Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003967
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-९

Translated Chapter :

शतक-९

Section : उद्देशक-३३ कुंडग्राम Translated Section : उद्देशक-३३ कुंडग्राम
Sutra Number : 467 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के हट्ठे जाए, अरोए वलियसरीरे साव-त्थीओ नयरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वानुपुव्विं चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासीजहा णं देवानुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्थावक्कमणेणं अव-क्कंता, नो खलु अहं तहा छउमत्थावक्कमणेणं अवक्कंते, अहं णं उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कंते तए णं भगवं जमालिं अनगारं एवं वयासीनो खलु जमाली! केवलिस्स नाणे वा दंसणे वा सेलंसि वा थंभंसि वा थूभंसि वा आवरिज्जइ वा निवारिज्जइ वा, जदि णं तुमं जमाली! उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवलि भवित्ता केवलिअ-वक्कमणेणं अवक्कंते, तो णं इमाइं दो वागरणाइं वागरेहिसासए लोए जमाली! असासए लोए जमाली? सासए जीवे जमाली! असासए जीवे जमाली? तए णं से जमाली अनगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे जाए या वि होत्था, नो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचि वि पमोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीए संचिट्ठइ जमालीति! समणे भगवं महावीरे जमालिं अनगारं एवं वयासीअत्थि णं जमाली! ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था, जे णं पभू एयं वागरणं वागरित्तए, जहा णं अहं, नो चेव णं एतप्पगारं भासं भासित्तए, जहा णं तुमं सासए लोए जमाली! जं कयाइ नासि, कयाइ भवइ, कयाइ भविस्सइभुविं , भवइ , भविस्सइ धुवे, नितिए सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए निच्चे असासए लोए जमाली! जं ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ, उस्सप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ सासए जीवे जमाली! जं कयाइ नासि, कयाइ भवइ, कयाइ भविस्सइभुविं , भवइ , भविस्सइ धुवे, नितिए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए निच्चे असासए जीवे जमाली! जण्णं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ, तिरिक्खजोणिए भवित्ता मनुस्से भवइ, मनुस्से भवित्ता देवे भवइ तए णं से जमाली अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एतमट्ठं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एतमट्ठं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोच्चं पि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमइ, अवक्कमित्ता बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं अप्पाणं परं तदुभयं वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेइ, ज्झूसेत्ता तीसं भत्ताइं अनसणाए छेदेइ, छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितीएसु देवकिव्विसिएसु देवेसु देवकिव्विसियत्ताए उववन्ने
Sutra Meaning : तदन्तर किसी समय जमालि अनगार उक रोगातंक से मुक्त और हृष्ट हो गया तथा नीरोग और बलवान् शीर वाला हुआ; तब श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से निकला और अनुक्रम से विचरण करता हुआ एवं ग्रामनुग्राम विहार करता हुआ, जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, जिसमें कि श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, उनके पास आया वह भगवान् महावीर से तो अत्यन्त दूर और अतिनिकट खड़ा रह कर भगवान् से इस प्रकार कहने लगा जिस प्रकार आप देवानुप्रिय के बहुत से शिष्य छद्मस्थ रह कर छद्मस्थ अवस्था में ही निकल कर विचरण करते हैं, उस प्रकार मैं छद्‌मस्थ रह कर छद्मस्थ अवस्था में निलक कर विचरण नहीं करता; मैं उत्पन्न हुए केवलज्ञान केवलदर्शन को धारण करने वाला अर्हत्, जिन, केवली हो कर केवली विहार से विचरण कर रहा हूँ इस पर भगवान् गौतम ने जमालि अनगार से इस प्रकार कहा हे जमालि ! केवली का ज्ञान या दर्शन पर्वत, स्तम्भ अथवा स्तूप आदि से अवरुद्ध नहीं होता और इनसे रोका जा सकता है तो हे जमालि ! यदि तुम उत्पान्न केवलज्ञान दर्शन के धारक, अर्हत्, जिन और केवली हो कर केवली रूप से उपक्रमण (गुरुकुल से निर्गमन) करके विचरण कर रहे हो तो इन दो प्रश्नों का उत्तर दो लोक शाश्वत है या आशाश्वत है ? एवं जीव शाश्वत है अथवा आशाश्वत है ? भगवन् गौतम द्वारा इस प्रकार जमालि अनगार से कहे जाने पर वह (जमालि) शंकित एवं कांक्षित हुआ, यावत् कलुषित परिणाम वाला हुआ वह भगवान् गौतमस्वामी को किञ्चित् भी उत्तर देने में समर्थ हुआ वह मौन होकर चुपचात खरा रहा (तत्पश्चात्) श्रमण भगवान् महावीर ने जमालि अनगार को सम्बोधित करके यों कहा जमालि ! मेरे बहुत से श्रमण निर्ग्रन्थ अन्तेवासी छद्‌मनस्थ हैं जो इन प्रश्नों का उत्तर देने में उसी प्रकार समर्थ हैं, जिस प्रकार मैं हूँ, फिर भी इस प्रकार की भाषा वे नहीं बोलते जमालि ! लोक शाश्वत है, क्योंकि यह कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा भी नहीं और कभी रहेगा, ऐसा भी नहीं है; किन्तु लोक था, है और रहेगा यह ध्रुव, नित्य, शाश्वत, अक्षय, अव्यय अवस्थित ओर नित्य है हे जमालि ! लोक अशाश्वत (भी) है, क्योंकि अवसर्पिणी काल होकर उत्सर्पिणी काल होता है, फिर उत्सर्पिणी काल होकर अवसर्पिणी काल होता है हे जमालि ! जीव शाश्वत है; क्योंकि जीव कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं है और कभी नहीं रहेगा, ऐसा भीं नहीं है; इत्यादि यावत् जीव नित्य है हे जमालि ! जीव अशाश्वत (भी) है, क्योंकि वह नैरयिक होकर तिर्यञ्चयोनिक हो जाता है, तिर्यञ्चयोनिक होकर मनुष्य हो जातपा है और मनुष्य हो कर देव हो जाता है श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा जमालि अनगार को इस प्रकार कहे जाने पर, यावत् प्ररूपित करने पर भी उसने इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की और श्रमण भगवान् महावीर की इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं करता हुआ जमालि अनगार दूसरी बार भी स्वयं भगवान् के पास से चला गया इस प्रकार भगवान् से स्वयं पृथक विचरण करके जमालि ने बहुत से असद्‌भूत भावों को प्रकट करके तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेशों से अपनी आत्मा को, पर को तथा उभय को भ्रान्त करते हुए एवं मिथ्याज्ञानयुक्त करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन किया अन्त में अर्द्धमास की संलेखना द्वारा अपने शरीर को कृश करके तथा अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन करके, उस स्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना ही, काल के समय में काल करके लान्तककल्प में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवरूप में उत्पन्न हुआ
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se jamali anagare annaya kayai tao rogayamkao vippamukke hatthe jae, aroe valiyasarire sava-tthio nayario kotthagao cheiyao padinikkhamai, padinikkhamitta puvvanupuvvim charamane, gamanuggamam duijjamane jeneva champa nayari, jeneva punnabhadde cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte thichcha samanam bhagavam mahaviram evam vayasijaha nam devanuppiyanam bahave amtevasi samana niggamtha chhaumatthavakkamanenam ava-kkamta, no khalu aham taha chhaumatthavakkamanenam avakkamte, aham nam uppannanana-damsanadhare araha jine kevali bhavitta kevaliavakkamanenam avakkamte. Tae nam bhagavam jamalim anagaram evam vayasino khalu jamali! Kevalissa nane va damsane va selamsi va thambhamsi va thubhamsi va avarijjai va nivarijjai va, jadi nam tumam jamali! Uppannanana-damsanadhare araha jine kevali bhavitta kevalia-vakkamanenam avakkamte, to nam imaim do vagaranaim vagarehisasae loe jamali! Asasae loe jamali? Sasae jive jamali! Asasae jive jamali? Tae nam se jamali anagare bhagavaya goyamenam evam vutte samane samkie kamkhie vitigichchhie bhedasamavanne kalusasamavanne jae ya vi hottha, no samchaeti bhagavao goyamassa kimchi vi pamokkhamaikkhittae, tusinie samchitthai. Jamaliti! Samane bhagavam mahavire jamalim anagaram evam vayasiatthi nam jamali! Mamam bahave amtevasi samana niggamtha chhaumattha, je nam pabhu eyam vagaranam vagarittae, jaha nam aham, no cheva nam etappagaram bhasam bhasittae, jaha nam tumam. Sasae loe jamali! Jam na kayai nasi, na kayai na bhavai, na kayai na bhavissaibhuvim cha, bhavai ya, bhavissai yadhuve, nitie sasae, akkhae, avvae, avatthie nichche. Asasae loe jamali! Jam osappini bhavitta ussappini bhavai, ussappini bhavitta osappini bhavai. Sasae jive jamali! Jam na kayai nasi, na kayai na bhavai, na kayai na bhavissaibhuvim cha, bhavai ya, bhavissai yadhuve, nitie, sasae, akkhae, avvae, avatthie nichche. Asasae jive jamali! Jannam neraie bhavitta tirikkhajonie bhavai, tirikkhajonie bhavitta manusse bhavai, manusse bhavitta deve bhavai. Tae nam se jamali anagare samanassa bhagavao mahavirassa evamaikkhamanassa java evam paruvemanassa etamattham no saddahai no pattiyai no roei, etamattham asaddahamane apattiyamane aroemane dochcham pi samanassa bhagavao mahavirassa amtiyao ayae avakkamai, avakkamitta bahuhim asabbhavubbhavanahim michchhattabhinivesehim ya appanam cha param cha tadubhayam cha vuggahemane vuppaemane bahuim vasaim samannapariyagam paunai, paunitta addhamasiyae samlehanae attanam jjhusei, jjhusetta tisam bhattaim anasanae chhedei, chhedetta tassa thanassa analoiyapadikkamte kalamase kalam kichcha lamtae kappe terasasagarovamathitiesu devakivvisiesu devesu devakivvisiyattae uvavanne.
Sutra Meaning Transliteration : Tadantara kisi samaya jamali anagara uka rogatamka se mukta aura hrishta ho gaya tatha niroga aura balavan shira vala hua; taba shravasti nagari ke koshthaka udyana se nikala aura anukrama se vicharana karata hua evam gramanugrama vihara karata hua, jaham champa nagari thi aura jaham purnabhadra chaitya tha, jisamem ki shramana bhagavan mahavira virajamana the, unake pasa aya. Vaha bhagavan mahavira se na to atyanta dura aura na atinikata khara raha kara bhagavan se isa prakara kahane laga jisa prakara apa devanupriya ke bahuta se shishya chhadmastha raha kara chhadmastha avastha mem hi nikala kara vicharana karate haim, usa prakara maim chhadmastha raha kara chhadmastha avastha mem nilaka kara vicharana nahim karata; maim utpanna hue kevalajnyana kevaladarshana ko dharana karane vala arhat, jina, kevali ho kara kevali vihara se vicharana kara raha hum. Isa para bhagavan gautama ne jamali anagara se isa prakara kaha he jamali ! Kevali ka jnyana ya darshana parvata, stambha athava stupa adi se avaruddha nahim hota aura na inase roka ja sakata hai. To he jamali ! Yadi tuma utpanna kevalajnyana darshana ke dharaka, arhat, jina aura kevali ho kara kevali rupa se upakramana (gurukula se nirgamana) karake vicharana kara rahe ho to ina do prashnom ka uttara do loka shashvata hai ya ashashvata hai\? Evam jiva shashvata hai athava ashashvata hai\? Bhagavan gautama dvara isa prakara jamali anagara se kahe jane para vaha (jamali) shamkita evam kamkshita hua, yavat kalushita parinama vala hua. Vaha bhagavan gautamasvami ko kinchit bhi uttara dene mem samartha na hua. Vaha mauna hokara chupachata khara raha. (tatpashchat) shramana bhagavan mahavira ne jamali anagara ko sambodhita karake yom kaha jamali ! Mere bahuta se shramana nirgrantha antevasi chhadmanastha haim jo ina prashnom ka uttara dene mem usi prakara samartha haim, jisa prakara maim hum, phira bhi isa prakara ki bhasha ve nahim bolate. Jamali ! Loka shashvata hai, kyomki yaha kabhi nahim tha, aisa nahim hai; kabhi nahim hai, aisa bhi nahim aura kabhi na rahega, aisa bhi nahim hai; kintu loka tha, hai aura rahega. Yaha dhruva, nitya, shashvata, akshaya, avyaya avasthita ora nitya hai. He jamali ! Loka ashashvata (bhi) hai, kyomki avasarpini kala hokara utsarpini kala hota hai, phira utsarpini kala hokara avasarpini kala hota hai. He jamali ! Jiva shashvata hai; kyomki jiva kabhi nahim tha, aisa nahim hai; kabhi nahim hai, aisa nahim hai aura kabhi nahim rahega, aisa bhim nahim hai; ityadi yavat jiva nitya hai. He jamali ! Jiva ashashvata (bhi) hai, kyomki vaha nairayika hokara tiryanchayonika ho jata hai, tiryanchayonika hokara manushya ho jatapa hai aura manushya ho kara deva ho jata hai. Shramana bhagavan mahavira svami dvara jamali anagara ko isa prakara kahe jane para, yavat prarupita karane para bhi usane isa bata para shraddha, pratiti aura ruchi nahim ki aura shramana bhagavan mahavira ki isa bata para shraddha, pratiti aura ruchi nahim karata hua jamali anagara dusari bara bhi svayam bhagavan ke pasa se chala gaya. Isa prakara bhagavan se svayam prithaka vicharana karake jamali ne bahuta se asadbhuta bhavom ko prakata karake tatha mithyatva ke abhiniveshom se apani atma ko, para ko tatha ubhaya ko bhranta karate hue evam mithyajnyanayukta karate hue bahuta varshom taka shramana paryaya ka palana kiya. Anta mem arddhamasa ki samlekhana dvara apane sharira ko krisha karake tatha anashana dvara tisa bhaktom ka chhedana karake, usa sthana ki alochana evam pratikramana kiye bina hi, kala ke samaya mem kala karake lantakakalpa mem teraha sagaropama ki sthiti vale kilvishika devom mem kilvishika devarupa mem utpanna hua..