Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005784
Scripture Name( English ): Rajprashniya Translated Scripture Name : राजप्रश्नीय उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Translated Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Section : Translated Section :
Sutra Number : 84 Category : Upang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से दढपइण्णे दारए उम्मुक्कबालभावे विन्नयपरिणयमित्ते जोव्वणगमनुपत्ते बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्त-पडिबोहिए अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले सिंगारागार-चारुरूवे संगय गय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास निउण जुत्तोवयारकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी यावि भविस्सइ। तए णं तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विन्नय-परिणयमित्तं जोव्वण-गमनुपत्तं बावत्तरिकलापंडियं नवंगसुतपडिबोहियं अट्ठारसविहदेसिप्पगारभासाविसारयं गीयरइं गंधव्वनट्टकुसलं सिंगारागारचारुरूवं संगय गय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास निउण जुत्तोवयार-कुसलं हयजोहिं गयजोहिं रहजोहिं बाहुजोहिं बाहुप्पमद्दिं अलंभोगसमत्थं साहसियं वियालचारिं च वियाणित्ता विउलेहिं अन्नभोगेहि य पानभोगेहि य लेणभोगेहि य वत्थभोगेहि य सयनभोगेहि य उवनिमंतेहिंति। तए णं दढपइण्णे दारए तेहिं विउलेहिं अण्णभोगेहिं पाणभोगेहिं लेणभोगेहिं वत्थभोगेहिं सयणभोगेहिं नो सज्जिहिति नो गिज्झिहिति नो मुज्झिहिति नो अज्झोववज्जिहिति। से जहानामए पउमुप्पलेइ वा पउमेइ वा कुमुएइ वा नलिणेइ वा सुभगेइ वा सुगंधिएइ वा पोंडरीएइ वा महापोंडरीएइ वा सयपत्तेइ वा सहस्सपत्तेइ वा पंके जाले जले संवड्ढे णोवलिप्पइ पंकरएणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव दढपइण्णे वि दारए कामेहिं जाए भोगेहिं संवड्ढिए नोवलिप्पिहिति कामरएणं नोवलिप्पिहिति भोगरएणं नोवलिप्पिहिति मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजनेणं। से णं तहारूवाणं थेराणं अंतिए केवलं बोहिं बुज्झिहिति, मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्सति। से णं अनगारे भविस्सइ– इरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंड-मत्त-निक्खे-वणासमिए उच्चार पासवण खेल सिंघाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिए मणगुत्ते वयगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी अममे अकिंचने निरुवलेवे कंसपाईव मुक्कतोए, संखो इव निरंगणे, जीवो विव अप्पडिहयगइ, जच्चकणगं पिव जायरूवे, आदरिसफलगा इव पागडभावे, कुम्मो इव गुत्तिंदिए, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे, गगनमिव निरालंबणे, अनिलो इव निरालए, चंदो इव सोमलेसे, सूरो इव दित्ततेए, सागरो इव गंभीरे, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्के, मंदरो इव अप्पकंपे, सारयसलिलं व सुद्धहियए, खग्गविसाणं व एगजाए, भारुंडपक्खी व अप्पमत्ते, कुंजरो इव सोंडीरे, वसभो इव जायत्थामे, सीहो इव दुद्धरिसे, वसुंधरा इव सव्वफासविसहे, सुहुयहुयासणे इव तेयसा जलंते। तस्स णं भगवतो अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं अनुत्तरेणं आलएणं अनुत्तरेणं विहारेणं अनुत्तरेणं अज्जवेणं अनुत्तरेणं मद्दवेणं अनुत्तरेणं लाघवेणं अनुत्तराए खंतीए अनुत्तराए गुत्तीए अनुत्तराए मुत्तीए अनुत्तरेणं सव्वसंजमसुचरियतवफल-णिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अनंते अनुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे निरावरणे निव्वाघाए केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जिहिति। तए णं से भगवं अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमनुयासुरस्स लोगस्स परियायं जाणिहिति, तं जहा– आगतिं गतिं ठितिं चवणं उववायं तक्कं कडं मनोमाणसियं खइयं भुत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं, अरहा अरहस्सभागी तं कालं तं मनवयकायजोगे वट्टमानाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ। तए णं दढपइण्णे केवली एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूइं वासाइं केवलिपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता, बहूइं भत्ताइं पच्चक्खाइस्सइ, बहूइं भत्ताइं अनसणाए छेइस्सइ, जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे केसलोए बंभचेरवासे अण्हाणगं अदंतमणगं अच्छत्तगं अणुवाहणगं भूमिसेज्जाओ फलहसेज्जाओ परघरपवेसो लद्धावलद्धाइं मानावमाणाइं परेसिं हीलणाओ निंदणाओ खिंसणाओ तज्जणाओ ताडणाओ गरहणाओ उच्चावया विरूवरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा गामकंटगा अहियासिज्जंति, तमट्ठं आरोहेहिइ, आराहित्ता चरिमेहिं उस्सास-निस्सासेहिं सिज्झिहिति बुज्झिहिति मुच्चिहिति परिनिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति।
Sutra Meaning : इसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक बालभाव से मुक्त हो परिपक्व विज्ञानयुक्त, युवावस्थासंपन्न हो जाएगा। बहत्तर कलाओं में पंडित होगा, बाल्यावस्था के कारण मनुष्य के जो नौ अंग – जागृत हो जाएंगे। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो जाएगा, वह गीत का अनुरागी, गीत और नृत्य में कुशल हो जाएगा। अपने सुन्दर वेष से शृंगार का आगार – जैसा प्रतीत होगा। उसकी चाल, हास्य, भाषण, शारीरिक और नेत्रों की चेष्टाएं आदि सभी संगत होंगी। पारस्परिक आलाप – संलाप एवं व्यवहार में निपुण – कुशल होगा। अश्वयुद्ध, गजयुद्ध, रथयुद्ध, बाहुयुद्ध करने एवं अपनी भुजाओं से विपक्षी का मर्दन करने में सक्षम एवं भोग भोगने की सामर्थ्य से संपन्न हो जाएगा तथा साहसी ऐसा हो जाएगा। भयभीत नहीं होगा। तब उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक को बाल्यावस्था से मुक्त यावत्‌ विकाल – चारी जानकर माता – पिता विपुल अन्नभोगों, पानभोगों, प्रासादभोगों, वस्त्रभोगों और शय्याभोगों के योग्य भोगों को भोगने के लिए आमंत्रित करेंगे। तब वह दृढ़प्रतिज्ञ दारक उन विपुल अन्न रूप भोग्य पदार्थों यावत्‌ शयन रूप भोग्य पदार्थों में आसक्त नहीं होगा, गृद्ध नहीं होगा, मूर्च्छित नहीं होगा और अनुरक्त नहीं होगा। जैसे कि नीलकमल, पद्मकमल यावत्‌ सहस्र – पत्रकमल कीचड़ में उत्पन्न होते हैं और जल में वृद्धिगत होते हैं, फिर भी पंकरज और जलरज से लिप्त नहीं होते हैं, इसी प्रकार वह दृढ़प्रतिज्ञ दारक भी कामों में उत्पन्न हुआ, भोगों के बीच लालन – पालन किये जाने पर भी उन कामभोगों में एवं मित्रों, ज्ञातिजनों, निजी – स्वजन – सम्बन्धियों और परिजनों में अनुरक्त नहीं होगा। किन्तु वह तथारूप स्थविरों से केवलबोधि प्राप्त करेगा एवं मुण्डित होकर, अनगार – प्रव्रज्या अंगीकार करेगा। ईर्यासमिति आदि अनगारधर्म पालन करते सुहुत हुताशन की तरह अपने तपस्तेज से चमकेगा, दीप्त मान होगा। इसके हाथ ही अनुत्तर ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अप्रतिबद्ध विहार, आर्जव, मार्दव, लाघव, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति सर्व संयम एवं निर्वाण की प्राप्ति जिसका फल है ऐसे तपोमार्ग से आत्मा को भावित करते हुए भगवान्‌ (दृढ़प्रतिज्ञ) को अनन्त, अनुत्तर, सकल, परिपूर्ण, निरावरण, निर्व्याघात, अप्रतिहत, सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त होगा। तब वे दृढ़प्रतिज्ञ भगवान अर्हत्‌, जिन, केवली हो जाएंगे। जिसमें देव, मनुष्य तथा असुर आदि रहते हैं ऐसे लोक की समस्त पर्यायों को वे जानेंगे। आगति, गति, स्थिति, च्यवन, उपपात, तर्क, क्रिया, मनोभावों, क्षयप्राप्त, प्रतिसेवित, आविष्कर्म, रहःकर्म आदि, प्रकट और गुप्त रूप से होने वाले उस – उस मन, वचन और कायभोग में विद्यमान लोकवर्ती सभी जीवों के सर्वभावों को जानते – देखते हुए विचरण करेंगे। तत्पश्चात्‌ वे दृढ़प्रतिज्ञकेवली इस प्रकार के विहार से विचरण करते अनेकवर्षों तक केवलिपर्यायका पालन कर, आयु के अंत को जानकर अपने अनेक भक्तों – भोजनों का प्रत्याख्यान व त्याग करेंगे, अनशन द्वारा बहुत से भोजनों का छेदन करेंगे, जिस साध्यसिद्धि के लिए नग्नभाव, केशलोच, ब्रह्मचर्यधारण, स्नान का त्याग, दंतधावन त्याग, पादुका त्याग, भूमि पर शयन करना, काष्ठासन पर सोना, भिक्षार्थ परगृहप्रवेश, लाभ – अलाभ में सम रहना, मान – अपमान सहना, दूसरों के द्वारा की जाने वाली हीलना, निन्दा, खिंसना, तर्जना, ताड़ना, गर्हा एवं अनुकूल – प्रतिकूल अनेक प्रकार के २२ परीषह, उपसर्ग तथा लोकापवाद सहन किए जाते हैं, मोक्षसाधना करके चरम श्वासोच्छ्‌वास में सिद्ध हो जाएंगे, मुक्त हो जाएंगे, सकल कर्ममल का क्षय और समस्त दुःखों का अंत करेंगे
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se dadhapainne darae ummukkabalabhave vinnayaparinayamitte jovvanagamanupatte bavattarikalapamdie navamgasutta-padibohie attharasavihadesippagarabhasavisarae giyarai gamdhavvanattakusale simgaragara-charuruve samgaya gaya hasiya bhaniya chitthiya vilasa niuna juttovayarakusale hayajohi gayajohi rahajohi bahujohi bahuppamaddi alambhogasamatthe sahasie viyalachari yavi bhavissai. Tae nam tam dadhapainnam daragam ammapiyaro ummukkabalabhavam vinnaya-parinayamittam jovvana-gamanupattam bavattarikalapamdiyam navamgasutapadibohiyam attharasavihadesippagarabhasavisarayam giyaraim gamdhavvanattakusalam simgaragaracharuruvam samgaya gaya hasiya bhaniya chitthiya vilasa niuna juttovayara-kusalam hayajohim gayajohim rahajohim bahujohim bahuppamaddim alambhogasamattham sahasiyam viyalacharim cha viyanitta viulehim annabhogehi ya panabhogehi ya lenabhogehi ya vatthabhogehi ya sayanabhogehi ya uvanimamtehimti. Tae nam dadhapainne darae tehim viulehim annabhogehim panabhogehim lenabhogehim vatthabhogehim sayanabhogehim no sajjihiti no gijjhihiti no mujjhihiti no ajjhovavajjihiti. Se jahanamae paumuppalei va paumei va kumuei va nalinei va subhagei va sugamdhiei va pomdariei va mahapomdariei va sayapattei va sahassapattei va pamke jale jale samvaddhe novalippai pamkaraenam novalippai jalaraenam, evameva dadhapainne vi darae kamehim jae bhogehim samvaddhie novalippihiti kamaraenam novalippihiti bhogaraenam novalippihiti mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanenam. Se nam taharuvanam theranam amtie kevalam bohim bujjhihiti, mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissati. Se nam anagare bhavissai– iriyasamie bhasasamie esanasamie ayanabhamda-matta-nikkhe-vanasamie uchchara pasavana khela simghana jalla paritthavaniyasamie managutte vayagutte kayagutte gutte guttimdie guttabambhayari amame akimchane niruvaleve kamsapaiva mukkatoe, samkho iva niramgane, jivo viva appadihayagai, jachchakanagam piva jayaruve, adarisaphalaga iva pagadabhave, kummo iva guttimdie, pukkharapattam va niruvaleve, gaganamiva niralambane, anilo iva niralae, chamdo iva somalese, suro iva dittatee, sagaro iva gambhire, vihaga iva savvao vippamukke, mamdaro iva appakampe, sarayasalilam va suddhahiyae, khaggavisanam va egajae, bharumdapakkhi va appamatte, kumjaro iva somdire, vasabho iva jayatthame, siho iva duddharise, vasumdhara iva savvaphasavisahe, suhuyahuyasane iva teyasa jalamte. Tassa nam bhagavato anuttarenam nanenam anuttarenam damsanenam anuttarenam charittenam anuttarenam alaenam anuttarenam viharenam anuttarenam ajjavenam anuttarenam maddavenam anuttarenam laghavenam anuttarae khamtie anuttarae guttie anuttarae muttie anuttarenam savvasamjamasuchariyatavaphala-nivvanamaggenam appanam bhavemanassa anamte anuttare kasine padipunne niravarane nivvaghae kevalavarananadamsane samuppajjihiti. Tae nam se bhagavam araha jine kevali bhavissai, sadevamanuyasurassa logassa pariyayam janihiti, tam jaha– agatim gatim thitim chavanam uvavayam takkam kadam manomanasiyam khaiyam bhuttam padiseviyam avikammam rahokammam, araha arahassabhagi tam kalam tam manavayakayajoge vattamananam savvaloe savvajivanam savvabhave janamane pasamane viharissai. Tae nam dadhapainne kevali eyaruvenam viharenam viharamane bahuim vasaim kevalipariyagam paunihiti, paunitta appano ausesam abhoetta, bahuim bhattaim pachchakkhaissai, bahuim bhattaim anasanae chheissai, jassatthae kirai naggabhave mumdabhave kesaloe bambhacheravase anhanagam adamtamanagam achchhattagam anuvahanagam bhumisejjao phalahasejjao paragharapaveso laddhavaladdhaim manavamanaim paresim hilanao nimdanao khimsanao tajjanao tadanao garahanao uchchavaya viruvaruva bavisam parisahovasagga gamakamtaga ahiyasijjamti, tamattham arohehii, arahitta charimehim ussasa-nissasehim sijjhihiti bujjhihiti muchchihiti parinivvahiti savvadukkhanamamtam karehiti.
Sutra Meaning Transliteration : Isake bada vaha drirhapratijnya balaka balabhava se mukta ho paripakva vijnyanayukta, yuvavasthasampanna ho jaega. Bahattara kalaom mem pamdita hoga, balyavastha ke karana manushya ke jo nau amga – jagrita ho jaemge. Atharaha prakara ki deshi bhashaom mem kushala ho jaega, vaha gita ka anuragi, gita aura nritya mem kushala ho jaega. Apane sundara vesha se shrimgara ka agara – jaisa pratita hoga. Usaki chala, hasya, bhashana, sharirika aura netrom ki cheshtaem adi sabhi samgata homgi. Parasparika alapa – samlapa evam vyavahara mem nipuna – kushala hoga. Ashvayuddha, gajayuddha, rathayuddha, bahuyuddha karane evam apani bhujaom se vipakshi ka mardana karane mem sakshama evam bhoga bhogane ki samarthya se sampanna ho jaega tatha sahasi aisa ho jaega. Bhayabhita nahim hoga. Taba usa drirhapratijnya balaka ko balyavastha se mukta yavat vikala – chari janakara mata – pita vipula annabhogom, panabhogom, prasadabhogom, vastrabhogom aura shayyabhogom ke yogya bhogom ko bhogane ke lie amamtrita karemge. Taba vaha drirhapratijnya daraka una vipula anna rupa bhogya padarthom yavat shayana rupa bhogya padarthom mem asakta nahim hoga, griddha nahim hoga, murchchhita nahim hoga aura anurakta nahim hoga. Jaise ki nilakamala, padmakamala yavat sahasra – patrakamala kichara mem utpanna hote haim aura jala mem vriddhigata hote haim, phira bhi pamkaraja aura jalaraja se lipta nahim hote haim, isi prakara vaha drirhapratijnya daraka bhi kamom mem utpanna hua, bhogom ke bicha lalana – palana kiye jane para bhi una kamabhogom mem evam mitrom, jnyatijanom, niji – svajana – sambandhiyom aura parijanom mem anurakta nahim hoga. Kintu vaha tatharupa sthavirom se kevalabodhi prapta karega evam mundita hokara, anagara – pravrajya amgikara karega. Iryasamiti adi anagaradharma palana karate suhuta hutashana ki taraha apane tapasteja se chamakega, dipta mana hoga. Isake hatha hi anuttara jnyana, darshana, charitra, apratibaddha vihara, arjava, mardava, laghava, kshama, gupti, mukti sarva samyama evam nirvana ki prapti jisaka phala hai aise tapomarga se atma ko bhavita karate hue bhagavan (drirhapratijnya) ko ananta, anuttara, sakala, paripurna, niravarana, nirvyaghata, apratihata, sarvotkrishta kevalajnyana aura kevaladarshana prapta hoga. Taba ve drirhapratijnya bhagavana arhat, jina, kevali ho jaemge. Jisamem deva, manushya tatha asura adi rahate haim aise loka ki samasta paryayom ko ve janemge. Agati, gati, sthiti, chyavana, upapata, tarka, kriya, manobhavom, kshayaprapta, pratisevita, avishkarma, rahahkarma adi, prakata aura gupta rupa se hone vale usa – usa mana, vachana aura kayabhoga mem vidyamana lokavarti sabhi jivom ke sarvabhavom ko janate – dekhate hue vicharana karemge. Tatpashchat ve drirhapratijnyakevali isa prakara ke vihara se vicharana karate anekavarshom taka kevaliparyayaka palana kara, ayu ke amta ko janakara apane aneka bhaktom – bhojanom ka pratyakhyana va tyaga karemge, anashana dvara bahuta se bhojanom ka chhedana karemge, jisa sadhyasiddhi ke lie nagnabhava, keshalocha, brahmacharyadharana, snana ka tyaga, damtadhavana tyaga, paduka tyaga, bhumi para shayana karana, kashthasana para sona, bhikshartha paragrihapravesha, labha – alabha mem sama rahana, mana – apamana sahana, dusarom ke dvara ki jane vali hilana, ninda, khimsana, tarjana, tarana, garha evam anukula – pratikula aneka prakara ke 22 parishaha, upasarga tatha lokapavada sahana kie jate haim, mokshasadhana karake charama shvasochchhvasa mem siddha ho jaemge, mukta ho jaemge, sakala karmamala ka kshaya aura samasta duhkhom ka amta karemge