Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1003966 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-९ |
Translated Chapter : |
शतक-९ |
Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Translated Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम |
Sutra Number : | 466 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स एयमट्ठं नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से जमाली अनगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स दोच्चं पि, तच्चं पि एयमट्ठं नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से जमाली अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ, कोट्ठए चेइए–वण्णओ जाव वणसंडस्स। तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामाणु-ग्गामं दुइज्जमाणे जेणेव सावत्थी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं तस्स जमालिस्स अनगारस्स तेहिं अरसेहि य, विरसेहि य अंतेहि य, पंतेहि य, लूहेहि य, तुच्छेहि य, कालाइक्कंतेहि य, पमाणाइक्कंतेहि य पाणभोयणेहिं अन्नया कयाइ सरीरगंसि विउले रोगातंके पाउब्भूए–उज्जले विउले पगाढे कक्कसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे तिव्वे दुरहियासे। पित्तज्जरपरिगतसरीरे, दाहवक्कंतिए या वि विहरइ। तए णं से जमाली अनगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे निग्गंथे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! मम सेज्जा-संथारगं संथरह। तए णं ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अनगारस्स एतमट्ठं विनएणं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता जमालिस्स अनगार-स्स सेज्जा-संथारगं संथरंति। तए णं से जमाली अनगारे बलियतरं वेदनाए अभिभूए समाणे दोच्चं पि समणे निग्गंथे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–ममं णं देवानुप्पिया! सेज्जासंथारए किं कडे? कज्जइ? तते णं ते समणा निग्गंथा जमालिं अनगारं एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पियाणं सेज्जा-संथारए कडे, कज्जइ। तए णं तस्स जमालिस्स अनगारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–जण्णं समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ–एवं खलु चलमाणे चलिए, उदीरिज्जमाणे उदीरिए, वेदिज्जमाणे वेदिए पहिज्जमाणे पहीने, छिज्जमाणे छिण्णे, भिज्जमाणे भिण्णे, दज्झमाणे दड्ढे, मिज्जमाणे मए, निज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे, तण्णं मिच्छा। इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए। जम्हा णं सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए। तम्हा चलमाणे वि अचलिए जाव निज्जरिज्जमाणे वि अनिज्जिण्णे–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता समणे निग्गंथे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–जण्णं देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु चलमाणे चलिए जाव निज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे, तण्णं मिच्छा। इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए। जम्हा णं सेज्जा-संथारए कज्जमाणे अकडे, संथरिज्जमाणे असंथरिए। तम्हा चलमाणे वि अचलिए जाव निज्जरिज्जमाणे वि अनिज्जिण्णे। तए णं तस्स जमालिस्स अनगारस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स अत्थेगतिया समणा निग्गंथा एयमट्ठं सद्दहंति पत्तियंति रोयंति, अत्थेगतिया समणा निग्गंथा एयमट्ठं नो सद्दहंति नो पत्तियंति नो रोयंति। तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अनगारस्स एयमट्ठं सद्दहंति पत्तियंति रोयंति, ते णं जमालिं चेव अनगारं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति। तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अनगारस्स एयमट्ठं नो सद्दहंति नो पत्तियंति नो रोयंति, ते णं जमालिस्स अनगारस्स अंतियाओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता पुव्वानुपुव्विं चरमाणा गामाणुग्गामं दूइज्जमाणा जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता समणं भगवं महावीरं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति। | ||
Sutra Meaning : | तदनन्तर एक दिन जमालि अनगार श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और भगवान् महावीर को वन्दना – नमस्कार करके इस प्रकार बोले – भगवन् ! आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर मैं पांच सौ अनगारों के साथ इस जनपद से बाहर विहार करना चाहता हूँ। यह सुनकर श्रमण भगवान् महावीर ने जमालि अनगार की इस बात को आदर नहीं दिया, न स्वीकार किया। वे मौन रहे। तब जमालि अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर से दूसरी बार और तीसरी बार भी इस प्रकार कहा – भंते ! आपकी आज्ञा मिल जाए तो मैं पांच सौ अनगारों के साथ अन्य जनपदों में विहार करना चाहता हूँ। जमालि अनगार के दूसरी बार और तीसरी बार भी वही बात कहने पर श्रमण भगवान् महावीर ने इस बात का आदर नहीं किया, यावत् वे मौन रहे। तब जमालि अनगार ने श्रमण मगवान् महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और फिर उनके पास से, बहुशालक उद्यान से निकला और फिर पांच सौ अनगारों के साथ बाहर के जनपदों में विचरण करने लगा। उस काल उस समय में श्रावस्ती नाम की नगरी थी। (वर्णन) वहाँ कोष्ठक नामक उद्यान था, उसका और वनखण्ड तक का वर्णन (जान लेना चाहिए)। उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। (वर्णन) वहाँ पूर्णभद्र नामक चैत्य था। (वर्णन) तथा यावत् उसमें पृथ्वीशिलापट्ट था। एक बार वह जमालि अनगार, पांच सौ अनगारों के साथ संपरिवृत्त होकर अनुक्रम से विचरण करता हुआ और ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ श्रावस्ती नगरी में जहाँ कोष्ठक उद्यान था, वहाँ आया और मनियों के कल्प के अनुरुप अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप के द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ विचरण करने लगा। उधर श्रमण भगवन महावीर भी एक बार अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत् सुखपूर्वक विहार करते हुए, जहाँ चम्पानगरी थी और पूर्णभद्र नामक चैत्य था, वहाँ पधारे; तथा श्रमणों के अनुरुप अवग्रह ग्रहण संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण कर रहे थे। उस समय जमालि अनगार को अरस, विरस, अन्त, प्रान्त, रूक्ष और तुच्छ तथा कालातिक्रान्त और प्रामणातिक्रान्त एवं ठंडे पान और भोजनों से एक बार शरीर में विपुल रोगातंक उत्पन्न हो गया। वह रोग उज्ज्वल, विपुल, प्रगाढ, कर्कश, कटुक, चण्ड, दुःख रूप, कष्टसाध्य, तीव्र और दुःसह था। उसका शरीर पित्तज्वर से व्याप्त होने के कारण दाह से युक्त हो गया था। वेदना से पीड़ित जमालि अनगार ने तब श्रमण – निर्ग्रन्थों को बुला कर उनसे कहा – हे देवानुप्रियो ! मेरे सोने के लिए तुम संस्तारक बिछा दो। तब श्रमण – निर्ग्रन्थो ने जमालि अनगार की यह बात विनय – पूर्वक स्वीकार की और जमालि अनगार के लिए बिछौना बिछाने लगे। किन्तु जमालि अनगार प्रबलतर वेदना से पीड़ित थे, इस लिए उन्होने दुबारा फिर श्रमण – निर्ग्रन्थों को बुलाया और उनसे इस प्रकार पूछा – देवानुप्रियो ! क्या मेरे सोने के लिए संस्तारक बिछा दिया या बिछा रहे हो ? इसके उत्तर में श्रमण – निर्ग्रन्थों ने जमालि अनगार से इस प्रकार कहा – देवानुप्रिय के सोने के लिए बिछौना बिछा नहीं, बिछाया जा रहा है। श्रमणों की यह बात सुनने पर जमालि अनगार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् उत्पन्न हुआ कि श्रमण भगवान् महावीर जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि चलमान चलित है, उदीर्यमाण उदीरित है, यावत् निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण है, यह कथन मिथ्या है; क्योंकि यह प्रत्यक्ष दीख रहा है कि जब तक शय्या – संस्तारक बिछाया गया नहीं है, इस कारण ’चलमान’ ‘चलित नहीं, किन्तु ‘अचलित’ है, यावत्, ‘निर्जीर्यमाण’ ‘निर्जीर्ण’ नहीं, किन्तुं ‘अनिर्जीण’ है। इस प्रकार विचार कर श्रमण – निर्ग्रन्थों को बुलाया और उनसे इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रियो ! श्रमण भगवान् महावीर जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि ‘चलमान’ ‘चलित’ है; यावत् (वस्तुतः) निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण नहीं, किन्तु अनिजीर्ण है। जमालि अनगार द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर यावत् प्ररूपणा किये जाने पर कई श्रमण – निर्ग्रन्थों ने इस (उपर्युक्त) बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि की तथा कितने ही श्रमण – निर्ग्रन्थों ने इस बात पर श्रद्धा, प्रतीत एवं रुचि नहीं की। उनमें से जिन श्रमण – निर्ग्रन्थों ने जमालि अनगार की इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि की, वे जमालि अनगार को आश्रय करके करके विचरण करने लगे और जिन श्रमण – निर्ग्रन्थों ने जमालि अनगार की इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की, वे जमालि अनगार के पास से, कोष्ठक उद्यान से निकल गए और अनुक्रम से विचरते हुए एवं ग्रामनुग्राम विहार करते हुए, चम्पा नगरी के बाहर जहाँ पूर्णभद्र नामक चैत्य था और जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास पहूँचे। उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की, फिर वन्दना – नमस्कार करके वे भगवान् का आश्रय स्वीकार कर विचरने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se jamali anagare annaya kayai jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Tubbhehim abbhanunnae samane pamchahim anagarasaehim saddhim bahiya janavayaviharam viharittae. Tae nam samane bhagavam mahavire jamalissa anagarassa eyamattham no adhai, no parijanai, tusinie samchitthai. Tae nam se jamali anagare samanam bhagavam mahaviram dochcham pi tachcham pi evam vayasi–ichchhami nam bhamte! Tubbhehim abbhanunnae samane pamchahim anagarasaehim saddhim bahiya janavayaviharam viharittae. Tae nam samane bhagavam mahavire jamalissa anagarassa dochcham pi, tachcham pi eyamattham no adhai, no parijanai, tusinie samchitthai. Tae nam se jamali anagare samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta samanassa bhagavao mahavirassa amtiyao bahusalao cheiyao padinikkhamai, padinikkhamitta pamchahim anagarasaehim saddhim bahiya janavayaviharam viharai. Tenam kalenam tenam samaenam savatthi namam nayari hottha–vannao, kotthae cheie–vannao java vanasamdassa. Tenam kalenam tenam samaenam champa namam nayari hottha–vannao. Punnabhadde cheie–vannao java pudhavisilapattao. Tae nam se jamali anagare annaya kayai pamchahim anagarasaehim saddhim samparivude puvvanupuvvim charamane gamanu-ggamam duijjamane jeneva savatthi nayari jeneva kotthae cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhai, oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam samane bhagavam mahavire annaya kayai puvvanupuvvim charamane gamanuggamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jeneva champa nayari jeneva punnabhadde cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhai, oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam tassa jamalissa anagarassa tehim arasehi ya, virasehi ya amtehi ya, pamtehi ya, luhehi ya, tuchchhehi ya, kalaikkamtehi ya, pamanaikkamtehi ya panabhoyanehim annaya kayai sariragamsi viule rogatamke paubbhue–ujjale viule pagadhe kakkase kadue chamde dukkhe dugge tivve durahiyase. Pittajjaraparigatasarire, dahavakkamtie ya vi viharai. Tae nam se jamali anagare veyanae abhibhue samane samane niggamthe saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Mama sejja-samtharagam samtharaha. Tae nam te samana niggamtha jamalissa anagarassa etamattham vinaenam padisunemti, padisunetta jamalissa anagara-ssa sejja-samtharagam samtharamti. Tae nam se jamali anagare baliyataram vedanae abhibhue samane dochcham pi samane niggamthe saddavei, saddavetta evam vayasi–mamam nam devanuppiya! Sejjasamtharae kim kade? Kajjai? Tate nam te samana niggamtha jamalim anagaram evam vayasi–no khalu devanuppiyanam sejja-samtharae kade, kajjai. Tae nam tassa jamalissa anagarassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–jannam samane bhagavam mahavire evamaikkhai java evam paruvei–evam khalu chalamane chalie, udirijjamane udirie, vedijjamane vedie pahijjamane pahine, chhijjamane chhinne, bhijjamane bhinne, dajjhamane daddhe, mijjamane mae, nijjarijjamane nijjinne, tannam michchha. Imam cha nam pachchakkhameva disai sejja-samtharae kajjamane akade, samtharijjamane asamtharie. Jamha nam sejja-samtharae kajjamane akade, samtharijjamane asamtharie. Tamha chalamane vi achalie java nijjarijjamane vi anijjinne–evam sampehei, sampehetta samane niggamthe saddavei, saddavetta evam vayasi–jannam devanuppiya! Samane bhagavam mahavire evamaikkhai java paruvei–evam khalu chalamane chalie java nijjarijjamane nijjinne, tannam michchha. Imam cha nam pachchakkhameva disai sejja-samtharae kajjamane akade, samtharijjamane asamtharie. Jamha nam sejja-samtharae kajjamane akade, samtharijjamane asamtharie. Tamha chalamane vi achalie java nijjarijjamane vi anijjinne. Tae nam tassa jamalissa anagarassa evamaikkhamanassa java paruvemanassa atthegatiya samana niggamtha eyamattham saddahamti pattiyamti royamti, atthegatiya samana niggamtha eyamattham no saddahamti no pattiyamti no royamti. Tattha nam je te samana niggamtha jamalissa anagarassa eyamattham saddahamti pattiyamti royamti, te nam jamalim cheva anagaram uvasampajjitta nam viharamti. Tattha nam je te samana niggamtha jamalissa anagarassa eyamattham no saddahamti no pattiyamti no royamti, te nam jamalissa anagarassa amtiyao kotthagao cheiyao padinikkhamamti, padinikkhamitta puvvanupuvvim charamana gamanuggamam duijjamana jeneva champa nayari, jeneva punnabhadde cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karemti, karetta vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta samanam bhagavam mahaviram uvasampajjitta nam viharamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tadanantara eka dina jamali anagara shramana bhagavan mahavira ke pasa ae aura bhagavan mahavira ko vandana – namaskara karake isa prakara bole – bhagavan ! Apaki ajnya prapta hone para maim pamcha sau anagarom ke satha isa janapada se bahara vihara karana chahata hum. Yaha sunakara shramana bhagavan mahavira ne jamali anagara ki isa bata ko adara nahim diya, na svikara kiya. Ve mauna rahe. Taba jamali anagara ne shramana bhagavan mahavira se dusari bara aura tisari bara bhi isa prakara kaha – bhamte ! Apaki ajnya mila jae to maim pamcha sau anagarom ke satha anya janapadom mem vihara karana chahata hum. Jamali anagara ke dusari bara aura tisari bara bhi vahi bata kahane para shramana bhagavan mahavira ne isa bata ka adara nahim kiya, yavat ve mauna rahe. Taba jamali anagara ne shramana magavan mahavira ko vandana – namaskara kiya aura phira unake pasa se, bahushalaka udyana se nikala aura phira pamcha sau anagarom ke satha bahara ke janapadom mem vicharana karane laga. Usa kala usa samaya mem shravasti nama ki nagari thi. (varnana) vaham koshthaka namaka udyana tha, usaka aura vanakhanda taka ka varnana (jana lena chahie). Usa kala aura usa samaya mem champa nama ki nagari thi. (varnana) vaham purnabhadra namaka chaitya tha. (varnana) tatha yavat usamem prithvishilapatta tha. Eka bara vaha jamali anagara, pamcha sau anagarom ke satha samparivritta hokara anukrama se vicharana karata hua aura gramanugrama vihara karata hua shravasti nagari mem jaham koshthaka udyana tha, vaham aya aura maniyom ke kalpa ke anurupa avagraha grahana karake samyama aura tapa ke dvara atma ko bhavita karata hua vicharana karane laga. Udhara shramana bhagavana mahavira bhi eka bara anukrama se vicharana karate hue yavat sukhapurvaka vihara karate hue, jaham champanagari thi aura purnabhadra namaka chaitya tha, vaham padhare; tatha shramanom ke anurupa avagraha grahana samyama aura tapa se apani atma ko bhavita karate hue vicharana kara rahe the. Usa samaya jamali anagara ko arasa, virasa, anta, pranta, ruksha aura tuchchha tatha kalatikranta aura pramanatikranta evam thamde pana aura bhojanom se eka bara sharira mem vipula rogatamka utpanna ho gaya. Vaha roga ujjvala, vipula, pragadha, karkasha, katuka, chanda, duhkha rupa, kashtasadhya, tivra aura duhsaha tha. Usaka sharira pittajvara se vyapta hone ke karana daha se yukta ho gaya tha. Vedana se pirita jamali anagara ne taba shramana – nirgranthom ko bula kara unase kaha – he devanupriyo ! Mere sone ke lie tuma samstaraka bichha do. Taba shramana – nirgrantho ne jamali anagara ki yaha bata vinaya – purvaka svikara ki aura jamali anagara ke lie bichhauna bichhane lage. Kintu jamali anagara prabalatara vedana se pirita the, isa lie unhone dubara phira shramana – nirgranthom ko bulaya aura unase isa prakara puchha – devanupriyo ! Kya mere sone ke lie samstaraka bichha diya ya bichha rahe ho\? Isake uttara mem shramana – nirgranthom ne jamali anagara se isa prakara kaha – devanupriya ke sone ke lie bichhauna bichha nahim, bichhaya ja raha hai. Shramanom ki yaha bata sunane para jamali anagara ke mana mem isa prakara ka adhyavasaya yavat utpanna hua ki shramana bhagavan mahavira jo isa prakara kahate haim, yavat prarupana karate haim ki chalamana chalita hai, udiryamana udirita hai, yavat nirjiryamana nirjirna hai, yaha kathana mithya hai; kyomki yaha pratyaksha dikha raha hai ki jaba taka shayya – samstaraka bichhaya gaya nahim hai, isa karana ’chalamana’ ‘chalita nahim, kintu ‘achalita’ hai, yavat, ‘nirjiryamana’ ‘nirjirna’ nahim, kintum ‘anirjina’ hai. Isa prakara vichara kara shramana – nirgranthom ko bulaya aura unase isa prakara kaha – he devanupriyo ! Shramana bhagavan mahavira jo isa prakara kahate haim, yavat prarupana karate haim ki ‘chalamana’ ‘chalita’ hai; yavat (vastutah) nirjiryamana nirjirna nahim, kintu anijirna hai. Jamali anagara dvara isa prakara kahe jane para yavat prarupana kiye jane para kai shramana – nirgranthom ne isa (uparyukta) bata para shraddha, pratiti aura ruchi ki tatha kitane hi shramana – nirgranthom ne isa bata para shraddha, pratita evam ruchi nahim ki. Unamem se jina shramana – nirgranthom ne jamali anagara ki isa bata para shraddha, pratiti evam ruchi ki, ve jamali anagara ko ashraya karake karake vicharana karane lage aura jina shramana – nirgranthom ne jamali anagara ki isa bata para shraddha, pratiti aura ruchi nahim ki, ve jamali anagara ke pasa se, koshthaka udyana se nikala gae aura anukrama se vicharate hue evam gramanugrama vihara karate hue, champa nagari ke bahara jaham purnabhadra namaka chaitya tha aura jaham shramana bhagavan mahavira virajamana the, vaham unake pasa pahumche. Unhomne shramana bhagavan mahavira ki tina bara dahini ora se pradakshina ki, phira vandana – namaskara karake ve bhagavan ka ashraya svikara kara vicharane lage. |