharaheravayapuvvavidehaavaravidehesuvi bhaniyavvam. Akammabhumagamanussanapumsae nam bhamte! Akammabhumagamanussanapumsaetti kalato kevachchiram hoi? Goyama! Jammanam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam muhuttapuhattam. Saharanam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam desuna puvvakodi. Evam savvesim java amtaradivaganam. Napumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam amtaram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam sagarovamasayapuhattam satiregam. Neraiyanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam amtaram hoi? Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassaikalo. Rayanappabhapudhavineraiyanapumsagassa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassaikalo, evam savvesim java adhesattama. Tirikkhajoniyanapumsagassa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam sagarovamasayapuhattam satiregam. Egimdiyatirikkhajoniyanapumsagassa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam do sagarovamasahassaim samkhejjavasamabbhahiyaim Pudhaviauteuvaunam jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassaikalo. Vanassatikaiyanam jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam asamkhejjam kalam java asamkhejja loya. Beimdiyadinam java khahayaranam jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Manussanapumsagassa khettam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Dhammacharanam paduchcha jahannenam egam samayam, ukkosenam anamtam kalam java avaddhapoggalapariyattadesunam. Evam kamma-bhumakassavi bharateravatassa puvvavidehaavaravidehakassavi. Akammabhumakamanussanapumsagassa nam bhamte! Kevatiyam kalam amtaram hoi? Goyama! Jammanam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Samharanam paduchcha jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Evam java amtaradivagatti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Napumsaka ki kitane kala ki sthiti hai\? Gautama ! Jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta temtisa sagaropama. Bhagavan ! Nairayika napumsaka ki kitani sthiti hai\? Gautama ! Jaghanya se dasa hajara varsha aura utkrishta temtisa sagaropama. Bhagavan ! Tiryakyonika napumsaka ki\? Gautama ! Jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta purvakoti. Bhagavan ! Ekendriya tiryakyonika napumsaka ki\? Gautama ! Jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta baisa hajara varsha. Bhante! Prithvikayika ekendriya tiryakyonika napumsaka\? Gautama ! Jaghanya se antamuhurtta aura utkrishta baisa hajara varsha. Saba ekendriya, dvindriya, trindriya, chaturindriya napumsakom ki sthiti kahana. Bhagavan ! Pamchendriya tiryakyonika napumsaka ki kitani sthiti hai\? Gautama ! Jaghanya se antamuhurtta aura utkrishta purvakoti. Isi prakara jalacharatiryamcha, chatushpadasthalachara, uraparisarpa, bhujaparisarpa, khechara tiryakyonika napumsaka ina sabaki jaghanya se antamuhurtta, utkrishta purvakoti sthiti hai. Bhagavan ! Manushya napumsaka ki sthiti kitani hai\? Gautama ! Kshetra ki apeksha jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta purvakoti. Dharmacharana ki apeksha jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta deshona purvakoti sthiti. Karmabhumika bharata – eravata, purvavideha – pashchimavideha ke manushya napumsaka ki sthiti bhi isi prakara kahana. Bhagavan ! Akarmabhumika manushya napumsaka ki\? Gautama ! Janma ki apeksha jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta se bhi antarmuhurtta. Samharana ki apeksha jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta se deshona purvakoti. Isi prakara antardvipika manushya napumsakom taka ki sthiti kahana. Bhagavan ! Napumsaka, napumsaka ke rupa mem kitane kala taka rahata hai\? Gautama ! Jaghanya se eka samaya aura utkrishta se vanaspatikala. Nairayika napumsaka jaghanya se dasa hajara varsha aura utkrishta se temtisa sagaropama taka. Isa prakara saba narakaprithviyom ki sthiti kahana. Tiryakyonika napumsaka jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se vanaspati kala, isa prakara ekendriya napumsaka aura vanaspatikayika napumsaka mem janana. Shesha prithvikaya adi jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se asamkhyatakala taka raha sakate haim. Isa asamkhyatakala mem asamkhyeya utsarpiniyam aura avasarpiniyam bita jati hai aura kshetra ki apeksha asamkhyata loka ke akasha pradeshom ka upahara ho sakata hai. Dvindriya, trindriya, chaturindriya napumsaka jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se samkhyatakala taka raha sakate haim. Pamchendriya tiryakyonika napumsaka jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se purvakoti prithaktva paryanta raha sakate haim. Isi prakara jalachara tiryakyonika, chatushpada sthalachara uraparisarpa, bhujaparisarpa aura mahoraga napumsakom ke vishaya mem bhi samajhana. Manushya napumsaka kshetra ki apeksha jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta purvakoti prithaktva. Dharmacharana ki apeksha jaghanya eka samaya aura utkarsha se deshona purvakoti. Isi prakara karmabhumi ke bharata – airavata, purvavideha – pashchimavideha napumsakom mem bhi kahana. Akarmabhumika manushya – napumsaka ke vishaya mem prichchha\? Gautama ! Janma ki apeksha se jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta muhurttaprithaktva samharana ki apeksha jaghanya antarmuhurtta utkrishta deshona purvakoti taka usi rupa mem raha sakate haim. Bhagavan ! Napumsaka ka kitane kala ka antara hota hai\? Gautama ! Jaghanya se antarmuhurtta aura utkrishta se sagaropama shataprithaktva se kuchha adhika. Nairayika napumsaka ka antara jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se vanaspati kala. Ratnaprabhaprithvi yavat adhahsaptami nairayika napumsaka ka jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta vanaspatikala. Tiryakyoni napumsaka ka antara jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta kuchha adhika sagaropama shataprithaktva. Ekendriya tiryakyoni napumsaka ka jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta samkhyatavarsha adhika do hajara sagaropama. Prithvi – ap – tejaskaya aura vayukaya ka jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta vanaspatikala ka antara hai. Vanaspatikayikom ka jaghanya antarmuhurtta aura utkarsha se asamkhyeyakala – yavat asamkhyeyaloka. Shesha rahe dvindriyadi yavat khechara napumsakom ka antara jaghanya se antarmuhurtta aura utkarsha se vanaspatikala hai. Manushya napumsaka ka antara kshetra ki apeksha jaghanya antarmuhurtta aura utkarsha se vanaspatikala hai. Dharmacharana ki apeksha jaghanya eka samaya aura utkrishta anantakala yavat deshona ardhapudgalaparavarta. Isi prakara karmabhumika manushya napumsaka ka, bharata – eravata – purvavideha – pashchimavideha manushya napumsaka ka bhi kahana. Akarmabhumika manushya napumsaka ka antara\? Janma ko lekara jaghanya antarmuhurtta aura utkarsha se vanaspatikala. Samharana ki apeksha jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta se vanaspatikala, isa prakara antardvipika napumsaka taka kahana. |