Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1003675 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-३ |
Translated Chapter : |
शतक-३ |
Section : | उद्देशक-२ चमरोत्पात | Translated Section : | उद्देशक-२ चमरोत्पात |
Sutra Number : | 175 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी–देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेवं अनुपरियट्टित्ता णं गेण्हित्तए? हंता पभू। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ता णं गेण्हित्तए? गोयमा! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्वामेव सिग्घगई भवित्ता ततो पच्छा मंदगती भवति, देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्विं पि पच्छा वि सीहे सीहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव। से तेणट्ठेणं जाव पभू गेण्हित्तए। जइ णं भंते! देवे महिड्ढीए जाव पभू तमेव अनुपरियट्टित्ता णं गेण्हित्तए, कम्हा णं भंते! सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहित्थं गेण्हित्तए? गोयमा! असुरकुमाराणं देवाणं अहे गइविसए सीहे-सीहे चेव तुरिए-तुरिए चेव, उड्ढं गइविसए अप्पे-अप्पे चेव मंदे-मंदे चेव। वेमाणियाणं देवाणं उड्ढं गइविसए सीहे-सीहे चेव। तुरिए-तुरिए चेव, अहे गइविसए अप्पे-अप्पे चेव मंदे-मंदे चेव। जावतियं खेत्तं सक्के देविंदे देवराया उड्ढं उप्पयइ एक्केणं समएणं, तं वज्जे दोहिं, जं वज्जे दोहिं, तं चमरे तिहिं। सव्वत्थोवे सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो उड्ढलोयकंडए, अहेलोयकंडए संखेज्जगुणे जावतियं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया अहे ओवयइ एक्केणं समएणं, तं सक्के दोहिं, जं सक्के दोहिं, तं वज्जे तीहिं। सव्वत्थोवे चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो अहेलोयकंडए, उड्ढलोयकंडए संखेज्जगुणे। एवं खलु गोयमा! सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा चमरे असुरिंदे असुरराया नो संचाइए साहत्थिं गेण्हित्तए। सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो उड्ढं अहे तिरियं च गइविसयस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा? बहुए वा? तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं सक्के देविंदे देवराया अहे ओवयइ एक्केणं समएणं तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ, उड्ढं संखेज्जे भागे गच्छइ। चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररन्नो उड्ढं अहे तिरियं च गइविसयस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा? बहुए वा? तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया उड्ढं उप्पयइ एक्केणं समएणं, तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ, अहे संखेज्जे भागे गच्छइ। वज्जस्स णं भंते! उड्ढं अहे तिरियं च गइविसयस्स कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा? बहुए वा? तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? गोयमा! सव्वत्थोवं खेत्तं वज्जे अहे ओवयइ एक्केणं समएणं, तिरियं विसेसाहिए भागे गच्छइ, उड्ढं विसेसाहिए भागे गच्छइ। सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो ओवयणकालस्स य, उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा? बहुए वा? तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? गोयमा! सव्वत्थोवे सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो उप्पयणकाले, ओवयणकाले संखेज्जगुणे। चमरस्स वि जहा सक्कस्स, नवरं–सव्वत्थोवे ओवयणकाले, उप्पयणकाले संखेज्जगुणे। वज्जस्स पुच्छा। गोयमा! सव्वत्थोवे उप्पयणकाले, ओवयणकाले विसेसाहिए। एयस्स णं भंते! वज्जस्स, वज्जाहिवइस्स, चमरस्स य असुरिंदस्स असुररन्नो ओवयण-कालस्स य, उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा? बहुए वा? तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? गोयमा! सक्कस्स य उप्पयणकाले, चमरस्स य ओवयणकाले– एए णं दोन्निवि तुल्ला सव्व-त्थोवा। सक्कस्स य ओवयणकाले वज्जस्स य उप्पयणकाले–एस णं दोण्ह वि तुल्ले संखेज्जगुणे। चमरस्स य उप्पयणकाले, वज्जस्स य ओवयणकाले–एस णं दोण्ह वि तुल्ले विसेसाहिए। | ||
Sutra Meaning : | ‘हे भगवन् !’ यों कहकर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार कहा (पूछा) भगवन् ! महाऋद्धिसम्पन्न, महाद्युतियुक्त यावत् महाप्रभाव – शाली देव क्या पहले पुद्गल को फैंक कर, फिर उसके पीछे जाकर उसे पकड़ लेने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वह समर्थ है। भगवन् ! किस कारण से देव, पहले फैंके हुए पुद्गल को, उसका पीछा करके यावत् ग्रहण करने में समर्थ हैं? गौतम ! जब पुद्गल फैंका जाता है, तब पहले उसकी गति शीघ्र (तीव्र) होती है, पश्चात् उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि महर्द्धिक देव तो पहले भी और पीछे (बाद में) भी शीघ्र और शीघ्रगति वाला तथा त्वरित और त्वरितगति वाला होता है। अतः इसी कारण से देव, फैंके हुए पुद्गल का पीछा करके यावत् उसे पकड़ सकता है। भगवन् ! महर्द्धिक देव यावत् पीछा करके फैंके हुए पुद्गल को पकड़ने में समर्थ है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को क्यों नहीं पकड़ सका ? गौतम ! असुरकुमार देवों का नीचे गमन का विषय शीघ्र – शीघ्र और त्वरित – त्वरित होता है, और ऊर्ध्वगमन विषय अल्प – अल्प तथा मन्द – मन्द होता है, जबकि वैमानिक देवों का ऊंचे जाने का विषय शीघ्र – शीघ्र तथा त्वरित – त्वरित होता है और नीचे जाने का विषय अल्प – अल्प तथा मन्द – मन्द होता है। एक समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, जितना क्षेत्र ऊपर जा सकता है, उतना क्षेत्र – ऊपर जाने में वज्र को दो समय लगते हैं और चमरेन्द्र को तीन समय लगते हैं। (अर्थात् – ) देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊपर जाने में लगने वाला कालमान सबसे थोड़ा है, और अधोलोककंडक उसकी अपेक्षा संख्येयगुणा है। एक समय में असुरेन्द्र असुरराज चमर जितना क्षेत्र नीचा जा सकता है, उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में शक्रेन्द्र को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में वज्र को तीन समय लगते हैं। (अर्थात् – ) असुरेन्द्र असुरराज चमर का नीचे गमन का कालमान सबसे थोड़ा है और ऊंचा जाने का कालमान उससे संख्येयगुणा है। इस कारण से हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को पकड़ने में समर्थ न हो सका। हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वगमन – विषय, अधोगमन विषय और तिर्यग्गमन विषय, इन तीनों में कौन – सा विषय किन – किन से अल्प है, अधिक है और तुल्य है, अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र एक समय में सबसे कम क्षेत्र नीचे जाता है, तिरछा उससे संख्येय भाग जाता है और ऊपर भी संख्येय भाग जाता है। भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के ऊर्ध्वगमन – विषय, अधोगमन विषय और तिर्यग्गमनविषय में से कौन – सा विषय किन – किन से अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर, एक समय में सबसे कम क्षेत्र ऊपर जाता है; तिरछा, उससे संख्येय भाग अधिक (क्षेत्र) और नीचे उससे भी संख्येय भाग अधिक जाता है। वज्र – सम्बन्धी गमन का विषय (क्षेत्र), जैसे देवेन्द्र शक्र का कहा है, उसी तरह जानना चाहिए। परन्तु विशेषता यह है कि गति का विषय (क्षेत्र) विशेषाधिक कहना चाहिए। भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र का नीचे जाने का काल और ऊपर जाने का काल, इन दोनों कालों में कौन – सा काल, किस काल से अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊपर जाने का काल सबसे थोड़ा है, और नीचे जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है। चमरेन्द्र का गमनविषयक कथन भी शक्रेन्द्र के समान ही जानना चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल सबसे थोड़ा है, ऊपर जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है। वज्र (के गमन के विषय में) पृच्छा की (तो भगवान ने कहा – ) गौतम ! वज्र का ऊपर जान का काल सबसे थोड़ा है, नीचे जाने का काल उससे विशेषाधिक है। भगवन् ! यह वज्र, वज्राधिपति – इन्द्र, और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन सब का नीचे जाने का काल और ऊपर जाने का काल; इन दोनों कालों में से कौन – सा काल किससे अल्प, बहुत (अधिक), तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम ! शक्रेन्द्र का ऊपर जाने का काल और चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल, ये दोनों तुल्य हैं और सबसे कम हैं। शक्रेन्द्र का नीचे जाने का काल और वज्र का ऊपर जाने का काल, ये दोनों काल तुल्य हैं और (पूर्वोक्त काल से) संख्येयगुणा अधिक है। (इसी तरह) चमरेन्द्र का ऊपर जाने का काल और वज्र का नीचे जाने का काल, ये दोनों काल तुल्य हैं और (पूर्वोक्त काल से) विशेषाधिक हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] bhamteti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai, namamsai, vamditta namamsitta evam vadasi–deve nam bhamte! Mahiddhie java mahanubhage puvvameva poggalam khivitta pabhu tamevam anupariyattitta nam genhittae? Hamta pabhu. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–deve nam mahiddhie java mahanubhage puvvameva poggalam khivitta pabhu tameva anupariyattitta nam genhittae? Goyama! Poggale nam khitte samane puvvameva sigghagai bhavitta tato pachchha mamdagati bhavati, deve nam mahiddhie java mahanubhage puvvim pi pachchha vi sihe sihagati cheva turie turiyagati cheva. Se tenatthenam java pabhu genhittae. Jai nam bhamte! Deve mahiddhie java pabhu tameva anupariyattitta nam genhittae, kamha nam bhamte! Sakkenam devimdenam devaranna chamare asurimde asuraraya no samchaie sahittham genhittae? Goyama! Asurakumaranam devanam ahe gaivisae sihe-sihe cheva turie-turie cheva, uddham gaivisae appe-appe cheva mamde-mamde cheva. Vemaniyanam devanam uddham gaivisae sihe-sihe cheva. Turie-turie cheva, ahe gaivisae appe-appe cheva mamde-mamde cheva. Javatiyam khettam sakke devimde devaraya uddham uppayai ekkenam samaenam, tam vajje dohim, jam vajje dohim, tam chamare tihim. Savvatthove sakkassa devimdassa devaranno uddhaloyakamdae, aheloyakamdae samkhejjagune Javatiyam khettam chamare asurimde asuraraya ahe ovayai ekkenam samaenam, tam sakke dohim, jam sakke dohim, tam vajje tihim. Savvatthove chamarassa asurimdassa asuraranno aheloyakamdae, uddhaloyakamdae samkhejjagune. Evam khalu goyama! Sakkenam devimdenam devaranna chamare asurimde asuraraya no samchaie sahatthim genhittae. Sakkassa nam bhamte! Devimdassa devaranno uddham ahe tiriyam cha gaivisayassa kayare kayarehimto appe va? Bahue va? Tulle va? Visesahie va? Goyama! Savvatthovam khettam sakke devimde devaraya ahe ovayai ekkenam samaenam tiriyam samkhejje bhage gachchhai, uddham samkhejje bhage gachchhai. Chamarassa nam bhamte! Asurimdassa asuraranno uddham ahe tiriyam cha gaivisayassa kayare kayarehimto appe va? Bahue va? Tulle va? Visesahie va? Goyama! Savvatthovam khettam chamare asurimde asuraraya uddham uppayai ekkenam samaenam, tiriyam samkhejje bhage gachchhai, ahe samkhejje bhage gachchhai. Vajjassa nam bhamte! Uddham ahe tiriyam cha gaivisayassa kayare kayarehimto appe va? Bahue va? Tulle va? Visesahie va? Goyama! Savvatthovam khettam vajje ahe ovayai ekkenam samaenam, tiriyam visesahie bhage gachchhai, uddham visesahie bhage gachchhai. Sakkassa nam bhamte! Devimdassa devaranno ovayanakalassa ya, uppayanakalassa ya kayare kayarehimto appe va? Bahue va? Tulle va? Visesahie va? Goyama! Savvatthove sakkassa devimdassa devaranno uppayanakale, ovayanakale samkhejjagune. Chamarassa vi jaha sakkassa, navaram–savvatthove ovayanakale, uppayanakale samkhejjagune. Vajjassa puchchha. Goyama! Savvatthove uppayanakale, ovayanakale visesahie. Eyassa nam bhamte! Vajjassa, vajjahivaissa, chamarassa ya asurimdassa asuraranno ovayana-kalassa ya, uppayanakalassa ya kayare kayarehimto appe va? Bahue va? Tulle va? Visesahie va? Goyama! Sakkassa ya uppayanakale, chamarassa ya ovayanakale– ee nam donnivi tulla savva-tthova. Sakkassa ya ovayanakale vajjassa ya uppayanakale–esa nam donha vi tulle samkhejjagune. Chamarassa ya uppayanakale, vajjassa ya ovayanakale–esa nam donha vi tulle visesahie. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘he bhagavan !’ yom kahakara bhagavan gautama svami ne shramana bhagavana mahavira svami ko vandana – namaskara kiya. Vandana – namaskara karake isa prakara kaha (puchha) bhagavan ! Mahariddhisampanna, mahadyutiyukta yavat mahaprabhava – shali deva kya pahale pudgala ko phaimka kara, phira usake pichhe jakara use pakara lene mem samartha hai\? Ham, gautama ! Vaha samartha hai. Bhagavan ! Kisa karana se deva, pahale phaimke hue pudgala ko, usaka pichha karake yavat grahana karane mem samartha haim? Gautama ! Jaba pudgala phaimka jata hai, taba pahale usaki gati shighra (tivra) hoti hai, pashchat usaki gati manda ho jati hai, jabaki maharddhika deva to pahale bhi aura pichhe (bada mem) bhi shighra aura shighragati vala tatha tvarita aura tvaritagati vala hota hai. Atah isi karana se deva, phaimke hue pudgala ka pichha karake yavat use pakara sakata hai. Bhagavan ! Maharddhika deva yavat pichha karake phaimke hue pudgala ko pakarane mem samartha hai, to devendra devaraja shakra apane hatha se asurendra asuraraja chamara ko kyom nahim pakara saka\? Gautama ! Asurakumara devom ka niche gamana ka vishaya shighra – shighra aura tvarita – tvarita hota hai, aura urdhvagamana vishaya alpa – alpa tatha manda – manda hota hai, jabaki vaimanika devom ka umche jane ka vishaya shighra – shighra tatha tvarita – tvarita hota hai aura niche jane ka vishaya alpa – alpa tatha manda – manda hota hai. Eka samaya mem devendra devaraja shakra, jitana kshetra upara ja sakata hai, utana kshetra – upara jane mem vajra ko do samaya lagate haim aura chamarendra ko tina samaya lagate haim. (arthat – ) devendra devaraja shakra ka upara jane mem lagane vala kalamana sabase thora hai, aura adholokakamdaka usaki apeksha samkhyeyaguna hai. Eka samaya mem asurendra asuraraja chamara jitana kshetra nicha ja sakata hai, utana hi kshetra nicha jane mem shakrendra ko do samaya lagate haim aura utana hi kshetra nicha jane mem vajra ko tina samaya lagate haim. (arthat – ) asurendra asuraraja chamara ka niche gamana ka kalamana sabase thora hai aura umcha jane ka kalamana usase samkhyeyaguna hai. Isa karana se he gautama ! Devendra devaraja shakra, apane hatha se asurendra asuraraja chamara ko pakarane mem samartha na ho saka. He bhagavan ! Devendra devaraja shakra ka urdhvagamana – vishaya, adhogamana vishaya aura tiryaggamana vishaya, ina tinom mem kauna – sa vishaya kina – kina se alpa hai, adhika hai aura tulya hai, athava visheshadhika hai\? Gautama ! Devendra devaraja shakra eka samaya mem sabase kama kshetra niche jata hai, tirachha usase samkhyeya bhaga jata hai aura upara bhi samkhyeya bhaga jata hai. Bhagavan ! Asurendra asuraraja chamara ke urdhvagamana – vishaya, adhogamana vishaya aura tiryaggamanavishaya mem se kauna – sa vishaya kina – kina se alpa, adhika, tulya ya visheshadhika hai\? Gautama ! Asurendra asuraraja chamara, eka samaya mem sabase kama kshetra upara jata hai; tirachha, usase samkhyeya bhaga adhika (kshetra) aura niche usase bhi samkhyeya bhaga adhika jata hai. Vajra – sambandhi gamana ka vishaya (kshetra), jaise devendra shakra ka kaha hai, usi taraha janana chahie. Parantu visheshata yaha hai ki gati ka vishaya (kshetra) visheshadhika kahana chahie. Bhagavan ! Devendra devaraja shakra ka niche jane ka kala aura upara jane ka kala, ina donom kalom mem kauna – sa kala, kisa kala se alpa hai, bahuta hai, tulya hai athava visheshadhika hai\? Gautama ! Devendra devaraja shakra ka upara jane ka kala sabase thora hai, aura niche jane ka kala usase samkhyeyaguna adhika hai. Chamarendra ka gamanavishayaka kathana bhi shakrendra ke samana hi janana chahie; kintu itani visheshata hai ki chamarendra ka niche jane ka kala sabase thora hai, upara jane ka kala usase samkhyeyaguna adhika hai. Vajra (ke gamana ke vishaya mem) prichchha ki (to bhagavana ne kaha – ) gautama ! Vajra ka upara jana ka kala sabase thora hai, niche jane ka kala usase visheshadhika hai. Bhagavan ! Yaha vajra, vajradhipati – indra, aura asurendra asuraraja chamara, ina saba ka niche jane ka kala aura upara jane ka kala; ina donom kalom mem se kauna – sa kala kisase alpa, bahuta (adhika), tulya athava visheshadhika hai? Gautama ! Shakrendra ka upara jane ka kala aura chamarendra ka niche jane ka kala, ye donom tulya haim aura sabase kama haim. Shakrendra ka niche jane ka kala aura vajra ka upara jane ka kala, ye donom kala tulya haim aura (purvokta kala se) samkhyeyaguna adhika hai. (isi taraha) chamarendra ka upara jane ka kala aura vajra ka niche jane ka kala, ye donom kala tulya haim aura (purvokta kala se) visheshadhika haim. |