Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000422 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-२ शय्यैषणा |
Section : | उद्देशक-३ | Translated Section : | उद्देशक-३ |
Sutra Number : | 422 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा–खुड्डियाओ, खुड्ड-दुवारियाओ, निइयाओ संनिरुद्धाओ भवंति। तहप्पगारे उवस्सए राओ वा, विआले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा, पुरा हत्थेण पच्छा पाएण तओ संजयामेव निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं–जे तत्थ समनाण वा, माहनाण वा, छत्तए वा, मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, ‘नालिया वा, चेलं वा’, चिलिमिली वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्म-छेदणए वा–दुब्बद्धे दुन्निक्खित्ते अनिकंपे चलाचले–भिक्खू य राओ वा वियाले वा निक्खममाणे वा, पविसमाणे वा पयलेज्ज वा, पवडेज्ज वा। से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा हत्थं वा, पायं वा, बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा, अन्नयरं वा कायंसि इंदियजायं लूसेज्ज वा, पाणाणि वा भूयाणि वा जीवाणि वा सत्ताणि वा अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, लेसेज्ज वा, संघंसेज्ज वा, संघट्टेज्ज वा, परियावेज्ज वा, किलामेज्ज वा, ठाणाओ ठाणं संकामेज्ज वा, जीवियाओ ववरोवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे उवस्सए पुरा हत्थेणं पच्छा पाएणं तओ संजयामेव निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। | ||
Sutra Meaning : | वह साधु या साध्वी यदि ऐसे उपाश्रय को जाने, जो छोटा है, या छोटे द्वारों वाला है, तथा नीचा है, या नित्य जिसके द्वार बंध रहते हैं, तथा चरक आदि परिव्राजकों से भरा हुआ है। इस प्रकार के उपाश्रय में वह रात्रि में या विकाल में भीतर से बाहर नीकलता हुआ या भीतर प्रवेश करता हुआ पहले हाथ से टटोल ले, फिर पैर से संयम पूर्वक नीकले या प्रवेश करे। केवली भगवान कहते हैं (अन्यथा) यह कर्मबन्ध का कारण है, क्योंकि वहाँ पर शाक्य आदि श्रमणों के या ब्राह्मणों के जो छत्र, पात्र, दंड, लाठी, ऋषि – आसन, नालिका, वस्त्र, चिलिमिली मृगचर्म, चर्मकोश, या चर्म – छेदनक हैं, वे अच्छी तरह से बंधे हुए नहीं हैं, अस्त – व्यस्त रखे हुए हैं, अस्थिर हैं, कुछ अधिक चंचल हैं। रात्रि में या विकाल में अन्दर से बाहर या बाहर से अन्दर (अयतना से) नीकलता – जाता हुआ साधु यदि फिसल पड़े या गिर पड़े (तो उनके उक्त उपकरण टूट जाएंगे) अथवा उस साधु के फिसलने या गिर पड़ने से उसके हाथ, पैर, सिर या अन्य इन्द्रियों के चोट लग सकती है या वे टूट सकते हैं, अथवा प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों को आघात लगेगा, वे दब जाएंगे यावत् वे प्राण रहित हो जाएंगे। इसलिए तीर्थंकर आदि आप्तपुरुषों ने पहले से यह प्रतिज्ञा बताई है, यह हेतु, कारण और उपदेश दिया है कि इस प्रकार के उपाश्रय में रात को या विकाल में पहले हाथ से टटोल कर फिर पैर रखना चाहिए तथा यतना पूर्वक गमनागमन करना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va sejjam puna uvassayam janejja–khuddiyao, khudda-duvariyao, niiyao samniruddhao bhavamti. Tahappagare uvassae rao va, viale va nikkhamamane va, pavisamane va, pura hatthena pachchha paena tao samjayameva nikkhamejja va, pavisejja va. Kevali buya ayanameyam–je tattha samanana va, mahanana va, chhattae va, mattae va, damdae va, latthiya va, bhisiya va, ‘naliya va, chelam va’, chilimili va, chammae va, chammakosae va, chamma-chhedanae va–dubbaddhe dunnikkhitte anikampe chalachale–bhikkhu ya rao va viyale va nikkhamamane va, pavisamane va payalejja va, pavadejja va. Se tattha payalamane va pavadamane va hattham va, payam va, bahum va, urum va, udaram va, sisam va, annayaram va kayamsi imdiyajayam lusejja va, panani va bhuyani va jivani va sattani va abhihanejja va, vattejja va, lesejja va, samghamsejja va, samghattejja va, pariyavejja va, kilamejja va, thanao thanam samkamejja va, jiviyao vavarovejja va. Aha bhikkhunam puvvovadittha esa painna, esa heu, esa karanam, esa uvaeso, jam tahappagare uvassae pura hatthenam pachchha paenam tao samjayameva nikkhamejja va, pavisejja va. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha sadhu ya sadhvi yadi aise upashraya ko jane, jo chhota hai, ya chhote dvarom vala hai, tatha nicha hai, ya nitya jisake dvara bamdha rahate haim, tatha charaka adi parivrajakom se bhara hua hai. Isa prakara ke upashraya mem vaha ratri mem ya vikala mem bhitara se bahara nikalata hua ya bhitara pravesha karata hua pahale hatha se tatola le, phira paira se samyama purvaka nikale ya pravesha kare. Kevali bhagavana kahate haim (anyatha) yaha karmabandha ka karana hai, kyomki vaham para shakya adi shramanom ke ya brahmanom ke jo chhatra, patra, damda, lathi, rishi – asana, nalika, vastra, chilimili mrigacharma, charmakosha, ya charma – chhedanaka haim, ve achchhi taraha se bamdhe hue nahim haim, asta – vyasta rakhe hue haim, asthira haim, kuchha adhika chamchala haim. Ratri mem ya vikala mem andara se bahara ya bahara se andara (ayatana se) nikalata – jata hua sadhu yadi phisala pare ya gira pare (to unake ukta upakarana tuta jaemge) athava usa sadhu ke phisalane ya gira parane se usake hatha, paira, sira ya anya indriyom ke chota laga sakati hai ya ve tuta sakate haim, athava prani, bhuta, jiva aura sattvom ko aghata lagega, ve daba jaemge yavat ve prana rahita ho jaemge. Isalie tirthamkara adi aptapurushom ne pahale se yaha pratijnya batai hai, yaha hetu, karana aura upadesha diya hai ki isa prakara ke upashraya mem rata ko ya vikala mem pahale hatha se tatola kara phira paira rakhana chahie tatha yatana purvaka gamanagamana karana chahie. |