Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003969
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-९

Translated Chapter :

शतक-९

Section : उद्देशक-३३ कुंडग्राम Translated Section : उद्देशक-३३ कुंडग्राम
Sutra Number : 469 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : कतिविहा णं भंते! देवकिव्विसिया पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा देवकिव्विसिया पन्नत्ता, तं जहा–तिपलिओवमट्ठिइया, तिसागरोवमट्ठिइया, तेरससागरोवमट्ठिइया। कहिं णं भंते! तिपलिओवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं जोइसियाणं, हिट्ठिं सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्ठिइया देव-किव्विसिया परिवसंति। कहिं णं भंते! तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं सोहम्मीसानाणं कप्पाणं, हिट्ठिं सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति। कहिं णं भंते! तेरससागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं बंभलोगस्स कप्पस्स, हिट्ठिं लंतए कप्पे, एत्थ णं तेरससागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया देवा परिवसंति। देवकिव्विसिया णं भंते! केसु कम्मादानेसु देवकिव्विसियत्ताए उववत्तारो भवंति? गोयमा! जे इमे जीवा आयरियपडिनीया, उवज्झायपडिनीया, कुलपडिनीया, गणपडिनीया, संघपडिनीया, आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारा अवण्णकारा अकित्तिकारा बहूहिं असब्भावु-ब्भावणाहिं, मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु सु देवकिव्विसिएसु देवकिव्विसियत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहा– तिपलिओवमट्ठितिएसु वा, तिसागरोवमट्ठितिएसु वा, तेरससागरोवमट्ठितिएसु वा। देवकिव्विसिया णं भंते! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठितिक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? गोयमा! जाव चत्तारि पंच नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मनुस्स-देवभवग्गहणाइं संसारं अणु-परियट्टित्ता तओ पच्छा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति, अत्थेगतिया अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति। जमाली णं भंते! अनगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे तुच्छाहारे अरस-जीवी विरसजीवी अंतजीवी पंतजीवी लूहजीवी तुच्छजीवी उवसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी? हंता गोयमा! जमाली णं अनगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी। जति णं भंते! जमाली अनगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी कम्हा णं भंते! जमाली अनगारे कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमट्ठितिएसु देवकिव्विसिएसु देवेसु देवकिव्विसियत्ताए उववन्ने? गोयमा! जमाली णं अनगारे आयरियपडिनीए, उवज्झायपडिनीए, आयरियउवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्ति कारए बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं, मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमट्ठितिएसु देवकिव्विसिएसु देवेसु देव-किव्विसियत्ताए उववन्ने।
Sutra Meaning : भगवन् ! किल्विषिक देव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के – तीन पल्योपम की स्थिति वाले, तीन सागरोपम की स्थिति वाले और तेरह सागरोपम की स्थिति वाले ! भगवन् ! तीन पल्योपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों के ऊपर और सौधर्म – ईशान कल्पों के नीचे तीन पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं। भगवन् ! तीन सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! सौधर्म और ईशान कल्पों के ऊपर तथा सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के नीचे तीन सागरोपम की स्थिति वाले देव रहते हैं भगवत् ! तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विविषक देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! ब्रह्मलोककल्प के ऊपर तथा लान्तककल्प के नीचे तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव रहते हैं। भगवन् ! किन कर्मों के आदान से किल्विषिकदेव, किल्विषिकदेव के रूप में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जो जीव आचार्य और उपाध्याय क अशय करने वाले, अवर्णवाद बोलने वाले और अकीर्ति करने वाले हैं तथा बहुत से असत्य भावों को प्रकट करने से, मिथ्यात्व के अभिनिवेशों से अपनी आत्मा को, दूसरों को और स्व – पर दोनो को भ्रान्त और दुर्बोध करने वाले बहुत वर्षों तक श्रमण – पर्याय का पालन करके उस अकार्य स्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना काल करके तीन में (से) किन्हीं किल्विषिकदेवों में किल्विषिकदेव रूप में उत्पन्न होते हैं। तीन पल्योपम की स्थीत वालों में, तीन सागरोपम की स्थिति वालों में, अथवा तेरह सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन्! किल्विषिक देव उन देवलोकों से आयु का क्षय होने पर, भवक्षय होने पर और स्थिति का क्षय होने के बाद च्यवकर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ?, गौतम ! कुछ किल्विषिकदेव, नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव के चार – पांच भव करके और इतना संसार – परिभ्रमण करके तत्पश्चात् सिद्धबुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखो का अन्त करते हैं और कितने ही किल्विषिकदेव अनादि, अनन्त और दीर्घ मार्ग वाले चार गतिरूप संसार – कान्तार में परिभ्रमण करते हैं भगवन् ! क्या जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी, अन्ताहारी, प्रान्ताहारी, रूक्षाहारी, तुच्छाहारी, अरसजीवी, विरसजीवी यावत् तुच्छजीवी, उपशान्तजीवी, प्रशान्तजीवी और विविक्तजीवो था ? हाँ, गौतम ! जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विविक्तजीवी था। भगवन् ! यदि जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावत् विकिक्तजीवी था, तो काल के समय काल करके वह लान्तककल्प में तेरह सागरोपम की स्थीत वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देव के रूप में क्यों उत्पान्न हुआ ? गौतम ! जमालि अनगार आचार्य का प्रत्यनीक, उपाध्याय का प्रत्यनीक तथा आचार्य और उपाध्याय का अपयश करने वाला और उनका अवर्णवाद करने वाला था, यावत् वह मिथ्याभिनिवेश द्वारा अपने आपको, दूसरों को और उभय को भ्रान्ति में डालने वाला और दुर्विदग्ध बनाने वाला था, यावत् बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन कर, अर्द्धमासिक संलेखना से शरीर को कृश करके तथा तीस भक्त का अनशन द्वारा छेदन कर उस अकृत्यस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही, उसने काल के समय काल किया, जिससे वह लान्तक देवलोक में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवरूप में उत्पन्न हुआ।
Mool Sutra Transliteration : Kativiha nam bhamte! Devakivvisiya pannatta? Goyama! Tiviha devakivvisiya pannatta, tam jaha–tipaliovamatthiiya, tisagarovamatthiiya, terasasagarovamatthiiya. Kahim nam bhamte! Tipaliovamatthiiya devakivvisiya parivasamti? Goyama! Uppim joisiyanam, hitthim sohammisanesu kappesu, ettha nam tipaliovamatthiiya deva-kivvisiya parivasamti. Kahim nam bhamte! Tisagarovamatthiiya devakivvisiya parivasamti? Goyama! Uppim sohammisananam kappanam, hitthim sanamkumara-mahimdesu kappesu, ettha nam tisagarovamatthiiya devakivvisiya parivasamti. Kahim nam bhamte! Terasasagarovamatthiiya devakivvisiya parivasamti? Goyama! Uppim bambhalogassa kappassa, hitthim lamtae kappe, ettha nam terasasagarovamatthiiya devakivvisiya deva parivasamti. Devakivvisiya nam bhamte! Kesu kammadanesu devakivvisiyattae uvavattaro bhavamti? Goyama! Je ime jiva ayariyapadiniya, uvajjhayapadiniya, kulapadiniya, ganapadiniya, samghapadiniya, ayariya-uvajjhayanam ayasakara avannakara akittikara bahuhim asabbhavu-bbhavanahim, michchhattabhinivesehi ya appanam param cha tadubhayam cha vuggahemana vuppaemana bahuim vasaim samannapariyagam paunamti, paunitta tassa thanassa analoiyapadikkamta kalamase kalam kichcha annayaresu su devakivvisiesu devakivvisiyattae uvavattaro bhavamti, tam jaha– tipaliovamatthitiesu va, tisagarovamatthitiesu va, terasasagarovamatthitiesu va. Devakivvisiya nam bhamte! Tao devalogao aukkhaenam, bhavakkhaenam, thitikkhaenam anamtaram chayam chaitta kahim gachchhamti? Kahim uvavajjamti? Goyama! Java chattari pamcha neraiya-tirikkhajoniya-manussa-devabhavaggahanaim samsaram anu-pariyattitta tao pachchha sijjhamti bujjhamti muchchamti parinivvayamti savvadukkhanam amtam karemti, atthegatiya anadiyam anavadaggam dihamaddham chauramtam samsarakamtaram anupariyattamti. Jamali nam bhamte! Anagare arasahare virasahare amtahare pamtahare luhahare tuchchhahare arasa-jivi virasajivi amtajivi pamtajivi luhajivi tuchchhajivi uvasamtajivi pasamtajivi vivittajivi? Hamta goyama! Jamali nam anagare arasahare virasahare java vivittajivi. Jati nam bhamte! Jamali anagare arasahare virasahare java vivittajivi kamha nam bhamte! Jamali anagare kalamase kalam kichcha lamtae kappe terasasagarovamatthitiesu devakivvisiesu devesu devakivvisiyattae uvavanne? Goyama! Jamali nam anagare ayariyapadinie, uvajjhayapadinie, ayariyauvajjhayanam ayasakarae avannakarae akitti karae bahuhim asabbhavubbhavanahim, michchhattabhinivesehi ya appanam param cha tadubhayam cha vuggahemane vuppaemane bahuim vasaim samannapariyagam paunitta, addhamasiyae samlehanae tisam bhattaim anasanae chhedetta tassa thanassa analoiyapadikkamte kalamase kalam kichcha lamtae kappe terasasagarovamatthitiesu devakivvisiesu devesu deva-kivvisiyattae uvavanne.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Kilvishika deva kitane prakara ke haim\? Gautama ! Tina prakara ke – tina palyopama ki sthiti vale, tina sagaropama ki sthiti vale aura teraha sagaropama ki sthiti vale ! Bhagavan ! Tina palyopama ki sthiti vale kilvishika deva kaham rahate haim\? Gautama ! Jyotishka devom ke upara aura saudharma – ishana kalpom ke niche tina palyopama ki sthiti vale deva rahate haim. Bhagavan ! Tina sagaropama ki sthiti vale kilvishika deva kaham rahate haim\? Gautama ! Saudharma aura ishana kalpom ke upara tatha sanatkumara aura mahendra devaloka ke niche tina sagaropama ki sthiti vale deva rahate haim bhagavat ! Teraha sagaropama ki sthiti vale kilvivishaka deva kaham rahate haim\? Gautama ! Brahmalokakalpa ke upara tatha lantakakalpa ke niche teraha sagaropama ki sthiti vale kilvishika deva rahate haim. Bhagavan ! Kina karmom ke adana se kilvishikadeva, kilvishikadeva ke rupa mem utpanna hote haim\? Gautama ! Jo jiva acharya aura upadhyaya ka ashaya karane vale, avarnavada bolane vale aura akirti karane vale haim tatha bahuta se asatya bhavom ko prakata karane se, mithyatva ke abhiniveshom se apani atma ko, dusarom ko aura sva – para dono ko bhranta aura durbodha karane vale bahuta varshom taka shramana – paryaya ka palana karake usa akarya sthana ki alochana aura pratikramana kiye bina kala karake tina mem (se) kinhim kilvishikadevom mem kilvishikadeva rupa mem utpanna hote haim. Tina palyopama ki sthita valom mem, tina sagaropama ki sthiti valom mem, athava teraha sagaropama ki sthiti valom mem. Bhagavan! Kilvishika deva una devalokom se ayu ka kshaya hone para, bhavakshaya hone para aura sthiti ka kshaya hone ke bada chyavakara kaham jate haim, kaham utpanna hote haim\?, gautama ! Kuchha kilvishikadeva, nairayika, tiryancha, manushya aura deva ke chara – pamcha bhava karake aura itana samsara – paribhramana karake tatpashchat siddhabuddha hote haim, yavat sarvaduhkho ka anta karate haim aura kitane hi kilvishikadeva anadi, ananta aura dirgha marga vale chara gatirupa samsara – kantara mem paribhramana karate haim Bhagavan ! Kya jamali anagara arasahari, virasahari, antahari, prantahari, rukshahari, tuchchhahari, arasajivi, virasajivi yavat tuchchhajivi, upashantajivi, prashantajivi aura viviktajivo tha\? Ham, gautama ! Jamali anagara arasahari, virasahari yavat viviktajivi tha. Bhagavan ! Yadi jamali anagara arasahari, virasahari yavat vikiktajivi tha, to kala ke samaya kala karake vaha lantakakalpa mem teraha sagaropama ki sthita vale kilvishika devom mem kilvishika deva ke rupa mem kyom utpanna hua\? Gautama ! Jamali anagara acharya ka pratyanika, upadhyaya ka pratyanika tatha acharya aura upadhyaya ka apayasha karane vala aura unaka avarnavada karane vala tha, yavat vaha mithyabhinivesha dvara apane apako, dusarom ko aura ubhaya ko bhranti mem dalane vala aura durvidagdha banane vala tha, yavat bahuta varshom taka shramana paryaya ka palana kara, arddhamasika samlekhana se sharira ko krisha karake tatha tisa bhakta ka anashana dvara chhedana kara usa akrityasthana ki alochana aura pratikramana kiye bina hi, usane kala ke samaya kala kiya, jisase vaha lantaka devaloka mem teraha sagaropama ki sthiti vale kilvishika devom mem kilvishika devarupa mem utpanna hua.