Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1003681 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-३ |
Translated Chapter : |
शतक-३ |
Section : | उद्देशक-३ क्रिया | Translated Section : | उद्देशक-३ क्रिया |
Sutra Number : | 181 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जीवे णं भंते! सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ? हंता मंडिअपुत्ता! जीवे णं सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ। जावं च णं भंते! से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंत किरिया भवइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जावं च णं से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया न भवति? मंडिअपुत्ता! जावं च णं से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं से जीवे–आरभइ सारभइ समारभइ, आरंभे वट्टइ सारंभे वट्टइ समारंभे वट्टइ, आरभमाणे सारभमाणे समारभमाणे, आरंभे वट्टमाणे सारंभे वट्टमाणे समारंभे वट्टमाणे बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं दुक्खावणयाए सोयावणयाए जूरावणयाए तिप्पावणयाए पिट्टावणयाए परियावणयाए वट्टइ। से तेणट्ठेणं मंडिअपुत्ता! एवं वुच्चइ–जावं च णं से जीवे सया समितं एयति वेयति चलति फंदइ घट्टइ खुब्भइ उदीरइ तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया न भवति। जीवे णं भंते! सया समितं नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ? हंता मंडिअपुत्ता! जीवे णं सया समितं नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ। जावं च णं भंते! से जीवे नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ? हंता मंडिअपुत्ता! जावं च णं से जीवे नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जावं च णं से जीवे नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ? मंडिअपुत्ता! जावं च णं से जीवे सया समितं नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घट्टइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं से जीवे नो आरभइ नो सारभइ नो समारभइ, नो आरंभे वट्टइ नो सारंभे वट्टइ नो समारंभे वट्टइ, अनारभमाणे असारभमाणे असमारभमाणे, आरंभे अवट्टमाणे सारंभे अवट्टमाणे समारंभे अवट्टमाणे बहूणं पाणाणं भूयानं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खा-वणयाए असोयावणयाए अजूरावणयाए अतिप्पावणयाए अपिट्टावणयाए अपरियावणयाए वट्टइ। से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तणहत्थयं जायतेयंसि पक्खिवेज्जा, से नूनं मंडिअपुत्ता! से सुक्के तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसाविज्जइ? हंता मसमसाविज्जइ। से जहानामए केइ पुरिसे तत्तंसि अयकवल्लंसि उदयबिंदुं पक्खिवेज्जा, से नूनं मंडिअपुत्ता! से उदयबिंदुं तत्तंसि अयकवल्लं-सि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ? हंता विद्धंसमागच्छइ। से जहानामए हरए सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठति। अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरयंसि एगं महं नावं सतासवं सतच्छिद्दं ओगाहेज्जा, से नूनं मंडिअपुत्ता! सा नावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरमाणी-आपूरमाणी पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठति? हंता चिट्ठति। अहे णं केइ पुरिसे तीसे नावाए सव्वओ समंता आसवदाराइं पिहेइ, पिहेत्ता नावा-उस्सिंचणएणं उदयं उस्सिंचेज्जा से नूनं मंडिअपुत्ता! सा नावा तंसि उदयंसि उस्सित्तंसि समाणंसि खिप्पामेव उदाइ? हंता उदाइ। एवामेव मंडिअपुत्ता! अत्तत्तासंवुडस्स अनगारस्स इरियासमियस्स भासासमियस्स एसणा-समियस्स आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमियस्स उच्चारपासवण-खेल-सिंधाण-जल्ल-पारिट्ठावणिया समियस्स मणसमियस्स वइसमियस्स कायसमियस्स मणगुत्तस्स वइ गुत्तस्स कायगुत्तस्स गुत्तस्स गुत्तिंदियस्स गुत्तबंभयारिस्स, आउत्तं गच्छमाणस्स चिट्ठमाणस्स निसीयमाणस्स तुयट्टमाणस्स, आउत्तं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणं गेण्हमाणस्स निक्खिवमाणस्स जाव चक्खुपम्हनिवायमवि वेमाया सुहुमा इरियावहिया किरिया कज्जइ– सा पढमसमयबद्धपुट्ठा, बितियसमयवेइया, ततियसमयनिज्जरिया। सा बद्धा पुट्ठा उदीरिया वेइया निज्जिण्णा सेयकाले अकम्मं वावि भवति। से तेणट्ठेणं मंडिअपुत्ता! एवं वुच्चइ–जावं च णं से जीवे सया समितं नो एयति नो वेयति नो चलति नो फंदइ नो घटइ नो खुब्भइ नो उदीरइ नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवइ। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! क्या जीव सदा समित (मर्यादित) रूप में काँपता है, विविध रूप में काँपता है, चलता है, स्पन्दन क्रिया करता है, घट्टित होता (घूमता) है, क्षुब्ध होता है, उदीरित होता या करता है; और उन – उन भावों में परिणत होता है ? हाँ, मण्डितपुत्र ! जीव सदा समित – (परिमित) रूप से काँपता है, यावत् उन – उन भावों में परिणत होता है। भगवन् ! जब तक जीव समित – परिमित रूप से काँपता है, यावत् उन – उन भावों में परिणत (परिवर्तित) होता है, तब तक क्या उस जीव की अन्तिम समय में अन्तक्रिया होती है ? मण्डितपुत्र ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? हे मण्डितपुत्र ! जीव जब तक सदा समित रूप से काँपता है, यावत् उन – उन भावों में परिणत होता है, तब तक वह (जीव) आरम्भ करता है, संरम्भ में रहता है, समारम्भ करता है, आरम्भ में रहता है, संरम्भ में रहता है, और समारम्भ में रहता है। आरम्भ, संरम्भ और समारम्भ करता हुआ तथा आरम्भ में, संरम्भ में, और समारम्भ में, प्रवर्तमान जीव, बहुत – से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख पहुँचाने में, शोक कराने में, झुराने में, रुलाने अथवा आँसू गिरवाने में, पिटवाने में, और परिताप देने में प्रवृत्त होता है। इसलिए हे मण्डितपुत्र ! ऐसा कहा जाता है कि जब तक जीव सदा समितरूप से कम्पित होता है, यावत् उन – उन भावों में परिणत होता है, तब तक वह जीव, अन्तिम समय में अन्तक्रिया नहीं कर सकता। भगवन् ! जीव, सदैव समितरूप से ही कम्पित नहीं होता, यावत् उन – उन भावों में परिणत नहीं होता ? हाँ, मण्डितपुत्र ! जीव सदा के लिए समितरूप से ही कम्पित नहीं होता, यावत् उन – उन भावों में परिणत नहीं होता। भगवन् ! जब वह जीव सदा के लिए समितरूप से कम्पित नहीं होता, यावत् उन – उन भावों में परिणत नहीं होता; तब क्या उस जीव की अन्तिम समय में अन्तक्रिया नहीं हो जाती ? हाँ, हो जाती है। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है कि ऐसे जीव की यावत् अन्तक्रिया – मुक्ति हो जाती है ? मण्डित – पुत्र ! जब वह जीव सदा (के लिए) समितरूप से (भी) कम्पित नहीं होता, यावत् उन – उन भावों में परिणत नहीं होता, तब वह जीव आरम्भ नहीं करता, संरम्भ नहीं करता एवं समारम्भ भी नहीं करता, और न ही वह जीव आरम्भ में, संरम्भ में एवं समारम्भ में प्रवृत्त होता है। आरम्भ, संरम्भ और समारम्भ नहीं करता हुआ तथा आरम्भ, संरम्भ और समारम्भ में प्रवृत्त न होता हुआ जीव, बहुत – से प्राणों, भूतों, जीवो और सत्त्वों को दुःख पहुँचाने में यावत् परिताप उत्पन्न करने में प्रवृत्त नहीं होता। (भगवान – ) जैसे, कोई पुरुष सूखे घास के पूले को अग्नि में डाले तो क्या मण्डितपुत्र ! वह सूखे घास का पूला अग्नि में डालते ही शीघ्र जल जाता है ? (मण्डितपुत्र – ) हाँ, भगवन् ! वह शीघ्र ही जल जाता है। (भगवान – ) जैसे कोई पुरुष तपे हुए लोहे के कड़ाह पर पानी की बूँद डाले तो क्या मण्डितपुत्र ! तपे हुए लोहे के कड़ाह पर डाली हुई वह जलबिन्दु अवश्य ही शीघ्र नष्ट हो जाती है ? हाँ, भगवन् ! वह जलबिन्दु शीघ्र नष्ट हो जाती है। (भगवान – ) कोई एक सरोवर है, जो जल से पूर्ण हो, पूर्णमात्रा में पानी से भरा हो, पानी से लबालब भरा हो, बढ़ते हुए पानी के कारण उसमें से पानी छलक रहा हो, पानी से भरे हुए घड़े के समान क्या उसमें पानी व्याप्त हो कर रहता है ? हाँ, भगवन् ! उसमें पानी व्याप्त होकर रहता है। (भगवान – ) अब उस सरोवर में कोई पुरुष, सैकड़ों छोटे छिद्रों वाली तथा सैकड़ों बड़े छिद्रों वाली एक नौका को उतार दे, तो क्या मण्डितपुत्र ! वह नौका उन छिद्रों द्वारा पानी से भरती – भरती जल से परिपूर्ण हो जाती है ? पूर्णमात्रा में उसमें पानी भर जाता है ? पानी से वह लबालब भर जाती है ? उसमें पानी बढ़ने से छलकने लगता है ? (और अन्त में) वह (नौका) पानी से भरे घड़े की तरह सर्वत्र पानी से व्याप्त होकर रहती है ? हाँ, भगवन् ! वह जल से व्याप्त होकर रहती है। यदि कोई पुरुष उस नौका के समस्त छिद्रों को चारों ओर से बन्द कर दे, और वैसा करके नौका की उलीचनी से पानी को उलीच दे तो हे मण्डितपुत्र ! नौका के पानी को उलीचकर खाली करते ही क्या वह शीघ्र ही पानी से ऊपर आ जाती है ? हाँ, भगवन् ! आ जाती है। हे मण्डितपुत्र ! इसी तरह अपनी आत्मा द्वारा आत्मा में संवृत्त हुए, ईर्यासमिति आदि पाँच समितियों से समित तथा मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तियों से गुप्त, ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियों से गुप्त, उपयोगपूर्वक गमन करने वाले, ठहरने वाले, बैठने वाले, करवट बदलने वाले तथा वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादप्रोञ्छन, रजोहरण के साथ उठाने और रखे वाले अनगार को भी अक्षिनिमेष – मात्र समय में विमात्रापूर्वक सूक्ष्म ईर्यापथिकी क्रिया लगती है। वह (क्रिया) प्रथम समय में बद्ध – स्पृष्ट, द्वीतिय समय में वेदित और तृतीय समय में निर्जीर्ण हो जाती है। इसी कारण से हे मण्डितपुत्र ! ऐसा कहा जाता है कि वह जीव सदा (के लिए) समितरूप से भी कम्पित नहीं होता, यावत् उन – उन भावों में परिणत नहीं होता, तब अन्तिम समय में उसकी अन्तक्रिया हो जाती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jive nam bhamte! Saya samitam eyati veyati chalati phamdai ghattai khubbhai udirai tam tam bhavam parinamai? Hamta mamdiaputta! Jive nam saya samitam eyati veyati chalati phamdai ghattai khubbhai udirai tam tam bhavam parinamai. Javam cha nam bhamte! Se jive saya samitam eyati veyati chalati phamdai ghattai khubbhai udirai tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam tassa jivassa amte amta kiriya bhavai? No inatthe samatthe. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–javam cha nam se jive saya samitam eyati veyati chalati phamdai ghattai khubbhai udirai tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam tassa jivassa amte amtakiriya na bhavati? Mamdiaputta! Javam cha nam se jive saya samitam eyati veyati chalati phamdai ghattai khubbhai udirai tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam se jive–arabhai sarabhai samarabhai, arambhe vattai sarambhe vattai samarambhe vattai, arabhamane sarabhamane samarabhamane, arambhe vattamane sarambhe vattamane samarambhe vattamane bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam dukkhavanayae soyavanayae juravanayae tippavanayae pittavanayae pariyavanayae vattai. Se tenatthenam mamdiaputta! Evam vuchchai–javam cha nam se jive saya samitam eyati veyati chalati phamdai ghattai khubbhai udirai tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam tassa jivassa amte amtakiriya na bhavati. Jive nam bhamte! Saya samitam no eyati no veyati no chalati no phamdai no ghattai no khubbhai no udirai no tam tam bhavam parinamai? Hamta mamdiaputta! Jive nam saya samitam no eyati no veyati no chalati no phamdai no ghattai no khubbhai no udirai no tam tam bhavam parinamai. Javam cha nam bhamte! Se jive no eyati no veyati no chalati no phamdai no ghattai no khubbhai no udirai no tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam tassa jivassa amte amtakiriya bhavai? Hamta mamdiaputta! Javam cha nam se jive no eyati no veyati no chalati no phamdai no ghattai no khubbhai no udirai no tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam tassa jivassa amte amtakiriya bhavai. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–javam cha nam se jive no eyati no veyati no chalati no phamdai no ghattai no khubbhai no udirai no tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam tassa jivassa amte amtakiriya bhavai? Mamdiaputta! Javam cha nam se jive saya samitam no eyati no veyati no chalati no phamdai no ghattai no khubbhai no udirai no tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam se jive no arabhai no sarabhai no samarabhai, no arambhe vattai no sarambhe vattai no samarambhe vattai, anarabhamane asarabhamane asamarabhamane, arambhe avattamane sarambhe avattamane samarambhe avattamane bahunam pananam bhuyanam jivanam sattanam adukkha-vanayae asoyavanayae ajuravanayae atippavanayae apittavanayae apariyavanayae vattai. Se jahanamae kei purise sukkam tanahatthayam jayateyamsi pakkhivejja, se nunam mamdiaputta! Se sukke tanahatthae jayateyamsi pakkhitte samane khippameva masamasavijjai? Hamta masamasavijjai. Se jahanamae kei purise tattamsi ayakavallamsi udayabimdum pakkhivejja, se nunam mamdiaputta! Se udayabimdum tattamsi ayakavallam-si pakkhitte samane khippameva viddhamsamagachchhai? Hamta viddhamsamagachchhai. Se jahanamae harae siya punne punnappamane volattamane vosattamane samabharaghadattae chitthati. Ahe nam kei purise tamsi harayamsi egam maham navam satasavam satachchhiddam ogahejja, se nunam mamdiaputta! Sa nava tehim asavadarehim apuramani-apuramani punna punnappamana volattamana vosattamana samabharaghadattae chitthati? Hamta chitthati. Ahe nam kei purise tise navae savvao samamta asavadaraim pihei, pihetta nava-ussimchanaenam udayam ussimchejja se nunam mamdiaputta! Sa nava tamsi udayamsi ussittamsi samanamsi khippameva udai? Hamta udai. Evameva mamdiaputta! Attattasamvudassa anagarassa iriyasamiyassa bhasasamiyassa esana-samiyassa ayanabhamdamattanikkhevanasamiyassa uchcharapasavana-khela-simdhana-jalla-paritthavaniya samiyassa manasamiyassa vaisamiyassa kayasamiyassa managuttassa vai guttassa kayaguttassa guttassa guttimdiyassa guttabambhayarissa, auttam gachchhamanassa chitthamanassa nisiyamanassa tuyattamanassa, auttam vattha-padiggaha-kambala-payapumchhanam genhamanassa nikkhivamanassa java chakkhupamhanivayamavi vemaya suhuma iriyavahiya kiriya kajjai– sa padhamasamayabaddhaputtha, bitiyasamayaveiya, tatiyasamayanijjariya. Sa baddha puttha udiriya veiya nijjinna seyakale akammam vavi bhavati. Se tenatthenam mamdiaputta! Evam vuchchai–javam cha nam se jive saya samitam no eyati no veyati no chalati no phamdai no ghatai no khubbhai no udirai no tam tam bhavam parinamai, tavam cha nam tassa jivassa amte amtakiriya bhavai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Kya jiva sada samita (maryadita) rupa mem kampata hai, vividha rupa mem kampata hai, chalata hai, spandana kriya karata hai, ghattita hota (ghumata) hai, kshubdha hota hai, udirita hota ya karata hai; aura una – una bhavom mem parinata hota hai\? Ham, manditaputra ! Jiva sada samita – (parimita) rupa se kampata hai, yavat una – una bhavom mem parinata hota hai. Bhagavan ! Jaba taka jiva samita – parimita rupa se kampata hai, yavat una – una bhavom mem parinata (parivartita) hota hai, taba taka kya usa jiva ki antima samaya mem antakriya hoti hai\? Manditaputra ! Yaha artha samartha nahim hai; bhagavan! Kisa karana se aisa kaha jata hai\? He manditaputra ! Jiva jaba taka sada samita rupa se kampata hai, yavat una – una bhavom mem parinata hota hai, taba taka vaha (jiva) arambha karata hai, samrambha mem rahata hai, samarambha karata hai, arambha mem rahata hai, samrambha mem rahata hai, aura samarambha mem rahata hai. Arambha, samrambha aura samarambha karata hua tatha arambha mem, samrambha mem, aura samarambha mem, pravartamana jiva, bahuta – se pranom, bhutom, jivom aura sattvom ko duhkha pahumchane mem, shoka karane mem, jhurane mem, rulane athava amsu giravane mem, pitavane mem, aura paritapa dene mem pravritta hota hai. Isalie he manditaputra ! Aisa kaha jata hai ki jaba taka jiva sada samitarupa se kampita hota hai, yavat una – una bhavom mem parinata hota hai, taba taka vaha jiva, antima samaya mem antakriya nahim kara sakata. Bhagavan ! Jiva, sadaiva samitarupa se hi kampita nahim hota, yavat una – una bhavom mem parinata nahim hota\? Ham, manditaputra ! Jiva sada ke lie samitarupa se hi kampita nahim hota, yavat una – una bhavom mem parinata nahim hota. Bhagavan ! Jaba vaha jiva sada ke lie samitarupa se kampita nahim hota, yavat una – una bhavom mem parinata nahim hota; taba kya usa jiva ki antima samaya mem antakriya nahim ho jati\? Ham, ho jati hai. Bhagavan ! Aisa kisa karana se kaha hai ki aise jiva ki yavat antakriya – mukti ho jati hai\? Mandita – putra ! Jaba vaha jiva sada (ke lie) samitarupa se (bhi) kampita nahim hota, yavat una – una bhavom mem parinata nahim hota, taba vaha jiva arambha nahim karata, samrambha nahim karata evam samarambha bhi nahim karata, aura na hi vaha jiva arambha mem, samrambha mem evam samarambha mem pravritta hota hai. Arambha, samrambha aura samarambha nahim karata hua tatha arambha, samrambha aura samarambha mem pravritta na hota hua jiva, bahuta – se pranom, bhutom, jivo aura sattvom ko duhkha pahumchane mem yavat paritapa utpanna karane mem pravritta nahim hota. (bhagavana – ) jaise, koi purusha sukhe ghasa ke pule ko agni mem dale to kya manditaputra ! Vaha sukhe ghasa ka pula agni mem dalate hi shighra jala jata hai\? (manditaputra – ) ham, bhagavan ! Vaha shighra hi jala jata hai. (bhagavana – ) jaise koi purusha tape hue lohe ke karaha para pani ki bumda dale to kya manditaputra ! Tape hue lohe ke karaha para dali hui vaha jalabindu avashya hi shighra nashta ho jati hai\? Ham, bhagavan ! Vaha jalabindu shighra nashta ho jati hai. (bhagavana – ) koi eka sarovara hai, jo jala se purna ho, purnamatra mem pani se bhara ho, pani se labalaba bhara ho, barhate hue pani ke karana usamem se pani chhalaka raha ho, pani se bhare hue ghare ke samana kya usamem pani vyapta ho kara rahata hai\? Ham, bhagavan ! Usamem pani vyapta hokara rahata hai. (bhagavana – ) aba usa sarovara mem koi purusha, saikarom chhote chhidrom vali tatha saikarom bare chhidrom vali eka nauka ko utara de, to kya manditaputra ! Vaha nauka una chhidrom dvara pani se bharati – bharati jala se paripurna ho jati hai\? Purnamatra mem usamem pani bhara jata hai\? Pani se vaha labalaba bhara jati hai\? Usamem pani barhane se chhalakane lagata hai\? (aura anta mem) vaha (nauka) pani se bhare ghare ki taraha sarvatra pani se vyapta hokara rahati hai\? Ham, bhagavan ! Vaha jala se vyapta hokara rahati hai. Yadi koi purusha usa nauka ke samasta chhidrom ko charom ora se banda kara de, aura vaisa karake nauka ki ulichani se pani ko ulicha de to he manditaputra ! Nauka ke pani ko ulichakara khali karate hi kya vaha shighra hi pani se upara a jati hai\? Ham, bhagavan ! A jati hai. He manditaputra ! Isi taraha apani atma dvara atma mem samvritta hue, iryasamiti adi pamcha samitiyom se samita tatha manogupti adi tina guptiyom se gupta, brahmacharya ki nau guptiyom se gupta, upayogapurvaka gamana karane vale, thaharane vale, baithane vale, karavata badalane vale tatha vastra, patra, kambala, padapronchhana, rajoharana ke satha uthane aura rakhe vale anagara ko bhi akshinimesha – matra samaya mem vimatrapurvaka sukshma iryapathiki kriya lagati hai. Vaha (kriya) prathama samaya mem baddha – sprishta, dvitiya samaya mem vedita aura tritiya samaya mem nirjirna ho jati hai. Isi karana se he manditaputra ! Aisa kaha jata hai ki vaha jiva sada (ke lie) samitarupa se bhi kampita nahim hota, yavat una – una bhavom mem parinata nahim hota, taba antima samaya mem usaki antakriya ho jati hai. |