Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003962 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-९ |
Translated Chapter : |
शतक-९ |
Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Translated Section : | उद्देशक-३३ कुंडग्राम |
Sutra Number : | 462 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदाए माहणीए तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंद-परियालाए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमिय-बल-वीरिय-तेय-माहप्प-कंति-जुत्ते सारय-नवत्थणिय-महुरगंभीर-कोंचनिग्घोस-दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर-सण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सईए जोयणणीहारिणा सरेणं अद्ध-मागहाए भासाए भासइ–धम्मं परिकहेइ जाव परिसा पडिगया। तए णं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी– एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्यिछ-पडिच्छियमेयं भंते! –से जहेयं तुब्भे वदह त्ति कट्ट उत्तरपुरत्थिमं दिसि-भागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–आलित्ते णं भंते! लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्त-पलित्ते णं भंते! लोए जराए मरणेण य। से जहानामए केइ गाहावई अगारंसि ज्झियायमाणंसि जे से तत्थ भंडे भवइ अप्पभारे मोल्लगरुए, तं गहाय आयाए एगंतमंतं अवक्कमइ। एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुरा य हियाए सुहाए खमाए निस्सेसयाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ। एवामेव देवानुप्पिया! मज्झ वि आया एगे भंडे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेस्सासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंड-करंडगसमाणे, मा णं सीयं, मा णं उण्हं, मा णं खुहा, मा णं पिवासा, मा णं चोरा, मा णं वाला, मा णं दंसा, मा णं मसया, मा णं वाइय-पित्तिय-सेंभिय-सन्निवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु एस मे नित्थारिए समाणे परलोयस्स हियाए सुहाए खमाए नीसेसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ। तं इच्छामि णं देवानुप्पिया! सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सयमेव सेहावियं, सयमेव सिक्खावियं, सयमेव आयारगोयरं विनय-वेणइय-चरण-करण जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खियं। तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तं माहणं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव सेहावेइ, सयमेव सिक्खावेइ, सयमेव आयार-गोयरं विनय-वेणइय चरण-करण जायामायावत्तियं धम्ममाइक्खइ–एवं देवानुप्पिया गंतव्वं, एवं चिट्ठियव्वं, एवं निसीइयव्वं, एवं तुयट्टियव्वं, एवं भुंजियव्वं, एवं भासियव्वं एवं उट्ठाय-उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं अस्सिं च णं अट्ठे नो किंचि वि पमाइयव्वं। तए णं से उसभदत्ते माइणे समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जइं जाव सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं, मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोक-म्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेइ, ज्झूसेत्ता सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरति नग्गभावे जाव तमट्ठं आराहेइ, आराहेत्ता चरमेहिं उस्सास-नीसासेहिं सिद्धे बुद्धे मुक्के परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीने। तए णं सा देवानंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! एवं जहा उसभदत्तो तहेव जाव धम्ममाइक्खियं। तए णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदं माहणिं सयमेव पव्वावेइ, पव्वावेत्ता सयमेव अज्जचंदणाए अज्जाए सीसिणित्ताए दलयइ। तए णं सा अज्जचंदना अज्जा देवानंदं माहणिं सयमेव मुंडावेति, सयमेव सेहावेति। एवं जहेव उसभदत्तो तहेव अज्जचंदनाए अज्जाए इमं एयारूवं धम्मियं उवदेसं सम्मं संपडिवज्जइ, तमाणाए तह गच्छइ जाव संजमेणं संजमति। तए णं सा देवानंदा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अंतियं सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं, मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेइ, ज्झूसेत्ता सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेइ, छेदेत्ता चरमेहिं उस्सास-नीसासेहिं सिद्धा बुद्धा मुक्का परिनिव्वुडा सव्वदुक्खप्पहीणा। | ||
Sutra Meaning : | तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने ऋषभदत्तब्राह्मण और देवानन्दा तथ उस अत्यन्त बड़ी ऋषिपरिषद् को धर्मकथा कही; यावत् परिषद् वापर चली गई। इसके पश्चात वह ऋषभदत्त ब्राह्मण, श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म – श्रमण कर और उसे हृदय में धारण करके हर्षित और सन्तुष्ट होकर खड़ा हुआ। उसने श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की, यावत् वन्दन – नमन करके इस प्रकार निवेदन किया – ‘भगवन् ! आपने कहा, वैसा ही है, आपका कथन यर्थाथ है भगवन् !’ इत्यादि स्कन्दक तापस – प्रकरण में कहे अनुसार; यावत् – ‘जो आप कहते है, वह उसी प्रकार है।’ इस प्रकार कह कर वह ईशानकोण में गया। वहाँ जा कर उसने स्वयमेव आभूषण, माला और अलंकचार उतार दिये। फिर स्वयमेव पंचमुष्टि केशलोच किया और श्रमण भगवान् महावीर के पास आया। भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा की, यावत् नमस्कार करके इस प्रकार कहा – भगवन् ! यह लोक चारों ओर से प्रज्वलित हो रहा है, भगवन् ! यह लोक चारों ओर से अत्यन्त जल रहा है, इत्यादि कह कर स्कन्दक तापस के अनुसार प्रव्रज्या ग्रहण की, यावत् सामायिक आदि ग्यारह अंगो का अध्ययन किया, यावत् बहुत – से उपवास, बेला, तेला, चौला इत्यादि विचित्र तपःकर्मो से आत्मा को भावित करते हुए, बहुत वर्षो तक श्रामण्यपर्याय का पालन किया और एक मास की संल्लेखना से आत्मा को संलिखित करके साठ भक्तों का अनशन से छेदन किया ओर ऐसा करके जिस उद्देश्य से नग्रभाव स्वीकार किया, यावत् आराधना कर ली, यावत् वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त एवं सर्वदुःखों से रहित हुए। तदन्तर श्रमण भगवान महावीरस्वामी से धर्म सुनकर एवं हृदयंगम करके वह देवानन्दा ब्राह्मणी अत्यन्त हृष्टं एवं तुष्ट हुई और श्रमण भगवान् महावीर की तीन चार आदक्षिण – प्रदक्षिणा करके यावत् नमस्कार करके इस प्रकार बोली – भगवन् ! आपने जैसा कहा है, वैसा ही है, भगवन्। आपका कथन यर्थाथ है। इस प्रकार ऋषभदत्त के समान देवानन्दा ने भी निवेदन किया; और – धर्म कहा; यहाँ तक कहना चाहिए। तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयमेव प्रव्रजित कराया, स्वयमेव मुण्डित कराया और स्वयमेव चन्दना आर्या को शिष्यारुप में सौंप दिया। तत्पश्चात् चन्दना आर्या ने देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयं प्रव्रजित किया, स्वयमेव मुण्डित किया और स्वयमेद उसे शिक्षा दी। देवानन्दा ने भी ऋषभदत्त के समान इस प्रकार के धार्मिक उपदेश को सम्यक् रूप से स्वीकार किया और वह उनकी आज्ञानुसार चलने लगी, यावत् संयम में सम्यक् प्रवृत्ति करने लगी। तदनन्तर आर्या देवानन्दा ने आर्य चन्दना से सामायिक आदि ग्यारह अंगो का अध्ययन किया। शेष वर्णन पूर्ववत्, यावत् समस्त दुःखों से रहित हुई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam samane bhagavam mahavire usabhadattassa mahanassa devanamdae mahanie tise ya mahatimahaliyae isiparisae muniparisae jaiparisae devaparisae anegasayae anegasayavamdae anegasayavamda-pariyalae ohabale aibale mahabbale aparimiya-bala-viriya-teya-mahappa-kamti-jutte saraya-navatthaniya-mahuragambhira-komchanigghosa-dumdubhissare ure vitthadae kamthe vattiyae sire samainnae agaralae amammanae suvvattakkhara-sannivaiyae punnarattae savvabhasanugaminie sarassaie joyananiharina sarenam addha-magahae bhasae bhasai–dhammam parikahei java parisa padigaya. Tae nam se usabhadatte mahane samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammam sochcha nisamma hatthatutthe utthae utthei, utthetta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vadasi– Evameyam bhamte! Tahameyam bhamte! Avitahameyam bhamte! Asamdiddhameyam bhamte! Ichchhiyameyam bhamte! Padichchhiyameyam bhamte! Ichyichha-padichchhiyameyam bhamte! –se jaheyam tubbhe vadaha tti katta uttarapuratthimam disi-bhagam avakkamati, avakkamitta sayameva abharanamallalamkaram omuyai, omuitta sayameva pamchamutthiyam loyam karei, karetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–alitte nam bhamte! Loe, palitte nam bhamte! Loe, alitta-palitte nam bhamte! Loe jarae maranena ya. Se jahanamae kei gahavai agaramsi jjhiyayamanamsi je se tattha bhamde bhavai appabhare mollagarue, tam gahaya ayae egamtamamtam avakkamai. Esa me nittharie samane pachchha pura ya hiyae suhae khamae nissesayae anugamiyattae bhavissai. Evameva devanuppiya! Majjha vi aya ege bhamde itthe kamte pie manunne maname thejje vessasie sammae bahumae anumae bhamda-karamdagasamane, ma nam siyam, ma nam unham, ma nam khuha, ma nam pivasa, ma nam chora, ma nam vala, ma nam damsa, ma nam masaya, ma nam vaiya-pittiya-sembhiya-sannivaiya viviha rogayamka parisahovasagga phusamtu tti kattu esa me nittharie samane paraloyassa hiyae suhae khamae nisesae anugamiyattae bhavissai. Tam ichchhami nam devanuppiya! Sayameva pavvaviyam, sayameva mumdaviyam, sayameva sehaviyam, sayameva sikkhaviyam, sayameva ayaragoyaram vinaya-venaiya-charana-karana jayamayavattiyam dhammamaikkhiyam. Tae nam samane bhagavam mahavire usabhadattam mahanam sayameva pavvavei, sayameva mumdavei, sayameva sehavei, sayameva sikkhavei, sayameva ayara-goyaram vinaya-venaiya charana-karana jayamayavattiyam dhammamaikkhai–evam devanuppiya gamtavvam, evam chitthiyavvam, evam nisiiyavvam, evam tuyattiyavvam, evam bhumjiyavvam, evam bhasiyavvam evam utthaya-utthaya panehim bhuehim jivehim sattehim samjamenam samjamiyavvam assim cha nam atthe no kimchi vi pamaiyavvam. Tae nam se usabhadatte maine samanassa bhagavao mahavirassa imam eyaruvam dhammiyam uvaesam sammam sampadivajjaim java samaiyamaiyaim ekkarasa amgaim ahijjai, ahijjitta bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim, masaddhamasakhamanehim vichittehim tavoka-mmehim appanam bhavemane bahuim vasaim samannapariyagam paunai, paunitta masiyae samlehanae attanam jjhusei, jjhusetta satthim bhattaim anasanae chhedei, chhedetta jassatthae kirati naggabhave java tamattham arahei, arahetta charamehim ussasa-nisasehim siddhe buddhe mukke parinivvude savvadukkhappahine. Tae nam sa devanamda mahani samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammam sochcha nisamma hatthatuttha samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–evameyam bhamte! Tahameyam bhamte! Evam jaha usabhadatto taheva java dhammamaikkhiyam. Tae nam samane bhagavam mahavire devanamdam mahanim sayameva pavvavei, pavvavetta sayameva ajjachamdanae ajjae sisinittae dalayai. Tae nam sa ajjachamdana ajja devanamdam mahanim sayameva mumdaveti, sayameva sehaveti. Evam jaheva usabhadatto taheva ajjachamdanae ajjae imam eyaruvam dhammiyam uvadesam sammam sampadivajjai, tamanae taha gachchhai java samjamenam samjamati. Tae nam sa devanamda ajja ajjachamdanae ajjae amtiyam samaiyamaiyaim ekkarasa amgaim ahijjai, ahijjitta bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim, masaddhamasakhamanehim vichittehim tavokammehim appanam bhavemani bahuim vasaim samannapariyagam paunai, paunitta masiyae samlehanae attanam jjhusei, jjhusetta satthim bhattaim anasanae chhedei, chhedetta charamehim ussasa-nisasehim siddha buddha mukka parinivvuda savvadukkhappahina. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tadanantara shramana bhagavana mahavira ne rishabhadattabrahmana aura devananda tatha usa atyanta bari rishiparishad ko dharmakatha kahi; yavat parishad vapara chali gai. Isake pashchata vaha rishabhadatta brahmana, shramana bhagavan mahavira ke pasa dharma – shramana kara aura use hridaya mem dharana karake harshita aura santushta hokara khara hua. Usane shramana bhagavan mahavira ki tina bara adakshina – pradakshina ki, yavat vandana – namana karake isa prakara nivedana kiya – ‘bhagavan ! Apane kaha, vaisa hi hai, apaka kathana yarthatha hai bhagavan !’ ityadi skandaka tapasa – prakarana mem kahe anusara; yavat – ‘jo apa kahate hai, vaha usi prakara hai.’ isa prakara kaha kara vaha ishanakona mem gaya. Vaham ja kara usane svayameva abhushana, mala aura alamkachara utara diye. Phira svayameva pamchamushti keshalocha kiya aura shramana bhagavan mahavira ke pasa aya. Bhagavan ki tina bara pradakshina ki, yavat namaskara karake isa prakara kaha – bhagavan ! Yaha loka charom ora se prajvalita ho raha hai, bhagavan ! Yaha loka charom ora se atyanta jala raha hai, ityadi kaha kara skandaka tapasa ke anusara pravrajya grahana ki, yavat samayika adi gyaraha amgo ka adhyayana kiya, yavat bahuta – se upavasa, bela, tela, chaula ityadi vichitra tapahkarmo se atma ko bhavita karate hue, bahuta varsho taka shramanyaparyaya ka palana kiya aura eka masa ki samllekhana se atma ko samlikhita karake satha bhaktom ka anashana se chhedana kiya ora aisa karake jisa uddeshya se nagrabhava svikara kiya, yavat aradhana kara li, yavat ve siddha, buddha, mukta, parinirvritta evam sarvaduhkhom se rahita hue. Tadantara shramana bhagavana mahavirasvami se dharma sunakara evam hridayamgama karake vaha devananda brahmani atyanta hrishtam evam tushta hui aura shramana bhagavan mahavira ki tina chara adakshina – pradakshina karake yavat namaskara karake isa prakara boli – bhagavan ! Apane jaisa kaha hai, vaisa hi hai, bhagavan. Apaka kathana yarthatha hai. Isa prakara rishabhadatta ke samana devananda ne bhi nivedana kiya; aura – dharma kaha; yaham taka kahana chahie. Taba shramana bhagavan mahavira svami ne devananda brahmani ko svayameva pravrajita karaya, svayameva mundita karaya aura svayameva chandana arya ko shishyarupa mem saumpa diya. Tatpashchat chandana arya ne devananda brahmani ko svayam pravrajita kiya, svayameva mundita kiya aura svayameda use shiksha di. Devananda ne bhi rishabhadatta ke samana isa prakara ke dharmika upadesha ko samyak rupa se svikara kiya aura vaha unaki ajnyanusara chalane lagi, yavat samyama mem samyak pravritti karane lagi. Tadanantara arya devananda ne arya chandana se samayika adi gyaraha amgo ka adhyayana kiya. Shesha varnana purvavat, yavat samasta duhkhom se rahita hui. |