Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000520 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-३ अध्ययन-१५ भावना |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 520 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं वीतिक्कममाणा-वीतिक्कममाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे तेनेव उवागच्छंति, तेनेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर-सन्निवेसे तेनेव उवागच्छंति, तेनेव उवागच्छित्ता जेणेव उत्तरखत्तियकुंडपुर-सन्निवेसस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए तेनेव ज्झत्तिवेगेण उवट्ठिया। तओ णं सक्के देविंदे देवराया सणियं-सणियं जाणविमाणं ठवेति, सणियं-सणियं जाणविमाणं ठवेत्ता सणियं-सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरति, सणियं-सणियं जाणविमाणाओ पच्चोत्तरित्ता, एगंतमवक्कमेति, एगंतमवक्कमेत्ता महया वेउव्वि-एणं समुग्घाएणं समोहण्णति, महया वेउव्विएणं समुग्घाएणं समोहणित्ता एगं महं नानामणिकणयरयणभत्तिचित्तं सुभं चारूकंत-रूवं देवच्छंदयं विउव्वति। तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्झदेसभाए एगं महं सपायपीढं नानामणिकणयरयणभत्तिचित्तं सुभं चारु-कंतरूवं सिंहासणं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेनेव उवागच्छति, तेनेव उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता समणं भगवं महावीरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छति,..... ..... उवागच्छित्ता सणियं-सणियं पुरत्थाभि-मुहे सीहासणे णिसीयावेइ, सणियं-सणियं पुरत्थाभिमुहे सीहासणे णिसीयावेत्ता सयपाग-सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेति, अब्भंगेत्ता गंधकसाएहिं उल्लोलेति, उल्लोलित्ता सुद्धोदएणं मज्जावेइ, मज्जावित्ता जस्स जंतपलं सयसहस्सेणंति पडोलतित्तएणं साहिएणं सीतएणं गोसीसरत्तचंदणेणं अणुलिंपति, अणुलिंपित्ता ईसिंणिस्सासवातवोज्झं वरनगरपट्टणुग्गयं कुसलणरपसंसितं अस्सलालपेलवं छेयायरिय-कनगखचियंतकम्मं हंसलक्खणं पट्टजुयलं नियंसावेइ, नियंसावेत्ता हारं अद्धहारं उरत्थं एगावलिं पालंबसुत्त-पट्ट-मउड-रयणमालाइं आविंधावेति, आविंधावेत्ता गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमेणं मल्लेणं कप्परुक्खमिव समालंकेति, समालंकेत्ता दोच्चंपि सहया वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता एगं महं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणि विउव्वइ, तं जहा–ईहामिय-उसभ-तुरग-णर-मकर-विहग-वाणर-कुंजर-रुरु-सरभ-चमर-सद्दूलसीह-वनलय-विचित्तविज्जाहर-मिहुण-जुयल-जंत-जोगजुत्तं, अच्चीसहस्समालिणीयं, सुणिरूवित-मिसिमिसिंत रूवग सहस्सकलियं, ईसिंभिसमाणं, भिब्भिसमाणं, चक्खुल्लोयणलेस्सं, मुत्ताहलमुत्तजालंतरोवियं, तवणीय-पवरलंबूस-पलंबंतमुत्तदामं, हारद्धहार-भूसणसमोणयं, अहियपेच्छणिज्जं, पउमलयभत्तिचित्तं असोगलयभत्तिचित्तं, कंदलयभत्तिचित्तं णाणालयभत्ति-विरइय सुभं चारुकंतरूवं नानामणि-पंच-वण्णघंटापडाय-परिमंडियग्गसिहरं पासादीयं दरिसणीयं सुरूवं। | ||
Sutra Meaning : | तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण के अभिप्राय को जानकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एवं देवियाँ अपने – अपने रूप से, अपने – अपने वस्त्रों में और अपने – अपने चिह्नों से युक्त होकर तथा अपनी – अपनी समस्त ऋद्धि, द्युति और समस्त बल – समुदाय सहित अपने – अपने यान – विमानों पर चढ़ते हैं फिर सब अपने यान में बैठकर जो भी बादर पुद्गल हैं, उन्हें पृथक् करते हैं। बादर पुद्गलों को पृथक् करके सूक्ष्म पुद्गलों को चारों ओर से ग्रहण करके वे ऊंचे उड़ते हैं। अपनी उस उत्कृष्ट, शीघ्र, चपल, त्वरित और दिव्य देव गति से नीचे ऊतरते क्रमशः तिर्यक्लोक में स्थित असंख्यात द्वीप – समुद्रों को लाँघते हुए जहाँ जम्बूद्वीप है, वहाँ आते हैं। जहाँ उत्तर क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश है, उसके निकट आ जाते हैं। उत्तर क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश के ईशानकोण दिशा भाग में शीघ्रता से उतर जाते हैं। देवों के इन्द्र देवराज शक्र ने शनैः शनैः अपने यान को वहाँ ठहराया। फिर वह धीरे धीरे विमान से ऊतरा। विमान से उतरते ही देवेन्द्र सीधा एक ओर एकान्त में चला गया। उसने एक महान् वैक्रिय समुद्घात करके इन्द्र ने अनेक मणि – स्वर्ण – रत्न आदि से जटित – चित्रित, शुभ, सुन्दर, मनोहर कमनीय रूप वाले एक बहुत बड़े देवच्छंदक का विक्रिया द्वारा निर्माण किया। उस देवच्छंदक के ठीक मध्य – भाग में पादपीठ सहित एक विशाल सिंहासन की विक्रिया की, जो नाना मणि – स्वर्ण – रत्न आदि की रचना से चित्र – विचित्र, शुभ, सुन्दर और रम्य रूप वाला था। फिर जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वह वहाँ आया। उसने भगवान की तीन बार आदक्षिण प्रदकिणा की, फिर वन्दन नमस्कार करके श्रमण भगवान महावीर को लेकर वह देवच्छन्दक के पास आया। तत्पश्चात् भगवान को धीरे – धीरे देवच्छन्दक में स्थित सिंहासन पर बिठाया और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रखा। यह सब करने के बाद इन्द्र ने भगवान के शरीर पर शतपाक, सहस्रपाक तेलों से मालिश की, तत्पश्चात् सुगन्धित काषाय द्रव्यों से उनके शरीर पर उबटन किया फिर शुद्ध स्वच्छ जल से भगवान को स्नान कराया। बाद उनके शरीर पर एक लाख के मूल्य वाले तीन पट को लपेट कर साधे हुए सरस गोशीर्ष रक्त चन्दन का लेपन किया। फिर भगवान को, नाक से नीकलने वाली जरा – सी श्वास – वायु से उड़ने वाला, श्रेष्ठ नगर के व्यावसायिक पत्तन में बना हुआ, कुशल मनुष्यों द्वारा प्रशंसित, अश्व के मुँह की लार के समान सफेद और मनोहर चतुर शिल्पाचार्यों द्वारा सोने के तार से विभूषित और हंस के समान श्वेत वस्त्रयुगल पहनाया। तदनन्तर उन्हें हार, अर्द्धहार, वक्षस्थल का सुन्दर आभूषण, एकावली, लटकती हुई मालाएं, कटिसूत्र, मुकुट और रत्नों की मालाएं पहनाईं। ग्रंथिम, वेष्टिम, पूरिम और संघातिम – पुष्पमालाओं से कल्पवृक्ष की तरह सुसज्जित किया। उसके बाद इन्द्र ने दुबारा पुनः वैक्रियसमुद्घात किया और उससे तत्काल चन्द्रप्रभा नाम की एक विराट सहस्रवाहिनी शिबिका का निर्माण किया। वह शिबिका ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर, पक्षिगण, बन्दर, हाथी, रुरु, सरभ, चमरी गाय, शार्दूलसिंह आदि जीवों तथा वनलताओं से चित्रित थी। उस पर अनेक विद्याधरों के जोड़े यंत्रयोग से अंकित थे। वह शिबिक सहस्त्र किरणों से सुशोभित सूर्य – ज्योति के समान देदीप्यमान थी, उसका चम – चमाता हुआ रूप भलीभाँति वर्णनीय था, सहस्त्र रूपों में भी उसका आकलन नहीं किया जा सकता था, उसका तेज नेत्रों को चकाचौंध कर देने वाला था। उसमें मोती और मुक्ताजाल पिरोये हुए थे। सोने के बने हुए श्रेष्ठ कन्दु – काकार आभूषण से युक्त लटकती हुई मोतियों की माला उस पर शोभायमान हो रही थी। हार, अर्द्धहार आदि आभूषणों से सुशोभित थी, दर्शनीय थी, उस पर पद्मलता, अशोकलता, कुन्दलता आदि तथा अन्य अनेक वनमालाएं चित्रित थीं। शुभ, मनोहर, कमनीय रूप वाली पंचरंगी अनेक मणियों, घण्टा एवं पताकाओं से उसका अग्रशिखर परिमण्डित था। वह अपने आप में शुभ, सुन्दर और अभिरूप, प्रासादीय, दर्शनीय और अति सुन्दर थी। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tao nam samanassa bhagavao mahavirassa abhinikkhamanabhippayam janetta bhavanavai-vanamamtara-joisiya-vimanavasino deva ya devio ya saehi-saehim ruvehim, saehim-saehim nevatthehim, saehim-saehim chimdhehim, savviddhie savvajutie savvabala-samudaenam sayaim-sayaim jana vimanaim duruhamti, sayaim-sayaim janavimanaim duruhitta ahabadaraim poggalaim parisadeti, aha-badaraim poggalaim parisadetta ahasuhumaim poggalaim pariyaimti, ahasuhumaim poggalaim pariyaitta uddham uppayamti, uddham uppaitta tae ukkitthae sigghae chavalae turiyae divvae devagaie ahenam ovayamana-ovayamana tirienam asamkhejjaim divasamuddaim vitikkamamana-vitikkamamana jeneva jambuddive dive teneva uvagachchhamti, teneva uvagachchhitta jeneva uttarakhattiyakumdapura-sannivese teneva uvagachchhamti, teneva uvagachchhitta jeneva uttarakhattiyakumdapura-sannivesassa uttarapuratthime disibhae teneva jjhattivegena uvatthiya. Tao nam sakke devimde devaraya saniyam-saniyam janavimanam thaveti, saniyam-saniyam janavimanam thavetta saniyam-saniyam janavimanao pachchottarati, saniyam-saniyam janavimanao pachchottaritta, egamtamavakkameti, egamtamavakkametta mahaya veuvvi-enam samugghaenam samohannati, mahaya veuvvienam samugghaenam samohanitta egam maham nanamanikanayarayanabhattichittam subham charukamta-ruvam devachchhamdayam viuvvati. Tassa nam devachchhamdayassa bahumajjhadesabhae egam maham sapayapidham nanamanikanayarayanabhattichittam subham charu-kamtaruvam simhasanam viuvvai, viuvvitta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhati, teneva uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahinam payahinam karei, samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahinam payahinam karetta samanam bhagavam mahaviram vamdati namamsati, vamditta namamsitta samanam bhagavam mahaviram gahaya jeneva devachchhamdae teneva uvagachchhati,... ... Uvagachchhitta saniyam-saniyam puratthabhi-muhe sihasane nisiyavei, saniyam-saniyam puratthabhimuhe sihasane nisiyavetta sayapaga-sahassapagehim tellehim abbhamgeti, abbhamgetta gamdhakasaehim ulloleti, ullolitta suddhodaenam majjavei, majjavitta jassa jamtapalam sayasahassenamti padolatittaenam sahienam sitaenam gosisarattachamdanenam anulimpati, anulimpitta isimnissasavatavojjham varanagarapattanuggayam kusalanarapasamsitam assalalapelavam chheyayariya-kanagakhachiyamtakammam hamsalakkhanam pattajuyalam niyamsavei, niyamsavetta haram addhaharam urattham egavalim palambasutta-patta-mauda-rayanamalaim avimdhaveti, avimdhavetta gamthima-vedhima-purima-samghatimenam mallenam kapparukkhamiva samalamketi, samalamketta dochchampi sahaya veuvviyasamugghaenam samohannai, samohanitta egam maham chamdappabham siviyam sahassavahini viuvvai, tam jaha–ihamiya-usabha-turaga-nara-makara-vihaga-vanara-kumjara-ruru-sarabha-chamara-saddulasiha-vanalaya-vichittavijjahara-mihuna-juyala-jamta-jogajuttam, achchisahassamaliniyam, suniruvita-misimisimta ruvaga sahassakaliyam, isimbhisamanam, bhibbhisamanam, chakkhulloyanalessam, muttahalamuttajalamtaroviyam, tavaniya-pavaralambusa-palambamtamuttadamam, haraddhahara-bhusanasamonayam, ahiyapechchhanijjam, paumalayabhattichittam asogalayabhattichittam, kamdalayabhattichittam nanalayabhatti-viraiya subham charukamtaruvam nanamani-pamcha-vannaghamtapadaya-parimamdiyaggasiharam pasadiyam darisaniyam suruvam. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tadanantara shramana bhagavana mahavira ke abhinishkramana ke abhipraya ko janakara bhavanapati, vanavyantara, jyotishka aura vaimanika deva evam deviyam apane – apane rupa se, apane – apane vastrom mem aura apane – apane chihnom se yukta hokara tatha apani – apani samasta riddhi, dyuti aura samasta bala – samudaya sahita apane – apane yana – vimanom para charhate haim phira saba apane yana mem baithakara jo bhi badara pudgala haim, unhem prithak karate haim. Badara pudgalom ko prithak karake sukshma pudgalom ko charom ora se grahana karake ve umche urate haim. Apani usa utkrishta, shighra, chapala, tvarita aura divya deva gati se niche utarate kramashah tiryakloka mem sthita asamkhyata dvipa – samudrom ko lamghate hue jaham jambudvipa hai, vaham ate haim. Jaham uttara kshatriyakundapura sannivesha hai, usake nikata a jate haim. Uttara kshatriyakundapura sannivesha ke ishanakona disha bhaga mem shighrata se utara jate haim. Devom ke indra devaraja shakra ne shanaih shanaih apane yana ko vaham thaharaya. Phira vaha dhire dhire vimana se utara. Vimana se utarate hi devendra sidha eka ora ekanta mem chala gaya. Usane eka mahan vaikriya samudghata karake indra ne aneka mani – svarna – ratna adi se jatita – chitrita, shubha, sundara, manohara kamaniya rupa vale eka bahuta bare devachchhamdaka ka vikriya dvara nirmana kiya. Usa devachchhamdaka ke thika madhya – bhaga mem padapitha sahita eka vishala simhasana ki vikriya ki, jo nana mani – svarna – ratna adi ki rachana se chitra – vichitra, shubha, sundara aura ramya rupa vala tha. Phira jaham shramana bhagavana mahavira the, vaha vaham aya. Usane bhagavana ki tina bara adakshina pradakina ki, phira vandana namaskara karake shramana bhagavana mahavira ko lekara vaha devachchhandaka ke pasa aya. Tatpashchat bhagavana ko dhire – dhire devachchhandaka mem sthita simhasana para bithaya aura unaka mukha purva disha ki ora rakha. Yaha saba karane ke bada indra ne bhagavana ke sharira para shatapaka, sahasrapaka telom se malisha ki, tatpashchat sugandhita kashaya dravyom se unake sharira para ubatana kiya phira shuddha svachchha jala se bhagavana ko snana karaya. Bada unake sharira para eka lakha ke mulya vale tina pata ko lapeta kara sadhe hue sarasa goshirsha rakta chandana ka lepana kiya. Phira bhagavana ko, naka se nikalane vali jara – si shvasa – vayu se urane vala, shreshtha nagara ke vyavasayika pattana mem bana hua, kushala manushyom dvara prashamsita, ashva ke mumha ki lara ke samana sapheda aura manohara chatura shilpacharyom dvara sone ke tara se vibhushita aura hamsa ke samana shveta vastrayugala pahanaya. Tadanantara unhem hara, arddhahara, vakshasthala ka sundara abhushana, ekavali, latakati hui malaem, katisutra, mukuta aura ratnom ki malaem pahanaim. Gramthima, veshtima, purima aura samghatima – pushpamalaom se kalpavriksha ki taraha susajjita kiya. Usake bada indra ne dubara punah vaikriyasamudghata kiya aura usase tatkala chandraprabha nama ki eka virata sahasravahini shibika ka nirmana kiya. Vaha shibika ihamriga, vrishabha, ashva, nara, magara, pakshigana, bandara, hathi, ruru, sarabha, chamari gaya, shardulasimha adi jivom tatha vanalataom se chitrita thi. Usa para aneka vidyadharom ke jore yamtrayoga se amkita the. Vaha shibika sahastra kiranom se sushobhita surya – jyoti ke samana dedipyamana thi, usaka chama – chamata hua rupa bhalibhamti varnaniya tha, sahastra rupom mem bhi usaka akalana nahim kiya ja sakata tha, usaka teja netrom ko chakachaumdha kara dene vala tha. Usamem moti aura muktajala piroye hue the. Sone ke bane hue shreshtha kandu – kakara abhushana se yukta latakati hui motiyom ki mala usa para shobhayamana ho rahi thi. Hara, arddhahara adi abhushanom se sushobhita thi, darshaniya thi, usa para padmalata, ashokalata, kundalata adi tatha anya aneka vanamalaem chitrita thim. Shubha, manohara, kamaniya rupa vali pamcharamgi aneka maniyom, ghanta evam patakaom se usaka agrashikhara parimandita tha. Vaha apane apa mem shubha, sundara aura abhirupa, prasadiya, darshaniya aura ati sundara thi. |