Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003963 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-९ |
Translated Chapter : |
शतक-९ |
Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Translated Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम |
Sutra Number : | 463 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तस्स णं माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स पच्चत्थिमे णं एत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नयरे जमाली नामं खत्तियकुमारे परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूते, उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसतिबद्धेहिं णाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवनच्चिज्जमाणे-उवनच्चिज्जमाणे, उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे, उव-लालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे, पाउस-वासारत्त-सरद-हेमंत-वसंत-गिम्ह-पज्जंते छप्पि उऊ जहाविभवेणं माणेमाणे, कालं गाले-माणे, इट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। तए णं खत्तियकुण्डग्गामे नयरे सिंघाडग-तिक-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा जण-वूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणुम्मी इ वा जणुक्कलिया इ वा जणसण्णिवाए इ वा बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ, एवं पन्नवेइ, एवं परूवेइ, एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणेविहरइ। तं महप्फलं खलु देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए जहा ओववाइए जाव एगाभिमुहे खत्तियकुण्डग्गामं नयरं मज्झं-मज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव बहुसालए चेइए, तेणेव उवागच्छंति एवं जहा ओववाइए जाव तिविहाए पज्जुवासणयाए पज्जुवासंति। तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स तं महयाजणसद्दं वा जाव जणसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किण्णं अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा, खंद महे इ वा, मुगुंदमहे इ वा, नागमहे इ वा, जक्खमहे इ वा, भूयमहे इ वा, कूवमहे इ वा, तडागमहे इ वा, नईमहे इ वा, दहमहे इ वा, पव्वयमहे इ वा, रुक्खमहे इ वा, चेइयमहे इ वा, थूभमहे इ वा, जण्णं एते बहवे उग्गा, भोगा, राइण्णा, इक्खागा, णाया, कोरव्वा, खत्तिया, खत्तियपुत्ता, भडा, भडपुत्ता, जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अन्ने य बहवे राईसर–तलवर–माडं-बिय–कोडुंबिय–इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहप्पभितयो ण्हाया कयबलिकम्मा जहा ओववाइए जाव खत्तियकुंडग्गामे नयरे मज्झं-मज्झेणं निग्गच्छंति? – एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कंचुइ-पुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वदासी–किण्णं देवानुप्पिया! अज्ज खत्तियकुं-डग्गामे नयरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति? तए णं से कंचुइ-पुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणस्स भगवओ महावीरस्स आग-मणगहियविणिच्छए करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जमालिं खत्तियकुमारं जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी–नो खलु देवानुप्पिया! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति। एवं खलु देवानुप्पिया! अज्ज समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नयरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तए णं एते बहवे उग्गा, भोगा जाव निग्गच्छंति। तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइपुरिसस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चाउग्घंटं आसरह जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से जमाली खत्तियकुमारे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे जाव चंदणुक्खित्तगायसरीरे सव्वालंकारविभूसिए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, महयाभडचडकरपहकरवंदपरिक्खित्ते खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे, जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हेइ, निगिण्हेत्ता रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरु-हित्ता पुप्फतंबोलाउहमादियं पाहणाओ य विसज्जेति, विसज्जेत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइब्भूए अंजलिमउलियहत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पायाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स खत्तियकुमारस्स, तीसे य महतिमहालियाए इसि परिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंदपरियालाए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमियबलवीरिय-तेय-माहप्प-कंति-जुत्ते सारय-नवत्थणिय-महुरगंभीर-कोंचणिग्घोस-दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयण-नीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ–धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया। तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठ तुट्ठचित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितह-मेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! –से जहेयं तुब्भे वदह, जं नवरं–देवानुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवानुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। | ||
Sutra Meaning : | उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर से पश्चिम दिशा में क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर था। (वर्णन) उस क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में जमालि नाम का क्षत्रियकुमार रहता था। वह आढ्य, दीप्त यावत् अपरिभूत था। वह जिसमें मृदंग वाद्य की स्पष्ट ध्वनि हो रही थी, बत्तीस प्रकार के नाटको के अभिनय और नृत्य हो रहे थे, अनेक प्रकार की सुन्दर तरुणियों द्वारा सम्प्रयुक्त नृत्य और गुणगान बार – बार किये जा रहे थे, उसकी प्रशंसा से भवन गुंजाया जा रहा था, खुशियां मनाई जा रही थी, ऐसे अपने उच्च श्रेष्ठ प्रासाद – भवन में प्रावृट, वर्षा, शरद, हेमन्त, वसन्त और ग्रीष्म, इन छह ऋतुओं में अपने वैभव के अनुसार आनन्द मनाता हुआ, समय बिताता हुआ, मनुष्यसम्बन्धी पांच प्रकार के इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, वाले कामभोगों का अनुभव करता हुआ रहता था। उस दिन क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में श्रृगाटक, त्रिक, चतुष्क और चत्वर यावत् महापथ पर बहुत से लोगो का कोलाहल हो रहा था, इत्यादि औपपातिकसूत्र कि तरह जानना चाहिए; यावत् बहुत – से लोग परस्पर एक – दुसरे से कह रहे थे ‘देवानुप्रियो ! आदिकर यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर, इस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते है। अतः हे देवानुप्रियो ! तथारूप अरिहन्त भगवान् के नाम, गोत्र के श्रवण – मात्र से महान् फल होता है; इत्यादि वर्णन औपपातिकसूत्र अनुसार, यावत् वह जनसमुह तीन प्रकार की पर्युपासना करता है। तब बहुत – से मनुष्यों के शब्द और उनका परस्पर मिलन सुन और देख कर उस क्षत्रियकुमार जमालि के मन में विचार यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ – ‘क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में इन्द्र का उत्सव है ?, अथवा स्कन्दोत्सव है ?, या मुकुन्द महोत्सव है ? नाग का, यक्ष का अथवा भूतमहोत्सव है ? या की कूप का, सरोवर का, नदी का या द्रह का उत्सव है ?, अथवा किसी पर्वत का, वृक्ष का, चैत्य का अथवा स्तूप का उत्सव है ?, जिसके कारण ये बहुत – से उग्र, भोग, राजन्य, इक्ष्चाकु, ज्ञातृ, कौरव्य, क्षत्रियपुत्र, भट, भटपुत्र, सेनापति, सेनापतिपत्र, प्रशास्ता एवं प्रशास्तृपुत्र, लिच्छवी, लिच्छवीपुत्र, ब्राह्मण, ब्राह्मणपुत्र एवं इभ्य इत्यादि औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् सार्थवाह – प्रमुख, स्नान आदि करके यावत् बाहर निकल रहै है ?’ इस प्रकार विचार करके उसने कंचुकीपुरुष को बुलाया और उससे पूछा – ‘हे देवानुप्रियो ! क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में इन्द्र आदि का कोई उत्सव है, जिसके कारण यावत् ये सब लोग बाहर जा रहे है ?’ तब जमालि क्षत्रियकुमार के इस प्रकार कहने पर वह कंचुकी पुरुष अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने श्रमण भगवान् महावीर का आगमन जान कर एवं निश्चित करके हाथ जोड़ कर जय – विजय – ध्वनि से जमालि क्षत्रियकुमार को बधाई दी। उसने कहा – ‘हे देवानुप्रिये ! आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बाहर इन्द्र आदि का उत्सव नही है, किन्तु देवानुप्रिये ! आदिकर यावत् सर्वज्ञ – सर्वदर्शी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान में अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते है; इसी कारण ये उग्रकुल, भोगकुल आदि के क्षत्रिय आदि तथा और भी अनेक जन वन्दन के लिए यावत् जा रहे है। ‘तदनन्तर कंचुकीपुरुष से यह बात सुन कर और हृदय मे धारण करके जमालि क्षत्रियकुमार, हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही चार घण्टा वाले अश्वरथ को जोत कर यहाँ उपस्थित करो और मेरी इस आज्ञा का पालन करके सूचना दो। तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने क्षत्रियकुमार जमालि के इस आदेश को सुन कर तदनुसार कार्य करके निवेदन किया। तदनन्तर वह जमालि क्षत्रियकुमार जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया उसने स्नान किया तथा अन्य सभी दैनिक क्रियाऍ की, यावत् शरीर पर चन्दन का लेपन किया; समस्त आभूषणों से विभूषित हुआ और स्नानगृह से निकला आदि सारा वर्णन औपपातिकसूत्र अनुसार जानना चाहिए। फिर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी और जहाँ सुसज्जित चातुर्घष्ट अश्वरथ था, वहाँ वह आया। उस अश्वरथ पर चढ़ा। कोरण्टपुष्प की माला से युक्त छत्र को मस्तक पर धारण किया हुआ तथा बड़े – बड़े सुभटो, दासो, पथदर्शको आदि के समुह से परिवृत हुआ वह जमालि क्षत्रियकुमार क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर निकला और ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के बाहर जहाँ बहुशाल नामक उद्यान था, वहाँ आया। वहाँ घोड़ो को रोक कर रथ को खड़ा किया, वह रथ से नीचे उतरा। फिर उसने पुष्प, ताम्बूल, आयुध (शस्त्र) आदि तथा उपानह (जूते) वहीं छोड़ दिये। एक पट वाले वस्त्र का उत्तरासंग किया। तदनन्तर आचमन किया हुआ और अशुद्धि दूर करके अत्यन्त शुद्ध हुआ जमालि मस्तक पर दोनों हाथ जोड़े हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पहुचा। समीप जाकर श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार अदक्षिण प्रदक्षिणा की, यावत् त्रिविध पर्युपासना की। तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीरस्वामी ने उस क्षत्रियकुमार जमालि तथा उस बहुत बड़ी ऋषिगण आदि की परिषद् की यावत् धर्मोपदेश दिया। यावत् परिषद वापस लौट हुई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tassa nam mahanakumdaggamassa nagarassa pachchatthime nam ettha nam khattiyakumdaggame namam nayare hottha–vannao. Tattha nam khattiyakumdaggame nayare jamali namam khattiyakumare parivasai–addhe ditte java bahujanassa aparibhute, uppim pasayavaragae phuttamanehim muimgamatthaehim battisatibaddhehim nadaehim varatarunisampauttehim uvanachchijjamane-uvanachchijjamane, uvagijjamane-uvagijjamane, uva-lalijjamane-uvalalijjamane, pausa-vasaratta-sarada-hemamta-vasamta-gimha-pajjamte chhappi uu jahavibhavenam manemane, kalam gale-mane, itthe sadda-pharisa-rasa-ruva-gamdhe pamchavihe manussae kamabhoge pachchanubbhavamane viharai. Tae nam khattiyakundaggame nayare simghadaga-tika-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu mahaya janasadde i va jana-vuhe i va janabole i va janakalakale i va janummi i va janukkaliya i va janasannivae i va bahujano annamannassa evamaikkhai evam bhasai, evam pannavei, evam paruvei, evam khalu devanuppiya! Samane bhagavam mahavire adigare java savvannu savvadarisi mahanakumdaggamassa nagarassa bahiya bahusalae cheie ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemaneviharai. Tam mahapphalam khalu devanuppiya! Taharuvanam arahamtanam bhagavamtanam namagoyassa vi savanayae jaha ovavaie java egabhimuhe khattiyakundaggamam nayaram majjham-majjhenam niggachchhamti, niggachchhitta jeneva mahanakumdaggame nayare jeneva bahusalae cheie, teneva uvagachchhamti evam jaha ovavaie java tivihae pajjuvasanayae pajjuvasamti. Tae nam tassa jamalissa khattiyakumarassa tam mahayajanasaddam va java janasannivayam va sunamanassa va pasamanassa va ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–kinnam ajja khattiyakumdaggame nayare imdamahe i va, khamda mahe i va, mugumdamahe i va, nagamahe i va, jakkhamahe i va, bhuyamahe i va, kuvamahe i va, tadagamahe i va, naimahe i va, dahamahe i va, pavvayamahe i va, rukkhamahe i va, cheiyamahe i va, thubhamahe i va, jannam ete bahave ugga, bhoga, rainna, ikkhaga, naya, koravva, khattiya, khattiyaputta, bhada, bhadaputta, joha pasattharo mallai lechchhai lechchhaiputta anne ya bahave raisara–talavara–madam-biya–kodumbiya–ibbha-setthi-senavai-satthavahappabhitayo nhaya kayabalikamma jaha ovavaie java khattiyakumdaggame nayare majjham-majjhenam niggachchhamti? – evam sampehei, sampehetta kamchui-purisam saddavei, saddavetta evam vadasi–kinnam devanuppiya! Ajja khattiyakum-daggame nayare imdamahe i va java niggachchhamti? Tae nam se kamchui-purise jamalina khattiyakumarenam evam vutte samane hatthatutthe samanassa bhagavao mahavirassa aga-managahiyavinichchhae karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jamalim khattiyakumaram jaenam vijaenam baddhavei, baddhavetta evam vayasi–no khalu devanuppiya! Ajja khattiyakumdaggame nayare imdamahe i va java niggachchhamti. Evam khalu devanuppiya! Ajja samane bhagavam mahavire adigare java savvannu savvadarisi mahanakumdaggamassa nayarassa bahiya bahusalae cheie ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai, tae nam ete bahave ugga, bhoga java niggachchhamti. Tae nam se jamali khattiyakumare kamchuipurisassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Chaugghamtam asaraha juttameva uvatthaveha, uvatthavetta mama eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa jamalina khattiyakumarenam evam vutta samana chaugghamtam asaraham juttameva uvatthavemti, uvatthavetta tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se jamali khattiyakumare jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta nhae kayabalikamme java chamdanukkhittagayasarire savvalamkaravibhusie majjanagharao padinikkhamai, padinikkhamitta jeneva bahiriya uvatthanasala, jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam asaraham duruhai, duruhitta sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam, mahayabhadachadakarapahakaravamdaparikkhitte khattiyakumdaggamam nagaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva mahanakumdaggame nayare, jeneva bahusalae cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta turae niginhei, niginhetta raham thavei, thavetta rahao pachchoruhati, pachchoru-hitta pupphatambolauhamadiyam pahanao ya visajjeti, visajjetta egasadiyam uttarasamgam karei, karetta ayamte chokkhe paramasuibbhue amjalimauliyahatthe jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta tivihae pajjuvasanae pajjuvasai. Tae nam samane bhagavam mahavire jamalissa khattiyakumarassa, tise ya mahatimahaliyae isi parisae muniparisae jaiparisae devaparisae anegasayae anegasayavamdae anegasayavamdapariyalae ohabale aibale mahabbale aparimiyabalaviriya-teya-mahappa-kamti-jutte saraya-navatthaniya-mahuragambhira-komchanigghosa-dumdubhissare ure vitthadae kamthe vattiyae sire samainnae agaralae amammanae suvvattakkhara-sannivaiyae punnarattae savvabhasanugaminie sarassaie joyana-niharina sarenam addhamagahae bhasae bhasai–dhammam parikahei java parisa padigaya. Tae nam se jamali khattiyakumare samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhammam sochcha nisamma hattha tutthachittamanamdie namdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae utthae utthei, utthetta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam, pattiyami nam bhamte! Niggamtham pavayanam, roemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam, abbhutthemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam, evameyam bhamte! Tahameyam bhamte! Avitaha-meyam bhamte! Asamdiddhameyam bhamte! Ichchhiyameyam bhamte! Padichchhiyameyam bhamte! Ichchhiya-padichchhiyameyam bhamte! –se jaheyam tubbhe vadaha, jam navaram–devanuppiya! Ammapiyaro apuchchhami, tae nam aham devanuppiyanam amtiyam mumde bhavitta agarao anagariyam pavvayami. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa brahmanakundagrama namaka nagara se pashchima disha mem kshatriyakundagrama namaka nagara tha. (varnana) usa kshatriyakundagrama namaka nagara mem jamali nama ka kshatriyakumara rahata tha. Vaha adhya, dipta yavat aparibhuta tha. Vaha jisamem mridamga vadya ki spashta dhvani ho rahi thi, battisa prakara ke natako ke abhinaya aura nritya ho rahe the, aneka prakara ki sundara taruniyom dvara samprayukta nritya aura gunagana bara – bara kiye ja rahe the, usaki prashamsa se bhavana gumjaya ja raha tha, khushiyam manai ja rahi thi, aise apane uchcha shreshtha prasada – bhavana mem pravrita, varsha, sharada, hemanta, vasanta aura grishma, ina chhaha rituom mem apane vaibhava ke anusara ananda manata hua, samaya bitata hua, manushyasambandhi pamcha prakara ke ishta shabda, sparsha, rasa, rupa, gandha, vale kamabhogom ka anubhava karata hua rahata tha. Usa dina kshatriyakundagrama namaka nagara mem shrrigataka, trika, chatushka aura chatvara yavat mahapatha para bahuta se logo ka kolahala ho raha tha, ityadi aupapatikasutra ki taraha janana chahie; yavat bahuta – se loga paraspara eka – dusare se kaha rahe the ‘devanupriyo ! Adikara yavat sarvajnya, sarvadarshi shramana bhagavan mahavira, isa brahmanakundagrama nagara ke bahara bahushala namaka udyana mem yathayogya avagraha grahana karake yavat vicharate hai. Atah he devanupriyo ! Tatharupa arihanta bhagavan ke nama, gotra ke shravana – matra se mahan phala hota hai; ityadi varnana aupapatikasutra anusara, yavat vaha janasamuha tina prakara ki paryupasana karata hai. Taba bahuta – se manushyom ke shabda aura unaka paraspara milana suna aura dekha kara usa kshatriyakumara jamali ke mana mem vichara yavat samkalpa utpanna hua – ‘kya aja kshatriyakundagrama nagara mem indra ka utsava hai\?, athava skandotsava hai\?, ya mukunda mahotsava hai\? Naga ka, yaksha ka athava bhutamahotsava hai\? Ya ki kupa ka, sarovara ka, nadi ka ya draha ka utsava hai\?, athava kisi parvata ka, vriksha ka, chaitya ka athava stupa ka utsava hai\?, jisake karana ye bahuta – se ugra, bhoga, rajanya, ikshchaku, jnyatri, kauravya, kshatriyaputra, bhata, bhataputra, senapati, senapatipatra, prashasta evam prashastriputra, lichchhavi, lichchhaviputra, brahmana, brahmanaputra evam ibhya ityadi aupapatika sutra mem kahe anusara yavat sarthavaha – pramukha, snana adi karake yavat bahara nikala rahai hai\?’ isa prakara vichara karake usane kamchukipurusha ko bulaya aura usase puchha – ‘he devanupriyo ! Kya aja kshatriyakundagrama nagara mem indra adi ka koi utsava hai, jisake karana yavat ye saba loga bahara ja rahe hai\?’ Taba jamali kshatriyakumara ke isa prakara kahane para vaha kamchuki purusha atyanta harshita evam santushta hua. Usane shramana bhagavan mahavira ka agamana jana kara evam nishchita karake hatha jora kara jaya – vijaya – dhvani se jamali kshatriyakumara ko badhai di. Usane kaha – ‘he devanupriye ! Aja kshatriyakundagrama nagara ke bahara indra adi ka utsava nahi hai, kintu devanupriye ! Adikara yavat sarvajnya – sarvadarshi shramana bhagavan mahavira svami brahmanakundagrama nagara ke bahara bahushala namaka udyana mem avagraha grahana karake yavat vicharate hai; isi karana ye ugrakula, bhogakula adi ke kshatriya adi tatha aura bhi aneka jana vandana ke lie yavat ja rahe hai. ‘tadanantara kamchukipurusha se yaha bata suna kara aura hridaya me dharana karake jamali kshatriyakumara, harshita evam santushta hua. Usane kautumbika purushom ko bulaya aura kaha – ‘devanupriyo ! Tuma shighra hi chara ghanta vale ashvaratha ko jota kara yaham upasthita karo aura meri isa ajnya ka palana karake suchana do. Taba una kautumbika purushom ne kshatriyakumara jamali ke isa adesha ko suna kara tadanusara karya karake nivedana kiya. Tadanantara vaha jamali kshatriyakumara jaham snanagriha tha, vaham aya usane snana kiya tatha anya sabhi dainika kriyaa ki, yavat sharira para chandana ka lepana kiya; samasta abhushanom se vibhushita hua aura snanagriha se nikala adi sara varnana aupapatikasutra anusara janana chahie. Phira jaham bahara ki upasthanashala thi aura jaham susajjita chaturghashta ashvaratha tha, vaham vaha aya. Usa ashvaratha para charha. Korantapushpa ki mala se yukta chhatra ko mastaka para dharana kiya hua tatha bare – bare subhato, daso, pathadarshako adi ke samuha se parivrita hua vaha jamali kshatriyakumara kshatriyakundagrama nagara ke madhya mem se hokara nikala aura brahmanakundagrama namaka nagara ke bahara jaham bahushala namaka udyana tha, vaham aya. Vaham ghoro ko roka kara ratha ko khara kiya, vaha ratha se niche utara. Phira usane pushpa, tambula, ayudha (shastra) adi tatha upanaha (jute) vahim chhora diye. Eka pata vale vastra ka uttarasamga kiya. Tadanantara achamana kiya hua aura ashuddhi dura karake atyanta shuddha hua jamali mastaka para donom hatha jore hue shramana bhagavan mahavira svami ke pasa pahucha. Samipa jakara shramana bhagavan mahavira ki tina bara adakshina pradakshina ki, yavat trividha paryupasana ki. Tadanantara shramana bhagavan mahavirasvami ne usa kshatriyakumara jamali tatha usa bahuta bari rishigana adi ki parishad ki yavat dharmopadesha diya. Yavat parishada vapasa lauta hui. |