Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000540 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 540 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरं पंचमं भंते! महव्वयं–सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि–से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं गिण्हेज्जा, नेवन्नेहिं परिग्गहं गिण्हावेज्जा, अन्नंपि परिग्गहं गिण्हंतं ण समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–सोयओ जीवे मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेइ। मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं नो सज्जेज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घाय-मावज्जेज्जा। केवली बूया– निग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलि-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। न सक्का न सोउं सद्दा, सोयविसयमागता । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ सोयओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेइ त्ति पढमा भावणा। अहावरा दोच्चा भावणा– चक्खूओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं रूवाइं पासइ। मणुण्णामणुण्णेहिं रूवेहिं नो सज्जेज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घाय- मावज्जेज्जा। केवली बूया–निग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं रूवेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेया संतिविभंगा संतिके-वलिपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो सक्का रुवमदट्ठुं, चक्खुविसयमागयं ।‘रागदोसा उ जे तत्थ, ते’ भिक्खू परिवज्जए ॥ चक्खूओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं रूवाइं पासइ त्ति दोच्चा भावणा। अहावरा तच्चा भावणा–घाणओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं गंधाइं अग्घायइ। मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहिं नो सज्जे-ज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घाय-मावज्जेज्जा। केवली बूया– निग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं गंधेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवली-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो सक्का न गंधमग्घाउं, णासाविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ घाणओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं गंधाइं अग्घायत्ति त्ति तच्चा भावणा। अहावरा चउत्था भावणा–जिब्भाओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं रसाइं अस्सादेइ। मणुण्णामणुण्णेहिं रसेहिं नो सज्जेज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घा-यमावज्जेज्जा। केवली बूया–निग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं रसेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संति-केवलीपन्नत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो सक्का रसमणासाउं, जीहाविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ जीहाओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं रसाइं अस्सादेइ त्ति चउत्था भावणा। अहावरा पंचमा भावणा–फासओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं फासाइं पडिसंवेदेइं। मणुण्णामणुण्णेहिं फासेहिं नो सज्जेज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घायमावज्जेज्जा। केवली बूया–निग्गंथे णं मणुण्णामणुण्णेहिं फासेहिं सज्जमाणे रज्जमाणे गिज्झमाणे मुज्झमाणे अज्झोववज्जमाणे विणिग्घायमावज्जमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवलि-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो सक्का णं संवेदेउं, फासविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ फासओ जीवो मणुण्णामणुण्णाइं फासाइं पडिसंवेदेति त्ति पंचमा भावणा। एतावताव महव्वए सम्मं काएण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ। पंचमे भंते! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं। इच्चेतेहिं महव्वएहिं, पणुवीसाहिं य भावणाहिं संपण्णे अनगारे अहासुयं अहाकप्पं अहामग्गं सम्मं काएण फासित्ता, पालित्ता, तीरित्ता, किट्टित्ता आणाए आराहित्ता यावि भवइ। | ||
Sutra Meaning : | इसके पश्चात् हे भगवन् ! मैं पाँचवे महाव्रत को स्वीकार करता हूँ। पंचम महाव्रत के संदर्भ में मैं सब प्रकार के परिग्रह का त्याग करता हूँ। आज से मैं थोड़ा या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी प्रकार के परिग्रह को स्वयं ग्रहण नहीं करूँगा, न दूसरों से ग्रहण कराऊंगा, और न परिग्रहण करने वालों का अनुमोदन करूँगा। यावत् परिग्रह का व्युत्सर्ग करता हूँ, तक का सारा वर्णन पूर्ववत् समझना। उस पंचम महाव्रत की पाँच भावनाएं हैं – उनमें से प्रथम भावना यह है – श्रोत से यह जीव मनोज्ञ तथा अमनोज्ञ शब्दों को सूनता है, परन्तु वह उसमें आसक्त न हो, रागभाव न करे, गृद्ध न हो, मोहित न हो, अत्यन्त आसक्ति न करे। केवली भगवान कहते हैं – जो साधु मनोज्ञ – अमनोज्ञ शब्दों में आसक्त होता है, रागभाव रखता है, यावत् अत्यधिक आसक्त हो जाता है, वह शान्तिरूप चारित्र का नाश करता है, शान्ति को भंग करता है, शान्तिरूप केवलीप्रज्ञप्त धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। कर्ण प्रदेशमें आए हुए शब्द – श्रवण न करना शक्य नहीं है, किन्तु उनके सूनने पर उनमें जो राग – द्वेष की उत्पत्ति होती है, भिक्षु उसका परित्याग करे। अतः श्रोत से जीव प्रिय और अप्रिय सभी प्रकार के शब्दों को सूनकर उनमें आसक्त, आरक्त, गृद्ध, मोहित, मूर्च्छित एवं अत्यासक्त न हो और न राग – द्वेष द्वारा अपने आत्मभाव नष्ट न करे। इसके अनन्तर द्वीतिय भावना है – चक्षु से जीव मनोज्ञ – अमनोज्ञ सभी प्रकार के रूपों को देखता है, किन्तु साधु मनोज्ञ – अमनोज्ञ रूपों में न आसक्त हो, न आरक्त हो, यावत् आत्मभाव को नष्ट करे। केवली भगवान कहते हैं – जो निर्ग्रन्थ मनोज्ञ – अमनोज्ञ रूपों को देखकर आसक्त, यावत् अपने आत्मभाव को खो बैठता है, वह शान्तिरूप चारित्र को विनष्ट करता है, यावत् भ्रष्ट हो जाता है। नेत्रों के विषय में बने हुए रूप को न देखना तो शक्य नहीं है, वे दिख ही जाते हैं; किन्तु उनके देखने पर जो राग – द्वेष उत्पन्न होता है, भिक्षु उनका परित्याग करे। अतः नेत्रों से जीव मनोज्ञ रूपों को देखता है, किन्तु निर्ग्रन्थ भिक्षु उनमें आसक्त यावत् अपने आत्मभाव का विघात न करे। इसके बाद तीसरी भावना है – नासिका से जीव प्रिय और अप्रिय गन्धों को सूँघता है, किन्तु भिक्षु मनोज्ञ या अमनोज्ञ गंध पाकर आसक्त न हो, न अनुरक्त हो यावत् अपने आत्मभाव का विघात न करे। केवली भगवान कहते हैं – जो निर्ग्रन्थ मनोज्ञ या अमनोज्ञ गंध पाकर आसक्त, यावत् अपने आत्मभाव को खो बैठता है, वह शान्तिरूप चारित्र को नष्ट कर डालता है, यावत् भ्रष्ट हो जाता है। ऐसा नहीं हो सकता है कि नासिका – प्रदेश के सान्निध्य में आए हुए गन्ध के परमाणु पुद्गल सूँघे न जाएं, किन्तु उनको सूँघने पर उनमें जो राग – द्वेष समुत्पन्न होता है, भिक्षु उनका परित्याग करे। अतः नासिका से जीव मनोज्ञ – अमनोज्ञ सभी प्रकार के गन्धों को सूँघता है, किन्तु प्रबुद्ध भिक्षु को उन पर आसक्त, यावत् अपने आत्मभाव का विनाश नहीं करना चाहिए। इसके अनन्तर चौथी भावना यह है – जिह्वा से जीव मनोज्ञ – अमनोज्ञ रसों का आस्वादन करता है, किन्तु भिक्षु को चाहिए कि वह मनोज्ञ – अमनोज्ञ रसों में न आसक्त हों, न रागभावादिष्ट हो, यावत् अपने आत्मभाव का घात करे। केवली भगवान का कथन है कि जो निर्ग्रन्थ मनोज्ञ – अमनोज्ञ रसों में आसक्त, यावत् अपना आत्मभाव खो बैठता है, वह शान्ति नष्ट कर देता है, यावत् भ्रष्ट हो जाता है। ऐसा तो हो नहीं सकता कि रस जिह्वाप्रदेश में आए और वह उसको चखे नहीं; किन्तु उन रसों के प्रति जो राग – द्वेष उत्पन्न होता है, भिक्षु उसका परित्याग करे। अतः जिह्वा से जीव मनोज्ञ – अमनोज्ञ सभी प्रकार के रसों का आस्वादन करता है, किन्तु भिक्षु को उनमें आसक्त, यावत् आत्मभाव का विघात नहीं करना चाहिए। पंचम भावना यों है – स्पर्शनेन्द्रिय से जीव मनोज्ञ – अमनोज्ञ स्पर्शों का संवेदन करता है, किन्तु भिक्षु उन मनोज्ञ – अमनोज्ञ स्पर्शों में न आसक्त हो, न आरक्त हो, न गृद्ध हो, न मोहित – मूर्च्छित और अत्यासक्त हो, और न ही इष्टानिष्ट स्पर्शों में राग – द्वेष करके अपने आत्मभाव का नाश करे। केवली भगवान कहते हैं – जो निर्ग्रन्थ मनोज्ञ – अमनोज्ञ स्पर्शों को पाकर आसक्त, यावत् आत्मभाव का विघात कर बैठता है, वह शान्ति को नष्ट कर डालता है, शान्ति भंग करता है, तथा स्वयं केवलीप्ररूपित शान्तिमय धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। स्पर्शेन्द्रिय – विषय प्रदेश में आए हुए स्पर्श का संवेदन न करना किसी तरह संभव नहीं है, अतः भिक्षु उन मनोज्ञ – अमनोज्ञ स्पर्शों को पाकर उत्पन्न होने वाले राग या द्वेष का त्याग करे, यही अभीष्ट है। अतः स्पर्शेन्द्रिय से जीव प्रिय – अप्रिय अनेक स्पर्शों का संवेदन करता है; किन्तु भिक्षु को उन पर आसक्त, यावत् अपने आत्मभाव का विघात नहीं करना चाहिए। इस प्रकार पंच भावनाओं से विशिष्ट तथा साधक द्वारा स्वीकृत परिग्रह – विरमण रूप पंचम महाव्रत का काया से सम्यक् स्पर्श करने, पालन करने, स्वीकृत महाव्रत को पार लगाने, कीर्तन करने तथा अन्त तक उसमें अवस्थित रहने पर भगवदाज्ञा के अनुरूप आराधक हो जाता है। भगवन् ! यह है – परिग्रह – विरमण रूप पंचम महाव्रत। इन (पूर्वोक्त) पाँच महाव्रतों और उनकी पच्चीस भावनाओं से सम्पन्न अनगार यथाश्रुत, यथाकल्प और यथामार्ग, इनका काया से सम्यक् प्रकार से स्पर्श कर, पालन कर, इन्हें पार लगाकर, इनके महत्त्व का कीर्तन करके भगवान की आज्ञा के अनुसार इनका आराधक बन जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavaram pamchamam bhamte! Mahavvayam–savvam pariggaham pachchakkhami–se appam va, bahum va, anum va, thulam va, chittamamtam va, achittamamtam va neva sayam pariggaham ginhejja, nevannehim pariggaham ginhavejja, annampi pariggaham ginhamtam na samanujanijja javajjivae tiviham tivihenam–manasa vayasa kayasa, tassa bhamte! Padikkamami nimdami garihami appanam vosirami. Tassimao pamcha bhavanao bhavamti. Tatthima padhama bhavana–soyao jive manunnamanunnaim saddaim sunei. Manunnamanunnehim saddehim no sajjejja, no rajjejja, no gijjhejja, no mujjhejja, no ajjhovavajjejja, no vinigghaya-mavajjejja. Kevali buya– niggamthe nam manunnamanunnehim saddehim sajjamane rajjamane gijjhamane mujjhamane ajjhovavajjamane vinigghayamavajjamane, samtibheya samtivibhamga samtikevali-pannattao dhammao bhamsejja. Na sakka na soum sadda, soyavisayamagata. Ragadosa u je tattha, te bhikkhu parivajjae. Soyao jivo manunnamanunnaim saddaim sunei tti padhama bhavana. Ahavara dochcha bhavana– chakkhuo jivo manunnamanunnaim ruvaim pasai. Manunnamanunnehim ruvehim no sajjejja, no rajjejja, no gijjhejja, no mujjhejja, no ajjhovavajjejja, no vinigghaya- mavajjejja. Kevali buya–niggamthe nam manunnamanunnehim ruvehim sajjamane rajjamane gijjhamane mujjhamane ajjhovavajjamane vinigghayamavajjamane, samtibheya samtivibhamga samtike-valipannattao dhammao bhamsejja. No sakka ruvamadatthum, chakkhuvisayamagayam.‘ragadosa u je tattha, te’ bhikkhu parivajjae. Chakkhuo jivo manunnamanunnaim ruvaim pasai tti dochcha bhavana. Ahavara tachcha bhavana–ghanao jivo manunnamanunnaim gamdhaim agghayai. Manunnamanunnehim gamdhehim no sajje-jja, no rajjejja, no gijjhejja, no mujjhejja, no ajjhovavajjejja, no vinigghaya-mavajjejja. Kevali buya– niggamthe nam manunnamanunnehim gamdhehim sajjamane rajjamane gijjhamane mujjhamane ajjhovavajjamane vinigghayamavajjamane, samtibheda samtivibhamga samtikevali-pannattao dhammao bhamsejja. No sakka na gamdhamagghaum, nasavisayamagayam. Ragadosa u je tattha, te bhikkhu parivajjae. Ghanao jivo manunnamanunnaim gamdhaim agghayatti tti tachcha bhavana. Ahavara chauttha bhavana–jibbhao jivo manunnamanunnaim rasaim assadei. Manunnamanunnehim rasehim no sajjejja, no rajjejja, no gijjhejja, no mujjhejja, no ajjhovavajjejja, no viniggha-yamavajjejja. Kevali buya–niggamthe nam manunnamanunnehim rasehim sajjamane rajjamane gijjhamane mujjhamane ajjhovavajjamane vinigghayamavajjamane, samtibheda samtivibhamga samti-kevalipannattao dhammao bhamsejja. No sakka rasamanasaum, jihavisayamagayam. Ragadosa u je tattha, te bhikkhu parivajjae. Jihao jivo manunnamanunnaim rasaim assadei tti chauttha bhavana. Ahavara pamchama bhavana–phasao jivo manunnamanunnaim phasaim padisamvedeim. Manunnamanunnehim phasehim no sajjejja, no rajjejja, no gijjhejja, no mujjhejja, no ajjhovavajjejja, no vinigghayamavajjejja. Kevali buya–niggamthe nam manunnamanunnehim phasehim sajjamane rajjamane gijjhamane mujjhamane ajjhovavajjamane vinigghayamavajjamane, samtibheda samtivibhamga samtikevali-pannattao dhammao bhamsejja. No sakka nam samvedeum, phasavisayamagayam. Ragadosa u je tattha, te bhikkhu parivajjae. Phasao jivo manunnamanunnaim phasaim padisamvedeti tti pamchama bhavana. Etavatava mahavvae sammam kaena phasie palie tirie kittie avatthie anae arahie yavi bhavai. Pamchame bhamte! Mahavvae pariggahao veramanam. Ichchetehim mahavvaehim, panuvisahim ya bhavanahim sampanne anagare ahasuyam ahakappam ahamaggam sammam kaena phasitta, palitta, tiritta, kittitta anae arahitta yavi bhavai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isake pashchat he bhagavan ! Maim pamchave mahavrata ko svikara karata hum. Pamchama mahavrata ke samdarbha mem maim saba prakara ke parigraha ka tyaga karata hum. Aja se maim thora ya bahuta, sukshma ya sthula, sachitta ya achitta kisi bhi prakara ke parigraha ko svayam grahana nahim karumga, na dusarom se grahana karaumga, aura na parigrahana karane valom ka anumodana karumga. Yavat parigraha ka vyutsarga karata hum, taka ka sara varnana purvavat samajhana. Usa pamchama mahavrata ki pamcha bhavanaem haim – unamem se prathama bhavana yaha hai – shrota se yaha jiva manojnya tatha amanojnya shabdom ko sunata hai, parantu vaha usamem asakta na ho, ragabhava na kare, griddha na ho, mohita na ho, atyanta asakti na kare. Kevali bhagavana kahate haim – jo sadhu manojnya – amanojnya shabdom mem asakta hota hai, ragabhava rakhata hai, yavat atyadhika asakta ho jata hai, vaha shantirupa charitra ka nasha karata hai, shanti ko bhamga karata hai, shantirupa kevaliprajnyapta dharma se bhrashta ho jata hai. Karna pradeshamem ae hue shabda – shravana na karana shakya nahim hai, kintu unake sunane para unamem jo raga – dvesha ki utpatti hoti hai, bhikshu usaka parityaga kare. Atah shrota se jiva priya aura apriya sabhi prakara ke shabdom ko sunakara unamem asakta, arakta, griddha, mohita, murchchhita evam atyasakta na ho aura na raga – dvesha dvara apane atmabhava nashta na kare. Isake anantara dvitiya bhavana hai – chakshu se jiva manojnya – amanojnya sabhi prakara ke rupom ko dekhata hai, kintu sadhu manojnya – amanojnya rupom mem na asakta ho, na arakta ho, yavat atmabhava ko nashta kare. Kevali bhagavana kahate haim – jo nirgrantha manojnya – amanojnya rupom ko dekhakara asakta, yavat apane atmabhava ko kho baithata hai, vaha shantirupa charitra ko vinashta karata hai, yavat bhrashta ho jata hai. Netrom ke vishaya mem bane hue rupa ko na dekhana to shakya nahim hai, ve dikha hi jate haim; kintu unake dekhane para jo raga – dvesha utpanna hota hai, bhikshu unaka parityaga kare. Atah netrom se jiva manojnya rupom ko dekhata hai, kintu nirgrantha bhikshu unamem asakta yavat apane atmabhava ka vighata na kare. Isake bada tisari bhavana hai – nasika se jiva priya aura apriya gandhom ko sumghata hai, kintu bhikshu manojnya ya amanojnya gamdha pakara asakta na ho, na anurakta ho yavat apane atmabhava ka vighata na kare. Kevali bhagavana kahate haim – jo nirgrantha manojnya ya amanojnya gamdha pakara asakta, yavat apane atmabhava ko kho baithata hai, vaha shantirupa charitra ko nashta kara dalata hai, yavat bhrashta ho jata hai. Aisa nahim ho sakata hai ki nasika – pradesha ke sannidhya mem ae hue gandha ke paramanu pudgala sumghe na jaem, kintu unako sumghane para unamem jo raga – dvesha samutpanna hota hai, bhikshu unaka parityaga kare. Atah nasika se jiva manojnya – amanojnya sabhi prakara ke gandhom ko sumghata hai, kintu prabuddha bhikshu ko una para asakta, yavat apane atmabhava ka vinasha nahim karana chahie. Isake anantara chauthi bhavana yaha hai – jihva se jiva manojnya – amanojnya rasom ka asvadana karata hai, kintu bhikshu ko chahie ki vaha manojnya – amanojnya rasom mem na asakta hom, na ragabhavadishta ho, yavat apane atmabhava ka ghata kare. Kevali bhagavana ka kathana hai ki jo nirgrantha manojnya – amanojnya rasom mem asakta, yavat apana atmabhava kho baithata hai, vaha shanti nashta kara deta hai, yavat bhrashta ho jata hai. Aisa to ho nahim sakata ki rasa jihvapradesha mem ae aura vaha usako chakhe nahim; kintu una rasom ke prati jo raga – dvesha utpanna hota hai, bhikshu usaka parityaga kare. Atah jihva se jiva manojnya – amanojnya sabhi prakara ke rasom ka asvadana karata hai, kintu bhikshu ko unamem asakta, yavat atmabhava ka vighata nahim karana chahie. Pamchama bhavana yom hai – sparshanendriya se jiva manojnya – amanojnya sparshom ka samvedana karata hai, kintu bhikshu una manojnya – amanojnya sparshom mem na asakta ho, na arakta ho, na griddha ho, na mohita – murchchhita aura atyasakta ho, aura na hi ishtanishta sparshom mem raga – dvesha karake apane atmabhava ka nasha kare. Kevali bhagavana kahate haim – jo nirgrantha manojnya – amanojnya sparshom ko pakara asakta, yavat atmabhava ka vighata kara baithata hai, vaha shanti ko nashta kara dalata hai, shanti bhamga karata hai, tatha svayam kevaliprarupita shantimaya dharma se bhrashta ho jata hai. Sparshendriya – vishaya pradesha mem ae hue sparsha ka samvedana na karana kisi taraha sambhava nahim hai, atah bhikshu una manojnya – amanojnya sparshom ko pakara utpanna hone vale raga ya dvesha ka tyaga kare, yahi abhishta hai. Atah sparshendriya se jiva priya – apriya aneka sparshom ka samvedana karata hai; kintu bhikshu ko una para asakta, yavat apane atmabhava ka vighata nahim karana chahie. Isa prakara pamcha bhavanaom se vishishta tatha sadhaka dvara svikrita parigraha – viramana rupa pamchama mahavrata ka kaya se samyak sparsha karane, palana karane, svikrita mahavrata ko para lagane, kirtana karane tatha anta taka usamem avasthita rahane para bhagavadajnya ke anurupa aradhaka ho jata hai. Bhagavan ! Yaha hai – parigraha – viramana rupa pamchama mahavrata. Ina (purvokta) pamcha mahavratom aura unaki pachchisa bhavanaom se sampanna anagara yathashruta, yathakalpa aura yathamarga, inaka kaya se samyak prakara se sparsha kara, palana kara, inhem para lagakara, inake mahattva ka kirtana karake bhagavana ki ajnya ke anusara inaka aradhaka bana jata hai. – aisa maim kahata hum. |