Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1004020 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-११ |
Translated Chapter : |
शतक-११ |
Section : | उद्देशक-११ काल | Translated Section : | उद्देशक-११ काल |
Sutra Number : | 520 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] वासुदेवमायरो वासुदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरेसु सत्त महा- सुविणे पासित्ता णं पडिबु-ज्झंति। बलदेवमायरो बलदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरेसु चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति। मंडलियमायरो मंडलियंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसि णं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरं एगं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति। इमे य णं देवानुप्पिया! पभावतीए देवीए एगे महासुविणे दिट्ठे, तं ओराले णं देवानुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठिदीहाउ कल्लाण-मंगल्लकारए णं देवानुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिट्ठे, अत्थलाभो देवानुप्पिया! भोगलाभो देवानुप्पिया! पुत्तलाभो देवानुप्पिया! रज्जलाभो देवानुप्पिया! एवं खलु देवानुप्पिया! पभावती देवी नव-ण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं तुम्हं कुलकेउं जाव देवकुमार-समप्पभं दारगं पयाहिति। से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सुरे वीरे विक्कंते वित्थिण्ण-विउलबल-वाहणे रज्जवई राया भविस्सइ, अनगारे वा भावियप्पा। तं ओराले णं देवानुप्पिया! पभावतीए देवीए सुविणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारए पभावतीए देवीए सुविणे दिट्ठे। तए णं से बले राया सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु ते सुविणलक्खणपाढगे एवं वयासी–एवमेयं देवानुप्पिया! तहमेयं देवानुप्पिया! अवितहमेयं देवानुप्पिया! असंदिद्धमेयं देवानुप्पिया! इच्छियमेयं देवानुप्पिया! पडिच्छियमेयं देवानुप्पिया! इच्छिय-पडिच्छियमेयं देवानुप्पिया! से जहेयं तुब्भे वदह त्ति कट्टु तं सुविणं सम्मं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सुविणलक्खणपाढए विउलेणं असन-पान-खाइम-साइम-पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलयित्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव पभावती देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पभावतिं देवीं ताहिं इट्ठाहिं जाव मिय-महुर-सस्सिरीयाहिं वग्गूहिं संलवमाणे-संलवमाणे एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिए! सुविणसत्थंसि बायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा–बावत्तरिं सव्वसुविणा दिट्ठा। तत्थ णं देवानुप्पिए! तित्थगरमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा तित्थगरंसि वा चक्कवट्टिंसि वा गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं तीसाए महासुविणाणं इमे चोद्दस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति तं चेव जाव मंडलियमायरो मंडलियंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसि णं चोद्दसण्हं महासुविणाणं अन्नयरं एगं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति। इमे य णं तुमे देवानुप्पिए! एगे महासुविणे दिट्ठे, तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे जाव रज्जवई राया भविस्सइ, अनगारे वा भावियप्पा, तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे त्ति कट्टु पभावतिं देविं ताहिं इट्ठाहिं जाव मिय-महुर-सस्सिरीयाहिं वग्गूहिं दोच्चं पि तच्चं पि अणुबूहइ। तए णं सा पभावती देवी बलस्स रन्नो अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा करयल परिग्गहियं दसनहं सिर-सावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– एयमेयं देवानुप्पिया! जाव तं सुविणं सम्मं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणो नानामणिरयणभत्ति चित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुट्ठेइ, अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबियाए रायहंसरिसीए गईए जेणेव सए भवने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयं भवनमणुपविट्ठा। तए णं सा पभावती देवो ण्हाया कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकारविभूसिया तं गब्भं नातिसोतेहि नातिउण्हेहिं नातितित्तेहिं नातिकडुएहिं नातिकसाएहिं नातिअंबिलेहिं नातिमहुरेहिं उउभयमाणसुहेहिं भोयण-च्छायण-गंध-मल्लेहिं जं तस्स गब्भस्स हियं मितं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं पइरिक्कसुहाए मणाणुकूलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वोच्छिन्नदोहला विणीयदोहला ववगयरोग-सोग-मोह-भय-परित्तासा तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहति। तए णं सा पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइ-क्कंताणं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खण-वंजण-गुणोववेयं माणुम्माण -प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं दारयं पयाया। तए णं तीसे पभावतीए देवीए अंगपडियारियाओ पभावतिं देविं पसूयं जाणेत्ता जेणेव बले राया तेणेव उवाग-च्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु बलं रायं जएणं विजएणं बद्धावेंति, बद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सुरूवं दारगं पयाया। तं एयण्णं देवानुप्पियाणं पियट्ठयाए पियं निवेदेमो। पियं भे भवतु। तए णं से बले राया अंगपडियारियाणं अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परम-सोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम-चंचुमाल-इयतणुए ऊसवियरोमकूवे तासिं अंगपडियारियाणं मउडवज्जं जहामालियं ओमोयं दलयइ, दलयित्ता सेतं रययामयं विमलसलिलपुण्णं भिंगारं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता मत्थए धोवइ, धोवित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलयित्ता सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता पडि-विसज्जेइ। | ||
Sutra Meaning : | ‘हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने इनमें से एक महास्वप्न देखा है। अतः हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार स्वप्न देखा है, सचमुच प्रभावती देवी ने यावत् आरोग्य, तुष्टि यावत् मंगलकारक स्वप्न देखा है। हे देवानुप्रिय ! इस स्वप्न के फलरूप आपको अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ एवं राज्यलाभ होगा।’ अतः हे देवानुप्रिय ! यह निश्चित है कि प्रभावती देवी नौ मास और साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर यावत् पुत्र को जन्म देगी। वह बालक भी बाल्यावस्था पार करने पर यावत् राज्याधिपति राजा होगा अथवा वह भावितात्मा अनगार होगा। इसलिए हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने उदार, यावत् आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायु एवं कल्याणकारक यावत् स्वप्न देखा है। तत्पश्चात् स्वप्नलक्षणपाठकों से इस स्वप्नफल को सूनकर एवं हृदय में अवधारण कर बल राजा अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने हाथ जोड़कर यावत् उन स्वप्नलक्षणपाठकों से कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! आपने जैसा स्वप्नफल बताया, यावत् वह उसी प्रकार है।’ इस प्रकार कहकर स्वप्न का अर्थ सम्यक् प्रकार से स्वीकार किया। फिर उन स्वप्नलक्षणपाठकों को विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारों से सत्कारित – सम्मानित किया, जीविका के योग्य प्रीतिदान दिया एवं सबको बिदा किया। तत्पश्चात् बल राजा अपने सिंहासन से उठा और जहाँ प्रभावती देवी बैठी थी, वहाँ आया और प्रभावती देवी को इष्ट, कान्त यावत् मधुर वचनों से वार्तालाप करता हुआ कहने लगा – ‘देवानुप्रिये ! स्वप्नशास्त्र में ४२ सामान्य स्वप्न और ३० महास्वप्न, इस प्रकार ७२ स्वप्न बताएं हैं। इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् कहना, यावत् माण्डलिकों की माताएं इनमें से किसी एक महास्वप्न को देखकर जागृत होती हैं। देवानुप्रिये ! तुमने भी इन चौदह महास्वप्नों में से एक महास्वप्न देखा है। हे देवी ! सचमुच तुमने एक उदार स्वप्न देखा है, जिसके फलस्वरूप तुम यावत् एक पुत्र को जन्म दोगी, यावत् जो या तो राज्याधिपति राजा होगा, अथवा भावितात्मा अनगार होगा। देवानुप्रिये ! तुमने एक उदार यावत् मंगल – कारक स्वप्न देखा है; इस प्रकार इष्ट, कान्त, प्रिय यावत् मधुर वचनों से उसी बात को दो – तीन बार कहकर उसकी प्रसन्नता में वृद्धि की। तब बल राजा से उपर्युक्त अर्थ सूनकर एवं उस पर विचार करके प्रभावती देवी हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। यावत् हाथ जोड़कर बोली – देवानुप्रिय ! जैसा आप कहते हैं, वैसा ही यह है। यावत् इस प्रकार कहकर उसने स्वप्न के अर्थ को भलीभाँति स्वीकार किया और बल राजा की अनुमति प्राप्त होने पर वह अनेक प्रकार के मणिरत्नों की कारीगरी से निर्मित उस भद्रासन से यावत् उठी; शीघ्रता तथा चपलता से रहित यावत् हंसगति से जहाँ अपना भवन था, वहाँ आकर अपने भवन में प्रविष्ट हुई। तदनन्तर प्रभावती देवी ने स्नान किया, शान्तिकर्म किया और फिर समस्त अलंकारों से विभूषित हुई। वह अपने गर्भ का पालन करने लगी। अब उस गर्भ का पालन करने के लिए वह न तो अत्यन्त शीतल और न तो अत्यन्त उष्ण, न अत्यन्त तिक्त और न अत्यन्त कडुए, न अत्यन्त कसैले, न अत्यन्त खट्टे और न अत्यन्त मीठे पदार्थ खाती थी परन्तु ऋतु के योग्य सुखकारक भोजन आच्छादन, गन्ध एवं माला का सेवन करके गर्भ का पालन करती थी। वह गर्भ के लिए जो भी हित, परिमित, पथ्य तथा गर्भपोषक पदार्थ होता, उसे ग्रहण करती तथा उस देश और काल के अनुसार आहार करती थी तथा जब वह दोषों से रहित मृदु शय्या एवं आसनों से एकान्त शुभ या सुखद मनोनुकूल विहारभूमि में थी, तब प्रशस्त दोहद उत्पन्न हुए, वे पूर्ण हुए। उन दोहदों को सम्मानित किया गया। वे दोहद समाप्त हुए, सम्पन्न हुए। वह रोग, शोक, मोह, भय, परित्रास आदि से रहित होकर उस गर्भ को सुखपूर्वक वहन करने लगी। इसके पश्चात् नौ महीने और साढ़े सात दिन परिपूर्ण होने पर प्रभावती देवी ने, सुकुमाल हाथ और पैर वाले, हीन अंगों से रहित, पाँचों इन्द्रियों से परिपूर्ण शरीर वाले तथा लक्षणव्यञ्जन और गुणों से युक्त यावत् चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन एवं सुरूप पुत्र को जन्म दिया। पुत्र जन्म होने पर प्रभावती देवी की अंगपरिचारिकाएं प्रभावती देवी को प्रसूता जानकर बल राजा के पास आई, और हाथ जोड़कर उन्हें जय – विजय शब्दों से बधाया। फिर निवेदन किया – हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने नौ महीने और साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर यावत् सुरूप बालक को जन्म दिया है। अतः देवानुप्रिय की प्रीति के लिए हम यह प्रिय समाचार निवेदन करती हैं। यह आपके लिए प्रिय हो। यह प्रिय समाचार सूनकर एवं हृदय में धारण कर बल राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ; यावत् मेघ की धारा से सिंचित कदम्बपुष्प के समान उसके रोमकूप विकसित हो गए। बल राजा ने अपने मुकुट को छोड़कर धारण किए हुए शेष सभी आभरण उन अंगपरिचारिकाओं को दे दिए। फिर सफेद चाँदी का निर्मल जल से भरा हुआ कलश लेकर उन दासियों का मस्तक धोया। उनका सत्कार – सम्मान किया और उन्हें बिदा किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] vasudevamayaro vasudevamsi gabbham vakkamamanamsi eesim choddasanham mahasuvinanam annayaresu satta maha- Suvine pasitta nam padibu-jjhamti. Baladevamayaro baladevamsi gabbham vakkamamanamsi eesim choddasanham mahasuvinanam annayaresu chattari mahasuvine pasitta nam padibujjhamti. Mamdaliyamayaro mamdaliyamsi gabbham vakkamamanamsi eesi nam choddasanham mahasuvinanam annayaram egam mahasuvinam pasitta nam padibujjhamti. Ime ya nam devanuppiya! Pabhavatie devie ege mahasuvine ditthe, tam orale nam devanuppiya! Pabhavatie devie suvine ditthe java arogga-tutthidihau kallana-mamgallakarae nam devanuppiya! Pabhavatie devie suvine ditthe, atthalabho devanuppiya! Bhogalabho devanuppiya! Puttalabho devanuppiya! Rajjalabho devanuppiya! Evam khalu devanuppiya! Pabhavati devi nava-nham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam viikkamtanam tumham kulakeum java devakumara-samappabham daragam payahiti. Se vi ya nam darae ummukkabalabhave vinnaya-parinayamette jovvanagamanuppatte sure vire vikkamte vitthinna-viulabala-vahane rajjavai raya bhavissai, anagare va bhaviyappa. Tam orale nam devanuppiya! Pabhavatie devie suvine ditthe java arogga-tutthi-dihau-kallana-mamgallakarae pabhavatie devie suvine ditthe. Tae nam se bale raya suvinalakkhanapadhaganam amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu te suvinalakkhanapadhage evam vayasi–evameyam devanuppiya! Tahameyam devanuppiya! Avitahameyam devanuppiya! Asamdiddhameyam devanuppiya! Ichchhiyameyam devanuppiya! Padichchhiyameyam devanuppiya! Ichchhiya-padichchhiyameyam devanuppiya! Se jaheyam tubbhe vadaha tti kattu tam suvinam sammam padichchhai, padichchhitta suvinalakkhanapadhae viulenam asana-pana-khaima-saima-puppha-vattha-gamdha-mallalamkarenam sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta viulam jiviyariham piidanam dalayai, dalayitta padivisajjei, padivisajjetta sihasanao abbhutthei, abbhutthetta jeneva pabhavati devi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pabhavatim devim tahim itthahim java miya-mahura-sassiriyahim vagguhim samlavamane-samlavamane evam vayasi– Evam khalu devanuppie! Suvinasatthamsi bayalisam suvina, tisam mahasuvina–bavattarim savvasuvina dittha. Tattha nam devanuppie! Titthagaramayaro va chakkavattimayaro va titthagaramsi va chakkavattimsi va gabbham vakkamamanamsi eesim tisae mahasuvinanam ime choddasa mahasuvine pasitta nam padibujjhamti tam cheva java mamdaliyamayaro mamdaliyamsi gabbham vakkamamanamsi eesi nam choddasanham mahasuvinanam annayaram egam mahasuvinam pasitta nam padibujjhamti. Ime ya nam tume devanuppie! Ege mahasuvine ditthe, tam orale nam tume devi! Suvine ditthe java rajjavai raya bhavissai, anagare va bhaviyappa, tam orale nam tume devi! Suvine ditthe java arogga-tutthi-kallana-mamgallakarae nam tume devi! Suvine ditthe tti kattu pabhavatim devim tahim itthahim java miya-mahura-sassiriyahim vagguhim dochcham pi tachcham pi anubuhai. Tae nam sa pabhavati devi balassa ranno amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha karayala pariggahiyam dasanaham sira-savattam matthae amjalim kattu evam vayasi– eyameyam devanuppiya! Java tam suvinam sammam padichchhai, padichchhitta balenam ranna abbhanunnaya samano nanamanirayanabhatti chittao bhaddasanao abbhutthei, aturiyamachavalamasambhamtae avilambiyae rayahamsarisie gaie jeneva sae bhavane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sayam bhavanamanupavittha. Tae nam sa pabhavati devo nhaya kayabalikamma java savvalamkaravibhusiya tam gabbham natisotehi natiunhehim natitittehim natikaduehim natikasaehim natiambilehim natimahurehim uubhayamanasuhehim bhoyana-chchhayana-gamdha-mallehim jam tassa gabbhassa hiyam mitam pattham gabbhaposanam tam dese ya kale ya aharamaharemani vivittamauehim sayanasanehim pairikkasuhae mananukulae viharabhumie pasatthadohala sampunnadohala sammaniyadohala avimaniyadohala vochchhinnadohala viniyadohala vavagayaroga-soga-moha-bhaya-parittasa tam gabbham suhamsuhenam parivahati. Tae nam sa pabhavati devi navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam vii-kkamtanam sukumalapanipayam ahinapadipunnapamchimdiyasariram lakkhana-vamjana-gunovaveyam manummana -ppamana-padipunna-sujaya-savvamgasumdaramgam sasisomakaram kamtam piyadamsanam suruvam darayam payaya. Tae nam tise pabhavatie devie amgapadiyariyao pabhavatim devim pasuyam janetta jeneva bale raya teneva uvaga-chchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu balam rayam jaenam vijaenam baddhavemti, baddhavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Pabhavati devi navanham masanam bahupadipunnanam java suruvam daragam payaya. Tam eyannam devanuppiyanam piyatthayae piyam nivedemo. Piyam bhe bhavatu. Tae nam se bale raya amgapadiyariyanam amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha-chittamanamdie namdie piimane parama-somanassie harisavasavisappamanahiyae dharahayanivasurabhikusuma-chamchumala-iyatanue usaviyaromakuve tasim amgapadiyariyanam maudavajjam jahamaliyam omoyam dalayai, dalayitta setam rayayamayam vimalasalilapunnam bhimgaram paginhai, paginhitta matthae dhovai, dhovitta viulam jiviyariham piidanam dalayai, dalayitta sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta padi-visajjei. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘he devanupriya ! Prabhavati devi ne inamem se eka mahasvapna dekha hai. Atah he devanupriya ! Prabhavati devi ne udara svapna dekha hai, sachamucha prabhavati devi ne yavat arogya, tushti yavat mamgalakaraka svapna dekha hai. He devanupriya ! Isa svapna ke phalarupa apako arthalabha, bhogalabha, putralabha evam rajyalabha hoga.’ atah he devanupriya ! Yaha nishchita hai ki prabhavati devi nau masa aura sarhe sata dina vyatita hone para yavat putra ko janma degi. Vaha balaka bhi balyavastha para karane para yavat rajyadhipati raja hoga athava vaha bhavitatma anagara hoga. Isalie he devanupriya ! Prabhavati devi ne udara, yavat arogya, tushti, dirghayu evam kalyanakaraka yavat svapna dekha hai. Tatpashchat svapnalakshanapathakom se isa svapnaphala ko sunakara evam hridaya mem avadharana kara bala raja atyanta prasanna evam santushta hua. Usane hatha jorakara yavat una svapnalakshanapathakom se kaha – ‘he devanupriyo ! Apane jaisa svapnaphala bataya, yavat vaha usi prakara hai.’ isa prakara kahakara svapna ka artha samyak prakara se svikara kiya. Phira una svapnalakshanapathakom ko vipula ashana, pana, khadima aura svadima tatha pushpa, vastra, gandha, mala aura alamkarom se satkarita – sammanita kiya, jivika ke yogya pritidana diya evam sabako bida kiya. Tatpashchat bala raja apane simhasana se utha aura jaham prabhavati devi baithi thi, vaham aya aura prabhavati devi ko ishta, kanta yavat madhura vachanom se vartalapa karata hua kahane laga – ‘devanupriye ! Svapnashastra mem 42 samanya svapna aura 30 mahasvapna, isa prakara 72 svapna bataem haim. Ityadi saba varnana purvavat kahana, yavat mandalikom ki mataem inamem se kisi eka mahasvapna ko dekhakara jagrita hoti haim. Devanupriye ! Tumane bhi ina chaudaha mahasvapnom mem se eka mahasvapna dekha hai. He devi ! Sachamucha tumane eka udara svapna dekha hai, jisake phalasvarupa tuma yavat eka putra ko janma dogi, yavat jo ya to rajyadhipati raja hoga, athava bhavitatma anagara hoga. Devanupriye ! Tumane eka udara yavat mamgala – karaka svapna dekha hai; isa prakara ishta, kanta, priya yavat madhura vachanom se usi bata ko do – tina bara kahakara usaki prasannata mem vriddhi ki. Taba bala raja se uparyukta artha sunakara evam usa para vichara karake prabhavati devi harshita evam santushta hui. Yavat hatha jorakara boli – devanupriya ! Jaisa apa kahate haim, vaisa hi yaha hai. Yavat isa prakara kahakara usane svapna ke artha ko bhalibhamti svikara kiya aura bala raja ki anumati prapta hone para vaha aneka prakara ke maniratnom ki karigari se nirmita usa bhadrasana se yavat uthi; shighrata tatha chapalata se rahita yavat hamsagati se jaham apana bhavana tha, vaham akara apane bhavana mem pravishta hui. Tadanantara prabhavati devi ne snana kiya, shantikarma kiya aura phira samasta alamkarom se vibhushita hui. Vaha apane garbha ka palana karane lagi. Aba usa garbha ka palana karane ke lie vaha na to atyanta shitala aura na to atyanta ushna, na atyanta tikta aura na atyanta kadue, na atyanta kasaile, na atyanta khatte aura na atyanta mithe padartha khati thi parantu ritu ke yogya sukhakaraka bhojana achchhadana, gandha evam mala ka sevana karake garbha ka palana karati thi. Vaha garbha ke lie jo bhi hita, parimita, pathya tatha garbhaposhaka padartha hota, use grahana karati tatha usa desha aura kala ke anusara ahara karati thi tatha jaba vaha doshom se rahita mridu shayya evam asanom se ekanta shubha ya sukhada manonukula viharabhumi mem thi, taba prashasta dohada utpanna hue, ve purna hue. Una dohadom ko sammanita kiya gaya. Ve dohada samapta hue, sampanna hue. Vaha roga, shoka, moha, bhaya, paritrasa adi se rahita hokara usa garbha ko sukhapurvaka vahana karane lagi. Isake pashchat nau mahine aura sarhe sata dina paripurna hone para prabhavati devi ne, sukumala hatha aura paira vale, hina amgom se rahita, pamchom indriyom se paripurna sharira vale tatha lakshanavyanjana aura gunom se yukta yavat chandrama ke samana saumya akriti vale, kanta, priyadarshana evam surupa putra ko janma diya. Putra janma hone para prabhavati devi ki amgaparicharikaem prabhavati devi ko prasuta janakara bala raja ke pasa ai, aura hatha jorakara unhem jaya – vijaya shabdom se badhaya. Phira nivedana kiya – he devanupriya ! Prabhavati devi ne nau mahine aura sarhe sata dina purna hone para yavat surupa balaka ko janma diya hai. Atah devanupriya ki priti ke lie hama yaha priya samachara nivedana karati haim. Yaha apake lie priya ho. Yaha priya samachara sunakara evam hridaya mem dharana kara bala raja harshita evam santushta hua; yavat megha ki dhara se simchita kadambapushpa ke samana usake romakupa vikasita ho gae. Bala raja ne apane mukuta ko chhorakara dharana kie hue shesha sabhi abharana una amgaparicharikaom ko de die. Phira sapheda chamdi ka nirmala jala se bhara hua kalasha lekara una dasiyom ka mastaka dhoya. Unaka satkara – sammana kiya aura unhem bida kiya. |