Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005771 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 71 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेग गणणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणग दोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि। तए णं मम णगरगुत्तिया चोरं उवणेंति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतगं चेव तुलेमि, तुलेत्ता छविच्छेयं अकुव्वमाणे जीवियाओ ववरोवेमि, मयं तुलेमि नो चेव णं तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा। जति णं भंते! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा, तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते! तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स नत्थि केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहा–तज्जीवो तं सरीरं नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं। तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–अत्थि णं पएसी! तुमे कयाइ वत्थी धंतपुव्वे वा धमावियपुव्वे वा? हंता अत्थि। अत्थि णं पएसी! तस्स वत्थिस्स पुण्णस्स वा तुलियस्स, अपुण्णस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा? नो तिणट्ठे समट्ठे। एवामेव पएसी! जीवस्स अगरुलधुयत्तं पडुच्च जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स नत्थि केइ अन्नत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते वा तुच्छत्ते वा गरुयत्ते वा लहुयत्ते वा, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी! जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पन्नओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेग गणणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणग दोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि। तए णं ममं णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेंति। तए णं अहं तं पुरिसं सव्वतो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि। तए णं अहं तं पुरिसं दुहा फालियं करेमि, करेत्ता सव्वतो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि। एवं तिहा चउहा संखेज्जहा फालियं करेमि, करेत्ता सव्वत्तो समंता समभिलोएमि, नो चेव णं तत्थ जीवं पासामि। जइ णं भंते! अहं तंसि पुरिसंसि, दुहा वा तिहा वा चउहा वा संखेज्जहा वा फालियंमि जीवं पासंतो, तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तज्जीवो तं सरीरं। जम्हा णं भंते! अहं तंसि दुहा वा तिहा वा चउहा वा संखेज्जहा वा फालियंमि जीवं न पासामि, तम्हा सुपतिट्ठिया मे पइण्णा जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं। तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–मूढतराए णं तुमं पएसी! ताओ तुच्छतराओ। के णं भंते! तुच्छतराए? पएसी! से जहानामए–केइ पुरिसा वणत्थी वणोवजीवी वनगवेसणयाए जोइं च जोईभायणं च गहाय कट्ठाणं अडविं अनुपविट्ठा। तए णं ते पुरिसा तीस अगामियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचिं देसं अनुप्पत्ता समाणा एगं पुरिसं एवं वयासी–अम्हे णं देवानुप्पिया! कट्ठाणं अडविं पविसामो, एत्तो णं तुमं जोइभायणाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि। अह तं जोइ-भायणे जोई विज्झवेज्जा, तो णं तुमं कट्ठाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि त्ति कट्टु कट्ठाणं अडविं अनुपविट्ठा। तए णं से पुरिसे तओ मुहुत्तंतरस्स तेसिं पुरिसाणं असणं साहेमि त्ति कट्टु जेणेव जोतिभायणे तेणेव उवागच्छइ, जोइभायणे जोइं विज्झायमेव पासति। तए णं से पुरिसे जेणेव से कट्ठे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं कट्ठं सव्वओ समंता समभिलोएति, नो चेव णं तत्थ जोइं पासति। तए णं से पुरिसे परियरं बंधइ, फरसुं गेण्हइ, तं कट्ठं दुहा फालियं करेइ, सव्वतो समंता समभिलोएइ, नो चेव णं तत्थ जोइं पासइ। एवं तिहा चउहा संखेज्जहा वा फालियं करेइ, सव्वतो समंता समभिलोएइ, नो चेव णं तत्थ जोइं पासइ। तए णं से पुरिसे तंसि कट्ठंसि दुहाफालिए वा तिहाफालिए वा चउहाफालिए वा संखेज्जहाफालिए वा जोइं अपासमाणे संते तंते परिस्संते निव्विण्णे समाणे परसुं एगंते एडेइ, परियरं मुयइ, मुइत्ता एवं वयासी–अहो! मए तेसिं पुरिसाणं असणे नो साहिए त्ति कट्टु ओहयमनसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविट्ठे करयलपल्लत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठिए झियाइ। तए णं ते पुरिसा कट्ठाइं छिंदंति, जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति, तं पुरिसं ओहयमनसंकप्पं चिंतासोगसागरसंपविट्ठं कर-यलपल्लत्थमुहं अट्टज्झाणोवगयं भूमिगयदिट्ठियं झियायमाणं पासंति, पासित्ता एवं वयासी–किं णं तुमं देवानुप्पिया! ओहयमनसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविट्ठे करयल-पल्लत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठिए झियायसि? तए णं से पुरिसे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! कट्ठाणं अडविं अनुपविसमाणा ममं एवं वयासी–अम्हे णं देवानुप्पिया! कट्ठाणं अडविं पविसामो, एत्तो णं तुमं जोइभायणाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि। अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेज्जा, तो णं तुमं कट्ठाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासि त्ति कट्टु कट्ठाणं अडविं अनुपविट्ठा। तए णं अहं तओ मुहुत्तंतरस्स तुब्भं असणं साहेमि त्ति कट्टु जेणेव जोइभायणे तेणेव उवागच्छामि जाव झियामि। तए णं तेसिं पुरिसाणं एगे पुरिसे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले महामई विनीए विन्नाणपत्ते, उवएसलद्धे ते पुरिसे एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगलपायच्छित्ता हव्वमागच्छेह जा णं अहं असणं साहेमित्ति कट्टु परियरं बंधइ, परसुं गिण्हइ, सरं करेइ, सरेण अरणिं महेइ, जोइं पाडेइ, जोइं संधुक्खेइ, तेसिं पुरिसाणं असणं साहेइ। तए णं ते पुरिसा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगल-पायच्छित्ता जेणेव से पुरिसे तेणेव उवागच्छंति। तए णं से पुरिसे तेसिं पुरिसाणं सुहासणवरगयाणं तं विउलं असनं पानं खाइमं साइमं उवणेइ। तए णं ते पुरिसा तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणा वीसाएमाणा परिभुंजेमाणा परिभाएमाणा एवं च णं विहरंति। जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुईभूया तं पुरिसं एवं वयासी–अहो! णं तुमं देवानुप्पिया! जड्डे मूढे अपंडिए णिव्विण्णाणे अणुवएसलद्धे जे णं तुमं इच्छसि कट्ठंसि दुहा फालियंसि वा तिहा फालियंसि वा चउहा फालियंसि वा संखेज्जहा फालियंसि वा जोतिं पासित्तए। से एएणट्ठेणं पएसी! एवं वुच्चइ मूढतराए णं तुमं पएसी! ताओ तुच्छतराओ। | ||
Sutra Meaning : | प्रदेशी राजा ने पुनः कहा – हे भदन्त ! आपकी यह उपमा बुद्धिप्रेरित होने से वास्तविक नहीं है। इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि जीव और शरीर पृथक् – पृथक् हैं। क्योंकि भदन्त ! बात यह है कि किसी समय मैं अपने गणनायकों आदि के साथ बाह्य उपस्थानशाला में बैठा था। यावत् नगररक्षक एक चोर पकड़ कर लाये। तब मैंने उस पुरुष को सभी ओर से अच्छी तरह देखा, परन्तु उसमें मुझे कहीं भी जीव दिखाई नहीं दिया। इसके बाद मैंने उस पुरुष के दो टुकड़े कर दिये। टुकड़े करके फिर मैंने अच्छी तरह सभी ओर से देखा। तब भी मुझे जीव नहीं दिखा। इसके बाद मैंने उसके तीन, चार यावत् संख्यात टुकड़े किये, परन्तु उनमें भी मुझे कहीं पर जीव दिखाई नहीं दिया। यदि भदन्त ! मुझे टुकड़े करने पर भी कहीं जीव दिखता तो मैं श्रद्धा – विश्वास कर लेता कि जीव अन्य है और शरीर अन्य है, जीव और शरीर एक नहीं है। लेकिन हे भदन्त ! जब मैंने उस पुरुष के टुकड़ों में भी जीव नहीं देखा है तो मेरी यह धारणा कि जीव शरीर है और शरीर जीव है, जीव – शरीर भिन्न – भिन्न नहीं है, सुसंगत है। केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा से कहा – हे प्रदेशी ! तुम तो मुझे उस दीन – हीन कठियारे से भी अधिक मूढ़ प्रतीत होते हो। हे भदन्त ! कौन सा दीन – हीन कठियारा ? हे प्रदेशी ! वन में रहने वाले और वन से आजीविका कमाने वाले कुछ – एक पुरुष वनोत्पन्न वस्तुओं की खोज में आग और अंगीठी लेकर लकड़ियों के वन में प्रविष्ट हुए। पश्चात् उन पुरुषों ने दुर्गम वन के किसी प्रदेश में पहुँचने पर अपने एक साथी से कहा – देवानुप्रिय ! हम इस लकड़ियों के जंगल में जाते हैं। तुम यहाँ अंगीठी से आग लेकर हमारे लिये भोजन तैयार करना। यदि अंगीठी में आग बुझ जाए तो तुम इस लकड़ी से आग पैदा करके हमारे लिए भोजन बना लेना। उनके चले जाने पर कुछ समय पश्चात् उस पुरुष ने विचार किया – चलो उन लोगों के लिए जल्दी से भोजन बना लूँ। ऐसा विचार कर वह वहाँ पहुँचा जहाँ वह काष्ठ पड़ा हुआ था। वहाँ पहुँचकर चारों ओर से उसने काष्ठ को अच्छी तरह देखा, किन्तु कहीं भी उसे आग दिखाई नहीं दी। तब उस पुरुष ने कमर कसी और कुल्हाड़ी लेकर उस काष्ठ के दो टुकड़े कर दिये। फिर उन टुकड़ों को भी सभी ओर से अच्छी तरह देखा, किन्तु कहीं आग दिखाई नहीं दी। इसी प्रकार फिर तीन, चार, पाँच यावत् संख्यात टुकड़े किये परन्तु देखने पर भी उनमें कहीं आग दिखाई नहीं दी। इसके बाद जब उस पुरुष को काष्ठ के दो से लेकर असंख्यात टुकड़े करने पर भी कहीं आग दिखाई नहीं दी तो वह श्रान्त, क्लान्त, खिन्न और दुःखित हो, कुल्हाड़ी को एक ओर रख और कमर को खोलकर मन – ही – मन इस प्रकार बोला – अरे ! मैं उन लोगों के लिए भोजन नहीं बना सका। अब क्या करूँ। इस विचार से अत्यन्त निराश, दुःखी, चिन्तित, शोकातूर हो हथेली पर मुँह को टिकाकर आर्तध्यानपूर्वक नीचे जमीन में आँखे गाड़कर चिंता में डूब गया। लकड़ियों को काटने के पश्चात् वे लोग वहाँ आए जहाँ अपना साथी था और उसको निराश, दुःखी यावत् चिन्ताग्रस्त देखकर उससे पूछा – देवानुप्रिय ! तुम क्यों निराश, दुःखी यावत् चिन्ता में डूबे हुए हो ? तब उस पुरुष ने बताया कि देवानुप्रियो ! आप लोगों ने मुझसे कहा था, यावत् जंगल में चले गए। कुछ समय बाद मैंने विचार किया कि आप लोगों के लिए भोजन बना लूँ। ऐसा विचार कर जहाँ अंगीठी थी, वहाँ पहुँचा यावत् आर्त – ध्यान कर रहा हूँ। उन मनुष्यों में कोई एक छेक, दक्ष, प्राप्तार्थ यावत् उपदेश लब्ध पुरुष था। उस पुरुष ने अपने दूसरे साथी लोगों से इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रियो ! आप जाओ और स्नान, बलिकर्म आदि करके शीघ्र आ जाओ। तब तक मैं आप लोगों के लिए भोजन तैयार करता हूँ। ऐसा कहकर उसने अपनी कमर कसी, कुल्हाड़ी लेकर सर बनाया, सर से अरणि – काष्ठ को रगड़कर आग की चिनगारी प्रगट की। फिर उसे धौंक कर सुलगाया और फिर उन लोगों के लिए भोजन बनाया। इतने में स्नान आदि करने गए पुरुष वापस स्नान करके, बलिकर्म करके यावत् प्रायश्चित्त करके उस भोजन बनाने वाले पुरुष के पास आ गए। तत्पश्चात् उस पुरुष ने सुखपूर्वक अपने – अपने आसनों पर बैठे उन लोगों के सामने उस विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य रूप चार प्रकार का भोजन रखा। वे उस विपुल अशन आदि रूप चारों प्रकार के भोजन का स्वाद लेते हुए, खाते हुए यावत् विचरने लगे। भोजन के बाद आचमन – कुल्ला आदि करके स्वच्छ, शुद्ध होकर अपने पहले साथी से इस प्रकार बोले – हे देवानुप्रिय ! तुम जड़ – अनभिज्ञ, मूढ़, अपंडित, निर्विज्ञान और अनुपदेशलब्ध हो, जो तुमने काठ के टुकड़ों में आग देखना चाहा। इसी प्रकार की तुम्हारी भी प्रवृत्ति देखकर मैंने यह कहा – हे प्रदेशी ! तुम उस तुच्छ कठियारे से भी अधिक मूढ़ हो कि शरीर के टुकड़े – टुकड़े करके जीव को देखना चाहते हो। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam paesi raya kesim kumarasamanam evam vayasi–atthi nam bhamte! Esa pannao uvama, imenam puna karanenam no uvagachchhai–evam khalu bhamte! Aham annaya kayai bahiriyae uvatthanasalae anega gananayaka damdanayaga raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavaha mamti mahamamti ganaga dovariya amachcha cheda pidhamadda nagara nigama duya samdhivalehim saddhim samparivude viharami. Tae nam mama nagaraguttiya choram uvanemti. Tae nam aham tam purisam jivamtagam cheva tulemi, tuletta chhavichchheyam akuvvamane jiviyao vavarovemi, mayam tulemi no cheva nam tassa purisassa jivamtassa va tuliyassa, muyassa va tuliyassa kei annatte va nanatte va omatte va tuchchhatte va garuyatte va lahuyatte va. Jati nam bhamte! Tassa purisassa jivamtassa va tuliyassa, muyassa va tuliyassa kei annatte va nanatte va omatte va tuchchhatte va garuyatte va lahuyatte va, to nam aham saddahejja pattiejja roejja jaha–anno jivo annam sariram, no tajjivo tam sariram. Jamha nam bhamte! Tassa purisassa jivamtassa va tuliyassa, muyassa va tuliyassa natthi kei annatte va nanatte va omatte va tuchchhatte va garuyatte va lahuyatte va, tamha supatitthiya me painna jaha–tajjivo tam sariram no anno jivo annam sariram. Tae nam kesi kumarasamane paesim rayam evam vayasi–atthi nam paesi! Tume kayai vatthi dhamtapuvve va dhamaviyapuvve va? Hamta atthi. Atthi nam paesi! Tassa vatthissa punnassa va tuliyassa, apunnassa va tuliyassa kei annatte va nanatte va omatte va tuchchhatte va garuyatte va lahuyatte va? No tinatthe samatthe. Evameva paesi! Jivassa agaruladhuyattam paduchcha jivamtassa va tuliyassa, muyassa va tuliyassa natthi kei annatte va nanatte va omatte va tuchchhatte va garuyatte va lahuyatte va, tam saddahahi nam tumam paesi! Jaha–anno jivo annam sariram, no tajjivo tam sariram. Tae nam paesi raya kesim kumarasamanam evam vayasi–atthi nam bhamte! Esa pannao uvama, imenam puna karanenam no uvagachchhai–evam khalu bhamte! Aham annaya kayai bahiriyae uvatthanasalae anega gananayaka damdanayaga raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavaha mamti mahamamti ganaga dovariya amachcha cheda pidhamadda nagara nigama duya samdhivalehim saddhim samparivude viharami. Tae nam mamam nagaraguttiya sasakkham sahodham saloddam sagevejjam avaudagabamdhanabaddham choram uvanemti. Tae nam aham tam purisam savvato samamta samabhiloemi, no cheva nam tattha jivam pasami. Tae nam aham tam purisam duha phaliyam karemi, karetta savvato samamta samabhiloemi, no cheva nam tattha jivam pasami. Evam tiha chauha samkhejjaha phaliyam karemi, karetta savvatto samamta samabhiloemi, no cheva nam tattha jivam pasami. Jai nam bhamte! Aham tamsi purisamsi, duha va tiha va chauha va samkhejjaha va phaliyammi jivam pasamto, to nam aham saddahejja pattiejja roejja jaha–anno jivo annam sariram, no tajjivo tam sariram. Jamha nam bhamte! Aham tamsi duha va tiha va chauha va samkhejjaha va phaliyammi jivam na pasami, tamha supatitthiya me painna jaha–tajjivo tam sariram, no anno jivo annam sariram. Tae nam kesi kumarasamane paesim rayam evam vayasi–mudhatarae nam tumam paesi! Tao tuchchhatarao. Ke nam bhamte! Tuchchhatarae? Paesi! Se jahanamae–kei purisa vanatthi vanovajivi vanagavesanayae joim cha joibhayanam cha gahaya katthanam adavim anupavittha. Tae nam te purisa tisa agamiyae chhinnavayae dihamaddhae adavie kamchim desam anuppatta samana egam purisam evam vayasi–amhe nam devanuppiya! Katthanam adavim pavisamo, etto nam tumam joibhayanao joim gahaya amham asanam sahejjasi. Aha tam joi-bhayane joi vijjhavejja, to nam tumam katthao joim gahaya amham asanam sahejjasi tti kattu katthanam adavim anupavittha. Tae nam se purise tao muhuttamtarassa tesim purisanam asanam sahemi tti kattu jeneva jotibhayane teneva uvagachchhai, joibhayane joim vijjhayameva pasati. Tae nam se purise jeneva se katthe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tam kattham savvao samamta samabhiloeti, no cheva nam tattha joim pasati. Tae nam se purise pariyaram bamdhai, pharasum genhai, tam kattham duha phaliyam karei, savvato samamta samabhiloei, no cheva nam tattha joim pasai. Evam tiha chauha samkhejjaha va phaliyam karei, savvato samamta samabhiloei, no cheva nam tattha joim pasai. Tae nam se purise tamsi katthamsi duhaphalie va tihaphalie va chauhaphalie va samkhejjahaphalie va joim apasamane samte tamte parissamte nivvinne samane parasum egamte edei, pariyaram muyai, muitta evam vayasi–aho! Mae tesim purisanam asane no sahie tti kattu ohayamanasamkappe chimtasogasagarasampavitthe karayalapallatthamuhe attajjhanovagae bhumigayaditthie jhiyai. Tae nam te purisa katthaim chhimdamti, jeneva se purise teneva uvagachchhamti, tam purisam ohayamanasamkappam chimtasogasagarasampavittham kara-yalapallatthamuham attajjhanovagayam bhumigayaditthiyam jhiyayamanam pasamti, pasitta evam vayasi–kim nam tumam devanuppiya! Ohayamanasamkappe chimtasogasagarasampavitthe karayala-pallatthamuhe attajjhanovagae bhumigayaditthie jhiyayasi? Tae nam se purise evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Katthanam adavim anupavisamana mamam evam vayasi–amhe nam devanuppiya! Katthanam adavim pavisamo, etto nam tumam joibhayanao joim gahaya amham asanam sahejjasi. Aha tam joibhayane joi vijjhavejja, to nam tumam katthao joim gahaya amham asanam sahejjasi tti kattu katthanam adavim anupavittha. Tae nam aham tao muhuttamtarassa tubbham asanam sahemi tti kattu jeneva joibhayane teneva uvagachchhami java jhiyami. Tae nam tesim purisanam ege purise chhee dakkhe pattatthe kusale mahamai vinie vinnanapatte, uvaesaladdhe te purise evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Nhaya kayabalikamma kayakouya-mamgalapayachchhitta havvamagachchheha ja nam aham asanam sahemitti kattu pariyaram bamdhai, parasum ginhai, saram karei, sarena aranim mahei, joim padei, joim samdhukkhei, tesim purisanam asanam sahei. Tae nam te purisa nhaya kayabalikamma kayakouyamamgala-payachchhitta jeneva se purise teneva uvagachchhamti. Tae nam se purise tesim purisanam suhasanavaragayanam tam viulam asanam panam khaimam saimam uvanei. Tae nam te purisa tam viulam asanam panam khaimam saimam asaemana visaemana paribhumjemana paribhaemana evam cha nam viharamti. Jimiyabhuttuttaragaya vi ya nam samana ayamta chokkha paramasuibhuya tam purisam evam vayasi–aho! Nam tumam devanuppiya! Jadde mudhe apamdie nivvinnane anuvaesaladdhe je nam tumam ichchhasi katthamsi duha phaliyamsi va tiha phaliyamsi va chauha phaliyamsi va samkhejjaha phaliyamsi va jotim pasittae. Se eenatthenam paesi! Evam vuchchai mudhatarae nam tumam paesi! Tao tuchchhatarao. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pradeshi raja ne punah kaha – he bhadanta ! Apaki yaha upama buddhiprerita hone se vastavika nahim hai. Isase yaha siddha nahim hota hai ki jiva aura sharira prithak – prithak haim. Kyomki bhadanta ! Bata yaha hai ki kisi samaya maim apane gananayakom adi ke satha bahya upasthanashala mem baitha tha. Yavat nagararakshaka eka chora pakara kara laye. Taba maimne usa purusha ko sabhi ora se achchhi taraha dekha, parantu usamem mujhe kahim bhi jiva dikhai nahim diya. Isake bada maimne usa purusha ke do tukare kara diye. Tukare karake phira maimne achchhi taraha sabhi ora se dekha. Taba bhi mujhe jiva nahim dikha. Isake bada maimne usake tina, chara yavat samkhyata tukare kiye, parantu unamem bhi mujhe kahim para jiva dikhai nahim diya. Yadi bhadanta ! Mujhe tukare karane para bhi kahim jiva dikhata to maim shraddha – vishvasa kara leta ki jiva anya hai aura sharira anya hai, jiva aura sharira eka nahim hai. Lekina he bhadanta ! Jaba maimne usa purusha ke tukarom mem bhi jiva nahim dekha hai to meri yaha dharana ki jiva sharira hai aura sharira jiva hai, jiva – sharira bhinna – bhinna nahim hai, susamgata hai. Keshi kumarashramana ne pradeshi raja se kaha – he pradeshi ! Tuma to mujhe usa dina – hina kathiyare se bhi adhika murha pratita hote ho. He bhadanta ! Kauna sa dina – hina kathiyara\? He pradeshi ! Vana mem rahane vale aura vana se ajivika kamane vale kuchha – eka purusha vanotpanna vastuom ki khoja mem aga aura amgithi lekara lakariyom ke vana mem pravishta hue. Pashchat una purushom ne durgama vana ke kisi pradesha mem pahumchane para apane eka sathi se kaha – devanupriya ! Hama isa lakariyom ke jamgala mem jate haim. Tuma yaham amgithi se aga lekara hamare liye bhojana taiyara karana. Yadi amgithi mem aga bujha jae to tuma isa lakari se aga paida karake hamare lie bhojana bana lena. Unake chale jane para kuchha samaya pashchat usa purusha ne vichara kiya – chalo una logom ke lie jaldi se bhojana bana lum. Aisa vichara kara vaha vaham pahumcha jaham vaha kashtha para hua tha. Vaham pahumchakara charom ora se usane kashtha ko achchhi taraha dekha, kintu kahim bhi use aga dikhai nahim di. Taba usa purusha ne kamara kasi aura kulhari lekara usa kashtha ke do tukare kara diye. Phira una tukarom ko bhi sabhi ora se achchhi taraha dekha, kintu kahim aga dikhai nahim di. Isi prakara phira tina, chara, pamcha yavat samkhyata tukare kiye parantu dekhane para bhi unamem kahim aga dikhai nahim di. Isake bada jaba usa purusha ko kashtha ke do se lekara asamkhyata tukare karane para bhi kahim aga dikhai nahim di to vaha shranta, klanta, khinna aura duhkhita ho, kulhari ko eka ora rakha aura kamara ko kholakara mana – hi – mana isa prakara bola – are ! Maim una logom ke lie bhojana nahim bana saka. Aba kya karum. Isa vichara se atyanta nirasha, duhkhi, chintita, shokatura ho hatheli para mumha ko tikakara artadhyanapurvaka niche jamina mem amkhe garakara chimta mem duba gaya. Lakariyom ko katane ke pashchat ve loga vaham ae jaham apana sathi tha aura usako nirasha, duhkhi yavat chintagrasta dekhakara usase puchha – devanupriya ! Tuma kyom nirasha, duhkhi yavat chinta mem dube hue ho\? Taba usa purusha ne bataya ki devanupriyo ! Apa logom ne mujhase kaha tha, yavat jamgala mem chale gae. Kuchha samaya bada maimne vichara kiya ki apa logom ke lie bhojana bana lum. Aisa vichara kara jaham amgithi thi, vaham pahumcha yavat arta – dhyana kara raha hum. Una manushyom mem koi eka chheka, daksha, praptartha yavat upadesha labdha purusha tha. Usa purusha ne apane dusare sathi logom se isa prakara kaha – He devanupriyo ! Apa jao aura snana, balikarma adi karake shighra a jao. Taba taka maim apa logom ke lie bhojana taiyara karata hum. Aisa kahakara usane apani kamara kasi, kulhari lekara sara banaya, sara se arani – kashtha ko ragarakara aga ki chinagari pragata ki. Phira use dhaumka kara sulagaya aura phira una logom ke lie bhojana banaya. Itane mem snana adi karane gae purusha vapasa snana karake, balikarma karake yavat prayashchitta karake usa bhojana banane vale purusha ke pasa a gae. Tatpashchat usa purusha ne sukhapurvaka apane – apane asanom para baithe una logom ke samane usa vipula ashana, pana, khadya, svadya rupa chara prakara ka bhojana rakha. Ve usa vipula ashana adi rupa charom prakara ke bhojana ka svada lete hue, khate hue yavat vicharane lage. Bhojana ke bada achamana – kulla adi karake svachchha, shuddha hokara apane pahale sathi se isa prakara bole – he devanupriya ! Tuma jara – anabhijnya, murha, apamdita, nirvijnyana aura anupadeshalabdha ho, jo tumane katha ke tukarom mem aga dekhana chaha. Isi prakara ki tumhari bhi pravritti dekhakara maimne yaha kaha – he pradeshi ! Tuma usa tuchchha kathiyare se bhi adhika murha ho ki sharira ke tukare – tukare karake jiva ko dekhana chahate ho. |